प्रधानमंत्री के नाम आ दरणीय प्रधानमंत्री महोदय मैं देश का एक हाशिए पर का आदमी बोल रहा हूँ पैसे पेड़ पर नहीं उगते जानता हूँ यही तो कहत...
प्रधानमंत्री के नाम
आदरणीय प्रधानमंत्री महोदय
मैं देश का एक हाशिए पर का
आदमी बोल रहा हूँ
पैसे पेड़ पर नहीं उगते
जानता हूँ
यही तो कहते है मेरे बाबूजी भी
पर उन्होंने तो अपना कर्तव्य निभाया है
पाल-पोश कर बड़ा कर दिया है मुझे
कमा-खा रहा हूँ मैं
आपने क्या किया प्रधानमंत्री महोदय
हर रोज देश में पांच हजार
पांच वर्ष के बच्चे
मर रहे है भूख से
मुखिया होकर भी पोषण विभाग का
मरने छोड़ दिया
अठारह लाख से ज्यादा बच्चों को
हर साल दर साल
कुपोषण से
ईमानदार होते हुए भी
ईमानदारी से प्रयास नहीं किया
आपने प्रधानमंत्री महोदय
आपके पुरखा ने कहा था
‘गरीबी हटाओ'
गरीबी हटाने के लिए आपने
उल्टा-सीधा परिभाषा गढ़वा दिया
गरीबी का
गरीबी तो खैर क्या हटेगी
आपने इसे वंशानुगत बनवा दिया
गरीब का बेटा गरीब ही रहेगा
ये आपने क्या किया प्रधानमंत्री महोदय !
महंगाई आकाश छू रही
खून का एक-एक कतरा बहाकर
एक दिन का
आटा, शक्कर, नून, तेल
नहीं खरीद पाता अपने परिवार के लिए
पत्नी, बेटा, बेटी और मैं
सभी काम पर जाते है
बालश्रम क्या तो मना किया है आपने
बेटी और बेटा बैठ कर खाते है
वैसे तीन साल का बेटा
और चार साल की बेटी
का तो हक है बैठ कर खाने का
पर हाय री महंगाई
उनकी हक मार रही है
महंगाई क्या पहले कम थी कि
फिर डीजल का दाम बढ़ा दिया
ये क्या किया आपने प्रधानमंत्री महोदय !
तीन साल का लड़का काम क्या करेगा
खेलते-खेलते पत्थर उठा लाता है
बेटी उस पत्थर को बोरे में रख देती है
पत्नी और मैं जबतक काम करते
बोरा एक पत्थरों से भर जाता है
छोटी-छोटी उंगलियों से मगर
खून निकल आता है ।
शाम को बनिया सारे पैसे ले लेता है
फिर भी कहां पेट भर पाता है
अब क्या बताउं
आशिन का महीना बड़ा दुखदर्दी
लग गयी मेरी पत्नी को सर्दी
फिर हुआ बुखार और फिर तेज बुखार
दो दिनो से पत्थर नहीं काटा
इसलिए हमें समय काट रहा है
इलाज के पैसे सपना था
भीख भी मिलना मुश्किल था
छोटे-छोटे बच्चे को सीने में चिपकाए
न जानें कब सांसें उखड़ गयी उसकी
बच्चे बिना माँ के हो गए थे
लेकिन दोनों सो गए थे।
जलाने-दफनाने के पैसे नहीं थे
बरसाती सूखी नदी के किनारे
शव पत्नी के फेंक आया था
चील, गिद्ध, कौवे और कुत्ते
शव पत्नी के देख मुस्कुराया था !
ये आपने क्या किया प्रधानमंत्री महोदय !
हिना-बिलावल
नाहक दोष देना है
हिना और बिलावल को
प्यार तो होता ही है
अंधा और बेहिसाब
हिसाब से उम्र को नापतौल कर
हमउम्र की तलाश कर
क्या हो सकता है प्यार ?
मैं पूछता हूँ सभी से
रख कर अपने दिल पर हाथ
कह दे कि वो नहीं पसंद करता हिना को
मैं हिन्दुस्तान और पाकिस्तान
के मीडिया से भी यही पूछता हूँ
क्या उसे नहीं है पसंद हिना ?
मैं हिन्दुस्तान और पाकिस्तान
के सरकार से भी यही पूछता हूँ
क्या उसे नहीं है पसंद हिना ?
अगर जवाब नहीं में है
तो दिल पर आपका हाथ नहीं
अगर हाँ
तो फिर क्यों मचाया इतना बवाल
प्यार तो होता ही है
अंधा और बेमिसाल
मानव मशीन
मानव से मशीन में तुम
कब तब्दील हो गए रूद्र
तुम्हें कुछ भी याद नहीं
वो मौसम वो चांदनी रात वो नदी का किनारा
अब तो तुम, सुना है
चांद निकलने पर जांच आयोग बैठा रहे हो
ये पता करवाने के लिए कि चांद
तुम्हारे क्षेत्राधिकार में निकला है या
किसी और उपयुक्त के क्षेत्राधिकार में
माना कि मैं आज भी अदना हूँ
लेकिन फिर भी आज तक इंसान ही हूँ
पर तुमने तो रूद्र
तारों को सुना है गरीबों का झुंड़ कहने लगे हो
चांदनी रात तुम्हारे लिए अब वो रात नहीं
जब रेत पर बैठे हम लोग
घंटो चांद को निहारा करते थे
तुम तो मुझे देख कर भी
नहीं पहचान रहे हो रूद्र
माना कि कविता तुम्हें नहीं समझ में आती
याद है मुझे कि मेरे कविता सुनाने की जिद में
आत्महत्या करने की धमकी दिया करते थे तुम
पर क्या बिना कविता के
क्या कोई मानव मशीन बन जाता है रूद्र ?
बाय-बाय
क्या करुंगा हिन्दी पढ़कर
स्नातक हो जाउं
या स्नातकोत्तर
दो वक्त की रोटी नहीं जुटा पाउंगा
बोलने और पढ़ने से अंग्रेजी
बाबू मैं बन जाउंगा !
अंग्रेज तो चले गए
छोड़ के अंग्रेजियत
गुलामी जिसकी बजाने लगे हम
आजादी मिलने के बाद
अंग्रेजियत से आजाद जब
देश हो जाएगा
तब भारतीय हिन्दी पढ़ पाएगा
दो वक्त की रोटी तब जुटा पायेगा
तब तक विश्व हिन्दी सम्मेलन के
झंडाबरदारों को
बाय-बाय !
बदलता जमाना
महीनों लग गए थे
बबुआ के माँ के सिर्फ
हाथ छूने में
आज तो बिन ब्याहे ही
चुंबन ले रहा है बबुआ
जमाना सच में
कितना बदल गया
देखते ही देखते
कहां से कहां पहुंच गया
बबुआ की माँ ने कभी
आंचल माथे से न सरकने दिया
बड़ों के सामने हमेशा घूंघट लिया
आज जीन्स-टॉप में
क्या आंचल और क्या घूंघट !
पांच गज कपड़े में बहुत
अच्छी लगती थी बबुआ की माँ
खूबसूरत कहां लगती है
आजकल कम कपड़ों में
लड़कियां
बबुआ की माँ सिर्फ माँ नहीं थी
वो चाची, बहू, गोतनी, भाभी
बहन और पत्नी भी थी
आज इतने आयामों को खूद में
कहां समेट पाती हैं
लड़कियां
मंजिल से चलकर कहां पहुंचेंगे
दूसरी पत्नी घर ले आया पापा
माना कि मेरी माँ से सुंदर है वो
पर सूरत में क्या रखा है
सीरत भी तो देखो पापा
दरबदर की ठोकर खाती
माँ बेचारी हमारी
क्या खाएगी
कैसे खिलाएगी
आप ही बताओ पापा
दो सौ का नोट देकर
चलता तो कर दिया हमें
माँ बेचारी हमारी
कहां लेकर जाएगी मुझे
मंजिल से चलकर कहां पहुंचेंगे
आप ही बताओ पापा
कहीं छोटकी तो नहीं
खचाखच भरी बस में
चढ़ा था जैसे ही वो
बांछें खिल गयी थी देखकर
भीड़ में फंसी एक लड़की को देखकर
भीड़ को चिरता पहुंच गया
लड़की के ठीक पीछे वह
बार-बार हिचकोले खाते बस में
बढ़ाता रहा लड़की से नजदीकियां
प्रतीत होता था उसके चेहरे को देखकर
न जाने उसे क्या मिल गया हो
उतरना था जहां उसे
लड़की को उतरते देखकर
हो गया था वो पानी-पानी
पसीने उभर आए थे
उसके पेशानी पर
ये सोचकर
कहीं वो उसकी बहन
छोटकी तो नहीं !
मलाला युसूफजई
सियासत के दुखती रग पर
रख दिया था मलाला ने हाथ
नफरत के पैदाइशों ने इसलिए
सर पर मलाला के दिया गोली दाग
खूद की तालीम और दूसरों की
इतना ही तो चाहा था मलाला ने
मजहब नहीं कहता किसी से बैर करो
यही तो कहती मलाला आयी थी
हुकूमत ए पाकिस्तान को
यही नहीं था बर्दाश्त
वरना बाल भी बांका कर दे मलाला का
तालिबानों की नहीं थी ये औकात
गुड़ियों से खेलने की उम्र में
मारती जूतियों से तालिबानों को
पाकिस्तान में है मलाला छायी
अमरीकी फौजियों से भी
खतरनाक है मलाला युसूफजई
मासूम सी इस बच्ची ने
जवान से बुढ़ी औरतों की
की है हौसला अफजाई
रोक नहीं सकता उस फलसफा को
फैलाई है जो मलाला युसूफजई
किसी को लगे न लगे
मुझे तो लगती है मलाला
अपनी रानी लक्ष्मी बाई
महान शिक्षक
गुरू होने का अच्छा धर्म निभाया
सभी विद्यालय के पुस्तकों को
कबाड़ी के हाथों बेच खाया
जब कबाड़ी बाला पकड़ाया
तहकीकात में उसने बतलाया
गोड्डा जिले में एक मध्य विद्यालय के
महान प्रधानाध्यापक महोदय ने
आठ बोरा बच्चों की पुस्तकों को
सात सौ रूपए में बेच खाया
और शिक्षक दिवस पर
प्रधानाध्यापक महोदय ने
महान शिक्षक का उपाधि पाया
खिचड़ी
सरकार ने दरियादिली दिखायी
तीन रूपया तैंतीस पैसे में
बच्चों को सेब और अंड़े
विद्यालय में खिलाने की
योजना बनायी
आठ रूपए में एक सेब
पांच रूपए में एक अंडा
आता है
क्या कल्पना की दुनिया में
सरकारी योजना बनाया जाता है ?
तीन रूपया तैंतीस पैसा में
तो एक बच्चा बमुश्किल
खा सकता है फकत खिचड़ी
वो भी आधा पेट !
राजीव आनंद
rajivanand71@gmail.com
COMMENTS