व्यंग्य इस बार दीपावली में - प्रमोद कुमार चमोली लो भैया! अब फिर आ गई दीपावली! दीपावली यानि खुशियों की होलसेल छूट का त्योहार। हमारी छो...
व्यंग्य
इस बार दीपावली में
- प्रमोद कुमार चमोली
लो भैया! अब फिर आ गई दीपावली! दीपावली यानि खुशियों की होलसेल छूट का त्योहार। हमारी छोटी सी समझदानी में ये बात फिट नहीं बैठती कि हम लोग पुरानी चीजों को आउटडेटेड कह कर छोड़ देते हैं पर इस दीपावली हम सदियों से क्यों पकड़े बैठे हैं। भैया राम जी राजा थे वे चौदह साल का बनवास पूरा करके घर लौटे थे सही है पर हम अभी तक दिये जलाकर उनका स्वागत क्यों करते हैं, क्या दीपावली के बाद हम उन्हें हर बार फिर बनवास में भेज देते हैं, और यदि ऐसा करते हैं तो एक दिन के लिए बुलाते ही क्यों हैं, बात में दम नज़र आता है। अब राम जी के सामने तो हम गड़बड़ियाँ घोटाले कर नहीं सकते सो हम उन्हें हर साल बनवास भेज देते हैं। फिर उनके सामने रैली सा माहौल बनाकर एक दिन दीपक जलाकर उन्हें खुश भी कर देते हैं।
खैर जो भी हो पर हमारी लक्ष्मी मैया से शिकायत है। बरसों बरस से हमारे घर में घी के दिए जला कर लक्ष्मी मैया की अगवानी की जाती है। पर अफसोस अभी तक मैया ने हमारी और एक बार भी रुख नहीं किया। हमारी समझ में यह नहीं आता कि लक्ष्मी जी का यह व्यवहार आखिर क्यों हैं? हमने इस पर एक महान पंडित ज्ञानी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आप जिस दुकान से दिए के लिए घी लाते हैं वो मिलावट करता है। इसलिए लक्ष्मी जी नाराज़ आप से नाराज हो जाती हैं और आपकी हालत जस की तस बनी रहती है। अब हमारी समझ में यह नहीं आया कि दूसरों की गलती की सजा हमें क्यों ? एक बात यह भी कि जो नकली घी बेच रहा है उसके यहाँ तो मैया ने स्थाई आवास बना रखा है और हमारे यहाँ वर्षों की अगवानी के बाद भी एक कदम नहीं रखा। जो भी हो हम यह काम बदस्तूर जारी रखे हुए हैं। बस इसी विश्वास के साथ कि कभी तो लक्ष्मी मैया हमारी और भी देखेगी।
आप लोग कहेंगे, ये तो गया काम से इसको अब दीपावली पर भी ऐतराज होने लगा। भैया हमें दीपावली पर ऐतराज नहीं है। न ही खुशियां मनाने की हमारी परम्परा पर कोई एतराज है। हमें तो दीपावली पर कुछ लिखना था सो लिख डाला। आप पढ़ो तो ठीक न पढ़ो तो और भी ठीक। खैर आप से क्या कहें पढ़ना तो सभी ने बंद कर दिया है। जिन्हें पढ़कर पास होना है वे भी पासबुक पढ़ कर ही पास हो जाते हैं तो आप को पढ़ना किस लिए है। पढ़ना ही है तो अपनी बैंक की पासबुक को पढ़ो देखो उसमें बैलेंस कितना है। बाजार छूट के मायावी आफरों से भरा है। आप कौन सी छूट का फायदा उठाना चाहते हैं। हालांकि आप में से कुछ को ये पासबुक पढ़नी भी नहीं पढ़ेगी क्योंकि उसमें जितना बैलेंस था वो तो आप वेतन मिलने के दूसरे दिन ही निकाल लाए थे। हाँ एक बात जरूर है कि शायद बोनस जमा हो गया हो। कुछ लोगों को पासबुक इसलिए भी नहीं देखनी पड़ती क्यों कि उनके बिस्तरों के गद्दों में कई दिवालियों के नोट है। कुछ को दीपावली पर इतनी भेंट मिल जाती है कि उन्हें जेब से कानी कौड़ी भी खर्च नहीं करनी पड़ती। खैर जो भी हो हमारे जैसे मेंगोमेन के लिए दीपावली खुशियों की जगह जुगाड़ का त्योहार हो जाता है। यह देखना पड़ता है कि इस बार किस को पटाया जाए कि उधार मिल जाए। ताकि खुशियों की होलसेल लूट से हम भी अपने बच्चों के लिए चुटकी भर खुशियां ले सके। अफसोस इस बात का है कि इस बार हमें किसी ने उधार नहीं दिया है।
बाजार में इतनी खुशियाँ सजी हैं कि समझ ही नहीं आता कि कौनसी खुशी हमारे जीवन को सच्ची खुशी दे सकती है। पिछली बार ही तो किश्तों में जीवन में रंगीनियां लाने के लिए रंगीन टीवी बीवी के कहने पर ले आए थे। जो भी अब पुराना हो गया। हमारे लिए मुसीबत तो हमारे पड़ौसी पैदा करते हैं। वे तो कल ही एक बड़ा सा एल.ई.डी. उठा कर ले आए और हाँ दूसरे वाले पड़ौसी ने लेपटॉप खरीद लिया है। बस हमारे लिए संकट पैदा हो गया है। बच्चे लेपटॉप और एल.ई.डी. की कर माँग रहें हैं तो धर्मपत्नी आटोमैटिक वाशिंग मशीन । दुकान वाले से वाशिंग मशीन किश्तों में लेने की बात की तो उसने मंदी की बात कह कर हमें मना कर दिया। भैया हम बड़े ही धर्मसंकट में हैं! पर कर क्या कर सकते है? हमारी जेब में पड़े थोड़े से रूपये हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं। हमारे पास तो इनको लाने का कोई उपाय है नहीं। बच्चों की व्यंग्य की फूलझड़ियों और श्रीमती जी के तानों के अनार के सामने हमारा सुतली बम्ब फुस्स ही होगा ही इसमें कोई शक नहीं है।
बाज़ार में खड़े हम सोच रहें हैं हम ऐसा क्या करें कि हमारी इज्जत बच जाए। सो भैया हमने कई तरह के विचार बनाए। पहले सोचा कि मिठाई इसके लिए अचूक दवा है। तभी घर से मोबाईल पर घंटी बज गई कि आजकल मिठाई में मिलावट बहुत हो रही है रहने देना, चॉकलेट ले आना। पर भैया यह तो टीवी के विज्ञापनों में ही ठीक है। हमारे जैसा मेंगोमैन इसे खरीद नहीं सकता। सो भैया हमने अब नया विचार बनाया है। एक तो हमने अपने बच्चों को बहुत दिनों से प्याज और टमाटर नहीं खिलाए हैं सो पाँच-पाँच किलो खरीद लिए हैं। हमने पत्नी को खुश करने के लिए भी एक नायाब उपास सोच लिया है। इस दीपावली के शुभअवसर पर हमने एक गैलन खरीद कर पाँच लीटर पैट्रोल खरीद लिया है जिसे हम महीनों से बंद पड़े हमारे स्कूटर में डाल कर धर्मपत्नी को अपने खड़खड़ स्कूटर लॉगं ड्राइव पर ले जाएँगे।
प्रमोद कुमार चमोली
राधास्वामी संत्संग भवन के सामने
गली नं.-2,अंबेडकर कॉलोनी
बीकानेर, 334003
इस बार दीपावली में
- प्रमोद कुमार चमोली
लो भैया! अब फिर आ गई दीपावली! दीपावली यानि खुशियों की होलसेल छूट का त्योहार। हमारी छोटी सी समझदानी में ये बात फिट नहीं बैठती कि हम लोग पुरानी चीजों को आउटडेटेड कह कर छोड़ देते हैं पर इस दीपावली हम सदियों से क्यों पकड़े बैठे हैं। भैया राम जी राजा थे वे चौदह साल का बनवास पूरा करके घर लौटे थे सही है पर हम अभी तक दिये जलाकर उनका स्वागत क्यों करते हैं, क्या दीपावली के बाद हम उन्हें हर बार फिर बनवास में भेज देते हैं, और यदि ऐसा करते हैं तो एक दिन के लिए बुलाते ही क्यों हैं, बात में दम नज़र आता है। अब राम जी के सामने तो हम गड़बड़ियाँ घोटाले कर नहीं सकते सो हम उन्हें हर साल बनवास भेज देते हैं। फिर उनके सामने रैली सा माहौल बनाकर एक दिन दीपक जलाकर उन्हें खुश भी कर देते हैं।
खैर जो भी हो पर हमारी लक्ष्मी मैया से शिकायत है। बरसों बरस से हमारे घर में घी के दिए जला कर लक्ष्मी मैया की अगवानी की जाती है। पर अफसोस अभी तक मैया ने हमारी और एक बार भी रुख नहीं किया। हमारी समझ में यह नहीं आता कि लक्ष्मी जी का यह व्यवहार आखिर क्यों हैं? हमने इस पर एक महान पंडित ज्ञानी से इस बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि आप जिस दुकान से दिए के लिए घी लाते हैं वो मिलावट करता है। इसलिए लक्ष्मी जी नाराज़ आप से नाराज हो जाती हैं और आपकी हालत जस की तस बनी रहती है। अब हमारी समझ में यह नहीं आया कि दूसरों की गलती की सजा हमें क्यों ? एक बात यह भी कि जो नकली घी बेच रहा है उसके यहाँ तो मैया ने स्थाई आवास बना रखा है और हमारे यहाँ वर्षों की अगवानी के बाद भी एक कदम नहीं रखा। जो भी हो हम यह काम बदस्तूर जारी रखे हुए हैं। बस इसी विश्वास के साथ कि कभी तो लक्ष्मी मैया हमारी और भी देखेगी।
आप लोग कहेंगे, ये तो गया काम से इसको अब दीपावली पर भी ऐतराज होने लगा। भैया हमें दीपावली पर ऐतराज नहीं है। न ही खुशियां मनाने की हमारी परम्परा पर कोई एतराज है। हमें तो दीपावली पर कुछ लिखना था सो लिख डाला। आप पढ़ो तो ठीक न पढ़ो तो और भी ठीक। खैर आप से क्या कहें पढ़ना तो सभी ने बंद कर दिया है। जिन्हें पढ़कर पास होना है वे भी पासबुक पढ़ कर ही पास हो जाते हैं तो आप को पढ़ना किस लिए है। पढ़ना ही है तो अपनी बैंक की पासबुक को पढ़ो देखो उसमें बैलेंस कितना है। बाजार छूट के मायावी आफरों से भरा है। आप कौन सी छूट का फायदा उठाना चाहते हैं। हालांकि आप में से कुछ को ये पासबुक पढ़नी भी नहीं पढ़ेगी क्योंकि उसमें जितना बैलेंस था वो तो आप वेतन मिलने के दूसरे दिन ही निकाल लाए थे। हाँ एक बात जरूर है कि शायद बोनस जमा हो गया हो। कुछ लोगों को पासबुक इसलिए भी नहीं देखनी पड़ती क्यों कि उनके बिस्तरों के गद्दों में कई दिवालियों के नोट है। कुछ को दीपावली पर इतनी भेंट मिल जाती है कि उन्हें जेब से कानी कौड़ी भी खर्च नहीं करनी पड़ती। खैर जो भी हो हमारे जैसे मेंगोमेन के लिए दीपावली खुशियों की जगह जुगाड़ का त्योहार हो जाता है। यह देखना पड़ता है कि इस बार किस को पटाया जाए कि उधार मिल जाए। ताकि खुशियों की होलसेल लूट से हम भी अपने बच्चों के लिए चुटकी भर खुशियां ले सके। अफसोस इस बात का है कि इस बार हमें किसी ने उधार नहीं दिया है।
बाजार में इतनी खुशियाँ सजी हैं कि समझ ही नहीं आता कि कौनसी खुशी हमारे जीवन को सच्ची खुशी दे सकती है। पिछली बार ही तो किश्तों में जीवन में रंगीनियां लाने के लिए रंगीन टीवी बीवी के कहने पर ले आए थे। जो भी अब पुराना हो गया। हमारे लिए मुसीबत तो हमारे पड़ौसी पैदा करते हैं। वे तो कल ही एक बड़ा सा एल.ई.डी. उठा कर ले आए और हाँ दूसरे वाले पड़ौसी ने लेपटॉप खरीद लिया है। बस हमारे लिए संकट पैदा हो गया है। बच्चे लेपटॉप और एल.ई.डी. की कर माँग रहें हैं तो धर्मपत्नी आटोमैटिक वाशिंग मशीन । दुकान वाले से वाशिंग मशीन किश्तों में लेने की बात की तो उसने मंदी की बात कह कर हमें मना कर दिया। भैया हम बड़े ही धर्मसंकट में हैं! पर कर क्या कर सकते है? हमारी जेब में पड़े थोड़े से रूपये हमें मुंह चिढ़ा रहे हैं। हमारे पास तो इनको लाने का कोई उपाय है नहीं। बच्चों की व्यंग्य की फूलझड़ियों और श्रीमती जी के तानों के अनार के सामने हमारा सुतली बम्ब फुस्स ही होगा ही इसमें कोई शक नहीं है।
बाज़ार में खड़े हम सोच रहें हैं हम ऐसा क्या करें कि हमारी इज्जत बच जाए। सो भैया हमने कई तरह के विचार बनाए। पहले सोचा कि मिठाई इसके लिए अचूक दवा है। तभी घर से मोबाईल पर घंटी बज गई कि आजकल मिठाई में मिलावट बहुत हो रही है रहने देना, चॉकलेट ले आना। पर भैया यह तो टीवी के विज्ञापनों में ही ठीक है। हमारे जैसा मेंगोमैन इसे खरीद नहीं सकता। सो भैया हमने अब नया विचार बनाया है। एक तो हमने अपने बच्चों को बहुत दिनों से प्याज और टमाटर नहीं खिलाए हैं सो पाँच-पाँच किलो खरीद लिए हैं। हमने पत्नी को खुश करने के लिए भी एक नायाब उपास सोच लिया है। इस दीपावली के शुभअवसर पर हमने एक गैलन खरीद कर पाँच लीटर पैट्रोल खरीद लिया है जिसे हम महीनों से बंद पड़े हमारे स्कूटर में डाल कर धर्मपत्नी को अपने खड़खड़ स्कूटर लॉगं ड्राइव पर ले जाएँगे।
प्रमोद कुमार चमोली
राधास्वामी संत्संग भवन के सामने
गली नं.-2,अंबेडकर कॉलोनी
बीकानेर, 334003
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