शक्ति या रोग झारखंड़ के बोकारो जिला में एक गांव है बालीडीह जहां हर साल दशहरा के नौंवी पूजा के दिन जितनी भीड़ माँ दुर्गा के मूर्ति के पंडाल ...
शक्ति या रोग
झारखंड़ के बोकारो जिला में एक गांव है बालीडीह जहां हर साल दशहरा के नौंवी पूजा के दिन जितनी भीड़ माँ दुर्गा के मूर्ति के पंडाल के पास होती है उतनी ही भीड़ बालीडीह गांव के कुर्मीडीह मोहल्ले में मालती देवी के घर के सामने भी होती है क्योंकि स्थानीय लोग मालती देवी को माँ दुर्गा के अनन्य भक्त के रूप में देखते हैं और उसके द्वारा दुर्गा माँ से मनौती पूरी कराने की आकांक्षा रखते है। पचास वर्षीय मालती देवी को स्थानीय लोग सैकड़ों बकरों का खून झूम-झूम कर पीने वाली दुर्गा माँ की भक्तिन के नाम से पुकारते हैं और हर साल की तरह इस साल भी नवमी पूजा के रोज मालती देवी एक के बाद एक बलि चढ़ाये गए लगभग सौ बकरों का खून झूम-झूम कर पीती रही जिससे उसका चेहरा और शरीर भी लाल हो गया था और उसके घर के सामने मेला जैसी भीड़ लग गयी थी। पूछे जाने पर स्थानीय लोगों ने बताया कि मालती देवी ऐसा प्रत्येक साल करती है। मालती देवी को लोग भूत-पिशाच मारने वाली या बुरी आत्माओं से लोगों को मुक्ति देने वाली दुर्गा माँ की भक्तिन के नाम से पुकारते हैं। मालती देवी के समर्थन में बोलने वालों का कहना है कि सप्तमी के दिन से ही मालती देवी पर माँ दुर्गा सवार होने लगती है और मालती देवी अचानक बांस के बल्लियों पर चढ़ना, झूम-झूम कर नाचना, बालों को खोल कर तरह-तरह की शक्ल बनाना, कुछ मंत्रों जैसा उच्चारण करना आदि हरकतें शुरू करती है। मालती देवी के घर पर माँ दुर्गा का मंदिर स्थापित है। न सिर्फ स्थानीय लोग वरन् आसपास के इलाकों से आए लोग मालती देवी के घर पर स्थापित मंदिर में मनौती मांगते हैं और मनौती पूरी हो जाने पर नवमी पूजा के दिन बकरे की बलि यहां चढ़ाते हैं। प्रत्येक वर्ष यहां लगभग सौ बकरों की बलि होती है। बकरे की बलि मालती देवी का पुत्र राजेश खुद ही अपने हाथो से देता है और मालती देवी के पति गिरधारी ठाकुर सहित परिवार के सभी सदस्यों के अलावा उसके पास-पड़ोस के लोग भी समर्थन देते हैं।
उल्लेखनीय है कि बंगाल से सटे होने के साथ-साथ झारखंड़ राज्य में माँ दुर्गा के रौद्र रूप की भी पूजा होती है। नवरात्रा में माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है जिसमें माँ कालरात्रि की पूजा तंत्र-मंत्र, श्मशान पूजा, आदि से भी जुड़ा होता है। माँ दुर्गा की पूजा में बकरे की बलि भी दी जाती है और मान्यता है कि बलि के दौरान बकरे का सर धड़ से एक बार में अलग हो जाना चाहिए अन्यथा माँ रूष्ट हो जाती है। बलि देने के तरह-तरह के रूप यहां प्रचलित है जैसे संथाल परगना में बुढ़ई एक गांव है जहां बकरे को गोद में उठाया जाता है और तलवार के एक वार में बकरे का सर धड़ से अलग हो जाता है और सर कटा धड़ व्यक्ति के गोद में रह जाता है। यहां भी सैकड़ों बकरे की बलि दी जाती है। रामगढ़ जिला में स्थित रजरप्पा में माँ छिन्नमस्तिष्का का मंदिर है जहां सैकड़ों बकरे की बलि दी जाती है और यहां की विशेषता यह है कि बलिवेदी के इर्द-गिर्द फैले खून पर एक भी मक्खी नहीं भिनभिनाती है। संथाल परगरना प्रमंडल में स्थित पथरौढ़ में माँ काली का मंदिर है जहां बकरों की बलि दी जाती है और यह मान्यता है कि माँ के मूर्ति पर चढ़ाए गए किसी व्यक्ति द्वारा फूल अगर उसके सामने गिर आता है तो उसकी माँ से मांगी मुराद पूरी हो जाती है। पौराणिक मान्यताओं से भरा पड़ा है झारखंड़ की धरती।
कहते है कि धर्म अफीम की तरह होता है जिसका इस्तेमाल चालाक अपने-अपने फायदे के लिए करते हैं। जहां तक मालती देवी का प्रश्न है तो इसमें कोई दो मत नहीं उसके इस ऊल-जुलूल हरकत करने के पीछे उसके परिवार के समस्त लोगों के साथ-साथ स्थानीय लोगों का उसे भरपूर साथ प्राप्त रहता है लेकिन माँ दुर्गा मालती देवी पर सप्तमी से सवार हो जाती है यह मानना पागलपन है जो यहां के स्थानीय और आसपास के लोगों द्वारा माना जाता है। इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी हरकत करने वाले लोग एक तरह के मनोवैज्ञानिक बीमारी साइकोशिस एवं सिकोमेरिया से ग्रसीत रहते हैं। रांची के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा. नीरज राय से मालती देवी के अजीबोगरीब स्थिति की चर्चा करने पर डा. राय का कहना था कि व्यक्तित्व विकृति की एक सामान्य विशेषता कुसमायोजी शीलगुण है जिसमें शीलगुणों जैसे सामाजिकता, अहमशक्ति, अधिपत्य, लज्जा आदि की अभिव्यक्ति समायोजित ढ़ंग से करने में रोगी समर्थ नहीं होता है। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यदि व्यक्तित्व विकृति से ग्रसित रोगी में कपटी होने का शीलगुण हो तो वह हर परिस्थिति में अपने इस शीलगुण को उपयोग में लाने का प्रयास करता है चाहे उसके इस व्यवहार से उसको जितनी भी हानि हो। इस विकृति से पीड़ित व्यक्ति विषय पर सामान्य मार्ग से हट कर चिन्तन करता है तथा उसके चिन्तन प्रतिरूप में दृढ़ता देखी जाती है। अपने व्यवहार को उसी रूप में दुहराता रहता है। ऐसे व्यवहार करने से हानि पहुंचाने पर भी वह इसको बार-बार दुहराना नहीं छोड़ता है। इसका अर्थ यह है कि इस विकृति से पीड़ित व्यक्ति अपने व्यवहार, चिन्तन एवं प्रत्यक्षण-प्रतिरूप, अपने व्यक्तिगत मूल्यों में परिवर्तन लाने के पक्ष में नहीं रहता है परिणामस्वरूप उसके व्यवहार एवं विचार दृढ़ बने रहते हैं। इस बीमारी से ग्रसित लोग में विभिन्न व्यक्तित्व पाये जाते है जिसके कारण उनमें किसी प्रकार की समानता का अभाव रहता है।
ज्ञात हो कि बहु-व्यक्तित्व के संबंध में जो राय डा. राय ने दिया वह मालती देवी पर अक्षरशः लागू होता है। दुर्गा पूजा के दौरान मालती देवी में एक दुसरे व्यक्तित्व का विकास सप्तमी पूजा से ही हो जाता है जो यह समझता है कि माँ दुर्गा उसपर सवार हो जाती है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ऐसी मनोवैज्ञानिक बीमारी से ग्रसित है मालती देवी यह उसके परिवार के साथ-साथ स्थानीय लोग मानने के लिए कतिपय तैयार नहीं है। सामान्य मार्ग से हटकर मालती देवी बकरों का खून पीने की अभ्यस्त हो चुकी है। बांसों के बल्लियों पर चढ़ना, झूम-झूम कर गाना, नाचना आदि मालती देवी ने उस वातावरण और परिस्थितियों से सीख लिया जो अंधविश्वास से वशीभूत होकर ओझा-तांत्रिक माँ दुर्गा के नाम पर कभी सुनसान में स्थित मंदिरों में, कभी श्मशानों में, कभी किसी सुनसान जगहों पर स्थित हवेलियों या खंडहरों में करते रहे हैं। मालती देवी जो कर रही है उसका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण तो किया जा सकता है परंतु अशिक्षा इसके जड़ में व्याप्त है। अगर मालती देवी का परिवार और उसके आसपास रहने वाले लोग शिक्षित होते तो मालती देवी का इलाज किसी अच्छे मनोवैज्ञानिक चिकित्सक से हो रहा होता और मात्र एक दिन में लगभग सौ बकरों का खून पीने के लिए विवश नहीं होती मालती देवी। पूजा के उन्माद में मालती देवी सौ बकरों का खून पी तो लेती है पर उसपर पूजा समाप्त होने के बाद क्या गुजरती होगी ये सोच कर ही मितली आने लगती है परंतु आश्चर्य की बात यह है कि बीमारी को माँ दुर्गा द्वारा प्रदत्त शक्ति समझ बैठे है मालती देवी का परिवार और स्थानीय लोग।
व्यक्तित्व विकृति के रोग में बहु व्यक्तित्व का शिकार रोगी हो जाता है इस विषय पर प्रसिद्ध अमेरिकी उपन्यासकार सिडनी सेल्डन ने कुछ साल पहले एक उपन्यास ‘टेल मी योर डिरीमस' लिखा था जिसकी नायिका बहु व्यक्तित्व रोग से ग्रसित थी और किस-किस मुसीबत में वो नहीं फंसी थी। जगह कम रहने के कारण वर्णन करना तो यहां संभव नहीं है परंतु इतना कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि इस रोग से पीड़ित रोगी खून भी कर सकता है और आत्महत्या भी। एक ही व्यक्ति में दूसरा व्यक्ति अगर खून करता है तो पहले को मालूम भी नहीं होता कि खून किया गया है। अजय देवगन और सेफ अली खान स्टारर एक हिन्दी फिल्म भी इस रोग को स्पर्श करती हुयी बनी थी। फिल्म का नाम भूल चुका हूँ।
बहरहाल व्यक्तित्व विकृति एवं बहु व्यक्तित्व नामक रोग से ग्रसित मालती देवी अशिक्षा और अनभिज्ञता के कारण बांसों के बल्लियों पर चढ़ने, बकरों का खून पी कर झूमने, नाचने, गाने के लिए अभिशप्त है और विडम्बना यह है कि सत्य बताने वाले को नास्तिक कहकर जान से मान डालने तक के लिए आमादा है मालती देवी के आसपास रहने वाले लोग।
राजीव
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