1.''ताकत'' क्या है ताकत की परिभाषा, पैसा कुर्सी ढोंग तमाशा, या फिर कमजोरों का दोहन, गुंडागर्दी धमकी शोषण, क्यों भूले हम ज्ञा...
1.''ताकत''
क्या है ताकत की परिभाषा,
पैसा कुर्सी ढोंग तमाशा,
या फिर कमजोरों का दोहन,
गुंडागर्दी धमकी शोषण,
क्यों भूले हम ज्ञान की ताकत,
ऋषि मुनि की महा विरासत,
भूल गए भाषा की ताकत,
हिंदी पर है रोज सियासत,
हम भूले संस्कार की ताकत,
पश्चिम की अब करें हिमायत,
याद नहीं मेहनत की ताकत,
कामचोरी की पड़ गई आदत,
विस्मृत हुई अपनत्व की ताकत,
अपनों से अब रोज बगावत,
प्रेम और भाईचारे की ताकत,
अब तो हैं बस एक कहावत,
बुझी बुझी लौ देशप्रेम की,
देश पे मर मिटने की ताकत,
अमर शहीदों को तक भूले,
क्या केवल है यही शराफत,
मतलब की दुनिया में देखो,
अब है चापलूसी की ताकत,
भ्रष्टाचार के जाल बनाती,
अब मानव मकड़ी की ताकत,
नफरत की सड़कों पर चलते,
अहम् के हाथी की है ताकत,
मजबूरों की बोटी नोचें,
गिद्धों की तो रोज है दावत,
सही मायनों में ताकत तो,
मानव की सेवा होती है,
दान धरम विश्वास प्रेम से,
कर्मों की पूजा होती है
डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
2.''गरीब की व्यथा''
मैं तो जुलम सितम का मारा,
मैं अपनी किस्मत से हारा,
जिसने चाह लूटा मुझको,
जब चाहा मुझको धिक्कारा,
मेरा अन्न तो तुम खा जाते,
मेरी जमीन भी तुम कब्जाते,
मेरे हक की सभी योजनाओं,
पे तुम सब फिर मौज उड़ाते,
मुझको राशन मिल न पाता,
मुझको बिजली मिल न पाती,
पानी साफ़ कभी न पीता,
कभी इलाज भी मिल न पाता,
कीड़े जैसा मैं जीता हूँ,
सिसक सिसक मरता रहता हूँ,
फिर भी तुमको दया न आती,
मैं मिन्नत करता रहता हूँ,
साहब लोगों तुम मालिक हो,
मैं तो हूँ आजीवन नौकर,
बस थोड़ा सा जी लेने दो,
मानूँगा एहसान उमर भर,
डॉ.अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
3.सो रही है जनता,
सोया हुआ ये शहर है,
पर कैसे, बुत बने सब,
कौन सा ये पत्थर है,
सिक्कों कि खनक पर ,
ताकत कि हनक पर ,
झुक झुक कर गिरता हुआ,
इनका मुक्कद्दर है,
हर बात में कमी ढूँढता,
युवाओं का हुजूम है,
अनजाना सा भटकता हुआ,
निराशा का बवंडर है,
अपराधों की बाढ़ में बहता ,
जा रहा आदमी असहाय सा,
खौफ ही खौफ बेख़ौफ़ फैला हुआ,
भयानक ये मंजर है,
अब घायल सा लगता है हिन्दुस्तान,
इतना भ्रष्टाचार,इतने बेईमान,
किस मंजिल को पाना चाहते हैं हम,
कैसा ये सफ़र है??????
अखिल अज्ञानी (डॉ अखिल बंसल)
4.आज पंद्रह अगस्त है, आज पंद्रह अगस्त है
नहा धोकर, हुलिया बदलकर,
हर सफेदपोश मस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है।
कहने को ढेर सारी बातें हैं,
बनाने को ढेर सारे बहाने हैं,
बांटने को ढेर सारी मिठाइयाँ हैं
करने को ढेर सारी बुराइयां हैं,
जनता ठगी सी है, आम आदमी त्रस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है
आज जोरदार भाषण होंगे,
भारत की उजली तस्वीर दिखाई जायेगी,
ऊँचे किले की प्राचीरों तक,
गरीब की आवाज तक न पहुँच पाएगी,
थोडा रोना बाढ़ पीड़ितों पर होगा,
कुछ आंसू नक्सलवाद पर बहाए जायेंगे,
मुद्दे उछलेंगे अफजल गुरु और कसाब के,
पैसे दो पैसे चीज़ों के दाम घटाए जायेंगे,
'' सिर्फ साल बदलते जा रहे रहे हैं, नहीं बदला ये वक़्त है''
आज पंद्रह अगस्त है
आज तिरंगे को फिर से सम्मान मिलेगा,
कुछ दिनों तक नियम से रहत का सामान मिलेगा,
साफ़ की जायेंगी चौराहों पर ख्सदी महापुरुषों की मूर्तियाँ,
कुछ सड़कों और पार्कों को एक नया नाम मिलेगा,
कुछ दिनों बाद हालात फिर से बदल जायेंगे,
वही भयावह मंजर फिर से नजर आयेंगे,
गुम हो जाएगा आदमी रोटी की जुगाड़ मैं,
क्या हम कभी ये तस्वीर बदल पायेंगे,
क्यों हर आदमी इस हाल का अभ्यस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है
क्यों पैंसठ बरस में गाँव में बिजली नहीं आई,
कई लोगों ने दो वक़्त की रोटी नहीं खाई,
आज भी इलाज के अभाव में मर रहे हैं लोग,
आज भी आजादी का इंतज़ार कर रहे हैं लोग,
आज नशे में लिपटी भारत की तरुनाई है,
जातिवाद और ऊँच नीच की गहरी अंधी खाई है,
राजनीति के अखाड़े में बदल गया हिन्दुतान है,
आज सहमा सहमा सा लगता देखो हर इंसान है,
आज भारत का अस्तित्व सच में संकटग्रस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है
आज किसान भूखा है, जनता लाचार है,
महंगाई ही महंगाई है, जीना दुश्वार है,
बची खुची जान अराजकता निगल रही है,
सरकारी खादिमों से पूछो तो कहते हैं जांच चल रही है,
जांच चल रही है, जांच चलती रहेगी,
उसकी आंच में सच्चाई युहीं जलती रहेगी,
अरे जहाँ पंगु ही हो गया हो आदमी का ईमान,
उसकी किस्मत तो बैसाखियों पर ही संभलती रहेगी,
लोकतंत्र है, प्रजातंत्र है,नारा जबरदस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है
आज भी दिनदहाड़े अपहरण होते हैं,
आज भी सरेआम चीरहरण होते हैं,
आज चीख चीख कर थक गया है आदमी,
पर सत्ता के कुम्भकर्ण बेखबर सोते है,
आज देश में ऑनर किलिंग आम है,
रोज नए घोटालों से हर आदमी हैरान है,
नारी पर आज भी कुप्रथाओं का शासन है,
कभी पैर की जूती तो कभी कहते हैं की वो डायन है,
आतंकित है हर नारी, हर बालिका भयग्रस्त है,
आज पंद्रह अगस्त है
देश को साफ़ करना तो है, पर कौन डालेगा ओखली में सर,
हम चाहते हैं शहीद पैदा तो हों, पर पडोसी के घर,
पर ऐसा करने से अपना घर भी नहीं बच पायेगा,
फिर कोई कंपनी होगी, फिर कोई डलहौजी आएगा,
कसम खा लो की देश को बर्बाद नहीं होने देंगे,
अनैकतिकता की आग में इसे ख़ाक नहीं होने देंगे,
तभी देश सक्षम होगा, तभी कुश्हाली आएगी,
सपना पूरा होगा शहीदों का, सच्ची आज़ादी आएगी,
बड़ी कुर्बानियों से पाया है हमने, आज़ादी का ये तख़्त है,
आज पंद्रह अगस्त है
अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
5.''जीवन''
ढेरों दुःख पाते रहते हैं,
फिर भी मुस्काते रहते हैं,
कभी अकेले कभी काफिले,
परिवर्तन आते रहते हैं,
सुख दुःख जीवन की छाया है,
यह काया भी एक माया है,
फूलों कांटो की है जोड़ी,
कोई नहीं समझ पाया है,
विकट तमों से क्या घबराना,
है उम्मीद का दीप जलाना,
कितनी गहरी रात हो लेकिन,
सुबह तो सूरज है उग आना,
फिर क्यूँ हम हिम्मत को हारें,
क्यूँ हम किस्मत को धिक्कारें,
पतझड़ सदा नहीं रहता है,
आती ही हैं नई बहारें,
सत्य मार्ग पर चलने वाले,
नजर लक्ष्य पर रखने वाले,
पा ही जाते हैं मंजिल को,
जो अपनी धुन में मतवाले,
जिसके पास है प्रभु की भक्ति,
दया प्रेम अध्यात्म की शक्ति,
जिसने वश में कामनाएं हों,
उसी की है बस सच्ची मुक्ति.............................. शुभ रात्रि, डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
6.साहब गाड़ी से उतरे, मंदिर के दर्शन के लिए,
बूढ़ी भिखारिन ने हाथ फैलाए थोड़े से धन के लिए,
मैडम ने तिरिस्कार से एक रुपया फेंक दिया,
मंदिर में पर्ची से पांच हज़ार का अभिषेक किया,
मूर्ती ने प्रसाद में से कुछ नहीं खाया,ना ही कुछ पिया,
ना ही पैसे रखे, ना वस्त्र पहने,ना ही कुछ ग्रहण किया,
हाँ वो बुढ़िया जरुर बाहर रह रह कर गिड़गिड़ाती रही,
आते जाते लोगों से बेरुखी और दुत्कार पाती रही
साहब पैसे प्रसाद भगवान को चढ़ा कर प्रसन्न हो गए,
उन्हें लगा इससे थोड़े उन के पाप के ढेर कम हो गए,
पर मूर्ख आदमी स्वार्थ में कभी ये समझ ही नहीं पाया,
कि ईश्वर ने ही गरीब और अमीर दोनों को है बनाया,
वो कहता है यदि मन में दया प्रेम करुणा नहीं है,
लाख प्रयत्न कर लो तेरा मुझसे मेल होना नहीं है,
तेरे मन में यदि दीन दुखियों की सूरत नहीं है,
सच कहता हूँ तेरे जैसे भक्तों की मुझे जरूरत नहीं है
डॉ.अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
7.''दुर्जनों को चेतावनी''
छोड़ो कल की बातें कल की बात पुरानी,
नए दौर मैं लिखेंगे मिलके नई कहानी,
हम हिन्दुस्तानी हम हिन्दुस्तानी,
और हिन्दुस्तानी कर रहे हैं सिर्फ मनमानी ,
नहीं तो क्यों इतने घोटाले और भ्रष्टाचार,
बेबस जनता और निरंकुश सरकार,
चोरी, हत्याएं, लूट और बलात्कार,
पथभ्रष्ट युवा पीढ़ी नशे की भरमार,
दिखावे के लिए महापुरुषों को मालाएं,
जोरदार भाषण और बेतुकी घोषणाएं,
चूहे और सांप मिलकर लगे हैं खोदने,
किसी दिन वतन को खोखला न कर जाएँ,
देखना गौमाता के मांस का कर्ज चुकाओगे,
नारी की बेइज्जती का अर्थ भी समझ जाओगे,
पापियों वो दिन दूर नहीं कृष्ण दुर्गा अवतार आयेंगे,
कुक्कुर की मानिंद मरेंगे दुर्जन, हर पाप का मोल चुकायेंगे...........................
डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
8.गरीब नेताओं का वेतन बढ़ गया,
क्या हुआ जनता पे थोड़ा कर्जा चढ़ गया,
हमारे नेता तो देश का भला ही करते हैं,
वे तो संत हैं जो कठौती में गंगा भरते हैं,
पुल, माकन, दूकान, सड़क, पानी, बिजली,
रोटी, रोजगार, व्यापार ये हमें कौन देता है,
बाढ़, भूकंप, सुनामी और आगजनी में हमें,
मदद और राहत के आश्वाशन कौन देता है,
हमारे नेता रोज जी तोड़ मेहनत करते हैं,
बेचारे कितनी मुश्किल से अपना पेट भरते हैं,
हफ्ते भर में केवल कुछ सौ करोड़ कमाते हैं,
और वो भी निस्वार्थ भाव से स्विस बैंक छोड़ आते हैं,
भारत की अमीर जनता कुछ भी सोचती,
गरीब नेताओं के लिए अच्छा तक नहीं बोलती,
चलिए माफ़ी मांगिये अपने नेताओं से और,
कहिये कि भगवान् आप गरीबों को और धन दे,
फटेहाल आपके परिवारों को नया जीवन दे,
तभी तो आप भारत कि अमीर जनता के बराबर आ पायेंगे,
तभी तो आप साचे मन से अपना राष्ट्रगान गा पायेंगे.............................. शुभ रात्रि ........
.डॉ अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
9.''जादू की थैली''
मैंने एक चुनाव की रैली देखी,
उसमें एक बड़ी सी थैली देखी,
जो पकड़े हुए था उम्मीदवार,
सजा था उम्मीदों का बाज़ार,
थैली से निकल रहे थे वायदे,
आश्वाशन नियम और कायदे,
घोषणाओं की बौछार हो रही थी,
वोट देने की मनुहार हो रही थी,
थैली शायद बड़ी करिश्माई थी,
तभी उम्मीदवार ने जीत पाई थी,
जनता चाहती थी जादू असर दिखाए,
थैली के वादों से सब कुछ सुधर जाए,
पर वास्तव में वहाँ सब उलट गया,
थैली का जादू पूरा का पूरा पलट गया,
उम्मीदवार की तो जैसे बुद्धि फिर गयी,
मासूम जनता पर जैसे बिजली गिर गई,
कोई चुनावी वादा उसे याद ना रहा,
कोई काका मामा कोई संवाद ना रहा,
पांच साल तक कोई जादू नहीं हुआ,
जनता के जख्मों को किसी ने नहीं छुआ,
पर पांच साल बाद फिर जादूगर आया,
साथ फिर जादू की बड़ी सी थैली लाया,
फिर मनुहार हुई, थैली ने जादू दिखाया,
इस बार जादू की आस में जनता ने फिर उसे जिताया,
तब से हर पांच साल में जादूगर आता है,
अपने वादों की जादुई थैली से जनता को लुभाता है,
पूरा जनसमूह उसकी बातों में आ जाता है,
करिश्माई थैली का जादू हर बार चल जाता है.................................................
डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
10.''अकेली माँ''
पैरों मैं बिवाइयाँ,
चेहरे पर झाइयां,
धुंधलाती नज़र,
अश्कों के निर्झर,
लाठी का सहारा,
सूना घर द्वारा,
लड़खड़ाते कदम,
ज़माने के सितम,
सह रही है बूढ़ी माँ ,
परदेस में बेटे को फुर्सत कहाँ ,
समय नहीं है घर आने का,
यही तो समय है कमाने का,
माँ रोती है कि जाने कब आएगा,
मैं मर गई तो कौन मुझे जलाएगा,
निर्लज्ज बेटे को क्या ये अंदाज़ होगा,
यही हाल उसका कुछ साल बाद होगा,
जब उसकी संतान उसी को सताएगी,
तब उसे माँ बाप की टीस याद आएगी।
डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
11.सवाल?
एक सवाल खड़ा जहाँ की तहां है,
पहले हम कहाँ थे आज हम कहाँ हैं,
विश्वगुरु भारत मैं आज निरक्षरता है,
अहिंसा के प्रतीक भारत मैं आज बर्बरता है,
वीरों की भूमि आज वीरों को तरसी है,
देश भक्ति और प्रेम के लिए भारत माँ तरसी है,
आज यहाँ ज्ञानियों का दानियों का टोटा है,
नेताओं के लिए हर घोटाला छोटा है,
जहाँ दुर्गा पूजा होती है वहां नारी की लाज नहीं,
हमारा भारत जैसा पहले था वैसा कतई आज नहीं,
कत्लेआम,दंगा फसाद वहशीपन की आंधी है,
आज यहाँ ना भगत सिंह हैं ना यहाँ गांधी हैं,
भारतवासियों अपने घायल देश को मिटने से बचा लो,
तिरंगे की लाज रख लो, इसे झुकने से बचा लो।
डॉ. अखिल बंसल (अखिल अज्ञानी)
12.दहेज़ प्रथा,
आज एक सवाल बड़ा ही अहम् है,
क्या दहेज़ लेना और देना जरुरी है?
आम आदमी को अभी तक वहम है,
कि बेटी एक बोझ है,मजबूरी है,
आज बेटियां आसमान छू रही हैं,
लड़कों से आगे निकल रही हैं,
सिर्फ नज़र बदल कर देखो,
बेटियां देश की किस्मत बदल रही हैं,
आज भारत की नारी ऊँचे पदों पर है,
नर श्रेष्ठों से कहीं ऊंचे कदों पर है,
वो परिवार नहीं पूरा देश तक चला रही है,
पुस्र्ष जाति को ये सन्देश दिला रही है,
कि अब समय बदल गया है तुम भी बदलो,
दहेज़ के पत्थर से नारी को ना कुचलो,
नारी अब अबला नहीं सर्वसंपन्न सबला है,
मेहनत से उसने अपनी किस्मत को बदला है,
दहेज़ देना और लेना एक सामाजिक बुराई है,
पाप है, कुरीति है, खुद की जगहंसाई है,
सोच को बदल कर विचारों का विस्तार करना होगा,
सभ्य समाज के लिए दहेज का तिरस्कार करना होगा,
''अखिल अज्ञानी''
13.जय पत्नी जय पत्नी जय पत्नी मैया,
दुनिया के सारे पति नाचें ता ता थैया,
सर्वशक्तिशाली तू ही नाव की खिवैया,
दुनिया के सारे पति नाचें ता ता थैया।।
मुंदरी चढ़े , हार चढ़े और चढ़े भाले,
कर्णफूल, लौंग, नथनी, शुद्ध सोने वाले,
साड़ी, सूट, चप्पलों, से तू मुस्कुराए,
तू जो खुश रहे पति को सर्वसुख मिल जाए।।
बात तेरी काटी तो तू ब्रह्मास्त्र चलाये,
आंसुओं की धार में ये दुनिया ही बह जाए,
बात ज्यादा बढ़ जाए तो मैके चली जाए,
पति देव रोटी पानी तक को तरस जाए।।
तू कृपानिधान सारे कष्ट तू मिटाए,
तेरी भृकुटी टेढ़ी हो तो भूत भी भग जाए,
असंख्यभुजी सर्व्दात्री तू दया की मूरत,
ब्यूटीपार्लर रोज बदलें तेरी मोहिनी सूरत।।
जो चले जिव्हा तुम्हारी कुछ ना नजर आये,
मूक पति थर थर काँपे जाने किधर जाए,
जो क्रोध ज्यादा आये रौद्र रूप धारिणी,
बेलन का वज्र चले सर्वसन्हारिणी।।
माँ प्रणाम माँ नमन माँ शत शत वंदन,
तनख्वाह मेरी ग्रहण करो बंद करो क्रंदन,
तू सुखी तो मैं सुखी हूँ नारी श्रेष्ठ भारती,
तेरा सेवक मैं पति उतारूं तेरी आरती।।
पत्नी की सेवा मैं एक तुच्छ सा प्रयास - 'अखिल अज्ञानी'
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