नवरात्र है शक्ति के जागरण का अवसर - आचार्य महाप्रज्ञ - नवरात्र का समय शक्ति जागरण का है। हमारे पास शक्ति है, महावीर्य है, उसका बोध होना ...
नवरात्र है शक्ति के जागरण का अवसर
- आचार्य महाप्रज्ञ -
नवरात्र का समय शक्ति जागरण का है। हमारे पास शक्ति है, महावीर्य है, उसका बोध होना जरूरी है। प्रत्येक व्यक्ति के पास अनंत वीर्य है। फिर कुछ व्यक्ति दीन-हीन और दुःखी हैं और कुछ व्यक्ति अत्यधिक समर्थ है। इसका हेतु क्या है? हेतु स्पष्ट है। अनंत वीर्य सबके पास है किन्तु पावर हाउस सबके पास नहीं है। बल्ब, ट्यूब लाइट-प्रकाश का माध्यम भी सबके पास नहीं है। दस पावर हाउस मनुष्य के पास हैं किन्तु अविकसित प्राणी के पास उतने नहीं हैं।
मनुष्य के पास शक्ति अभिव्यक्ति के दस केन्द्र (पावर हाउस) हैं। आंख का कार्य है देखना। वह कैसे देखती है? प्राण का प्रवाह आते ही आंख को देखने की, कान को सुनने की, नाक को सूंघने की, जिह्ना को स्वाद की और त्वचा को संवेदन की शक्ति उपलब्ध हो जाती है। वह प्रवाह आता है पावर हाउस से और वह पावर हाउस है-इन्द्रिय पर्याप्ति। यह बहुत बड़ा जेनरेटर है जो निरन्तर शक्ति को पैदा कर रहा है। इन्द्रिय पर्याप्ति से वीर्य विद्युत में बदल जाता है। वीर्य की अभिव्यक्ति का एक माध्यम है-योग वे तीन हैं- मनोयोग, वचनयोग और काययोग।
वीर्य येाग नहीं है। वीर्य की अभिव्यक्ति के जो केन्द्र हैं वे योग हैं। मन एक केन्द्र है चिंतन, स्मृति और कल्पना की अभिव्यक्ति का, वचन एक केन्द्र है भाषा की अभिव्यक्ति का और शरीर एक केन्द्र है प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति का। इस प्रकार मनोयोग, वचनयोग और काययोग-ये तीन योग तीन पावर हाउस बन गए। विस्तार में जाएं तो दस पावर हाउस बन गए। पंच इन्द्रियों के पांच पावर हाउस हैं। शरीर को संचालित करने वाला पावर हाउस है शरीर पर्याप्ति, वचन को संचालित करने वाला पावर हाउस है भाषा पर्याप्ति और मन को संचालित करने वाला पावर हाउस हे मनः पर्याप्ति। श्वासोच्छ्वास को संचालित करने वाला पावर हाउस है श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति। आयुष्य को संचालित करने वाला पावर हाउस है आहार पर्याप्ति। सामान्य नियम है कि हम किसी चीज को काम में लेंगे तो उसका व्यय होगा। शरीरशास्त्र के अनुसार प्रति सेकेण्ड लाखों-लाखों कोशिकाएं नष्ट हो रही हैं। यदि इस प्रकार निरन्तर नष्ट होने का क्रम जारी रहा तो स्थिति खतरे में हो जाएगी। इस संदर्भ में हमें यह नियम समझना होगा कि पुरानी कोशिकाएं नष्ट हो रही हैं और नई कोशिकाओं का उत्पाद हो रहा है। एक समय था जब यह माना जाता था कि मस्तिष्क के न्यूरॉन नष्ट होने के बाद पैदा नहीं होते। आज यह सिद्धांत भी बदल गया। अब नई शोध हो गई है कि मस्तिष्क के न्यूरॉन्स भी फिर से पैदा हो सकते हैं इनको कौन कैद कर रहा है? वीर्य पैदा कर रहा है। वह पावर हाउस बना रहा है। आंख देखती है। उसका मूल स्रोत है वीर्य। वह नाना कार्यों के लिए नाना रूपों से बंट जाता है। जब देखने का काम करना है तो वीर्य का पावर हाउस होगा चक्षुरिन्द्रिय पर्याप्ति। उसकी अभिव्यक्ति का केन्द्र होगा आंख का गोलक, रेटिना। आंख की रचना बल्ब है जहां से प्रकाश निकलता है। ये तीन चीजें सामने आ गइर्ं-वीर्य, वीर्य को प्रकट होने के लिए चाहिए पावर हाउस और अभिव्यक्ति के लिए चाहिए बल्ब, डेलाइट आदि।
जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए जरूरी है मनोबल का विकास। जब बच्चा सोलह, अठारह या बीस वर्ष का हो जाए तो उसे धन कमाने के साथ-साथ मनोबल को बढ़ाने का प्रशिक्षण दिया जाए। मनोबल कैसे बढ़ता है? मनोबल को कैसे बनाए रखा जा सकता है? उसका विकास कैसे किया जा सकता है? इसका अवबोध होने पर बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो सकता है। जिसने मनोबल को नहीं समझा, उसे बढ़ाने का तरीका नहीं समझा, वह सारी संपत्ति का त्याग करने पर भी दुःखी ही बना रहेगा। सबसे पहले मनोबल कैसे बढ़े? इस विषय पर सोचना है।
दूसरा बल है वाणी का। वाणी का बल भी बढ़ाया जा सकता है, वाणी में सरसता आ सकती है, ओज आ सकता है, वह दूसरों को प्रभावित भी कर सकती है। प्रभावित व्यक्ति आपकी बात मान सकता है। आचार्य भिक्षु के जीवन की दो शताब्दियां पूरी हो रही हैं। उनके भाषा वर्गणा के पुद्गलों में बहुत अधिक बल था। उन्होंने जो कुछ भी कहा वह यथार्थ रूप में घटित हुआ और हो रहा है। उन्होंने अपनी साधना के द्वारा वाक्बल को विकसित कर लिया था।
वाक्बल के विकसित होने पर चमत्कार घटित होता है। वीर्य का एक स्रोत मन के साथ प्रवाहित होता है। उसका दूसरा स्रोत वाणी के साथ और तीसरा स्रोत शरीर के साथ प्रवाहित होता है। मन की शक्ति को बढ़ाना है, वचन की शक्ति को बढ़ाना है और शरीर की शक्ति को बढ़ाना है। पुराने जमाने में शरीर का बल अधिक था। उस समय विशेष अस्पताल नहीं थे, दवाइयां भी नहीं थी और डॉक्टर भी नहीं थे। दवाई दादी मां के झोले में रहती थी। वह झोला ही डिस्पेन्सरी था। उसमें सौंठ, लौंग, इलायची, कालीमिर्च आदि द्रव्य रहते थे। इनके द्वारा मां घर के सदस्यों का इलाज कर देती थी।
भगवान महावीर के समय शक्ति-संपन्न व्यक्ति थे। उस समय सम्राट चंद्रप्रद्योत के दो दूत थे लोहजंघ और वज्रजंघ। कहा जाता है लोहजंघ उज्जयिनी से सूरज ढलने के साथ ही रवाना होता और प्रातःकाल सूर्योदय के समय राजगृह पहुंचकर सम्राट श्रेणिक से यात्रा प्रारंभ करता और एक रात में ही बिहार पहुंच जाता। सौ योजन यानी लगभग बारह सौ लिोमीटर की यात्रा तय कर लेता। आज रेल भी शायद इतनी तेज रफ्तार से नहीं चलती होगी।
कायबल के विकास की अनेक पद्धतियां बतलाई गई हैं। कायबल के द्वारा ही इतना तेज चलना संभव हो सकता है। राणाप्रताप के समय जो टोप था आज एक आदमी उसे हाथ में उठा भी नहीं सकता। वे सिर पर धारण कर युद्ध करते थे। लगता है कायबल कमजोर हुआ है। उसके साथ मनोबल भी कमजोर हुआ है। खैर, आज राणाप्रताप सबको नहीं बनना है, वह टोप भी सबको नहीं पहनना है। सबको लोहजंघ बनकर एक रात में बारह सौ किलोमीटर नहीं चलना है। आज कार, बस, ट्रेन, वायुयान आदि अनेक साधन हैं। पर कम से कम इतना कायबल रहे कि हम किसी भी कार्य को अच्छे ढंग से संपादित कर सकें और साथ ही मनोबल को भी बनाए रख सकें। अगर व्यक्ति के पास कायबल नहीं है तो मनोबल कहां से आयेगा?
शक्ति साधना पर्व के अवसर पर हम चिंतन करें कि हमारी सबसे ज्यादा मूल्यवान तीन निधियां हैं-मनोबल, वचनबल और कायबल। इन निधियों का हमें विकास करना है और इनको साधना है। धर्म केवल मोक्ष का ही साधन नहीं है, वह आरोग्य और निर्मलता का भी साधन है। शक्ति जागरण के लिए हम जप का अनुष्ठान करें । इस अभ्यास के द्वारा निर्मलता को प्राप्त किया जा सकता है। जप करने वाला निर्मलता, तेजस्विता और गंभीरता के साथ आरोग्य, बोधि और समाधि की भी याचना करें।
शक्ति का बहुत बड़ा साम्राज्य है। उसके हर पहलू पर विचार करें और ऐसी साधना करें जिससे हमारे तीनों योग अच्छे रहें, हमारी पर्याप्तियां जो पावर-हाउस हैं, ठीक काम करती रहें और हमारे प्राण, जो सारी शक्ति की अभिव्यक्ति के केन्द्र हैं, बिल्कुल स्वस्थ रहें। ऐसा चिंतन होने पर धर्म का मर्म भी समझ में आएगा और जीवन का मर्म भी समझ में आएगा।
प्रस्तुतिः ललित गर्ग
प्रेषकः
(ललित गर्ग)
ई-253, सरस्वती कुंज अपार्टमेंट
25 आई. पी. एक्सटेंशन, पटपड़गंज, दिल्ली-92
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