सुरेश सर्वेद की कहानी - असहाय

SHARE:

असहाय दादा - परदादा का समय और था। तब सौ दो सौ एकड़ जमीन हुआ करती थी। दस नौकर चाकर पलते थे। पर अब वह समय कहाँ रह गया था। एकड़ - दो एकड़ करके...

असहाय

दादा - परदादा का समय और था। तब सौ दो सौ एकड़ जमीन हुआ करती थी। दस नौकर चाकर पलते थे। पर अब वह समय कहाँ रह गया था। एकड़ - दो एकड़ करके जमीन बिकती गई और समय वह भी आया जब उनके हिस्से में मात्र दो एकड़ जमीन रह गयी। इसे खून का ही असर क्यों न कहा जाये कि दो एकड़ जमीन के मालिक होते हुए भी शिवनारायण सिंह उर्फ शिव अपने को किसी मालगुजार से कम नहीं समझता था। और समझे भी क्यों नहीं, उसके हिस्से में जो जमीन आयी थी या फिर यूं कहा जाये कि बेचने के बाद जो जमीन रह गयी थी वह उपजाऊ थी और प्रति एकड़ बीस क्विंटल धान तो हो ही जाया करता था ऊपर से मेढ़ में अरहर और धान के बाद खेत में चना तथा मसूर की फसलें हो जाया करती थी। इतना उसके परिवार के खाने पीने के लायक पर्याप्त था। खेती खुद करता था। परिवार के लोग बिदक जाते थे। फसलें बोने से मिंजाई तक उसे मजदूरों का सहारा लेना पड़ता था। लेकिन इसका उसे गम नहीं था क्योंकि परिवार में दो छोटे - छोटे बालक और एक पत्नी के साथ वह स्वयं। मजदूरी बांटने के बाद भी उसके हिस्से में उतना अन्न बच जाता जिससे उसके परिवार का गुजर बसर आराम से हो जाया करता था।

' डूमर खेत ' में बैठकर जब उसकी नजरें आसपास के खेतों में दौड़ती तो उसे अपने पूर्वजों पर क्रोध आता। विषाद उसके चेहरे पर अंकित हो जाता जिन जमीनों को वह ताकता वह जमीनें कभी उन लोगों की हुआ करती थी। पर पूर्वजों की कामचोट्टेपन के कारण दूसरों की हो चुकी थी। शिव सोचता - काश, ये जमीनें आज भी मेरी होती तो मैं अन्न उपजाकर पूरे गांव में अपना सत्ता चलाता। फिर अपने को तसल्ली देने की नीयत से मन ही मन कह उठता - अब भी मैं कहां कमजोर हूं, किसी का सुनता नहीं। जो मेरी मर्जी में आती है वही करता हूं। आज भी तो मैं रइसो से कम जीवन निर्वहन नहीं करता। शिव के मन में तो कई - कई बार यह भी बातें आयी कि साल दो साल कुछ बचत कर थोड़ी - थोड़ी खेती लेते चला जाऊंगा पर यह कहां संभव था। खेती के अतिरिक्त और भी तो कोई आय का श्रोत नहीं था। हां, उसे अपने कोमल - कोमल बालको पर विश्वास था कि वे जवानी की दहलीज पर कदम रखने के बाद उसके कदम से कदम मिलायेंगे और कुछ मिहनत कर दो चार पैसा लायेगे। उससे कुछ बचत संभव हो पायेगी।

बच्चे घूटने के बल चलने के बाद पैरों पर चलना शुरू किया। दो लड़के परम और धरम। बच्चों की प्राथमिक शिक्षा को देखकर शिव को लगा था - निश्चित उसके सपने साकार होंगे। बच्चे प्राथमिक से मिडिल स्कूल गये और मिडिल की बोर्ड परीक्षा पार करके हाइ स्कूल में दाखिल हो गये। बच्चे बढ़े, पढ़ाई के खर्चे बढ़े पर आमदनी जहां की तहां थी। फिर भी शिव ने हार नहीं मानी। उसने निश्चय कर लिया था कि बच्चों को पढ़ा लिखाकर अच्छी नौकरी में लगवा देगा। कुछ दिनों परेशानी आयेगी। फिर परेशानी खत्म हो जायेगी। बच्चे नौकरी लग कर कमायेंगे। खर्च के बाद पैसा बचेगा जिससे जमीन खरीद कर वह अपनी चाहत पूरी कर लेगा।

स्वप्न के सागर में गोते खाते वह सुखद भविष्य की कल्पना में खोया रहता मगर पुत्रों को पढ़ाई करानी थी। गांव में हाई स्कूल थी नहीं, उसे बच्चों को शहर भेजना पड़ा। शहर की खर्चों से वह अब तक अनभिज्ञ था। उसे जरूरत भी क्या थी - शहर के खर्चों के संबंध में ज्ञान प्राप्त करने का। वह गांव में खुश था। शहर की दहलीज पर वह तभी कदम रखता जब खेत की फसलें घर में आती उसमें से कुछ बेंचकर साल भर के किराना सामान भरने का अवसर आता। फिर तो वह साल भर शहर की ओर मुड़कर भी नहीं देखता था पर स्थिति अब बदल चुकी थी। बच्चे चौबीसों घण्टे शहर में रहने लगे थे। किराये के मकान लिया गया था। बीच - बीच में शिव भी जाकर रूक जाया करता था। उसकी सोच यही थी कि बच्चों को जिस उद्देश्य से भेजा गया है वह उद्देश्य से भटक न जाये। पर बच्चे भी ईमानदार निकले पढ़ने के मामले में और वे पढ़ाई में सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ते चले गये। बच्चों की पढ़ाई का क्रम जैसे बढ़ता गया वैसे ही शिव के खर्चे का क्रम बढ़ता चला गया। आवक जहां के तहाँ थी। शिव पर खर्च का अतिरिक्त भार जब जब आता। उसकी परेशानी उसके चेहरे पर अंकित हो जाती। उसकी परेशानी की रेखाएं पढ़ कर उसकी पत्नी निराशा कहती - क्या बात है, आज आप बहुत परेशान दिख रहे हैं ?

- मैं परेशान कहां हूं ....। शिव सच छिपाने प्रयास करता मगर छिपा पाने में सफल नहीं हो पाता। अंततः उसे अपनी पत्नी से सारे बातें कहनी ही पड़ती।

निराशा भी आयी थी भरे पूरे परिवार से। उसके पिताजी गांव का मालगुजार था। दो भाई थे, दोनों अफसर थे। वह कहती - मैं अपने मायका से ले आती हूं। बच्चे जब कमाने लगेगें तो वापिस कर देंगे। पर वह साफ मना कर देता। उसके शरीर में पुस्तैनी मालगुजारी का खून दौड़ने लगता। पत्नी भी जानती थी - शिव अपने कथन के पक्के हैं। स्वाभिमानी है और भूखे मर जायेगा पर किसी के सामने हाथ नहीं फैलायेगा खास करके अपने ससुर में। वह चुप हो जाती।

आमदनी यथावत थी और खर्च सुरसा की तरह मुंह फैलाए जा रहा था। खींचतान कर उसने बच्चों को हाई स्कूल तक की शिक्षा दिलवा पाया। अब वह हाथ उठा देना चाहता था पर बच्चों के सुनहरे भविष्य और अपनी चाहत पूरी करने की ललक के सामने वह नतमस्तक था अतः चाह कर भी हाथ नहीं उठाया। पर हाथ नहीं उठाने से न उसकी आमदनी बढ़ सकती थी और न हीं आवक में वृद्धि हो सकती थी। उसने राह तलाशने का प्रयास किया। पर जहां स्वाभिमान अड़ंगा पैदा करें वहां कहां रास्ता मिलेगा। एक तरफ वह जमीन बढ़ाने ... नहीं, नहीं ... बाप दादा द्वारा खोयी जमीन को वापस पाने व्याकुल था तो दूसरी तरफ स्वाभिमान को नीचे नहीं आने देना चाहता था। स्थिति बिलकुल गडमड थी। उसके विकास के पथ के दो ही विकल्प थे प्रथम या तो वह जमीन बेंचकर अपने बच्चों को भरपूर शिक्षा दिलवा दे या फिर अपने ससुराल वालों के सामने एक याचक के समान खड़ा होकर स्वाभिमान को धता बता दे। इसके अतिरिक्त उसके पास और कोई तीसरा विकल्प था ही नहीं।

ले देकर उसने बच्चों को कालेज में दाखिला करवाया। अब न चाहते हुए भी उसके सिर पर कर्ज का बोझ चढ़ता चला गया। खेत की फसल आयी और लिए कर्ज का जब चुकता किया तो उसके घर अन्न कम मात्रा में आयी। चार छै माह बाद घर में अन्न के दाने नहीं होने का आभास होने लगा। अब शिव की परेशानी बढ़ गई। उसे दिन में तो चैन था ही नहीं, रात भी उसकी बेचैनी में कटती थी। एक दिन उसकी पत्नी निराशा ने फिर आशा भरी निगाहें उस पर डाल कर बोली - मैं तो अब भी कहती हूं, अपनी मायका से मैं अभी उधारी में ले आती हूं। बच्चे नौकरी लगेंगे तो कर्जा छूट देगे और फिर वह मेरी मायका है। कर्ज पटा भी नहीं पाये तो कोई हमारी छाती पर मूंग दलने नहीं आयेगा।

पत्नी को समझाते हुए शिव ने कहा - कर्ज तो कर्ज होता है निराशा। उसे तो चुकता करना ही पड़ता है। किसी का कर्ज लेकर न देना कर्जदार के साथ नहीं अपने साथ अन्याय करने जैसा है।

- आप अपने सदविचार मेरे समक्ष नहीं रख रहे हैं, आप अपने स्वाभिमान को मेरे सामने परोस रहे हैं। मुझे यह कतई बर्दाश्त नहीं कि आप दूसरों के कर्ज तले दब कर दिनरात परेशानी को अपने अंग से लगाये रखे रहो। माना कि आज भी आप मेरी मायका से कर्ज लेना नहीं चाहते तो दूसरों के लिए कर्ज को कैसे चुकाएगे। कोठी में अन्न खत्म होने के कगार पर है। बच्चों के फीस भरने का समय हैं। कर्ज हम पर चढ़ ही गया है। फिर कर्ज लेगे तो छूटेगें कैसे ?

- तुम्हारा कहना ठीक है पर कोई न कोई रास्ता निकलेगा ही।

- कहां से निक ल जायेगा रास्ता ?

- जमीन बेंच दूंगा ....।

निराशा अवाक रह गयी। टकटकी बांधे अपने परेशान, हताश पति को देखती रह गई। शिव ने कहा - हां, मैं अपनी जमीन बेंच दूंगा, पर ससुराल में हाथ नहीं फैलाऊंगा। उपकार नहीं लूंगा किसी का ?

- इसमें उपकार कैसा ? क्या दूसरों से कर्ज लेते हो तो वे उपकारी हो गये। यदि नहीं तो मेरी मायका से कर्ज लेने के बाद वह उपकार की श्रेणी में कैसे आ जायेगा। मेरी मायका मेरा घर परिवार है, आपका घर परिवार है। जब दूसरों से कर्ज लेना उपकार नहीं तो अपनों से कर्ज लेना कैसे उपकार हो जायेगा ... ?

निराशा के मुंह से आज तक इतनी बातें कभी नही निकली थी पर आज उसके मुंह से निकली बातों ने शिव को विचारने विवश कर दिया। वह समझने का प्रयास करने लगा कि निराशा ने जो कुछ कहा उसमें कितनी सच्चाई है ? वास्तव में दूसरों से लिया कर्ज यदि उपकार नहीं तो फिर अपनों से लिए कर्ज हम कैसे उपकार मान बैठते हैं ? एक अकाटय सच उसके समक्ष खड़ा हुआ - अपने जब कर्ज देता है तो उसकी नीयत में कर्जदार के अतिरिक्त उपकार करने की भावना रहती है और जब दूसरे कर्ज देता है तो वह उपकारी बनकर नहीं अपितु सिर्फ कर्जदार बनकर देता है। शिव कर्जदार और सिर्फ कर्जदार से कर्ज लेना पसंद कर रहा था न कि कर्जदार और उपकारी की भावना रखने वाले से। यही वजह थी कि वह चाह कर भी ससुराल से कर्ज लेना नहीं चाह रहा था।

निराशा समझा - समझा कर थक गई पर शिव ने उसकी एक न मानी। शिव ने बच्चों की पढ़ाई व घर के अन्य खर्चों के लिए पहले आधा एकड़ जमीन बेचा फिर आधा एकड़ और फिर एक अवसर ऐसा आया कि उसकी कुल सम्पत्ति जो दो एकड़ जमीन के रूप में थी उसके हाथ से खिसक गई। पर इसका लाभ यह हुआ था कि बच्चे ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और नौकरी में भी चले गये। बच्चों की नौकरी लगते ही शिव ने राहत की सांस ली थी। उसने समस्याओं के बादल छंटने का अनुभव किया था। उसकी सोच थी- बच्चे, नौकरी से मिले तनख्वाह में से कुछ तो बचाकर देगा। उसी में से कुछ बचा - बचाकर पहले उन जमीनों को वापस लेगा जो उसने बेची फिर उन जमीनों को भी वापस ले लेगा जिन्हें उनके बाप दादा ने बेची। बच्चों के सुनहरे भविष्य के लिए उन्होंने उनकी शादी भी कर दी ताकि बच्चों को खाने पीने में तकलीफ न हो। समय चक्र चलता चला गया। बच्चे कुछ दिनों तो तनख्वाह में से कुछ रूपए भेजते रहे फिर धीरे - धीरे कटौती हुई और अब शिव को पैसों के लिए बच्चों को स्मरण पत्र लिखना पड़ता था। पहले बड़े लड़के ने मंहगाई की दुहाई देते हुए राशि भेजना बंद किया फिर छोटे ने। अब शिव को अपना सपना चरमराते दिखाई देने लगा। निराशा के कहने पर ही उसने अपने दोनों पुत्रों को एक दिन अपने पास बुलाया। दोनों लड़के आये। शिव ने कहा - तुम लोग पैसा देना बंद कर दोगे तो हम लोग क्या खा पीकर जियेंगे। हमारी खोयी हुई जमीन कैसे वापस मिल पायेगी।

- आप समझते क्यों नहीं,बढ़ती मंहगाई के इस युग में हमारी तनख्वाह हमें ही नहीं पूर पाती तो हम आपको कहां से भेजे ?

शिव को एक झटका लगा ऐसा झटका जिसका उसे अंदाज नहीं था। उसने अपने आपको सम्हालते हुए कहा - ये तुम लोग क्या कह रहे हो, तुम लोग ही ऐसी बातें करोगे तो मैं कहां टिक पाऊंगा।

- भाई ने ठीक ही तो कहा है। छोटे ने मुंह खोला - हम लोगों के भरोसे आपने अपना सपना साकार करने की सोची भी कैसे ?

- तुम लोगो के वर्तमान में मैं अपना सब कुछ इसलिए खोता रहा ताकि तुम लोग मेरा भविष्य बन सको।

- यानि आप हमारे कर्जदार बनकर हमारे वर्तमान में इसलिए खर्च कर रहे थे ताकि हम भविष्य में आपको उस कर्ज का वापसी मय ब्याज करें।

शिव कभी सोच भी नहीं सका था कि उसके अपने बच्चे इतनी उच्चस्तरीय घटिया बातें करेंगे। शिव मामले सुलझाने की फिराक में था पर वातावरण से ऐसा कहीं नहीं लग रहा था कि आपसी सुलह से मामला सुलझ जायेगा।

- मां - बाप बच्चों को इसलिए पाल पोंस कर बड़े करते है ताकि भविष्य में वे उनके सहारा बने। मगर तुम लोग तो हमें बेसहारा करने की ठान ली है ऐसा लगता है। पर याद रखो, हमने जैसे इतना दिन तक अपना जीवन जीये हैं, भविष्य में भी जी लेगें। चलो जी, अब इनसे कभी सहयोग की बात मत करना ....।

जो शिव कभी किसी के सामने झुकने का नाम नहीं लेता था। अपने स्वाभिमान को ताक में नहीं आने देता था वह आज अपने खून के सामने ही झुक गया था। उसकी अकड़ तार - तार हो गयी थी। स्वाभिमान चरमरा गया था। वह वहां से उठा और चल पड़ा उस खेत की ओर जो अब उनकी नहीं रह गई थी। डूमरखेत की मेढ़ में खड़ा हो कर उसने दूर - दूर अपने पूर्वजों द्वारा बेची जमीन को निहारा। दूर - दूर तक फैली जमीनें उसे चिल्ला - चिल्ला कर कहने लगी - हमें कब मुक्त करोगे ? .... पर शिवनारायण सिंह उर्फ शिव असहाय हो चुका था ... पूरी तरह असहाय। वह घुटनों के बल ' डूमर खेत ' की मेढ़ पर बैठ गया। सिर को धरती पर टिका फफक कर रो पड़ा ....।

--

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: सुरेश सर्वेद की कहानी - असहाय
सुरेश सर्वेद की कहानी - असहाय
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWyngvWNZowjm7vTY8-PtRJYuoyxUVqKLSAo8MHK7rH30f5m5elDa8Z0VouyRRgCdRcuQtqEBbZntJM4yC1rDW0gVdZxyqsdMFEOoPsow0gPnR_YiFMasBXAYKx2D4K2RNJuJI/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiWyngvWNZowjm7vTY8-PtRJYuoyxUVqKLSAo8MHK7rH30f5m5elDa8Z0VouyRRgCdRcuQtqEBbZntJM4yC1rDW0gVdZxyqsdMFEOoPsow0gPnR_YiFMasBXAYKx2D4K2RNJuJI/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/12/blog-post_6296.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/12/blog-post_6296.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content