(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बध...
(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाईयाँ व हार्दिक शुभकामनाएं - सं.)
ऐसा है यह व्यक्तित्व...
- कैलाश बुधवार
मैं तेजेन्द्र से परिचय को एक तरह का इनाम मानता हूं जो उन सबको हासिल है जिन्हें तेजेन्द्र को जानने पहचानने का मौक़ा मिला है।
तेजेन्द्र एक मिसाल है उन जीवन से समझौता करने वालों के लिए जो अपनी मजबूरी का दोष अपनी परिस्थितियों को देते हैं। वे मान बैठते हैं कि उनका हर प्रयत्न निरर्थक रहता रहा क्योंकि उनकी पहुंच सम्पर्क के उन सूत्रों तक नहीं थी जो उन्हें आगे बढ़ाते। तेजेन्द्र को इस देश में आए अभी दिन ही कितने हुए हैं। उन्होंने बिना किसी सहारे के, विदेशी भूमि पर, विदेशी भाषा-भाषियों के बीच हर विपरीत परिस्थिति से जूझकर, जिस तरह अपने कृतित्व को पल्लवित करने के लिए भूमि तैयार कर लिए पूछें, उनके हाथों में किन साधनों का बल था।
तेजेन्द्र एक मिसाल हैं उन सपना संजोने वालों के लिए जिनका मन मचलता है कि अपनी क़लम की बेचैनी काग़ज़ पर, पर्दे पर, हवा की तरंगों पर उतार सकें। कितनों के दिलो दिमाग़ में घुमड़ती कल्पनाओं को उस घड़ी की प्रतीक्षा रहती है जब उनकी रचनाएं औरों की नज़रों पर आंकी जाएं। कितनी बार ऐसे इरादे बंधते हैं, दुहराए जाते हैं पर काग़ज़ तक आते आते रह जाते हैं। अपनी आकांक्षाओं को मसोसने वालों को गिला यही है कि प्रतिभा को परखने वाला कोई कद्रदान उनकी परिधि में नहीं आया जो उनकी ख़ूबी प्रकाश में ला सकता। काश कोई बता देता कि वह मंत्र कैसे पता चले कि इस दिशा में उनकी उड़ान पंख भरे। अपने को अभिव्यक्त करने की संभावना भरे, हर उदीयमान रचयिता को मेरी सलाह है - तेजेन्द्र की ओर देखें, बिना किसी वरद-हस्त के, बिना किसी मार्ग-दर्शक के, उनकी रचनाएं उस मंज़िल तक कैसे पहुंचीं, जहां प्रकाशक से समीक्षक तक का ध्यान खिंच जाता है।
तेजेन्द्र मिसाल हैं उन अहिन्दी-भाषियों के लिए जो हिन्दी के प्रांगण में पदार्पण करना चाहते हैं। तेजेन्द्र की मातृभाषा हिन्दी नहीं थी। उनकी शिक्षा-दीक्षा हिन्दी में नहीं हुई। उन्होंने अपना शोध-ग्रन्थ अंग्रेज़ी में लिखा पर हिन्दी के क्षेत्र में आगे आते उनके क़दम डगमगाए नहीं कि मुझे हिन्दी में कैसे स्वीकार किया जाएगा। आज जिस गति से तेजेन्द्र हिन्दी में प्रकाशित हो रहे हैं, जिस विश्वास से हिन्दी लेखन को प्रोत्साहित कर रहे हैं, उससे भारत के सभी भाषा-भाषियों को भरोसा मिलना चाहिए कि हिन्दी के दरवाज़े भी के लिए खुले हैं, उसके क्षितिज में किसी दिशा से आनेवाले कि लिए अपने पराए का रंगभेद नहीं है।
और तेजेन्द्र मिसाल हैं मातृभाषा के लेखकों के लिए। पश्चिम के लेखकों की तुलना में, अपने देश के लेखकों को, जो अंग्रेज़ी में नहीं लिखते, जीवन-यापन के लिए जो जोड़-तोड़ करनी पड़ती है, वहां चिन्तन और सृजन के लिए कितनी जगह बच पाती है। उस तंगी में किस रचयिता की क़लम नहीं कसमसाती। उसकी अपनी भाषा में पाठक उसकी प्रकाशित कृतियां ख़रीद कर नहीं पढ़ते, दूसरी भाषाओं वाले उसका नाम भी जाने दृ ये कहां का स्वप्न है; क्या दुर्भाग्य है कि मातृभाषा के रचनाकार की छवि औरों की निगाह में कुछ कथावाचक जैसी है। और अपने कथाकार से, कवि से, लेखक से पूछ कर देखें तो उसकी कैफ़ियत है कि धन मान की लालसा होती तो किसी मुनाफ़े के व्यवसाय का द्वार न खटखटाता।
तेजेन्द्र साहित्यकार है, केवल स्वप्नदर्शी नहीं, हर घड़ी जीवन की हलचल से जुड़े हुए। नए युग के क़दम से क़दम मिलाए हुए, उन्हें आधुनिकतम यान्त्रिकी पर महारत हासिल है। मात्र लेखक के बाने में वे केवल क़लम से नहीं जूझते, प्रकाशन का प्रबन्ध हो या विज्ञापन का, आयोजन की व्यवस्था हो या मंच का संचालन, कोई काम हो, अगर सही है तो उनमें यह झिझक नहीं कि लोग क्या कहेंगे। विदेश यात्रा हो - चाहे हवाई जहाज़ पर हो या रेल पर, पार्टी का इन्तज़ाम करना हो या जन-संपर्क का, हर ज़िम्मेदारी को वो इज़्ज़त देते हैं। लेन-देन के चतुर सौदागर को भी वे इस भ्रम में नहीं रहने देते कि अनभिज्ञता या मुरव्वत के कारण मोलभाव में उन्हें ठगा जा सकता है। लेखक होने का यह अर्थ नहीं कि दुनियादारी से किनारा कर लें।
तेजेन्द्र अपने आप में मिसाल हैं अपनी कर्तव्य-निष्ठा के लिए। चाहे माता-पिता की स्मृति हो, चाहे दिवंगत पत्नी के विछोह में सम्मान की कड़ी, चाहे बच्चों के भविष्य की चिन्ता हो, चाहे मध्यवर्ग का रोज़मर्रा का संघर्ष, तेजेन्द्र हर मोर्चे पर अंगद की तरह पैर रोपे हैं। जिससे एक बार मित्रता हुई फिर वह और उसका परिवार इनका ऐसा सगा होगा जैसे जन्म से इनका अपना हो। फ़ितरत में सिर्फ़ दोस्त बनाना ही नहीं, दोस्ती निभाना भी शामिल है। किसी की भी ज़िम्मेदारी लेने पर जो किया जा सकता है, उसी लगन से होगा जैसे स्वयं अपने लिए कर रहे हैं।
तेजेन्द्र के इस मुल्क में बसने पर कुछ और ध्यान आता है - अमरीकी फ़िल्मों में घोड़ों को एड़ लगा कर पश्चिम की ओर बढ़ने वालों की ललकार - “उस भूमि पर अपना भविष्य खोजो जो तुम्हारी प्रतीक्षा में है।” हो सकता है कभी तेजेन्द्र जैसे जीवट वालों की झलक, भविष्य की कहानियों में चित्रित हो।
बल्कि मेरा एक सुझाव है कि भारत का पहला चन्द्रयान जब चन्द्रमा पर भेजा जाए तो अगर संभव हो तो उस उड़ान में तेजेन्द्र को ज़रूर शामिल किया जाए। मुझे निश्चय है कि अगर तेजेन्द्र के क़दम चांद की धरती पर पड़े तो वहां से अपना चन्द्रयान उस तरह वापिस नहीं लौटेगा जैसे अमरीकी लौटे थे। वहां एक नई बस्ती की बुनियाद पड़ चुकी होगी।
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Kailash Budhwar, 42 Hindes Road, Harrow HA1 1SL, Middlesex, United Kingdom-
(कैलाश बुधवार बीबीसी हिन्दी एवं तमिल रेडियो सेवा के प्रमुख के रूप में सेवानिवृत्त हुए। वे कई दशकों से लन्दन में बसे हुए हैं।)
तेजेन्द्र को जानने की शर्तों में जो आपके हिस्से का सवाल है उससे भी आपको आगाह कर दूं। तेजेन्द्र के बारे में सुनने जानने के बाद आप पर जो असर होगा, आपमें जो आत्म-विश्वास पैदा होगा, उसके बारे में आगाह करना चाहता हूं कि कोई ताज्जुब नहीं कि कुछ साल बाद इसी तरह किसी हॉल में आपकी कृतियों के बारे में हमें इसी तरह सुनने का अवसर मिले जिस तरह आज आपको मिल रहा है। |
आज कथा सम्मान की वो धूम है कि जो भी रचयिता हिन्दुस्तान से आता है उसे भ्रम होता है कि कथा सम्मान का कोई बहुत बड़ा दफ़्तर होगा, बाहर सन्तरी खड़े होंगे, रिसेप्शन पर ख़ूबसूरत लड़कियां इन्तज़ार कर रहीं होंगी, जो फ़ोन करके उन्हें ऊपरी मन्ज़िल के किसी कक्ष में ले जाएंगी जहां संगमरमर का फ़र्श होगा बड़ी बड़ी मेज़ें होंगी, तब तेजेन्द्र से मुलाक़ात होगी... |
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