विजेंद्र शर्मा की समीक्षा - शहद सा अहसास है .... मुनव्वर राना का ग़ज़ल, नज़्म और गीत संग्रह : शहदाबा

SHARE:

शहद सा अहसास है .... शहदाबा हिन्दुस्तान में ऐसे करोड़ों लोग हैं जिन्हें उर्दू रस्मुल ख़त तो नहीं आता मगर वे उर्दू ज़ुबान से मुहब्बत करते ह...

शहद सा अहसास है .... शहदाबा

image

हिन्दुस्तान में ऐसे करोड़ों लोग हैं जिन्हें उर्दू रस्मुल ख़त तो नहीं आता मगर वे उर्दू ज़ुबान से मुहब्बत करते हैं। शाइरी और उर्दू के ऐसे ही शैदाइयों के लिए वाणी प्रकाशन , दिल्ली समय – समय पर नायाब तोहफ़े लेकर आता है।

हाल ही में वाणी प्रकाशन ने हरदिल अज़ीज़ शाइर मुनव्वर राना का नया मज्मूआ ए क़लाम “शहदाबा” प्रकाशित किया है। अदब की दुनिया में दखल रखने वाले मुनव्वर राना को उनकी बेहतरीन शाइरी और शानदार नस्र निगारी (गद्य ) के लिए जानते है मगर वे नज़्में भी उसी मेयार की लिखते हैं इस बात का इल्म “शहदाबा” को पढ़कर हो जाता है।

मेरी हथेलियों में उस दिन नसीब वाली लक़ीर कुछ ज़ियादा ही इतरा रही थी जिस दिन ये ख़ूबसूरत किताब मेरे हाथ में आयी। किताब का नाम, “शहदाबा” मुझे बड़ा अजीब लगा मैंने फ़ौरन बाबा ( मुनव्वर साहब ) को फोन लगाया और पूछा कि बाबा इस लफ्ज़ के मआनी क्या हैं ? उन्होंने अपनी खनकती हुई बुलंद आवाज़ में कहा कि जिस तरह दो दरियाओं के बीच के इलाके को दोआबा कहा जाता है उसी तरह शहद के छत्ते जहां होते है वहाँ हम किसी को अगर मिलने का वक़्त देते है तो कहते है कि शहदाबे पे आ जाना ...बस उनका इतना कहना था कि किताब का पूरा सार मेरे सामने खुल गया।

“शहदाबा” में तक़रीबन तीस ग़ज़लें ,चालीस नज़्में ,एक गीत और कुछ

ऐसी कतरनें भी है जो लिबास का हिस्सा नहीं बन सकीं ऐसा मुनव्वर साहब कहते हैं।

किताब की पहली ग़ज़ल ही मुनव्वर साहब के उस फ़न का दीदार करवाती है जिसे ख़ुदा हर शाइर को अता नहीं करता और वो फ़न है ज़िंदगी के किसी भी पहलू से शे’र निकाल लेना :--

आँखों को इन्तिज़ार की भट्टी पे रख दिया

मैंने दिए को आंधी की मर्ज़ी पे रख दिया

अहबाब का सुलूक भी कितना अजीब था

नहला धुला के मिट्टी को मिट्टी पे रख दिया

वक्ते जुदाई हर जुदा होने वाला इसके अलावा और क्या कह सकता है :--

रूख्सत का वक़्त है ,यूँ ही चेहरा खिला रहे

मैं टूट जाउंगा जो ज़रा भी उतर गया

सच बोलने में क्या नफ़ा –नुक्सान है इस बात को बहुत से शाइरों ने कहा है मगर अंदाज़े मुनव्वर सबसे जुदा है :--

सच बोलने में नशा कई बोतलों का था

बस यह हुआ कि मेरा गला भी उतर गया

पिछले दिनों कानपुर में कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल साहब के जन्म दिन पे एक कवि-सम्मेलन- मुशायरा था उसमें उन्होंने एक विवादास्पद बयान पुरानी बीवियों को लेकर दे दिया और सियासत ने उस मज़ाक में से भी सियासत निकाल ली। उस मुशायरे में मुनव्वर साहब भी थे ,काश जायसवाल साहब ने मुनव्वर साहब का ये शे’र पहले पढ़ लिया होता :--

सोना तो यार सोना है चाहे जहां रहे

बीवी है फिर भी बीवी ,पुरानी ही क्यों न हो

जिस शख्स ने अपनी ज़िंदगी में गम से लेकर मसर्रत तक के तमाम रंग देखें हों और हर पल को ज़िंदादिली के साथ जिया हो वही इस तरह की शाइरी कर सकता है जैसी मुनव्वर राना करते हैं :--

ऐसा लगता है कि कर देगा अब आज़ाद मुझे

मेरी मर्ज़ी से उड़ाने लगा है सैयाद मुझे

एक किस्से की तरह वह तो मुझे भूल गया

इक कहानी की तरह वह है याद मुझे

मुनव्वर राना की शाइरी ज़्यादातर आम आदमी के रोज़-मर्रा के मसाइल ,घर –आँगन , रिश्तों के टूटते –संवरते ताने बाने के इर्द-गिर्द रहती है मगर जब बात रूमान की आती है तो मुनव्वर साहब ने ऐसे –ऐसे शे’र कहे हैं की रूमानियत ख़ुद शर्मिन्दा हो जाती है :--

मेरी हथेली पे होंठों से ऐसी मोहर लगा

कि उम्र भर के लिए मैं भी सुर्ख रू हो जाऊँ

“शहदाबा” हाथ में आते ही ज़हन पे ऐसा नशा तारी होता है कि फिर आँखें आराम नहीं करना चाहती, दिल करता है कि इसे एक साथ पढ़ डालें और फिर ऐसे शे’र बीच में आ जाते है जिन पर आँखों को बहुत देर ठहरना भी पड़ जाता है। ऐसी ही एक ग़ज़ल ये है :--

अच्छी से अच्छी आबो हवा के बग़ैर भी

ज़िंदा हैं कितने लोग दवा के बग़ैर भी

साँसों का कारोबार बदन की ज़रूरतें

सब कुछ तो चल रहा है दुआ के बग़ैर भी

बरसों से इस मकान में रहते हैं चंद लोग

इक दूसरे के साथ वफ़ा के बग़ैर भी

हम बेकुसूर लोग भी दिलचस्प लोग हैं

शर्मिन्दा हो रहें हैं ख़ता के बग़ैर भी

ज़ियादातर शाइर अपनी ग़ज़लों में रिवायती से नज़र आने वाले क़ाफ़ियों का इस्तेमाल करते हैं मगर मुनव्वर राना अपनी ग़ज़ल में ऐसे –ऐसे काफ़िये टांकते है कि उसके बाद सिर्फ़ ज़ुबान से यही निकलता है कि मुनव्वर साहब ऐसे क़ाफ़िये लाते कहाँ से हैं :--

दुनिया सुलूक करती है हलवाई की तरह

तुम भी उतारे जाओगे मलाई की तरह

माँ – बाप मुफ़लिसों की तरह देखते हैं बस

क़द बेटियों के बढ़ते हैं महँगाई की तरह

हमसे हमारी पिछली कहानी न पूछिए

हम खुद उधड़ने लगते हैं तुरपाई की तरह

“शहदाबा” में मुझे वो ग़ज़ल भी नज़र आयी जिसका मतला दो साल पहले मुनव्वर साहब से फोन पर सूना था और मैंने बी.एस ऍफ़ और पाकिस्तान रेंजर्स की अमृतसर में हुई शिखर वार्ता की निज़ामत करते हुए शहरे अमृतसर की शान में सुनाया था :--

ये दरवेशों की बस्ती है यहाँ ऐसा नहीं होगा

लिबासे ज़िंदगी फट जाएगा मैला नहीं होगा

मुनव्वर साहब की शाइरी हो और उसमें ज़िंदगी के फ़लसफ़ों की तस्वीर छुपी रह जाए ऐसा हो ही नहीं सकता :--

फिर हवा सिर्फ़ चराग़ों का कहा करती है

जब दवा कुछ नहीं करती तो दुआ करती है

कोशिशें करती चली आई है दुनिया लेकिन

उम्र वह पूँजी है जो रोज़ घटा करती है

शाइरी में आँखों पे बहुत से शे’र कहे गए हैं मगर “शहदाबा” की कतरन में से ये शे’र किसी भी अधूरे मुहब्बत नामे को पूरा कर सकता हैं और मेरा ये भी दावा है कि जिस की भी आँखों की शान में मुनव्वर साहब के ये मिसरे इस्तेमाल हो जायेंगे फिर वो आँखें इज़हारे मुहब्बत अपनी आँखों से ही करेंगी :-उसकी आँखें है सितारों में सितारों जैसी

किसी मंदिर में चराग़ों की कतारों जैसी

दुनिया के सबसे मुक़द्दस लफ्ज़ “माँ” को ग़ज़ल में लाने का ख़ूबसूरत इल्ज़ाम अगर किसी पे है तो वो है मुनव्वर राना। “माँ” लफ्ज़ का शाइरी में इस्तेमाल पहले रिवायत के खिलाफ़ माना जाता था मगर मुनव्वर साहब ने रिवायत से बगावत की , इस लफ्ज़ को महबूब से भी बड़ा दर्जा देकर इतने शे’र कहे कि अदब में कहीं भी माँ का अगर ज़िक्र होता है तो मुनव्वर राना का नाम बड़े एहतराम के साथ लिया जाता है। “शहदाबा” की गज़लें और नज़्मों में भी मुनव्वर साहेब के मिसरे “माँ” की कदम बोसी करते नज़र आते हैं।

चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है

मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है

“शहदाबा” में मुनव्वर साहब की एक बिल्कुल ताज़ा ग़ज़ल भी है जिसका मतला उन्होंने नई उम्र की ख़ुदमुख्तारियों को मुख़ातिब हो कहा है और उसका एक शे’र फिर से एक ज़िंदगी की हक़ीक़त बयान करता है।

एक बार फिर से मिट्टी की सूरत करो मुझे

इज़्ज़त के साथ दुनिया से रूख्सत करो मुझे

जन्नत पुकारती है कि मैं हूँ तेरे लिए

दुनिया गले पड़ी है कि जन्नत करो मुझे

अब बात “शहदाबा” की नज़्मों की हो जाए, नज़्म का पैकर ग़ज़ल से बिल्कुल मुख्तलिफ़ है। “शहदाबा” में पाबन्द और आज़ाद दोनों तरह की नज़्में हैं। यूँ तो “शहदाबा” की तमाम नज़्में अपने आप में कई सदियाँ समेटे हुए हैं मगर कुछ छोटी – छोटी नज़्में इंसानी फितरत ख़ास तौर पे मरदाना फितरत को सोचने पे मजबूर करती हैं। एक नज़्म है “गुज़ारिश” जिसकी ये पंक्तियाँ रूह को झिंझोड़ कर रख देती हैं :---

जिस्म की बोली लगते समय वह ज़्यादातर ख़ामोश रहती है.. ,लेकिन किसी को अपने होंठ चूमने की इजाज़त नहीं देती... जब कोई उसे मजबूर करता है ...तो वह हाथ जोड़ते हुए ..सिर्फ़ इतना कहती है ...कि ..यह होंठ मैं किसी को दान कर चुकी हूँ ...और बड़े लोग दान की हुई चीजें ..कभी नहीं लेते।...

एक नज़्म है एहतिसाबे गुनाह उसके ये मिसरे देखें ...

एक दिन अचानक उसने पूछा ...तुम्हे गिनती आती है ...मैंने कहाँ हां ..उसने पूछा पहाड़े ..मैंने कहाँ हां ..हां ..

फिर उसने फ़ौरन ही पूछा ..हिसाब भी आता होगा ..

मैंने गुरुर से अपनी डिग्रियों के नाम लिए ..उसने कहा बस! बस।...अब मुझसे किये हुए वादों की गिनती बता दो ...मैं तुम्हें मुआफ़ कर दूंगी।...

ऐसे ही एक नज़्म है ओल्ड गोल्ड ये नज़्म आज के दौर के हर घर की कहानी सिर्फ़ चार मिसरों में बयान करती है :--

लायक़ औलादें ..अपने बुज़ुर्गों को ड्राइंगरूम ..के क़ीमती सामान की तरह ...रखती हैं ...उन्हें पता है कि ..एंटीक

.को छुपा कर नहीं रखा जाता ...उन्हें सजाया जाता है।

“शहदाबा” में मुनव्वर साहब की कुछ पाबन्द नज़्में हैं जिनमें से एक नज़्म तो सोनिया गांधी जी ने अपने घर में फ्रेम करवाकर लगा रखी है। इसके एक दो बंद आपको पढ़वाता हूँ ..

एक बेनाम सी चाहत के लिए आयी थी

आप लोगों से मुहब्बत के लिए आयी थी

मैं बड़े बूढ़ों की ख़िदमत के लिए आयी थी

कौन कहता है हुकूमत के लिए आयी थी

अब यह तक़दीर तो बदली भी नहीं जा सकती

मैं वह बेवा हूँ जो इटली भी नहीं जा सकती

मैं दुल्हन बन के भी आयी इसी दरवाज़े से

मेरी अर्थी भी उठेगी इसी दरवाज़े से

इशारों –इशारों में मुनव्वर साहब किस तरह सोनिया गांधी के मन की बात को अपनी नज़्म में कह जाते है ;--

आप लोगों का भरोसा है ज़मानत मेरी

धुंधला धुंधला सा वह चेहरा है ज़मानत मेरी

आपके घर की ये चिड़िया है ज़मानत मेरी

आपके भाई का बेटा है ज़मानत मेरी

है अगर दिल में किसी के कोई शक निकलेगा

जिस्म से खून नहीं सिर्फ़ नमक निकलेगा

“शहदाबा” में मुनव्वर साहब की एक और ख़ूबसूरत नज़्म है जो उन्होंने “सिन्धु दर्शन” महोत्सव के लिए लिक्खी थी। बात नब्बे के दशक के आख़िरी साल की है जब मुनव्वर साहब को अडवानी जी ने लद्दाख में सिन्धु दर्शन कार्यक्रम का न्योता दिया। मुनव्वर साहब सिन्धु नदी पर नज़्म लिखने के लिए अपनी फ़िक्र को बार –बार तकलीफ़ दे रहे थे मगर उनकी पसंद का मिसरा ज़हन में नहीं आ रहा था। अचानक उनकी 5 - 6 बरस की बेटी ने कहा अब्बू क्या कर रहे हो, उन्होंने कहा की बेटे कविता लिख रहा हूँ  ,मुनव्वर साहब ने सिन्धु –दर्शन का निमन्त्रण बच्ची को दिखाया। बच्ची ने पहाड़ों और नदी की तस्वीर देख कर सवाल पूछा कि ये नदी कहाँ से कहाँ तक जाती है ? बस मुनव्वर साहब को अपनी नज़्म का मिसरा मिल गया। उन्होंने उस वक़्त बच्ची से कहा कि बेटे ये नदी कहाँ से आती है कहाँ जाती है इसमें हमारा कोई रोल नहीं है ,ये हमारी पैदाईश से पहले की है मगर बाद में मुनव्वर साहब ने सोचा कि एक बाप , एक दोस्त और एक टीचर की हैसियत से बच्ची को अब ये समझाना चाहिए कि सिन्धु नदी का हिन्दुस्तान के लिए क्या महत्व् है और फिर वो शानदार नज़्म उन्होंने अपनी बेटी को समर्पित की। उसी ख़ूबसूरत नज़्म के एक –दो बंद :--

सिन्धु सदियों से हमारे देश की पहचान है

यह नदी गुज़रे जहां से समझो हिन्दुस्तान है

चाँद तारे पूछते हैं रात भर बस्ती का हाल

दिन में सूरज ले के आ जाता है इक सोने का थाल

ख़ुद हिमालय कर रहा है इस नदी की देख भाल

अपने हाथों से ओढ़ाया है इसे कुदरत ने शाल

इस नदी को देश की हर इक कहानी याद है

इसको बचपन याद है इसको जवानी याद है

यह कहीं लिखती नहीं है मुंह ज़बानी याद है

ऐ सियासत तेरी हर इक मेहरबानी याद है

अब नदी से कौन बतलाये ये पाकिस्तान है

यह नदी गुज़रे जहां से समझो हिन्दुस्तान है

जब सिन्धु दर्शन महोत्सव में मुनव्वर साहब ने ये नज़्म सुनाई तो तत्कालीन उप प्रधानमंत्री श्री लाल कृष्ण अडवानी ने इन्हें गले लगा लिया।

“शहदाबा” मुनव्वर साहब की बाकी सब किताबों से अल्हेदा है क्यूंकि हिंदी में उनकी ये पहली किताब है जिसमे उनकी ग़ज़लों के साथ – साथ पाठकों को नज़्मों का भी लुत्फ़ मिलता है।

“शहदाबा” वाणी प्रकाशन ,दरियागंज ,दिल्ली से डाक द्वारा भी मंगवाई जा सकती है। “शहदाबा” की ग़ज़लें, “शहदाबा” की नज़्में शाइरी के एक नए चेहरे को हमारे मुख़ातिब खड़ा कर देती हैं। एक बात और मैं दावे के साथ कहता हूँ कि अगर आप “शहदाबा” पढ़ेंगे तो मुनव्वर साहब को तो अपनी दुआओं में याद करेंगे ही मगर उनके साथ – साथ आप मेरे हक़ में भी दुआ को हाथ उठाएंगे।

आख़िर में “शहदाबा” की इसी कतरन के साथ आपसे इजाज़त की ईश्वर मुनव्वर साहब की उम्र दराज़ करे और उन्हें कभी ये ना कहना पड़े ...।

हमसे मुहब्बत करने वाले रोते ही रह जायेंगे

हम जो किसी दिन सोये तो फिर सोते ही रह जायेंगे

---

विजेंद्र शर्मा

बी.एस.ऍफ़, मुख्यालय

बीकानेर ..vijendra.vijen@gmail.com

COMMENTS

BLOGGER: 6
  1. आपकी यह बेहतरीन रचना बुधवार 24/10/2012 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह ! पढ़ते पढ़ते जी नहीं भरा ! जब ये ज़िंदगी की किताब हाथों में आएगी...तो न जाने क्या होगा !
    मुनव्वर राना साहब हमारे बहुत पसंदीदा शायर हैं ! हालाँकि ये अजीब सी बात है... कि उनकी रचनाएँ इतनी पसंद आईं हमें, कि हम वो शेर, नज़्में तो भूल गये...मगर उन्हें नहीं भूले ! उनसे मिलने की बहुत तमन्ना है !
    समीक्षा बहुत अच्छी लगी...और कुछ शेर तो..बस........ शब्द ही नहीं हैं, बयान करने को...
    धन्यवाद !
    सादर !!!

    जवाब देंहटाएं
  3. भाई श्री विजेंद्रजी, आप कहाँ फौज में चले गए,आप फौज में रह कर अदब की इतनी अच्छी खिदमत कर रहे हैं, काश आप अपना सारा समय साहित्य सेवा में लगाते तो हम जैसों का न जाने कितना भला होता|फिर भी पुनः एक और समीक्षा केलिए वाधाइयाँ|

    जवाब देंहटाएं
  4. anitaa jee our vermaa saahab , bahut bahut shukriyaa aapko ek aaftaab ke baare men jugnu kee tanqeed pasand aayi ....
    regards
    vijendra

    जवाब देंहटाएं
  5. बेनामी12:55 pm

    जानकारी पूर्ण पोस्ट , मुन्नवर राना जी को सुनना या पढ़ना किसी उपहार से कम नहीं , आभार आपका ....

    जवाब देंहटाएं
  6. बेनामी12:55 pm

    जानकारी पूर्ण पोस्ट , मुन्नवर राना जी को सुनना या पढ़ना किसी उपहार से कम नहीं , आभार आपका ....

    जवाब देंहटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: विजेंद्र शर्मा की समीक्षा - शहद सा अहसास है .... मुनव्वर राना का ग़ज़ल, नज़्म और गीत संग्रह : शहदाबा
विजेंद्र शर्मा की समीक्षा - शहद सा अहसास है .... मुनव्वर राना का ग़ज़ल, नज़्म और गीत संग्रह : शहदाबा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDjj0ggILuIFaUG8aDy7uIxlEESFSGPW2j2pBygshrjJTEcQdsobymkrycnqrQ_pAWbBHXqsmYkcPPfRsw2GMTXjcQN-MsRdDjRe-ZDZNFAh3FQjzFUa_9oHXLRQVBkADBNrKw/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhDjj0ggILuIFaUG8aDy7uIxlEESFSGPW2j2pBygshrjJTEcQdsobymkrycnqrQ_pAWbBHXqsmYkcPPfRsw2GMTXjcQN-MsRdDjRe-ZDZNFAh3FQjzFUa_9oHXLRQVBkADBNrKw/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/10/blog-post_4318.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/10/blog-post_4318.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content