राजा चन्द्रसेन बहुत ही पराक्रमी और प्रतापी राजा था I वह अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था I उनकी सहायता करने के लिए हमेशा तत्पर रहता था I प...
राजा चन्द्रसेन बहुत ही पराक्रमी और प्रतापी राजा था I वह अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था I उनकी सहायता करने के लिए हमेशा तत्पर रहता था I पर इन सबके बावजूद उसे एक भी व्यक्ति पसंद नहीं करता था और आस पड़ोस के राजा भी उसके शत्रु बन चुके थे क्योंकि उसकी वाणी बहुत कठोर और रुखी थी I वह सोचता था कि वह सबका हित चाहता हैं इसलिए कुछ भी बोल सकता हैं पर सुनने वाले को कटु वचन सुनकर बहुत दुःख होता था, और वे उसे बिलकुल भी पसंद नहीं करते थे I सारे राज्य में किसी की इतनी हिम्मत नहीं थी,जो राजा को यह बात कह सकता इसलिए वे उसकी तमाम अच्छाइयों के बाद भी बुराई ही करते रहते थे I
राजा के पास एक जादुई पलंग था जो उसे रोज रात एक कहानी सुनाया करता I वह राजा को बहुत प्यार करता था जब वह दिन भर राजा की बुराइयाँ सुनता रहता तो उसे बहुत दुःख होता क्योंकि वह जानता था कि राजा दिल का बहुत अच्छा हैं I उसने निश्चय किया कि वह कहानी के माध्यम से ही राजा का एकमात्र अवगुण दूर कर देगा उस रात जब राजा ने पलंग से कहानी सुनाने के लिए कहा तो पलंग ने कहानी सुनाना शुरू किया - महाराज, बहुत समय पहले की बात हैं एक गाँव में एक बहुत ही आलसी आदमी रहता था I उसका नाम था गोपीनाथ I वह कोई कामधाम नहीं करता था इसलिए उसकी पत्नी ने भी उसे धक्का मारकर घर से निकाल दिया था I पर गोपीनाथ तो हर से निकले जाने के बाद पहले से भी ज्यादा खुश था I गोपीनाथ की एक विशेषता थी कि उसकी बोली बहुत मीठी थी I वह जब भी किसी से बोलता तो उसकी कोशिश रहती कि किसी का दिल ना दुखे I घर से निकाले जाने के बाद वह एक सेब के पेड़ के नीचे लेटने लगा I जब भी कोई सेब पेड़ से गिरता तो वह लेटे- लेटे ही खा लेता I उधर से निकलने वाले कई लोगो ने उसे सलाह दी कि पूरा पेड़ सेबों से लदा हैं वह पत्थर मारकर क्यों नहीं तोड़ लेता I इस पर गोपीनाथ कहता - " नहीं,नहीं ..अगर मैं पेड़ पर पत्थर मारूंगा तो उसे दर्द होगा इसलिए मैं जमीन पर गिरे हुए सेब ही खाऊंगा I जबकि गोपीनाथ सोचता कि जब आराम से लेटे लेटे ही सेब खाने को मिल रहे है तो बेकार की मेहनत क्यों की जाए I पर सेब का पेड़ अपने बारे में गोपीनाथ की बात सुनकर उससे बहुत खुश हुआ I उसने सोचा कि गोपीनाथ उसका कितना ध्यान रखता हैं I अब पेड़ खुद गोपीनाथ के लिए पेड़ मीठे मीठे रसीले सेब गिराने लगा I
गोपीनाथ दिन भर लेटे हुए सेब खाता और रात को वही सो जाता I एक दिन जब वह दिन मैं लेटा हुआ था तो झाड़ियों में से एक काला नाग आया और अपना फ़न फैलाकर गोपीनाथ से बोल- " तुम मेरे आने जाने के रास्ते में रोजाना लेटते हो आज मैं तुम्हें जरुर काटूँगा I सुनते ही गोपीनाथ की डर के मारे घिग्गी बंध गई I उसने सोचा कि मुझे तुरंत यहाँ से भाग जाना चाहिए पर वह जैसे ही उठने लगा तो उसने सोचा कि मैं जैसे ही भागूँगा तो सांप भी सरपट भागकर मेरे पीछे आ जाएगा और मुझे काट खायेगा इसलिए जब मुझे मरना ही हैं तो फिर बेकार पैरों को क्यों कष्ट दू यही पर आराम से लेटा रहता हूँ I इसलिए वह साँप से बहुत ही मधुर स्वर में बोला -" नागराज, मैं तो आपकी शरण मैं हूँ अब आप जो चाहे कीजिये I " यह सुनकर साँप अचंभित रह गया और धर्म संकट में पड़ गया I उसने सोचा कि यह मेरी शरण में हैं इस कारण इसके प्राणों की मुझे रक्षा करनी चाहिए I यह सोचकर साँप बोला- " मित्र, मैं तुम्हारे मधुर वचनों से बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुआ हूँ I मैं तुमको भेंट स्वरुप यह मणि देता हूँ , इसको हाथ में पकड़ते ही तुम आने वाली घटना को देख सकोगे और जब भी मेरी जरुरत हो तो झाड़ियों के पास आकर मुझे पुकारना मैं तुरंत चला आऊंगा I यह कहकर साँप वहाँ से चला गया I
गोपीनाथ तो जगमगाती हुई मणि देखकर ख़ुशी से पागल हो गया और उसने सोचा की मणि हाथ में पकड़ कर देखता हूँ कि कल क्या होने वाला हैं I ये सोचकर उसने जैसे ही मणि पकड़ी उसने देखा कि कुछ लकडहारे अपने हाथों में कुल्हाड़ी लेकर सेब के पेड़ को काटने के लिए इधर ही आ रहे हैं I यह देखकर वह घबरा गया और भागकर सेब के वृक्ष के गले लग गया फिर वह आँसूं पोंछा हुआ झाड़ों की तरफ भागा और साँप को सारी बातें बताई I साँप पूरी बात सुनकर बोला -" तुम बिलकुल चिंता मत करो I मैं तुम्हारे पेड़ को कुछ नहीं होने दूंगा I दूसरे दिन वह कई सापों को लेकर पेड़ के पास बैठ गया I जब लकडहारे पेड़ काटने आये तो इतने सारे साँपों को पेड़ के नीचे बैठा देखकर डर के मारे अपनी कुल्हाड़ियाँ वही छोड़कर सरपट भाग गए I पेड़ गोपीनाथ की दयालुता देखकर बहुत खुश हुआ और वह उससे बोला _" आज से मैं तुम्हारे लिए ढेर सारे रसीले फल गिराया करूँगा I , तुम उन्हें यहाँ बैठे बैठे ही बेचना जिससे तुम्हारे घर का खर्च आराम से निकल जाएगा I यह सुनकर गोपीनाथ मासूमियत से बोला -" मैं सब बेच तो दूँगा, पर बैठे बैठे नहीं लेटे- लेटे I पलंग की यह बात सुनकर राजा जोरों से हंस पड़ा और पलंग से उत्सुकता से बोला - " और फिर क्या हुआ?"
पलंग ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया और महाराज, गोपीनाथ की मीठी वाणी के कारण उसकी तकलीफों का अंत हो गया I राजा बोला -" हाँ, हाँ, वह सचमुच बहुत मीठे वचन बोलता था और मधुर वचन तो सबको प्रिय होते हैं और इस कारण मधुर वचन बोलना वाला सबका प्रिय बन जाता हैं I बिलकुल ठीक महाराज जब गोपीनाथ जैसा आलसी आदमी सिर्फ मीठे वाणी के कारण सब कुछ पा सकता हैं तो आप तो महाप्रतापी और पराक्रमी राजा हैं I आपको तो प्रजा अपनी माता-पिता की तरह प्रेम करेगी और सभी शत्रु राजा आपके मित्र बन जायेंगे I यह सुनते ही राजा कि आँखे खुल गई और उसकी आँखों में आँसूं आ गए I वह रूंधे गले से बोला -" आज तुमने मेरी आँखें खोल दी I अब मैं सदा मीठी वाणी ही बोलूँगा I "
राजा के यह बोल सुनकर पलंग की ख़ुशी की तो सीमा ही नहीं रही I दूसरे ही दिन राजा ने राजमहल के मुख्य द्वार पर लिखवा दिया -" मीठे बोल सभी के हृदय को जीत लेते है I "
फिर ऐसा ही हुआ जैसा कि पलंग ने राजा को कहा था I प्रजा राजा को दिल से सम्मान देने लगी I इस तरह राजा ने वर्षों तक अपना राज्य हँसी ख़ुशी चलाया I
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कागा काको धन हरे कोयल काको देय की उत्तम विश्लेषक रचना प्रशंशनीय
जवाब देंहटाएंthanks
जवाब देंहटाएंthanks
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