अच्छा सिला दिया स्कूल में छुट्टी की घंटी लगते ही बच्चे स्कूल गेट से निकल कर सड़क पर बेतहाशा भागने लगे जैसा कि बच्चों की आदत होती है। ...
अच्छा सिला दिया
स्कूल में छुट्टी की घंटी लगते ही बच्चे स्कूल गेट से निकल कर सड़क पर बेतहाशा भागने लगे जैसा कि बच्चों की आदत होती है। जिनके मां या बाप लेने आते है उन बच्चों को ऐसा करने नहीं दिया जाता है। किरण दूसरी कक्षा में पढ़ने वाली मासूम सी बच्ची थी जो छुट्टी के बाद अपना भारी-भरकम बस्ता लिए सड़क पर दौड़ गयी थी। स्कूल से कुछ ही दूर घर होने के कारण शायद उसके मां-बाप उसे लेने आने में बिलंब कर देते थे। घर से कुछ ही दूर पर जहां सड़क मुड़ती थी वहां पर न जाने किसी स्कूटर या मोटर साइकिल चालक ने किरण को धक्का मार कर गिरा दिया था और भाग गए थे। किरण के सर से लगातार खून बह रहा था। सड़क के दोनों तरफ दुकानें थी परंतु सभी दुकानदार और ग्राहक सिर्फ तमाशबीन बने हुए थे कोई भी उस मासूम की मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था और न ही कोई उसके मां-बाप को खबर ही कर रहा था। ज्यादा खून निकल जाने के कारण किरण अब बेहोश हो चुकी थी।
तमाशबीन लोगों के मन में शायद पुलिस केस बनने का भय था और आने जाने वाला कोई भी गाड़ी चालक किरण के मदद के लिए रूक भी नहीं रहा था। राहुल जब अपनी कार से कोर्ट के लिए निकला तो रास्ते में उसे मासूम सी लड़की खून से लथपथ बेहोश नजर आयी तो उसने कार रोक दी और आस-पास के लोगों से पूछताछ करने के बाद उसे पता चला कि पास में ही उस मासूम लड़की का घर है, उसने झट से उस घर में दस्तक दिया और उसकी मां को सारी बात बताकर उसे अस्पताल चलने को कहा। कार पर उसने किरण को उसकी मां के साथ बिठाया और तेजी से कार चलाते हुए शहर का सदर अस्पताल पहुंच गया। अधिवक्ता होने के कारण अस्पताल में उसे तुरंत डाक्टरों की मदद मिल गयी उसने किरण को फस्ट ऐड करवा दिया और किरण की मां से पूछ कर किरण के पिता को लाने चला गया जो बैंक में कार्यरत थे। आधे घंटे से भी कम समय में राहुल ने किरण के पिता को बैंक से अस्पताल ले आया था। तब तक किरण होश में आ चुकी थी, उसका चेहरा एक तरफ से काफी छील गया था और वो दर्द से कराह रही थी।
राहुल के दो घंटे इन सभी कामों में बीत गये, अब कोर्ट जाना जरूरी था इसलिए उसने किरण के मां-बाप को कानूनी सलाह दे देना जरूरी समझते हुए कहा कि थाने में वे लोग अननोन पर एफआइआर कर दें यह जरूरी है। किरण के मां-बाप ने पुलिस पचड़े में न पड़ने की बात कहते हुए कोई एफआइआर दर्ज नहीं कराने की बात कही। राहुल अस्पताल के बगल में ही स्थित कोर्ट चला गया।
शाम होते-होते किरण के मोहल्ले के जितने बेरोजगार युवक थे सभी अस्पताल परिसर में जमा हो गए और किरण के पिता को समझाने लगे कि राहुल ने ही किरण को अपनी कार से कुचल दिया था इसलिए किरण को उसके मां के साथ अस्पताल ले आया और आपको भी बैंक से अपनी कार पर लाया क्योंकि आप लोग उसके एहसान के बदले उसपर कोई पुलिसिया कार्रवाई न करें। कुछ अन्य किरण के पिता को यह समझा रहे थे कि माना कि किरण खतरे से बाहर है लेकिन यही मौका है वकील साहब से मोटी रकम ऐंठने की अगर आप नहीं लेना चाहते तो हमलोगों को कहें हम लोग वकील साहब से अभी मोटी रकम वसूल कर लाते हैं।
दूसरे दिन जब राहुल कोर्ट पहुंचा तो एक पुलिसवाला वहां आया और राहुल को कहा कि वकील साहब लापरवाही और तेजी से कार चलाते हुए आपने एक स्कूल की लड़की किरण को कल धक्का मार दिया था जिससे वह जख्मी हो गयी और अस्पताल में गंभीर हालत में इलाज रत है। राहुल के होश उड़ गये, अपने मोवक्किलों को बेल दिलाते हुए उसे बीस वर्ष से भी ज्यादा हो गए थे। पुलिस को सफाई देने की राहुल ने जरूरत नहीं समझी, उसने बस इतना ही कहा कि एफआइआर सीजीएम के कोर्ट में आते ही वह बेल ले लेगा।
राहुल को इस बात का दुख हुआ था कि किरण के मां-बाप ने उसे अच्छा सिला दिया मानवता दिखाने का लेकिन उसे यह आत्मसंतुष्टि थी कि एक मासूम बच्ची को उसने मरने से बचा लिया।
--
ड्यूटीफूल
कहां से इस बोगी में आ रहे हो तुम, रेलवे के तीन पुलिसकर्मी ने एक यात्री को डपटते हुए पूछा। वह यात्री बेचारा डर गया, उसने झट से टिकट निकाल कर दिखाया और कहा मुबंई से। रेलवे पुलिस ने टिकट छीनते हुए उससे एक सौ साठ रूपए की मांग की। आपत्ति करने पर यात्री को बोगी से बाहर निकालने की धमकी देने लगे। रेलवे पुलिस ने अपने मांगे गए रूपए के दवाब को बढ़ाने के लिए कहा कि तुम ‘लेडीज बोगी' में हो इसलिए तुम्हें जुर्माना एक सौ साठ रूपए देने होगें, नहीं तो नीचे का रास्ता नापो।
इसी बीच एक दूसरे रेलवे पुलिस ने एक अन्य यात्री को पकड़ लिया और उससे भी जुर्माने की मांग करने लगे। मुबंई मेल चार घंटे लेट थी, सुबह के चार बज रहे थे। रेल खुलने ही बाली थी और मैं दौड़ता-दौड़ता उसी बोगी में चढ़ा। यह वाकया गया रेलवे स्टेशन का है। मुझे देखकर एक रेलवे पुलिसकर्मी मेरी तरफ बढ़ा और कहा कि यह ‘लेडीज बोगी' है, आपको जुर्माना देना होगा।
मैं थोड़े सकते में आ गया और मैंने ठीक से उन तीनों का मुआयना किया। वे मेरे रवैये से थोड़े सहम से गये। मैंने उन लोगों को कहा देखिए अव्वल तो जुर्माना लेने के आप हकदार है नहीं और शायद मैं जुर्माना आप लोगों को दे भी देता अगर आप सभी ड्यूटी पर शराब पिये नहीं होते। एक पुलिसकर्मी ने मुझे धमकाने के लहजे में आगे बढ़ा ही था कि एक थोड़ा उम्रदराज पुलिसकर्मी ने उसे रोका।
मैं आगे कहना शुरू किया कि सर्वप्रथम तो जुर्माना लेने का कार्य टीटी का है, दूसरी बात यह है कि शराब पीकर ड्यूटी करना एक जुर्म है और अगर इसकी शिकायत मैं कर दूं तो आप सभी की नौकरी खतरे में पड़ सकती है।
इतना सुनना था कि वे तीनों गधे की सींग की तरह गायब हो गए।
--
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू,बरगंड़ा, गिरिडीह
झारखंड 815301
COMMENTS