गाँधी विशेष(ण) वंदना... हर्षद दवे ‘२ अक्टूबर को गांधीजी के हैप्पी बर्थ डे के उपलक्ष्य पर छुट्टी है!’ इस छुट्टी का सही आनंद उठाने के लिए हमे...
गाँधी विशेष(ण) वंदना...
हर्षद दवे
‘२ अक्टूबर को गांधीजी के हैप्पी बर्थ डे के उपलक्ष्य पर छुट्टी है!’ इस छुट्टी का सही आनंद उठाने के लिए हमें सूर्य कि भांति निरंतर कार्य करते रहना चाहिए. ईश्वर को सब पूजते हैं. ईश्वरतुल्य मनुष्य भी पूजनीय हैं. परन्तु ऐसे मनुष्य कैसे होते होंगे? वे महामानव होते हैं. वे मनुष्यता से भी ऊपर उठकर प्रबुद्ध होते हैं. गांधीजी की गणना उन महामानवों में होती है.
तेजस्वी विद्यार्थी अस्खलित धारा प्रवाह में गांधीजी के बारे में बोल सकता है. अन्य विद्यार्थी ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ देखकर गांधीजी के बारे में जानकारी प्राप्त करने या उनके आदर्शों को समझने के लिए उत्सुक हो जाते हैं. आजकल गाँधी साहित्य की बिक्री इसीलिए बढ़ गई है! आनेवाली पीढ़ियां उन को ‘गोड’ मानकर पूजने वाली है. सात वर्ष के बाद उनके अवतरण के एक सो वर्ष पूरे होनेवाले है. ऐसे में उन्होंने भारत के लिए जो भव्य पुरुषार्थ किया है उसे रिप्ले करने का क्विक प्रयास करने पर ऐसा कहा जा सकता है कि उन के निरंतर प्रयत्नों के कारण सरलता एवं सादगी को सुन्दर सहारा मिला है. हमारे मनोबल का मांगल्य बढ़ा है. दंभ को देशनिकाला दिया गया है. सभी को सत्य के साम्राज्य में सफर करने के लिए स्वतंत्रता प्राप्त हुई है.
हमें उस सत्याग्रही के आग्रह को बरकरार रखना चाहिए. भ्रष्टाचार के साथ हमारे मानसिक भाईचारे का भागाकर करना चाहिए. सत्य के सोफ्टवेयर को स्टार्ट करना चाहिए. सत्ता व् संपत्ति की सीडी को रि-राईट कर के उसमें सादगी एवं संतोष का प्रोग्राम राईट करना चाहिए. दिमाग में दृढ़ता की ‘की’ (चाबी) प्रेस कर के अज्ञानता का एरर डिलीट करना चाहिए. ब्रिटिशर्स गए. अब हमें स्वयं से ही युद्ध लड़ना है. हमें दुर्गुणों के वाईरस से मुक्त हो कर हमें सत्य के मार्ग पर अग्रसर रहना हैं. हमारे मन के लेपटोप में की-बोर्ड ऑपरेशंस सरल हैं लेकिन उस में स्टीव जोब्स से बहुत पहले साबरमती के रचनात्मक संशोधक संत के द्वारा दिया गया सोफ्टवेयर इंस्टाल करना होगा. इतना अपडेशन तो हम कर ही सकते है न? तभी तो हम कह पाएँगे ‘सत्यमेव जयते’! अगर यहाँ तक आ गए हैं तो अब ‘रन’ पर माउस से ‘क्लिक’ कीजिए और देखिए मैजिक!
हम जानते है कि भाषा के अंतर्गत व्याकरण में ‘संज्ञा’ (नाम) का विशेषण के साथ विशिष्ट सम्बन्ध है. आप के नाम के साथ सार्थकरूप से आप कितने विशेषण प्रयुक्त कर सकते हैं, यह सोचा है कभी? नहीं न? अब ऐसा संनिष्ठ प्रयास करके देखिए. यह अत्यंत रसप्रद खेल है. इस खेल में आप को स्वयं के प्रति आईएम ईमानदार रहना होगा. आप समझ जाएंगे स्वयं की महत्ता. किन्तु यह खेल यहीं पर खत्म नहीं होता. आप को खुद के लिए पसंद हों ऐसे पसंदीदा विशेषणों के योग्य बनने के लिए सदैव प्रयत्नशील बने रहना होगा...फिर तो यह खेल लंबे अरसे तक चलेगा. है न कमाल का खेल! यह खेल कितना रोचक और प्रेरक है यह तो ‘जो खेले सो जाने’...जलन होगी देखनेवाले को, सो हो! क्या आप को पता है इस खेल का प्रथम हीरो कौन है? वे हैं अपने प्यारे गाँधी बापू! उनको इस खेल में १०८ अंक में से पूरे १०८ अंक प्राप्त हुए हैं! आप कितने अंक प्राप्त कर सकते हैं यह स्वयं ही तय करें!
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सुश्री भद्रा प्रदीप देसाई ने गांधीजी के जीवन-सन्देश को विशेषणों में पिरोकर १०८ मनके की मोहन-माला बनाकर भेजी है. आईए हम उन के इस प्रेरक एवं स्तुत्य प्रयास के लिए उनका अभिवादन करें. देखिए उन्होंने कितनी सुन्दर रचना की है, यह मोहन-माला गायत्री-मन्त्र, महामृत्युंजय-मन्त्र, नवकार-मन्त्र या ‘ओम मणि पद्म हुम’ मन्त्र की मालाएं जितनी ही असरदार एवं प्रभावी है!
१. श्री जगत गुरु स्वरूपाय नमः
२. श्री बापू स्वरुपाय नमः
३. श्री देश भक्ताय नमः
४. श्री सत्य स्वरूपाय नमः
५. श्री रेंटियाधारी स्वरूपाय नमः
६. श्री सत्याग्रही पुरुषाय नमः
७. श्री काठीचश्माधारी पुरुषाय नमः
८. श्री सन्माननीय पुरुषाय नमः
९. श्री युगपुरुषाय नमः
१०. श्री चिंतन पुरुषाय नमः
११. श्री स्थित्प्रग्न पुरुषाय नमः
१२. श्री विश्वमनवाय नमः
१३. श्री दीन बंधवाय नमः
१४. श्री सिद्ध पुरुषाय नमः
१५. श्री अनशन प्रियाय नमः
१६. श्री हरिजन प्रियाय नमः
१७. श्री सादगी प्रियाय नमः
१८. श्री खादी प्रियाय नमः
१९. श्री स्पष्ट वक्ताय नमः
२०. श्री अभय पुरुषाय नमः
२१. श्री गहन पुरुषाय नमः
२२. श्री दृढ़निश्चयी पुरुषाय नमः
२३. श्री माता-पिता भक्ताय नमः
२४. श्री अहिंसा प्रेमाय नमः
२५. श्री धर्म पुरुषाय नमः
२६. श्री मौन स्वरूपाय नमः
२७. श्री श्रेष्ठत्यागी पुरुषाय नमः
२८. श्री भगवदगीता प्रेमाय नमः
२९. श्री प्रेरणास्रोत स्वरूपाय नमः
३०. श्री सदाचारी स्वरूपाय नमः
३१. श्री सिद्धांत पुरुषाय नमः
३२. श्री सदगुरु पुरुषाय नमः
३३. श्री संयमी पुरुषाय नमः
३४. श्री आनंद पुरुषाय नमः
३५. श्री देव पुरुषाय नमः
३६. श्री साधु पुरुषाय नमः
३७. श्री प्रज्ञ पुरुषाय नमः
३८. श्री अजेय पुरुषाय नमः
३९. शांत स्वरूपाय नमः
४०. श्री विवेक पुरुषाय नमः
४१. श्री प्रतिज्ञा पुरुषाय नमः
४२. श्री ध्यान पुरुषाय नमः
४३. श्री सत्संगी पुरुषाय नमः
४४. श्री आत्मज्ञानी पुरुषाय नमः
४५. श्री निःशश्त्रप्रेमी पुरुषाय नमः
४६. श्री रामनाम प्रेम स्वरूपाय नमः
४७. श्री अस्तेयव्रतधरी पुरुषाय नमः
४८. श्री प्राणिमात्र प्रेमी पुरुषाय नमः
४९. श्री तेज कलमधारी पुरुषाय नमः
५०. श्री निःस्वार्थ पुरुषाय नमः
५१. श्री भारत नररत्न पुरुषाय नमः
५२. श्री रचनात्मक संशोधानाय नमः
५३. श्री अपरिग्रह व्रतधारी पुरुषाय नमः
५४. श्री क्षमाशील स्वरूपाय नमः
५५. श्री समयचक्रधारी पुरुषाय नमः
५६. श्री वैष्णवजन प्रियाय नमः
५७. श्री निरभिमानी पुरुषाय नमः
५८. श्री प्रायश्चितकृत पुरुषाय नमः
५९. श्री व्रत नियमी पुरुषाय नमः
६०. श्री प्रयोगी पुरुषाय नमः
६१. श्री ब्रह्मचर्य पुरुषाय नमः
६२. श्री कर्मनिष्ठ पुरुषाय नमः
६३. श्री कसोटी पुरुषाय नमः
६४. श्री धीरगंभीर स्वरूपाय नमः
६५. न्यायआग्रही पुरुषाय नमः
६६. आश्रमप्रेमी पुरुषाय नमः
६७. श्री विद्वान पुरुषाय नमः
६८. श्री पावन पुरुषाय नमः
६९. श्री नरश्रेष्ठ पुरुषाय नमः
७०. श्री उमदा पुरुषाय नमः
७१. श्री स्वप्नदृष्टा पुरुषाय नमः
७२. श्री महात्माय नमः
७३. श्री राष्ट्रपिताय नमः
७४. श्री सुज्ञ पुरुषाय नमः
७५. श्री पूजनीय पुरुषाय नमः
७६. श्री सात्विकप्रकृति पुरुषाय नमः
७७. श्री आपद बोधाय नमः
७८. श्री दीर्घदृष्टाय नमः
७९. श्री चरखाधारी पुरुषाय नमः
८०. श्री अनासक्तयोगी पुरुषाय नमः
८१. श्री आजानबाहु स्वरूपाय नमः
८२. श्री स्वातंत्र्यसंग्रामी पुरुषाय नमः
८३. श्री सांस्कृतिक स्वरूपाय नमः
८४. श्री अनाथनाथाय नमः
८५. श्री त्रिबोधदायी पुरुषाय नमः (तीन बन्दर)
८६. श्री कृशदेहि धाराय नमः
८७. श्री श्रमदेवताय नमः
८८. श्री करूणा सागराय नमः
८९. श्री दक्ष पुरुषाय नमः
९०. श्री संस्कार पुरुषाय नमः
९१. श्री तत्वज्ञानी पुरुषाय नमः
९२. श्री अकाल स्वरूपाय नमः
९३. श्री रंगभेदनाशाय नाम्ह्नामः
९४. श्री सहनशील मूर्तये नमः
९५. ९६ श्री प्रार्थना प्रीति पुरुषाय नमः
९६. श्री शहीद पुरुषाय नमः
९७. श्री योग पुरुषाय नमः
९८. श्री अस्पृश्य निवारणाय नमः
९९. श्री शुद्ध चित्त पुरुषाय नमः
१००. श्री ऋजु हृदयाय नमः
१०१. श्री वन्दनीय पुरुषाय नमः
१०२. श्री विरल विभूति नमः
१०३. श्री संत पुरुषाय नमः
१०४. श्री कुशाग्रबुद्धि धाराय नमः
१०५. श्री सर्वह्रदयवासिने नमः
१०६. श्री प्रातःस्मरणाय नमः
१०७. इति श्री सर्वगुणसंपन्नाय नमः
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