1.) एक आसमां जो एक दिन धरती से मिला, क्षितिज से ना जुड़ सका .... और एक आसमां जो धरती से जुदा हुआ , क्षितिज से ना जुदा हो सका ... 2) ...
1.)
एक आसमां जो एक दिन
धरती से मिला,
क्षितिज से ना जुड़ सका ....
और एक आसमां जो धरती
से जुदा हुआ ,
क्षितिज से ना जुदा हो सका ...
2)
मन फिर मचल गया
जरा मुड कर तो देख
कोई है शायद अभी
भी तेरे इंतज़ार में ..............
पर दूर तक वीराना
ही नज़र आया ........
कोई तो पुकारेगा इस
वीराने में एक बार
फिर से तो मुड़ कर देख जरा .....
मन अब तू क्यूँ मचलता है ,
कौन है जो तेरा इंतज़ार करे ,
तुझे पुकारे .....
तूने ही तो तोड़ डाले थे सारे तार ,
सारे राह उलझा दिए थे
अब कौन सी राह ढूंढता है .........
खिले फूलों ,को तूने ही बिखराया था
,अब किस बहार का इंतज़ार है तुझे ......
अब तू क्यूँ मचलता है मन ,
किसको पुकारता है अब
इस वीराने में ........
3 )
सरिता का हठ अब
सागर के खारेपन में
अपना अस्तित्व
नहीं खोना है मुझे .......
.सागर का अनुनय सरिता से
सरिता की मिठास से एक दिन
सागर अपना खारापन छोड़ देगा ........
पर सरिता का हठ ,
अपनी अलग पहचान बनाना है ,
धरा का कड़ापन ,
गगन की तपिश भी ना
रोक पाएगी उसे ,
सागर की फैली बाहों को
अनदेखा किया ....
बस चली,इठलाती
अपनी नयी डगर पर ,
पर सागर के बिन सरिता का
क्या है अस्तित्व ..........
लगी कुम्हलाने, मुरझाने ,
जरा सी भी तपिश कहाँ सहन हुई.......
मुड़ कर देखा सागर भीगी आँखे
लिए बाहें फैलाये अभी भी
प्रतीक्षा में था उसकी .....
सरिता फिर से मुड़ चली
सागर से मिलने ..........
4)
जिन्दगी कि किताब खोल कर जो देखी
तो ना जाने कितनी यादों के सूखे फूल
महकते नज़र आये ...........
कुछ पन्ने आसमानी नज़र आये तो
कुछ हल्के गुलाबी .......
और जो पन्ने कभी खोले भी नहीं अब वो
बैंगनी नज़र आये ..........
झिलमिलाते पन्नों को पलटा तो कुछ
सितारे बिखरे हुए से दिखे ........
वो सितारे उठा कर मैंने आपने दामन
में टांक लिए ....
जिन्दगी की किताब को पढ़ा, पर उठा कर
फिर से ताक पर नहीं रखा .,....
अब इस किताब को साथ-साथ पढना और
जीना चाहती हूँ ...
फिर से यादों के फूलों को सूखने नहीं देना
चाहती .........
5)
जो सर सरहद पर
न झुका था कभी ,
उस सर को मैंने
झुकते देखा है .......
जिन हाथों को
दुश्मन के गले दबाते
देखा था कभी ,
उन हाथों को मज़बूरी में
जुड़ते मैंने देखा है .......
जो आँखे सरहद पर
अंगारे उगलती थी कभी ,
उन्ही आँखों को मज़बूरी के
आंसुओं से भरा मैंने देखा है .......
क्यों कि आज वो सरहद पर नहीं
अपनी बेटी के ससुराल
की देहरी पर खड़ा था ........
6)
ये पर्वत, सफ़ेद रुई
जैसी बर्फ से घिरे ऐसे लगे .......
जैसे ..बूढ़ी नानी की गोद
जिसमे बैठ कर ,कहानी
सुनते -सुनते सो जाएँ ............
जैसे... माँ की गोद जहाँ बैठ
सारी थकान भूल जाएँ ........
जैसे... पिता का सा मजबूत सहारा ,
जहाँ हर दुःख दूर हो जाये ........
जैसे .....प्रियतम का साथ जिसके
आगोश में हर गम भुला दें ......
7)
वो कहते है ,
बहुत प्यार है तुमसे ......
अब कितना प्यार है ,
भला मुझसे जरा
बताओ तो ,
हम भी पूछ बैठे .
कितने किलो ,
कितने एकड़ .......!!
कोई तो नाप तौल ,परिधि
प्यार की भी होती ही है .....
हाँ मैं तुम्हे दस ग्राम ,
और डेढ़ क्यारी प्यार करता
हूँ ..........
अरे ...!!दस ग्राम !डेढ़ क्यारी !!
हाँ मुझे दस ग्राम कस्तूरी
और केसर की डेढ़ क्यारी
जितना प्यार है तुमसे .........
8)
प्रेम में बिछुड़ जाने वाले
अक्सर कहा करते हैं ,
वो अब नहीं याद करते हैं
भुला दिया है
उन्होंने एक दूसरे को ....
कसम भी खाते है
अगर कभी ,
मिल भी जाये वो बेवफा ,
तो अजनबी की तरह से गुजर
जायेंगे ,
नहीं पहचानोगे उसको ....
पर कितनी ही कसम क्यूँ ना
ले वो ,
अक्सर बहाने से पुरानी डायरी
तलाशते रहते है
, जिसमे
उसका दिया सूखा गुलाब
रखा होता है ...
बारिश के बाद इन्द्रधनुष को भी
तलाशते रहते है
क्यूँ कि
कभी उन्होंने उसमे,
अपने प्रेम को
मनपसंद रंग में रंगते हुए
जो देखा था .......
अक्सर सागर किनारे की लहरों में
सीप ढूंढते हुए
अपना नाम भी तलाशते हैं
जहां उन्होंने
लिखा था अपना नाम
साथ-साथ ..........
और वो कहते हैं भुला दिया है हमने
उसको ,
तो नयनों में जो चमकता है
उसका नाम लेने पर
वो क्या है ,
यह
वो भी नहीं जानते ......
पर वो एक दूसरे को भूल तो जाते
ही है ....
शायद .........
9)
हम जुदा होने के लिए
तो नहीं विदा हुए थे .......
लेकिन
फिर मिलना ही नहीं होगा
तुमसे
मैंने ऐसा कब सोचा था ,
तुम से मिलने की इच्छा लिए
कब दिन सदियों में बदल गए...
हाँ ...!
मुझे तो एक-एक दिन बरस और
हर एक बरस सदियों में बदले
ही नज़र आये .........
लेकिन
तुम फिर से मिलोगे और
इस तरह अजनबियों की तरह
मैंने
यह भी तो सोचा नहीं था ...
अब भी तुमसे मिलना नहीं होगा
और एक बार फिर से
मेरे हर एक दिन बरस में बीतेंगे
और एक- एक साल सदियों में
बदल जाएगी .......
लेकिन
हम जुदा होने के लिए तो नहीं
विदा हुए थे .....
10)
दीवार के उस पार तुम
और
इस तरफ मैं थी ,
रहे थे हम .
एक -दूसरे को पहचान ,
पर रहे , बन अनजान.............
साँसें भले ही रुकी -रुकी
सी थी ,
दिल की धडकनें तो सुनाई दे
रही थी ,
पुकार रही थी तुम्हें
और यकीनन तुम्हारी धडकनें भी
मुझे .....
रही बंद जुबान हम दोनों की ,
बहुत सारे बन्धनों में थी
जकड़ी हई ....
मेरा दिल तुम्हें पुकार रहा था
और
यकीनन तुम्हारा दिल भी मुझे
ही पुकार रहा था .....
यह पुकार तुमने भी सुनी
और मैंने भी ......
चाहे दीवार के उस पार तुम थे
और
इस तरफ मैं थी ......
.................................
उपासना सियाग
--
(चित्र - एल.एन. भावसार की कलाकृति)
बेहतरीन रचनाए ......
जवाब देंहटाएंबेहद सुंदर उपासना सखी
जवाब देंहटाएंअच्छी कविताएँ
जवाब देंहटाएं