हरीन्द्र दवे का धारावाहिक उपन्यास : वसीयत - 11 वीं किश्त

SHARE:

1ली किश्त | 2री किश्त | 3री किश्त | 4थी किश्त | 5वीं किश्त | 6वीं किश्त | 7वीं किश्त | 8वीं किश्त | 9वीं किश्त | 10 वीं किश्त व...

1ली किश्त | 2री किश्त | 3री किश्त | 4थी किश्त | 5वीं किश्त | 6वीं किश्त | 7वीं किश्त | 8वीं किश्त | 9वीं किश्त | 10 वीं किश्त

वसीयत – ११ – उपन्यास

हरीन्द्र दवे – भाषांतर : हर्षद दवे.

---------------------------------------------------------------------------------

शेफाली बैंगलोर के एयरपोर्ट पर किसी को लेने जा रही हो ऐसा पहली बार हो रहा था. कृष्णराव को यह बात पसंद नहीं थी. परन्तु सबकुछ इतनी जल्दी तय हो गया कि कृष्णराव कुछ भी बोल ही नहीं पाए डॉ. पंडित का निवासस्थान अब धाराशास्त्रिओं का मिलनस्थान बन गया था. सोलिसिटर अमीन, बैरिस्टर मोहंती, कृष्ण राव और शेफाली बैठे थे. अमिन ने कहा: ‘मेरी स्थिति ज्यादा मुश्किल है. यहाँ मोहंती के मुवक्किल की तरफदारी करनेवाले ज्यादा हैं. मेरे मुवक्किल के हित की चिंता करनेवाला मेरे सिवा और कोई नहीं है.’

‘आप भूल रहे है, अमीन अंकल, आप के अलावा भी आपके मुवक्किल के हित की चिंता करनेवाली व्यक्ति हो सकती है.’ शेफाली ने कहा, ‘जैसे कि मैं.’

‘तूं पृथ्वी के लिए अच्छा सोचती है यह मैं जानता हूँ, परन्तु पृथ्वी का हित और तेरा हित आमने सामने हो तभी तो इस बात की परख हो सकती है.’

‘शेफाली,’ कृष्णराव ने बात बीच में ही काटते हुए कहा: ‘अमिनसाहब सही कह रहे है. तुझे अपने हित की चिंता पहले करनी होगी.’

ठीक उसी समय फोन की घंटी बजी. अमीन के लिए उनके ऑफिस से फोन था. अमीन फोन पर बात करके आये तब उनके चेहरे पर मुसकान थी. ‘ चलिए मेरा मुवक्किल आ रहा है. घंटे भर में यहाँ आ पहुंचेगा.’

‘कौन, पृथ्वीसिंह?’ कृष्णराव ने कटुता के साथ कहा.

‘हाँ. मैं मेरे ड्राइवर से कहता हूँ कि उसे सीधे यहाँ ले आये.’

‘अमिन अंकल, यदि बुरा न मानें तो आप से एक बात कहूँ.’ शेफाली ने कहा.

‘क्या?’

‘मैं ही पृथ्वी को ले आऊं यहाँ? यह बात अदालत में बढे ऐसा हम नहीं चाहते. तो फिर पृथ्वी को यहाँ घर सा लगे, सब उस के स्वजन हैं ऐसी भावना रहे उस में गलत क्या है? शोफर उसे लेने जाए उस से मैं जाऊं यह ज्यादा ठीक नहीं रहेगा क्या?’

‘ऐक्सेलंट,’ मोहंती ने कहा,’बीच में मोहिनी देवी की ह्त्या की बात ना आई होती तो अमीन और मैं समाधान करनेवाले ही थे. अब भी शेफाली और पृथ्वी के बीच झगडा न रहे तो समाधान करना सरल हो जाएगा.’

‘शेफाली तुझे जाने की क्या जरूरत है? वह तेरा क्या लगता है?’

‘पप्पा, जिन्होंने मुझे पुत्री माना है ऐसे डॉक्टर अंकल की पत्नी की संपत्ति का वह वारिस है. इस से बड़ा सम्बन्ध और क्या हो सकता है?’

‘कृष्णराव,’ मोहंती ने कहा, ‘शेफाली की बात ठीक है. हमें कटुता नहीं रखनी चाहिए. हम किसी को अन्याय नहीं करना चाहते साथ ही पृथ्वी के मन में भी मेरा कोई नहीं ऐसा भाव क्यों पैदा होने दें?’

बैरिस्टर मोहंती की दलील के बाद कृष्ण राव कुछ बोल नहीं पाए. शेफाली तैयार ही थी. उसने डॉक्टर अंकल की गाड़ी ली और शोफर को साथ में लिए बगैर ही निकल पड़ी. शोफर अंदर जा कर जब कहेगा कि शेफाली अकेली ही गई है तब पप्पा बिगडेंगे इस बात को शेफाली अच्छी तरह से जानती थी. ड्राइविंग में अभी हाल ही में उसने रिफ्रेशर कोर्स किया था. कृष्ण राव शायद ही उसे अकेली जाने देते थे. परन्तु आज वह निकल ही पड़ी. वह मन ही मन में कोई गीत गुनगुना रही थी. आज उसे रास्ते कुछ अलग ही नजर आये. एयरपोर्ट के पार्किंग लोट में गाड़ी रख कर वह अंदर गई तब पता चला कि हवाई जहांज आधे घंटे की देरी से आने वाला है. वैसे भी वह आधा घंटा जल्दी आ गई थी. इसलिए एक घंटा यहीं पर बिताना था. वह कुछ देर के लिए बुक स्टोल पर गई. पहले उसने कोई मैगजीन ले कर पढ़ने के बारे में सोचा. परन्तु फिर विचार बदलकर अराइवल लाउंज की कुर्सियों में से बिलकुल अंतिम कुर्सी पर बैठी और आँखें मूंदे सोचती रही.

सबकुछ एक सपने जैसा लग रहा था. डॉक्टर अंकल की मौत हुइ, मोहिनी आन्टी की ह्त्या हुई. पंजाब का कोई यतीम लड़का अचानक मोहिनी आन्टी के वारिस की हैसियत से तख्ते पर आया. और अब मोहिनी आन्टी की ह्त्या करनेवाले संदेहास्पद व्यक्ति को पकड़ने का दावा पुलिस ने किया था. अखबारों में अलग अलग अनुमान थे. एक अखबार ने लिखा था कि खूनी भरतपुर की कैद से भाग निकला है. दूसरे अखबार ने विश्वास और हिम्मत के साथ कहा था कि हत्यारा भरतपूर की कैद में ही है. परन्तु बैरिस्टर मोहंती को किसी ने जानकारी दि थी कि शायद खुनी को बैंगलोर लाया गया है. अमिन यह बात मानने को तैयार नहीं थे. दिल्ली के बैंक लूट में उसके विरुद्ध ठोस सबूत थे. लूट का माल भी मिला था जब कि मोहिनीदेवी की ह्त्या के बारे में केवल संदेह और पुलिस के बयान में परोक्ष कबूलियत हे थी. इसीलिए शायद उसे पहले दिल्ली ही ले जाया गया हो ऐसा वे मानते थे. इस प्रकार से चित्र बिलकुल धुंधला और अस्पष्ट था. शेफाली को इन में से किसी भी बात में दिलचस्पी नहीं थी. उसे आश्चर्य इस बात का हो रहा था कि जहाँ मुश्किल में हजार रुपये की बचत हो पाती हो ऐसे परिवार को करोड़ों रुपये की जायदाद में से लाखों रुपये मिलने वाले हो तो फिर लड़ाई करने की क्या जरूरत है? पृथ्वी अगर मान जाये तो वह अपने और पृथ्वी के हिस्से में आनेवाली राशि ही रखकर शेष सारी राशि अंकल-आन्टी के पसंदीदा कार्य के लिए दान में देने के लिए तैयार थी. इतने में फिर खूनी के पकडे जाने की बात फैली और फिर उससे सम्बंधित बातें होने लगी. डॉक्टर अंकल की मौत पहले हुई या मोहिनी आन्टी की हत्या पहले हुई? दोनों वकील मेडिकल ज्यूरीस्प्रूडेन्स के ग्रंथों के पन्ने पलट पलट के केस तैयार कर रहे थे. यह सब देखकर वह हैरान हो जाती थी, उकता गई थी वह. पृथ्वी भी अपनी तरह इन सब से उकता गया है कि नहीं यह जानने के लिए वह उत्सुक थी.

‘आप ही शेफाली?’ उसके करीब एक सीख सद्गृहस्थ सज्जन ने बैठते हुए कहा.

‘हां, क्यों?’ शेफाली चौंकी. उसकी विचारधारा टूटी. ‘आप कौन हैं?’

‘ओह, केवल बैंगलोर का नागरिक. किन्तु परसों यहाँ के अखबार में आपकी तसवीर देखी और आप को यहाँ देखा. कोई आने वाला है क्या?’

‘हाँ.’ शेफाली ने कहा और आगे बातचीत नहीं करने के इरादे से फिर एकबार आँखें मूँद लीं. इतने में घोषणा हुई: ‘इन्डियन एयर लाइन्स का नई दिल्ली से आने वाला हवाई जहांज बैंगलोर आ पहुंचा है.’ शेफाली खड़ी हुई और यात्रिओं के आगमन कक्ष के मुख्य दरवाजे के पास जा कर रुकी. पृथ्वी हवाई जहांज की सीढियाँ उतर रहा था कि शेफाली ने उसे देख लिया. वह कुछ ज्यादा पतला लग रहा था. इतनी दूरी से उसने पृथ्वी को पहली ही बार गोर से देखा. वह अपने सह्यात्रिओं से लंबा और इकहरे बदन वाला था. वह तेज रफ़्तार से चलता था. वह दूसरे यात्रिओं से आगे निकलकर आगमन कक्ष के दरवाजे तक आ पहुंचा. वह जल्दी में हो ऐसा लगा. उसको कोई लेने आया है कि नहीं उस के बारे में वह उलझन में था. उसने फोन किया तब अमिन फोन पर नहीं थे. इतने में उसने सुना : ‘ओह पृथ्वी, वेलकम होम. कहाँ थे इतने सारे दिन?’

पृथ्वी मन ही मन झुंझलाया हुआ था. सारी दुनिया के सामने उसे शिकायत थी. पंथ के लिए लड़ने वालों में से एक ने उसकी माता की हत्या की थी ऐसा उसे बताया गया था. उसका उद्धारक एवं मददगार होने का दावा करनेवाला आदमी उसे ऐन वक्त पर छोड़ गया था. रह रह के उस के मन में प्रश्न उठता था: ‘मोहिनी यदि मेरी माँ है तो मेरे पीता कौन है? इस प्रश्न का जवाब कहीं नजर नहीं आता था. त्यागी ऐसे बोलता था जैसे बहुत कुछ जानता हो, परन्तु वह उसे फंदे में फांसने की साजिश कर रहा हो ऐसा क्यों नहीं हो सकता? पृथ्वी को देखते ही कृष्णराव की आँखें डांटने को होती थीं. अमिन साहब उसे समझाने का प्रयत्न करते थे. परन्तु आखिर वह डॉक्टर पंडित को ही ज्यादा जानेगा न? लुधियाणा में पढते यतीम बच्चे की सहायता के लिए कौन आए? क्यों आए? इस पर भी मोहिनी की हत्या करनेवाला पकड़ा गया यह खबर पा कर वह कुछ ज्यादा बेचैन था. पलभर उसे हुआ कि वह दिल्ली से बैंगलोर जाने के बजाय सीधा भरतपुर ही जाए और वहां अपनी माँ के हत्यारे को एक नजर देखे तो सही कि एक यतीम बच्चे की माता को मारने के लिए उसे कौन सा कारण मिला था? उस की आँखों से खून टपक रहा था. उसे यकीन था कि बैंगलोर में अपना कोई नहीं है. इसलिए इस बार कोई उसे सामने लेने नहीं आएगा. इतने में उसने शेफाली की आवाज सुनी. पलभर के लिए वह सन्न रह गया. शेफाली ने आगे बढाए हुए हाथ की ओर वह रिक्त मन से देखता रहा. फिर उसने स्वस्थ हो कर शेफाली का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा:

‘सोरी, मैं सोच में डूबा हुआ था.’

शेफाली केवल मुस्कराई. उसे बुरा नहीं लगा था. पृथ्वी की आँखों में छलकता रोष वह देख सकती थी. पृथ्वी की जगह यदि वह खुद ऐसे बिलकुल अनजान माहौल में होती तो उसे भी गुस्सा आ ही जाता.

पृथ्वी ने आधे मिनट तक शेफाली का हाथ अपने हाथ में पकडे रखा और फिर कहा: ‘एयरपोर्ट पर कोई आएगा ऐसा मैंने सोचा ही नहीं था. इसलिए आप को देखा तो मान ही नहीं सका. कई दिनों के भूखे आदमी को एकदम अच्छा भोजन मिल जाये तो वह सोचेगा कि यह कहीं सपना तो नहीं.’

‘मैं समझ सकती हूँ, पृथ्वी, आपके मन में चल रहे तूफ़ान का कुछ एहसास मैं भी महसूस कर सकती हूँ, और इसे अच्छी तरह से समझ भी सकती हूँ.’

‘धन्यवाद. कोई हमें समझने की कोशिश करता है यह जानकर अच्छा लगता है.’

दोनों बाहर निकले. पृथ्वी के पास हाथ में थी उस अटैची को छोड़ कर ओर कोई सामान नहीं था. दोनों चुपचाप पार्क की गई गाड़ी तक गए. ‘आप ही गाड़ी लेकर आईं है?’ पृथ्वी ने पूछा.

‘हाँ, आप ही की गाड़ी लेकर आई हूँ.’

‘मेरी?’

‘चलिए छोडिये इस बात का फैसला वकीलों के लिए रहने देते हैं. यह हमारी गाड़ी है. डॉक्टर अंकल एवं मोहिनी आन्टी इस कार का उपयोग किया करते थे.’

मोहिनी का नाम सुनते ही पृथ्वी की आँखों में खून उतर आया. उसने पूछा: ‘वह यहाँ है?’

शेफाली को समझ में नहीं आया. उसने पूछा, ‘कौन? किसकी बात कर रहे हैं आप?’

पृथ्वी कुछ स्वस्थ हुआ. अभी उसका गुस्सा ठंडा नहीं हुआ था: ‘वह हत्यारा. एक यतीम बच्चे को मिलने वाले माँ के प्यार के दरवाजे खुले उस के पहले उस पर हमेशा के लिए ताला लगा देनेवाला हत्यारा, खूनी.’

उसके एक एक शब्द से अंगारे झर रहे थे. शेफाली गाड़ी स्टार्ट करते करते ज़रा रुक गई. उसने कहा: ‘पृथ्वी, तरह तरह की अफवाहें हैं. कोई कहता है कि यहाँ है, कोई कहता है कि भरतपुर है. किसी का मानना है कि उसे भगाकर ले गए हैं.’

‘भगाकर ले गए हैं?’ पृथ्वी ने होंठ भींचे.

पृथ्वी का गुस्सा देखकर शेफाली चिंतित हुई. उसने पृथ्वी का हाथ थामकर कहा: ‘आप का क्रोध देखकर मेरे मन में क्या भाव उठते होंगे इस की कल्पना कर सकते है आप?’

पृथ्वी इस प्रश्न से चौंका. उसने शेफाली की तरफ देखा. उस की आँखों में आँखें डालकर बोली: ‘मोहिनी आन्टी आप की माँ होती और उसका खूनी भाग निकला हो तब एक बेटे की आँखों में देखा जाए ऐसा गुस्सा मुझे आपकी आँखों में नजर आता है.’

शेफाली के शब्दों से पृथ्वी पलभर के लिए क्रोधित हुआ और बाद में तुरंत शांत भी हो गया! उसने कहा: ‘शेफाली, अनाथ बच्चे को माँ नहीं होती. उसे दुनिया की हर स्त्री में माँ नजर आती है. आप मुझे समझने की कोशिश कर रही है, मेरे अंदर दहकती आग को बुझाने की कोशिश कर रही हैं तब आप की आँखों में मुझे मोहिनीदेवी दिखाई पड़ती है – माँ दिखती है. मोहिनीदेवी, आप या माँ के बीच कोई भेद नहीं. जो प्यार मुझे मिलना चाहिए था तब नहीं दे पाने वाली माता के दर्शन अब प्रेम दर्शाने वाली हर औरत में होते है.’

शेफाली ने गाड़ी बढ़ाई. वह बहुत ही धीरे से गाड़ी चला रही थी. पृथ्वी कुछ और बोले इस की उम्मीद में थी वह.

‘मैं कुछ ज्यादा तो नहीं कह गया? यदि ऐसा हुआ हो तो क्षमा चाहता हूँ, शेफाली. आप को मुझे लेने के लिए यहाँ तक आने का कष्ट उठाना पड़ा. आप के इस सौजन्य को देखकर भी मैं अपने गुस्से पर काबू नहीं पा सका.’

‘पृथ्वी, उस हत्यारे के लिए क्या केवल आपको ही गुस्सा आता है? मैं भी जिस पल से मुझे पता चला है तब से बेचैन सी रहती हूँ. एक बार सोचा कि आलमारी में पड़ा डॉक्टर अंकल का रिवोल्वर ले कर मोहिनी आन्टी की ह्त्या करनेवाले को गोली मार दूं.’

पृथ्वी शेफाली की ओर देखता ही रह गया. वह आगे बोली: ‘परन्तु, पृथ्वी, आप जानते हैं कि इस आदमी पर बहुत कुछ निर्भर करता है.’

‘क्या?’

‘यदि उसने ह्त्या की है तो कब ह्त्या की यह भी मालूम हो जाएगा. फिर कोई झगडा ही नहीं रहेगा.’

‘शेफाली, मेरा कोई झगडा नहीं. कोई तकरार नहीं. हां, मेरे प्रति अपार स्नेह दर्शाने वाली औरत के बारे में मैं उसकी मौत के बाद ही जानकारी पा सका इस बात का अफ़सोस है. इस आदमी ने यदि उस स्त्री की ह्त्या नहीं की होती तो शायद वह मुझे कभी मिल भी सकती थी. उसके मेरे प्रति स्नेह का रहस्य शायद बता पाती. शेफाली, आप के साथ बातों बातों में कभी उन्होंने मेरा जिक्र किया था क्या?’

‘आन्टी बहुत ही कम बोलती थीं. हा, वह कभी आप की तरह रिक्त आँखों से ऊपर देखती रहती थीं, अभी आप देख रहे हैं बिलकुल वैसे ही.’

‘मेरी तरह?’ पृथ्वी ने शेफाली की तरफ देखते हुए कहा.

‘हाँ. जब आप हताश या बेचैन हो कर आसमान या घर की छत की तरफ टकटकी लगाये हुए देखते हैं तब मोहिनी आन्टी की याद आ जाती है.’

पृथ्वी गाड़ी के दर्पण में अपना चेहरा देखते हुए मोहिनी की तस्वीर को याद करने लगा. फिर उसने आसमान की ओर देखा. आसमान में कुछ रेखाएं उभर रही थीं, उस से एक स्त्री की आकृति बन रही थी. वह उस स्त्री को युगों से जनता हो ऐसा लगता था. परन्तु तुरंत ही उसका चेहरा बादलों से आवृत्त हो गया. कौन है यह स्त्री? युग युगांतर की पहचान फिर भी बिलकुल अज्ञात यह स्त्री आसमान से क्यों उसके सामने झांक रही है?

पृथ्वी की आखों में मोती से दो बिंदु झलक रहे थे.

<> <> <>

बैंगलोर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अजय सरकार को विश्वास नहीं हो रहा था. बहुत ही विचित्र अनुरोध उसे किया गया था. जिस के बारे में काफी गुप्तता बनाये रखने के लिए कहा गया था ऐसे एक कैदी के लिए पुलिस कस्टडी या जेलखाने को छोड़कर के अन्य किसी स्थान पर हिरासत का जबरदस्त प्रबंध करने के लिए कहा गया था. बाद में जेलखाने में किसी को भी शक न हों इस प्रकार से उसे हटाया जा सकेगा ऐसा सूचन था. शहर से दूर एक अतिथिगृह था. अभी मरम्मत के लिए वह बंद था. पुलिस अधिकारी ने तुरंत ही मरम्मत कार्य को रुकवाकर मरम्मत करनेवालों के भेस में अपने आदमी रख दिए. आसपास ठीक से कड़ी निगरानी रहे फिर भी वहां से गुजरनेवालों को मकान में मरम्मत चल रही हो ऐसा लगे ऐसा प्रबंध किया गया.

वह स्वयं सादे भेस में वहां मरम्मत कार्य पर नजर रखनेवाले सुपरवाइझर की तरह जाने लगा. अचानक एक दिन वहां एक ट्रक आ पहुंचा. ट्रक में सीमेंट बैग थे. ट्रक माल उतार रहा था. तब उस के ड्राइवर की बगल में बैठे आदमी की आँखों में बिजली सी चमकी, उसने आवाज दी: ‘अजय?’

‘सादे भेस में खड़े अजय सरकार ने पैनी आँखों से उसे बुलानेवाले की ओर देखा: ‘कौन न्याल?’

‘हाँ, मैं तुझे ही फोन करने का मौक़ा ढूंढ रहा था. तूं यहाँ कैसे?’

‘मैंने यह कोंट्रेक्ट ले रखा है. सब मेरे ही आदमी है.’

‘अफलातून,’ कहकर न्यालचंद ने ट्रक के ड्राइवर की ओर देखा: ‘जान, मेरा दोस्त यहीं मिल गया. अब हम दोनों यहीं उतर जाते हैं.’ न्यालचंद ट्रक ड्राइवर को पैसे देने लगा.

‘नहीं बाबू, आप के साथ मजा आया. यह कुछ घंटे के लिए क्या लेना क्या देना?’

‘नहीं दोस्त, पेट्रोल के पैसे तो रखने ही पड़ेंगे.’

न्यालचंद के साथ चंद्रसेन भी नीचे उतरा. चंद्रसेन के चेहरे पर थकान थी. साथ में मन में एक प्रकार का हल्कापन भी था.

ट्रक माल उतारकर गया, तब तीनों अंदर गए.

‘क्या है यह सब?’

‘अजय, यह है चंद्रसेन.’

‘चंद्रसेन? मोहिनी ह्त्या केसवाला?’

‘हा. परन्तु अब वह सबकुछ क़ुबूल करना चाहता है. उसके सीख साथी उस के पीछे लगे हुए हैं. यह कबूलियत कर पाए इस के पहले वे लोग इसे और कबूलियत सुननेवाले को खत्म कर देना चाहते है. इसलिए किसी को संदेह उत्पन्न न हों इस प्रकार से हम यहाँ पहुंचे है. यहाँ फोन है?’

‘हाँ.’

‘दिल्ली में सी.आई.डी. ऑफिसर गुप्ता को फोन पर बता देना कि सीमेंट पहुँच गया है.’

‘मतलब?’

‘वहां से भरतपुर संदेशा पहुँच जायेगा कि हम यहाँ सुरक्षितरूप से पहुँच गए हैं.’

‘सही भी और गलत भी.’

‘कैसे?’

‘मार्टिन के साथ रात को तय हो चुका था. दो आदमिओं को विश्वास में ले कर कैदी फरार हो गया और मुझे भी साथ में उठाकर ले गए ऐसे कहना है.’

‘ऐसा कैसे?’

‘लंबी कहानी है. परन्तु संक्षेप में बताऊँ तो मार्टिन ऊपर सोने के लिए गया तब उसने इन्टरकोम से अपने दो सहायकों से कहा: ‘आप को न्यालचंद जैसा कहे वैसा करने का है.’

‘वंडरफुल, फिर?’

‘मार्टिन सो गया. मैं उन दोनों के साथ योजना तैयार करने लगा. आधे घंटे में फुलप्रूफ प्लान तैयार हो गया. दो में से एक सबइंस्पेक्टर जीप में हमारे साथ आनेवाला था. दूसरा हवालदार रामसिंह हमारा पीछा स्कूटर पर करनेवाला था. औरों को पता चले उसके पहले हम दूर जा चुके थे. मार्टिन तुरंत पीछा करनेवाले को रोक देनेवाला था, इसलिए पकडे जाने का डर नहीं था. स्कूटर पर पीछा कर रहा रामसिंह कुछ दूर तक जा कर वापस लौट गया. हमने जीप छोड़ दी तब साथ में रहे सबइंस्पेक्टर को जीप के साथ वापस लौटा दिया. उन दोनों की खबरों से आतंकवादी हमें उठा ले गए हैं ऐसा निश्चित हो गया.’

‘आतंकवादी?’

‘अजय, यह सदगृहस्थ सीख है.’

‘ओह!’

‘अब मार्टिन को संदेशा मिलेगा तब वह अपने आदमिओं के पास ऐसा दावा करेगा कि मेरे द्वारा की गई योजना सफल रही है. स्पेशल ब्रांच की टुकड़ी ने कैदी को एवं मुझे आतंकवादिओं के हाथों से मुक्ति दिलवाई है और हमें गुप्त स्थान पर रखा गया है. उनको यह बात कहीं फैलने नहीं देने के लिए कहा जायेगा इसलिए हम मुक्त हुए इस के लिए मार्टिन के प्रति उसके आदमिओं के सम्मुख उसका सम्मान ओर भी बढ़ जायेगा. यदि ऐसा नहीं करते तो वे लोग, इस मित्र के साथी. उसी रात भरतपुर के थाने को बम से उड़ा देते.’

‘क्या अब उनको कोई संदेह नहीं होगा?’

अबतक मौन रहे चंद्रसेन ने कहा: ‘उनको पता चलेगा कि थाने में आमने सामने गोलाबारी हुई और कैदी फरार हो गया तब वे राजस्थान में हर जगह मेरी तलाश करेंगे. ट्रेन, हवाई जहांज सभी जगह ढूँढेंगे. परन्तु हम दो तीन ट्रक बदलते हुए यहाँ पहुँच गए हैं यह बात उन के दिमाग में इतनी जल्दी नहीं आएगी.’

‘मुलजिम स्मार्ट लगता है.’ अजय सरकार ने चंद्रसेन की ओर देखते हुए कहा.

‘जब जान पर बनी हो तब अच्छे खासे बुद्धू भी स्मार्ट बन जाते हैं.’ चंद्रसेन ने कहा.

इसके बाद न्यालचंद ने पूरी भूमिका अजय सरकार को ठीक से बताई.

सुनकर अजय ने तुरंत ही कहा, ‘हाँ, तो यह साहब कबूलियत करनेवाले हैं, इस के लिए आपने इतना सारा जोखिम उठाया, ऐसा?’

‘हाँ.’

‘फिर देर किस बात की? ले लों इस का स्टेटमेंट.’

‘मुझे जो कुछ भी कहना है वह सिर्फ न्यालचंद साहब को ही कहूँगा.’

‘चंद्रसेन, ये मेरे भी साहब है. मुझे इन को ही रिपोर्ट देनी होती है.’

‘यह कुछ भी हो. मैं आप के सिवा और किसी से कुछ भी नहीं कहूँगा.’

‘न्याल, डोंट वरी. यदि वह जबान खोलता है तो तूं ही स्टेटमेंट ले ले. बाहर सारे सशस्त्र पुलिस के आदमी हैं. उन्होंने मरम्मत करनेवाले जैसी पोशाकें पहन रखीं है उतना ही. यहाँ का खानसामा भी हमारे मेस से लाया गया है. इसलिए किसी भी प्रकार का ख़तरा नहीं है. दो तीन आदमी आप की बातें सुन नहीं पाए फिर भी देख सकें इतनी दूरी पर रहेंगे. मेरी जरूरत न हो तो मैं जाता हूँ... शाम को फोन कर दूंगा. दिल्ली कोल कर दूंगा. यहाँ फोन है परन्तु मैं बाहर से ही करूँगा. यहाँ फोन के पास रखी डायरी में उपयोगी सारे फोन नंबर हैं.’

अजय गया. बाद में न्यालचंद ने चंद्रसेन से कहा: ‘तुझे शाबाशी देनी चाहिए. मेरा विश्वासघात नहीं करेगा ऐसे मेरे विश्वास को तूने कायम रखा है.’

‘साहब, आपने एवं मार्टिन साहब ने मेरे लिए अपनी जान की बाजी लगा दी और अपने करिअर को भी जोखिम में डाला. मेरी जान बचानेवाले को मैं धोखा कैसे दे सकता हूँ?’

‘अब तुम्हारा बयान...’

‘मैं तैयार हूँ, परन्तु चाय-कोफ़ी, नाश्ता, भोजन... कल से हम सोये नहीं. रस्ते में जो कुछ भी मिला खा-पी लिया है.’

‘हाँ, तुझे जो चाहिए वो मिलेगा. रही बात आराम, एवं नींद की वह तुझे और मुझे बयान पूरा होने के बाद ही मिलेगा.’

चंद्रसेन ने बयान देना शुरू किया:

‘मैं चंद्रसेन, वर्तमान में पटना में व्यापार करता हूँ, मूल पंजाब के करतारपुर गाँव का, मूल नाम मोहकम सिंह, १९८० में दल खालसा में शामिल हुआ. मुझे तालीम के लिए अमृतसर सरहद पार कर के पाकिस्तान में सबसे पहले नानकाना साहब के दर्शन हेतु ले जाया गया. वहां से किसी अज्ञात स्थान पर ले जाया गया. अन्य चार सीख युवक मेरे साथ तालीम ले रहे थे.’

‘कौन थे?’

‘हम एकदूसरे के साथ नाम से बात नहीं करते थे.’

‘फिर कभी मिले थे?’

‘नहीं. चारों अलग अलग इलाके में काम करनेवाले थे. मुझे पटना से काम करनेका था.’

चंद्रसेन की कबूलियत आगे बढ़ रही थी. दिल्ली के बैंक डकैती के बारे में मार्टिन ने कबूलियत पा ली थी और उस से सम्बंधित ज्यादातर राशि पटना से बरामद भी की गई थी.

बाद में उसने मोहिनी की ह्त्या के बारे में कहना प्रारंभ किया.

‘मुझे एक दिन कहा गया कि तुझे सरसपुर का डाक बँगला ठीक से देख लेनेका है.’

‘फिर?’

‘मैं वहां गया. वहां का माहौल देखा. वहां के चारों कक्ष के दरवाजे-खिड़कियाँ इत्यादि की जांच की.’

‘किसीने सवाल नहीं किया?’

‘नहीं. मैं पि.डबल्यु. डी. का इंजिनियर बनकर गया था. सरकारी नेमप्लेटवाली जीप में.’

‘स्मार्ट इनफ.’

‘फिर एक दिन कहा गया कि तुझे सरसपुर गाँव के लोज में ठहरना है.’

‘इंटरेस्टिंग.’

‘वहां एक दिन मुझसे कहा गया कि आज रात डाक बंगले में एक महिला ठहरी है. उसका फोटोग्राफ मुझे पहुंचा दिया गया. मुझे उसे ज़िंदा जाने नहीं देनेका था.’

‘क्यों?’

‘हमें कोई खास कारण दिए नहीं जाते. केवल आदेश दिए जाते है.’

‘चंद्रसेन.’

‘जी.’

‘मार्टिन का तरीका मुझे भी आता है, हाँ.’

‘आप जानते हैं कि उस तरीके से मैंने एक शब्द भी नहीं बताया होता. हमें ऐसे तैयार किये जाते है कि ‘पूरे शारीर की चमड़ी उधेड़ दी जाये फिर भी कुछ नहीं बताना.’

‘फिर तूं अभी झूठ कह रहा है?’

‘नहीं.’

‘तालीम लेते समय तुमने कसम खाई थी?’

‘हाँ.’

‘तो फिर कसम को क्यों तोड़ रहा है?’

‘सच बताऊँ साहब?’

‘बता.’

‘मुझे मेरे बीवी बच्चे की याद सताती है.’

‘उन की जान का ख़तरा नहीं है क्या?’

‘इसी बात की चिंता खाए जाती है मुझे. इसीलिए मेरी कबूलियत केवल आप के लिए है. अदालत में मैं मुकर जाऊंगा. अदालत में मैं सच्ची कबूलियत के बजाय कुछ भी कहूँगा.’

न्यालचंद उसकी बात समझ गया... एक बार अन्डरवर्ल्ड में...अपराध जगत... में गए हुए मानवी के लिए बाहर निकालना मुश्किल हो जाता है, यह बात वे जानते थे. अभी उस के पास दो संभावनाएं थीं. एक पर्दाफ़ाश करने की, दूसरी आतंकवादी को सुधार कर उसे रोजमर्रा का जीवन जीने देने की.

चंद्रसेन को एक कोठरी में बंद किया गया और उसके खानपान का प्रबंध किया गया.

दूसरे दिन सवेरे न्यालचंद उठा तब उसकी थकान कुछ कम हुई थी. उतने में अजय का फोन आया.

‘न्याल?’

‘बोल अजय!’

‘इस वक्त मेरे सामने पृथ्वीसिंह बैठा है.’

‘मुझे वह लड़ाका पसंद है. उस में सच्चाई है.’

‘वह कह रहा है कि एकबार वह मोहिनीदेवी के हत्यारे को देखना चाहता है.’

‘परन्तु उसका हत्यारा बाकी सब के लिए फरार है.’

‘मैंने भी यही कहा, परन्तु मुझे लगता है न्याल, एकबार दूर से उसको दिखा देते है. शायद कोई भेद खुल जाए ऐसा सोचता हूँ.’

‘ठीक है, सेंड हिम.’

न्यालचंद चाय ले रहा था कि पृथ्वी आ पहुंचा. वह काफी उत्तेजित दिखाई पड़ता था.

‘चाय नाश्ता लेगा?’

‘नहीं.’

‘मुझे सिर्फ हत्यारा दिखाइए.’

‘मैं चाय पी लूं?’

‘आप ले लीजिए. मुझे कुछ भी नहीं लेना है.’ पृथ्वी की आँखें चकरा रहीं थीं. उस के होंट फडफडा रहे थे. उसने रोष के साथ कहा: ‘एक बार वह मेरे हाथ लग जाय...’ कहते हुए वह अपने हाथ मलने लगा.

न्यालचंद चाय की चुस्कियां लेते लेते पृथ्वी का निरिक्षण करने लगा. फिर अपने आदमी को कुछ सूचना देकर भेजा.’

‘चल पृथ्वी.’

इसी पल की राह देख रहे पृथ्वी का हाथ उसके कृपाण पर गया यह न्यालचंद ने देखा. कक्ष की जाली खोलकर उसने पृथ्वी से कहा: ‘तूं बाहर ही खडा रहकर उसे देख ले. तूने उसे कहीं देखा है या उसे जानता है?’

जाली के बादवाला दरवाजा खुला: अंदर चंद्रसेन एक कुर्सी पर बैठा था. उसे देखते ही पृथ्वी ने उसे पहचान लिया. वो ही आदमी, रेल के कम्पार्टमेंट में मिला था वही पटना का व्यापारी! न्यालचंद का हाथ छुडा के पृथ्वी कूदा. पलक झपकते ही उसने कमर से कृपाण निकाला. दूसरे ही पल उसका कृपाण चंद्रसेन के बदन में धंस जाएगा ऐसा प्रतीत हो रहा था. परन्तु अंदर पहरा दे रहे दो आदमिओं ने पृथ्वी को पकड़ लिया.

‘यह क्या कर रहा है पृथ्वी?’

‘मेरी माँ के हत्यारे की ह्त्या कर देना चाहता हूँ मैं. क्यों आप लोग मुझे रोक रहे हैं?’

‘अभी उस का जुर्म साबित नहीं हुआ है. उसका फैसला अदालत में होगा.’

‘साहब, इस आदमी ने बैंगलोर के किसी डॉक्टर की पत्नी की ह्त्या नहीं की है, मेरी माँ को मार डाला है. बाप कहाँ होगा इसका तो मालूम नहीं है मुझे. शायद अबतक जीवित भी न रहा हो. परन्तु माँ का प्यार पाने से पहले उसने इसे मार डाला. खून का बदला खून... यही इन्साफ है. मुझे छोड़ दो. मैं उसको मार डालूँगा. इस के बगैर मैं चैन की सांस नहीं ले पाऊंगा.’

उसका जुनून देखकर भी चंद्रसेन मुस्कराता रहा यह देखकर पृथ्वी को और गुस्सा आ रहा था.

‘साहब, यह आदमी मुझे बुझदिल मानता है.’

‘पृथ्वी, इसी समय उसको मार देने से हम काफी महत्त्वपूर्ण बातें नहीं जान पाएँगे.’

‘मैं उसे और उसके साथिओं को जानता हूँ. वे बैंगलोर में कहाँ रहते है यह भी मैं आपको बताऊंगा, परन्तु अभी मेरी माँ के इस हत्यारे को कृपाण से मुझे खत्म करने दो. मेरे बाप का पता नहीं, एक माँ थी उसे भी इसने मार डाला.’

अब इतने समय से चुप बैठा चंद्रसेन धीरे से फिर भी दृढ़ता के साथ बोल पड़ा: ‘तेरा बाप ज़िंदा है. तेरी माँ से भी वह ज्यादा प्यारा है. मैं तेरे बाप को पहचानता हूँ.’

अब चौंकने की बारी न्यालचंद की थी. उसने दो थप्पड़ धर दिए चंद्रसेन को और पूछा: ‘बता दे इस के बाप का नाम!’

‘साहब, मुझे दूध से नहलाएं याँ मेरी चमड़ी उधेड़ दें _ उसका नाम मैं कभी नहीं बताऊंगा!’

यह सुनकर पृथ्वी गुस्से से काँपने लगा.

<> <> <>

(क्रमशः अगले अंकों में जारी...)

COMMENTS

BLOGGER
नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: हरीन्द्र दवे का धारावाहिक उपन्यास : वसीयत - 11 वीं किश्त
हरीन्द्र दवे का धारावाहिक उपन्यास : वसीयत - 11 वीं किश्त
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4QPNWOb2TZFG2Vo9xq14EVusKI1QoGZr4nagYa-lSxqoBWgT6-HeTZRJQTmjLNGYG4jsemsnCABi6MfqiAG9V61wjITVyNn8bv73SnY1ndV01g7eE_KmASZymrIVdoQPnBCfE/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg4QPNWOb2TZFG2Vo9xq14EVusKI1QoGZr4nagYa-lSxqoBWgT6-HeTZRJQTmjLNGYG4jsemsnCABi6MfqiAG9V61wjITVyNn8bv73SnY1ndV01g7eE_KmASZymrIVdoQPnBCfE/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/12/11.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/12/11.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content