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अगीत कविता का मुख्य अभिप्राय: है राष्ट्र, समाज व जमीन से जुड़ी वह छोटी अतुकांत कविता जो पांच से दस पंक्तियों से कम या अधिक की न हो। जिसमें लय व गति हो , गेयता का बंधन न हो एवं मात्रा- बंधन भी आवश्यक नहीं। वर्तमान में अगीत काव्य-विधा में प्रचलित व प्रयोग हो रहे विविध छंदों का नीचे वर्णन किया जा रहा है। वे छंद ये हैं-----
(१)- अगीत छंद
२-लयबद्ध अगीत
३-गतिमय सप्तपदी अगीत
४-लयबद्ध षटपदी अगीत
५-नव-अगीत
६-त्रिपदा अगीत
७-त्रिपदा अगीत गज़ल।
(१)- अगीत छंद --- अगीत छंद के मुख्य रचना-विधान नियम ये हैं----
१-अतुकांत कविता
२.सामान्यतया पांच से आठ ( अधिकतम दस ) पंक्तियों से कम व अधिक नहीं।
३.मात्रा बंधन नहीं
४.गति, यति व लय होनी चाहिए
५.गेयता, अगेयता का बंधन नहीं।
.यथा---
"इधर उधर जाने से
क्या होगा ;
मोड़ मोड़ पर जमी हुईं हैं ,
परेशानियां।
शब्द -शब्द अर्थ सहित
कह रहीं कहानियां
मन को बहलाने से
क्या होगा ।"
----- डा रंगनाथ मिश्र 'सत्य'
"आज उन्हें चलना होगा
शान्ति के पथ पर ,
जिन्होंने कल
हमारे खून की,
होली खेली है ।"
------डा सुरेशचंद्र शुक्ल, नार्वे
" झरबेरी के कांटे
तुमने क्यों बांटे ?
सुबह शाम दोनों -
बोल उठे राम-राम ;
सच्चाई के गाल पर
पड़ते हैं चांटे ।"
--- वीरेंद्र निझावन
" प्रेम विह्वलता,विरह, भावातिरेक की धारा ,
बहती है जब मन में ,
अजस्र, अपरिमित, प्रवाहमान; तब-
गीत निस्रत होते हैं.
सरिता की अविरल धारा की तरह ।
वही धारा, प्रश्नों को उत्तरित करती हुई
व्याख्या, विश्लेषण, सत्य को
जन -जन के लिए उद्घाटित करती हुई,
निस्रत निर्झरिणी बन कर -
अगीत बन जाती है ।"
---डा श्याम गुप्त
(२)- लयबद्ध अगीत छंद ...
-----इनका रचना-विधान निम्न होना चाहिए ---
१-अतुकांत गीत
२.सात से दश तक पंक्तियाँ
३.गति, लय व गेयता आवश्यक
४. प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ।
उदाहरण-----
"तुम जो सदा कहा करती थीं
मीत सदा मेरे बन रहना।
तुमने ही मुख फेर लिया क्यों
मैंने तो कुछ नहीं कहा था।
शायद तुमको नहीं पता था ,
मीत भला कहते हैं किसको।
मीत शब्द को नहीं पढ़ा था ,
तुमने मन के शब्दकोश में ।।"
----प्रेम काव्य से ( डा श्याम गुप्त )
(३)-गतिमय सप्तपदी अगीत --
---- इसका रचना विधान यह है ----
१.अतुकांत कविता
२.सात पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिमयता आवश्यक
४.गेयता होनी चाहिए ।
--एक उदाहरण देखें ....
" छुब्ध हो रहा है हर मानव
पनप रहा है बैर निरंतर ;
राम और शिव के अभाव में ,
विकल हो रहीं मर्यादाएं ;
व्याप्त होरहा विष, चन्दन में।
पीड़ायें हर सकूं जगत की,
ज्ञान मुझे दो प्रभु, प्रणयन का ।।"
-------- मोह व पश्चाताप से (श्री जगत नारायण पाण्डेय )
(४) लयबद्ध षट्पदी अगीत .
...इस छंद का रचना विधान इस प्रकार है ----
१.अतुकांत कविता
२.लयबद्धता व गेयता अनिवार्य
३.गतिमयता आवश्यक
४.छ : पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
५.प्रत्येक पंक्ति में सोलह निश्चित मात्राएँ।
उदाहरण----
" परम व्योम की इस अशान्ति से ,
द्वंद्व भाव कण-कण में उभरा ;
हलचल से गति मिली कणों को ,
अप:तत्व में साम्य जगत के।
गति से आहत नाद बने ,फिर -
शब्द वायु ऊर्जा जल और मन ।।"
----सृष्टि महाकाव्य से।
एवं ....
लोलुप भ्रमरों की बातें क्या ,
ललचाते अतुलित शूर वीर।
इस तन की कृपा, प्रणय भिक्षा ,
हित, कितने ही पद-दलित हुए।
पर आज मुझे क्यों लगता है,
संगीत फूटता कण कण से ।।"
---- ( शूर्पणखा काव्य-उपन्यास से...डा श्याम गुप्त )
५-नव-अगीत ....इस छंद का रचना विधान निम्न है.....
१.अतुकांत लघु अगीत छंद
२.तीन से कम व पांच से अधिक पंक्तियाँ नहीं
३.लय, गति व मात्रा बंधन से मुक्त
४. मुख्यतया: सामाजिक सरोकारों ,कटु सत्य, नवीन विचारों से युक्त परन्तु अनिवार्यता व बंधन नहीं।
उदाहरण-----
" बेडियाँ तोडो
ज्ञान दीप जलाओ ;
नारी ! अब-
तुम्हीं राह दिखाओ,
समाज को जोड़ो ।"
------सुषमा गुप्ता
"मुस्तैद मित्र पुलिस
हरदम तैयार ;
फिर भी नहीं मिली ,
उत्तम प्रदेश में-
चोरी गयी कार ।"
-----डा श्याम गुप्त
"सावधान होजायें
ऐसे दुमुहे
मुझे न भाएँ ;
जो खाएं और गुर्रायें
इन दुमुहों के पास न जाएँ ।"
---- सोहन लाल सुबुद्ध
"शब्द वेधी वाण ने
हरे श्रवण के प्राण ;
कैकयी की वाणी ने .
वन भेजा सुकुमार ।"
--- पार्थो सेन ।
(६) त्रिपदा अगीत ....
-----। इस छंद का रचना विधान यह है ----
१.अतुकांत छंद
२.तीन पंक्तियों से कम व अधिक नहीं
३.गतिबद्ध परन्तु गेयता का बंधन नहीं
४. सोलह-सोलह निश्चित मात्राओं की तीनों पंक्तियाँ।
यथा----
"श्वेत धवल दाडी लहराती,
भाल विशाल, उच्च आभामय ;
सच्चे निस्पृह युग-ऋषि थे वे ।"
---- वचनेश त्रिपाठी के प्रति ( डा श्याम गुप्त )
" प्यार बना ही रहे हमेशा ,
ऐसा सदा नहीं क्यों होता ;
सुन्दर नहीं नसीब सभी का ।"
----- सुषमा गुप्ता
७- त्रिपदा अगीत गज़ल ....
------------------इसका रचना विधान निम्न है .....
१.त्रिपदा अगीत छंदों की मालिका जिसमें तीन या अधिक छंद होने चाहिए।
२.प्रथम छंद की तीनों पंक्तियों के अंत में वही शब्द आवृत्ति होनी चाहिए।
३.शेष छंदों में वही शब्द आवृत्ति अंतिम पंक्ति में आना आवश्यक है।
४.अंतिम छंद में कवि अपनी इच्छानुसार अपना नाम या उपनाम रख सकता है।
उदाहरण देखें ....
पागल दिल
क्यों पागल दिल हर पल उलझे ,
जाने क्यों किस जिद में उलझे ;
सुलझे कभी, कभी फिर उलझे।
तरह-तरह से समझा देखा ,
पर दिल है उलझा जाता है ;
क्यों ऐसे पागल से उलझे।
धडकन बढती जाती दिल की,
कहता बातें किस्म किस्म की ;
ज्यों काँटों में आँचल उलझे ।।
---डा श्याम गुप्त
बात करें
भग्न अतीत की न बात करें ,
व्यर्थ बात की क्या बात करें ;
अब नवोन्मेष की बात करें।
यदि महलों में जीवन हंसता ,
झोपडियों में जीवन पलता ;
क्या उंच-नीच की बात करें।
शीश झुकाएं क्यों पश्चिम को,
क्यों अतीत से हम भरमाएं ;
कुछ आदर्शों की बात करें।
शास्त्र बड़े-बूढ़े और बालक ,
है सम्मान देना, पाना तो;
मत श्याम' व्यंग्य की बात करें ।।
---डा श्याम गुप्त ।
---------------- डा श्याम गुप्त,
के-३४८, आशियाना , लखनऊ -२२६०१२, मो-९४१५१५६४६४
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