स्वामी विवेकानन्द की 150 वीं जन्म जयंती 12 जनवरी , 2013 पर विशेष ः- विवेकानन्द के प्रासंगिक संदेश विवेकानन्द ने कहा था-‘‘भारत एक...
स्वामी विवेकानन्द की 150वीं जन्म जयंती
12 जनवरी, 2013 पर विशेष ः-
विवेकानन्द के प्रासंगिक संदेश
विवेकानन्द ने कहा था-‘‘भारत एक बार फिर समृद्धि तथा शक्ति की महान् ऊँचाइयों तक उठेगा और अपने समस्त प्राचीन गौरव को पीछे छोड़ जाएगा।‘‘ उनके समकालीन प्रस़िद्ध इतिहासकारों अर्नाल्ड टायनबी व बिल डूरांट ने भी कहा था कि ‘भारत का विश्वगुरू बनना केवल भारत ही नहीं अपितु विश्व के हित में है।‘ आज हम देख रहे हैं कि पूर्ण दृढ़ता के साथ वैश्विक दुष्प्रभावों, कूटनीतियों का सामना करते हुए भारत अपनी आध्यात्मिकता के बल पर एक सामरिक एवं राजनयिक शक्ति के रूप में उभर कर सामने आया है। हमारे आत्मविश्वासी राष्ट्र ने तीव्र गति से आर्थिक विकास के क्षेत्र में बड़ी छलांग लगायी है। आज भारत अमेरिका व चीन के साथ विश्व की तीन वैश्विक शक्तियों में से एक के रूप में उभर रहा है। भारत उत्थान के पथ पर है। इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ पर भारत वैश्विक स्तर की कक्षा में छलांग लगाने को तत्पर है, किन्तु नेतृत्व के संकट ने राष्ट्र और उसके जोश को कमजोर कर दिया है। अपूर्व भ्रष्टाचार तथा आंतरिक व बाह्य रूप से विदीर्ण सुरक्षातंत्र, असमान आर्थिक विकास और सांप्रदायिक कट्टरता, आतंकवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, राष्ट्र गौरव का विस्मरण व चरित्र में गिरावट जैसी अनेक समस्याओं से भारत आज पीड़ित है।
भारत को विश्व-शिखर पर आरूढ़ होना है, हम सभी यही चाहते हैं, किन्तु अभी मार्ग में बाधाएँ बहुत हैं। आज यदि इमें इस ध्येय में सफलता मिल सकती है तो वह केवल स्वामी विवेकानन्द के संदेशोंं के सुपथ पर चलकर। विख्यात फ्रैंच लेखक रोमाँ रोलाँ ने विवेकानन्द का वर्णन करते हुए कहा था-‘‘आयु में कम, परन्तु ज्ञान में असीम।‘‘ यदि हम इस भावुकतापूर्ण उक्ति को शब्दशः स्वीकार करते हैं, तो यह स्वामी विवेकानन्द के दर्शन की आज के युग में प्रासंगिकता को प्रस्तुत करती है। यह सही है कि तब से दो विश्वयुद्ध हो चुके हैं और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विस्मयकारी विकास हो चुका है। पूरी दुनिया बदल चुकी है और मनुष्य के दृष्टिकोण तथा जीवन-शैली में भी परिवर्तन आ चुका है। सारे विश्व के समान ही भारत भी ऐसी अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है जो उनके समय में अज्ञात थीं। इसके बावजूद भी यह कहा जा सकता है कि स्वामी विवेकानन्द के ओजस्वी संदेश आज भी प्रासंगिक हैं। आज स्वामी विवेकानन्द के इन प्रभावकारी संदेशों पर चिन्तन और अमल करने की महत्ती आवश्यकता है।
आम जनता-शक्ति की स्रोत है। विवेकानन्द ने कहा है-‘‘समाज का नेतृत्व चाहे विद्या-बल से प्राप्त हुआ हो, बाहु-बल से या धन-बल से परन्तु उस शक्ति का आधार प्रजा ही है। इस शक्ति के आधार - प्रजा से शासक वर्ग जितना ही अलग रहेगा, वह उतना ही दुर्बल होगा।‘‘ हमें नहीं भूलना चाहिये कि यथार्थ भारत झोंपड़ी में बसता है, इसलिए भारत की भावी उन्नति भी झोंपड़ी में रहने वाले ‘आम जनता‘ की अवस्था पर निर्भर है। यदि हम जनता की उन्नति कर सकते हैं, उनकी स्वाभाविक आध्यात्मिक वृत्ति को नष्ट किये बिना, उन्हें उनकी खोयी हुई अस्मिता वापस दिला सकते हैं तो ही हम राष्ट्र की उन्नति को साकार कर सकते हैं। आम जनता की उपेक्षा ही हमारे पतन का कारण है। जब भारत की जनता एक बार फिर से सुशिक्षित, सुपोषित तथा सुपालित होगी और दीन-हीन निर्धन, निरक्षर किसानों तथा श्रमिकों का जीवन स्तर ऊपर उठेगा, तभी देश की उन्नति का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
अपने इतिहास को जानो। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है-‘‘अतीत से ही भविष्य बनता है। अतः यथासम्भव अतीत की ओर देखो, पीछे जो चिरन्तन निर्झर बह रहा है, भरपेट उसका जल पिओ और उसके बाद सामने देखो और भारत को उज्ज्वलतर, महत्तर और पहले से अधिक ऊँचा उठाओ।‘‘ अतीत गौरव के ज्ञान से हम निश्चय ही पहले से भी श्रेष्ठ भारत बनाएँगे। हम भारत के गौरवशाली अतीत का जितना ही अध्ययन करेंगे, हमारा भविष्य उतना ही उज्ज्वल होगा। हमारे पीछे परम्परागत संस्कार और हजारों वर्षाें के सत्-कर्म हैं, उन्हीं से सम्बल प्राप्त कर वर्तमान सामाजिक व्यवस्था और भी सुदृढ़ बन सकेगी। हमारे उपनिषदों, पुराणों और अन्य सब शास्त्रों में जो अपूर्व सत्य छिपे हुए हैं, उन्हें इन ग्रन्थों के पन्नों से बाहर निकालकर, मठों की चाहरदीवारियाँ भेदकर, वनों की निर्जनता से निकालकर, कुछ विश्ोष सम्प्रदायों के हाथ से छीनकर देश में सर्वत्र बिखेर देना होगा, ताकि नयी पीढ़ी उससे सीख लेकर आगे बढ़ सके। आज समय आवश्यकता है भारत के नेतृत्व की महत्वाकांक्षा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति में हमारे महापुरूषों जैसे महान् त्याग, महान् निष्ठा तथा महान् धैर्य के भाव को भर देने की, ताकि स्वार्थगंध-रहित शुद्ध बुद्धि की सहायता से राष्ट्रोत्थान के महान् उद्यम में वे जुट सकें।
धर्म को छोड़ो मत। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है-‘‘धर्म को हानि पहुँचाये बिना ही जनता की उन्नति-इसी को आदर्श बना लो।...........यदि तुम धर्म को फेंककर राजनीति, समाज-नीति अथवा अन्य किसी दूसरी नीति को जीवन-शक्ति का केन्द्र बनाने में सफल हो जाओ, तो उसका फल यह होगा कि तुम्हारा अस्तित्व तक न रह जाएगा।‘‘ भारत में हजारों वर्षों से धार्मिक आदर्श की धारा प्रवाहित हो रही है, भारत का वायु-मण्डल इसी धार्मिक आदर्श से अगणित शताब्दियों तक पूर्ण रहकर जगमगाता रहा है। हम इसी धार्मिक आदर्श के भीतर पैदा हुए और पले हैं - यहाँ तक कि धर्मभाव हमारे जन्म से ही रक्त में मिल गया है, जीवन-शक्ति बन गया है। यह धर्म ही है जो हमें सिखाता है कि संसार के सारे प्राणी हमारी आत्मा के विविध्य रूप ही हैं। इस तत्व को व्यावहारिक आचरण में न लाना, परस्पर सहानुभूति का अभाव, आत्मीयता का अभाव- यही समाज की वर्तमान दुरवस्था का कारण है।.............समाज की यह दशा सुधारनी होगी, किन्तु धर्म को छोड़कर नहीं, वरन् सनातन धर्म के महान् उपदेशों का अनुसरण करके। भारत के लिए धर्म का मार्ग ही अल्पतम बाधा वाला मार्ग है। धर्म के पथ का अनुसरण करना हमारे जीवन का मार्ग है, हमारी उन्नति का मार्ग है और यही हमारे कल्याण का भी मार्ग है।
शिक्षा हमारी मूलभूत आवश्यकता है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है-‘‘जिस राष्ट्र की जनता में विद्या-बुद्धि का जितना ही अधिक प्रचार है, वह राष्ट्र उतना ही उन्नत है। भारत के सर्वनाश का मुख्य कारण यही है कि देश की सारी विद्या-बुद्धि, राज-शासन और दम्भ के बल पर मुट्ठी भर लोगों के एकाधिकार में रखी गयी। यदि हमें फिर से उन्नति करनी है, तो हमको उसी मार्ग पर चलना होगा, अर्थात् जनता में विद्या का प्रसार करना होगा।‘‘ भारत के लोगों को यदि आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा न दी जाए, तो सारे संसार की दौलत से भारत के एक छोटे-से गाँव की भी सहायता नहीं की जा सकती है। नैतिक तथा बौद्धिक - दोनों ही प्रकार की शिक्षा प्रदान करना हमारा पहला कार्य होना चाहिए। हर राष्ट्र, हर पुरूष और हर स्त्री को अपना उद्धार स्वयं करना होगा। उन्हें विचार दे दो- बस, बाकी सब वे स्वयं कर लेंगे। भारत में बस यही करना है।
विदेशों के साथ आदान-प्रदान। विवेकानन्द कहते हैं-‘‘यदि भारत फिर से उठना चाहे, तो यह परम् आवश्यक है कि वह ‘आध्यात्मिक एवं धार्मिक चिन्तन‘ इन दो रत्नों को बाहर लाकर विश्वभर में बिखेर दे और इसके बदले में वे जो कुछ भी दे सकें, उसे सहर्ष ग्रहण करें। विस्तार ही जीवन है और संकोच मृत्युय प्रेम ही जीवन है और द्वेष ही मृत्यु।‘‘ हमें उत्तराधिकार में प्राप्त इन अमूल्य रत्नों की आशा में संसार हमारी ओर आग्रहभरी दृष्टि से निहार रहा है। आदान-प्रदान ही अभ्युदय का रहस्य है। आज हमें जरूरत है - वेदान्तयुक्त पाश्चात्य विज्ञान की, ब्रह्मचर्य के आदर्श और श्रद्धा तथा आत्मविश्वास की। आज जरूरत है - विदेशी नियंत्रण को हटाकर हमारे विविध शास्त्रों, विद्याओं का अध्ययन हो और साथ-ही-साथ अ्रग्रेजी भाषा और पाश्चात्य विज्ञान भी सीखा जाए। पश्चिम से हम विज्ञान-तकनीक सीख सकते हैं, परन्तु हमें भी उन्हें कुछ सिखाना है, और वह है - हमारा धर्म और आध्यात्मिकता। हाँ, हमें विदेशों से सीखने के इस दौर में सावधान रहना होगा। इस पाश्चात्य भाव-तरंग में कहीं हमारे चिर काल से अर्जित अमूल्य रत्न बह तो नहीं जाएँगे! भौतिकता के उस प्रबल भँवर में पड़कर कहीं भारतभूमि भी ऐहिक सुख प्राप्त करने की रणभूमि में तो नहीं बदल जाएगी। भारत को यूरोप से बाह्य प्रकृति पर विजय प्राप्त करना सीखना है और यूरोप को भारत से अन्तःप्रकृति की विजय सीखनी होगी। तभी आदर्श मानव-जाति का निर्माण हो सकेगा।
चाहिये सच्चे देशभक्तों की टोली। विवेकानन्द ने कहा है-‘‘देशभक्त बनो, जिस राष्ट्र ने अतीत में हमारे लिए इतने बड़े-बड़े काम किए हैं, उसे प्राणों से भी प्यारा समझो।‘‘ क्या तुम यह अनुभव करते हो कि अज्ञान के काले बादल ने सारे भारत को ढँक लिया है? यह सोचकर क्या तुमको बैचेनी होती है? क्या इस सोच ने तुम्हारी निद्रा छीन ली है कि भारत के लोग दुःखी हैं? यदि ‘हाँ‘ तो फिर तुम देशभक्त बनने की पहली सीढ़ी पार गए हो। यदि तुमने केवल व्यर्थ की बातों में शक्ति क्षय न करके, इस दुर्दशा के निवारण हेतु कोई यथार्थ कर्त्तव्य-पथ निश्चित किया है, स्वदेशवासियों को इस जीवन्मृत दशा से बाहर निकालने-उनके दुःखों को कम करने के लिए दो सांत्वनादायक शब्दों को खोज लिया है। तो यह दूसरी सीढ़ी है। और यदि तुम पर्वताकार विध्न-बाधाओं को लाँघकर राष्ट्रकार्य करने के लिए तैयार हो, सारी दुनिया विरोध में खड़ी हो जाए तो भी निडरता से सत्य की रक्षा के लिए खड़े रहने और संगी-साथियों के छोड़ जाने पर भी यदि तुम राष्ट्रोत्थान के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहोगे, तो यह तीसरी सीढ़ी है। इन तीन बातों से युक्त दृढ़ विश्वासी युवा देशभक्तों की आज भारत को आवश्यकता है, वे ही भारत का कल्याण कर सकेंगे। स्वामीजी का स्वप्न था कि उन्हें एक हजार तेजस्वी युवा मिल जाएं तो वे भारत को विश्वशिखर पर पहुँचा सकते हैं। ‘‘मेरा विश्वास युवा पीढ़ी -नयी पीढ़ी में है, मेरे कार्यकर्ता इन्हीं में से आएँगे और वे सिंहों की भांति समस्याओं के हल निकालेंगे।‘‘ ऐसे देशभक्त युवाओं के दल जब राष्ट्रोत्थान का संकल्प लेकर निकल पड़ेंगे तो फिर भारत को उन्नति के शिखर तक जाने से कोई रोक न सकेगा।
नारी जागरण। विवेकानन्द कहते हैं-‘‘स्त्रियों की पूजा करके ही सभी राष्ट्र बड़े बने हैं। जिस देश में, जिस राष्ट्र में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, यह देश या राष्ट्र, न कभी बड़ा बन सका है और न भविष्य में कभी बन सकेगा।‘‘ हम देख रहे हैं कि नौ देवियों, लक्ष्मी और सरस्वती को माँ मानकर पूजने वाले, सीता जैसे आदर्श की गाथा घर-घर में गाने वाले ‘यत्र नार्येस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता‘ को हृदय में बसाने वाले भारत में नारी को यथोचित सम्मान प्राप्त नहीं है। हमारी मानसिकता बदल तो रही है, किन्तु उसकी गति बहुत धीमी है। यदि हम देश की तरक्की चाहते हैं तो सबसे पहले अपनी सोच को बदलकर नारी जागरण ओर उत्कर्ष पर चिन्तन और त्वरित क्रियाशीलता दिखानी ही होगी। ग्रामीण-आदिवासी िस़्त्रयों का वर्तमान दशा से उद्धार करना होगा। आम जनता को जगाना होगा। तभी भारतवर्ष का कल्याण होगा।
विवेकानन्द का ज्वलंत प्रश्न है-‘‘क्या भारत मर जाएगा?........ तब तो संसार से सारी आध्यात्मिकता का समूल नाश हो जाएगा। सारे सदाचारपूर्ण आदर्श जीवन का विनाश हो जाएगा, धर्माें के प्रति सारी मधुर सहानुभूति नष्ट हो जाएगी, सारी भावुकता का भी लोप हो जाएगा और उसके स्थान पर कामरूपी देव और विलासिता-रूपी देवी राज करेंगे। धन उनका पुरोहित होगा। छल, पाशविक बल और स्पर्धा - ये ही उनकी पूजा-पद्धति होगी और मानवात्मा उनकी बलि-सामग्री हो जाएगी। ऐसा कभी नहीं हो सकता। क्रियाशक्ति की अपेक्षा सहनशक्ति कई गुना प्रबल होती है। घृणा के बल से प्रेम का बल अनन्त गुना सबल है।‘‘ निश्चित रूप से इस संसार से सत्य, नैतिकता और मानवीयता को यदि बचाये रखना है तो भारत और उसकी आध्यात्मिकता को जीवित रखना ही होगा। जीवन-मूल्य समाप्त हो गये तो फिर यह संसार भी समाप्त ही हो जाएगा। इसलिए आने वाले इस युग का केन्द्र विश्व में यदि कोई हो सकता है तो वह है - भारत। ‘अतीत तो हमारा गौरवमय था ही, परन्तु मेरा द्ढ़ विश्वास है कि हमारा भविष्य और भी अधिक गौरवमय होगा।‘ भारत का पुनरूत्थान होगा, पर जड़ की शक्ति से नहीं, वरन् आत्मा की शक्ति से। यह उत्थान विनाश से नहीं, वरन् शान्ति और प्रेम की ध्वजा लेकर सम्पन्न होगा। हमारी विजय की गाथा को भारत के महान् सम्राट अशोक ने धर्म तथा आध्यात्मिकता की ही विजय बताया है। एक बार फिर भारत को विश्वविजय करना होगा। यही हमारे सामने महान् आदर्श है। अपनी आध्यात्मिकता और दार्शनिकता से हमें जगत् को जीतना होगा। संसार में मानवता को जीवित रखने का और कोई उपाय नहीं है। स्वामी विवेकानन्द के इन ओजस्वी संदेशों के माध्यम से यह अवश्य होगा, इसी में मानव जाति का कल्याण है।
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-उमेश कुमार चौरसिया
50,महादेव कॉलोनी,नागफणी,
बोराज रोड,अजमेर-305001 (राज.)
सम्पर्क -09829482601
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