(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बध...
(तेजेंद्र शर्मा - जिन्होंने हाल ही में अपने जीवन के 60 वर्ष के पड़ाव को सार्थक और अनवरत सृजनशीलता के साथ पार किया है. उन्हें अनेकानेक बधाईयाँ व हार्दिक शुभकामनाएं - सं.)
एक जि़म्मेदार कथाकार
- के सी मोहन
जिस लेखक की कलम में पाठक को साथ ले चलने की शक्ति नहीं है, वो चाहे कितने भी काग़ज़ काले करता रहे, किताबों का अम्बार लगा दे या फिर कितनी भी साहित्यिक तिकड़मबाजि़यां करता फिरे, वह लेखक होने का भ्रम तो पाल सकता है, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में अपनी कोई जगह नहीं बना सकता। जगरांव में जन्मे तेजेन्द्र शर्मा की कहानियों में पाठक को अपने साथ बांध लेने की शक्ति है। उनकी कहानियां आवश्यक कथा-रस से ओतप्रोत हैं। उनकी कहानियों की बुनाई, चाल एवं निबाह पाठक को भीतर तक छू जाता है - यह तथ्य उनके हिन्दी में प्रकाशित कहानी संग्रहों काला सागर; 1990 ढिबरी टाईट; 1994 देह की कीमत; 1999 ये क्या हो गया (2003) और बेघर आंखें (2007) को पढ़ने के पश्चात सहज रूप में उजागर होता है।
तेजेन्द्र की कहानियों के विषय एवं घटनास्थल तेजेन्द्र के अपने व्यक्तित्व की ही भांति ख़ासा विस्तार लिये हैं - इन कहानियों के पढ़ने के साथ ही तेजेन्द्र के भीतर का सुलझा हुआ, निपुण एवं पहले दर्जे का कथाकार सहज ही पाठकों के सामने आ खड़ा होता है। सहजता तेजेन्द्र के स्वभाव का एक अंग है और यह उसकी कहानी कहने की नज़ाकत एवं चाल के साथ स्वयं ही आ जुड़ती है। वह बहुत नाज़ुक अंदाज़ में अपनी कहानी बयान करता है। उसकी अधिकतर कहानियों का एक सा आकार एवं फैलाव, तेजेन्द्र की एकाग्रता एवं एकनिष्ठ होने की ओर इशारा करता है।
कई लेखक बहुत परेशान हो कर कहानी कहते हैं। लेकिन तेजेन्द्र की लेखन शैली से प्रतीत होता है कि वह बिना कोई अतिरिक्त मेहनत किये अपनी बात कह देता है। वह साधारण भाषा में, बड़ी बात कहने की कूवत रखता है। दिलचस्प बात यह है कि वह मनुष्य के जीवन, स्वभाव एवं सोच संबन्धी पेचीदा विषयों को भी इत्मीनान से भरपूर एक कुशल कारीगर के समान तराशता है। मानवीय फि़तरत से संबन्धित मोह, लालच, मुहब्बत, दर्द, उमंगों, सपनों आदि के विषय में भी बहुत संजीदगी से पेश आता है। दुनिया में बदलते राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक हालात ने साहित्य रचना की प्रक्रिया पर ज़बरदस्त असर किया है - आज यह ज़रूरी नहीं है कि रचनाकार किसी विशेष वाद या एक निर्धारित सोच के साथ ही बंधा हो। असल बात यह कही जा सकती है कि लेखक का जि़म्मेदारी के साथ लिखना बहुत आवश्यक है। लेखक के लिये आवश्यक है कि वह समाज के अलग अलग वर्गों के साथ हो रहे अन्याय एवं ज़्यादतियों का अवश्य अनावरण करे। लेखक का यह भी फ़ज़र् बनता है कि वह जीवन को प्रभावित करने वाले भिन्न भिन्न पहलुओं पर भी अपने लेखन के ज़रिये टिप्पणी करे। यद्यपि प्रत्येक मनुष्य का अपना अपना सत्य अलग होता है, फिर भी इन्सान को अनुशासन की आवश्यकता के बारे में हमेशा से ही लिखा जाता रहा है। साधारणतः पाठक को रिझा लेना और बहका लेने का काम कुछ ख़ास कठिन नहीं है - तेजेन्द्र की शक्ति यही है कि उसने जि़म्मेदारी के साथ कहानियां कही हैं। उसने मानवीय मन के कमज़ोर पक्षों को (मनोयोग) सही तरीकों से उधेड़ा है।
तेजेन्द्र एक सेक्यूलर सोच का व्यक्ति है और यह तथ्य उनकी कहानियों में भी समाया हुआ है - उसकी कहानियां किसी प्रकार की बंदिशों में नहीं बन्धी हैं। वह कौम, जाति, बिरादरी, धर्म जैसे तंग संकल्पों से ऊपर उठ कर पूरे भरोसे से कथा ब्यान करता है। तेजेन्द्र उस इन्सान की बात करता है जो कि दिल्ली, पंजाब, कलकत्ता, मुंबई, कुवैत, यू.के. या जापान में रहता है - इन्सान कहीं भी क्यों ना चला जाए, तेजेन्द्र के पास उस इन्सान के मन के साथ रूबरू होने का कौशल हासिल है। तेजेन्द्र इन चरित्रों के अतीत से आपका परिचय करवाता है।
बहुत सी महिला कथाकारों ने इस मामले में बहुत नाम कमाया है कि अपने नारी पात्रों के दर्द एवं उनके साथ हो रही ज़्यादतियों का चित्रण वे बहुत शिद्दत से करती हैं। बहुत से पुरूष लेखकों ने भी औरतों के साथ हो रहे भेद भाव और ज़्यादतियों का चित्रण ख़ूबसूरती से किया है, लेकिन उन पुरूष लेखकों का जि़क्र उस प्रकार नहीं हो पाता जैसे कि नारी लेखकों का। तेजेन्द्र का नाम उन लेखकों में आसानी से शामिल किया जा सकता है जिन्होंने नारी के साथ हो रहे भेदभाव एवं उसकी समस्याओं को ना केवल अपनी कहानियों के विषयों में शामिल किया है बल्कि उनको बख़ूबी निभाया भी है। तेजेन्द्र की कथा कला ने यह साबित कर दिया है कि उसके पास नारी की मानसिक स्थिति एवं उसकी समस्याओं को तह तक समझने एवं उनका प्रस्तुतिकरण करने की सामर्थ्य भी है - उनकी कहानियां कैंसर, श्वेत श्याम, ये क्या हो गया एवं सिलवटें इस बात का प्रमाण है - ध्यान देने योग्य बात यह भी है कि मेरे अनुभव में तेजेन्द्र का रोज़मर्रा की जि़दगी में भी नारी जाति के प्रति ठीक वैसा ही व्यवहार है जैसा कि उनकी कहानियों में परिलक्षित होता है। बहुत से लेखक ऐसे भी हैं जो कि नारी जाति के प्रति बाहरी रूप में फंसे प्रगतिवादी एवं सहानुभूति रखने वाले दिखाई देते हैं जबकि अपनी निजि जि़न्दगी में औरतों के प्रति उनका रवैया खासा घिनौना है। जब जब वे ऐसी परिस्थितियों से रूबरू होते हैं, तो उनका असली चेहरा सामने आने में देर नहीं लगती।
भूगोल, शिक्षा एवं व्यवसायों के क्षेत्र में कुदरत ने तेजेन्द्र को विस्तृत एवं गहरे अनुभवों से लैस किया है। इन अनुभवों का निचोड़ तेजेन्द्र ने अपनी कहानियों में बहुत संजीदगी से इस्तेमाल किया है। साथ ही कहानी लेखन में आ रहे परिवर्तनों एवं रूझानों से भी तेजेन्द्र अनभिज्ञ नहीं है। उसकी कहानियों में हमारे आसपास के जीवन में घटती जि़न्दगी की तस्वीर बहुत सहज रूप से परिलक्षित होती है। वह अपनी कहानियों में अतिरिक्त चमक डालने से बचता है - तकनीक एवं भाषा के कारण उसके वृत्तांत पाठक का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं। वह सादी भाषा में बात करता है। छोटे वाक्य। कोई फि़ज़ूल की भर्ती नहीं। रोज़मर्रा की भाषा। कहानी एक लड़ी की तरह जुड़ी हुई प्रतीत होती है। पिछले वाक्य का अगले वाक्य से नाता, सरोकार। अगले पैरे का अगले से। कहानी की लड़ी से एक भी मनका गायब नहीं हो सकता।
तेजेन्द्र ने अंग्रेज़ी भाषा में शिक्षा ग्रहण की है - भारत के महानगरों से होता हुआ पश्चिम के महानगर लंदन में बैठा है, लेकिन उसकी बहुत सी कहानियों में उसकी पंजाबी पहचान, सोच, एवं संस्कार आपको आ मिलते हैं, लेकिन वह अपने पात्रों के साथ रियायत नहीं करता - वह उनको ठीक वैसे ही पेश करता है जैसे कि वे जीवन में पेश आते हैं। महानगरों की पेचीदा जि़न्दगी बिता रहा, वह, रोज़मर्रा के मसलों पर तो नज़र रखता ही है, वहीं वह पंजाब की जि़न्दगी एवं मसलों से भी बेलाग या बेख़बर नहीं।
पंजाब समस्या की पीड़ा तेजेन्द्र के मन ने भी झेली है। पंजाब मसले की कई परतें हैं। मुझे तेजेन्द्र की एक कहानी याद आती है, नई दहलीज़, जो कि धर्म एवं बिरादरी के झंझटों की बदौलत मानवीय मन में आए प्रभावों को उघेड़ती है - इस कहानी में वार्तालाप, बहस आपको झिंझोड़ते हैं और वहीं यह भी दर्शाते हैं कि बातचीत (डॉयलॉग) कितनी आवश्यक है।
कहानी देह की कीमत एवं काला सागर बेहतरीन कहानियां हैं - इन कहानियों में मनुष्य की लालच की प्रवृत्ति की परतों को उघेड़ा गया है और संबन्धों में आए खोखलेपन का दर्दनाक वर्णन है। इन्सान लालच में फंस कर कितना गिर सकता है, यह जानने के लिये इन कहानियों से बढ़ कर और कोई रचना नहीं हो सकती - यह कहानियां मनुष्य की लालसा एवं लोभ का सशक्त चित्रण करती हैं - रिश्ते नाते आपकी आंखों के सामने तार-तार, फीता-फीता होते हैं।
कई देशों, ख़ासकर एशियन देशों, से आई पहली पीढ़ी के लोगों के मसले इतने सीधे सादे नहीं होते जितने कि कुछ लोग समझ बैठते हैं - वैसे इन मसलों के बारे में विचार भी काफ़ी किया गया है और लिखा भी बहुत गया है - यह मसला हर किसी के घेरे में आने वाला नहीं है - तेजेन्द्र की कहानी अभिशप्त पढ़ने के बाद पाठक के सामने पहली पीढ़ी के प्रवासियों के जीवन एवं उमंगों का कच्चा चिट्ठा जैसे पूरी तरह से खुल जाता है। विलायत की जि़न्दगी, एशियाई मूल के व्यक्ति की दुविधाएं, बेचैनियां, हार जीत एवं उमंगों के विषय में यदि जानना चाहें तो बस तेजेन्द्र की यह एक कहानी पढ़ना काफ़ी है।
कहानी के अंत में तेजेन्द्र कहता है, ‘‘रजनीकांत की बुड़बुड़ बंद हुई, तो उसे सामने शीशे में अपना चेहरा ही बोलता दिखाई दिया ․ रजनी, तुम कुछ नहीं करोगे ना तो तू अपनी पत्नी को छोड़ेगा और ना ही ये देश। तुम और तुम्हारे दोस्त यह जीवन जीने के लिये अभिशप्त हो। अपनी अपनी पत्नियों के साथ रहना तुम्हारी नियति बन गया है। तुम चाहते हुए भी इस जीवन के सुख साधनों को छोड़ नहीं सकते तुम उन लोगों में से हो जो रोज़ शाम शराब के गिलास पर सवारी कर अपने देश वापिस चले जाते हैं और सुबह होते ही ठण्डी रोटी खा कर वेयर हाऊस वापिस पहुंच जाते हैं - गांव मुल्क़ अब केवल तुम्हारे ख़्यालों में रह सकते हैं, तुम्हारी वापसी अब संभव नहीं। तुम यहीं जियोगे और एक दिन मर भी जाओगे।''
उपरोक्त कहानी विलायत में रह रही पहली पीढ़ी के प्रवासियों की जि़न्दगी और अंत का खुलासा है - तेजेन्द्र ने इस विषय को बहुत समझ के साथ निभाया है।
मेरा और तेजेन्द्र का परिचय लन्दन में ही हुआ। मैने तेजेन्द्र को रोज़मर्रा की जि़न्दगी में से गुज़रते और विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियों का आयोजन करते हुए देखा है। अलग अलग शहरों में रहते और भिन्न प्रकार के लेखकों, कलाकारों, कवियों को अपने कार्यक्रमों के मंच पर इकट्ठा करते हुए देखा है। मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि तेजेन्द्र के व्यक्तित्व में एक अद्भुत आयोजक रहता है। उसे लोगों को साथ लेकर चलना आता है। मुझे निजी स्तर पर हाल ही में एक नुक़सान हुआ है कि तेजेन्द्र ने अचानक वाइन पीना छोड़ दिया है। मुझे उसने इसका कोई कारण नहीं बताया, मगर उसने ऐसा किया है तो कुछ सोच कर ही किया होगा। किन्तु उस कम्बख़्त को यह नहीं मालूम कि जो बातें हम दोनो एक गिलास वाइन पर कर लेते थे वो एक टब चाय पीकर नहीं हो सकतीं। सच तो यह है कि उसके हिस्से की वाइन भी अब मुझे ही पीनी पड़ती है।
तेजेन्द्र की वामपन्थी लेखकों एवं देशों के विषय में खासी नकारात्मक राय है। उसका कहना है कि उन्होंने रूस एवं ईस्टर्न ब्लॉक के देशों की यात्राएं की हैं और तथाकथित वामपन्थी लेखकों का आचरण देखा है। किन्तु जब कथा यूके - का इन्दु शर्मा कथा सम्मान असग़र वजाहत, विभूति नारायण राय एवं संजीव जैसे नामों को मिलता है तो हमें इस सम्मान की पारदर्शिता का अहसास होने लगता है।
मैं मूलतः पंजाबी भाषा में साहित्य रचना करता हूं। तेजेन्द्र को मिलने से पहले ब्रिटेन में रहते मेरा हिन्दी लेखकों या बुद्धिजीवियों के साथ कोई ताल्लुक नहीं था। यह श्रेय तेजेन्द्र को ही जाता है कि ब्रिटेन ही नहीं बल्कि भारत के भी बहुत से हिन्दी बुद्धिजीवियों के साथ मेरा परिचय हुआ। और इस तरह मुझे समकालीन हिन्दी साहित्य पढ़ने का भी सुअवसर प्राप्त हुआ। प्रगतिशील लेखक संघ, साउथहॉल (यू.के.) का सचिव होने के नाते मैं तेजेन्द्र को ब्रिटेन के पंजाबी साहित्यकारों से भी मिला पाया। और अब एक तरह से ब्रिटेनवासी हिन्दी और पंजाबी लेखकों में एक वार्तालाप स्थापित हो पाया है।
कथा यू.के. - के माध्यम से पिछले चौदह वर्षों से तेजेन्द्र ने हिन्दी साहित्य का एक अकेला अंतर्राष्ट्रीय सम्मान स्थापित किया है। वैसे तो भारत में बहुत से सम्मान साहित्य के लिये दिये जाते हैं। लेकिन देखा गया है कि अधिकतर सम्मान तिकड़मबाज़ी और गुटबन्दी से जकड़े रहते हैं। बहुत कम पुरस्कारों या सम्मानों को आम आदमी या लेखक गंभीरता से लेते हैं। लेकिन इन्दु शर्मा कथा सम्मान एक ऐसा सम्मान है जिसने अपनी पारदर्शिता एवं जेनविननेस से हिन्दी साहित्य जगत में अभूतपूर्व स्थान अर्जित किया है। अब स्थिति यह है कि हिन्दी प्रेमी बहुत आतुरता से इस सम्मान की घोषणा की प्रतीक्षा करते हैं। और यह सम्मान पाने वाले लेखक भी इस सम्मान को पाकर गौरवान्वित महसूस करते हैं।
तेजेन्द्र में मैनें एक और विशेषता देखी है कि यह इन्सान कभी थकता नहीं। उसकी सोच सकारात्मक है और वह केवल आगे की सोचता है। निजी समस्याओं से जूझते हुए भी वह अपना संतुलन बनाए रखता है और अपनी सहजता को बरक़रार रखते हुए हालात का सामना करता है। वह दोस्तों का दोस्त है और कड़वाहट भुला देना उसके व्यक्तित्व का एक ख़ास अंग है। मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में तेजेन्द्र की क़लम से लगातार श्रेष्ठ साहित्य की धारा बहती रहेगी।
के.सी. मोहन लन्दन में पंजाबी के प्रतिष्ठित पत्रकार, कवि एवं कहानीकार हैं। वे प्रगतिशील लेखक संघ. साउथहॉल, यू.के. के सचिव हैं। उनका एक कहानी संग्रह एवं एक इंटरव्यू का संकलन प्रकाशित हो चुका है। उनकी कहानियों का अनुवाद संग्रह रूप में हिन्दी एवं शाहमुखी (उर्दू) में भी हो चुका है। वे ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ़ जर्नलिस्ट्स के भी सदस्य हैं। संप्रतिः लंदन की एक काउंसिल के सोशल सर्विस विभाग में कार्यरत।
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साभार-
तेजेंद्र जी के बारे में इतने विस्तार से बताने हेतु आभार.
जवाब देंहटाएंदुर्गा अष्टमी की सभी को हार्दिक शुभकामनायें