राष्ट्रीय एकता के छन्द - डॉ․ सुशील गुरू 1․ ...
राष्ट्रीय एकता के छन्द - डॉ․ सुशील गुरू
1․ हमने बड़ी भूल की, जो बातें करी शूल की,
त्याग बातें मूल की क्षमा का दान दीजिए।
लोभ मोह काम क्रोध का हमें हुआ है बोध,
कर सकें जो शोध ऐसा हमें ज्ञान दीजिए।
राष्ट्र का उठा सवाल, छोड़िये सभी मलाल,
अर्थहीन भेद विरोधों को विराम दीजिए।
सत्य की विजय के लिए धर्मोदय के लिए,
हाथ जोड़ देशबन्धुओं को प्रणाम कीजिए।
2․ सागर, पहाड़, नदी, नाले, वन, उपवन,
हिमगिरि के प्रदेश देश न कहलाते हैं।
श्रमजीवी, बुद्धिजीवी, कर्मचारी, अधिकारी
लाखों बन जायेगें पर देश ना बनाते हैं।
देश तो बनाती सदा वीरकोख जननी की,
जिनके सपूत जो शहीद ही कहलाते हैं।
रटते रहते सदा, भारत की जय जय,
फांसी पर चढ़ते दीवालों में चिन जाते हैं।
3․ ईद हो, दीवाली दशहरा हो या बड़ा दिन,
दीप तो जलाने हैं सभी को आत्मज्ञान के।
मेरी आपाजान राखियां बांधे श्रीराम के या,
राधा सीता राखी बांधें मोहम्मद रहमान के।
मस्जिद में बाइबिल गीता आयतों को पढो,
मन्दिर में श्लोक गुरूग्रन्थ और कुरान के,
गंगाजल, ज़मज़म, पियो सब, संग संग,
भूलो भेद ईसाई औ हिन्दू मुसलमान के।
4․ गौरव पुण्यभूमि के, भरत तुम भारत के,
नामकरण देश का हुआ तुम्हारे नाम पर।
बांटे भाई भाई केा, धरम और जातियों में,
फूंक देना, ऐसे देशद्रोही को श्मशान पर।
एक एक रहोगे विदेशी लूट लेंगे फिर,
मुट्ठी बांधी तो उतर आयेंगें सलाम पर।
बन के दुलारे मुल्ला ज्ञानी पीर पादरी के,
बोझ नहीं बनना है मेरे हिन्दुस्तान पर।
5․ भारत को ऐेसे भारतीय कुछ चाहिए जो,
लहू से बना दे, मानचित्र हिन्दुस्तान का।
शिवा का प्रताप या गांधी का विश्वास लेके,
भेदभाव मिटा दे, जो हिन्दू मुसलमान का।
रात दिन के समान एक दूजे की हैं जान,
अर्थ वही है वेद का जो अर्थ है कुरान का।
एकजुट होकर उठेंगे जिस रोज़ दोनों,
विश्व में लहरायेगा तिरंगा हिन्दुस्तान का।
पंचेन्द्रियों पर आधारित छन्दावलि - डॉ․ सुशील गुरू
1․ कथन तुमने कहा था कि नयनों से चले आना तुम
नयनों से आया तो पलकों में बन्द हो गया।
अन्तर छुआ तो चित चातक सा प्यासा हुआ,
प्राणों केा छुआ तो प्राणों की सुगन्ध हो गया।
बाइबिल कुरान की आयतों को छू लिया तो,
रामचरितमानस का एक छन्द हो गया।
अधरों पर आया तो थोड़ा सा थरथराया
और गुनगुनाया तो मैं गुरुग्रन्थ हो गया।
2․ स्पर्श तुमने छुआ तो मुझको जाने क्या हुआ है,
हुए प्रज्वलित दीप अनेक रोम रोम में।
महासिन्धु रोशनी के झिलमिलाने लगे हैं,
चाँदनी के पुष्प खिले, अन्तस के व्योम में।
तन में प्रवाहित हुई गंगा की पवित्र धारा,
स्वांति नेह झलका नैनों के दृष्टिकोण में।
पलकों के पोरों पर, अधरों के कोरों पर,
आमंत्रण मुखर हो गया स्वतः मौन में।
3․ दृष्टि तुमने देखा तो मानो सुधियों के फूल खिले,
इन्द्रधनुषी रंग गई, धूप की चुनरिया।
चन्दन सा मन हुआ, चाँदनी बदन हुआ,
रोशनी में नहा गई, जलभरी बदरिया।
नयनों ने सयनों से, बोले अनबोले बोल,
कानों पर रख के, कचनार की भुजरिया।
नेह के बुलउआ मिले गले मिले बिना मिले,
चुपचुप बातें कर गये बीच बजरिया।
4․ सुगन्ध तुमने सुगन्ध मली चन्दन की गन्ध वाली,
उबटन मलके कचनार का सन्दल का।
ऊषा का वरण मला चन्दा का तरल मला,
स्वस्तिमाल अंगराग मला गंगाजल का।
केसरी बदन ने जो नदिया का जल छुआ,
इक पल में हो गया, गुलाबी रंग जल का।
फूलों जैसी रंगवाली हुई है तुम्हारी देह,
पैजनियां जो छनकी गुलाबी रंग छलका।
5․ श्रवण तुमने सुना सही काले अक्षर काग़ज़ पे,
गोरे गोरे जीवन छायाचित्र खींच जाते हैं।
नेह के सम्बन्ध ऐसा स्नेह पैदा करते हैं,
चाँदनी उगाते और चकोर रीझ जाते हैं।
लिख दिया रख दिया जैसे दिया आरती का,
काग़ज़ संग संग उड़ जाना सीख जाते हैं।
बाँहों में झुलाते कभी,काँधें पे उठाते कभी,
बड़ी बड़ी आँखों वाले नयना भीज जाते हैं।
6․श्रवण हमने सुना तो फिर तुमने भी सुना होगा,
भारत की जो भारती है छाया पुरुषार्थ की।
जानकी श्रीराम जी की,राधिका कन्हैया जी की,
पार्वती श्री शंकर जी की पांचाली है पार्थ की।
कस्तूरबा है गांधी जी की ललिता बहादुर की,
यशोदा है नन्द जी की यशोधरा सिद्धार्थ की।
रामायण तुलसी की, मधुशाला बच्चन की,
पयोधर कृतिका महादेवी की प्रसाद की।
डाँ․ सुशील गुरू,
53/बी सेक्टर इन्द्रपुरी,
भोपाल-462 021
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