बानो अशरद की कहानी - एक चैलेंज

SHARE:

बानो अरशद एक चैलेंज घर में सब बहनों से बड़ी होने के कारण मुझमें जिम्‍मेदारी की भावना भी बहुत थी। अम्‍मा को तो सदैव बीमार देखा, इसलिए घरे...

image

बानो अरशद

एक चैलेंज

घर में सब बहनों से बड़ी होने के कारण मुझमें जिम्‍मेदारी की भावना भी बहुत थी। अम्‍मा को तो सदैव बीमार देखा, इसलिए घरेलू कामों में भी उनका हाथ बटाती। घर का ऐसा कौन सा काम था जो मुझे न आता हो, हर वक्‍त घर संभालते-संभालते कुशलता मेरी दूसरी आदत बन गई थी। अब्‍बा को समय पर भोजन देना, उनका बटुआ भरना, बहनों को तैयार करना, बस। अम्‍मा भी निश्‍चित रहती परंतु कभी-कभी पड़ोस से आने-जाने वालियों से यह अवश्‍य चर्चा करती, “मेरी बेटी बहुत नेक और आज्ञाकारी है, खुदा उसको ससुराल अच्‍छी दे।” अब्‍बा भी ढेर सारी दुआएँ दिया करते। छोटी सी थी जब से हंटर कलिया पकाना और गुड़िया खेलना, उनके कपड़े सिलना मेरा काम था। अब्‍बा के हठ पर स्‍कूल में दाख़िला लिया परंतु छः सात कक्षा से अधिक न पढ़ा सके क्‍योंकि फिर छोटे भाई-बहनों को कौन देखता। रेहाना, फ़रज़ाना भी बड़ी हो रही थी और मुन्‍ना जो घर में हम सब का लाड़ला था। उसकी देखभाल भी मेरे ही जिम्‍मे थी। उसे समय पर स्‍कूल भेजना, कपड़ों पर इस्‍त्री करना, यह सब काम करके मुझे बहुत मज़ा भी आता था। शाम को घर में बड़ी चमक-दमक होती। सब साथ खाना खाते, अब्‍बा चुटकुले सुनाते और फिर बारी-बारी करके हम लोगों से कहा जाता एक शेर और एक चुटकुला प्रतिदिन सुनाने के लिए। अम्‍मा को शायरी में रूचि थी वह प्रायः बातों-बातों में कोई न कोई शेर सुना दिया करती। हम लोग फटेहाल तो नही थे लेकिन धनवान भी न थे। धीरे-धीरे हम सब युवा हो रहे थे। कभी-कभी अब्‍बा को मैं देखा करती कि वह खालाओं में खो जाते। मैं पूछती “अब्‍बा क्‍या बात है?” कुछ नही कुछ नहीं बोलकर फिर कहते “तुम्‍हारी माँ की जिंदगी की दुआ माँग रहा हूँ।”

क्‍योंकि वह दिन-प्रतिदिन कमज़ोर होती जा रही थीं मगर सदा मुस्‍कुराती रहती और यही स्‍वभाव हम सबने उनसे सीखा था। एक-दूसरे को छेड़ना बात-बात पर हँसना। अब्‍बा प्रायः संध्‍या के समय कार्यालय से वापसी पर कभी तरबूज़ कभी ख़रबूजे और कभी आम लाया करते। जब भी किसी फल का मौसम आता हमारे घर में वह सब से पहले खाए जाते। हमारा छोटा सा संसार था, जिसमें पत्रिका, पुस्‍तकें, अख़बार, रेडियो, टी.वी. पर भी तर्क-वितर्क होता, सब का प्रयास होता कि कोई न कोई पहले नई खबर सुना दे। सर्दियों में मूली और शलजम का अचार होता। अम्‍मा ने मुझे अचार डालना भी सिखा दिया था कि बेटा गृहस्‍थी के लिए और पति को प्रसन्‍न रखने के लिए पत्‍नी को स्‍वादिष्‍ट खाना पकाना अवश्‍य आना चाहिए। मैं सब कुछ लगन के साथ सीखती शबे-बरात का हलवा हो या ईद पर शीरखुरमा या मुहर्रम पर हलीम पकाना, क्‍या था जो अम्‍मा ने मुझे नहीं सिखाया था। खानदान वाले बल्‍कि दादी माँ जब भी आतीं कहती “अरी बिटिया तुम पूरी रसोइया हो गई हो।” यह नन्‍हीं ने अभी से इतनी छोटी सी लड़की को गृहस्‍थी में डाल रखा है। फिर स्‍वयं ही मुँह लटकाकर कहतीं” गरीब डरती है कि कहीं आँख न बंद हो जाए तो बड़ी बेटी को सब कुछ सिखा दूँ। और मैं फौरन दादी माँ के मुँह पर हाथ रख दिया करती खुदा न करे। वह भी आप की तरह पोते-पोतियाँ देखेंगी। लड़कियाँ तो बढ़ती ही गाजर मूली की तरह हैं। अब दिन गुजर रहे थे, हम लोग बड़े हो रहे थे।

रेहाना और फ़रज़ाना तो बिलकुल गुड़ियाँ लगती थी। इधर मुन्‍ना भी युवा हो रहा था। अब घर में रिश्‍ते आना प्रारंभ हो गए। कभी चुड़ी वाली मनिहारिन रेहाना का रिश्‍ता लाती तो कभी धोबन फरज़ाना के ब्‍याह की बात करती। अम्‍मा हँसकर टाल दिया करती कि अभी तो हम बड़ी का रिश्‍ता देख रहे हैं। इसके लिए देखो पहले तो हर तरफ से जवाब मिलता “बेटा आजकल तो लोग पैसा देखते हैं या फिर शिक्षा, यदि लड़की बहुत सुन्‍दर हो तो फिर शिक्षा की परवाह नहीं करते। परंतु रूखसाना बीबी के लिए कोई धनवान या राजकुमार मिलना तो कठिन है। कहीं उचित रिश्‍ता देखा तो बताएँगे। ये बातें सुनकर पहले तो मैं हँसकर टाल दिया करती, परंतु जब रेहाना, फरज़ाना के रिश्‍ते धड़ाधड़ आने शुरू हुए तो मेरी उलझन भी बढ़ी और अब्‍बा भी चिंतित नजर आने लगे। जो भी आता वह या तो रेहाना का रिश्‍ता माँगता या फिर फरज़ाना पर दृष्‍टि पड़ती। मेरे बालों में चाँदी के तार आना शुरू हो गए। अब्‍बा के बाल भी सफेद होते जा रहे थे। अब्‍बा भी ये कह-कह कर विवश हो गए थे कि हम पहले बड़ी बेटी का ब्‍याह करेंगे। कभी रेहाना की पढ़ाई का बहाना, कभी फ़रज़ाना के मेडिकल कोर्स का बहाना। मगर समय कहाँ रूकता है वह तो की रफ्‍तार से भी आगे निकल जाता है। मेरे भी कान पकने लगे और धीरे-धीरे मेरे दिल में उदासी की जड़ें फैलने लगीं। जब अब्‍बा ने मेरे यौवन की शाख के पीले पत्‍ते बिखरते देखे तो वह और भी चिंतित एवं शांत रहने लगे। अम्‍मा को गले (कंठ) का कैंसर डॉक्‍टर ने बताया इधर उनकी बीमारी उधर अब्‍बा की परेशानी। अंततः एक दिन मैंने बड़ी हिम्‍मत की और आकर अम्‍मा से कहा “ अब्‍बा से कहिए जिस का भी उचित रिश्‍ता पहले आए उसके उत्‍तरदायित्‍व से मुक्‍त हो जाएँ।” अम्‍मी की आँखों में नमी थीं परंतु उन्‍होंने मुस्‍करा कर माथे पर बीसा दिया। “अल्‍लाह तुझे अवश्‍य इसका फल देगा।” ये बात थी भी वैसे मुनासिब। अम्‍मा-अब्‍बा की समझ में आने लगी। उन्‍होंने फ़रज़ाना के हाथ पीले कर दिए और राजकुमार अपनी दुल्‍हन को ले गया।

दो साल बाद हमारे ख़ालाज़ाद भाई मंसूर अमरीका से आए हमारे घर में जब उन्‍होंने रेहाना को देखा तो बस निछावर। आगे पीछे खालाजान को लेकर हाथ में मिठाई का डिब्‍बा। छुट्‌टी पर आए थे बल्‍कि ब्‍याह की ही नीयत से, वह भी परी कोलेकर परिस्‍तान यह जा वह जा। बस घर में मुन्‍ना था और मैं थी। मुन्‍ना तो अभी फर्स्‍ट ईयर में कॉलेज में था परंतु मैं तो अब शादी की उम्र को लांघ रही थी। अब्‍बा को यह चिंता हर समय बनी रहती, परंतु कहीं दूर-दूर से आशा की किरण न नजर आती। लड़कों की माताएँ सभाओं में कहती सुनाई पड़ती कि लड़की सुदंर हो दहेज में ये हो वो हो। यदि लड़की शिक्षित हो तो वह भी अच्‍छा है और यदि कोई लड़का बाहर से आता तो उसकी माँग और भी बढ़ जाती। माँ कहती कि हम को नगद दे दें, दहेज नहीं चाहिए। बस ये बातें सुनकर अब्‍बा तो बिल्‍कुल ही उदास हो जाते थे। अम्‍मा तो खैर किसी दिन भी हमसे बिछड़ने वाली थीं। उनके कंठ (गले) का कैंसर ऑप्रेशन के बावजूद काबू से निकला जा रहा था। अब्‍बा मानसिक कैन्‍सर का शिकार होते जा रहे थे।

एक दिन मुन्‍ने ने एक जटिल समस्‍या खड़ी कर दी कि वह पढ़ाई छोड़कर दुबई जा रहा है, उसका एक दोस्‍त उसको निमंत्रण दे रहा है। शहर की दशा देखकर अब्‍बा ने शांति के साथ स्‍वीकृति दे दी। भैया चले परदेश, अम्‍मा तो दूसरे ही परदेश की डोली में बैठने वाली थीं। बस भैया का जाना इधर अम्‍मा का दिल टूटना। फिर मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी बीमार के लिए जलते पर तेल का काम करता है। अम्‍मा भी सिधारी अब अब्‍बा थे और मैं।

रिश्‍तेदारों ने आकर और दबाव डालना शुरू किया कि लड़की के उत्‍तरदायित्‍व से मुक्‍त हो और कहीं निकाह कर लें। अब्‍बा बेचारे अम्‍मी का वियोग इधर बुढ़ापे की कमजोरी। बस बुढ़ापे से चिड़चिड़े भी रहने लगे। मुझे अपना भार स्‍वयं ही भारी लगने लगा। फिर अब्‍बा मेरे कारण बाहर नहीं निकलते कि जवान लड़की घर में अकेली कैसे रहेगी। यदि मर्द नौकर रखते हैं तो समस्‍या औरत रखे तो ये डर कि लोग क्‍या कहेंगे। बस मैं उनके लिए साँप के मुँह में छछूँदर सी हो गई थी। मेरा अधिकतर समय रसोईघर में ही गुजरता बर्तन धोने, और थालियाँ चमकाने में कुशल होती जा रही थी। एक दिन मैंने अख़बार में खबर पढ़ी की पचपन वर्षीय तलाकशुदा ब्रिटिश नेशनल के लिए तीस से पैंतीस साल तक की अच्‍छे स्‍वभाव वाली नेक चरित्र की लड़की की आवश्‍यकता है। रिश्‍ते के इच्‍छुक लोग पूरे ब्‍यौरे के साथ एक हफ्‍ते के अंदर-अंदर रवाना कर दें। लड़के को वापस जाना है और पत्‍नी को साथ लेकर जाएगा। मैंने तुरंत ही अब्‍बा की तरफ से खत लिख दिया कि वह संबंध स्‍थापित करे। बस वह तो जैसे प्रतीक्षा ही में था।

वह हमारे घर अपने किसी मित्र के साथ आया। उसने अपने परिवार और अपने बारे में अब्‍बा को बताया। देखने में ठीक-ठाक, चाय-नाश्‍ता लगा दिया गया। अब्‍बा ने मुझे भी बुला लिया और कहा कि आप लोग आपस में भी बातचीत कर सकते हैं। दो-चार बार वह श्रीमान तशरीफ लाए और मुलाकातें बढीं, परंतु उन्‍होंने बातों-बातों में मुझे बताया कि उनकी पत्‍नी मौजूद है मगर उसके कोई बच्‍चा नहीं है। वह हर दशा में उसको छोड़ना चाहते हैं। उनकी बनती नहीं है। पहले अब्‍बा को ये बात बिलकुल पसंद नहीं आई, परंतु जब उन्‍होंने दबाब डाला और कहा कि “मैं ऐसा अन्‍याय नहीं करूँगाा कि एक की मौजूदगी में दूसरी लाऊँ। ये दोनों पर अत्‍याचार है।” बातों से वह बहुत उचित लग रहे थे। अब्‍बा ने कहा कि अगर आप तलाक़नामा ले आएँ तो हम अवश्‍य विचार करेंगे। परंतु अब्‍बा से मैंने अस्‍वीकार कर दिया कि ये कोई चाल न हो। इससे मैं दो-चार बार अवश्‍य मिलुँगी। चूँकि अब्‍बा, तो मुझे सेल पर लगाए बैठे थे कि बस औने-पौने दामों में बेच कर अपनी दुकान बंद करे। माना Closing down Sale की अंतिम बकरी मैं हूँ। इधर वह श्रीमान भी बहुत चिंतित थे, श्रीमती की आवश्‍यकता का विज्ञापन बने हुए थे।

मैंने एकांत में उनसे पूछा कि अपनी पत्‍नी को छोड़ने का कोई उचित कारण बताइये। चलिए, तो सुनिए, वह मुझे सब लोगों में बदनाम करती है कि मैं संतान पैदा करने के योग्‍य नहीं हूँ और उनको मैं ये साबित करना चाहता हूँ। मैं आपको ये भी बता दूँ कि मैं उस औरत से बहुत प्रेम करता हूँ, परंतु मेरे स्‍वाभिमान और मर्दानगी (पुरूषत्‍व) को वह और चैलेंज कर रही है।

यदि दूसरे विवाह से भी संतान न हुई तो फिर? आप एक दूसरी ओरत की जिंदगी से खेलना चाहते हैं, मैं चकरा गईं।

अब आप जो भी समझ लें, मैंने तो तय किया है कि मैं उस औरत को मज़ा चखाऊँगा, यहाँ नहीं तो कहीं और।

मुझे ऐसा लगा कि ये खरीदार यदि हमारी दुकान से सौदा नहीं लेगा तो कहीं और से लेगा। मैंने सोचा मैं भी तो तंग आ चुकी थी इस उलझन भरी जिंदगी से। चलो जुआ खेल ही लो। फिर मैंने कहा कि उस औरत की आह लग जाएगी आपको और साथ मुझे भी जला डालेगी। उसने कहा नहीं आप सोच लें।

अब्‍बा ने भी निर्णय मुझ पर छोड़ दिया। मैंने कहा ठीक है, आप जब तलाकनामा ले आएँगे मैं तैयार हूँ फिर।

हमारा निकाह जल्‍द ही हो गया। शादी सादगी से हो गई। मैं जीवन के नए सफर पर बढ़ गई थी। हवाई जहाज मुझे ऐसी मंजिल पर उड़ा रहा था कि सिवाए बादलों के मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा था। नया देश, लंदन देखने की इच्‍छा ने थोड़ा सा दिल को बहलाए रखा था। सारे रास्‍ते वह व्‍यक्‍ति मेरे आव-भगत में लगा रहा। उसके चेहरे पर जीत का प्रभाव था और ये मेरे लिए स्‍वप्‍नफल की तरह था। मुझे उसने दो-चार दिन तो खूब सैर कराई घर नहीं था एक फ्‍लैट था, जिसका एक कमरा बंद था जैसे कहानियों में होता है कि चौथे खोट नहीं जाना है। बार-बार मेरा जी चाहता कि उस कमरे को खोल कर देखूँ कि उसमें क्‍या है। लेकिन सुहेल मुझे टाल देते। अब्‍बा ने चलते समय सलाह दी थी कि बेटी इस घर से तुम्‍हारी डोली जा रही है, अब वहाँ से तुम कर कर ही निकलना। ‘देर आयद, दुरूस्‍त आयद' लड़का शरीफ है। मुझे तुमसे आशा है कि एक आज्ञाकारी पत्‍नी बनोगी क्‍योंकि तुम एक पूर्वी लड़की हो। जाने क्‍या-क्‍या अब्‍बा ने कानों में डाला था। हमारी इच्‍छा पूरी हो गई, तुम्‍हारी माँ की आत्‍मा को भी शांति मिली होगी। मरते समय तुम्‍हारी चिंता थी उनको।

यहाँ यह दशा कि विवाह होते ही मैं गर्भवती हो गई। सुहेल का प्रसन्‍नता के कारण अजीब हाल था जैसे वर्ल्‍डकप किसी देश ने जीत लिया हो। कभी मछली लिए चले आ रहे हैं, और कभी फल। मेरा ध्‍यान अधिक रखने लगे। समीना मछली खाओ बच्‍चे बुद्धिमान होते हैं। कभी कलेजी कि उसमे आयरन होता है। परंतु प्रायः शाम को देर से आते। और वह दरवाजा मेरे लिए रहस्‍मय कभी न खुलता। प्रायः सुहेल मुझसे कहते देखा वह मुझे नामर्द कहती थी, अब पता चला उसको। मुझे हर समय ताना देती थीं दिन में दो-चार बार तो अवश्‍य ही वह समीना को याद करता। कभी कहता तुम भी हरे रंग का कपड़ा पहना करो, वह हरा रंग ही पहनती थी। कभी कहता तुम शामी कबाब बना तो लेती हो परंतु वैसे नहीं, कोशिश करो। और हाँ थोड़ा सा अपने को दुबला कर लो वह बहुत कोमल सी थी। कभी मेरे लिए परफ्‍यूम लाता। लो यह परफ्‍यूम लगाओ ये उसे भी पसंद था। और मैं समीना बनन के प्रयास में हर वह काम करती जिसकी सुहेल माँग करता। कपड़ों के रंग लिपिस्‍टिक के शेड सुगंध हर वस्‍तु वह मुझे वही लाकर देता जैसी समीना के पास होती थी।

एक दिन मैंने खींझ कर कह दिया कि मैं समीना नहीं हूँ, मैं रूखसाना हूँ। आप होश में आएँ क्‍योंकि कभी-कभी वह विवेकहीन होकर मुझे समीना कहकर संबोधित (पुकारता) करता।

वह धीरे-धीरे देर से आने लगा और कभी-कभी उसके मुँह से शराब के भभके आते। एक दिन मैंने ज़िद (हठ) करके पूछा कि उस कमरे में क्‍या है? उन्‍होंने कहा कि जब हमारा बच्‍चा जन्‍म लेगा तब उसको खोलेंगे, उसका उद्‌घाटन करेंगे। अच्‍छा मैंने टाल दिया। अब हमारे यहाँ मुन्‍ना आ चुका था। सुहेल की शराब की लत न छूटी बल्‍कि वह बढ़ती चली गई। नौकरी से भी निकाल दिए गए। मैं अब्‍बा को भी ये नहीं लिखती अक्‍सर उनके दोस्‍त बताते कि यह हमारे पास बोतल लिए बैठे होते हैं। पहले तो मैं उनके दुख दर्द में भागी रहा करती परंतु उनकी नशे की आदत बढ़ती गई। ससुराल वालों को पता होता तो वह पत्र में लिखते, यदि पत्‍नी चाहे तो शराब और सिगरेट छुड़ा सकती है परंतु मैं तो एक कमज़ोर ज़माने की ठुकराई हुई औरत थी जिसे उस मर्द ने सहारा दिया था। एक दिन मेरा हाथ पकड़कर मुझे उस कमरे में ले गया। लो देखो ये, वह कमरा खुला जिसमें बोतलें और ग्‍लास टूटे हुए थे और सामने फ्रेम में अनगिनत समीना की तस्‍वीरें लगी थीं। उन्‍होंने कहा देखो समीना ये बच्‍चा देखो मैं नामर्द नहीं हूँ। मैं शांतिपूर्वक कमरे से बाहर आ गई। वह अकसर जाकर उस कमरे में बैठ जाते। घंटो सिगरेट के धुएँ में समीना की तस्‍वीरों से बातें किया करते। वह समीना को अपने दिल से न निकाल सके और हमारे यहाँ दूसरा बेटा पैदा हो गया। मैं एक कठपुतली थी जिसको बचपन से धुन में लगी रहने की आदत थी। सुहेल को न घर में रूचि थी न बच्‍चों से।

कभी-कभी मुड में आकर कहता “तुम समीना नहीं बन सकती” ओर फिर कहते- “तुमको एक पति की खोज थी उसने तुमको पति दिया, तुम्‍हारे माता-पिता का भार हल्‍का हो गया और मैं समीना के सामने सिर उठाने के योग्‍य बन गया, शुक्रिया रूखसाना शुक्रिया” और फिर बिलख-बिलख कर बच्‍चों की तरह रोता। मैं उसको गले से लगाती। परंतु शराब और समीना तो उसकी रग-रग में बस चुकी थी।

कुछ समय के बाद पता चला कि समीना ने भी दूसरा ब्‍याह कर लिया हो और एक दिन खबर आई कि समीना के घर बेटी पैदा हुई है। यह खबर सुहेल के दोस्‍त ने उसको दी। वह घर आकर बहुत चिल्‍लाया। तुमने मेरी समीना मुझ से छीन ली, वह भी इस योग्‍य थी, बांझ नहीं थी मैं तुम्‍हारे बाप की बातों में आ गया और उसको तलाक दे दी। उफ्‌ ये क्‍या हुआ। अब तो सुहेल की शराब ने सोचने-समझने की शक्‍ति भी छीन ली। वह मुझे अपशब्‍द भी कहने लगा। मुझे ओर मेरे बाप को बुरा-भला कहता। मैं सोचा करती मैं इससे तो कुँवारी भली थी। परंतु अपने दो फूल से बच्‍चों को देखकर आँसू पोंछ लिया करती। एक दिन मैंने गुस्‍से से उसको घर से बाहर निकाल दिया। वह सड़कों पर मारा-मारा फिरता, जाने रात कहाँ गुजारता। फिर पता चला कि शासन ने उसको ‘होमलेस' समझ कर फ्‍लेट दे दिया। वह अकसर नीचे चक्‍कर लगाता, पुकार-पुकारकर मुझे अपशब्‍द बकता। लोग खिड़कियों से सिर निकाल कर उसका तमाशा देखते। और फिर कहता तेरे बाप ने मुझ पर अत्‍याचार किया, तूने मुझसे समीना को छीन लिया और फिर फूट-फूट कर रोने लगता। मैं चिंतित हो जाती, परंतु बच्‍चे मुझे रोक देते कि यह शराबी हैं, आप को मार देंगे निकट मत जाइएगा। शराब ने उसका जिगर और लीवर बिल्‍कुल खराब कर दिया था। पता चला कि वह अस्‍पताल में पड़ा है। हम लोग साहस करके अस्‍पताल पहुँचे, वहाँ भी मुझे देखते ही उसने फल और फूल जो हम ले गऐ थे ज़मीन पर दे मारा। और कहा “तुमने मुझसे समीना को छीन लिया, और अब मैं अपने आपको तुमसे छीनता हूँ।” यह कहकर उसने वह गुलदान अपने सिर पर दे मारा। अचानक नर्सें दौड़ी आई नाक से खून बह रहा था और वह अंतिम साँस ले रहा था। धड़ाम से बिस्‍तर से गिरा प्राण-पखेरू उड़ गए।

मैं घर आई, मैंने सिजदे में पड़कर खुदा से प्रार्थना की “ये खुदा मुझे कठोर कारावास से छुटकारा मिला। अल्‍लाह मुझे साहस दे कि इन दो फूल से बच्‍चों को पाल सकूँ।” फिर उठकर दो फोन किए कि अब्‍बा जिस तरह मुझे बिदा करके आपने संतोष की सांस ली थी। आज सुहेल को संसार से विदा करके मुझे भी लगा जैसे मेरी बेटी की बारात गई है, और एक फोन समीना को किया। सुहैल की अंतिम सांसों पर तुम्‍हारा अधिकार है। वह वहाँ भी तुम्‍हारी प्रतीक्षा कर रहा होगा। वह केवल तुम्‍हारा था, तुम्‍हारा अपना, मेरा कभी नहीं हो सका। रहा तुम्‍हारा चैलेंज, तो वह जीत गया और तुम हार गई।

..

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: बानो अशरद की कहानी - एक चैलेंज
बानो अशरद की कहानी - एक चैलेंज
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIRa1z6N6h3E4Rm4_9nhyBvUtTk2GvuBb75B2_4cfR1ebpZKit5BTPTGnucMhl_YYwt8MbRygd5VjCDSqgKfKqmsJc3Ej-F3kFpr3F68l3QP1zaBHwYbljBOxaeT8lOK7FZ7lL/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhIRa1z6N6h3E4Rm4_9nhyBvUtTk2GvuBb75B2_4cfR1ebpZKit5BTPTGnucMhl_YYwt8MbRygd5VjCDSqgKfKqmsJc3Ej-F3kFpr3F68l3QP1zaBHwYbljBOxaeT8lOK7FZ7lL/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/12/blog-post_4702.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/12/blog-post_4702.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content