तेजेन्द्र शर्मा विशेष : निखिल कौशिक का संस्मरण - हिन्‍दी साहित्‍य के राज कपूर हैं तेजेन्‍द्र शर्मा !

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(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाई...

(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाईयाँ व हार्दिक शुभकामनाएं - सं.)

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हिन्‍दी साहित्‍य के राज कपूर हैं तेजेन्‍द्र शर्मा !

निखिल कौशिक

मैं इस समय ज़मीन से 36 हज़ार फ़ुट की ऊंचाई पर 464 मील प्रतिघंटे की रफ़्‍तार से उड़ते हुए एमिरेट्‌स के वायुयान की कुर्सी नंबर 27.ई पर बैठा हूं। बाहर का तापमान -74 डिग्री फ़ारेनहाइट है, किन्‍तु मैं और मेरे सहयात्री इस वातानुकूलित यान में बिना स्‍वेटर पहने, बिना रज़ाई ओढ़े, अपने-अपने ख़यालों में खोए हुए हैं। कोई पहली बार हवाई जहाज़ में बैठा और उत्‍साहित है कि वह कुछ ही घंटों में अपने सपनों के देश पहुँच जाएगा। कोई भगवान से प्रार्थना कर रहा है कि इमिग्रेशन वाले उसे परेशान न करें। कोई छुटि्‌टयां मना कर लौट रहा है और उस ठंड के बारे में सोच रहा है जो यूके में उसका इंतज़ार कर रही है।

मैं दो हफ़्‍ते की छुटि्‌टयां बिता कर भारत से लौट रहा हूं और अपने को यूके के जीवन, अपने काम काज से ओरिएन्‍ट करना चाहता हूं। इसलिए मैं पासपोर्ट के साथ सुरक्षित रखे अपने मोबाइल फ़ोन को ऑन करता हूं जिसे पिछले दो हफ़्‍ते से मैंने छुआ नहीं है। छुटि्‌टयों पर जाता हूं तो मोबाइल फ़ोन, ई.मेल जैसे, ऐसे वो सब रास्‍ते बंद कर के जाता हूं, जिनके माध्‍यम से कोई मुझे तलाश कर सकता है। वरना आज के युग में मोबाइल आपकी जेब में हो और कम्‍प्‍यूटर उपलब्‍ध हो तो भला कहां जाइयेगा। ‘जहां जाइएगा हमें पाइएगा'।

भारत गया तो यूके का मोबाइल ऑफ़ और बिन लैपटॉप बिन पासवर्ड लिए। मोबाइल के ‘इन-बॉक्‍स' में 12 संदेश हैं जिनमे से पांच संदेश तेजेन्‍द्र शर्मा के हैं। पांचवां सन्‍देश कहता है' सर, आप संदेश और फ़ोन दोनों का जवाब नहीं देते। ख़ैरियत....‍ तेज।

मैं यह मैसेज पढ़ रहा हूं और उनके कहे शब्‍द ‘सर' का आनंद उठा रहा हूं कि एअर-होस्‍ट आ जाता है, उसके हाथ में एक ट्रे है जिसमें कुछ गिलासों में पानी है, कुछ में जूस। मैं पानी उठाता हूं और उसकी ओर देख मुस्‍कुराता हूं। वो आगे बढ़ जाता है और दूसरे यात्री को देख उसी आत्‍मीयता से मुस्‍कुराता है।

मुझे सहसा याद आता है कि तेजेन्‍द्र शर्मा भी किसी समय एअर इण्‍डिया में परसर का काम करते थे। और मुझे समझ आता है कि उन्‍हें भीड़ में घिरे रहने के बावजूद हर किसी को बिल्‍कुल अपना इंडिविजुयल एक्‍सक्‍लूसिव महसूस करवाने की कला कहाँ से आई है। किंतु तेजेन्‍द्र शर्मा से मेरा परिचय किसी फ़्‍लाइट में या किसी रेलगाड़ी में सफ़र करते हुए नहीं हुआ था। उन्‍हें तो मैं इंटरनेट पर उपलब्‍ध पत्रिका अभिव्‍यक्ति के माध्‍यम से जानता हूं। एक अरसे पहले इंटरनेट पर ब्राउज़ करते हुए एक कहानी पढ़ी थी मुझे मार डाल बेटा, जिसमें कहानीकार उस व्‍यक्ति की दुविधा और मर्म को प्रस्‍तुत करता है जो अपनी पत्‍नी के गर्भ में पल रहे जुड़वां बच्‍चों की भ्रूण हत्‍या में भागीदार होता है, क्‍योंकि उन्‍हें शक़ है कि गर्भ में पल रहे वो बच्‍चे डाउन्‍स सिंड्रोम से प्रभावित हो सकते हैं। दूसरी ओर वो मृत्‍यु-शैया पर पड़े अपने पिता की पीड़ा से मुक्ति की प्रार्थना को अनसुना कर डॉक्‍टर से उनकी आयु को लंबा करने के लिये ऑपरेशन करने की मांग करता है।

एक सरसरी तौर से तब मैंने इस कहानी के लेखक का नाम देखा था. तेजेन्‍द्र शर्मा। फिर मेरी पहचान तेजेन्‍द्र के साथ ऐसी ही हुई थी जैसे किसी भी पाठक की किसी लेखक के संग होती है। कुछ समय बाद लन्‍दन के भारतीय दूतावास में उस समय के हिन्‍दी अधिकारी अनिल शर्मा ने मेरी भेंट एक कवि तेजेन्‍द्र शर्मा से करवाई, जो कवि होने के साथ-साथ लन्‍दन में रेल चलाते हैं। किंतु ये वही कहानीकार हैं जिनकी कहानियाँ मैं इंटरनेट पर पढ़ता रहता हूं। यह बात कहीं जाकर तीसरी या चौथी भेंट में स्‍पष्‍ट हुई। इस प्रकार तेजेन्‍द्र से सांस्‍कृतिक कार्यक्रमों में मिलने का एक सिलसिला शुरू हुआ और कब हमारी जान पहचान एक मित्रता में परिवर्तित हो गई पता ही नहीं चला। लगभग हर बार उनके किसी नये रूप किसी नई विधा का पता चला, प्‍याज़ के छिलकों की तरह परत दर परत कवि, रेल चालक, कहानीकार, परसर, ब्रॉडकॉस्‍टर, एक्‍टर, बायोग्राफर, एक रोमांटिक आत्‍मा, नाटक कार, और बहुत कुछ।

आज के हिन्‍दी जगत का एक सितारा है तेजेन्‍द्र। साहित्‍य में रुचि रखने वालों के लिए तेजेन्‍द्र शर्मा कोई नया नाम नहीं है। इस पुस्‍तक में प्रकाशित अन्‍य लेखों में आपने जो भी कुछ उनके विषय में पढ़ा है वो उनके किसी न किसी पहलू को उजागर करता है, बताता है कि वे कितने अच्‍छे इन्‍सान हैं। उनकी कहानियों में कितनी संवेदना है कितना दम है। उनके निजी जीवन में कितनी त्रासदी रही है या है। अलग-अलग रूप से अलग-अलग लोगों से उनके बारे में चर्चा हर बार आपको कुछ सोचने कुछ महसूस करने को बाध्‍य करता है।

तेजेन्‍द्र शर्मा किसी का भी दोस्‍त हो सकता है क्‍यूंकि वो किसी को भी प्रोत्‍साहित करने में सक्षम है। वह एक साथ दो तीन नावों पर यात्रा कर सकता है। वह हर क्षेत्र में स्‍वयं को सिद्ध करता है। हर जगह अपनी छाप छोड़ता है। वह हवाई जहाज़ में परसर रहा तो वहां ऐसा कुछ किया कि एअर इन्‍डिया आज भी उनके किसी आयोजन के संग जुड़ने में स्‍पॉन्‍सर करने में गर्व महसूस करती है।

वह लन्‍दन में रेल चालक रहे। 5 साल की सेवा में वो अपने को इतना सिद्ध करते हैं कि रेल विभाग उसे नए रेल चालकों को प्रशिक्षण देने के लिए पुनः नियुक्त करता है।

उसके समाज में उसके आसपास जो होता है उसे वह महसूस करता है आत्‍मसात करता है कागज़ पर कहानी स्‍वरूप उतारता है। उसकी कहानी पाठक को बांध कर रखती है। देह की क़ीमत किसी को बिना छुए नहीं रहती क्‍यूंकि हर पाठक किसी परमजीत कौर को जानता है, उन बहू बेटियों से परिचित है जो अपनी जवानी उस पति की प्रतीक्षा में व्‍यतीत कर देती है जो अपने भविष्‍य की तलाश किसी बेरहम सड़क पर ठिठुरते हुए करता है।

तेजेन्‍द्र की क़लम ऐसे विषयों को छूने का साहस करती है जिनके बारे में दबी ज़ुबान से बात करने में भी लोग कठिनाई महसूस करते हैं। मुझे मार डाल बेटा, क़ब्र का मुनाफ़ा, तरकीब, देह की कीमत इस सब का उदाहरण हैं। तेजेन्‍द्र बात की तह तक जाते हैं।

तेजेन्‍द्र विषय को, अपनी बात को, केवल कागज़ पर उतार कर अपने कर्तव्‍य की इतिश्री समझ लें- ऐसा नहीं है। वह निजी जीवन में रिश्‍तों को मान देता है समाज व साहित्‍य के प्रति लेखन से कहीं आगे जाता है। वह अपने माता पिता का ऋण कहीं फूल प्रसाद चढ़ाकर नहीं उतारता। वह अपनी दिवंगत पत्‍नी की याद में एक ताजमहल नहीं बनवाता। वह सीधे-सीधे उन्‍हें साहित्‍य से जोड़कर अमर कर देता है। उन्‍हें अपनी प्रेरणा बनाकर जीता है। पद्मानन्‍द साहित्‍य सम्‍मान व अंतर्राष्‍ट्रीय इन्‍दु शर्मा कथा सम्‍मान इसी बात का प्रमाण हैं। वह इस माध्‍यम से उस साहित्‍य को दुनिया के सामने लाता है जो उत्‍कृष्‍ट है। इस प्रकार हम तेजेन्‍द्र की आयोजन क्षमता का अनुभव करते हैं। वह आयोजित करता है एक सम्‍मान समारोह।

यदि एक व्‍यापक दृष्‍टि से देखें तो भारतीय या किसी और भी देश व परंपरा के लोग जो लन्‍दन जैसे महानगर में बसते हैं, अपने-अपने सांस्‍कृतिक कार्यक्रम आयोजित करते ही हैं, यह कोई नई या अनोखी बात नहीं है। ऐसे आयोजनों का इतिहास बहुत पुराना है। छोटे मोटे आयोजन कवि गोष्‍ठियां चर्चाएं एक आम बात है। ब्रिटेन के हर छोटे बड़े शहर में यहां का एशियन समुदाय अपने तीज त्‍यौहार, अपने सांस्‍कृतिक कार्यक्रम, कम्‍यूनिटी सेंटर, मस्‍जिद, गुरुद्वारे व मंदिर में आयोजित करता है। इन आयोजनों का एक सामाजिक महत्त्व है परदेस में हमें अपने से जोड़ने का एक आवश्‍यक प्रयास।

तेजेन्‍द्र मानते हैं कि हम जिस देश में रहते हैं वहीं हमारा घर होना चाहिये। हमें अपनी बात जैसी है वैसी ही कहने का अधिकार होना चाहिये। इसलिए वे अपनी भाषा की अभिव्‍यक्ति को किसी छोटे से कम्‍यूनिटी सेन्‍टर या मंदिर तक सीमित नहीं रहने देते। इन सभी सीमाओं को पार करते हुए वे हिन्‍दी को ले जाते हैं सीधे हाउस ऑफ़ लॉड्‌र्स में।

मैं जानता हूं कि यह काम कितना सरल या कठिन है। परन्‍तु तेजेन्‍द्र ही कर पाते हैं यह सब। वे मुझे याद करते हैं, फ़ोन करते हैं कि इस प्रोग्राम का संचालन मैं करूं। मुझे इस योग्‍य मानते हैं कि मैं ऐसे अद्‌भुत कार्यक्रम का हिस्‍सा बनूं ।

हाउस ऑफ लॉड्‌र्स में एक एक कर के लंदन में बसे साहित्‍यकारों का आगमन होता है, कैलाश बुधवार, कृष्‍ण कुमार, अचला शर्मा, तितिक्षा शाह, दिव्‍या माथुर, रवि शर्मा एक के बाद एक सब आते हैं। हॉल में लोग जमा होते हैं। इनमें वो लोग शामिल हैं जिन्‍हें हम रेडियो पर सुनते हैं, जिनकी कविताएँ व लेख पढ़ते हैं और फिर आते हैं लेबर पार्टी की काउंसलर ज़कीया ज़ुबैरी, ब्रिटेन की सरकार के मंत्री टोनी मैक्‍नल्‍टी और स्‍वयं लॉर्ड तरसेम किंग।

कार्यक्रम शुरू होता है- सम्‍मान देने का सिलसिला, अभिनंदन के शाल दुशाले, मैं एक के बाद एक को बुलाते हुए परिचय करवाता हूं। वो सब बोलते हैं पद्मानंद साहित्‍य सम्‍मान के बारे में, इंदु शर्मा कथा सम्‍मान के बारे में, हिन्‍दी साहित्‍य की सम्‍मानित रचनाओं पर चर्चा होती है। लेखक, साहित्‍यकार अपनी-अपनी बात कहते हैं। हां, उस हाउस ऑफ लॉड्‌र्स में हिन्‍दी गूँजती है, जो कि अंग्रेज़ी भाषा का मूल गढ़ है। वहाँ साहित्‍य के महत्त्व पर चर्चा होती है।

टोनी मैक्‍नल्‍टी बताते हैं कि राजा-महाराजा, मंत्री-प्रधानमंत्री सब आते जाते हैं भुला दिए जाते हैं, बस रह जाते हैं तो साहित्‍यकार, जीवित रहता है तो साहित्‍य शेक्‍सपीयर, कालिदास, तुलसीदास।

तेजेन्‍द्र हिन्‍दी साहित्‍य का वृक्ष वहाँ लगा रहे हैं जहाँ उसे वो सम्‍मान दिया जाएगा कि वो सदैव पनपेगा विकसित होगा। एक अदभुत कार्य कर रहे हैं तेजेन्‍द्र। सब नहीं कर सकते यह सब।

कार्यक्रम समाप्‍त होता है। एक-एक कर के सभी मेहमान विदा होते हैं, हाउस ऑफ लॉड्‌र्स के भव्‍य प्रांगण में तस्‍वीरें खींचते खिंचवाते हैं। तेजेन्‍द्र सब से अनुरोध करता है कि वापसी सफ़र के लिए प्‍लीज़ समोसे और पकौड़े ले कर जाएँ, मेहमानों के लिए यहाँ तक सोचता है वो। कम न पड़ जाएं इसलिए उसने फ़ालतू पैकेट्‌स बनवाये हैं। तेजेन्‍द्र व आयोजक मंडल के करीबी मित्र बचे हुए सामान को, बैनर्स को लेकर हाउस ऑफ़ लॉड्‌र्स से विदा लेते हैं। तेजेन्‍द्र द्वार पर ड्‌यूटी पर तैनात संतरियों की तरफ़ देखता है मुस्‍कुराता है और उन्‍हें समोसों के पैकेट पकड़ाता है। 6 फुट लम्‍बे जवान मुस्‍कुरा कर समोसे देखते हैं, हँस कर कहते हैं- अच्‍छी बीतेगी रात की यह शिफ़्‍ट।

ज़रा ज़रा सी बातों का ध्‍यान रखता है तेजेन्‍द्र। किसी को भी अपना बनाने में सक्षम यूं ही नहीं हो जाता कोई। हाउस ऑफ़ लॉड्‌र्स में यह सब कुछ-कुछ वैसा ही है जैसे राज कपूर द्वारा राष्‍ट्रपति भवन में संगम फ़िल्‍म के गानों को पिक्‍चराइज़ कर पाना। याद आती है राजेन्‍द्र कुमार की वो बात कि सबने कोशिश की मुग़ल गार्डन में शूटिंग कर सकें, मगर भाई राजसाहब राजसाहब हैं। यूं ही नहीं बनता कोई राज कपूर... और हिन्‍दी साहित्‍य के राज कपूर हैं तेजेन्‍द्र शर्मा।

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रचनाकार: तेजेन्द्र शर्मा विशेष : निखिल कौशिक का संस्मरण - हिन्‍दी साहित्‍य के राज कपूर हैं तेजेन्‍द्र शर्मा !
तेजेन्द्र शर्मा विशेष : निखिल कौशिक का संस्मरण - हिन्‍दी साहित्‍य के राज कपूर हैं तेजेन्‍द्र शर्मा !
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