अब्दुल कलाम: रामेश्वरम से राष्ट्रपति भवन तक अब्दुल कलाम के बारे में जितना मैंने पढ़ा है उससे यही अंदाज़ लगाया है कि ख्वाब उनकी सबसे पसंदीदा ...
अब्दुल कलाम: रामेश्वरम से राष्ट्रपति भवन तक
अब्दुल कलाम के बारे में जितना मैंने पढ़ा है उससे यही अंदाज़ लगाया है कि ख्वाब उनकी सबसे पसंदीदा चीज़ हैं. ख्वाब के बारे में उनका खुद का कहना है कि ख्वाब वह नहीं होते जो हम सोते में देखते हैं बल्कि ख्वाब वह होते हैं जो हमें सोने ही न दें. और ऐसा उन्होंने न सिर्फ कहा बल्कि इसे करके भी दिखाया जब वो SLV-3 के परीक्षण के दौरान एक महीने तक रात में सिर्फ तीन घंटे ही सोया करते थे.
अनोखी विलक्षण प्रतिभा से भरे हुए किसी भारत रत्न के बारे में लिखना कोई आसान काम नहीं है खासतौर से मेरे लिए इसी लिए मुझे राल्फ वाल्डो एमर्सन की कविता का सहारा लेना पड़ा. ऐसा लगता है जैसे यह कविता उन जैसे लोगों के लिए नहीं बल्कि उन्हीं के लिए लिखी गई है.
Brave man who works while others sleep
who dare while others fly
they build a nations pillar deep
and life them to sky
क्या हैं कलाम?
इस सवाल के कई जवाब हैं अलग अलग लोगों की नज़र में.
मिस्टर टेक्नोलॉजी ऑफ़ इंडिया
डॉ. आर. ऐ.माशेलकर के शब्दों में
सचिव औद्योगिक संस्थान विभाग
चौबीस कैरेट स्वर्ण
वाई एस राजन के शब्दों में
महान संत वैज्ञानिक
एस.एस पंवार के शब्दों में
मिसाइल मैन
सारे भारत के शब्दों में
और सबसे बेहतर जवाब
मान लीजिए कोई कहता है कि दो और दो पॉँच होते हैं तो हम इसकी खिल्ली उड़ा सकते हैं लेकिन यह महान विचारक कहेगा कि चलो इसका विश्लेषण करके देखते हैं.
सुब्रमण्यम
सदस्य केन्द्रीय योजना आयोग.
अब्दुल कलाम का जन्म तमिलनाडु के रामेश्वरम कस्बे में १५ अक्तूबर १९३१ को हुआ. उनका परिवार नाव बनाने का काम करता था. उनके परिवार से दो उनके पक्के दोस्त थे एक उनके चचेरे भाई शमसुद्दीन और दूसरे उनके बहनोई जलालुद्दीन. जलालुद्दीन ने ही उन्हें ईश्वर में दृढ़ विश्वासी बनाया था. जलालुद्दीन के बारे में उनका कहना था "वह ईश्वर के बारे में ऐसी बातें करते थे जैसे ईश्वर के साथ उनकी कामकाजी भागीदारी हो."
कुछ दिनों उन्होंने अख़बार बाँटने का काम भी किया. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान जब ट्रेन ने रामेश्वरम रेलवे स्टेशन पर रुकना बंद कर दिया और चलती ट्रेन से ही अख़बार के बण्डल फ़ेंक दिए जाते थे तो उनके बड़े भाई को ज़रुरत थी एक ऐसे इन्सान की जो उनकी मदद कर सके. इस तरह से कमाल ने कुछ वक़्त अख़बार भी बांटे.
अपने छात्र जीवन के बारे में उनका कहना था कि परीक्षाओं में डिविजन लाने की दृष्टि से तो मैं कोई होशियार छात्र न था लेकिन मेरे रामेश्वरम के दो उस्तादों जलालुद्दीन और शमसुद्दीन के दिए व्यवहारिक ज्ञान ने मुझे कभी नीचा नहीं दिखने दिया.
"सन १९५० में इंटर करने के बाद B.Sc. की लेकिन फिर लगा कि मेरा सपना तो इंजीनियरिंग है" जिसके बाद उन्हें MIT(madras institute of engineering) में दाखिला लेने के लिए बहुत चक्कर लगाने पड़े क्योंकि उसकी फीस उस वक़्त १००० रूपये थी जिसके लिए उनकी बहन ने अपने गहने गिरवी रखे और उन्होंने उन गहनों को अपनी स्कालरशिप से छुड़वाने की बात अपने मन में ठानी.
कोर्स पूरा हो जाने के बाद उन्हें रक्षा मंत्रालय और भारतीय वायु सेना दोनों से बुलावा आया और उन्होंने वायुसेना को चुना लेकिन इंटरव्यू में केवल आठ ही लोग लिए जाने थे और उनका नंबर नवां था. इसके बाद लौटकर आकर उन्होंने DRDO में २५० रूपये के मासिक वेतन पर नौकरी कर ली.उन्हें लगता था "अगर मैं जहाज़ नहीं उड़ा रहा हूँ तो काम से काम उन्हें उड़ने लायक तो बना ही रहा हूँ."
उनका सबसे पहला आविष्कार हावरक्राफ्ट नंदी रहा लेकिन वह सेना में शामिल नहीं हो पाया क्योंकि यह परियोजना विवादों में फँस गई.
हावरक्राफ्ट के सेना में शामिल न हो पाने के दूसरा धक्का उन्हें तब लगा जब उनके दूसरे आविष्कार "दायामान्ट वील" जो की फ्रांस के सहयोग से चलाया जा रहा था में फ्रांस ने सहयोग करना बंद कर दिया. इसके बाद उन्होंने और उनके सहयोगियों ने अकेले ही इसपे काम किया और यही वह समय था जब परीक्षण से पहले वह केवल ३ घंटे ही सो पाते थे.
SLV-3 परियोजना उनके जीवन की सबसे दुखद परियोजना रही. इसी दरमियान उनके बहनोई जलालुद्दीन का निधन हो गया और इसके बाद उनके पिता का और फिर माता का. इतनी मौतों पर उनका कहना था "तुम क्यों शोक मना रहे हो उस काम पर ध्यान केन्द्रित करो जो तुम्हारे लिए पड़ा है. यह शब्द मुझसे किसी ने कहे नहीं फिर भी मैंने इन्हें सुना जोर जोर से स्पष्ट आवाज़ में और मैं बहुत ही शांति के मस्जिद से बाहर निकला और बिना अपने घर की तरफ देखे स्टेशन की ओर चल पड़ा."
SLV-3 का पहला प्रयोग सफल नहीं हो पाया और यान कुछ देर उड़ने के बाद समुद्र में गिर गया. इसकी कमियों को दूर करने के लिए वह फिर प्रयासरत हो गए और उन्होंने ऐसा कर दिखाया जब SLV-3 ने अपनी पहली उडान भरी.
उनकी सादगी की मिसाल मिलती है जब SLV-3 की कामयाबी के बाद उन्हें प्रधानमंत्री से मिलने जाना था. वह रोज़ की तरह हवाई चप्पलों और सादे कपड़ों में थे. उन्होंने अपनी यह समस्या जब प्रो. धवन को बताई तो उन्होंने हंसकर कहा अरे तुम तो अपनी सफलता से सजे हो. १९८१ में उन्हें पद्म भूषण से नवाजा गया.
अग्नि के परीक्षण के दौरान एक बार एक युवा उनसे पूछता है हम कामयाब कैसे होंगे हमारे मिशन में कोई बड़ी हस्ती तो है नहीं? तब वह जवाब देते हैं "एक बड़ी हस्ती वह छोटा व्यक्ति है जो लगातार अपने लक्ष्य पे निगाह जमाये हुए है."
एक बार एक वैज्ञानिक अपने बॉस के कमरे में जाता है और कहता है मुझे शाम को ५.३० बजे घर जाना है. आज बच्चों को घुमाने ले जाना है. बॉस ने इजाज़त दे दी लेकिन वह शाम को ५.३० बजे अपने घर जाना भूल गया और देर रत तक काम करता रहा. बाद में उसे याद आने पर जब वह अपने घर पहुंचा तो उसे लगता था कि सब नाराज़ होंगे लेकिन ऐसा कुछ भी न था उसकी पत्नी ने खाने को कहा. उसने दबी जुबान में बच्चों के बारे में पूछा तो पता चला कि शाम को ५.१५ बजे कोई व्यक्ति आया था और बच्चों को घुमाने ले गया है. यह व्यक्ति कोई और नहीं अब्दुल कलाम ही थे. उनका कहना था कि यह हर बार नहीं किया जा सकता लेकिन एक बार तो किया ही जा सकता है.
उनके बाकी प्रयोगों की तरह अग्नि की कहानी भी बहुत दुखद रही.अग्नि ने भी कई बार परीक्षण करके बाद ही अपनी उडान भरी. असफलता पर उन्हें कभी कभी अख़बारों के कार्टून का सामना करना पड़ता तो कभी दूसरी बातों का. अग्नि की उडान के बाद दूसरे देशों में आरोप लगाने शुरू कर दिए.अमेरिका ने कहा कि भारत ने अग्नि जर्मनी की सहायता से बने हा जर्मनी ने इसे फ्रांस की तरफ मोड़ दिया. लेकिन आखिर में अग्नि कलाम की ही मानी गई.
इसके बाद १९९० में अब्दुल कलाम को पद्म विभूषण और १९९७ में भारत रत्न से नवाजा गया. इसी के साथ जादवपुर यूनिवर्सिटी ने उन्हें डॉ. ऑफ़ साइंस की मानद उपाधि दी. २००२ में उन्हें भारत का राष्ट्रपति चुना गया.
हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी को रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में एक दीदावर पैदा.
-
शामिख फराज
shamikh.faraz@gmail.com
COMMENTS