॰याददाश्त॰ चुनाव प्रचार पार्टी ने एक गरीब बुढ़िया की झोपड़ी में प्रवेश किया। कहने को वो बुढ़िया थी ,पर उसका बहुत बड़ा खानदान था जो अब भी...
॰याददाश्त॰
चुनाव प्रचार पार्टी ने एक गरीब बुढ़िया की झोपड़ी में प्रवेश किया। कहने को वो बुढ़िया थी ,पर उसका बहुत बड़ा खानदान था जो अब भी उसे मान देता था । हरेक छोटे-बड़े काम उसकी रायशुमारी से होते। चुनावी सीज़न आता तो उसकी मुश्किलें जरा बढ़ जातीं। हर कोई चाहता कि बुढ़िया उस पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाए। डेढ़-दो सौ वोट उसकी मुट्ठी में जो थे। बुढ़िया में पाँच साल पहले जैसी फुर्ती नहीं रह गई थी। दो -चार कदम चलते ही आँखों के आगे अंधेरा छाने लगता। लोगों को आसानी से पहचान न पाती। तब भी अपने कुनबे की मालकिन वो ही थी। उसकी इज़ाजत के बगैर उसके कुनबे का एक पत्ता भी न हिलता।
चुनाव प्रचार दल से एक अधेड़ सीधा बुढ़िया की ओर मुखातिब हुआ ," पहचाना माँ जी ? मैं हूँ किसनदास !" "कौन किसनदास ? " उसने सिर ऊपर कर अधेड़ को पहचानने का व्यर्थ प्रयास किया। अधेड़ भी परेशान था कि वो बुढ़िया की याददाश्त वापस कैसे लाए। अचानक अधेड़ के मस्तिष्क में एक युक्ति सूझी। अधेड़ बोला ," मैं किसनूँ ,माँ जी। उस दफा ,तुम्हरी बहू ने भाजी-रोटी न खिलाया था। " "अच्छा वो किसनू। नेताजी का बेटा। . . .हाँ पहचाना बेटा . . .पहचाना। " अब वह और अधेड़ आमने-सामने थे। ठीक से दिखाई न देने के बावजूद वह अधेड़ को आँखें फाड़-फाड़कर देखे जा रही थी।
अधेड़ माँ जी को समझाता जाता कि अगर उसकी पार्टी जीती तो उसके मोहल्ले में प्रगति की गंगा बहा देगा। गली चौड़ी हो जाएगी। डामरीकरण करा दिया जाएगा और उसे बाजार के मुख्य मार्ग से जोड़ दिया जाएगा। पानी वगैरह की कोई समस्या नहीं रहेगी। पेंशन वगैरह घर बैठे ही मिल जाया करेगी। अधेड़ लगातार बुढ़िया को बच्चों की तरह बहकाए जा रहा था और बुढ़िया भी शायद उसे बच्चा समझकर बिना उद्विग्न हुए लगातार सुनी जा रही थी। कितनी विचित्र बात है जो अपने सफर के आखिरी पड़ाव में है उसे ही वह अधेड़ सफरनामा पढ़कर सुना रहा था। बुढ़िया ने अनपेक्षित भाव से उसकी सारी बातेँ सुन लीं।
अधेड़ ने बुढ़िया से अपने पक्ष में वोट दिलाने की आर्जुमिन्नत की और चलने लगा। " बेटा ,उस दफा तुम्हीं लोगों ने मुहल्ले में हैण्डपम्प कराने का वादा किया था न ?" बुढ़िया की पाँच साल पुरानी स्मृति एकदम ताजा हो आयी। " न माँ जी -न ! वो हम लोग नहीं थे। वो दूसरी पार्टी के लोग रहे होंगे। " अधेड़ ने चलते-चलते जल्दबाजी में जवाब दिया। " तब भाजी रोटी खाने वाले भी वही लोग रहे होंगे। " बुढ़ाई बुदबुदाई।
उधर अधेड़ बड़बड़ा रहा था ,"स्साली बुढ़िया की याददाश्त कितनी तेज है !"
॰सुरेन्द्र कुमार पटेल
वार्ड क्रमांक -4 ,ब्योहारी
जिला -शहडोल मध्यप्रदेश 484774
ईमेल: surendrasanju.02@gmail.com
लेखक परिचय- योग्यता -एम.ए. ,बी.एड. व्यवसाय -अध्यापन
लेखकीय पृष्ठभूमि - विगत एक वर्ष से लघुकथा लेखन। दैनिक हरिभूमि ,सृजनगाथा ,लघुकथा.COM,हिन्दी चेतना (कैनेडा) में कुछ लघुकथाएँ प्रकाशित।
चुनाव प्रचार पार्टी ने एक गरीब बुढ़िया की झोपड़ी में प्रवेश किया। कहने को वो बुढ़िया थी ,पर उसका बहुत बड़ा खानदान था जो अब भी उसे मान देता था । हरेक छोटे-बड़े काम उसकी रायशुमारी से होते। चुनावी सीज़न आता तो उसकी मुश्किलें जरा बढ़ जातीं। हर कोई चाहता कि बुढ़िया उस पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाए। डेढ़-दो सौ वोट उसकी मुट्ठी में जो थे। बुढ़िया में पाँच साल पहले जैसी फुर्ती नहीं रह गई थी। दो -चार कदम चलते ही आँखों के आगे अंधेरा छाने लगता। लोगों को आसानी से पहचान न पाती। तब भी अपने कुनबे की मालकिन वो ही थी। उसकी इज़ाजत के बगैर उसके कुनबे का एक पत्ता भी न हिलता।
चुनाव प्रचार दल से एक अधेड़ सीधा बुढ़िया की ओर मुखातिब हुआ ," पहचाना माँ जी ? मैं हूँ किसनदास !" "कौन किसनदास ? " उसने सिर ऊपर कर अधेड़ को पहचानने का व्यर्थ प्रयास किया। अधेड़ भी परेशान था कि वो बुढ़िया की याददाश्त वापस कैसे लाए। अचानक अधेड़ के मस्तिष्क में एक युक्ति सूझी। अधेड़ बोला ," मैं किसनूँ ,माँ जी। उस दफा ,तुम्हरी बहू ने भाजी-रोटी न खिलाया था। " "अच्छा वो किसनू। नेताजी का बेटा। . . .हाँ पहचाना बेटा . . .पहचाना। " अब वह और अधेड़ आमने-सामने थे। ठीक से दिखाई न देने के बावजूद वह अधेड़ को आँखें फाड़-फाड़कर देखे जा रही थी।
अधेड़ माँ जी को समझाता जाता कि अगर उसकी पार्टी जीती तो उसके मोहल्ले में प्रगति की गंगा बहा देगा। गली चौड़ी हो जाएगी। डामरीकरण करा दिया जाएगा और उसे बाजार के मुख्य मार्ग से जोड़ दिया जाएगा। पानी वगैरह की कोई समस्या नहीं रहेगी। पेंशन वगैरह घर बैठे ही मिल जाया करेगी। अधेड़ लगातार बुढ़िया को बच्चों की तरह बहकाए जा रहा था और बुढ़िया भी शायद उसे बच्चा समझकर बिना उद्विग्न हुए लगातार सुनी जा रही थी। कितनी विचित्र बात है जो अपने सफर के आखिरी पड़ाव में है उसे ही वह अधेड़ सफरनामा पढ़कर सुना रहा था। बुढ़िया ने अनपेक्षित भाव से उसकी सारी बातेँ सुन लीं।
अधेड़ ने बुढ़िया से अपने पक्ष में वोट दिलाने की आर्जुमिन्नत की और चलने लगा। " बेटा ,उस दफा तुम्हीं लोगों ने मुहल्ले में हैण्डपम्प कराने का वादा किया था न ?" बुढ़िया की पाँच साल पुरानी स्मृति एकदम ताजा हो आयी। " न माँ जी -न ! वो हम लोग नहीं थे। वो दूसरी पार्टी के लोग रहे होंगे। " अधेड़ ने चलते-चलते जल्दबाजी में जवाब दिया। " तब भाजी रोटी खाने वाले भी वही लोग रहे होंगे। " बुढ़ाई बुदबुदाई।
उधर अधेड़ बड़बड़ा रहा था ,"स्साली बुढ़िया की याददाश्त कितनी तेज है !"
॰सुरेन्द्र कुमार पटेल
वार्ड क्रमांक -4 ,ब्योहारी
जिला -शहडोल मध्यप्रदेश 484774
ईमेल: surendrasanju.02@gmail.com
लेखक परिचय- योग्यता -एम.ए. ,बी.एड. व्यवसाय -अध्यापन
लेखकीय पृष्ठभूमि - विगत एक वर्ष से लघुकथा लेखन। दैनिक हरिभूमि ,सृजनगाथा ,लघुकथा.COM,हिन्दी चेतना (कैनेडा) में कुछ लघुकथाएँ प्रकाशित।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 11-10 -2012 को यहाँ भी है
जवाब देंहटाएं.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शाम है धुआँ धुआँ और गूंगा चाँद । .
is sneh k liye apka hardik dhanywad.asha hai aisa sneh aage bhi milata rahega.(surendra kumar patel)
हटाएंकरारा थप्पड मारा बुढिया ने आज ऐसी ही जरूरत है।
जवाब देंहटाएंapke sneh ka shukriya.
हटाएंबहुत खूब....!
जवाब देंहटाएंhausala badhane k liye bahut dhanyawad.(surendra kumar patel)
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