॥ लकी नम्बर॥ प्रोफेसर शिवम चन्द्रा अपने समय के बहुत बड़े वैज्ञानिक थे। भौतिक विज्ञान एवं आधुनिक जीवनोपयोगी यन्त्रों की खोज, एवं ऐसे जी ...
॥ लकी नम्बर॥
प्रोफेसर शिवम चन्द्रा अपने समय के बहुत बड़े वैज्ञानिक थे। भौतिक विज्ञान एवं आधुनिक जीवनोपयोगी यन्त्रों की खोज, एवं ऐसे जी कितने सारे रहस्यों का सहजता से आविष्कार किया था। उनका नाम देश के कोने कोने में जाना जाता था। लेकिन उन्हें दिखावे से कोई मतलब न रहता था। उन्हें नाम और यश की कोई चिन्ता न थी। उनका मानना था। कि समाज को सरल ढंग से कितना से कितना आसान बना सके लोगों के जीवन में कुछ उपयोगी साधन दे सके बस। यश तो हमेशा अच्छे और निष्कपट लोगों के अच्छे कार्यों के पीछे चलता था। आडम्बर और अंधविश्वास से दूर रहते थे। लेकिन सारे धर्म ग्रन्थों में उनकी श्रद्धा थी। वो हमेशा प्राचीन किताबों में या तो नये-नये अनुसंधान करने में मस्त रहते थे। औपचारिकता के लिए भी उन्हें फुर्सत नहीं थी। एकदम व्यवस्थित जीवन।
एक दिन अचानक कुछ समाचार पत्रों के पत्रकार उनके प्रयोगशाला में आ पहुंचे। और तरह-तरह के सवाल करने लगे। समय की कीमत को ध्यान में रखते हुए। उन्होंने उन सबसे कहा केवल एक ही सवाल कर सकते हो सब लोग सोचविचार कर बोलो। अब सभी स्तब्ध क्या पूछा जाये। यहॉ तो बैरियर है। काफी सोचने के बाद सब लोगों ने विचार करके पूछा- आपकी इतनी सारी सफलता क्या राज है आपका लकी नम्बर क्या है ?
शिवम जी अब सोच में पड़ गये कि इसकी तो आज तक उनके जीवन में जरूरत ही नहीं पड़ी। उन्हें तो कभी नम्बरों के अनुसार लक पे तो जोर ही नहीं दिया। खैर जवाब तो देना ही था। अपने खोजी स्वभाव के अनुसार वो उसी तरह सरलता से उत्तर देने लगे- मेरे हिसाब से तो लकी नम्बर सात होता है और ये विषम संख्या भी है। और कभी -आठ भी हो जाता है। पॉच नम्बर का तो कहना ही क्या। सृष्टि का निमार्ण भी पाँच अंक के तत्वों से हुआ है। और ह्यूबन बाडी का भी । पौधों में भी देखो उनके अंगों का विभाजन भी पॉच है- जड़, तना, पत्ती, फूल और फल। मनुष्य या जीव धारियों में भी पॉच अनुभव ही मूल है- जैसे शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंघ। तीन नम्बरों का अंक भी बहुत काम का है। अब देखो-घरती, आकाश, पाताल, । व्यक्ति के तीन गुण- सतोगुण, रजोगुण, और तमोगुण। दो अंकों से तो धरती पे जीवन फैला हुआ है।- पानी के बिना जीवन अधूरा है। और वो भी दो तत्वों से मिलकर बना है। हाईड्रोजन और आक्सीजन। इसमें देखो हाईड्रोजन के दो अणु मिले है। रसायन के अधिकांश तत्व दो अलग-अलग तत्वों के संयोजन से ही बनते हैं। अकेला कोई भी तत्व लगभग अधूरा है। हमेशा कोई भी संयोग दो के मिलन से ही संभव है। चाहे वो जीवन हो या फिर आविष्कार।
और हॉ चार अंक भी बहुत महत्व पूर्ण है- जैसे किसी भी साधारण चीज का बैलेन्स लगभग चार स्तम्भ ज्यादा प्रयोग में लाये जाते है जिनका दैनिक जीवन में बहुत उपयोग होता है जैसे कुर्सी, मेज, ज्यादातर गाड़ियॉ। और धर्म में भी चार का स्थान है- जैसे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। वेदों में चार वेद- सामवेद, आयुर्वेद, ऋगवेद, और अथर्ववेद। ये नम्बर भी लकी लगता है। अब देखो मुख्य रूप से दिशाएं भी चार मानी गई है। पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण। एक अंक भी बहुत लकी नम्बर है। जैसे सूरज एक है चन्द्रमा एक है आकाश एक है। ईश्वर एक है। जो मुख्य है कि दुनियॉ के सभी प्राणी जो जीवित है। एक मात्र हवा के सहारे उनकी प्राणवायु एक है। ये तो सभी जीवों का लकी नम्बर है। मेरे हिसाब से तो सारे अंक लकी है। भाग्यशाली है। रही बात हर किसी का अपना अपना दृष्टिकोण है। और एक विश्वास है। जिसको लेकर एक परम्परा बना ली जाती है। लेकिन ये मेरे समझ में नहीं आती। ग्रह, नक्षत्रों का महत्व है। ये तो सम्पूर्ण पृथ्वी ग्रह के लिए एक होने चाहिए। न कि जो पढ़ा लिखा है उसके लिए कुछ, जो अनपढ़ है उसके लिए कुछ। या जो ज्योतिष का ज्ञाता है व अपने अनुसार उसको बदल सकता है। कुछ रत्नों का तत्वों का शरीर पर रासायनिक प्रभाव पड़ता है। लेकिन ज्यादातर बातें भ्रम पैदा करती है।
अब तुम लोग ही देखते होंगे। प्रतिदिन संसार मे कितने बच्चे पैदा होते होंगे। कितने हजारों। एक ही ग्रह में, एक ही नक्षत्र में, और एक ही समय में, स्थान अलग-अलग है बस। लेकिन उनमें से कितने बड़े होकर प्रसिद्धि पाते है। कुछेक। फिर सब कुछ समान होते हुए इतना भाग्य का अन्तर कैसे हो सकता है। अगर सब कुछ इन रत्नो और ग्रहों पर आधारित है तो सारे कर्म बेकार है।
मुख्य होता है व्यक्ति की रूचि एवं कार्य करने की दिशा अगर दोनों बचपन से लेकर शरीरान्त तक बनें रहे तो सारे ग्रह-नक्षत्र उसके खुद के बस में हो जाते है। सारी प्रकृति उसकी सहायक हो जाती है। क्योंकि बालक की अभिरूचि एक प्राकृतिक सृजन है। यदि वह रूचियों के अनुकूल चल रहा है तो निश्चित कभी न कभी बड़ा कार्य करेगा। और जीवन में सदैव शान्ति का अनुभव करता रहेगा। दुनियॉ के सारे सुख-दुख रुचियों के ऊपर आधारित है। अब आज जितने भी वैज्ञानिक है। मुझे ही देखो बचपन से ही इन्हीं चीजों में रूचि थी। मैं एक पत्ते की तरह धारा में हो लिया और बढ़ता गया बढ़ता गया। कितना सहज और यहाँ आज दुनियाँ को कुछ अनूठा देने की कोशिश कर रहा हूँ।
आज तक जितने भी वैज्ञानिक हुए, खोजी हुए, दार्शनिक हुए, सुधारक हुए सब अपने मन के स्वामी थे। उनकी जो रूचि थी वही किए और एक कीर्तिमान स्थापित किये। रूचि का शिक्षा से कोई विशेष लेना देना नहीं है। हॉ रूचि के अनुसार व्यक्ति अपनी शिक्षा का रास्ता स्वयं चयन कर सकता है और करना चाहिए। हम प्रकृति के विपरीत जाकर कभी भी सफलता एवं शान्ति हासिल नहीं कर सकते। इसलिए हमें अपनी रूचियों के अनुकूल ही अपना प्रयास करना चाहिए। फिर देखना सारे अंक आपको भी लकी लगेंगे।
आज की शिक्षा में व्यक्ति क्या ग्रहण कर रहा है। केवल दूसरों के जबरदस्ती विचार, किताबों का बोझ और मॉ-बाप की अन्धी और प्यासी लालसा। बच्चों को आगे बढ़ने से बाधित करती है। जबरजस्ती किताबों को पढ़ने का बोझ डाला जा रहा है। मैं कहता हूं उन्हें चित्रकार बनने में रूचि है तो बनने दो। मिट्टी में खेलने की रूचि है तो खेलने दो। शायद उनका जन्म उसी के सहारे इस दुनियॉ को कुछ आश्चर्यजनक चीजें देने के लिए हुआ हो। उन्हें जाने दो इस दुनियॉ के स्वतंत्र पुस्तकालय में, जो चारों तरफ फैली हैं। वो अपना विचार खुद बनेंगे। और उसी से अपने बेहतर जीवन का रास्ता निकाल लेंगे। हमारे निर्देशन के बावजूद भी। बेहतर से बेहतर। निश्चित ही ये मेरा वादा है। ये दुनियॉ खुद अपने आप में एक किताब है। एक प्रयोगशाला है।
ये डिग्रियाँ, ये पद, प्रतिष्ठा सब व्यक्ति के संकुचित दायरे में बॉधने के कारक हैं। व्यक्ति अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा को इन्हीं में खत्म करके बिना किसी पहिचान के मर जाता है। जब हम नदी के प्रवाह के विपरीत तैरते है। तो हमें ज्यादा ताकत लगानी पड़ती है और हम किनारे पे भी नहीं पहुंच पाते परेशान, निराशा, कुण्ठा, व असफलता से ग्रसित हो जाते हैं। हमेशा संघर्षमय जीवन बना रहता है। हम समझते है कि हमने मेहनत किया फिर भी अनुकूल फल नहीं मिला। कभी कभी धाराओं के विपरीत प्रभाव में बहकर जान भी दे देते हैं।
हर बच्चे के बचपन को देखो तो उनमें एक विशेष प्रकार की दृष्टि होती है। कोई पशुओं के साथ खेलना पसंद करता है तो कोई मिट्टी में, कोई जहाज, तो कोई गाड़ी, कोई बैलगाड़ी तो कोई बुल्डोजर, कोई पतंग, या कोई चिड़ियॉ। कोई विज्ञान पढ़ना पसंद करता है तो कोई कला साहित्य या समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र। यह पूर्व संचित संस्कारों का परिणाम होता है और उसी में वो अपनी महारथ हासिल कर सकते हैं। उनके पास उसके पूर्वसंचित अनुभवों का भण्डार होता है केवल उसे पूरा करने का ये अगला चरण होता है।
क्या आप लोगों न देखा है कि कोई बच्चा गणित के ऐसे ऐसे सवाल बड़ी सरलता से हल करता है जिसे बड़े बड़े गणितज्ञ भी नहीं कर सकते। ये वर्तमान का कारण नहीं है। हर वर्तमान भूत से जुड़ा होता है। चाहे वह जन्म हो या मृत्यु। बिना आधार के कोई भी दीवार नहीं खड़ी हो सकती। चाहे वह हमारे व्यक्तित्व की या समाज की क्यों न हो।
सभी लोग बातें करते करते प्रयोगशाला के बाहर आये तभी उनकी नजर सामने लगे गुलाब पर पड़ी जिसके एक ही पौधे में एक लाल फूल और एक सफेद था। शिवम जी ने उसकी ओर इशारा करके कहा- इसमें सुगन्ध है क्या ? सारे पत्रकार उस पर लपक पड़े मिलकर बोले कोई खास नहीं। शिवम जी बोले- आज हमारा जीवन ऐसे ही हो गया है। इसके साथ हमने प्राकृतिक छेड़खानी किया, मिश्रण किया। केवल सुन्दर दिखने के लिए और उसके मूल गुण खत्म हो गये। आज के सारे वनस्पतियों में बीजों में वो शक्ति खत्म हो रही है। जो उनमें वो पहले होती थी। स्त्री-पुरूष की प्रजनन क्षमता क्षीण होती जा रही है। अभी हम जिस बीज से पौधा बनाते है पुनः उस पौधे के बीज से पौधा नहीं हो पाता। और होता भी है तो नाममात्र का। वही हाल हमारे जीवन का है। हम देखने में सुन्दर, विकसित, शिक्षित, कहने को सब कुछ हो गये है। लेकिन हर किसी का जीवन एक बोझ होता जा रहा है। निराशा एवं समस्या से ग्रसित। सारी शक्तियॉ क्षीण होती जा रहीं है। शायद कभी खत्म न हो जाये। ये दुनिया पशु-पक्षी, जीव और जीवन मिश्रित होते होते। हम प्रकृति से विरोधाभास करके कब तक जी पायेंगे। जीवों की प्रजातियॉ नष्ट हो रही है। आदमी भी तो एक जीव है। सब जीवों से समझदार और खतरनाक भी।
माहौल में स्तब्घता छा गई। अब प्रोफेसर शिवम् बहुत गंभीर हो चुके थे। लोगों से प्रणाम की मुद्रा में हाथ उठाकर जाने को कहा और पुन किसी प्रयोग में व्यस्त हो गये।
-उमेश मौर्य,
सराय, भाईं, सुलतानपुर, उ0प्र0।
वर्तमान - कुवैत में।
Mail ID - ukumarindia@gmail.com
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