पाकिस्तान : सेना की वर्दी में आतंकवादी प्रमोद भार्गव पाकिस्तानी फौजियों द्वारा भारतीय सीमा में घुसकर दो सैनिकों की हत्या स्तब्ध कर देन...
पाकिस्तान : सेना की वर्दी में आतंकवादी
प्रमोद भार्गव
पाकिस्तानी फौजियों द्वारा भारतीय सीमा में घुसकर दो सैनिकों की हत्या स्तब्ध कर देने वाली घटना है। इस घटना ने अंतरराष्टीय सीमा के उल्लंघन और संघर्ष विराम की शर्त को एक बार फिर खुली चुनौती दी है। रिश्तों में सुधार की भारत की ओर से ताजा कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि वह शांति कायम रखने और निर्धारित शर्तों को मानने के लिए कतई गंभीर नहीं हैं। और हम है कि मुंह तोड़ जवाब देने की बजाए, मुंह ताक रहे हैं। पाकिस्तान के प्रति रहमदिली का रुख रखने वाले प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के सीमा सुरक्षा के लिए बलिदान हो जाने वाले सैनिकों की बहादुरी व शहादत के लिए अब तक न तो संवेदना के दो बोल फूटे और न ही पाक प्रायोजित घटना की निंदा की। महज भारत स्थित पाक उच्चायुक्त सलमान बशीर को बुलाकर विदेश सचिव रंजन मथाई ने ऐसी घटना दोबारा न होने की नसीहत देकर एक तरह से घटना का पटाक्षेप कर दिया। दूसरी तरफ पाक विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार ने इस घटना को पाक सैनिकों द्वारा अंजाम दिए जाने की हकीकत को ही सिरे से झुठला दिया। उनका दावा है कि जमीनी जांच में ऐसा कुछ नहीं पाया गया। दरअसल पाकिस्तानी फौज एक तो इस्लामाबाद के नियंत्रण में नहीं है, दूसरे वहां की सेना की वर्दी में आतंकवादियों की भी संख्या बढ़ रही है।
पाक सैनिकों ने पूंछ इलाके के मेंढर क्षेत्र में करीब आधा किलोमीटर भीतर घुसकर न केवल दो भारतीय सैनिकों की हत्या कर दी, बल्कि एक शहीद का सिर भी काट ले गए। कारगिल युद्ध के समय ऐसी ही हिंसक बर्बरता पाक सैनिकों ने कप्तान सौरभ कालिया के साथ बरती थी। यही नहीं सौरभ का शरीर क्षत-विक्षत करने के बाद शव बमुश्किल लौटाया था। अब वैसी ही हरकत की पुनरावृत्ति हुई है। युद्ध के समय भी अंतरराष्टीय कानून के मुताबिक ऐसी विभत्स बरतने की इजाजत नहीं है। ये वारदातें युद्ध अपराध की श्रेणी में आती हैं। लेकिन भारत सरकार इस दिशा में कोई पहल ही नहीं करती और युद्ध अपराधी, निरपराधी ही बने रहते हैं। भारत की यह सहिष्णुता विकृत मानसिकता के पाक सैनिकों की क्रूर सोच को प्रोत्साहित करती है। यहां एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह भी है कि ऐसी जघन्य हालत में पाक के साथ भारतीय सेना नायक क्या बर्ताव करें, इस परिप्रेक्ष्य में भारत के नीति-नियंताओं के पास कोई स्पष्ट नीति ही नहीं है। यही वजह है कि बड़ी से बड़ी घटना भी आश्वासन और आश्वस्ति के छद्म बयानों तक सिमटकर रह जाती है। भारत इन घटनाओं को अंतरराष्टीय मंचों पर उठाने का भी साहस नहीं दिखा पाता। नतीजतन संबंध सुधार के द्विपक्षीय प्रयास इकतरफा रह जाते हैं।
इस ताजा घटना के संदर्भ में गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर एक दशक से जारी युद्धविराम भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने की दिशा में सबसे पुख्ता शर्त है। 26 नवंबर 2003 को यह शर्त लागू हुई थी। वरना इस रेखा पर कमोबेश अघोषित हमले जैसी स्थिति बनी रहती थी और सुरक्षा के लिए तैनात सिपाही शहीद होते रहते थे। हमले की जद में आने वाले ग्रामों के लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी भी बेहाल थी। युद्धविराम से इन क्षेत्रों में स्थिरता आई। आपसी सौह्यार्द बढ़ा। आगे संबंध और प्रगाढ़ करने की खासतौर से भारत की ओर से पहल हुई। भारत-पाक रिश्तों को मधुर बनाने के लिए क्रिकेट-कूटनीति अपनाई गई। हाल ही दिसंबर-जनवरी में टी-20 और तीन एक दिवसीय क्रिकेट खेल श्रृंखला संपन्न हुई। इस श्रृंखला की सफलता के तारतम्य में ही दोनों देशों के बीच मार्च में हॉकी खेली जाना प्रस्तावित है। खेल, पर्यटन और तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए दोनों देशों के नागरिकों को वीजा नीति उदार बनाने पर सहमति हुई। दोनों देशों के बीच कारोबार तीन अरब डॉलर तक पहुंच चुका है। इसे और बढ़ाने की दृष्टि से ही 2012 में दोनों देशों ने उद्योगपतियों को एक-दूसरे के देश में पूंजी निवेश की मंजूरी दी। जिससे दोनों देशों के व्यापारिक घरानों को नए बाजार व उपभोक्ता मिलें और रोजगार के अवसर भी बढ़ें। सुधरते संबंधों के चलते ही पाकिस्तान ने पहली बार भारत को महत्वपूर्ण सहयोगी देश का दर्जा दिया। लेकिन इस घटना ने सब उम्मीदों पर एक बार फिर पानी फेर दिया। पाक के लगातार नापाक इरादे सामने आने के बाद समझौतों की तमाम कोशिशों को प्रतिबंधित करने की मांग पुरजोरी से उठ रही है।
पाकिस्तान ने जिस तरह से घटना को नकारा है, उससे साफ हो गया है कि पाक के जो निर्वाचित प्रतिनिधि इस्लामाबाद की सत्ता पर सिंहसनारुढ़ हैं, उनका अपने ही देश की सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चंगुल में है। हुकूमत पर आईएसआई का इतना जबरदस्त प्रभाव है कि वह भारत के खिलाफ सत्ता को उकसाने का भी काम करती है। यही वजह है कि सेना की अमर्यादित दबंगई ठंड और कोहरे का बेजा लाभ उठाकर भाड़े के तालिबानियों को भारत में घुसपैठ कराकर आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की भूमिका रचती है। पाक सेना की दंबगई बढ़ाने का काम परोक्ष रुप से अमेरिका भी कर रहा है। अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक इमदाद बहाल कर दी है। अब यह राशि तीन अरब डॉलर सालाना होगी। इसके पहले अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को इतनी विपुल धन राशि कभी उपलब्ध नहीं कराई गई। ऐसा अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सेना बाहर निकालने की रणनीति के चलते कर रहा है। चूंकि यह मदद पाक कूटनीति का पर्याय होने की बजाए, सेना और आईएसआई की कोशिशों का नतीजा है, इसलिए इस धन राशि का उपयोग भारत के खिलाफ भी होना तय है। यहां आग में घी डालने का काम पाकिस्तानी सेना के जनरल कयानी भी कर रहे हैं। वे इसी साल सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं। ऐसे में माहौल गरमा कर वे सेवा विस्तार की नापाक मंशा पाले हुए हैं।
पाक इरादे भारत के प्रति नेक नहीं हैं, यह हकीकत सीमा पर घटी इस ताजा घटना ने तो साबित की ही है, इसी नजरिए से वह आर्थिक मोर्चे पर भारत से छद्म युद्ध भी लड़ रहा है। देश में नकली मुद्रा की आमद साढ़े तीन गुना बढ़ गई है। वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) के मुताबिक भारत में करीब 160 अरब मूल्य की जाली मुद्रा चलन में ला दी गई है। इन नोटों की तश्करी कश्मीर, राजस्थान, नेपाल की सीमा और दुबई तथा समुद्री जहाजों से हो रही है। जाली मुद्रा के लेन-देन में अब तक हजारों लोग पकड़े जा चुकने के बाद जमानत पर छूटकर इसी कारोबार को अंजाम देने में लगे हैं। कानून सख्त न होने के कारण यह व्यवसाय उनके कैरियर का हिस्सा बन गया है। भारत की बढ़ती विकास दर और प्रति व्यक्ति आय बढ़ोत्तरी में इस जाली मुद्रा की भी अहम् भूमिका है, इसलिए केंद्र सरकार इसे गंभीरता से नहीं लेती। केंन्द्र सरकार क्या इन्हीं नापाक इरादों के लिए वीजा प्रावधान शिथिल बना रहे हैं ? सीमा पर ढील और सैनिकों की हत्या राष्ट्र के संप्रभुता से जुड़े बड़े सवाल हैं, इन्हें उदार आचरण से नहीं सुलझाया जा सकता है। इसलिए जरुरी है पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए और उससे सभी तरह के संबंध खत्म कर लिए जाएं। वरना भारत मुंह की खाता रहेगा।
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प्रमोद भार्गव
लेखक/पत्रकार
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लेखक प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार है।
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