मॉर्निंग वॉक ( अतुल्य भारत की दास्ताँ ) उस दिन रोज की तरह मैं मॉर्निंग वॉक के लिए थोड़ी देर से निकाला। हमारे साथ घूमने व आगे–पीछे दौड़ने...
मॉर्निंग वॉक ( अतुल्य भारत की दास्ताँ )
उस दिन रोज की तरह मैं मॉर्निंग वॉक के लिए थोड़ी देर से निकाला। हमारे साथ घूमने व आगे–पीछे दौड़ने वाले बूढ़े –जवान ‘मॉर्निंग वॉक फ्रेंड्स’ पसीना से लथ-पथ घेरा बना कर बैठे सब भारत के बारे में अपनी – अपनी राग आलाप रहे थे। देर से पहुँचा था मुद्दों को समझने की कोशिश कर रहा था। कोई अतुल्य भारत का बखान किए जा रहा था तो कोई बढ़ती बेरोजगारी,लूट -पाट ,फरेब ,बेईमानी,भ्रष्टाचार व गरीबी आदि जैसे मुद्दों को ले कर ताना मार रहे थे। जहाँ एक ओर हमारे कुछ सहपाठी बुजुर्गों से नए-नए टेक्नोलॉजी की बात कर रहे थे,वहीं वे बुजुर्ग लोग भारतीय धर्म-संस्कृति की गरिमा,वेद-शास्त्र,आयुर्वेद,योग,आध्यात्म ,साहित्य आदि जैसे बातों को आड़े लाकर कुछ 'हमारे जमाने में..' जैसे उदाहरण लेकर युवाओं को धुतकार रहे थे और पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण से हो रहे विनाशकारी परिणाम को अवलोकित करा रहे थे।
इतिहास को आड़े लेते हुये किसी ने कहा : इतिहास कहता है की हिटलर क्रूर था,महत्वाकांक्षी था। दुनिया को जला दिया किंतु उसकी अच्छी पहलू को कोई सलाम नहीं करता। जिसने बिखरे हुए जर्मनी को एक राष्ट्र बना दिया और वहाँ के लोगो को देश प्रेम का सबक सीखा दिया और देश भक्ति इस कदर इतनी कू-कूट कर भर दी कि दो टुकड़े होने के बावजूद भी (पश्चिम जर्मनी और पूर्व जर्मनी) वर्षो बाद एक राष्ट्र बन गये। इसलिए आज भारत को भी एक हिटलर की ज़रूरत है जो लोगो में राष्ट्र प्रेम की सच्ची आग लगा सके। सिर्फ़ भीड़ में "भारत माता की जै" के नारे ना लगाए। लोगो की सोच को बदले और पहले राष्ट्र फिर परिवार बाद में मैं के सिद्धांत पर काम करना सीखे।
लोग कहते हैं औरंगज़ेब बहुत ज़ालिम था, उसने हिंदुओं पर ज़ुल्म किए आदि आदि किंतु मैं कहता हूँ वो एक असली शासक था। उसने उन्हीं लोगों को नष्ट किया जो लोग राष्ट्र को नुकसान पहुँचा रहे थे। चाहे वो उसके सगे भाई ही क्यू ना हो ? ऐसे ही एक शासक आज भारत को चाहिए जिसके लिए धर्म, भाई बंधु, प्रांत आदि आदि बाद में और राष्ट्र पहले हो। जो राष्ट्र पर हमला करने वालो को जमाई के भाँति खिला खिला कर मोटा ना करे जबकि तुरंत उनकी गर्दन अलग कर दे।
आज राष्ट्र को ख़तरा है किंतु वो ख़तरा कसाब से नहीं है , वो असली ख़तरा हमारे राजनैतिक लोगो से है जो भाँति -भाँति के खेल खेलकर जनता को गुमराह कर रहे है। आज रोटी कामना इतना मुश्किल हो गया है कि जनता स्वार्थ के साए में अपनी रोटी का जुगाड़ करने पर लगी हुई है। अन्ना की मुहिम कितनी सफल रही ? ये राजनैतिक दल एक षड्यंत्र छोड़ेंगे और अन्ना की मुहिम धरी की धरी रह जाएगी। जैसा अब तक लोकपाल बिल के साथ होता आया है।
मैं चुपचाप कभी न ख़त्म होने वाले मुद्दों पर चल रहे बहस को बड़े ध्यान से सुन रहा था। वहीं कुछ लोग सरकार को गली दे रहे थे साथ ही साथ एक दूसरे को आरोपी ठहरा रहे थे। अगर देखा जय तो पूरे देश में जगह-जगह अतुल्य भारत के साइन बोर्ड लगे हैं। इनमें देश की तरक्की, विकास प्राकृतिक संपदा आदि की जानकारी दी गई है। टेलीविजन पर भी अतुल्य भारत का विज्ञापन देखने को मिलता रहता है। मगर इधर जैसे ही टेलीविजन पर अतुल्य भारत का विज्ञापन समाप्त हुआ, उधर समाचारों की सुर्खियों में "अतुल्य भारत" की असली तस्वीर दिखाई देने लगती है।
समाचार में सुनने को मिलता है कि राष्ट्रमंडल खेलों में खेलगांव का पलंग एक भारतीय बॉक्सर का वजन नहीं सह सका और टूट गया। एक जगह एक विधायक की मौजूदगी में सरकारी रूपयों से एक मन्दिर में बार-बालाओं ने ठुमके लगाए। उत्तरप्रदेश में जहां बाढ़ से आमजन बेघर होकर दाने-दाने के लिए मोहताज हैं। वहां एक मंत्री महोदय ने काजू-बादाम उड़ाते हुए हालात का जायजा लिया। राष्ट्रमंडल खेलों के चलते दिल्लीवासियों को अपनी ही सड़क से बिछुड़ना होगा तथा रिजर्व लाइन पर चलने के लिए दो हजार रूपये का जुर्माना देना पड़ेगा। ये समाचार अतुल्य भारत की दुर्दशा दिखाने के लिए पर्याप्त हैं।
वैसे अपना देश कई मायनों में अतुल्य है। ये वो देश है जहां आर्डर करने पर पिज्जा घर पर पहले पहुंचता है और सूचना देने पर भी एम्बुलेन्स व पुलिस समय पर नहीं पहुँचती है। अपने देश में कार खरीदने के लिए ऋण सात प्रतिशत पर मिल जाता है मगर महंगी शिक्षा के लिए ऋण 12 प्रतिशत पर मिलता है। अपना देश वो है जहां दाल 90 रू. किलो और मोबाइल की सिम पांच रू. में मिल जाती है। देश के सांसद महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण देने के मामले में कभी भी एकमत नहीं हो पाते मगर खुद के लिए पांच गुना वेतनवृद्धि एकमत से करवा लेते हैं। खूब प्रचार करने और पुलिस को समझाने के बाद भी थाने में प्रथम सूचना रिपोर्ट आसानी से कभी नहीं लिखी जाती अपना देश अतुल्य है जहां रिश्वत लेते पकड़े जाने वाला रिश्वत देकर ही छूट जाता है। अपना देश अतुल्य है जहां आज भी ग्रामीणों को पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है। अपने देश में असली डॉक्टरों से ज्यादा झोलाछाप डॉक्टर हैं जो पूरे भारत में बिना किसी डिग्री के सेवाएं दे रहे हैं। अपना देश अतुल्य है जहां सीबीआई चाहे तो किसी को भी रातोंरात उलझा सकती है तो किसी को क्लीनचिट भी दे सकती है। अपने देश में भगवान के नाम पर एक दिन में सवा लाख लड्डुओं का भोग लग सकता है तो वहीं दूसरी ओर भूख से किसान आत्महत्या कर लेते हैं ।अतुल्य भारत के बारे में सुनते -सुनते मुझे भी एक घटना याद आ गयी। ये उन दिनो की बात है जब हम भुबनेश्वर से अपनी ट्रेनिंग समाप्त करके घर लौट रहे थे। रास्ते में बस बहुत देर तक रुकी रही खिड़की से झाँक कर देखा तो बस की लंबी कतारें लगी थी। सब लोग बस से उतरने लगे ,मैं भी उतर गया लोगों से पुछने पर पता चला कि गाँव वाले कई वर्षो से बिजली चोरी से जलते आ रहे थे। बार-बार मना करने व समझाने के बावजूद भी लोग मानते नहीं थे। एक दिन अचानक ट्रांस्फ़ार्मर जल गया,एक महीने हो गए और आजतक बिजली विभाग ने नया ट्रांस्फ़ार्मर नहीं लगवाया है। इसलिए गाँव के कुछ उग्र प्रवृतिवाले लोगों ने चक्का जाम किया है और यह कब ख़त्म होगा इसकी कोई संभावना नहीं है। सभी लोग बस कंडक्टर से पैसा वापस ले कर जा रहे थे। मैंने भी ऐसा किया। दोनों हाथों में बैग ,पीठ पर लैपटॉप बाग लिए कड़ी धूप में दो किलोमीटर का सफर पैदल तय करने के बाद एक तिपहिया गाड़ी मिली और हमने लंबी साँस लेकर सारा समान उसमे रख कर हताश थका-हारा बैठ गया। तिपहिया गाड़ी अपनी रफ्तार में बस स्टैंड की ओर चल पड़ी।
गांव की पगडंडी को भी मात देते कर शेखपुरा के टूटे-फूटे रास्ते पर जब तिपहिया लड़खड़ाने लगा और मेरे पेट का पानी हिलने लगा तो जाना की मैं फकीरगंज पहुंच चुका हूँ । वहां के चौराहे पर दो बच्चे रुकी गाड़ियों के बीच तमाशा दिखा रहे थे। काजल से मूंछें बनाए लड़का फुंदके लगाए टोपी सिर पर घुमा रहा था तो नन्ही बच्ची सर्कस की किसी कुशल अदाकारा की तरह एक रिंग से अपने शरीर के हिस्सों को अजब तरीके से मोड़ कर निकाल रही थी। नजदीक बैठी एक औरत ढोलक पर थाप दे रही थी। दो बच्चे उसकी गोद में सिमटे बैठे थे। मैं अभी कुछ सोच ही रह था कि वह लड़का हाथ पसारे ‘अंकल -अंकल ’ करता खड़ा हो गया और उसकी बहन अपने मुंह की ओर इशारा करके कुछ खाने को मांगने लगी। मैंने झट कहा- ‘क्या तुम स्कूल नहीं जाते? पढ़ना चाहते हो?’ एक साथ इतने सवाल पूछने पर वह निरीह सकपकाया-सा मेरा चेहरा देखने लगा। तभी एक दंपति किसी डॉक्टर की पर्ची लिए पास आ गए और बड़े दीन शब्दों में कहने लगे- ‘देखो भाई साहब , मेरी बहू को बच्चा होने वाला है। जल्दी अस्पताल ले जाना है। पैसे नहीं हैं, कुछ मदद कर दो।’ मैंने बाहर चेहरा घुमा कर देखा तो एक बीस-बाईस साल की युवती अपना उभरा हुआ पेट लिए सामने थी। मैं कुछ देता या कहता, इससे पहले ही तिपहिया चालक बोला- ‘यह तो इनका रोज का धंधा है। कभी बच्चे के दूध या दवा के लिए, तो कभी बीच रास्ते बहू-बेटी को लाकर पैसा बटोरता है और रात को ताड़ी पीकर सब मस्त हो जाता है। कह कर तिपहिया आगे बढ़ा लिया। अब हम शहर में प्रवेश कर चुके थे बस स्टैंड पहुँचने के कुछ दूर पहले लालबत्ती पर रुकते ही .. समाज में ‘बीच वाले’ कहलाए जाने वाले दो व्यक्ति तिपहिया के पास आ खड़े हुए। लिपा-पुता चेहरा और केश-विन्यास, मुस्कराते हुए उन्होंने हाथ फैलाया । मैंने सुन रखा था कि इनकी जितनी बददुआ बुरी, उतनी ही दुआ भली। सो, मैंने झट से दस का नोट निकाल कर उनकी हथेली पर रख दिया और वे बगल में खड़ी कार की बंद खिड़की के पार झांकने लगे। लालबत्ती कब हरी हुई, मुझे पता न चला ।फिर सुनाई दिया लो भाई आ गया आपका बस स्टैंड। लेकिन बात ये नहीं है सच तो यह है कि समाज का कितना बड़ा हिस्सा आज भी हाशिये की जिंदगी जी रहा है। उच्च वर्ग अपनी उच्चता, अभिमान और अहं से त्रस्त है तो मध्यवर्ग अपनी दैनिक समस्याओं, पेट्रोल, दूध, सब्जी के रोज के बढ़ते दामों के चक्रव्यूह में घिरा हुआ है। ऐसे में समाज का निचला तबका कहे जाने वाले वर्ग में भी कितने उपवर्ग हैं, क्या उनकी गणना हो पाती है? ‘अतुल्य भारत’ या ‘इंक्रेडिबल इंडिया’ की तस्वीर में क्या वे भी शामिल हैं? सरकार और सरकारी नीतियों को छोड़ भी दें तो हम लोग भी ऐसे लोगों की मदद करते डरते-घबराते हैं, क्योंकि स्याह और सफेद में अंतर करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो गया है। जहां समाज सेवा का दावा करने वाली सरकारी और निजी संस्थाएं अपना पेट भरने के जुगाड़ में ही फिक्रमंद दिखती है। अचानक से मेरे बगल में ज़ोर से आवाज हुई मेरा भक्क खुला ये आवाज साईकल और मोटरसाईकल टकराने की थी। हाहाहाहा ... ये दुर्घटना कालेज आते हुये लड़कियों के झुंड को बगल मुड़कर साईकल चलाने का परिणाम था। मेरी निगाह घड़ी पर पड़ी आठ बज चुके थे। मैं भागा-भागा हॉस्टल आया और कालेज जाने कि तैयारी में जुट गया। बात यही खतम नहीं होती लेकिन प्रश्न यहीं से शुरू होता है आखिर क्यों ???
जहाँ कभी दूध-दही की नदियाँ बहती थी, अब वही बिना मिलावट के दूध-दही मिलना मुश्किल हो गया है। सोने की चिड़िया के नाम से जाने जाने वाले भारत में भी आज सोने का भाव आसमान छू रहा है। जहाँ कभी नारी की पूजा हुआ करती थी,वही आज भ्रूण-हत्या हो रही है, मानवता रो रहो है। जहाँ लोग घरों में ताला तक नहीं लगते थे, वही आज लोग 'एटीएम' भी उखाड़ा करते हैं। जहाँ दिन में नारी, लम्बा घूंघट निकाले रहती थी, वही आज-कल तो दुपट्टा भी नहीं रखती हैं। जहाँ प्रकृति व पेड़ों की पूजा होती थी वहीं अब अँधा-धुंध वनों की कटाई हो रही है। बढ़ती आवादी के साथ धड़ल्ले से वन्य-जीवों का शिकार हो रहा है। कहते है -भारत की आत्मा गाँवो में बसती है और वही की आधी आबादी अभी तक अनपढ़ है। जहाँ एक ओर भारत मे बेरोजगारी बढ़ रही है वही दूसरी ओर अमरीका इसकी तकनीकी मानव संसाधन का लोहा मन रही है। सच-मुच मेरा भारत अतुल्य है ऐसा महान जिसको विश्व में सबसे बड़े व सफ़ल लोकतंत्र के रूप में मिसाल दी जाती है वही कभी दूसरे विकसित देशों के आगे ऋण के लिए झोली फैलाता था और आज विश्व के सामने एक महान आर्थिक शक्ति के रूप में उभर रहा है। जिस देश में भाषाएँ व रहन-सहन थोड़ी-थोड़ी ही दूर पर बदल जाते हैं, उसकी विविधता में एकता के लिए मिसाल दी जाती है। लेकिन सिर्फ बुराइयों को कोसने से और अच्छाइयों का राग अलापने से कुछ भी नहीं होगा। अब जरूरत है कि जितना भी हो सके हम सभी अपने देश भारत को वास्तव में अतुल्य और महान बनाने में अपना योगदान दें। किसी शायर के शब्दों में ......
"सितम भी सहना ,दुआ भी देना ,बेबसी का वह गया जामना।
अगर जुर्रत है गिराओ न बिजली ,बन रहा हूँ मैं आशियाना। ।"
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चन्द्रशेखर प्रसाद , बी.-टेक(III); कंप्यूटर इंजीनियरिंग; एन.आई.टी, सूरत;
मुखियापट्टी, साहरघाट, मधुबनी (बिहार); मो. : +91-7600562108;
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एक नई दृष्टीकोण का एक नया आयाम दिखाया है चंद्रशेखर जी ने.....अदभुत.....!!
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