समय समय प्रतीक्षा करता नहीं किसी की, घड़ियां सदा चलती रहती हैं उसकी, वर्षा ,धूप ,सर्दी, गर्मी सब रूक जाती, समय की गति कभी नहीं रूक ...
समय
समय प्रतीक्षा करता नहीं किसी की,
घड़ियां सदा चलती रहती हैं उसकी,
वर्षा ,धूप ,सर्दी, गर्मी सब रूक जाती,
समय की गति कभी नहीं रूक सकती।
गम भी आते रहते,खुशियां भी आतीं रहतीं,
अपना-अपना जोर दिखाकर सब चली जाती,
समय की गति है, जो कभी भी नहीं है रूक सकती,
गतिमान है वह ,जो तीव्र गति से चलती है रहती ।
सखा-मित्र आते और जाते हैं रहते,
सुख-दुख तो छाया बनकर ही रहते,
दिनरात कभी अपना वक्त नहीं बदलते
वक्त के हाथों वक्त को ही छुपाये हैं रखते ।
एक-एक बूंद से है रीता धट भर जाता,
इक पल ,मानव की जिन्दगी है बदल देता,
मत करो गुमान इस मनुष्य योनी का भ्राता,
हर सुख दुख देने वाला है केवल इक विधाता
प्रभु-मिलन की चाह
राहें इतनी आसान नहीं,
कि जल्दी से उनको मैं लांघ सकूं,
कंटकाकीर्ण देखती जब राह को हूं,
कांटे निकालने बैठ जाती हूं
कंटक जैसे ही दूर हटते,
जमीन कीचड़ से लबालब हो जाती है,
कीचड़ को दूर करने हेतु,
पत्थर जमीन में बिछाने की जो कोशिश करती,
चहुं ओर से विषैले जानवर आ जाते हैं।
जानवर हटाने का प्रबन्ध जैसे करती,
अन्य विपदा आकर घेर लेती मुझको है
प्रभु मैं कैसे तेरे पास जाती,
राहें इतनी आसान नहीं,
कि जल्दी से उनको लांघ जाऊं।
हालांकि यह भी सच है,
बहती धारायें केवल भ्रम की हैं,
भ्रम में पड़कर खो जाती हूं
मायामोह के विषम जाल में,
विपदाओं को आमंत्रित करती स्वयं हूं,
दोष देती हूं प्रभु तुझको।
प्रयास करुंगी,राहों को आसान बनाऊं
प्रभु तुझसे मिलकर इस जन्म को धन्य बनाऊं।
मुक्तक
• पत्थर की दीवारों में भी ,सीना हुआ करता है,
सुन्दर महल कांच का ,नाजुक बहुत ही होता है,
पत्थर की दीवारों में ,सीने में दिल छिपा होता है,
षीष के महल में ,दिल पत्थर का हुआ करता है ।
• दीवारें पत्थर की ,समझतीं जज्बातों को तो हैं,
महल शीश के कुचलते जज्बातों को ही तो हैं,
पत्थर की दीवारों मे सच्चे दिल से आतिथ्य सत्कार हुआ करता है,
शीशे के महल में दिखावे से भरा मखमली सत्कार हुआ करता है।
• पत्थर के घरों में मस्तिष्क वाले रहा करते हैं,
महल शीशों वाले मस्तिष्क का कारोबार करते हैं,
उपयोग कर ,चांदी के टुकडों का धन्धा बढ़ाते हैं,
उपभोग करके उनका ,दिल तोड़ दिया करते हैं।
अश्कों की व्यथा
मासूम चेहरों को,,भीषण अत्याचारों को सहते खूब देखा है
मधु .मुस्कानों को अश्कों में , बदलते हुए तेा खूब देखा है
दीनों पर धनवानों को, यंत्रणायें देते हुए तेां बहुत देखा है
अफसोस कभी अश्कों को ,मुस्कानों में बदलते नहीं देखा है।
यूं तो हंसते सभी दिखाने को इस जग में हैं
मखमल में लिपटे हुए दिखावा हंसी हंस लेते हैं
अन्त-स्तल में दर्द को बिठाये कितना बैठे सब हैं
कुछ तो अपने कर्मों से कुछ मजबूरी में हंसते हैं ।
हर इन्सान समझता इस जग में चतुर अपने आपको है,
भूल जाता वह जहां में रहने वाले असंख्य चतुरों को है,
जेा भी आया यहां ,मस्तिष्क तो दिया भगवान ने सबको है,
कोई उससे सृजन करता,कोई बढावा देता आतंको को है ।
सीता का करके हरण रावण ने,जहां में मिटा दिया नाम अपने को है,
राम ने वध करके रावण का,पहुंचा दिया स्वर्ग मार्ग उनको है
राम ने अग्निपरीक्षा लेकर सीता की किया सार्थक नाम अपने को है,
थे जो मर्यादा पुरुषोत्तम वे राम, गिरने नहीं दिया अपनी मर्यादा को है ।
राजपाट को त्याग कुटिया में रहकर थी सबने उनको हंसते देखा है,
मत दो गम किसी को भैया,मुफ्त में ही मिलता पिटारा वह सबको हैं,
अश्कों को पोंछ सको तो पोंछों,छुपानेे मत दो अपने अन्त.स्तल में तुम उनको,
बदल सको तो मुस्कानों में बदलो तुम, इन लाचार व्यथित अवाक् अश्कों को
मासूम चेहरों को भीषण अत्याचारों को सहते खूब देखा है
मधु..मुस्कानों को अश्कों में , बदलते हुए तेा खूब देखा है
दीनों पर धनवानों को , यंत्रणायें देते हुए तेां बहुत देखा है
अफसोस कभी अश्कों को, मुस्कानों में बदलते नहीं देखा है।
ताकत की होड़
सूरज कहे चंदा से मेरी ताकत तुझसे ज्यादा,
चंदा कहे तू क्या समझे मेरे आगे तू है प्यादा,
हवा कहे तुम दोनों चुप हो,मैं ताकतवर हूं सबसे,
बादल कहे तुम क्या जानो,मेरी ताकत आगे है सबसे।
मची होड़ सबमें भयंकर चले सभी ताकत आजमाने,
सूरज ने दिखलाई प्रचण्डता,लगे सभी जन बौखलाने,
चंदा ने दी जब भरपूर शीतलता ,लगे सभीजन ठिठुराने,
क्रोधित होकर ताकत अपनी दिखलाई जब बादल ने,
कहीं बाढ औ कहीं गर्जना,डूबे असंख्य बच पाये नहीं मौत से।
मेरी ताकत ,तेरी ताकत,किसकी ज्यादा,किसकी कम है,
सारी धरा पर सुनलो सब जन,इसी बात का ही इक गम है,
किसी को कम मत तुम समझो, सबको होशियार समझो अपने से,
अपने झान को दूजों को बांटो, अच्छी अच्छी बातें सीखो दूजों से,
ष्श् ताकत की इस होड़ में बन्धुओं अपने आपको नष्ट मत करो,
मिलकर रहो इस धरा पर, मानव का जीवन सार्थक तुम करो ,
ईर्षा,क्रोध,मद,औ लोभ को दूर भगाके, जीवन में सद्कर्म करो,
ताकत की इस होड़ में बन्धुओ अपने आपको नष्ट मत करो
ताकत की इस होड़ में बन्धुओ, व्यर्थ तुम बर्बादी को न बुलाओ,
तकनीकों का ज्ञान बढ़ाओ,रु स औ अमेरिका से आगे तुम जाओ ,
बडो आगे बुद्धि औ दिमाग से,आतंकवाद,लूटपाट को दूर भगाओ,
भारत की पावन भूमि को,अपने पावन संस्कारों से तुम सजाओ।
अभिलाषा
मैं दीया नहीं सोने का,न चांदी न हीरे का हू,
मैं तो दीपक केवल ,पैरों की पावन माटी का हूं,
स्वजनों परिजनो के सच्चे प्रेम का तेल डालती हूं,
परोपकार की बाती से सदा उसको जलाती हूं।
जितना पावन प्रेम का तेल मिलेगा,
उतना दीपक प्रज्जवलित रहेगा,
गर अपनों का प्रेम न मिलेगा,
यह दीपक बुझ ही जायेगा।
दीपक को इक दिन तो बुझना ही है,
गर पाकर प्यार सभी का यह बुझता है,
जलना उसका सार्थक हो सकता है,
सार्थकता अब बस हाथ आपके है ।
होली
हाय हाय हाय होली आई रे आई रे होली आई रे,
तरह-तरह के रंग भरे हैं मेरी अद्भुत पिचकारी में,
तरह- तरह के रंग भरे हैं मेरी अद्भुत पिचकारी में,
आई रे आई होली आई रे आई रे आई होली आई रे।
क्षितिज कहे इक छत केनीचे,क्षितिज कहे इक छत के नीचे,
सारे इकट्ठे हो जाओ रे, भैया सारे इकट्ठे हो जाओ रे ,
गंगा बोले,जमना बोले,सारे मेरे रंग मे मस्ती से रंग जाओ रे,
पानी का कोई रंग नहीं होता,मानव कोई अलग नहीं होता रे।
भेदभाव को दूर हटाके,मन के सारे मैल मिटाके,
प्यार के रंग से भरके पिचकारी रंग दो चुनरिया सारी रे,
ईर्षा ,क्रोघ और बैर भगाके,ईर्षा, क्रोघ और बैर भगाके,
प्यार भरा इक जाम यू पीके रंग दो चुनरिया सारी रे ।
इक दिन होली ब्रज में होवे, इक दिन वृन्दावन में,
कृष्ण रंग में मग्न हो जायें बडे प्रेम से होली खेलें,
खूब पीटे हैं नर नारियों से लम्बी-लम्बी छडियों से
बच्चे बूढ़े सब इक रंग में रंग जायें मन से खेलें होली रें,।
हाय हाय हाय होली आई रे आई रे होली आई रे,
तरह-तरह के रंग भरे हैं मेरी अद्भुत पिचकारी में,
तरह- तरह के रंग भरे हैं मेरी अद्भुत पिचकारी में,
आई रे आई होली आई रे आई रे आई होली आई रे।
जज्बात
जज्बात शब्द बहुत छोटा है, अर्थ छुपे उसमें बहुत ही गहरे हैं,
जज्बातों को समझना भी अमानवीय जनों की बुद्धि से कहीं परे है,
जज्बातों से खेलना तो आसान है, समझने में उनको पड़ते दौरे हैं ,
कद्र करे जो सबके जज्बातों की , उसके लिये मोहरे ही मोहरे हैं।
मोहरे से तात्पर्य सुख शान्ति घैर्य औ संतोष से है,
जिसे पा सकना बहुत ही कठिन दिखाई देता है,
जो पा लेता है धन्य खुद को वही समझ सकता है,
कद्र करें जज्बातों दूजों की जो धन्य वही हो सकता है।
जज्बात नहीं मिट्टी का ढेला, खेले कूदे औ फेंक दें उसे अकेला,
जज्बात नहीं है चाट का ठेला,खाया पिया फेंक दिया इक शोला,
जज्बातों की कद्र करे गर सहेला, जीवन बन जाये इक सुन्दर मेला
जज्बातों को ठेस लगे गर,जीवन बन जाये इक मौत का झूला।
होली
जितने रंग इस होली के हैं,उतने रंग इस जीवन के हैं,
लाल रंग लालिमा है देता, सबके दिल को है हर्षा देता,
हरा रंग है हरीतिमा लाता ,मन की बगिया खिलाके जाता,
पीला रंग षुभ संकेतों को देता,नई-नई जोडियां है बनातां।
रंग सफेद है षांति प्रदाता, काला रंग शनि महाराज को है भाता,
रंग गुलाबी की बात करो मेरे भ्राता,जो खुशियों से सबको रंग देता
खुशियां भर सबकी झोली में, मन सबका उज्जवल कर दो मेरे दाता
मन के सारे मैल मिटाके शुद्ध ह्रदय से, मिले हर कोई हंसता गाता ।
हंसने में कोई मोल न लगता, दिल का भार हल्का ही हो जाता,
दुःख का कमरा तो हर धर मे होता ,उसे सजाता कोई न दिखता ,
भिन्न-भिन्न की समस्याओं के उपहारों से,वह तो खुद ही सज जाता,
शुद्ध भावना रखने वाला,सबके ह्रदय को निर्मल और स्वच्छ है करता।
जितने रंग इस होली के हैं,उतने ही रंग का जीवन है होता,
सब रंगों को साथ मिला के प्रेम का प्याला तैयार है होता ,
हर घूंट में नशा बड़ा होता,गर प्रेम से इसको पीया गया होता
यह जीवन इक स्वर्ग बन जाता,सब विपदाओं का नाष हो जाता
जितने रंग इस होली के हैं,उतने रंग इस जीवन के हैं,
जितने रंग इस होली के हैं,उतने रंग इस जीवन के हैं,
केन्द्रीयकरण
केन्द्रीयकरण इक मंत्र है , गर वो फूंका जाये
सब जन स्वकेन्द्रित हो जायें,ह्रदय षून्य हो जाये
ह्रदय शून्य हो जाये , तबाह सब कुछ हो जाये
हवा पानी जो बन्द हो जाये इन्सान भूखा मर जाये
सूरज गर रश्मियां न फैलाये,सितारे गर न टिमटिमायें,
चंदा शान्ति गर न देवे,सागर प्रतिबन्घित जल को करले,
वसु भार ढोना जो छोड़ दे,मानव अस्तित्वहीन हो जाये,
केन्द्रीयकरण वह मंत्र है,जो सबको ह्रदयहीन करता जाये।
केन्द्रीयकरण को दूर भगा ,मिलजुल कर हे मानव तुम जीयो,
प्यार बांटो तुम दिल खोलकर भाई-भाई सबको तुम समझो,
सुख-दुख बांटो सब इक दूजे का ,पर पीडा का हरण करो,
मानव की योनी है मुश्किल, कीमत सदकर्मों से उसकी अदा करो।
मेरा देश भारत
मेरा देश भारत है
जो समस्याओं का देश है
समस्याओं की लहरें
आती हैं तीव्रगति से
एक समस्या खत्म होती है
दूजी आ जाती है
राम मन्दिर समस्या
थी जटिल समस्या
निराकरण में उसके
लग गईं सारी शक्तियां
आंखें गढी रहीं
सबकी उसके निर्णय पर
आखिर निर्णय हुआ जून 10 में
प्रसन्न हो गये सब
पटाखे चल गये
मिठाइ्रर्यां बंट गईं
खूब शंखनाद हुआ
आल्हाद का संचार हुआ
परन्तु समस्या तो समस्या है
फिर वह आगई सबके मन में
2011 में मस्तिष्क घिर गया
फिर इस समस्या से
राम मन्दिर मुद्दे को फिर
बना दिया गया भीषण मुद्दा
कोशिश की जा रही है
भुनाने की उसको ।
उससे भी भीषण आगई
इक घोर समस्या
नाम है उसका लोकपाल विघेयक
लोकपाल या लोकनाश है ये विघेयक
कुछ भी हो फिलहाल बन गई है
बहुत बडी इक मुश्किल
बाबा रामदेव ने लगाई पूरी ताकत
सरकार ने कर दी
खराब यूं उनकी ही हालत
अन्ना हजारे भी आ गये उग्रता में
अनशन का तैयार किया
भयानक मसविदा उन्होंने
मनमोहन सिंह जी ने भी दिखाई सख्ती
लोकपाल विघेयक में शामिल
होने में दिखाई नहीं बेरुखी
देखिये अब इन समस्याओं का अन्त क्या होगा
अन्त होगा भी या नहीं होगा
पर यह निश्चित है
अन्य समस्यायें आयेंगी
घबराइये नहीं
स्वागतार्थ तैयार रहिये
आपको भी अपने में मिलाके ले जायेंगी ।
बूढी मां
फैलाकर आंचल बैठी रहना,दो शब्द प्रेम के सुनने को तुम तरसती रहना,
रैना बीते लाल मेरो मिलन मोहे आये,खिड़कियां में निहारते बैठी रहना,
गर क्रोघित हो दो बोल बोल दिये,पापिन,दुष्टा कहलाओगी,
जहर का चुपचाप कडवा घूंट पीकर सहनशील कहलाओगी,
यह जीवन इक व्यस्त जीवन है,समय कहां किसी को तुम्हारी सुनने का,
पागलपन है कुछ अपनी कहने का,समय तुम्हारा है सिर्फ चुप रहने का,
घर आंगन गर महकाना चाहो,दिल पर पत्थर अपने रख लो,
हर कारज में खुशी दिखाओ,सलाह-मशविरा दूर भगाओ,
नहीं जीवन है इतना सस्ता,सुखी रहने का तुम अब ढूंढा रास्ता,
चाहत से सुख कभी न मिलता,अन्तःस्तल में ही सुख है बसता ।
मन और वाणी
अबोली भाषा मन की , हर बात बोल देती है,
सुलझें न सुलझें गुत्थियां,हर राज खोल देती हैं ।
अवाक रहकर जमाने को देखते ही रहिये,
अन्दर की बात ओठों तक आने न दीजिये,
मन औ जिगर की भाषा पहचान में आने न दीजिये,
अपनी हर बात को अन्तःस्तल में समा के ही रखिये ।
जमाना इतना अच्छा नहीं,कद्र तुम्हारे विचारों की करे,
फुर्सत कहां किसी को,बात जिगर तुम्हारे की वो सुने,
लभ पर आकर कोई बात,क्यों ठिठोली जग की यूं बने,
जहां मेला है मखमली,बात क्यों कोई सज्जनता की सुने।
नयनों में रखो स्थिरता, चलने उनको न यूं दीजिये,
चलकर दूजों के हाथ में बिकने का मौका न दीजिये,
े अभिराम ,विराम की भाषा को अंर्तज्योति में समेटे रहिये,
नयनों के अश्क नयनों से बाहर कभी आने न दीजिये।
जालिम है यह दुनिया,लूट लेगी कब किसकी जिन्दगी ,
हस्ती मिट जायेगी ,डूब जायेगी तुम्हारी जीवन किष्ती ,
जीयो न तुम जिन्दगी, यूं बन कटी हुई इक पतंग सी ,
जो भी मिले भर दो प्यारे मीठे बोल से उसकी झोली।
मिश्री प्यार की घोलिये, मत उसमें अपने आपको डुबाइये,
सराबोर होकर भी अपने आपको अलग ही बनाये रखिये।
बच्चों को सीख
आलोचना,प्रत्यालोचना,औ समालोचना,
तीनो की ही होनी चाहिये सराहना।
आलोचना कमियों कों है प्रदर्शित करती
प्रत्यालोचना कमियों का है विश्लेषण करती
समालोचना कमियों को है सही रुप देती।
आलोचनाओं से निराश कभी न होना,
मन अपने को कमजोर कभी न करना
द्रढ. निश्चय से सदा तुम लडते रहनाश्,
हर गल्ती से शिक्षा तुम हमेशा लेना।
मानव स्वभाव त्रुटि करना है
महानता उसे स्वीकार करना है
त्रुटियों को अपना शिक्षण स्थल तुम समझो
सदाचरण से अपना आंचल तुम भर लो
तभी यशकीर्ति इस जग में प्राप्त कर पाओगे
उज्जवल भविष्य तुम अपना बना पाओगे ।
मानव - जीवन
क्या सोचा,क्या किया औ क्या पाया,
मानव जीवन हे मनवा तूने यूं ही गंवाया ।
खुद ही खुद में मस्त रहा,जीवन का अर्थ तू समझ न पाया,
लेता रहा जिन्दगी भर सबसे,देने को हाथ कभी बढा न सका।
अपनी तो क्या बात है तेरी,घर अपने का बना रहा तू प्रहरी,
‘पर' निकाल अपने मन से तू ‘स्व' पर सदा करता रहा सवारी।
आदर्शों औ सिद्धान्तों का चोला पहनकर लूट मचायी तूने अन्तस्तल से,
मन का टोका तूने न जाना,दुखी हुआ चाहे अर्न्तमन से।
लोभ,मोहमाया के जाल में फंसकर जलता रहा भाई.बन्धु से,
इस लोक को तू संवार न सका,गिला क्या कर सकेगा परलोक से।
चकाचौंध इस जग की देख भटक रहा तू बीच राह में,
सही गलत का भेद न जाना छला जा रहा अपने आप से।
पर बिगडा कुछ अभी भी नहीं है गर मुक्ति पाले पापी मन से ।
परोपकार की सीढी चढकर जरुरतमन्द की झोली भरदे दान से ।
जो बोयेगा वह काटेगा,नहीं तो मनवा फिर पछतायेगा,
सद्कर्मों से लोक सुधरेगा,परलोक में भी लेखा लिखा जायेगा।
नुक्स निकालने वाला अधिकारी
नुक्स निकालने वाला अधिकारी हूँ मैं,
मीन मेक में दक्षता की डीग्रीधारी हॅूं मैं
कर्तव्यों को नहीं ,अधिकारों कों पहचानता हूँ,
स्वयं सुखी भवः के सिद्धान्त को अपनाता हूँ।
यह भी ठीक नहीं,वह भी ठीक नहीं, ऐसा नहीं, वैसा नहीं,
तुम्हारा कोई काम ठीक नहीं की रट लगाये रहता हूँ,
मीन मेक में पूर्णरुपेण दक्षता रख स्नातकोत्तर डिग्रीधारी हूँ,
नुक्स अधिकारी नाम है मेरा, नुक्स निकाला करता हूँ।
मक्खी बनकर घूमता हूँ, सबके नुक्स निकालता हूँ,
नुक्स अधिकारी नाम है मेरा,खुद ऐश से जीता हूँ,
जरुरत नहीं समझता,मेहनत और मशक्क्त करने की,
पारखी हूँ मीनमेख निकालने का,सबको मैं खटकता हूँ
चींटी बनकर लगे रहो कारज में,
मक्खी बनकर मैं हंसी उडातां हू।
याद रखो चींटी कितनी भी तेज चले,
मक्खी का उससे कोई मुकाबला महीं,
खुशफहमी है मुझको,मैं अत्यधिक अक्लमन्द व्यक्ति हूँ,
कितना करे कोई काम अच्छा,मैं नुक्स निकाल देता हूँ ,
बीबी खाना कितना अच्छा पकाये,मैं नुक्स निकाल देता हूँ ,
सजाधजा घर कितना हो,डस्टबीन देख शोर मचाता हूँ।
सरकार बनाये कुछ भी नियम,विरोध बेहिचक करता हूँ,
कोई प्रपोजल कुछ भी बनाये, मैं कमी निकाल देता हूँ ,
जब प्रपोजल मै खुद बनाता, वैसा ही पेश कर देता हूँ,
अपने अन्दर नहीं झांकता,औरों को देखता रहता हूँ।
झूठ बोलना धर्म है मेरा, दूजों को झूठ नहीं बोलने देता हूँ,
चौकन्ने रहते सभी हैं मुझसे, क्योंकि सभी की पोल मैं खोल देता हूँ
मीन मेख में पूर्णरुपेण दक्षता रख स्नातकोत्तर डिग्रीधारी हूँ,
नुक्स अधिकारी नाम है मेरा, नुक्स निकाला करता हूँ।
माँ
सारे दर्दों को अपने अन्दर समाहित करने वाली है केवल मां,
तभी तो हर दुख दर्द में मुख से निकलता है केवल इक मां,
ऊर्जा को देने वाली,सच्ची पथ प्रदर्शक है बस इक मां,
तभी तो , तभी तो जड़ को भी चेतन बना देती है मां।
समन्दर बनकर अश्रुरुपी सरिताओं को अपने अन्दर समेट लेती है बस मां
सहनशीलता वसुन्धरा सी गम्भीरता आकाष सी रखती है केवल इक मां,
समन्दर सी लहरों सी कल-कल कर बहती रहती है केवल इक मां,
तभी तो बच्चों को संघर्षों में जीवन जीना सिखाती है बस इक मां।
खुद भूखी रहकर भी बडे प्यार से बच्चों को खिलाती है केवल इक मां,
सुखकर्ता ,दुःखहर्ता ,पथगामिनी, सुभाषिणी, सुहासिनी है केवल इक मां,
मां जानकी,मां यशोदा,मां पार्वती,मां टेरेसा जैसी बने जहां की हर इक मां,
धैर्यशील,मृदुलतांमयी,वात्सल्यमयी,कर्मठी और शक्तिशाली बने हर इक मां।
हर बाधा को चूर-चूर कर,अग्निपथ मे कूद-कूद कर,
जग को कठिन परीक्षा देकर,सफलता को चूमे हर मां,
सुनामी लहरें बनकर घातक रुप धारण न करना कोई मां,
कैकई बनकर राम रुपी बच्चों की खुशियां न छीनना कोई मां।
जो हैं मॉयें,जो नहीं हैं वे भी बनेंगी इक दिन मांयें,
सबके अन्दर सब गुण हैं,बहुत प्रतिभाशाली हैं, सहनशील हैं ये मांयें ।
दुआ प्रेम की सबसे है,सभी पहुंचो उस सीमा वर जिसके आगे राह नहीं,
सब माताओं के लाल पहुंचे उस स्थल पर,जिससे ऊॅचा कोई स्थल नहीं।
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प्रेम मंगल
कार्यालय अघीक्षक स्वामी विवेकानन्द इंजीनियरिंग कॉलेज इन्दौर म.प्र.
सेवानिवृत्त संभागीय लेखाकार,मण्डलीय कार्यालय,
इंदौर
बहुत ही प्यारी और भावो को संजोये रचना......
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