अगीत कविता विधा का भाव-पक्ष ( डा श्याम गुप्त ) अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है। अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, सम...
अगीत कविता विधा का भाव-पक्ष
( डा श्याम गुप्त )
अगीत-विधा भाव-पक्ष-प्रधान एक सशक्त काव्य-विधा है। अगीत रचनाओं व कृतियों में सशक्त, समर्थ व संपन्न भाव-संपदा के सम्यक दर्शन होते हैं तत्कालीन कविता में संक्षिप्तता के साथ सहज भाव-सम्प्रेषण, सम-सामयिक समस्याओं से जूझने के साथ ही समस्या-समाधान का अभाव, कथ्य, प्रदर्शन की दिशा-ज्ञान का न होना, विधा की अस्वस्थता व सर्व-साधारण के लिए दुर्बोधता के कारण सर्वग्राही कविता के हित 'अगीत' का प्रादुर्भाव हुआ। भाव-संपदा अगीत का प्राण है। अगीत रचनाकार नए-नए भाव, विषय, समाजोपेक्षी संस्कार, नवीनता, युगबोध, विचार-क्रान्ति व आस्थामूलक भावों पर रचना करता है। भाषा की नई सम्वेदना व संवेग, कथ्य की विविधता व अनूठा प्रयोग, परिमाप की पोषकता, विश्वधर्मी प्रयोगों के साथ सहज एवं सर्वग्राही भाव-सम्प्रेषणीयता अगीत का गुण धर्म है। कम से कम शब्दों व पंक्तियों में पूरी बात कहने का श्रेय अगीत रचनाओं को ही है। युग की हर संभावना का समावेश, विषय व कथ्य वैविध्यता अगीत की अपनी अभिज्ञानता का प्रतीक है। अतः अगीत प्रमुखतः अर्थ व भाव प्रधान काव्य संपदा विधा है। अगीत " शब्दमिति " अर्थात तुलसी की भाषा में... " अमित अरथ आखर अति थोरे" की भाव-भूमि पर आविर्भूत हुआ है।
कथ्य व भाषा की संवेदना, अनूठा प्रयोग व बिम्बधर्मी- संक्षिप्तता में एक प्रयोग प्रस्तुत है--
" बूँद बूँद बीज ये कपास के,
खिल-खिल कर पड रही दरार;
सडी-गली मछली के संग,
ढूँढ रहा विस्मय विस्तार,
डूब गए कपटी विश्वास के। " ---- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
अगीत के एक प्रमुख कवि व अगीत पर विभिन्न साहित्यिक लेखों के लेखक श्री सोहन लाल सुबुद्ध के अनुसार ..." अगीत जमीन से जुडी वह कविता है जिसमें लय व गति हो, समाजोपयोगी स्वस्थ विचार व सम्यक दृष्टिबोध समाहित हो।" ( प्रतियोगिता दर्पण --उद्बोधन से )। अगीतकार पाश्चात्य प्रभाव के अन्धानुकरण में वर्ग संघर्ष की बजाय कर्तव्य के प्रति आष्टा, यथार्थ कर्तव्य-बोध , अपने भारतीय समाज , भारतीय भाव-भूमि पर आधारित शास्त्रीयता, राष्ट्रीयता,भाषाई एकता, दृष्टिबोध को अधिक महत्त्व देता है। शास्त्रीयता के साथ साथ नवोन्मेष, पुरा-नव समन्वयता, वर्ग भेद समाप्ति के लिए विचार मंथन अगीत की एक महत्वपूर्ण भाव-भूमि व विषय है।
एक साक्षात्कार में ड़ा सत्य ने कहा था --" अगीत विधा में भाव को प्रधानता दी जाती है। यदि गीत नियमों की बंदिश से मुक्त कोई तुकांत या अतुकांत रचना, चार से दश पंक्तियों में अपने भाव, लय,गति व्यक्त करने में सक्षम है तो वह अगीत है। " अगीत कविता के विभिन्न भावों, विषयों पर संक्षिप्त व सोदाहरण वर्णन से अगीत विधा की भाव-संपदा व उसके भाव-पक्ष को स्पष्ट किया जा सकता है।
सामाजिक सरोकार अगीत कविता का मुख्य भाव है .......
" सामजिक सरोकारों को ,
अपने में समाये ;
नव-प्रभात लाने,
नव-अगीत आये। " ------ड़ा श्याम गुप्त
" मां बीमार है,
रकम उसके नाम से
खाते से निकाल कर
स्वघोषित सुपुत्र,
खा रहे बाँट कर। " ----- पं. जगत नारायण पांडे
सामाजिक बदलाव की पहल के लिए एक उद्बोधन देखें --
" मेरी एक सलाह है,
अबकी बार चुनाव में,
उनको वोट देकर जीतने का मौक़ा दीजिए ,
जो चरित्रवान हैं ;
ताकि एक बार वे भी,
सत्ता की कुर्सी पर बैठ सकें ,
शासन करने। " -----जबाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई ( राजनीति के रंग से )
वर्ग संघर्ष की अपेक्षा ...वर्ग-न्याय, मानवता आधारित सामाजिक सरोकार प्रमुख भाव होना चाहिए.....
" दलितों के प्रति मत करो अन्याय ,
उन्हें भी दो समानता से-
जीने का अधिकार , अन्यथा-
भावी पीढ़ी धिक्कारेगी, और-
लेगी प्रतिकार ;अतः --
ओ समाज के ठेकेदारो !
उंच-नीच की खाई पाटो ,
दो शोषितों को ही न्याय। " ----- ड़ा सत्य
ठहरी हुई भीड़ में दौडना ,
दौडती हुई भीड़ में रोकना ,
क्या अर्थ रखता है ?
स्वतन्त्रता के लाभ में,
सबका समान हिस्सा है। " -----तेज नारायण राही
समाजवाद के विकृत रूप व तथाकथित विकासमानता पर व्यंग्य भाव भी हैं--
" सुनते सुनते बूढ़ी होगई ,
झिनकू की औलाद ;
परन्तु,
अभी तक नहीं आया,
समाजवाद। " ------वीरेंद्र निझावन
" विकसित व विकासशील देशों में ,
सबसे बड़ा अंतर ,
एक में मानवता अवशेष ,
दूसरे में छूमंतर। " ----- धन सिंह मेहता 'अनजान'( प्रवासी भारतीय, अमेरिका )
युग परिवर्तन अगीत का प्रिय भाव व अगीतकार का मुख्य ध्येय है ----
" खोल दो घूंघट के पट,
हटा दो ह्रदय-पट से,
आवरण;
मिटे तमिस्रा,
हो नव-विहान। " -----सुषमा गुप्ता
" घर घर में खुशहाली लाएं ,
जीवन साकार करें ;
नवयुग निर्माण करें ,
सबको,
निज गले लगाएं। " ----डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
पश्चिम की भांति रक्ताभ-क्रान्ति नहीं , अमानवीयता नहीं वरन मानवता के साथ युग क्रान्ति , वर्ग न्याय के साथ सहज क्रान्ति हो -----
" आओ चलें ,
मानवता को साथ लें,
किसी का भला करें ;
लोग जलें, जला करें ,
इस कृतघ्न समाज में ,
अपनी जगह बनायें-
क्रान्ति लाएं चारों ओर। " ------विजय कुमारी मौर्य ( सिसकता विजय पथ )
" मिटा सके भूखे की हसरत,
दो रोटी भी उपलब्ध नहीं ;
क्या करोगे ढूँढ कर अमृत। " ------ त्रिपदा अगीत ( ड़ा श्याम गुप्त )
संस्कार क्रान्ति के परिपेक्ष्य में विचार-क्रान्ति का अनुपम व दूरगामी भाव अगीत में खूब उपलब्ध है ----
" जग की इस अशांति-क्रंदन का,
लालच लोभ मोह-बंधन का।
भ्रष्ट पतित सत्ता गठबंधन,
यह सब क्यों, इस यक्ष -प्रश्न का।
एक यही उत्तर सीधा सा ;
भूल गया नर आप स्वयं को।। " ------सृष्टि महाकाव्य से ( ड़ा श्याम गुप्त )
" अपनी ही विकृतियों की
अंधी सुरंग में ,
भटक रहे हम;
भविष्य को क्या देंगे। " -----अगीतिका से ( पं. जगत नारायण पांडे )
विश्व-शान्ति, राष्ट्रवाद, देश-प्रेम, हिन्दी भाषा, स्वभाषा-प्रेम ---अगीतकार के अन्य महत्वपूर्ण भाव हैं। हिन्दी पूर्ण राष्ट्र -भाषा बने भारतीय जन मानस की यह इच्छा अगीतकार की जन-अभिलाषा है। वैज्ञानिक प्रगति भी अगीत कवि को खूब भाती है। इसके साथ ही राजनीति, न्याय व्यवस्था, प्रजातंत्र, सामाजिक विकृतियों पर भी अगीताकार कवि ने खूब कलम चलाई है ----यथा....
" अंग्रेज़ी आया ने,
हिन्दी मां को घर से निकाला;
देकर, फास्ट-फ़ूड ,पिज्जा, बर्गर -
क्रिकेट, केम्पा-कोला, कम्प्यूटरीकरण ,
उदारीकरण, वैश्वीकरण
का हवाला। " ------ड़ा श्याम गुप्त
" सबने देखा ,
पिटते चिल्लाते,
कोई न बोला, सब खामोश:
प्रत्यक्ष दर्शी के अभाव में,
छूटा मुकदमा ,
वाहरी न्याय व्यवस्था। " -----रवीन्द्र कुमार 'राजेश'
" आया न्योता,
कर आये परमाणु समझौता:
लिए हाथ में,
कठौता। " ----- नन्द कुमार मनोचा
" आओ हम अंधकार दूर करें ,
रात और दिन खुशी-खुशी बीते;
सारा संसार शान्ति पाए ,
अपना यह राष्ट्र प्रगतिगामी हो ;
वैज्ञानिक उन्नति से ,
इसको भरपूर बनाएँ। " -----डा सत्य
" रात्रि गयी, दिन आया,
जगह दी परस्पर को,
मान दिया समय को,
क्या यही प्रवृत्ति,
प्रजातंत्र है ?" -----राम दरश मिश्र
" कुछ कितना विलासप्रिय,
जीवन जी रहे हैं;
हम,
ईर्ष्या में भरे हुए,
दांत पीस रहे हैं। " -----नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
नवीन परिवर्तन, युग परिवर्तन, अपरिहार्य है। यह युगसंधि का सम सामयिक परिवर्तन है अतः युग-परिवर्तन के अँधेरे पक्ष को समझते हुए भी अगीत कवि, युग नवीनता के लिए उसे गले लगाता है ......
"टूट रहा मन का विश्वास ,
संकोची हैं सारी
मन की रेखाएं।
रोक रहीं मुझको
गहरी बाधाएं।
अंधकार और बढ़ रहा ,
उलट रहा सारा इतिहास। " -------- ड़ा रंग नाथ मिश्र 'सत्य'
अनियंत्रित विकास हो या जीवन व्यापार अति सभी की बुरी है। अगीतों में इनकी हानियों व प्रभावों को खूब उजागर किया है। यांत्रिकता व सामयिक यथार्थ, पर्यावरण, प्रदूषण पर भी कलम चली है ----
" रात भर काल सेंटर पर,
जागते हैं ,
भारत के युवक ;
दिन भर सोता है ,
भारत का भाग्य। " -------स्नेह प्रभा
" मैले कुचले, फटे बसनों में,
लौह की एक शलाका,
लिए हाथों में --
यहाँ वहाँ कूडे के ढेर में,
नंगे पग, दौड़-दौड़
ढूँढ रहे जिंदगी। " ----- राम कृपाल 'ज्योति'
" सभ्यता की अटारी पर ,
जब आधुनिक नारी चढी ;
तो उसे पसीना छूटने लगा,
वह अपना लिबास ,
फैंकने लगी। " ------ विनय शंकर दीक्षित
" सावन सूखा बीत गया तो,
दोष बहारों को मत देना ;
तुमने सागर किया प्रदूषित। " ---- डा श्याम गुप्त
नारी-पुरुष व समाज का त्रिआयामी विमर्श अगीतकारों की एक अन्य विशेष भूमि है। सिर्फ फैशन, स्मार्टनेस , कपडे-गहने , सजाने-सजाने, पुरुषों की बराबरी या उन्हें अपमानित करने में नारी स्वाधीनता निहित नहीं है। नियम-निषेध तीनों के लिए आवश्यक हैं तभी समन्वय होता है एवं समन्वयात्मक समाज की स्थापना -----
" पुरुष ने नारीको,
देकर केवल अपना नाम ;
छीन ली बदले में
उसकी हर सुबह ,
हर शाम। " -------मंजू सक्सेना 'विनोद'
" अज्ञान तमिस्रा मिटाकर,
आर्थिक रूप से,
समृद्ध होगी, सुबुद्ध होगी ;
नारी ! तू तभी-
स्वतंत्र होगी,
प्रबुद्ध होगी। " ----- सुषमा गुप्ता
" नारी केन्द्र - बिंदु है भ्राता !
व्यष्टि,समष्टि,राष्ट्र की,जग की।
इसीलिये तो वह अबध्य है,
और सदा सम्माननीय भी।
लेकिन वह भी तो मानव है,
नियम-निषेध मानने होंगे। " ----- शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से ( डा श्याम गुप्त )
" कर रहे हो ह्त्या तुम,
कन्या के भ्रूण की।
कर रहे पाप छीन के जीवन ,
भविष्य की मां का तुम।
जन्म कौन देगा फिर ,
पैगम्बरों को,
अवतारों को। " ------ अगीतिका में ( पं.जगत नारायण पाण्डेय )
प्रकृति वर्णन, हास्य-व्यंग्य, लास्य व सौंदर्य, प्रेम आदि भावों से भी अगीत कविता अछूती नहीं रही है -----
" ओ बसंत ! फिर आना
सिहरन के साथ।
तेरे आने की
आहट मिल जाती है;
पाहुन से मिलने की,
इच्छा तडपाती है ;
ओ बसंत ! फिर आना ,
मनसिज के साथ। " ---- डा सत्य
" चंचला ,
तेरी मधुर मुस्कान से
मेरा ह्रदय पिघल जाता है।
तुझे पाने के लिए
मैं अपना ,
सर्वस्व लुटा देता हूँ। " ------ सुरेन्द्र कुमार वर्मा
" नई वैज्ञानिक खोज
आधुनिक स्टोव;
तेल खर्च सीमित
समय बचाता है ;
सास नन्द सुरक्षित,
बहू जलाता है। " ----- सुभाष हुडदंगी
" तेरे संग हर ऋतु मस्तानी ,
हर बात लगे नई कहानी ;
रात दिवानी सुबह सुहानी। " ---डा श्याम गुप्त
संस्कृति, आस्था, मनोविज्ञान, धर्म, दर्शन एवं दर्शन के उच्चतम रूप वेदान्त में अवस्थित भारतीय आस्तिकता,.... मानवता, शोषण , साम्प्रदायिकता के भाव प्रस्तुत हैं------
" गरीब के पसीने से,
अपना घर सजाया है;
किसी ने तख़्त,
किसी ने -
ताज बनाया है। " ----- धन सिंह मेहता
" मृत्यु देखकर
हम अमरत्व चाहते हैं;
और मृत्यु के बिना
अमरत्व अर्थ हीन होता है।
फिर अनेक यत्न करते हैं,
लेकिन अमरत्व अप्राप्य है,
मृत्यु एक सत्य है,
अमरत्व एक आशा। " ----- नरेश चन्द्र श्रीवास्तव
" समस्त सौर प्रणालियाँ ,
समस्त कार्बनिक सिद्धांत,
समस्त प्राकृतिक संपदा
समस्त बुद्धिजीवी
समस्त दिव्य अग्नि,
आपसे पाकर
हम धन्य हुए,
अपनी कृपाओं से हमें कृतार्थ करें। " ---- धुरेन्द्र स्वरुप बिसारिया ( दिव्य अगीत से )
" क्यों पश्चिम अपनाया जाए,
सूरज उगता है पूरब में;
पश्चिम में तो ढलना निश्चित। " --- डा श्याम गुप्त
" काश कोई ऐसा धर्म होता,
जो प्रबचन के साथ-
रोटी भी देता;
ताकि मनुष्य धर्म से-
अधर्म की ओर न जाता। " ----- पार्थो सेन
" आस्था के द्वार से,
आस्था के द्वार तक;
यात्रा ही यात्रा है,
जीवन के पार तक। " -----डा मिथिलेश दीक्षित,शिकोहा बाद
" जिस दिन,
धर्म से मुक्त राजनीति होगी:
उसी दि साम्प्रदायवाद की
अवनति होगी। " --- जवाहर लाल 'मधुकर' चेन्नई
एतिहासिक सन्दर्भ, दृष्टांत, व्यंजनात्मक अन्योक्ति व अन्य दूरस्थ भाव भी अगीत कवियों ने खूब प्रयोग किये हैं -----
" दुर्योधन !
ठगे रह गए थे तुम, देखकर--
'सारी बीच नारी है
या नारी बीच सारी है '
आज भी सफल नहीं होपाओगे;
साडी-हीन नारी देख,
ठगे रह जाओगे। " ----डा श्याम गुप्त ( श्याम स्मृति से )
" अकेला मन,
कुछ तलाशता है ;
आस-पास कुछ समेटता है,
शायद इसी में मिल जाय-
खोई हुई खुशी;
पता नहीं क्यों नहीं की
उसने खुद्कुशी। " ---- विजय कुमारी मौर्या
अंत में शब्दमिति अर्थात संक्षिप्तता के साथ विभिन्न भावों पर नए नए विचार-भाव, नवीन सन्दर्भ व युवा-मन के भाव भी खूब प्रदर्शित हुए हैं ------
" असत्य ने
सत्य के वक्ष पर,
तांडव किया;
औ चीख चीख कर कहा ,
देखो,
मैं विजित हुआ। " ----डा योगेश गुप्त
" चित्र खिंचा,
मैं हुई निस्तब्ध ;
कलपना यथार्थ का मिश्रण ,
खड़ी खड़ी मैं हुई निरुत्तर;
मैं तटस्थ होकर भी -
निरुत्तर। " ----गीता आकांक्षा
" पकड़ ली जब खाट
तब देखा कभी नहीं ,
मरने के बाद-
कह रहे,
अच्छा इंसान था। " ----- देवेश द्विवेदी ' देवेश"
" यह अ.जा. का
यह अ.ज.जा. का
यह अन्य पिछडों का
यह सवर्णों का,
कहाँ है --
मेरा राष्ट्र, मेरा देश ? " ---- डा श्याम गुप्त
धन्यवाद रतलामी जी ...
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