लघुकथा-----01 नन्ही माँ मेरी बेटी मेरी माँ है. कब बेटी से माँ के रूप में खड़ी हो गई, पता ही न चला. कब मै उससे स्नेह के अलावा उसकी इज्जत क...
लघुकथा-----01
नन्ही माँ
मेरी बेटी मेरी माँ है. कब बेटी से माँ के रूप में खड़ी हो गई, पता ही न चला. कब मै उससे स्नेह के अलावा उसकी इज्जत करने लगा, यह भी मालूम नहीं.
बेटी दादी के घर तीन दिन पहले ही चली गई थी. पत्नी मेरी बहन के पुत्र को अस्पताल में संभालने के लिए बनारस रह गई थी. शहर वाले मकान पर चार दिन अकेले ही रह गया था. दशमी के त्यौहार के कारण गाँव चला गया. यह अपना घर था, पर इस घर ने कभी अपनत्व का बोध न कराया, इ
सलिए कभी गाँव पर घंटे भर से ज्यादा न रुका.
उस दिन जब पहुंचा तो सभी वहां मौजूद थे. माँ, भाई, भाभी, भतीजी और छोटी बेटी. पानी चाय रख दिया गया. मैंने पी लिया. बड़ी बेटी पास आकर बैठ गई. बाल पर पड़े धूल को झाड़ने लगी. ताऊ जी से खैनी की डिबिया मांग लाई. हम बात कर ही रहे थे कि भीतर से गमछा भी लाकर रख दी. बोली, पिताजी कपडे बदल लीजिये. और ये क्या गन्दा कपड़ा ही पहन कर चले आये? मैंने मुस्कुरा दिया.
नहाने गया तो देखा कि साबुन, ब्रश सभी रखा हुआ है. पूजा पर बैठा तो माचिस, अगरबत्ती और हवन के लिए आग पहले से ही रखा है. भोजन करने बैठा तो पानी और साथ में चटनी तैयार. खाने के बाद आँख लग गई. सोकर उठा तो कपडे धुले हुए तह कर रखे हुए. बोली, घर में साफ़ कपडे नहीं थे क्या पिताजी?
वह मेरे पास घंटों बैठी रही और माँ, बच्चे और बुआ के बारे में बातें कराती रही. मेरी मान घर में बैठ कर टीवी देख रही थी. मै तैयार हो चूका था. पानी पी रहा था कि बेटी ने खुद से बाल संवार दिए.
आज पहली बार गाँव पर चार घंटे रुका था. क्यों? पता नहीं. घर में कुछ अपना सा लगा था.
मीटिंग के लिए निकलना था. बाइक के पास पहुंचा तो देखा वह भी साफ़ है. फिर धीरे से उसने कान में फुसफुसाया, दो दिन बाद आ जाइएगा. हमें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा. मेरा कोर्स भी अधूरा है.
मैंने आज्ञाकारी बालक की तरह सर हिला दिया. गाडी आगे बढ़ी तो पीछे से आवाज आई, अपना ख्याल रखना. शाम को दूध पी लीजियेगा. यह ताकीद मेरी ग्यारह साल की बेटी नहीं माँ के थे.
लघुकथा------02
सवाल
मैंने प्रवीण तोगड़िया जी से पूछा, "मान्यवर हमें बताने का कष्ट करें की आप किसके हैं? भारतीयों के? हिन्दुओं के? भाजपा के? या फिर मानवता के शत्रुओं के?
उन्होंने कहा, "हिन्दुओं के और भारत के और इससे भी ज्यादा श्री राम के"
"तो फिर सौगंध राम की खाते हैं मदिर वही बनायेंगे, राम लाला हम आयेंगे. का क्या हुआ?"
"हम लगे हैं. एक दिन हमारा सपना जरूर पूरा होगा."
"राम ने तो आपको उत्तर प्रदेश और भारत की गद
्दी भी दे दी, आपने क्यों नहीं बनाया?"
"सही समय नहीं मिल सका. हमें हजारों कार सेवकों का बलिदान कभी न भूलेगा."
"बहुत अच्छा जनाब. तो कृपया यह बताइये की हजारों कार सेवकों के साथ एक जोशी, एक सिंघल, एक वाजपेई, आडवानी, ऋतंभरा, उमा भारती और प्रवीण तोगड़िया भी क्यों नहीं बलिदान हो गए?"
"...................."
"अच्छा छोडिये, यह बताइये की राम मंदिर का मामला तभी क्यों उठाते हैं, जब चुनाव नजदीक आ जाता है?"
"हमारा भाजपा से कोई लेना देना नहीं है. जो राम के साथ है हम उसके साथ हैं."
"तो फिर आप राजीव गाँधी या फिर नरसिंघा राव के साथ क्यों नहीं हैं? "
".............................."
आखिरी सवाल, "अभी कितनी जानें लेने के बाद आप लोग शांत होंगे?"
"आप कांग्रेसी हैं. इसीलिए बेसिर-पैर के सवाल कर रहे हैं>"
"नहीं मै भारत का आम आदमी हूँ. और आपकी जानकारी के लिए बता दूं की मै पांच साल तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में रहा हूँ. बड़े पद पर. लेकिन इन पांच सालों में आपको ठीक से समझ लिया, इसलिए आपके समूचे छद्मवेशी कुनबे को छोड़ दिया. जैसे राम ने आपको छोड़ दिया. राम तो हिन्दू-मुसलमान सबके हैं. सब उनके बच्चे हैं. आप उन्हें बांटने चले थे. मात्र एक घर का सवाल था. राम ने तो पूरा राज्य ही छोड़ दिया था. आपने राम को भारत के खिलाफ खडा करने की कोशिश की थी. अब मै पत्रकार हूँ.
लघुकथा---------03
चौराहा
उसे मैंने बुलाया था. अलसुबह. एक मासूम, पीली सी महकती छाया सी वह घर में दाखिल हुई. वैधव्य का दर्द चहरे पर साफ़ दिख रहा था.
क्या यह सच है कि तुम्हारा "उससे" सम्बन्ध है?
नहीं. उसने मेरे दुर्दिन में साथ दिया है. मै कभी अकेले ही नहीं रही तो सम्बन्ध का औचित्य ही नहीं बनता.
तो फिर इतनी बातें हवा में कैसे तैर रही हैं?
मुझे नहीं मालूम कि हवा किधर से बही? पर जितना सच था बता दिया. जो सच है उसकी साक्षी हैं भ
गवती दुर्गा. गलत कही होऊँ तो वे हमें दण्डित करें.
तो फिर अफवाह वाले कौन हैं यह भी तो पता होगा?
जी, मेरी सगी बहन और चचेरे भाई.
दोनों से रिश्ता क्यों नहीं तोड़ देती. उसकी आँखें डबडबा आयीं. दो बूँद आँचल में टपक पड़े. बोली, क्या बताऊँ. वे लोग चाहे जो कह रहे हों, पर मै उनके बारे में तो किसी से कुछ नहीं कह सकती. क्योंकि वे मेरे अपने हैं. बस यहाँ तक समझ लीजिये कि बूढी औरत को भी चचेरे भाई ने नहीं छोड़ा. उनकी निगाह उसकी दौलत पर है. बहन भी हमारी ...........जाने दीजिये. मुझे कुछ नहीं कहना.
तो फिर एक काम करो. जब बाहर के लोग घर में लगातार घुसते हैं तो घर चौराहा हो जाता हैं. घर और चौराहे में फर्क करना ही होगा.
वह शांत थी. उसे रास्ता शायद मिल गया था. अब वह पीली छाया नहीं. वह आग की तरह लाल है. वह घर को चौराहे से बचाने को जा रही है.
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