रिक्शेवाला हरिया का सम्बन्ध एक मामूली किसान परिवार से था । हरिया का बाप जब बूढ़ा हो गया, तो हरिया पर घर बार का बोझ डाल दिया गया। बेचा...
रिक्शेवाला
हरिया का सम्बन्ध एक मामूली किसान परिवार से था। हरिया का बाप जब बूढ़ा हो गया, तो हरिया पर घर बार का बोझ डाल दिया गया। बेचारा हरिया दिनभर खेतों में काम करता और शाम को घर आकर अपने घर वालों के साथ समय गुज़ारता।
हरिया का जन्म दरभंगा ज़िला के हिरपूर गाँव में हुआ था- प्रान्तीय बदहाली एवं ग़रीबी ने हरिया के घरवालों का जीना दूभर कर दिया था। कुछ दिनों तक तो हरिया घर का ख़र्च चलाता रहा। परन्तु ज्यों-ज्यों समय गुज़रता गया हरिया की परेशानियाँ बढ़ती गईं पत्नी के अतिरिक्त चार बच्चों का साथ हरिया की हिम्मत तोड़ने के लिये काफी था। वैसे भी गाँव के ज़्यादातर युवक गाँव छोड़कर शहर की ओर रोज़गार की तलाश में निकल चुके थे। आज हरिया ने जैसे ही घर में प्रवेश किया वो कुछ परेशान सा था, उसने पत्नी से कहा-
हरिया - “अरे भोला की माँ सुनती हो।”
पत्नी - “क्या हुआ जी? काहे इतना चिल्ला रहे हो?”
हरिया - “कल तुम सारा बोरिया बिस्तर बाँध लो अब हम यहाँ नहीं रहेंगे।”
पत्नी - “तो कहाँ जायेंगे?”
हरिया - “कोलकाता।”
पत्नी - “आपका दिमाग़ चल गया है का?”
हरिया - “हाँ, मेरा दिमाग़ चल गया है, तंग आ गया हूँ ई रोज़-रोज़ की भूखमरी से।” मैं कल ही टेशन जाकर पता करता हूँ कि कोलकत्ता वाली गड़िया किस बख़त आती है?” हरिया बीवी अपने पति का हुक्म सुनने के बाद घर के थोड़े से सामान को समेटने में लग जाती है।
हावड़ा स्टेशन पर उतरते ही हरिया और उसका परिवार भीड़ में धक्के खाता हुआ बाहर आ जाता है- सामने हावड़ा पुल को देखकर हरिया का बेटा भोला खुशी के मारे उछल पड़ता है।
भोला- “बापू ई देखा, ई का है?”
हरिया -“हाँ रे- ई का है?”
इतने में एक रिक्शेवाला हरिया की हैरानी को देखते हुए बोल पड़ता है-
रिक्शेवाला - “अरे यही तो हवड़ा का पुल है।”
पत्नी - “अरे बाप रे!! ई पुल है इतना बड़ा?”
रिक्शेवाला - “तुम लोग का नये हो?”
हरिया - “हाँ-हाँ अभई कुछ देर ही तो भई है हियाँ पहुँचे।”
रिक्शेवाला - “कुछ काम वाम आवत हा?”
हरिया - “खेती बाड़ी जानत हैं।”
रिक्शेवाला- खेती बाड़ी हियाँ कहाँ? हियाँ तो बाबू लोग होवत हैं या फिर हमरे जैसन मजदूर लोग- पर भइया ई सहर है बड़ा मज़ेदार हर जाति मज़हब के लोग तोहके हियाँ मिल जइहैं।
हरिया और उसका परिवार रिक्शेवाले की गपशप में ऐसे उलझे कि उन्हें समय का ध्यान ही न रहा। तभी रिक्शे वाले की आवाज़ ने उन्हें चौंका दिया।
रिक्शेवाला- “अरे! बहुत देर हो गई हमके रिक्सा जमा करे जाना है- पर तुम लोग कहाँ जाओगे? नया सहर नई जगह ऐसन काहे नाही करते- तुम सबै हमरे साथ चलो।”
हरिया और बीवी बच्चों ने गठरी उठाई और उसके साथ चले दिये। अपने घर पहुँच कर रिक्शेवाले ने वार्निंग देते हुए कहा-
रिक्शेवाला - “भइया ज़रा सर बचाकर भीतर आना।” एक छोटा सा कमरा था- एक कोने में कुछ खाना बनाने का सामान पड़ा था। दूसरे कोने में पानी से आधी भरी बाल्टी रखी थी। उसी के नीचे लोटा पड़ा था। हरिया और उसकी बीवी अपने चारों बच्चों के साथ ध्यान से कमरे को देख रहे थे तभी रिक्शेवाले की आवाज़ कानों से टकराई-
रिक्शेवाला- “भई हमरा महल अच्छा लगा?”
हरिया ने कमरे से बाहर निकलकर कहा-
हरिया - “भइया! तुम तो भगवान का रूप हो जो हमरे जैसन गरीबों का दरद समझते हो।” रिक्शेवाला ने खाँसते हुए कहा-
रिक्शेवाला - “देखो भइया- ई कथा छोड़ देव- आराम से पानी पियो। हम बाजार जा कुछ खाने का सामान ले आवत हैं।”
दूसरे दिन रिक्शेवाला अपने काम पर निकल जाता है हरिया भी काम ढूँढने के लिये शहर में निकल पड़ता है। शाम होते ही रिक्शेवाला घर वापस आता है। हरिया से हालचाल पूछता है- हरिया उसे बताता है कि वह काम ढूँढने गया था। मगर काम नहीं मिला रिक्शेवाले को उस पर दया आ जाती है। वो हरिया से पूछता है।
रिक्शेवाला-“अच्छा, ई बताओ- रिक्शा चलाओगे?
हरिया उसका मुँह आश्चर्य से ताकता है और हकलाते हुए कहता है।
हरिया- “रिक्शा!! हम... कैसे चला सकत है हम के तो चलाना नाही आवत है।”
रिक्शेवाला - “ओहकी चिंता तुम ना करो हम तोह सिखाई देब रिक्शा चलाना- वैसे है ई बड़ी मेहनत का काम, ई में रिक्से को बहोत बायलेंस रक्खे के पड़त है। कभी फास चलावे के पड़त है। तो कभी सिलो- समझ गये? हाँ,- कौनो मोटा ग्राहक रिक्शा मा बैठ जाये तो ओह से ज्यादा पैसा माँग लेवो।”
हरिया के माथे पर पसीने की लकीरें चमकने लगीं मगर मरता क्या न करता। उसने सिर हिलाकर स्वीकृति दे दी। हरिया को रात भर नींद नहीं आई वो इसी सोच में डूबा हुआ था कि वो रिक्शा कैसे चला पायेगा। हालाँकि रिक्शेवाले की तन्दरूस्ती से हरिया की तंदरूस्ती अच्छी थी। सुबह होते ही रिक्शेवाला हरिया को लेकर घोषबाबू के घर पहुँच गया। घोषबाबू इतने मोटे थे कि उनकी धोती उनके डील-डौल को मुश्किल से छिपा सकती थी। मुँह में पान और गले में मोतियों की माला लटक रही थी। उनके पास जाते ही रिक्शेवाले ने दोनों हाथ जोड़े और हरिया को भी ऐसा करने का इशारा करके कहा-
हरिया- “नमस्कार बाबू।”
घोषबाबू ने हरिया को देखकर रिक्शेवाले से कहा।
घोषबाबू - “अरे सुखिया! ई किस को पकड़ लाया रे?”
सुख्खा - “मालिक ई अपना हरिया है। रिक्शा चलाना चाहत है।”
घोषबाबू - “भालो-भालो, पैले भी कभी चलाया है?”
रिक्शेवाला- “नाही बाबू! हम ट्रेनिंग दे देबै।”
घोषबाबू- “देख सुखिया- तुम कोहता है तो आमी मोन लेता है। तुम इसको सोब नियम कानून बता दो और जोब ई तोइयार हो जाबे तो इसको रिक्शा दे दो।”
रिक्शेवाला- (खुश होकर) “जी, बाबू बहुत बहोत धनवाद।”
और इस तरह भोला को रिक्शा चलाने का आश्वासन मिल गया। सुखिया ने उसका हाथ दबाते हुए उससे कहा-
रिक्शेवाला - “लो भइया- अब तोहार काम बन गवा- अब हम तोहके रोज आधा घंटा रिक्शा चलाना सिखा देंगे। चलो!” हरिया खोली में आता है और थोड़ा जोश में पत्नी को बताता है।
हरिया - “भोला की माँ, सुनत हो हमके रिक्शा चलावे का काम मिल गवा।”
पत्नि - “पर तुम ई काम ...।”
हरिया- “अरे हमरी भोली गइया- ई कोलकत्ता सहर हौ हियां धान नाही उगा सकत हैं। अरे तुम जनानी लोगन का दिमाग माँ बस एक बतिया घुस जाई तो फिर निकले का नाम नाही लेत है।”
कई महीनों बाद हरिया की अपनी खोली हो जाती है उसके बच्चे भी स्कूल जाने लगते हैं। उसकी ज़िन्दगी शहर के अमीर और गरीब ख़रीदारों के द्वारा फलने फूलने लगती है। हरिया को रिक्शा चलाते हुए 6 महीने भी नहीं गुजरे थे कि इस खबर ने हरिया और उसके जैसे तमाम रिक्शेवालों पर एक बिजली सी गिरा दी। एक रिक्शे वाले ने सुखिया से कहा-
रिक्शेवाला- “अरे सुखिया, सुना तूने? मुखमन्त्री ने का कहा? यही कि अब सहर में कौनों रिक्शा न चली- अरे इनका मनमानी तो देखा सालाई मन्त्री लोग न आगे सोचत है न पीछे। बस आडर कर देत हैं। अब साला हम गरीब लोग कहाँ जाई?”
अभी हरिया और सुखिया बातें सुन ही रहे थे कि एक और रिक्शेवाले ने दोनों को सम्बोधित करते हुए कहा-
रिक्शेवाला- “सुनो भइया! कल कामरेड बाबू ने यूनियन की मीटिंग बुलाई है। हम सबको वहाँ जुटना है।”
दूसरे दिन शाम को मीटिंग प्रारम्भ हुई- कामरेड ने अपने जोशीले भाषण में रिक्शेवालों के खून में गरमी भर दी। उसने एलान कर दिया कि अगले महीने से सारे रिक्शे हड़ताल पर जायेंगे।
हरिया को हड़ताल की बात समझ में नहीं आई तो सुखिया ने उसे बताया कि हम रिक्शा नहीं चलायेंगे और विरोध जतायेंगे। तब हरिया की समझ में ये बात आई।
आज हड़ताल को पूरे तीन महीने गुज़र चुके थे घर में खाने के लाले पड़ रहे थे। हरिया और सुखिया और दूसरे रिक्शेवाले रोज़ झन्डा उठाये यही नारा लगाते नज़र आते। “हमारी माँगे पूरी करो परन्तु मन्त्री लोग उनकी आवाज़ क्या खाक सुनते उनका काम था आर्डर देना। सो उन्होंने आर्डर दे दिया।
इधर कामरेड भी कान्फ्रेन्स के सिलसिले में कई दिनों से शहर से बाहर थे। हरिया की हिम्मत धीरे-धीरे जवाब दे रही थी। वो अब झन्डे के बोझ को संभालने में असमर्थ था। दिन भर धरने पर बैठकर घर आता तो अपना चेहरा शर्म से छुपाये चुपके से सो जाता।
आज हरिया ने ठान लिया था कि अब वो रिक्शा सड़क पे निकालेगा। उसने रिक्शा कीे साफ सफाई की और फिर उसने रिक्शा सड़क पर डाल ही दिया। लोग उस अकेले रिक्शे वाले को आश्चर्य से देखते और आगे बढ़ जाते- अभी हरिया कुछ ही दूरी तय कर पाया था कि एक पोलिसवाले ने उसे पकड़ लिया और इस तरह जेल में उसके कई दिन गुज़र गये। एक दिन सुखिया उससे मिलने आया और उसकी बेबसी पर अफ़सोस प्रकट करने लगा। हरिया ने पूछा-
हरिया- “तुमने कामरेड से हमके छुड़ावे की बात की?”
सुखिया- कामरेड तुमसे बहुत नाराज हैं कहत रहे साला बहुत उड़त रहा। पड़े रहे देव जेल में तभै साले का दिमाग ठिकाने आई।
आज हरिया जैसे ही जेल से बाहर आया। फौरन घर की ओर लपका रास्ते में उसकी नज़र एक जुलूस पर पड़ी- कामरेड नारों की गूंज से झन्डों के बीच शान से चले जा रहे थे। हरिया से रहा नहीं गया। तेज़ी से दौड़कर कामरेड को दबोच लिया- जुलूस के लोगों ने उसे कामरेड से अलग करके लात घूंसों से इतनी पिटाई की कि वो लहूलुहान हो गया और कुछ ही देर में उसके प्राण पखेरू उड़ गये।
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जवाब देंहटाएंसच जाने कितने ही हैवान पैदा हो गए है हमारे देश में .. यह बलिदान व्यर्थ न जाय इसके लिए सबको जागे रहना है ..
दामिनी के बलिदान को अश्रुपूरित नमन!
रिक्शेवाला- “अरे सुखिया, सुना तूने? मुखमन्त्री ने का कहा? यही कि अब सहर में कौनों रिक्शा न चली- अरे इनका मनमानी तो देखा सालाई मन्त्री लोग न आगे सोचत है न पीछे। बस आडर कर देत हैं। अब साला हम गरीब लोग कहाँ जाई?”
सुखिया- कामरेड तुमसे बहुत नाराज हैं कहत रहे साला बहुत उड़त रहा। पड़े रहे देव जेल में तभै साले का दिमाग ठिकाने आई।
.... सोलह आना कहानी का माध्यम से बाहर आ गया ....गरीब की आवाज सुनता ही कौन है आजकल .....सबके सब ......