जगती रात आज कल रात भी जगने लगी है जग को हंसाकर खुद रोने लगी है उसके साये में अब नींद नहीं होती रात भर जाग कर पाप बेचते हैं रात-रात ना रह ग...
जगती रात
आज कल रात भी
जगने लगी है
जग को हंसाकर
खुद रोने लगी है
उसके साये में अब
नींद नहीं होती
रात भर जाग कर
पाप बेचते हैं
रात-रात ना रह गयी
सौदा हो गयी
हर काले कामों का
गोरा पैसा हो गयी
मौत
मौत ने जमाने को
कैसा समां दिखाया है
ऐसे-ऐसे रुस्तम को
ख़ाक में मिलाया है
मौत सभी को आती है
कोन इस से छुटा है
तू फनां ना होगा
ये ख्याल झूठा है
रंज
मै रंजसार हूँ के
लुट गया मेरा चमन
बन्दों से क्या शिकवा करू
ये रब का काम है
मै------------------
पत्ता-पत्ता नोच डाला
दाल-दाल से
काँटों से क्या शिकवा करूं
ये गुल का काम है
मै---------------------
उजड़ी-उजड़ी सी ये जो
दरो-दीवार है
आशिकों से क्या शिकवा करूं
ये हम सफर का काम है
मै-------------------
किस्ती जो मेरे ये डूबी-डूबी सी है
किनारों से क्या शिकवा करूं
ये साहिल का काम है
मै-------
सैंय्या
कागा बोले मुंडेर पर
एक खबर मोहे दे
सैंय्या मोर घर
आने को है ये
संदेशा मोहे दे
कागा---------------
छत पर खड़ी मैं वाट निहारूं
बरसों बीते देख सजन को
मैं पहचानूँ कैसे
कागा---------------
दिल की धड़कन ओ री सखी तू सुन
थोड़ी ठहर जा
पिया आने पर धड़कना
शरगोशी से मेरे कानों में
पी की छवि समझाना
कागा-----------------
नयन मोरे भर-भर आये
अपनी ख़ुशी दर्शाए
छोड़ गये जो बाली उमरिया में
लोट के अब घर आये
कागा-------------------
दर्द
बेवजह है ये दर्द
यूँ ही महसूस होता है
धड़कता है दिल जहां
वहीं जख्म होता है
ना खंजर चुभा
ना नासूर है वहाँ
फिर भी लगता है जैसे
खून रिस रहा हो
दिल भी नहीं टूटा
ना धोखा ही मिला
फिर क्यों बेवजह
चुबन दिन रात रहती है
शायद दिल को आदत ही होती है
बेवजह दुखने की
हर जरासी बात पर
झर-झर रोता है
वही तो दिल होता है
क्या लिखूं
किताबों के पन्नों में
अब क्या लिखूं मैं
कभी कभी जिन्दगी
एक शब्द मै सिमट जाती है
कभी-कभी हजारों
लफ्ज भी कम पड़ जाते हैं
मैं मान लूँ तो
सिमटी हुई लगती है जिन्दगी
मैं मान लूँ तो बिखरी हुई सी
चाहा तो खबर बन गयी
नहीं तो गुमनाम रहती है
कभी मतलबी तो कभी
देने पर आतुर हो उठती है
कभी मेरी मुट्ठी में कैद रहती है
कभी हाथों से निकल जाती है
किताबों के पन्नों में
अब क्या लिखूं
उम्र
मुहब्बत में उम्र का
पड़ाव नहीं होता
होता है जहां प्यार
वहाँ सवाल नहीं होता !
पानी
जिस पर लकीरें नहीं खिंचती
जिस की रफ्तार तूफानी हैं
वो हमारा जीवन पानी है
वो जब बहता है झरनों से
तो मन आन्द से भर जाता है
वो जब गिरता है आसमान से
तो धरती स्वर्ग बनजाती है
नदिया से बहता है तो गंगा
जल कहलाता है
सागर जब बनता है तो
विनाश भी कर जाता है
आइटम सांग
सीधी सो जा रे बंजारन
तेरा क्या जाये ,
कांचली में तेरी लगे है !
कांच चार .
के मुखड़ा देख लेने दे
तेरा क्या जाए
सीधी-----------------
नयन कटारी तेरी जैसे
मधुशाला के प्याले
मदिरा पी लेने दे
तेरा क्या जाये
सीधी--------------
चाल है तेरी ऐसी
जैसे नागिन सी बल खाए
बाहों में भर लेने दे
तेरा क्या जाये
सीधी------------------
गिरते पल
एक और दिन
यूँही फिसल गया
उम्मीद की पोटली से
पोटली खुली और
पल गिरते गये !
विस्तार
सिकुड़ी हुई इस धरती का
लाओ मैं विस्तार कर दूं !
रहने को सब को दर मिल जाये
ऐसा मैं आकार कर दूं !
है चिलचिलाती धूप तो क्या
नन्हे मेरे हाथ तो क्या
अपना बचपन साकार कर लूं !
भूखा मेरा पेट तो क्या
आँखों मैं आंसू तो क्या
आने वाले युग के लिए
जीना आसान कर दूं !
मेरे होठों की हंसी
रोने वालों के नाम कर दूं
सपनों की सुराही
रात होश में नहीं थी
अजीब सा नशा छाया था
सपनों की सुराही में
ह्क्कित का रगं देखा
रगं कुछ धुंधले से थे
आपस में गुंथे हुये
पर उलझे हुये नहीं थे
मैं खुली आँखों
देख सकती थी
सुराही का मुहं बड़ा था
पर गहराई में
अँधेरा नहीं था
अंदर चेहरा साफ़
नजर आ रहा था
वो मुरझाया हुआ नहीं था
उस पर सुबह की
परतें चढ़ी हुई थी
गुबार
इस तरह तो
परेशान नहीं थी
जिन्दगी
ये कहाँ से दिल मै
गुबार आ गया
धुआँ
रात युहीं जलती रही
धुआँ-धुआँ होकर
कुछ गीली लकड़ी सी
कुछ सूखी लकड़ी सी
आँखों में चढ़ता धुंआ
आंसू बन कर टपकने लगा
रात, रातभर भीगती रही
भीगी हुए रात सिसकती रही
गर्माहट को तरसती रही
पर धूप सुबह तक नहीं निकली
सूरज आज भी बादलों
के पीछे छुपा रहा
फिर रात रात भर
यूं ही जलती रही
मजबूरी
एक खूबसूरत,
रंगों से भरी हुई
पेंटिग,आर्ट गेलेरी
को सजा रही थी !
लोग आते गये
देखते गये ,
आगे निकलते गये !
एक तस्वीर जो
मायूसी से भरी हुई
जिन्दगी से हारी हुई !
कपड़े फटे हुये ,
होठों से खून
बहता हुआ
थकी ,लाचार
नायिका और
तस्वीर लाखों में
बिक गयी !
ऐसा ही होता है
मजबूरी सदा
बिक जाती है !
हकदार
उसकी जीत की हक दार,
मैं बनती गयी !
अपनी हार का जिम्मेदार,
उसे समझती रही !
मतलबी पल
कितने मतलबी
होते हैं ये पल !
बेबसी में भी
नहीं ठहरते !
जिस रफ्तार से
आते हैं ,
उसी रफ्तार से
चले जाते हैं !
खर्च चाहे सारी
उम्र करते रहें !
नहीं मिल पाते
वो लम्हे जो,
बीत गये !
आइटम सांग
फिसलन भरी है मेरी जवानी
आ सैंया लिख दे कोई कहानी
देख कर मेरे जलवों मस्ती
समझ ना इस को तू सस्ती !
फिसलन----------------------------
चिकनी कमर है
तीखी नजर है
लचकीली बाहें
फिसलन---------------------------
माखन लगी हूँ
मलाई से भरी हूँ
हूँ मैं मीठा पकवान
फिसलन------------------------------
meenakshibhalerao24@gmail.com
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