येव्गेनी येव्तुशेंको 1933 में रूस के साइबेरियाई ज़िले इर्कूत्सक के ‘ज़िमा स्टेशन' नाम के गाँव में जन्म । माँ मास्को के एक थिये...
येव्गेनी येव्तुशेंको
1933 में रूस के साइबेरियाई ज़िले इर्कूत्सक के ‘ज़िमा स्टेशन' नाम के गाँव में जन्म। माँ मास्को के एक थियेटर में गायिका थीं और पिता भूगर्भ शास्त्री। स्कूली जीवन में कई बार स्कूल से निकाले गए। 1949 में पहली कविता का प्रकाशन। 1951 में मास्को स्थित ‘गोर्की लिटरेरी इंस्टीट्यूट' में प्रवेश। 1952 में “सोवियत लेख संघ” के सदस्य बने। 1955 में लिटरेरी इंस्टीट्यूट से निकाल दिया गया। आज तक उच्च-शिक्षा की डिग्री से वंचित।
अब तक चार बार विवाहित। प्रसिद्ध रूसी कवयित्री और अपनी सहपाठिनी बेला अख्मादुलीना से पहला विवाह किया। 1960 में गलीना लुकोनिना नामक एक स्त्री से दूसरा विवाह किया। तीसरी पत्नी जान बटलर ब्रिटिश मूल की थीं। इनसे येव्तुशेंकों के दो पुत्र हुए�साशा (अलेक्सान्द्र) और अन्तोशा (अन्तानिन)। दस वर्ष तक साथ रहने के बाद जान ने भी येव्तुशेंको से तलाक लेकर दूसरा विवाह कर लिया। 1987 में चौवन वर्षीय येव्तुशेंको ने तेईस वर्षीया मरीया (माशा) से विवा किया। माशा ने भी कवि को दो पुत्र झेन्या (येव्गेनी) और मीत्या (दिमीत्रि) उपहारित किए। येव्तुशेंको के अनुसार यह ‘सुखी होने और प्यार कर पाने की कोशिश थी आखिरी' और यह कोशिश सफल रही।
येव्तुशेंको की अब तक चौदह लम्बी कविताएँ व करीब पचास कविता संग्रह रूसी भाषा में प्रकाशित हो चुके हैं। 1980 से लेकर 2002 तक तीन बार उनकी समग्र कविताओं के संग्रह छपे हैं। 1980 में तीन खण्डों में और अगस्त, 2002 में सात खण्डों में। येव्तुशेंको ने दो उपन्यास लिख हैं। दो फिल्मों की पटकथा लिखी है और दो फिल्मों का निर्देशन किया है। तीन फिल्मों में उन्होंने अभिनय किया है। उनके द्वारा खींची गई तस्वीरों के दो एल्बम अब तक प्रकाशित हुए हैं। विश्व की 72 भाषाओं में उनकी कविताओं के अनुवाद हुए हैं। हिन्दी में उनका पहला संग्रह 1978 में ‘मालगोदाम' शीर्षक से श्री महेन्द्रप्रकाश पाण्डेय ने मल रूसी से अनुवाद किया था। 1982 में कवि राजा खुगशाल ने येव्तुशेंकों की लम्बी कविता ‘ज़िमा ज़ंक्शन' का अंग्रेज़ी से अनुवाद किया।
1967 से 1981 तक सोवियत लेखक संघ की संचालन समिति के सदस्य। 1989 में सोवियत संसद के सदस्य बने। 1992 में सोवियत संघ के टूटने के बाद 1993 में अमरीका चले गए। तब से अब तक अमरीका के विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन। आजकल अमरीका के ओक्लाहोमा राज्य के टाल्सा नगर में रहकर अध्यापन कर रहे हैं और वर्ष में पाँच माह रूस में आकर रहते हैं।
येव्गेनी येव्तुशेंको की कविताएँ
एक
सभी स्त्रियों के मन में
हमेशा बनी रहती है आशा
विशेष रूप से तब
जब पूरे के पूरे
माहौल में हो निराशा
उस वक़्त यह संभव नहीं
कि वे ख़ुद को धोखे में न रखें
चूँकि आत्मवंचना से ही
उन्हें मिलता है सुख
और वही है उनका सबसे बड़ा दुख
दो
(गेओर्गी इवानोव की स्मृति में)
मुझे नहीं भाता
मेरा भावी स्मारक
लगाया जाएगा जो
तीसरी दुनिया के किसी देश में
जहाँ महाशक्तियाँ चुपचाप
अपनी जेब में रखे कमंद में
अपनी जुएँ छिपाकर
घूँसे उछालती हैं
जहाँ झुके हुए हैं केले के पेड़
और पेड़ हुए हैं सड़े-गले राकेट
�बस इतने ही फल हैं हमारे पास
अन्तोनोव्का किस्म के सेब नहीं हैं
मुझे नहीं चाहिए
स्मारक
मैं तो बस इतना चाहता हूँ कि
लौटा दिया जाए मुझे
मौत के बाद ख़त्म हुआ देश
तीन
बाकू के
एक प्रसूतिगृह के दरवाज़े पर
एक बूढ़ी आया ने
दंगाइयों को धमकाते हुए कहा�
हटो, पीछे हटो,
मैं हमेशा ही रला-मिला देती थी
शिशुओं के हाथों पर बँधे टैग
अब यह जानना बेहद कठिन है
कि तुममें कौन अरमेनियाई
और कौन अज़रबैजानी...
और दंगाई...
साइकिल की चेन, इर्ंट-पत्थरों, चाकू-छुरियों
और लोहे की छड़ों से लैस दंगाई
पीछे हट गए
पर उनमें से कुछ चीखे - छिनाल
उस बुढ़िया की
पीठ के पीछे छिपे हुए थे
डरे हुए लोग
और रिरिया रहे थे अपनी जाति से अनजान
हममें से हर एक की रग़ों में
रक्त का है सम्मिश्रण
हर यहूदी अरब भी है
हर अरब है यहूदी
और यदि कभी कोई भीगा किसी के रक्त में
तो मूर्खतावश, अंधा होकर
भीगा अपने ही रक्त में
एक ही प्रसूतिगृह के हैं हम
पर प्रभु ने बदल डाले हमारे टैग
हमारे जनम के कठिन दौर से पहले ही
और हमारा हर दंगा
अब ख़ुद से ही दंगा है
हे ईश्वर!
इस ख़ूनी उबाल से बचा हमें
अल्लाह, बुद्ध और ईसा के बच्चे
जिन्हें रला-मिला दिया गया था प्रसूतिगृह में ही
बिना टैग के हैं
जीवन और सौंदर्य की तरह...
चार
माशा� के लिए
मैं तुम्हें प्रड्डति से अधिक चाहता हूँ
हालाँकि तुम ख़ुद हो प्रड्डति की वादी
मैं तुम्हें स्वतंत्रता से अधिक चाहता हूँ
तुम्हारे बिना, जेल लगती है आज़ादी
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ असावधान
अदृश्य हो जाना चाहता हूँ, बिना छोड़े निशान
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ, जितना संभव है
उससे भी कहीं अधिक, जो असंभव है
मैं चाहता हूँ तुम्हें-असीमित और लगातार
नशे में, नाराज़गी में भी, तुम्हें करता हूँ प्यार
ख़ुद से अधिक चाहता हूँ तुम्हें, यह सच है
उससे भी अधिक जितने पर मेरा वश है
मैं अनुरागी हूँ, शेक्सपीयर से भी अधिक तुम्हारा
इस धरती के पूरे सौंदर्य को, मैंने तुम पर वारा
दुनिया भर के संगीत से अधिक तुम मुझे प्यारी
किताबें, कला और संगीत, अब तुम ही हो हमारी
मैं तुम्हें चाहता हूँ बहुत, पर ख्याति उतनी नहीं
भविष्य की भी कीर्ति, मुझे भाती उतनी नहीं
ज़ंग लगी महाशक्ति से अधिक हो, तब भी
क्योंकि मेरी मातृभूमि तुम ही हो, वह नहींं
तुम अभागी हो? सहभागिता चाहती हो?
अपनी प्रार्थनाओं से तुम प्रभु को क्रोधित नहीं करो
मैं तुम्हें सुख से भी अधिक चाहता हूँ, मेरी जान!
मैं तुम्हें प्रेम से भी अधिक प्रेम करता हूँ, प्राण!
� कवि की पत्नी
पाँच
माँ मेरी
उम्र बढ़ती जा रही है माँ की मेरी
अब वह सवेरे देर से उठने लगी है
ताज़े अख़बारों की सरसराहट में भी
राहत उसे पहले से कम मिलने लगी है
हवा का हर घूँट उसे अब कड़वा लगता है
बर्फ़ सा सख़्त फ़र्श उसे अब चिकना लगता है
यहाँ तक कि कंधे पर पड़ा हल्का शाल भी
उसे अब भारी लगे, ज्यों शरीर में चुभता है
जब माँ घूमती है बाहर, सड़क पर या गली में
हिमपात होता है इतना धीमा, सावधानी ही भली है
वर्षा जैसे चाटती है जूते उसके, किसी सनेही कुत्ते की तरह
हवा बहती है हौले से कि खड़ी रहे माँ कुकुरमुत्ते की तरह
इस महाकठिन, कष्टमय, मुसीबत भरे दौर में
वह सब कुछ करती रही आसानी के ठौर में
और मैं डरता रहा बहुत कि कहीं कोई उसे
पंख की तरह उड़ा न ले जाए इस रूस से
माँ के शेष बचे कुछ धुँधले चित्रों के साथ
मैं भला तब कैसे जीवित रहूँगा, नाथ!
माँ है वो मेरी, आत्मा है, मेरी है प्रिया
उसके ही साए में मैं आज तक जिया
छह
एक जार्जियाई दोस्त की मृत्यु पर
(जुम्बेरता बेताश्वीली की स्मृति में)
मैंने दोस्त खो दिया
और आप देश की बात करते हैं
मेरा बंधु खो गया
और आप जनता की चर्चा कर रहे हैं
मुझे नहीं चाहिए वह देश, जहाँ हर चीज़ की कीमत है
मुझे नहीं चाहिए वह जनता, जो आज़ाद होकर भी ग़ुलाम है
मेरा दोस्त खो गया, और खो गया मैं भी
हमने खो दिया वह जो देश से अधिक है
अब आसान नहीं होगा
हमें हमारी आवाज़ों से पहचानना
तो कोने में गोली एक छूटती है
तो रॉकेटों का रुदन सुनाई देता है
मैं थोड़ा-सा वह था
और वह थोड़ा-सा मैं
उसने मुझे कभी बेचा नहीं और मैंने भी उसे
देश हमेशा दोस्त नहीं होता
वह मेरा देश था
जनता बेवफ़ा दोस्त होती है
वह मेरी जनता था
मैं रूसी
वह जार्जियाई
काकेशस अब शवगृह है
लोगों के बीच बेहूदा लड़ाई जारी है
यदि दोस्त मेरा मर गया, मेरी जनता भी मर गई
यदि दोस्त मेरा मारा गया, देश भी मारा गया
अब जोड़ नहीं सकते हम
अपना टूटा हुआ वह देश
हाथ से छूट कर गिर पड़ा है जो
मृतक शरीरों के उस ढेर के बीच
दफ़ना दिया गया है जिन्हें बिना कब्र के ही
मेरा दोस्त कभी मरा नहीं
वह इसलिए दोस्त है
और दोस्त व जनता पर कभी
सलीब खड़ा नहीं किया जा सकता
सात
इक्कीसवीं शताब्दी
उद्धरणों में बँटा हुआ नहीं
बल्कि हवा में ऊपर उठते झूले में बैठे
बालकों के झुंड की तरह
मैं पहुँचूँगा इक्कीसवीं शताब्दी में
वहाँ भी वैसे ही होगी मेरी ज़रूरत
जैसेकि थी बीसवीं शताब्दी मेंं
बेल्ट की मार के बिना ही
मैंने पाली-पोसी है जो शताब्दी
अपने कपड़े उतार कर
उछालूँगा उसे आकाश में
बहती नाक वाले, आशावादी उस बच्चे की तरह
जिसकी सूरत मुझसे बेहद मिलती-जुलती है
मैं घुस जाऊँगी इक्कीसवीं शताब्दी में
पर खेद है कि मैं तब बच्चा नहीं रहूँगा
लेकिन उस बूढ़े मूर्ख-सा भी नहीं होऊँगा
जो नाराज़ सारी दुनिया से बड़बड़ाता रहता है हमेशा
इक्कीसवीं शताब्दी में धँस जाऊँगा मैं
खरोंचे खाता हुआ
किसी फुटबाल की तरह
जहाँ पेले जैसे खिलाड़ी होंगे चारों तरफ़
वहाँ कोई पासपोर्ट नहीं होगा
कोई पार्टी नहीं होगी
सरकार जैसी कोई व्यवस्था भी नहीं होगी धरती पर
मैं प्रवेश कर जाऊँगा इक्कीसवीं शताब्दी में
और पहचान लूँगा अपनी सभी अतुलनीय,
सुंदर और प्रिय
ख़ूबसूरत रानियों से चिकने चेहरे वाली
दादियों व नानियों को
मेरे सभी साथी हैं वहाँ इक्कीसवीं शताब्दी में
जैसे कि प्रारम्भिक कैशोर्य-काल में हों
साँसों के गर्म पुस्तकालय के भीतर
बैठे हैं क़िताबों की अलमारियों में,
लोगों के होंठों पर
बीसवीं शताब्दी थी हत्यारी और शैतान
लेकिन जानती थी वह क़िताबों का महत्त्व
इक्कीसवीं शताब्दी, क्या तू लोभी है
जानती है सिर्फ़ नोटों की गिनती?
कहीं ऐसा तो नहीं
कि तू स्वयं खा जाए ख़ुद को
तू�आदमखोर, प्रेमविहीन, विरागी
ऊबाऊ, घातक सुख तू
सभी प्राणघातक दुर्भाग्यों के बदले?
कहीं तू सिर्फ़ मतलबी, ख़ुदगर्ज़, नक्काल तो नहीं
जो हमारी बात सुने सिर्फ़ एक-चौथाई कान से
मैं तुझे
बहरी नहीं बनने दूँगा
मैं आऊँगा तेरे पास
वैसे ही
जैसे पहुँचा था उस जगह पर
जहाँ मैंने तोड़ी थीं चट्टानें
और
नए समय की कविता में
बहुत-सी आवाज़ें गूँजेंगी जब
मैं कमर तक उनमें घुस जाऊँगा
मानो घुसा हुआ हूँ खेत में खड़ी फसल में
और तब
वे आवाज़ें
झुककर करेंगी मेरा अभिवादन
आठ
पुनर्लेखन की कोशिश
जो
रक्त से लिखा है
पुनः लिखना कठिन है
कोरे काग़ज़ पर भी
किसी को भी इससे कोई फ़ायदा नहीं होगा
मैं
अंतिम कवि हूँ
उस कम्युनिज़्म का
जो कभी आया नहीं इस धरती पर
और शायद कभी आ भी नहीं सकता
नौ
औरत लोग
मेरे जीवन में आइर्ं हैं औरतें कितनी
गिना नहीं कभी मैंने
पर हैं वे एक ढेर जितनी
अपने लगावों का मैंने
कभी कोई हिसाब नहीं रक्खा
पर चिड़ी से लेकर हुक्म तक की बेगमों को परखा
खेलती रहीं वे खुलकर मुझसे उत्तेजना के साथ
और भला क्या रखा था
दुनिया के इस सबसे अविश्वसनीय
बादशाह के पास
समरकंद में बोला मुझ से एक उज्बेक�
‘‘औरत लोग होती हैं आदमी नेक''
औरत लोगों के बारे में मैंने अब तक जो लिखी कविताएँ
एक संग्रह पूरा हो गया और वे सबको भाएँ
मैंने अब तक जो लिखा है और लिखा है जैसा
औरत लोगों ने माँ और पत्नी बन
लिख डाला सब वैसा
पुरुष हो सकता है अच्छा पिता सिर्फ़ तब
माँ जैसा कुछ होता है उसके भीतर जब
औरत लोग कोमल मन की हैं दया है उनकी आदत
मुझे बचा लेंगी वे उस सजा से, जो देगी मुझे
पुरुषों की दुष्ट अदालत
मेरी गुरनियाँ, मेरी टीचर, औरत लोग हैं ईश्वर
पृथ्वी लगा रही है देखो, उनकी जूतियों के चक्कर
मैं जो कवि बना हूँ आज, कवियों का यह पूरा समाज
सब उन्हीं की ड्डपा है
औरत लोगों ने जो कहा, कुछ भी नहीं वृथा है
सुंदर, कोमलांगी, लेखिकाएँ जब, गुज़रें पास से मेरे
मेरे प्राण खींच लेते हैं उनकी स्कर्टों के घेरे
दस
(द.ग. के लिए)
इतनी बार
बुरी तरह घायल
हुआ हूँ मैं
इतनी बार हुआ हूँ जख़्मी
कि घर पहुँचा हूँ रेंगता हुआ
न सिर्फ़ मुझे
पीटा गया है डाहवश
बल्कि कभी-कभी तो
मैं घायल हो गया हूँ
गुलाब की कोमल पँखुरी से भी
मैंने भी
लोगों को घायल
किया है कभी-कभी
अचानक ही, बेध्यानी में
बेहद कोमलता के साथ
फिर कितनी पीड़ा हुई होगी उन्हें
मानो चल रहे हों वे
नंगे-पैर बर्फ़ पर
मैं क्यों चलता हूँ भग्नावशेषों पर
उन खंडहर के मलबे पर
मेरे हृदय के अत्यंत निकट हैं जो
जीवन में मुझे सबसे प्रिय हैं
कितनी सहजता से मैं
हो जाता हूँ जख़्मी
इतना गहरा
क्या उतनी ही सहजता से
मैं भी करता हूँ
लोगों को घायल?
ग्यारह
पुराना दोस्त
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
दुश्मन हो चुका है जो अब
लेकिन सपने में वह दुश्मन नहीं होता
बल्कि दोस्त वही पुराना, अपने उसी पुराने रूप में
साथ नहीं वह अब मेरे
पर आस-पास है, हर कहीं है
सिर मेरा चकराए यह देख-देख
कि मेरे हर सपने में सिर्फ़ वही है
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
चीखता है दीवार के पास
पश्चाताप करता है ऐसी सीढ़ियों पर खड़ा हो
जहाँ से शैतान भी गिरे तो टूट जाए पैर उसका
घृणा करता है वह बेतहाशा
मुझ से नहीं, उन लोगों से
जो कभी दुश्मन थे हमारे और बनेंगे कभी
भगवान कसम!
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
जीवन के पहले उस प्यार की तरह
कभी फिर वापिस नहीं लौटेगा जो
हमने साथ-साथ ख़तरे उठाए
साथ-साथ युद्ध किया जीवन से, जीवन भर
और अब हम दुश्मन हैं एक-दूसरे के
दो भाइयों जैसे पुराने दोस्त
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
जैसे दिखाई दे रहा हो लहराता हुआ ध्वज
युद्ध में विजयी हुए सैनिकों को
उसके बिना मैं�मैं नहीं
मेरे बिना वह�वह नहीं
और यदि हम वास्तव में दुश्मन हैं तो अब वह समय नहीं
मुझे सपने में दिखाई देता है पुराना दोस्त
मेरी ही तरह मूर्ख है वी भी
कौन सच्चा है, कौन है दोषी
मैं इस पर बात नहीं करूँगा अभी
नए दोस्तों से क्या हो सकता है भला
बेहतर होता है पुराना दुश्मन ही
हाँ, एकबारगी दुश्मन नया हो सकता है
पर दोस्त तो चाहिए मुझे पुराना ही
बारह
नया समय
नया समय आया है
नए नाम सामने लाया है
वे भागते-दौड़ते हैं
धक्का-मुक्की करते हैं
लोगोें को बनाते हैं दुश्मन अपना
परेशानी पैदा करते हैं मन में
और उपजाते हैं गुस्सा
लेकिन वे
नायक हैं, नेता हैं
तेज़ बारिश में भीगकर भी लड़कियाँ
प्रतीक्षा करती हैं जिनकी
अँधेरे में झाँक-झाँक देखती हैं
ठीक करती हैं अपना मेकअप बार-बार
अरे, कहाँ हैं, कहाँ हैं तुम्हारे दुश्मन?
जाओ-भागो और ढूँढ़ो उन्हें
भई, सब यहाँ हैं, खड़े हैं प्रसन्न
गरदन हिला रहे हैं आसन्न
और कहाँ हैं तुम्हारी वे लड़कियाँ
भीगकर कहीं बीमार न हो जाएँ वे
ख़तरनाक है बारिश उनके लिए
आखिर उन्हें भी तो खेलाने हैं भविष्य में
अपने नाती-पोते
तुम्हारे सारे दुश्मनों को चुरा लिया
सारी हल्की पद्चापों को चुरा लिया
सारी फुसफुसाहटों को चुरा लिया
शेष बचा रह गया है सिर्फ़ अनुभव
अरे, क्या हुआ, तुम क्यों उदास थे?
बताओ ज़रा, तुम किसके पास थे
कहीं तुम ख़ुद ही तो नहीं चोर थे
चुप रहकर भी तुम मुँहजोर थे
जो कोई किशोर है
वह चोर है
और यही है जीवन का जादू
जीवन से कभी कुछ जाता नहीं है
सिर्फ़ हमेशा आता ही है
मत करो ईर्ष्या
बनो बुिद्धमान
सुखी चोरों पर खाओ तरस
चाहे कितने भी वे हों शैतान
वे खो देंगे अपना सर्वस्व
नया समय फिर आएगा
नए नामों को लाएगा
तेरह
नेकी-बदी
बदी को
याद रखने में
मत ख़राब करो समय
भीतर की आज़ादी को यह दिक करता है
बाधा डाले, मन मो बाँधे
रुक जाता है हर काम
सहजता में पड़े कठिनाई
मनुष्य रहता है परेशान
नेकी को
रखो तुम याद
मानो इसे प्रभु का प्रसाद
और मित्र-बंधुओं का आशीर्वाद
मैं कहता हूँ
तब काम में मन लगेगा
इधर-उधर कहीं नहीं डिगेगा
और जीवन यह अपना तब
निरंतर सहज गति से चलेगा
चौदह
आप मुझे प्यार करेंगे
आप मुझे प्यार करेंगे
लेकिन एमदम, तुरंत नहीं
आप मुझे प्यार करेंगे सबकी नज़र बचाकर
और प्यार का अंत नहीं
आप मुझे प्यार करेंगे काँपते शरीर से
मानो पक्षी कोई उड़ आया हो
आपकी खिड़की में धीरे से
आप मुझे प्यार करेंगे
साफ़-सुथरा रहूँ मैं या रहूँ मैला-कुचला
प्यार करेंगे आप मुझे ही
संक्रामक रोगी ही क्यों न हूँ मैं भला
आप मुझे प्यार करेंगे, जब हो जाऊँगा मशहूर
तब भी, जब घण्टों की पिटाई के बाद
ख़ूनम ख़ून हो, थकान से हो जाऊँगा चूर
आप मुझे प्यार करेंगे
जब बूढ़ा हो जाऊँगा मैं और घिस चुका होऊँगा
यहाँ तक कि जब मर रहा होऊँगा
और बुरी तरह पिस चुका होऊँगा
आप मुझे प्यार करेंगे, मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर
‘इस धरती पर हमारा विलग होना असंभव है'
अपने मुँह से मुझे प्यार का यह वायदा देकर
क्या? आप प्यार करेंगे मुझे?
आप अपने होश में तो हैं, मेरे भाई?
आप विरक्त हो उठेंगे मुझसे जल्दी ही
पर अचानक नहीं, सिर्फ़ तब ही
जब मैं आपको नहीं दूँगा दिखाई
पन्द्रह
शाप
रातें हों
वसंत की जब
तू सोचे मेरे बारे में
पर गर्मी की
रातों में भी
तू मेरे बारे में ही सोचे
रातें हों
पतझड़ की जब
तू मुझको याद करे
पर सर्दी की
रातों में भी
सिर्फ़ मुझे ही प्यार करे
हालाँकि
मैं नहीं हूँ वहाँ
तेरे पास
दूसरे देश में हूँ
नहीं हूँ तेरे साथ
तू एकांत में अकेले
ठंडे बिस्तर पर अपने
रात के अँधेरे में
लेटी हो पीठ के बल
जैसे सागर में, कहीं गहरे में
फिर सौंप दे तू ख़ुद को
मेरी स्मृति की लहर को
भूल जा आस-पास सब
अपने पूरे शहर को
मैं नहीं चाहता
याद करे तू
मुझे कभी भी दिन में
दिन में
सब गड़बड़ होता है
एक पल में, एक छिन में
सिगरेट पीकर
धुआँ छोड़े
हल्के सुरूर में हो जब
याद करे तू
दूसरी बातें
मुझ से दूर रहें तब
दिन में तू
जो चाहे सोचे
और चाहे जिस बारे में
पर रातों को
सोचे तू बस
मेरे, सिर्फ़ मेरे ही बारे में
रेल की सीटी
बजती हो
सब आवाज़ों के पार
बादल
गरज रहे हों चाहे
तेरे घर के बाहर
तेज़ हवा हो
आँधी-जैसी
उस झंझावात के पार
मैं चाहूँ कि
उस रात भी
सिर्फ़ मुझे करे तू प्यार
मुझे याद कर
सुख पाए तू
स्मृति से मेरी
मन बहलाए तू
नींद में हो तू
या उनींदी
मेरे वियोग में
मर जाए तू
सोलह
आगमन वसंत का
धूप खिली थी
और रिमझिम वर्षा
छत पर ढोलक-सी बज रही थी लगातार
सूर्य ने फैला रखी थीं बाँहें अपनी
वह जीवन को आलिंगन में भर
कर रहा था प्यार
नव-अरुण की
ऊष्मा से
हिम सब पिघल गया था
जमा हुआ
जीवन सारा तब
जल में बदल गया था
वसंत कहार बन
बहँगी लेकर
हिलता-डुलता आया ऐसे
दो बाल्टियों में
भर लाया हो
दो कंपित सूरज जैसे
सत्रह
वह सुबह
ऊषा
अभी मेपल वृक्ष के
हाथों में थी
सो रही थी यूँ जैसे कोई
नन्हा शिशु हो
और चंद्रमा झलक रहा था
इतना नाज़्ाुक
मेघों के बीच ग़्ाुम हो जाने का
इच्छुक वो
गर्मी की
उस सुबह को पक्षी
घंटी जैसे घनघना रहे थे
नए उमगे पत्तों पर धूप
बिछल रही थी
और बेड़े पर पड़े हुए थे
मछली के ढेर
शुभ्र, सुनहरे कुंदन-से
वे चमचमा रहे थे
अट्ठारह
ओस की बूँद है
व्यक्ति
और जनता बायकाल झील
मुझे तोड़ मत देना, ऐ रूस!
अपनी साइबेरियाई चट्टानों पर
तुमसे यही अपील
उन्नीस
गिरते हैं
कंधों पर
पतझड़ के पत्ते
झड़ती हुई सच्चाइयों के साथ
और शायद कभी
उड़ जाऊँ मैं भी
थमा हाथों में इनके अपना हाथ
बीस
युद्ध में
रोना नहीं चाहिए
चाहे युद्ध हो वह कितना बड़ा
सूखी रोटी
भीगने पर
मुलायम हो जाती है जैसे
कड़ी धरती भी
शहीदों के लिए
नर्म हो जाती है वैसे
इक्कीस
मैं
तुमसे क्या कहूँ
ऐ रूस!
तेरे मैदान भी
उतने ही सुंदर हैं
जितने सुंदर वन हैं तेरे
उनकी आवाज़ में
अपनी आवाज़ मिलाने दे मुझे
मैं क्या
चुप रह जाऊँ
ऐ रूस!
बहुत ज़्यादा
सलीबें हैं
तेरे कब्रिस्तानों में
और ऐसी भी कब्रें बहुत
जिन पर नहीं सलीब
मैं कैसे
मदद करूँ तेरी
ऐ रूस!
वहाँ
कवि क्या मदद करेगा
जहाँ सत्ता
प्रायः कवियों को
देश-निकाला दे देती है
रूस�मेरी देवी की छवि है
तेरी रोटी�मेरी हवि है
तेरा दुख�मेरा दुर्भाग्य
तेरा भाग्य�मेरा भी भाग्य
बाईस
प्रेम में बड़ी हो तुम
साहसपूर्वक खड़ी हो तुम
और मैं भीरू बड़ा हूँ
कायर-सा पीछे खड़ा हूँ
कुछ बुरा तुम्हारा नहीं करूँगा
पर भला भी करते डरूँगा
मुझे हमेशा लगता है यह
घने जंगल में भी तुम
ढूँढ़ लोगी मुझे सहज ही
मैं जब हो जाऊँगा गुम
जिस जगह हम हैं खड़े
यहाँ उगे हैं फूल घने
मैं नहीं जानता क्या नाम है इनका
कौन से हैं ये फूल
अब काम नहीं आते कौशल
लगे है ऐसा, सब गया मैं भूल
मैं भूल गया
क्या करूँ और कैसे?
हैं कितने पुरुष और मुझ जैसे?
तुम थक गई हो
हाथ माँग रही हो मेरा
पास रहना चाहती हो
साथ माँग रही हो मेरा
और अब तुम मेरे हाथों में हो
गुम अपनी ही बातों में हो�
“देखो, देखो जरा!
कितना नीला है आसमान
सुनो, सुनो तो!
जंगल में कैसे पक्षी करते हैं गान...
अरे, अरे भई! यह क्या बात हुई
चलो उठाओ
उठाओ मुझे फिर गोद में
चलो, ले चलो मुझे उठाकर
हाँ, यह सौगात हुई...”
पर मेरे सामने समस्या है एक
कहाँ ले जाऊँ तुम्हें उठाकर
सहेली मेरी नेक
तेईस
मैंने तुम्हें बहुत समझाया
बहुत मनाया और बहलाया
बहुत देर कंधे सहलाए
पर रोती रहीं,
रोती ही रहीं तुम, हाय!
लड़ती रहीं मुझसे�
मैं तुमसे बात नहीं करना चाहती...
कहती रहीं मुझसे�
मैं तुम्हें अब प्यार नहीं करना चाहती...
और यह कहकर भागीं तुम बाहर
बाहर बारिश थी, तेज़ हवा थी
पर तुम्हारी ज़िद्द की नहीं कोई दवा थी
मैं भागा पीछे साथ तुम्हारे
खुले छोड़ सब घर के द्वारे
मैं कहता रहा�
रुक जाओ, रुक जाओ ज़रा
पर तुम्हारे मन में तब गुस्सा था बड़ा
काली छतरी खोल लगा दी
मैंने तुम्हारे सिर पर
बुझी आँखों से देखा तुमने मुझे
तब थोड़ा सिहिर कर
फिर सिहरन-सी तारी हो गई
तुम्हारे पूरे तन पर
बेहोशी-सी लदी हुई थी
ज्यों तुम्हारे मन पर
नहीं बची थी पास तुम्हारे
कोमल, नाज़्ाुक वह काया
ऐसा लगता था शेष बची है
सिर्फ़ उसकी हल्की-सी छाया
चारों तरफ़ शोर कर रही थीं
वर्षा की बौछारें
मानो कहती हों तू है दोषी
कर मेरी तरफ़ इशारे�
हम क्रूर हैं, हम कठोर हैं
हम हैं बेरहम
हमें इस सबकी सजा मिलेगी
अहम से अहम
पर सभी क्रूर हैं
सभी कठोर हैं
चाहे अपने घर की छत हो
या घर की दीवार
बड़े नगर की अपनी दुनिया
अपना है संसार
दूरदर्शन के एंटेना से फैले
मानव लाखों-हज़ार
सभी सलीब पर चढ़े हुए हैं
ईसा मसीह बनकर, यार!
चौबीस
(बेला अख्मादुलिना के लिए)
मेरे साथ हो यह रहा है�
मेरी पुरानी दोस्त
अब नहीं आती मेरे पास
त्यौहार की इस गहमगहमी में
लोग बहुत आते हैं
पर वह नहीं चाहती मेरा साथ
घूर रही है वह
किन्हीं औरों के साथ
हालाँकि समझ रही है मेरी भी वह बात
बताया नहीं जा सकता
झगड़ा ऐसा है हमारा
कष्ट में हैं हम दोनों
पर दोनों का चढ़ा हुआ पारा
मेरे साथ हो यह रहा है�
अब आती है
दोस्त दूसरी प्रतिदिन मेरे पास
धीमे से मेरे कंधों पर रखती अपना हाथ
करती वह सब कि भूल जाऊँ मैं
पुरानी दोस्त का साथ
मुझे चुराए, दिल बहलाए
जमा रही विश्वास
हे भगवान! मुझे बताओ
क्या हो रहा है यह?
दोस्त पुरानी
अब किसके कंधों पर रखेगी अपना हाथ
कहाँ जाएगी वह
शायद करे मनमानी
बदला लेने के लिए
चुराएगी किसी दूसरे का साथ
पता नहीं क्या होगा, भाई
मेरे साथ अभी रहेगी जारी उसकी लड़ाई
धीरे-धीरे भूल जाएगी
पूरी तरह वह मुझको
और साथ में ले लेगी फिर
न जाने वह किसको
कितनी बार ऐसा होता है
बन जाते हैं बंध
मूर्खतावश पैदा हो जाते हैं
अनावश्यक संबंध
शत्रु भी बनते हैं ऐसे
बनते हैं मित्र अभी भी
होती नहीं ज़रूरत जिनकी
जीवन में कभी भी
इस सबसे मैं हो गया हूँ
बहुत अधिक परेशान
बन गया हूँ जैसे मैं भी आदमी से शैतान
अब आए कोई ऐसा व्यक्ति
जो छेड़े मेरे मन को
ले जाए वह मुझे साथ वहाँ
जहाँ भूल जाऊँ उस क्षण को
चाहूँ पाना ऐसी दोस्त
जहाँ नहीं फिसलन हो
साथ जिसके रहूँ सदा मैं
उससे आत्मिक मिलन हो
पच्चीस
माँएँ जा रही हैं
हमारी माताएँ
जा रही हैं पास से हमारे
चुपचाप, दबे पाँव
वे गुज़रती जा रही हैं
और हम
भरपेट भोजन कर
गहन तंद्रा में पड़े हैं
हमें नहीं है कोई ख़्याल
बड़ा भयानक है यह काल
नहीं, अचानक नहीं जातीं
माँएँ हमारे पास से
एकाएक नहीं छोड़तीं वे देह
हमें लगता है सिर्फ़ ऐसा
जब अचानक
हम नहीं पाते उनका नेह
धीरे-धीरे
छिजती जाती हैं वे
धीरे-धीरे छिलती जाती हैं
हल्के क़दमों से बढ़ती हैं
सीढ़ियाँ उम्र की चढ़ती हैं
कभी-कभी
ऐसा होता है अचानक
बेचैन हो जाते हैं हम किसी वर्ष
मनाते हैं उनका जन्मदिन
हल्ला-गुल्ला करते हैं सहर्ष
लेकिन
यह होता है हमारा
बड़ी देर से किया गया हवन
हम बचाव नहीं कर सकते इससे
अपनी अंतरात्मा का
इससे नहीं बच पाता उनका जीवन
वे सब छोड़
चली जाती हैं
हमसे मुँह मोड़
चली जाती हैं
हम जब तक उनकी परवाह करें
गहरी तंद्रा से जगें
हाथ हमारे उठें अचानक
खुदा की दुआ में
पर जैसे वे टकराते हैं
ऊपर कहीं हवा में
पैदा हो जाती है वहाँ शीशे की दीवार
देर हो गई बहुत हमें, भाई
अब क्या करें विचार
काल भयानक निकट आ गया
महाकाल हमें भरमा गया
आँसू भरी आँखों से अब
हम देख रहे हैं सारे
कैसे चुपचाप, एक-एक कर
माँएँ स्वर्ग सिधारें
छब्बीस
रूस की लड़कियाँ
“खेत से
गुज़र रही थी लड़की
गोद में
एक बच्चा लिये थी लड़की”
यह गीत पुराना
जैसे झींगुर कोई गा रहा था
जैसे जलती हुई मोमबत्ती का
पिघला मोम कुर-कुरा रहा था
ओ सो जा रे सो जा, सो जा तू...
जिसने खुद को पालने में यूँ नहीं झुलाया
जिसने खुद को सहलाने और मसलने दिया
खेतों में और झाड़ियों में,
लोरी गा कर नहीं सुलाया
तैयार करें वे अपनी बाँहें
और गोद
किसी किलकारी को
पैदा होंगे नन्हे बच्चे
हर ऐसी ही नारी को
हर गीत के होते हैं
अपने ही कारण रहस्यमय
हर फूल के होती है योनि
और पराग केसर का समय
ऐसा लगता है
खेत उन दिनों पड़ा था नंगा
और लड़की थी वह
अपने नन्हे बच्चे के संग
पर क्या हुआ फिर बाद में इसके
भला कहाँ पढ़ेंगे, कहाँ सुनेंगे हम
कहानी वह निस्संग
और
यह गीत ख़राब-सा
कहवाघरों की शान बना कब?
क्या शासन था तब ज़ार निकोलाई का?
या बोल्शेविकों का, हातिमताई का?
लेकिन पता नहीं क्यों होता है ऐसा
चाहे कोई भी समय हो
भूख, अशांति और लड़ाई
बच्चों को लिये अपनी गोद में घूमें
जैसे उन्हें नहीं कोई भय हो
लड़की वह
गुज़र रही थी रोती
बहकी-बहकी चाल थी उसकी
और गोद में नन्हीं बच्ची
नंगधड़ंग थी, उम्र की कच्ची
उखड़ी-उखड़ी थीं साँसें उसकी
जैसे पड़ी हुई थी मार के मुस्की
मुँह फाड़कर रोई ऐसे
चीखी-चिल्लाई हो जैसे
क्या फ़र्क़ पड़ता है वैसे
यह क्रांति से पहले हुआ था
या उसके बाद किसी दिन
उसे अपशुगनों ने छुआ था
इन क्रांतियों का
मतलब क्या है?
उनके रक्तिम-र्चिीों से भी
भला क्या हुआ है?
सिर्फ़ रक्त बहे और आँसू बहे
जीवन ने कितने कष्ट सहे
उनसे पहले, उनके दौरान,
उनके बाद भी
जीवन नहीं हुआ आसान
हो सकता है हुआ हो ऐसा
क्या हूँ मैं, कैसा-कैसा
सूख गए हों आँसू माँ के
मृत चेहरे पर तेरे
तेरे कोमल होंठों पर वह
अपने सूखे होंठ फेरे
ले गई हो परलोक में
मृत्यु तुझको घेरे
हो सकता है�
तू बड़ी हो गई हो
मूरत प्रेम की खड़ी हो गई हो
तब मृत्यु ने आ घेरा हो तुझे
इस तरह से हेरा हो तुझे
पलकों के नीचे तेरी जो
दो बड़े नीले फूल लिखे थे
जैसे अब जा धूल मिले थे
हो सकता है�
तू जान गई हो
बड़ी नहीं होगी, पहचान गई हो
भूख से मर जाएगी तू
इससे भी अनजान नहीं हो
या तुझे
खा गए हों रिश्तेदार
भेड़िए भूख से बेज़ार
वोल्गा के तटवर्ती इलाकों में कहीं
तू छोड़ गई हो यह संसार
हो सकता है�
तू पड़ी मिली हो
किसी खोह में अँधेरी
और तुझे दफ़ना दिया गया
जब पहचान नहीं हो पाई तेरी
हो सकता है�
जीवन में तूने
झेले हों असंख्य अत्याचार
कहीं खेतों के बीच पटककर
तेरे साथ भी किया हो किसी ने
घृणित बेरहम बलात्कार
हो सकता है�
बड़ी होकर भी
रोई हो तू जीवन भर
साइबेरिया के ठंडे, बर्फीले तिमिर में
फिर मारी गई हो किसी यंत्रणा शिविर में
बच्ची वह
रोई थी ऐसे
चेहरा उसका ऐंठ गया था
चेहरे पर पीड़ा थी गहरी
लाल झंडा वहाँ जैसे पैठ गया था
क्या होगा
क्रांति से भला?
इस भयानक मार-काट के बाद
फिर से असहनीय रुदन फैला है
और रूस है आज़ाद
रूसी खेतों से
बेड़ी पहने
लड़कियाँ गुज़र रही हैं फिर से
उनके नन्हे बच्चों की चीखें
उमड़ रही हैं मेरे सिर पे
सत्ताइस
आभार
अपने पुत्र की चारपाई का
कंबल थोड़ा उठाकर
उसने कहा�सो गया है
और बुझा दी बत्ती छत पर लगी
फिर गाउन उसका गिर गया
धीमे से कुर्सी पर
हम दोनों ने
कोई बात नहीं की प्रेम की
हमने पूछताछ नहीं की
कुशल क्षेम की
वह फुसफुसाई
बोली थोड़ा-सा तुतलाकर
‘र' ध्वनि को
अपने दाँतों के बीच फँसाकर
क्या तुम्हें पता है
मैं भूल चुकी थी जीवन अपना
अब जैसे यह सब लगता है सपना
मैं ज्यों पुरुष-सी हो गई थी
अपने घाघरे में
जुती हुई घोड़ी थी पाखरे में
और आज अचानक
फिर से मैं स्त्री हो गई
उसके प्रति
मुझे व्यक्त करना था आभार
यह जैसे मेरा )ण था
उसके असुरक्षित तन में
मैंने ढूँढ़ा था प्यार
पर किसी विजयी भेड़िए की तरह मैं
अब पुरुष पहले से भिन्न था
लेकिन आभारी हो रही थी वह
फुसफुसा रही थी मुझ से
और रो रही थी वह
मेरे लिए शर्म से गड़ जाने को
यह काफ़ी था
मैं चाहता था उसे घेरना
अपनी कविता की बाड़ से
वह कभी घबराए
पाली पड़ जाए
तो लाल कभी हो प्यार से
वह स्त्री है
फिर भी मेरे प्रति व्यक्त करे आभार
मैं पुरुष हूँ
अतः उससे मेरा कोमल हो व्यवहार
उसके प्रति अब जन्म गया था मेरे मन में प्यार
आिख़र दुनिया में कैसे हुआ यह
कि भूल गए हम
स्त्री का अर्थ पुराना
उसे फेंक दिया
इतना पीछे, इतना नीचे...
कि पुरुष के बराबर है वह
यह माना
ज़रा देखो समाज में
जीवन अब कितना बदल गया है
शताब्दियों से चली आ रही
परंपरा को भी वह छल गया है
अब पुरुष बन गए
रूप बदल कर स्त्री जैसे
और स्त्री ज्यों पुरुष हो गई
कुछ लगे ऐसे
हे भगवान!
कितने झुक गए हैं स्त्री के कंधे
मेरी उँगलियाँ धँस जाती हैं
शरीर में उसके भूखे, नंगे
और आँखें उस अनजाने लिंग की
चमक उठीं
वह स्त्री है अंततः
यह जानकर धमक उठीं
फिर उन अधमुंदी आँखों में
कोहरा-सा छाया
सुख़र् अलाव की तेज़ अगन का
भभका आया
हे राम मेरे! औरत को चाहिए
कितना कम
बस इतना ही
कि उसे औरत माने हम
अट्ठाइस
स्त्री का साथ
हेमशा
मिल जाएगा
किसी स्त्री का हाथ
जो अत्यंत सहजता व सरलता के साथ
प्रेम करेगा तुझ से
और स्नेह के साथ तुझे सहलाएगा
सांत्वना देगा और तेरा मन बहलाएगा
हमेशा
मिल जाएगा
किसी स्त्री का कंधा
जिसमें मुँह छिपाकर
तू गरम-गरम साँस ले
मन अशांत हो जब तेरा
नींद खड़ी हो दूर कहीं जब
सिर टिका उस कंधे पर
गहरी-गहरी उसाँस ले
हमेशा
मिल जाएँगी
किसी स्त्री की आँखें
जो साक्षी होंगी
तड़प की तेरी
दुःख, पीड़ा, कष्ट
सब दूर करेंगी
जब मौसम होगा बेहद सर्द
लेकिन ऐसा
एक स्त्री का हाथ
जो रहता सदा मेरे साथ
विशेष रूप से मुझे प्रिय है
जब वेदना मुझको घेरे
मेरे माथे को सहलाए
मेरा भाग्य वह, मेरा हिय है
लेकिन ऐसा
एक स्त्री का कंधा
जो माने मुझे प्रभु का बंदा
जिस पर रोऊँ टिकाकर सिर
जो दे सहारा मुझे फिर फिर
और ऐसी
उस स्त्री की आँखें
जो मुझे देख फैलाए पाँखें
आर्द्र प्रेम में मुझे समो लें
मेरे हृदय के भीतर झाँकें
जब-जब मेरा मन उदास हो
मेरी व्यथा का उन्हें भास हो
पर मैं रहता रहा सदा ही
स्वयं अपने प्रतिकूल
अपने लिए ही बोता रहा
अपने हाथों शूल
हाथ मुझे वह कम लगता
कंधा भी कभी बेदम लगता
उन आँखों में ग़म लगता
कितनी ही बार किया मैंने
उन पर यह आघात
छोड़ उन्हें मैं आया घर पर
कहीं और बिताई रात
और जब समय प्रतिशोध का आया
मुझे सज़ा दे मेरी माया
धोखेबाज़ कह
बारिश पीटे मुझे लगातार
विश्वासघाती कह
टहनियाँ करें मेरे चेहरे पर वार
सँघाती है
गूँजे इस वन में यह स्वर बार-बार
मैं उदास हो जाता हूँ
क्षमा स्वयं को नहीं कर पाता हूँ
सिर्फ़ वही विलक्षण हाथ
आएगा जब मेरे पास
और थका कंधा वही
छिपाएगा अपने भीतर कहीं
और वे हसीन, उत्सुक आँखें
घेरेंगी मुझे फैला पाँखें
क्षमा तभी मैं पाऊँगा
नहीं कहीं फिर जाऊँगा
उनतीस
स्तालिन के वारिस
संगमरमर ख़ामोश था
निःशब्द खड़े थे पहरेदार
चुपचाप चमक रहा था शीशा
सन्नाटा बुन रही थी बयार
और ताबूत से उठ रही थी भाप
मानो वह ले रहा हो साँस
जब उसे निकाला गया बाहर
समाधि के दरवाज़ों के पार
वह धीमे-धीमे तैर रहा था जैसे
कोने उसके छू रहे थे चौखटों को ऐसे
सिर्फ़ वह ही था जैसे
उस चुप्पी का जनक
लेकिन चुप्पी थी वह बड़ी भयानक
दिखाई दे रही थीं उस ताबूत में कई फाँकें
ऐसा लगता था उनसे व्यक्ति वह झाँके
जो उदास हो मुटि्ठयाँ अपनी बंद करे था
चुपचाप जो एक मृतक का वेष धरे था
वह याद कर लेना चाहता था उन सभी को
उसे समाधि से बाहर कर रहे थे जो
उनमें कुछ सैनिक थे रिज़ान के
शेष युवा नवसैनिक थे कूर्स्व प्रांत के
उन्हें याद कर लेना चाहता था वह
बाद में ताकि
उठ खड़ा हो धरती से वह, समेट के
अपनी ताक़त बाक़ी
फिर उन मूर्खों तक जा पहुँचे, जिन्होंने यह खता की
वह क्षण भर को ठिठक गया था
सिगरेट जला ली थी उसने
कुछ सोच में पड़ गया था
और अब
अनुरोध करता हूँ मैं अपनी सरकार से
कि वह पहरेदारों की संख्या दोगुनी कर दे
दोगुनी नहीं, बल्कि तिगुनी कर दे
ताकि स्तालिन न उठ खड़ा हो
अपने फ़ौलादी इतिहास से
हमने बुआई की थी सच्चे मन से
सच्चे मन से हमने धातु को ढाला था
सच्चे मन से हमने क़दम बढ़ाए थे
सच्चे मन से हमने यह देश संभाला था
वह डरता था हमसे
वह, जो उद्देश्य में रखता था विश्वास
पर साधन उद्देश्य के अनुकूल हों
यह नहीं था उसे स्वीकार
वह दूरदर्शी था, युद्ध के नियमों का तज़्ाुर्बेकार
चला गया वह
छोड़ गया वह इस धरती पर
ढेरों अपने वारिस
फैल गए हैं कामरेड बन वे सारे ‘तवारिश'�
मुझे लगे यह
कि ताबूत में उसके फ़ोन लगा है
आदेश दे रहा है जिस पर वह
स्तालिन पुनः जगा है
कहाँ-कहाँ तक पहुँच रहे हैं इस फ़ोन के तार
नहीं, स्तालिन मरा नहीं है अभी
वह मानता है
ग़लती मौत की वह लेगा सुधार
हमने स्तालिन को बाहर निकाला समाधि के भीतर से
पर क्या निकाल पाएँगे हम उसे
उसके वारिसों के घर से
कुछ वारिस उसके पदच्युत हो गए
पर अब भी फूलों को काट रहे हैं
� कामरेड
पर पदत्याग सामयिक है
मन-ही-मन यह मान रहे हैं
कुछ वारिस उसके मंच पर चढ़कर
गाली देते स्तालिन के भय को
फिर रातों को याद कर रोते पुराने उस समय को
स्तालिन के वारिसों को हो रहे हैं हृदयघात
यह समय उन्हें नहीं भाता, लगता है आघात
क्यों ख़ाली हैं यातना-शिविर
क्यों हो गई नई चाल
कविता के श्रोताओं से क्यों भरे हुए हैं हॉल
मातृभूमि ने मेरी मुझे दिया है यह आदेश
छोड़ गुस्सा अपना शांति से आऊँ पेश
पर मैं कैसे भूल जाऊँ, ऐ मेरे प्रिय देश
जब तक जीवित हैं इस धरती पर स्तालिन के वारिस
तब तक अपनी उस समाधि में स्तालिन भी है शेष
तीस
हिमपात
आकाश से श्वेत हिमकण
गिर रहे हैं धरती पर
हो रहा है हिमपात
मैं चाहूँ यह
जीवन बना रहे पृथ्वी पर
हो न कोई आघात
आत्मा
र्चिीरहित-सी
खो गई है किसी की
बर्फ़ ऐसे गिर रही है
जैसे चक्की में पिसी-सी
श्वेत हिमपात
के समय ही कभी शायद
इस दुनिया से
चला जाऊँगा मैं भी
दुःख नहीं
मुझे मृत्यु का
चाहूँ नहीं मैं चिरजीवन
चाहूँ नहीं मैं जय भी
चमत्कार
होता है कोई
मेरा विश्वास नहीं है
मैं हिम बनूँगा
या सितारा
कोई आसार नहीं है
पापी हूँ ज़रा भी
मैं नहीं सोचता ऐसा
जीवन को
प्यार किया है
जिया उसे कैसा-कैसा
और रहा सदा वह मेरा
सीधा, सरल व सादा
पर मैंने
रूस को पाया
बेहतर जीवन से ज़्यादा
रूस को
प्यार किया है मैंने
अपना हृदय
उसे दिया है मैंने
रूस छिपा है
मेरे रक्त की हर बूँद के पीछे
चाहे तैरूँ
जीवन-नदिया में
या दबा रहूँ बर्फ़ के नीचे
जब कभी
मुसीबत आई मुझ पर
मैं ज़रा नहीं घबराया
क्योंकि रहा
हमेशा मुझ पर
मेरे रूस का साया
मेरे मन में जीवित है आशा
इस पूरी चिंता के साथ
जब आएगी आफ़त
मेरे रूस पर
मैं रहूँगा उसके पास
मदद करूँगा
ताक़तभर उसकी
चाहे ज़रा न हो आभास
मैं चाहूँ कि
रूस मेरा
मुझे भूल भले ही जाए
जब वो हो अपनी धुन में
और चाहूँ कि
रहे सुरक्षित वह
सदा-सदा ही
पृथ्वी के इस जीवन में
मैं चाहूँ कि
श्वेत हिमपात
पहले की तरह
होता रहे सदा ही
और
पूश्किन ने देखी थी जैसी
रहे रूस की अदा वही
श्वेत हिमकण
गिर रहे हैं
आकाश से धरती पर
श्वेत इतने कि क्या कहूँ
र्चिी मेरे हों
या अजनबी
मिट जाएँ सब जहाँ-तहूँ
अमर नहीं
हो सकता मैं
पर मुझे आशा है
जीवित रहूँगा
मैं भी तब तक
जब तक जीवित रूसी भाषा है
इक्तीस
लाल झंडे का विदा-गीत
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
जर्मन रैख़स्टॉग� पर तुमको लहराया
जब दौर हमारी विजय का आया
तुम थे आशा, उम्मीद हमारी
हम पर जीत का गर्व था तारी
हालाँकि वह भी था धोखा
उसका अपना लेखा-जोखा
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
तुम भाई थे, तुम दुश्मन थे
कभी शत्रु तो कभी हमदम थे
विश्व-युद्ध में हमारी भाषा थे
सारे यूरोप की आशा थे
लेकिन लाल-मौत बन तुमने
घेर लिये थे सारे सपने
देश में जितने गुलाब थे
फेंक दिए गए थे गुलाग�� में
फटी-पुरानी कमीज़ों से ढके वे
कारागारों में ठुँसे हुए थे
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
आओ उन सबका शोक मना लें
जो जन तुमने कब्रों में डाले
जिनको तुमने धोखा दिया भारी
� जर्मन सरकार का मुख्यालय, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान
�� स्तालिन के सत्ताकाल में स्थापित यातना शिविर
जिबह किए असंख्य नर-नारी
चलो तुम्हारा भी शोक मनाएँ
तुम भी तो हो धोखा खाए
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
तुमने नहीं दिया हमें कोई सुख
तुम्हारे साथ अया बस दुख ही दुख
तुम रक्त सने थे, हत्यारे थे
तुम यम बने थे, हरकारे थे
अब खुरंट बने तुम, छील रहे हम
तुमसे बिछड़ने का नहीं कोई ग़म
सूखी हैं आँखें, अश्रु नहीं हैं
तुम जैसा कोई पशु नहीं है
जनता ने तुमसे आशाएँ जोड़ीं
पर तुमने उसकी आँखें फोड़ीं
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
अब है पहला क़दम हमारा
आज़ादी की ओर
अब हम मनुष्य बने हैं फिर से,
न डंगर, न ढोर
हमने बना लिये हैं अब
अपने-अपने झंडे
खड़े हुए हैं अब हम ख़ुद,
लिये हाथ में डंडे
हमें कुचल न दें फिर से वे,
जिनसे है संघर्ष
अब अपनी जान हाथ में लेकर,
खड़े हैं हम सहर्ष
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
तुम हो अब रूसी झंडे का
एक हिस्सा विशेष
रूसी तिरंगे में शामिल है
तुम्हारा भी अवशेष
श्वेत-शुभ्र रंग है उसमें,
गहरे नीले रंग के साथ में
संभव है, लाल रंग तेरा अब,
रक्त धो दे अपने माथ से
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
अपने निश्छल बचपन में हम
तुझे ले खेला करते थे
हम लाल सैनिक� बनते थे
श्वेत-सेना�� वाले हमसे डरते थे
हम पैदा हुए थे उस देश में
जो शेष नहीं अब किसी वेष में
लेकिन अब भी है याद हमें
हम जीए तब किस परिवेश में
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
अब हमारी वह लाल पताका
इज़माइलोव बाज़ार1 में पड़ी हुई है
एक-एक डालर में बिकती है वह
पर बिक नहीं पाती, अड़ी हुई है
विन्टर पैलेस2 नहीं जीता था मैंने
रैख़स्टॉग पर हमला भी नहीं किया
कभी कम्युनिस्ट नहीं रहा जीवन में
कम्युनिस्टों का साथ भी नहीं दिया
पर लाल झंडे का देख बुरा हाल
मैं रो-रोकर होता बेहाल
विदा लाल झंडे हमारे
तुम थे हमको कितने प्यारे
� 1917 की अक्तूबर क्रांति के बाद कम्युनिस्टों की समर्थक सेना
�� 1917 के बाद गृहयुद्ध में कम्युनिस्ट विरोधी सेना
1. मास्को स्थित पुरानी वस्तुओं का बाज़ार
2. ज़ार का महल जो अब ‘हेरमिताज़' नामक कलाड्डति संग्रहालय है।
बत्तीस
जैसे-जैसे
जैसे-जैसे दिन बीतेंगे, संभव है
मैं अकेला होता जाऊँगा
जैसे-जैसे वर्ष गुज़रेंगे, संभव है
मैं शेष नहीं हूँ, समझ जाऊँगा
जैसे-जैसे बदलेंगी शताब्दियाँ, संभव है
मैं लोगों की स्मृति से ग़्ाुम हो जाऊँगा
पर हो न ऐसा कि दिन बीतें जैसे-जैसे
मेरे जीवन में शर्म बढ़े वैसे-वैसे
पर हो न ऐसा कि वर्ष गुज़रें जैसे-जैसे
ताश का ग़्ाुलाम बन जाएँ हम वैसे-वैसे
पर हो न ऐसा कि शताब्दियाँ बदलें जैसे-जैसे
हमारी कब्रों पर थूकें लोग वैसे-वैसे
तैंतीस
भगवान करे...!!!
भगवान करे, अंधों को आँखें मिल जाएँ
और कुबड़ों की कमर भी सीधी हो जाए
भगवान करे, ईसा बनूँ मैं थोड़ा-सा
पर सूली पर चढ़ना मुझे ज़रा न भाए
भगवान करे, सत्ता के चक्कर में नहीं पड़ूँ
और दिखावे के लिए हीरो भी मैं नहीं बनूँ
ख़ूब धनवान बनूँ, पर चोरी नहीं करूँ
क्या संभव है यह कि ख़ुद से भी नहीं डरूँ?
भगवान करे, बनूँ मैं ऐसी मीठी रोटी
जिसे न खा पाए गुट कोई और न गोटी
बनूँ न मैं बलि का बकरा कभी, न कंसाई
न मालिक बनूँ, न भिखारी कभी, मेरे सांई
भगवान करे, जीवन में जब भी बदलाव हो
जब हो कोई लड़ाई, मेरे न कोई घाव हो
भगवान करे, मेरा कई देशों से लगाव हो
अपना देश न छोड़ूँ, न ऐसा कोई दबाव हो
भगवान करे, प्यार करे मुझे मेरा देश
ठोकर मारकर फेंक न दे मुझे कहीं विदेश
भगवान करे, पत्नी भी मेरी प्यार करे तब
हो जाऊँ जब भिखारी और बदले मेरा वेष
भगवान करे, झूठों का मुँह बंद हो जाए
बच्चे की चीखों में प्रभु का स्वर दे सुनाई
चाहे रूप पुरुष का भर लें या स्त्री का
भगवान करे, मनुष्य में ईसा मुझे दें दिखाई
सलीब नहीं उसका प्रतीक हम पहने हैं गले में
और झुकते हैं ऐसे जैसे झुके कोई व्यक्ति ग़रीब
भगवान करे, हम नहीं नकारें सब कुछ को
विश्वास करें और ख़ुदा रहे हम सब के क़रीब
भगवान करे, सब कुछ, सब कुछ, सब कुछ
सबको मिले धरती पर ताकि न कोई नाराज़ हो
भगवान करे, सब कुछ मिले हमें उतना-उतना
जितना पाकर सिर नहीं हमारा शर्मसार हो
चौंतीस
बटुआ
मैं बटुआ हूँ
भरी दोपहरी
पड़ा हूँ सड़क पर अकेला
क्या आप लोगों को दिखाई नहीं देता मैं
आपके पैर ठोकर मारते हैं मुझे
और गुज़र जाते हैं मेरे निकट से
आप बेवकूफ़ हैं क्या
क्या आँखें नहीं हैं आपके
बटन हैं
आपके चलने से जो धूल उड़ रही है
आपकी नज़रों से बचा रही है मुझे
जैसे ही दिखाई पड़ूँगा मैं
वह सब कुछ आपका होगा
जो मेरे भीतर छिपा है
मेरे मालिक को ढूँढ़ने की ज़रूरत नहीं
मैंने स्वयं ही गिराया है ख़ुद को धरती पर
यह मत सोचिए कि मज़ाक है यह
जैसे ही झुकेंगे आप मुझे उठाने
कोई धागा खींच लेगा
और हँसेंगे बच्चे आपके ऊपर
कि देखो, कितना मूर्ख बनाया
आप डरें नहीं
कि स्त्रियाँ खड़ी होंगी खिड़की पर
आपको झुकते देख मुस्कराएँगी वे
और आपको शर्म से लाल होना पड़ेगा
नहीं, मैं धोखा नहीं हूँ अँधेरे का
वास्तविकता हूँ
ड्डपया रुकिए एक क्षण को
उठाइए मुझे
और देखिए कि मेरे भीतर क्या है
मैं नाराज़ हूँ आपसे
और डरता हूँ सिर्फ़ इस बात से
कि अभी, बिल्कुल अभी
इस भरी दोपहरी में
मुझे देख लेगा कोई अज़नबी
वह व्यक्ति नहीं, जिसकी मुझे प्रतीक्षा है
बल्कि वह, जिसे मेरी ज़रूरत नहीं
वह झुकेगा और मुझे उठा लेगा
पैंतीस
थोड़ा-सा
थोड़ा-सा मेरा नसीब
थोड़ा-सा मेरा सलीब
लटका थोड़ा-सा गले में
थोड़ा-सा मन के क़रीब
थोड़ा-सा मर जा तू
थोड़ा-सा फिर जीवित हो
फिर थोड़ा-सा मर जा तू
जैसे सलब पर कीलित हो
थोड़ा-सा तू प्यार करे
थोड़ा-सा दुलार करे
थोड़ा-सा तू भूल जा उसको
फिर थोड़ा-सा लाड़ करे
थोड़ा-सा नाराज़ हो पहले
फिर थोड़ा-सी ग़लती मान
पहले थोड़ा दूर हो उससे
फिर थोड़ी-सी कर पहचान
थोड़ा-सा तू रोकर देख
दूर नहीं फिर प्रेम का सेंक
छिलके-सा उतरेगा फिर
तेरे होंठों से संलेप
थोड़ा-सा अनुरागी हो तू
थोड़ा-सा विरागी हो तू
इस राग-विराग के संग ही
जीवन का सहभागी हो तू
छत्तीस
प्राग में नया वर्ष
भूस्खलन हुआ हो अचानक जैसे
तू मुझे चूम रही थी ऐसे
रात भी वह प्राग में नए वर्ष की
सीमा नहीं थी कोई उस दिन मेरे हर्ष की
तेरी बेल्ट का बक्कल चमक रहा था वैसे
आसमान से धरती पर आ चाँद गिरा हो जैसे
विस्फोट हुआ था भीतर तेरे
ज्वालामुखी से लावा ज्यों बह रहा था
मुझे अपनी बाँहो में घेरे
मन तेरा कंपित स्वर में कुछ कह रहा था
होंठों से होंठ जुुड़े थे
तू खो चुकी थी आपा
तेरे चुंबन से मेरा तन भी
बेचैनी से काँपा
मेरे अधरों को आवेग में तू चूम रही थी ऐसे
सहस्रों स्त्रियाँ एक साथ ही मुझे चूम रही हों जैसे
पेट नहीं भरा था तेरा
सिर्फ़ चुंबन से
मेरे होंठों को निगल रही थी
तू पूरे मन से
काँप रही थी ऐसे जैसे
पाग़ल हो गई हो तू
उछल रहे थे तिल भी सारे
तेरे नाजुक बदन के
पूरा शरीर तेरा जैसे फिर होंठों में
बदल गया था
और मेरा शरीर उनसे उठती अग्नि में
जल गया था
तू रौंद रही थी मुझको
चूस रही थी
मुँह में घुमा रही थी
होंठों पर नचा रही थी
मसल रही थी, च्यूँट रही थी, गुदगुदा रही थी
मैं भी जैसे फिर किसी पके हुए
फल में बदल गया था
तूने मुझे जैसे अपने काले जादू से
अधरों में बाँध लिया था
पति-पत्नि के संबंधों को कुछ ही
पल में साध लिया था
श्लील-अश्लील की दुनिया से हम
हो चुके थे बहुत दूर
हम पर चढ़ गया था तब बेहद
प्रेमामृत का सुरूर
पहुँच गए थे उस दुनिया में हम तुम दोनों
जहाँ हमारे हृदयों ने फिर
कुछ संवाद किया था
बिस्तर की आँखें भी एकदम बिल्ली-सी
चमक रही थीं
और तकियों को लग चुके थे पंख
ध्वनियाँ निकल रही थीं हमारे
शरीरों से ऐसी
जैसे प्रभु की पूजा में भक्त बजा रहे हों शंख
कितना ऊँचा है प्रेम का
यह संसार
इसमें नहीं अराजक
कोई भी व्यवहार
ऐसा क्या है बने प्रेम के
लिए जो हथियार
आदी हो जाना इसका व्यक्ति को
कर देता बेकार
नहीं जानना प्रेम को गहरे
है बेहद दुख की बात
प्रेम में जो पाग़लपन होता है
वही है आट्टाद
दो शरीर एक-दूसरे में
यूँ गुँथे हुए थे
दो सिर आपस में ऐसे
सुँथे हुए थे
सबकी ईर्ष्या का कारण बनता
उस दिन गर्भाधान
हमने नहीं प्रयोग किया था
उस दिन कोई निदान
सैंतीस
धीमा प्यार
क्या आप इर्कूत्स्क गए हैं कभी
वहाँ आपने देखी होंगी बेहद सुंदर खिड़कियाँ
और उनसे झाँकती
उनसे भी कहीं अधिक ख़ूबसूरत लड़कियाँ
गर्व झलकता है जिनके चेहरों पर असीम
कि मन में पैदा हो जाती है भावना हीन
वहाँ मेरे मन की भी चोर भावनाएँ
चूर-चूर हो गई थीं देख असंभावनाएँ
वह भी लावण्या
सुदर, अतिसुंदर कन्या
भोली थी वह
पवित्र, अछूती वन्या
लाल ज़ेबों वाली अपनी नीली फ्राक में
गुज़रती थी जब वह मेरे पास से
नन्हें बादलों की तरह नीली अपनी
प्यारी आँख से छेड़ती थी मुझे
जैसे बुलाती हो अपने पास
निमंत्रण देती हो सायास
पर जैसे ही मैं बढ़ता था उसकी तरफ़
वह अचानक खड़ी हो जाती थी
अपने दोनों घुटते जोड़
नज़रें नीची कर लेती थी
एक हाथ कंधे के पीछे मोड़
दूसरे हाथ की एक उँगली से
अपने होंठों को ढककर
धीरे से फुसफुसाती थी
कहती थी�न...न...मत कर
तब मैं मूर्ख हुआ करता था
कुछ भी करते मन-ही-मन डरता था
सब औरतों को मैंने बाँट रखा था दो हिस्सों में
इन्हें छू सकते हैं और उन्हें नहीं
विश्वास करता था
कुछ इसी तरह के सुने-सुनाए किस्सों में
झूठ बोलते हैं लोग मेरे बारे में
जब देते हैं ये आभास
कि जीवन सारा गुज़रा है मेरा
सिर्फ़ स्त्रियों के साथ
उन्हीं के आसपास
तब मैं डरता था कि
स्त्रियाँ होती हैं चौकस ख़ूब
प्रेम में होती हैं कायर
किसी फंदे-सा लगता है उन्हें प्यार
पुरुषों से वे बचती हैं लगातार
सुंदर चेहरे वाली उस सुकन्या ने
एक पत्र लिखा था मुझे ऐसा
जो मुझे लगा था किसी कविता जैसा�
‘‘तुम कल्पना करो पल भर को
कि रात हो, अँधेरा हो
बकाइन के फूल खिले हों
और उनकी गंध महका रही हो घर को
टैरेस हो, टैरेस पर हम हों
और हमारी नज़रें एक-दूसरे पर थमी हों
वहाँ जल रही मोमबत्ती हमें
परस्पर निकट ला रही हो
पिघल रही हो धीरे-धीरे
कान में हमारे कुछ फुसफुसा रही हो
सामने मेज़पोश पर रखा हो मुरब्बा
रिमझिम बारिश बरस रही हो
स्वर उसके हवा में गूँज रहे हों ऐसे
जैसे वह हम पर हँस रही हो
हम मौन खड़े हों वहाँ एक साथ
शरीर के दोनों तरफ़
नीचे की ओर लटके हुए हों हमारे हाथ...''
छठा दशक वह
क्या समय था
कविता ने हिला रखा था पूरा देश
लोग प्रतीक्षारत् थे कि कुछ होगा नया
शायद बदल जाएगा अब परिवेश
और उस सुकन्या के मन में
शायद विचार था यह
कि विवाह हो जाए और वह...
पर हो सकता है वह चाहती हो
सिर्फ़ धीमे प्रेम में पगना
और प्यार की मीठी-धीमी आँच में सुलगना
सब लड़के हम
तब ढीठ बैल थे
छैल-छबीले और हठैल थे
प्रेम में हम फटे ढोल थे
जल्दबाज़ थे, गोलमोल थे
भोले थे इतने कि समझ न पाते
होगा क्या अब, क्या करना पड़ेगा
सोचते थे बस इतना ही कि
ऊपर वाला हमें सब क्षमा करेगा
यहाँ तक कि हम यह समझ न पाते
कि वह कहती है जब�न...ना...
मतलब इसका होता�हाँ...हाँ...
कौन जाने
वह अब कहाँ होगी
इर्कूत्स्क नगर की वह लावण्या
वह नाज़्ाुक, भोली, अछूती कन्या
वह दादी होगी, नानी होगी
पौत्रों के संग दीवानी होगी
उन्हें घुमाती, गोद उठाती
इर्कूत्स्क के मोहल्लों में कहीं
दिखती होगी आती-जाती
उड़ गए दिन के भाप की तरह
जैसे उड़ गई जवानी मेरी
वह न जानेगी मुझे आपकी तरह
ख़त्म हो गई यहाँ कहानी मेरी
अब मैं भावुकता में यह सोचूँ कभी-कभी
मूरख थी वह
पर फिर यथार्थ में आ जाता हूँ
मैं मूरख ख़ुद था
पुरुष की इस दर्पभरी मुद्रा में, मित्रो
कि वह ‘कुछ' है
उसकी यह दयनीयता छिपी है
कि वह बेहद तुच्छ है
जब उम्र हुई तो समझा मैं
प्रेम में जल्दबाज़ी होती है बेकार
प्यार होता है होते-होते
अमूल्य है धीमा प्यार
अड़तीस
लोग
कहीं के भी लोग अरुचिकर नहीं हैं
ग्रहों के इतिहास की तरह है उनकी नियति
उनमें कुछ भी विशिष्ट नहीं है
और ग्रह से भिन्न है ग्रह
और यदि एक व्यक्ति विस्मृत रहता है
उसी विस्मृति में बनाता है दोस्त
अरुचिकर नहीं है विस्मृति
हर एक के लिए, उसका संसार निजी है
और उस संसार में एक श्रेष्ठ क्षण
और उस संसार में एक त्रासद क्षण
ये क्षण भी निजी हैं
व्यक्ति जब मरता है
मर जाता है उसके जीवन का पहला हिमपात
चुंबन और संघर्ष और उसकी स्मृतियाँ
ये उसके साथ जाते हैं
वह छोड़ जाता है किताबें
और पुल व कैनवास व मशीनें
उन लोगों के लिए
जिनकी नियति जीवित रहना है
लेकिन जीवित रहना है जिनकी नियति
क्या जाता है उनका
कुछ भी तो नहीं
हाँ, खेल के नियम से कुछ चला जाता है
लोग नहीं मरते
पर शब्द मर जाते हैं उनमें
किसको हम अपराधी मानें
पृथ्वी के प्राणियों में
किसको?
तत्त्वतः भला हम जानते क्या हैं?
भाई अपने भाई को जानता है क्या
दोस्त अपने दोस्त को
और प्रेमी अपनी प्रेमिका को कितना जानता है
अपने पितामहों को ही हम कितना जानते हैं
क्या हर बात उनकी
नहीं, कुछ भी तो नहीं
मर गए वे
अब उन्हें
लौटाया नहीं जा सकता
उस रहस्यमय संसार से
और मैं
हर समय, बार-बार
रचता हूँ शोकगीत
विध्वंस के विरोध में
उनतालीस
मेरी प्रिया आएगी
(बेला अख़्मादुलिना के लिए)
मेरी प्रिया आएगी
बाँहें फैलाएगी
और उनमें लपेट लेगी मुझे
मेरी आशंकाओं को समझेगी
ध्यान से देखेगी मेरे परिवर्तनों को
काली कलूटी रातों के
बहते इस अँधेरे में
टैक्सी के दरवाज़े को
धमाके से बंद करते हुए
बिना रुके
चढ़ेगी सीढ़ियाँ वह भागते हुए
खण्डहर होती उस ड्योढ़ी को पार करके
प्रेम और ख़ुशी से सुलगती हुई
वह दौड़ेगी छज्जे की सीढ़ियों पर
खटखटाएगी नहीं वह
मेरा सिर अपने हाथों में ले लेगी
और जब अपना ओवरकोट टिकाएगी कुर्सी पर
फ़र्श पर सरक जाएगा वह
एक नीले ढेर की शक्ल में
चालीस
तुझे बधाई, माँ
माँ, तुझे बधाई हो
तेरे बेटे के जन्मदिन पर
जिसके बारे में इतनी चिंतित रहती है तू
कि वह यहाँ पड़ा है
वह कम कमाता है
उसकी शादी करके ग़लती की
वह लंबा है
वह दुबला है
वह दाढ़ी नहीं बनाता है
ओह माँ!
टकटकी लगाकर
क्यों देख रही है तू मुझे
कितनी प्यारी टकटकी है कमबख्त
तुझे बधाई, माँ
तेरी चिंताओं के इस जन्मदिन पर
यह तू ही थी, माँ
जिसने दी मुझे वंशागत श्रद्धा
अक्खड़पन और अनाड़ीपन
तुझसे ही मुझे मिली निष्ठा और क्रांति
तूने मुझे समृद्ध नहीं बनाया
न ही प्रसििद्ध
निर्भीक बनाया मेरी प्रतिभा को
अब सारी खिड़कियाँ तू खोल दे, माँ
पेड़ों पर बैठ तू, चहचहा
मेरी खुली आँखों को चूम
मुझे मेरी कॉपी और स्याही की दवात दे
दूध दे मुझे पीने के लिए, माँ
और यूँ ही मुझे ताकती रह
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