संशय के मानदंड डा० रमा शंकर शुक्ल नहीं भ्रम नहीं था उसे. उसकी आशंकाओं में सचाई थी. लक्षण साफ़ दिख रहे थे की माँ का असर बेटी पर जरूर होगा. ...
संशय के मानदंड
डा० रमा शंकर शुक्ल
नहीं भ्रम नहीं था उसे. उसकी आशंकाओं में सचाई थी. लक्षण साफ़ दिख रहे थे की माँ का असर बेटी पर जरूर होगा.
क्यों? जरूरी है कि जैसी माँ हो, बेटी भी उसी रास्ते निकले? अनेक बिगड़ैल माता या पिता की संतानें बहुत नेक निकले हैं. आदमी के भविष्य का निर्धारण किसी ख़ास सिद्धांत के आधार पर थोड़े ही किया जा सकता है. बहुत संभव है कि बुरे कर्मों की प्रतिक्रिया अच्छे कर्मों के रूप में हो जाए. आदमी के पास यह मन नाम की जो थाती है न, यह अपने हिसाब से चलती है. फिर क्या तुम ज्योतिषी हो कि पहले से ही हिसाब लगा लेते हो!
पता नहीं. ज्योतिषी तो बिलकुल ही नहीं. कभी इस विधा का पन्ना ही न पलटा. फिर कैसे दावा कर दूं कि हाँ ज्योतिषी हूँ.
रजत देर तक इसी आत्मालाप में डूबे रहे. उन्होंने कुछ घटनाओं का स्मरण किया तो लगा कि बिना ज्योतिष पढ़े ही तो उन्होंने अचानक भविष्य बता दिया था. बाद में वैसा ही हुआ . तभी तो बहुत से लोग मुंह पकड़ने लगते हैं कि "जाने दे भाई कुछ न बोलना. तेरी जीभ में सरस्वती है. हर बात सही निकल जाती है. कुछ हो गया तो सब कहने लगेंगे कि रजत ने भाख दिया था. इससे इमेज भी खराब होती है."
अचानक रजत को हंसी आ गई. अपने एक मित्र के बयान पर. हुआ यह था कि मित्र एक आकस्मिक सम्मेलन में जाने के लिए बुलाने आये थे. रजत उस समय प्राणायाम कर रहे थे. ओमकार का रणन चल रहा था. मित्र ने दो बार पुकार लगाईं, पर प्रत्युत्तर न मिला. हार कर उन्होंने उनके कंधे को छू कर ध्यान भंग करना चाहा. पर उसके बाद वे वहां से बेतहाशा भाग निकले. बाद में मालूम हुआ कि उन्होंने इन्तजार कर रहे मित्रों को बताया कि उनके शारीर से तो करेंट निकल रहा था. हम दर गए. बाद में इस बाबत रजत ने जब योग प्रशिक्षक से पूछा तो वे गंभीर हो गए. बस इतना ही पूछे कि "क्या वाकई ऐसा हुआ था?"
होता है. सब होता है. यह संसार बड़ा तिलस्मी है. क्या नहीं हो सकता. तभी तो बहुत कुछ हुआ जा रहा है और आदमी हैरत में है.
रजत ने महसूस किया कि ज्योतिष वाला मसला मनोवैज्ञानिक ज्यादा है. व्यक्ति के आचार-विचार, शैली व भाषा से पता लग जाता है कि आगे क्या होने वाला है.
आस्थावान लोग इसी को तेज या गुप्त विद्या बता जाते हैं. रजत ने इसी आधार पर ही तो पत्नी से कह दिया था कि देखना एक दिन कुछ अघटित जरूर होगा.
और देखो आज फोन आ ही गया. मानसी ने काफी कुछ छिपाते हुए बताया था. उसकी बात से तो इतना ही महसूस हुआ कि सब अफवाह है. लफंगों ने जान-बूझकर बवंडर खड़ा किया है. पत्नी ने कभी स्वीकार न किया कि रजत मानसी से कोई संपर्क रखें.
क्यों? क्या तुम्हें मेरे ऊपर विश्वास नहीं है?
है. केवल इसलिए कि जब कोई खूबसूरत महिला पर ढेर सारे आरोप लग जाते हैं तो भला से भला आदमी भी वहां जाकर दागदार हो जाता है. फिर एक ऐसी मानसिकता खुद की हो जाती है कि व्यक्ति उस आरोप को वास्तव में जी लेना चाहता है. एक मनःस्थिति बन जाती है कि जब आरोप लग ही गए हैं तो उसे क्यों न जी लें. और इसके लिए दोनों में से किसी को भी पहल करने की जरूरत नहीं पड़ती. क्या आप इससे बच पाएंगे? लोग खुद से किसी से देह सम्बन्ध कम बनाते हैं, लोग बनवा देते हैं.
रजत निरुत्तर थे. वाकई पत्नी की बात में तर्क तो अकाट्य है. उसके बाद रजत खुद से मानसी के यहाँ कभी न गए. हाँ, जब संकट आया तो बहाना न किये. पहुंच कर मामले को सुलझाते रहे. आखिर क्यों रजत मानसी के प्रति रूचि रखते हैं. उसके पति के मरने से पहले तो कभी उसे देखा तक न था. दीदी के साथ शोक संवेदना जताने जिस दिन गए, पहली बार मुलाकात हुई. नाक तक घूंघट में मानसी की रुलाई तो फूटी, पर उसमे वेदना न थी. आंसू भी न था. हाँ रुदन में एक लय जरूर था, जिसे अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे मौकों पर देखा जाता है. मानसी से ज्यादा उसका घर रोता नजर आया था. बच्चे चुपचाप बैठे थे. न राग न विराग. दीदी ने उस दिन बड़ी करुणा के साथ कहा था कि "तू इसकी नौकरी में मदद कर दे. बस उसी के सहारे इसकी नैया पार हो जाएगी". धन है तो सब है. वही पति है वही भगवान्.
रजत के मुंह से उस दिन यूं ही निकल गया था, मानसी तू विधवा नहीं, बल्कि सुहागन हुई है. कम से कम उसी पद पर नौकरी लग गई तो भी अच्छी-खासी जिंदगी बीत जायेगी. वरना उन्होंने तो हेरोइन और शराब में सब कुछ बर्बाद कर ही दिया था. अब जीवित होते तो चोरी-डकैती के आरोप में जेल में होते. मैं तुम्हारी नौकरी जरूर लगवाऊंगा.
रजत ने महसूस किया कि मानसी को जैसे कोई बड़ा संबल मिल गया हो. जैसे किसी ने उसके मन की बात कह दी हो.
फिर तो पूरे दो माह दौड़-धूप चलती रही. रजत उसे अपनी बाइक पर बैठाकर ले जाते. ले आते. दफ्तर में पूरे दम के साथ बताते, मेरी बहू है. इसलिए कि कोई मानसी को परेशान न करने पाए. नहीं तो अनाथ जानकार हर कोई हाथ सेंकना चाहेगा.
मानसी की चतुर्थ श्रेणी में मृतक आश्रित कोटे में नियुक्ति हो गई. खर्चा-वर्चा जो भी आया, रजत ने ही किया. हाँ, किसी ने रिश्वत न मांगी थी. इसलिए थोड़ा वक्त लगा.
लेकिन कुछ ही महीने बाद तरह-तरह की सूचनाएं आने लगी. किसी ने कहा कि मानसी का पति अपने से नहीं मारा था. बल्कि जहर दिया गया था. किसी ने बताया कि नहीं वह खुद फांसी पर लटक गया था. हेरोइन के लिए पैसे मिलते न थे. सूदखोर बैंक से ही पूरा पैसा निकाल लेते. कई बैंकों से लोन भी ले रखा था. चोरी और छिनैती में कई बार पकड़ा गया. घर में बच्चे भूखों बिलबिलाते रहते थे, पर उसे अपनी ही तलब लगी रहती. उस पर भी भोजन न मिलता तो पत्नी को पीटने लगता. फूल सी काया को उसने कितनी ही बार रुई की तरह धुन डाला था.
और इन सबके बीच एक दिन एक और बड़ा खुलासा हो गया कि मानसी तो डाक्टर से फंसी है. इधर यह भी बताया जा रहा है कि उसके घर आफिस या यहाँ-वहां के ढेरों लोग आने लगे हैं. नौकरी के दो-तीन माह बाद ही तो किसी काम से मानसी ने बुलाया था रजत को. पहुचे तो देखा कुछ कर्मचारी नेता बैठे हैं. उन्होंने उसके पहले डाक्टर को भी कई बार चोरों की तरह छिप कर आते रजत की आहट से फ़ौरन फूट लेते देखा था.
कुछ महीने बाद तो यह सूचना सरे आम हो गई. खुद मानसी की सगी बहन, चचेरे भाई, पड़ोसी सभी न केवल कहने लगे, बल्कि आपत्ति भी करने लगे. मानसी ने सबसे नाता तोड़ लिया पर डाक्टर को न छोड़ा.
रजत निस्पृह संत न थे. उन्हें भी मानसी के प्रति जो लगाव था, वह केवल रिश्ते का न था. मामूली उम्र में ही तो बड़े थे. तिस पर अनुपम सौन्दर्य. मानसी में उन्हें कभी ओछापन न दिखा था. एक सौम्यता और गंभीरता चेहरे पर हमेशा बनी देखी. जब भी पहुचे, उसने माथे पर पल्लू डाल बड़े सम्मान के साथ पैर छूया. इसलिए यदि कभी मन में कुछ ख्याल आया भी तो वह मन में ही रह गया. पर ये सूचनाएं!
रजत अपने में ही गुत्थमगुत्था होने लगे. मानसी पर लगे आरोप सही हैं तो क्या यह आचरण उचित होगा!! मानसी के इर्द-गिर्द का न तो माहौल प्रगतिवादी है और न ही मनुष्य की जरूरतों की समझ. फिर तो उसे कदम-कदम पर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. फिर बेटी भी तो पंद्रह की हो गई है. क्या वह यह सब नहीं समझती. छुटपन में यदि मानसी ब्याह न दी गई होती तो अभी उसकी उम्र ही विवाह की हो रही है. २८-२९ की उम्र में १० से १५ की उम्र में तीनों बच्चे.
गैर जगह होती, कई कमरों वाला मकान होता, अपरिचित लोग होते और हाई प्रोफ़ाइल वातावरण होता तो यही आरोप बेमतलब होते. लेकिन यहाँ मानसी गुनाहगार है. भले ही गुनाह का सम्बन्ध धर्म से न जुड़ा हो. स्थानीय शहर होने के कारण ही मानसी का गुनाह साबित हो रहा है!
तो क्या करे मानसी. देह को कैसे मार डाले! ये हरामखोर खुद की भूख को एक दिन भी नहीं मेट पाते. पत्नी घर में होने के बावजूद कहाँ-कहाँ मुंह नहीं मार आते. लेकिन दूसरों को सती अनुसूइया ही देखना चाहते हैं. और ये औरतें? खुद तो दूसरों पर डोरे डालती फिरती हैं और दूसरे का देख सुरसा बन अफवाहों का तूफ़ान झोंकने लगती हैं. मानसी गलत नहीं है. देह है तो उसकी जरूरत तो पूरी करनी होगी न. पेट है तो भोजन कर रही है कि नहीं. नींद पर सो रही है कि नहीं. जुबान है तो बोल रही है कि नहीं. देख रही है कि नहीं! जब पति की मौत के बाद वह सब पाप नहीं तो यौन सम्बन्ध पाप कैसे?
हाँ, हाँ. बिल्कुल नहीं. मानसी निर्दोष है. हाँ, थोड़ा बच के करना चाहिए था यह सब. उसे गैर जातीय डाक्टर के बजाय अपने ही किसी कुटुम्बी के साथ देह का रिश्ता बनाना था. फिर किसी को शक न होता. आखिर क्या रखा है डाक्टर में. बकरे की तरह मुंह और खजूर की तरह लम्बाई. क्या देख के मर गई मानसी!
देख कर नहीं. मजबूरी में. आखिर बच्चों के मुंह में निवाला कैसे जाता. पढाई-लिखी का खर्चा कौन देता. पति तो हेरोइन के नशे में टुल रहता था. तब इसी डाक्टर ने उसे संबल दिया था. तब कहाँ थे ये आरोप लगाने वाले. पति को भी तो मालूम था. हो सकता है कि उसने इसी कारण फांसी लगाईं हो. तो लगा ले. लेकिन पंद्रह साल की बेटी पर इसका क्या असर पड़ेगा! इसी बिंदु पर पहुंच कर रजत अटक जाते.
फर्क पड़ गया था. बेटी के बारे में आज स्कूल से जो सूचना आई है, उसकी कल्पना या कह लें आशंका रजत को पहले ही हो गई थी. लंच में बेटी ने क्लास टीचर से छुट्टी ले ली थी. पेट दर्द के बहाने. साथ में अपनी सहेली को भी ले गई. पास का ही मोहल्ला था. वहां के लड़कों ने दोनों लड़कियों को घर में जाकर दरवाजा बंद होते देखा तो बाहर जमा हो गए. खुसुर-पुसुर होने लगी. आधे घंटे बीते होंगे कि बीसियों लोग बाहर जमा हो गए. इसलिए कि इस घर में यह बाहर का कमरा किराए का था, जिसमे बेटी का सहपाठी रहता था. बेटी आये दिन यहाँ आती थी. मोहल्ले के लड़कों ने पहले भी देखा था. पर आज दो-दो लड़कियां? शायद उन्हें यह अति लगी हो. स्कूल के सहपाठी भी आ गए और बात जंगल की आग की तरह चहुं ओर फ़ैल गई.
रजत आधुनिक विचारधारा के तो हैं, पर पता नहीं क्यों मानसी के मानदंड की तरह बेटी के लिए वह छूट नहीं दे पा रहे.
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संपर्क:
पुलिस अस्पताल के पीछे
तरकापुर रोड, मिर्ज़ापुर
उत्तर प्रदेश.
प्रकाशित पुस्तकें :
१- ईश्वर खतरनाक है {काव्य संग्रह}
२- एक प्रेत यात्रा {काव्य संग्रह}
३- ब्रह्मनासिका {उपन्यास}
प्रकाशनाधीन कहानी संग्रह "पितर"
एक अच्छी कहानी रची है आपने .... सामाजिक पारस्परिक संबंधों पर इतनी बारीकी से विचारकर उसे कथाशिल्प में पिरोना बहुत चुनौतीपूर्ण है, लेकिन यह काम आपने कर दिखाया।
जवाब देंहटाएंकिसी नए घटनाचक्र को न बुनकर आपने समाज के उन्हीं चित्रों को उकेरा है जो हमारे आस-पास बुने दिख जाते हैं ... यदि प्रेमचंद वाली कहानीकार वाली नज़र हो।
बधाई ... अच्छे लेखन पर।
भाई प्रतुल वशिष्ठ जी. उत्साहवर्धन के लिए आभारी हूँ.
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