सन १९७९ में 'धरती' पत्रिका का पहला अंक विदिशा जैसी छोटी जगह से प्रकशित हुआ. यह प्रवेशांक था और इसकी अपनी सीमायें थीं. अंक छोटा था ...
सन १९७९ में 'धरती' पत्रिका का पहला अंक विदिशा जैसी छोटी जगह से प्रकशित हुआ. यह प्रवेशांक था और इसकी अपनी सीमायें थीं. अंक छोटा था सामग्री सीमित. लेकिन 'नई दुनिया' इंदौर के रविवारीय परिशिष्ट में स्वर्गीय सोमदत्त ने इसकी चर्चा की.
संपादक की दृष्टि और लगन से यह लग रहा था कि भविष्य में यह पत्रिका अपना मुकाम बना सकेगी. इसके एक वर्ष बाद कवि-गीतकार जगदीश श्रीवास्तव के संयुक्त संपादन में पत्रिका का हिंदी ग़ज़ल अंक प्रकाशित होता है. इस अंक में कुछ अधिक परिपक्वता दृष्टिगत होती है. अधिकांश महत्त्वपूर्ण गज़लकारों की गज़लें इसमें आती हैं और ग़ज़लों के ऊपर कुछ आलेख भी इसमें प्रकाशित होते हैं. हिंदी जगत में इसका स्वागत भी होता है और सराहना भी. कई हिंदी अख़बारों और पत्रिकाओं में इस अंक का जिक्र होता है. इस अंक का लोकार्पण विदिशा के म्युनिसिपल हाल में सुप्रसिद्ध चित्रकार भाऊ समर्थ के हाथों सम्पन्न होता है. इसके बाद 'धरती' का समकालीन कविता अंक नांदेड महाराष्ट्र से प्रकाशित होता है इस अंक से 'धरती' एक सुनियोजित परिपक्व पत्रिका बन कर सामने आती है. इस अंक का देश के सभी भागों में बहुत गर्मजोशी से स्वागत होता है. इस अंक में कई महत्त्वपूर्ण कवियों कि कवितायेँ, अनुवाद और स्तरीय आलेख प्रकाशित होते हैं. हिंदी और मराठी पत्र-पत्रिकाओं में इसकी पर्याप्त चर्चा होती है.
धरती पत्रिका का सर्वाधिक चर्चित अंक सन १९८३ में इलाहाबाद से प्रकाशित होता है. यह कवि त्रिलोचन के कृतित्व पर केन्द्रित होता है. इस अंक में "स्थापना" के अंकों के बाद त्रिलोचन पर महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रस्तुत की गई थी. हिंदी जगत की अधिकांश लघुपत्रिकाओं यथा पहल, समवेत, धरातल, कदम से लेकर सारिका, दिनमान और साप्ताहिक हिंदुस्तान जैसी पत्रिकाओं में इस अंक की चर्चा होती है. त्रिलोचन अंक के पश्चात् 'धरती' हिंदी साहित्य की गिनी चुनी महत्त्वपूर्ण पत्रिकाओं में शामिल हो जाती है. तदुपरांत कानपुर से 'धरती' के तीन सामान्य अंक प्रकाशित होते हैं जिनसे धरती की अपनी पहचान बनी रहती है.
कानपुर प्रवास के दौरान शैलेन्द्र चौहान जन कवि मन्नूलाल शर्मा (त्रिवेदी) 'शील' के घनिष्ठ संपर्क में आते हैं और उनपर धरती का एक अंक निकालने का मन बना लेते हैं. यहां परेशानी यह होती है कि अधिकांश प्रगतिशील-जनवादी धारा के स्थापित रचनाकारों के पास शील जी की रचनाएँ उपलब्ध नहीं होती हैं या उन्होंने पढ़ी नहीं होती हैं अतः उन पर लिख पाना संभव नहीं होता. दो वर्षों के लगातार प्रयत्नों के बावजूद जब शील जी पर कोई रचनाकार लिखने को तैयार नहीं हुआ तो शैलेन्द्र धरती में सिर्फ शील जी कि रचनाएँ प्रकाशित करते हैं. उनकी चुनी हुई कवितायेँ, कुछ कहानियां और कुछ लेख. आखिर जिन लोगों ने शील जी को पढ़ा नहीं उनकी कुछ सहायता ही की जाये. कोटा में भारतेंदु समिति हाल में बाकायदा इसका लोकार्पण सम्पन्न होता है जिस आयोजन में बावजूद अस्वस्थता के शील जी अपने भतीजे के साथ शामिल होते हैं. अंक का लोकार्पण कथाकार हेतु भरद्वाज द्वारा किया जाता है और एक बहुत अच्छा पत्र-आलेख कवि ऋतुराज द्वारा प्रस्तुत किया जाता है. इस आयोजन में राजस्थान के सभी भागों से कवि-लेखक उपस्थित होते हैं, स्थानीय रचनाकार तो थे ही. इस आयोजन में शिवराम और महेंद्र नेह की भागीदारी अत्यंत महत्त्वपूर्ण होती है, उनके बिना यह कार्यक्रम संभव नहीं हो सकता था. यह सन १९८९ की बात है.
कोई एक दशक तक धरती का प्रकाशन स्थगित रहता है फिर नागपुर से १९९० में स्मरण अंक प्रकाशित होता है जिसमे हिंदी के महत्त्वपूर्ण रचनाकारों-आलोचकों की स्थायी महत्व की रचनाएँ शामिल की जाती है. इस अंक का जोरदार स्वागत होता है. नागपुर के हिंदी अंग्रेजी सभी अखबारों में इसका जिक्र होता है. तदुपरांत नागपुर से ही धरती का समकालीन जन कविता अंक प्रकाशित होता है. इस अंक में अनेकों समकालीन रचनाकारों की कवितायेँ शामिल होती हैं. उदय प्रकाश की एक कविता धरती से साभार लोकमत समाचार पत्र में प्रकाशित होती है और वह इतनी पसंद की जाती है की उदय प्रकाश को पहल सम्मान मिलने के लिए रास्ता प्रशस्त कर देती है.
नागपुर के बाद इंदौर से 'धरती' का शलभ श्रीराम सिंह अंक सन २००४ में प्रकाशित होता है. इस अंक में शलभ जी का वस्तुपरक और सम्यक मूल्यांकन प्रस्तुत किया जाता है बस महिमामंडन भर नहीं. शैलेन्द्र जी की सम्पादकीय दृष्टि और सूझ-बूझ यहाँ भली भांति परिलक्षित होती है. इस अंक पर 'कृत्या' नामक साहित्यिक वेब पत्रिका की टिप्पणी इस प्रकार है -"शलभ" श्री राम सिंह की कविताएँ ठेठ कस्बाई अनुराग से प्लावित होने के कारण ऐसी भाषा में संवाद कर पाती हैं जो केवल अपने लोगों की हो सकती है। शलभ की कविता उस आग की तपन लिए है जो सीधे सीने से निकलती है। 'अभी हाल में ही अनियमित कालीन पत्रिका धरती ने शलभ पर एक विशेषांक निकाला। कृत्या उसी में कुछ कविताओं का चयन कर एक प्रमुख लेख देना चाहेगी। इस के लिए हम "धरती" पत्रिका के आभारी हैं।' 'लेखन' पत्रिका (इलाहाबाद) ने इस अंक पर विस्तार से चर्चा की है.
जयपुर से धरती का 'साम्राज्यवादी संस्कृति बनाम जनपदीय संस्कृति' विषय केन्द्रित अंक बेहद सुगठित और स्तरीय सामग्री के साथ आता है. साहित्य और सामाजिक विज्ञान के गंभीर छात्रों के लिए एक सन्दर्भ ग्रन्थ की भांति उपयोगी है. जल्दी धरती का अगला अंक कश्मीर की उलझन विषय को केन्द्रित कर प्रकाशित होने जा रहा है इसमें अन्य सामग्री भी समाहित है. उम्मीद है की यह अंक भी धरती की पूर्व प्रकृति की तरह ही यथेष्ट गंभीर, स्तरीय एवं संग्रहणीय होगा.
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'धरती' सं - शैलेन्द्र चौहान, ३४/२४२, सेक्टर-३, प्रतापनगर, जयपुर -३०२०३३
ई मेल : dharati.aniyatkalik@gmail.com
मूल्य : एक अंक, पच्चीस रुपये
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