वापसी ...... आज सुबह से ही वैभवी का मन व्यथित था ! ज़हन में रह-रह कर कल ऑफिस में बजी फोन की घंटी घनघना रही थी ! लंच टाइम हो चुका था और जैसे...
वापसी ......
आज सुबह से ही वैभवी का मन व्यथित था ! ज़हन में रह-रह कर कल ऑफिस में बजी फोन की घंटी घनघना रही थी ! लंच टाइम हो चुका था और जैसे ही वो खाने के लिए कुर्सी से उठने लगी कि टेबल पर रखे फोन की घंटी बज उठी ! खाने के समय भी चैन नहीं है ,मन ही मन बड़ बड़ाते हुए वैभवी ने जैसे ही रिसीवर उठा हैलो कहा तो आवाज़ आयी,क्या मैं वैभवी जी से बात कर सकता हूँ ,जी बोल रही हूँ कहते हुए वैभवी आवाज़ पहचानने की कोशिश कर ही रही थी कि सामने से आवाज़ आयी है मैं सुमित बोल रहा हूँ ,सुमित महरवाल और आपसे मिलना चाहता हूँ ,कल शाम सात बजे होटल ब्लू हैवन में , मैं आपका इंतज़ार करूंगा ! वैभवी कुछ कहती कि उससे पहले ही फोन कट गया !
वैभवी का सर चकराने लगा और वो धम्म से कुर्सी पे बैठ गयी ! टेबल पर पड़े गिलास को एक ही घूँट में खाली करते हुए अपने दोनों हाथों को मेज़ पर टिका वैभवी ने अपना सर पकड़ लिया !
भई आज खाना खाने का मूड नहीं है क्या ? जो अभी तक यहीं बैठी हो ...रीमा की ये आवाज़ सुन वैभवी ने अपने हाथों को सर से हटाया ! रीमा ने फिर चौंकते हुए उसके पास आकर पूछा अरे क्या हुआ तुम्हे ? रो क्यों रही हो ? तुम्हारी तबीयत तो ठीक है ना ? ...तुम्हारा चेहरा एकदम पीला सा हो रहा है ! इतने सारे प्रश्नों के जवाब में वैभवी सिर्फ इतना ही कह पायी कि मेरी तबीयत ठीक नहीं है , मैं घर जाना चाहती हूँ !
रीमा ने तुरंत ड्राइवर को बुलाया और उससे वैभवी को घर छोड़ आने को कहा ! वैभवी ने भी बिखरी हुई फाइलों को समेटा और अपना पर्स उठाकर चल दी ! विचारों में खोये हुए उसे पता ही नहीं चला कब घर आ गया,गाड़ी से उतरकर वैभवी फ़्लैट की और बढ़ने लगी तो बाहर खड़े गार्ड पूछा “मैडम आज इतनी जल्दी आ गई “, सब ठीक तो है ना ..? गार्ड के प्रश्न का बिना कोई जवाब दिए वैभवी लिफ्ट की तरफ बढ़ गयी लेकिन लिफ्ट भी कमबख्त खाली नहीं थी , अपनी पांचवी मंज़िल का बटन तींन –चार बार दबाने के बाद खीजते हुए फिर सीढियों से ही चली गयी ! अपने जूतों को पैरों से तक़रीबन फैंकते हुए वो औंधे मुंह पलंग पर जा गिरी जितना तेज़ रो सकती थी रोती रही और इस बीच कब उसकी आँख लग गई उसे पता ही नहीं चला !
बादलों की तेज़ गरज़ना के साथ जब वैभवी की आँख खुली तो घड़ी में पांच बज रहे थे ! “बाहर शायद तेज़ बारिश हो रही है” ,वैभवी ने मन ही मन बुदबुदाया ! ये बारिश तो कुछ समय में थम जायेगी पर मेरे भीतर इतने बरसों का दबा तूफ़ान आज हिलोरें ले रहा है इसका क्या होगा ?
अभी भी वैभवी के ज़हन में रह – रह कर सुमित की वही फोन वाली आवाज़ गूँज रही थी, “मैं सुमित महरवाल बोल रहा हूँ “ इसी आवाज़ के आकर्षण ने तो उसे एक दिन सुमित से मिलवाया था यही सोचते –सोचते उसकी ज़िंदगी की किताब का एक – एक पन्ना फिर से खुलने लगा और वो अपने अतीत में विचरने लगी !
कैसे पहली बार जब उसने माइक पर सुमित को बोलते हुए सुना था और अपलक बैठे – बैठे उसे देखती रही थी पता ही नहीं चला कब वो बोल कर भी चला गया , वो तो उसके पास बैठी सहेली ने उसे झिंझोड़ा ना होता तो पता नहीं वो और कितनी देर ऐसे ही बैठी रहती !
न्यूक्लीयर पॉवर पर डीबेट कम्पीटीशन में वैभवी और सुमित अपने–अपने कॉलेज का प्रतिनिधित्व कर रहे थे ! सुमित प्रथम और वैभवी द्वितीय स्थान पर रही थी और तभी दोनों की मुलाक़ात हुई थी ! औपचारिकता में दोनों ने एक–दूसरे को मुबारकबाद दे और जलपान के वक़्त एक दूसरे के फोन नंबरों का आदान – प्रदान किया ! उस रात वैभवी सो ना सकी , रह – रह कर सुमित का चेहरा और आवाज़ उसकी आँखों के आगे आते रहे ! अगले दिन वैभवी ने सुमित के फोन का इंतज़ार किया मगर उसे निराशा हाथ लगी ,ये सिलसिला कई दिनों तक चलता रहा पर सुमित का कोई फोन या मैसज नहीं आया !
वक़्त के साथ – साथ वैभवी ने ख़ुद को समझा लिया कि ये कुछ घंटों की मुलाक़ात थी जिसमे उसका सुमित के प्रति आकर्षण पनपा था ! होनी को कौन टाल सकता है एक सुबह जब वो सो कर उठी और सिरहाने पड़े मोबाईल को टटोला तो मैसज बॉक्स में चार मैसज थे और उसमें से एक मैसज सुमित का था “जन्म दिन मुबारक हो “ ख़ुदा आपको लम्बी उम्र और शौहरत की बुलंदियां दे ...सुमित महरवाल ! वैभवी को अपनी आँखों पर विशवास ही नहीं हो रहा था ,पता नहीं उसने कितनी बार उस मैसज को पढ़ा ! ख़ुशी से पागल वैभवी को मानो आज जन्म दिन का सबसे ख़ूबसूरत तोहफ़ा मिल चुका था ! उसे कैसे पता चला कि आज मेरा जन्म दिन है , क्या उसने मेरा नंबर सेव किया हुआ था ? इससे पहले उसने मुझे एकबार भी काल क्यूँ नहीं किया ? ना जाने कितने ही ऐसे सवाल उसके दीमाग में कौंधने लगे ! मैसज का रिप्लाई अभी करूँ या बाद में ,..नहीं अभी ठीक रहेगा और सोचते – सोचते वैभवी ने “थैंक्स” टाइप कर मोबाईल का सेंड बटन दबा दिया ! दो मिनट के भीतर ही वापिस मैसज आया “ मे आई काल यू इफ यू फील कम्फर्ट “ ..और बिना वक़्त ज़ाया किये वैभवी ने मैसज का जवाब दिया ..”व्हाई नोट “...! वैभवी का इतना लिखना था कि उसके मोबाईल स्क्रीन पर सुमित कालिंग लिखा आ रहा था ..! वैभवी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा ..एक अजीब सी कंपकंपाहट उसे शरीर के भीतर महसूस होने लगी और जैसे ही उसने कहा हैलो... उसे एक दिलकश आवाज़ सुनाई दी ..” मैं सुमित महरवाल बोल रहा हूँ ..”जन्म दिन बहुत–बहुत मुबारक हो”, इस ख़ूबसूरत दिन के लिए 364 दिन इंतज़ार करना पडेगा मुझे !..वैभवी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या पूछे ,क्या कहे.. क्यूंकि जब बिना मांगे इतनी सारी ख़ुशियाँ मिल जाए तो शायद ऐसा ही होता होगा ,वो ये सब सोच ही रही थी कि सुमित की आवाज़ आई ..”आप कहीं बिजी हैं क्या” ? ..वैभवी ..कुछ सँभलते हुए ,,अरे बस यूँ ही.. नहीं नहीं बीजी नहीं ..”तो फिर इतनी खामोशी क्यूँ भई “..सुमित ने कहा ! अच्छा .. आज शाम अगर फ्री हों तो तुम्हारे साथ एक कप कॉफ़ी पीना चाहूँगा, जहां तुम चाहो ...वैभवी ने बिना कुछ सोचे हामी भर दी जी क्यूँ नहीं... जगह के लिए मैं आपको मैसज कर दूंगी कह कर वैभवी ने ठंडी सांस ली !
वैभवी का मन बड़ा उत्साहित था और कल्पना के सागर में गोते लगा रहा था ,बस अभी शाम के साढ़े छ: बज जाएँ लेकिन ..कॉफ़ी कहाँ पी जाए ..इसके लिए वो शहर के अच्छे अच्छे रेस्तरां के नाम सोचने लगी .आख़िर उसे लगा की “फोर सिजनस” सबसे बेहतर रहेगा !
ठीक साढ़े छ: बजे वैभवी रेस्तरां में थी ! मद्धम रौशनी और हरी प्रसाद चौरसिया जी के बांसूरी वादन की सुर लहरियों से वातावरण खुशनुमा हो गया था ! सुमित के इंतज़ार का एक – एक पल वैभवी को एक–एक सदी के बराबर लग रहा था कि अचानक सामने से सुमित आता हुआ दिखाई दिया ..सुमित ने आते ही फूलों का बुके देते हुए वैभवी को जन्म -दिन की शुभकामनाएं दी और सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया ! रेस्तरां में चारों तरफ नज़र दौड़ाने के बाद सुमित ने कहा ..”तुम्हारी पसंद भी तुम्हारी तरह ख़ूबसूरत है” ! सुनते ही वैभवी शरमा सी गयी , थोड़ी देर दोनों में औपचारिक बातचीत होती रही ! कॉफ़ी अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी कि सुमित ने बिना किसी लाग लपेट के बोला “ वैभवी मेरी बात ध्यान से सुनना ..दो महीने बाद मैं यहाँ से बेंगलुरु चला जाउंगा अच्छे खासे पैकज पर एक एम्एनसी ज्वाइन कर रहा हूँ लेकिन पिछले कुछ दिनों से मैंने महसूस किया है कि मुझे तुम्हारे साथ की ज़रुरत है ! आज तक तुमसे सिर्फ़ इस लिए नहीं कहा क्यूंकि मैं चाहता था पहले ज़िंदगी में अच्छे से सैटल हो जाऊं फिर तुमसे तुम्हे मांगूं ! ये सब सुनकर वैभवी को तो अपने कानों पर यक़ीन ही नहीं हो रहा था, वो बिना पलक झपकाए सुमित को देखे जा रही थी और इस बीच कब उसका हाथ सुमित के हाथों में आ गया उसे पता ही नहीं चला !
समय ने मानो पंख लगा दिए , सुमित और वैभवी परिणय - सूत्र में बंध गए और एक ख़ुशहाल जीवन जीने लगे ! शादी के एक बरस बाद दोनों की दुनिया में एक नन्हे मेहमान ने दस्तक दी और अब दोनों की ज़िंदगी में ख़ुशियों की तादाद दुगनी हो गयी !
वक़्त अपनी रफ़्तार से गुज़र रहा था कि एक दिन वैभवी ऑफिस से घर जल्दी आ गयी ! उसने घर “माँ” के साथ किसी अजनबी को देखा और माँ भी वैभवी को अचानक देख थोड़ा सहम सी गयी ! वैभवी सीधे अपने कमरे में गयी , वह दवा लेकर सोना चाहती थी मगर नींद उसकी आँखों से कोसों दूर जा चुकी थी ! वो जितना सोने की कोशिश करती उस अजनबी शख्स का चेहरा उसकी आँखों के आगे आ जाता .. हालांकि माँ ने उस शख्स का परिचय बड़े अच्छे से करवाया था ,दिखने में भी वो शख्स सज्जन लग रहा था मगर आख़िर कौन है ये ? ...यहाँ क्या कर रहा है ? माँ मुझे देख के यूँ सकपका क्यूँ गयी ? ये सब सवाल वैभवी को परेशाँ किये जा रहे थे !
रात को जब सुमित दफ़्तर से घर आया तो वैभवी ने इस पूरे वाक़िये का ज़िक्र सुमित से किया पर सुमित ने इसे अनसुना कर दिया !
पिछले कई दिनों से माँ की तबीयत ठीक नहीं थी वह अपना ईलाज बस घरेलु नुस्खों से ही कर रही थी ! अगले दिन सुबह माँ को तेज़ बुखार था , वैभवी ने सोचा कि आज लंच टाइम में माँ को डॉ. के दिखा के लाऊँगी !
दफ़्तर में आते ही वैभवी ने अपनी सारी पेंडिंग फाइल्स निपटाई और एक बजते ही ऑफिस से घर के लिए निकल पडी ! घर पहुंचकर जैसे ही डोर बेल बजाने लगी तो ख़याल आया कहीं माँ सो तो नहीं रही.. पीछे खिड़की से जाकर देख तो लूं , खिड़की का पर्दा पंखे की हवा से हिल रहा था और जैसे ही वैभवी ने भीतर झांका अन्दर का मंज़र देखकर वो सहम सी गयी ! माँ के सिरहाने वही अजनबी शख्स माँ का हाथ थामे माँ के सर को सहला रहा था ! उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे और माँ अपने पल्लू से उन्हें पोंछ रही थी ! वो अजनबी माँ को बार – बार अपने साथ चलने का आग्रह कर रहा था और माँ लोकलाज का वास्ता देकर उसे मना कर रही थी ! ये सब देख कर वैभवी का सर फटने लगा और इससे आगे कुछ और देखने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई, वो तुरंत गाडी से वापिस ऑफिस आ गई !
शाम छ: बजे तक का वक़्त वैभवी ने दफ़्तर में बड़ी मुश्किल से निकाला और अपनी फाइलों को यूँ ही अस्त - व्यस्त छोड़ घर के लिए निकल गयी ! पूरे रस्ते उसके ज़हन में ये सवाल खोलते पानी की तरह उबलता रहा कि आख़िर वो शख्स है कौन ? माँ से उसका क्या रिश्ता है ? क्या सुमित ये सब जानता है ? और इसी उधेड़ बुन में घर आ गया ! माँ अपने कमरे में सो रही थी ,वैभवी भी सीधी अपने कमरे में जा के लेट गयी ! दोपहर का सारा मंज़र फिर वैभवी की आँखों के सामने ताज़ा होने लगा इतने में सुमित भी ऑफिस से आ गया और आते ही उसने वैभवी से चाय की फरमाइश कर दी ! वैभवी तो बस उन्ही सवालों के जाल में फंसी हुई थी सुमित ने क्या कहा उसे पता ही नहीं चला उसके तो कान भी आँख बनकर वही दोपहर वाले दृश्य देखने में लगे थे ! सुमित ने दोबारा झुंझलाते हुए कहा -- वैभवी, चाय तो पिला दो यार ...फिर वैभवी चौंकते हुए बोली मुझे तुमसे कुछ कहना है , सुमित कुछ बोल पाता उससे पहले ही वैभवी ने माँ के चरित्र पर उंगली उठाते हुए दिन में देखा सारा मंज़र बयान कर दिया ! जैसे ही वैभवी की ज़ुबान थमी एक ज़ोरदार तमाचा वैभवी के गाल पर सुमित ने रसीद कर दिया,वैभवी “तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी देवी जैसी माँ के बारे में सब बोलने की ! कुछ ही पलों में वातावरण दोनों के बीच झगडे से अशांत हो गया और नौबत यहाँ तक आ गयी कि वैभवी अपने बेटे को लेकर घर छोड़कर जाने लगी ! सुमित अपने बेटे को वैभवी के हाथ से छीनते हुए बोला “तुम्हें घर छोड़कर जाना है तो शौक़ से जाओ मगर आज के बाद इस घर के दरवाज़े तुम्हारे लिए हमेशा के लिए बंद हैं” ! वैभवी अकेले ही अपना सब कुछ छोड़कर घर से चली गयी ! वक़्त के खुरदरे रास्तों पर अकेले चलते – चलते उसे तन्हाइयों से ही लगाव हो गया !
आज इतने सालों बाद वक़्त फिर इस तरह करवट लेगा उसने कभी सोचा भी ना था ,उसका पूरा तकिया आंसुओं से भीग चुका था , घड़ी में साढ़े पांच बज रहे थे उसे याद आया साढ़े छ: तो होटल ”ब्लू हैवन” जाना है ! वैभवी फ़टाफ़ट हाथ –मुंह धो तैयार हो गयी और वक़्त पे पहुँचने की अपनी आदत के अनुसार ठीक साढ़े छ: बजे “ब्लू हैवन” पहुँच गयी ! रेस्तरां के अन्दर उसकी आँखें सुमित को तलाश करने लगी और जब वो कहीं नज़र नहीं आया तो कोने में खाली टेबल देख वहाँ बैठ गयी ! वेटर ने जैसे ही पानी का गिलास रखा तो वैभवी ने उसे लैमन सोडा का ऑर्डर दिया ,सुमित को लैमन सोडा बहुत पसंद था , घर में फ्रीज़ लैमन सोडा से भरा रहता था ! इतने सालों में उसने कभी भी लैमन सोडा नहीं पीया ! सौरभ कितना बड़ा हो गया होगा ? कैसा दिखता होगा ? मेरी तरह या सुमित की तरह ? लैमन पीते – पीते ये सवाल उसके ज़हन में किसी उफान लेते समंदर की लहरों की तरह उछल ही रहे थे कि अचानक पीछे से वही जानी – पहचानी आवाज़ उसके कानों में पड़ी “ कैसी हो वैभवी ?”.. वैभवी ने पलट कर देखा तो सामने सुमित और साथ में चोकलेट हाथ में लिए एक प्यारा सा बच्चा जो बिलकुल सुमित जैसा ही था आते हुए नज़र आया ! वैभवी बुत सी बनी बच्चे की तरफ देखती रही , अरे क्या हुआ , कहाँ खो गयी हो ? ये सौरभ है तुम्हारा बेटा और सुमित के मुंह से इतना सुनते ही वैभवी सौरभ को सीने से लगा लिया ! वक़्त जैसे ठहर सा गया था और ये दृश्य देखकर ऐसा लग रहा था मानो कितने बरसों का सुलगता ज्वालामुखी आज आंसुओं के रूप में पिघल रहा हो ! सुमित वैभवी को नहीं संभालता तो ना जाने वो और कितनी देर सौरभ को सीने से लगाये रोती रहती !
सुमित ने बातों का सिलसिला शुरू किया , वैभवी ! माँ अब दुनिया में नहीं है ..छ: महीने पहले उनका निमोनिया बिगड़ गया था ,उनके लंग्स में इन्फेक्शन होने से सांस में तकलीफ़ बढ़ गयी थी ! माँ ने मरने से पहले कुछ बातें बताई जिससे समय के गर्भ में छिपे बहुत से प्रश्न स्वतः ही हल हो गए ! जिस अजनबी शख्स का ज़िक्र तुमने किया था वो कोई और नहीं ..मेरे पिता थे ! वक़्त ने हालात कुछ ऐसे कर दिए कि उन दोनों को मेरे जन्म से पहले ही अलग होना पडा ! तुम मुझे छोड़ चुकी हो और माँ भी नहीं रही, यूँ लगता है अब यहाँ रहना बेमानी है ! मैंने सौरभ के साथ जर्मनी जाने का फैसला किया है ! जाने से पहले तुमसे मिलकर प्रायश्चित करना चाहता था ! वैभवी, मैं तुम्हारा गुनह्गार हूँ और मुझे मेरे गुनाहों की सज़ा मिल चुकी है ! वैभवी ,अब ये जुदाई और बर्दाश्त नहीं होती ...मैं और सौरभ तुम्हें लेने आयें हैं ! वैभवी, प्लीज़ घर लौट चलो तुम्हारा घर तुम्हारा इंतज़ार कर रहा है ! सुमित ये सब एक ही सांस में कह गया !
वैभवी अपने आंसू पोंछते हुए बोली “ सुमित, आज इतने सालों बाद तुम्हें लगा कि तुम्हें प्रायश्चित करना चाहिए ,तुमने ये सोच भी कैसे लिया कि मैं तुम्हें माफ़ कर दूंगी ! तुम यहाँ से चले जाओ प्लीज़ ...वैभवी रूंधे गले से इतना ही कह पाई ! सुमित आगे कुछकहता उससे पहले ..प्लीज़ ..प्लीज़ ..प्लीज़ कहते हुए वैभवी रेस्तरां से बाहर चली गयी !
सौरभ और सुमित वैभवी के पीछे –पीछे बाहर आ गए ! सौरभ पीछे से अपने दोनों हाथ बढ़ाकर चिल्लाया ..” मम्मा प्लीज़ आ जाओ .....मम्मा आ जाओ ना प्लीज़ ... !
एक मुद्दत बाद सौरभ की आवाज़ सुन वैभवी अपने आप को रोक नहीं पायी और उसने पलटकर सौरभ को अपने सीने से लगा लिया..!
सुमन गौड़
सुन्दर कहानी सुमन। गद्य भी अच्छा लिखती हैं आप। मेरी शुभकामनायें।
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