कहानी खुशी के आंसू राजीव आनंद गां व में आज भी रात के दस बजे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो आधी रात बीत चुकी है। अनुप और उसकी पत्नी चंदवा अपन...
कहानी
खुशी के आंसू
राजीव आनंद
गांव में आज भी रात के दस बजे ऐसा प्रतीत होता है कि मानो आधी रात बीत चुकी है। अनुप और उसकी पत्नी चंदवा अपने झोपड़े में गहरी नींद में सो गये थे। अनुप को नींद में ही काफी गर्मी महसूस हुई उसने अपनी ओढ़े हुए चादर को फेंक कर फिर सो गया परंतु गर्मी अब आग की ताप की तरह महसूस हो रही थी, उसकी आंखें खुल गयी, वो उठ कर बैठ गया तो देखता है कि उसके झोपड़े में धुंआ ही धुंआ भरा है। बाहर होहल्ला और शोरशराबा हो रहा है। पुआल के छप्पर में आग धधक रही है। उसने अपनी पत्नी को ठेल कर उठाया, तब तक अनुप का बड़ा लड़का गुहिया और उसकी पत्नी फूलवा भी धुंआ पीकर जाग गए थे। फूलवा के गोद में एक साल का लड़का था, वह चिल्ला-चिल्ला कर रोए जा रहा था। गुहिया का भाई दिनुआ भी जाग चुका था और सभी किसी तरह झोपड़े से बाहर की ओर भागे थे। बाहर हरिजन टोला बस्ती के लोगों में अफरा-तफरी मची हुई थी, कोई मिट्टी के बर्तन, तो कोई टूटी फूटी बाल्टियां, कोई कडाही, ढेगची लेकर पास के पोखर से पानी ला-ला कर धू-धू जलती झोपड़ियों में डाल कर आग की लपटों को बुझाने का नाकाम कोशिश कर रहा था परंतु आग कहां बुझने वाली थी, पुआल, फूस, लकड़ी और सूखे बांसों से बनी झोपड़ियां तो आग की बेहतरीन खुराक थी, चंद घंटों में तीस-पैंतीस झोपड़ियों का नामोनिशां मिट चुका था, रह गयी थी सिर्फ राखों की ढेर और महिलाओं-बच्चों के रोने-कलपने की आवाजें। पौ फटने तक सब राख में तब्दील हो चुका था।
सभी बस्ती वाले भयभीत, बेबस, उदास वो अवाक् हुजूम बनाकर बैठे हुए थे और अपनी तकदीर को कोस रहे थे। महिलाएं राखों की ढेर में से कुछ बचे होने की संभावनाओं को कुरेदने की कोशिश कर रहीं थी। बच्चे तो बच्चे ही होते है, उनके राख हुए घरों में कई खेलने के सामानों को ढूंढने की कोशिश करते हुए कई बच्चों ने अपने हाथ-पांव झुलसा लिए थे। महिलाएं पहले से ही क्या कम परेशान थी कि अब ये नयी मुसीबत। किसी तरह बच्चों की माताओं ने पास के झुरमुट से कुछ औषधिक पत्तियां तोड़ कर झुलसे हुए भाग पर लगा रहीं थी, बच्चों के क्रंदन से गमगीन माहौल और भी गमगीन हो गया था।
अनुप का बड़ा लड़का गुहिया बस्ती से आठ किमी दूर स्थित शहर में आवास बनाने का ठीका लिया करता था। शहर में मजदूर यूनियन का सदस्य होने के कारण बस्ती में उसे सब बहुत मानते थे। शहर में मजदूरों का धनी वर्ग द्वारा शोषण की बातें गुहिया बस्ती वालों को प्रायः सुनाया करता था। 26 वर्ष का हट्टा-कट्ठा गुहिया की शादी दो वर्ष पहले ही हुई थी, उसकी पत्नी फूलवा सुंदर और हंसमुख स्वभाव की थी। प्राकृति ने जिसे सुंदर बनाया है उसे कृत्रिम प्रसाधनों की आवश्यकता नहीं होती लिहाजा फूलवा को किसी भी तरह की कृत्रिम कोस्मेटिक साधनों की जरूरत नहीं पड़ती थी। खेत के मिट्टी में काम कर फूलवा का चेहरा ऐसे लाल हो जाता था मानो रूज लगा रखा हो, बालों में मिट्टी पोतकर स्नान करने के बाद जब फूलवा झोपड़े में आती थी तो गुहिया सोचता था कि शहर की मेम से लाख दर्जा सुंदर है उसकी फूलवा। लकड़ी के कोयले से फूलवा के दांयी पेशानी में एक तिल सा छोटा बिन्दिया लगा देता था कि कहीं किसी की नजर न लग जाए फूलवा को। एक साल का दूध पीता लड़का था फूलवा को। झोपड़े जल जाने से बाहर फूलवा को भादो की धूप और वर्षा दोनों से काफी परेशानी हो रही थी।
गुहिया बस्ती वालों के हुजूम में सलाह-मश्वरा करने में व्यस्त था इसलिए अपने दूध पीते लड़के पर ध्यान नहीं दे पा रहा था। उसे चिंता सभी बच्चों के पुर्नवास का था सिर्फ अपने बच्चे का नहीं। हुजूम में यह चर्चा चल रही थी कि झोपड़ी में आग कैसे लगी या किसी ने लगा दिया। झोपड़ी के अंदर लकड़ी के चूल्हे और रोशनी के लिए डिबरीया लालटेन से कहीं तो ये आग नहीं लग गयी। गुहिया ने कहा कि सभी झोपड़ियों में एक साथ डिबरी या लालटेन से आग नहीं लग सकती है, इस आग के पीछे किसी और का हाथ है जिसका पता लगाना हमारा उद्देश्य होना चाहिए और साथ ही साथ पुर्नवास की व्यवस्था तुरंत करनी होगी क्योंकि भादो महीने की धूप और वर्षा में खूले आसमान के नीचे कम से कम महिलाओं और बच्चों को नहीं छोड़ा जा सकता है।
महादेव तुरी जो बस्ती का उम्रदराज व्यक्ति था उसने कहा कि गुहिया तुम तो शहर में काम करते हो, हमलोगों से ज्यादा बुद्धि रखते हो, तुम्हीं बतलाओ अब क्या करना चाहिए। गुहिया का भाई दिनुआ आगे आया तो गुहिया उससे मुखातिब हुआ और पूछा कि तुम्हें किसी पर संदेह हो तो बताओ, दिनुआ ने कहा कि मुझे बस्ती में किसी पर संदेह नहीं है, मामले की गहराई से छानबीन होगी तभी पता चलेगा। महादेव ने गुहिया से कहा कि तुम ऐसा करो कि पुलिस में इस घटना की रपट लिखा आओ, गुहिया ने व्यंग्यात्मक ढ़ंग से कहा कि चाचा तुम्हें पुलिस पर बहुत भरोसा है न ! खैर मैं और दिनुआ पुलिस थाने जाकर रपट लिखवा आते हैं अगर पुलिस रपट लिखने को तैयार होती हो तो। जाते-जाते गुहिया ने महादेव से पूछा कि चाचा रात में बच्चे और महिलाएं खूले आसमान के नीचे रहेंगे कैसे ? महादेव ने कहा कि मिट्टी की दिवारें तो बची है किसी तरह पुनः छप्पर डालकर रहना शुरू कर देगें। मैं कुछ लोगों को लेकर जंगल जाता हॅूं, महादेव ने कहा। महादेव कुछ लोगों के साथ जंगल की ओर चल पड़ा और गुहिया दिनुआ के साथ थाने की ओर। थाने से कुछ पहले ही गुहिया और दिनुआ से लौटते हुए मुखिया और उसके तीन चार गांव के दबंग लोगों से मुलाकात हो गयी। लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान को पंचायती राज एक्ट के तहत काफी शक्तियां प्रदान की गयी है जिसका फायदा मुखिया-सरपंच उसी तरह उठा रहे है जैसे मंत्री और संत्री। मुखिया ने गुहिया और दिनुआ को थाने की ओर जाते देख पूछा कि क्या रे गुहिया कहां जा रहा भोरे-भोरे, क्या आज मजदूरी पर नहीं जाना है ? गुहिया ने कहा कि क्या बताउं मुखिया जी हमलोग तो बर्बाद हो गए, पूरा हरिजन टोला कल रात जल कर खाक हो गया। मुखिया ने आश्चर्य का ढ़ोंग करते हुए पूछा, आग कैसे लग गयी रे गुहिया। तुम्ही लोग पी-पाकर झोपड़ी मे आग लगा लिया होगा। नहीं मुखिया जी, गुहिया ने कहा, हमें तो लगता है कि किसी ने साजिश के तहत हरिजन टोला के सभी झोपड़ियों में आग लगा दी है, उसी की रपट लिखाने थाने जा रहे है। किस पर रपट लिखायेगा, मुखिया ने पूछा, किसने आग लगायी है देखा है रे गुहिया ? पुलिस का तो काम ही है पता लगाना, मुखिया जी, गुहिया ने कहा। मुखिया जी तमतमाये हुए अपने गुर्गों के साथ चल दिए। गुहिया और दिनुआ भी थाने की ओर चल दिया। थाने पहुंचने पर थानेदार ने गुहिया और दिनुआ से प्रश्नों के बौछार कर दिए, मसलन, किसने आग लगाया ? क्यों लगाया ? कैसे आग लगाया ? आदि-आदि। गुहिया को समझ में आ गया कि थाने में कोई रपट नहीं लिखेगा, थानेदार। मुखिया भी तो अभी-अभी थाना होकर ही गया है, चढ़ावा तो चढ़ ही गया होगा, इसके बाद भी थानेदार रपट लिखेगा, ऐसा हो ही नहीं सकता, गुहिया ने दिनुआ से कहा और दोनों मन ही मन थानेदार को कोसते चल दिए बस्ती की ओर। गुहिया कह रहा था दिनुआ से कि अभी तुम प्रजातंत्र की सच से वाकिफ नहीं हो, अभी वो दिन नहीं आए हैं जब पुलिस गरीबों की सुने और कार्रवाई करे।
बस्ती पहुंचने पर गुहिया ने देखा कि शहर से पत्रकारों की एक टोली आयी है जिसमें एक महिला पत्रकार भी है। देखने से जानी-पहचानी सी लगी वो महिला पत्रकार। नजदीक जाने पर गुहिया पहचान गया अरे यह तो रश्मिजी हैं। गुहिया की रश्मि से मजदूर यूनियन के कार्यालय में पहले कई बार मुलाकात हो चुकी थी। रश्मि एक सावंली तीखे नाक-नक्स वाली जुझारू पत्रकार है जो समाज में फैले विसंगतियों को अपने कलम से अक्सर उजागर करती रहती है। सच लिखने के कारण कई बार मुसीबत में फंसती रही है परंतु मुसीबतों का सामना करना और उसे हल करना तो जैसे रश्मि की आदत सी बन गयी है। बिना समय बर्बाद किए हुए रश्मि मुद्दे पर आ गयी और गुहिया से पूछा कि आग किसने और क्यों लगायी ? गुहिया बोला यह तो पता नहीं रश्मिजी कि आग किसने लगायी पर जिसने भी लगायी है वह हम लोगों की जमीन हड़पना चाहता है। रश्मि ने पुनः पूछा, अच्छा ये बताओ गुहिया क्या ये जमीन तुम लोगों की नहीं है क्या ? गुहिया बोला रश्मिजी इस जमीन पर हमारे बाप-दादा के जमाने से रहते चले आ रहे है, लगभग तीस-चालीस वर्ष तो हम लोगो को रहते हुए हो गया इस जमीन पर। फिर कुछ दिमाग पर बल डाल कर गुहिया ने कहा कि एक बार अंचल कार्यालय में एक बुजुर्ग कर्मचारी मुझे बतला रहा था कि हमलोगों की जमीन सरकारी जमीन है। पहले गांव के जमींदार रूद्र प्रताप सिंह का हुआ करता था परंतु जमींदारी उन्मूलन के बाद यह जमीन सरकार की हो गयी। सरकार अभी तक तो कोई हस्तक्षेप नहीं की है लेकिन बेहतर होगा कि तुमलोग सरकार से भूमिहीन होने के आधार पर बंदोबस्ती करवा सकते हो और अपने नाम से डिमांड रजिस्टर खुलवा कर मालगुजारी दे सकते हो और मालगुजारी रसीद हासिल कर सकते हो।
रश्मि को अब माजरा थोड़ा-थोड़ा समझ में आने लगा था, उसने गुहिया को कहा कि तब तो जिसने भी आग लगायी या लगवायी वह यह जमीन हड़पने की साजिश कर रहा है। क्या पुलिस अभी तक यहां नहीं पहुंची है ? गुहिया ने कहा कि ये आप क्या पूछ रहीं है रश्मिजी, हमलोग तो थाने जाकर थानेदार को रपट लिखने को कहा पर वे रपट लिखने का तैयार ही नहीं हुए। अभी गुहिया और रश्मि में बातें हो ही रहीं थी कि बस्ती में ईंट से लदी गाड़ी आकर वहां रूकी, गाड़ी से दो-तीन मजदूर उतरे और गाड़ी से ईंट उतारने का उपक्रम करने लगे। गुहिया ने एक से पूछा अरे मदना, इतना ईंटा कहां से ले आया रे, कौन भेजा है ? मदन ने जवाब दिया कि ईंट मुखियाजी ने भेजा है जमीन पर चारदिवारी देने के लिए।
अब तक पत्रकारों ने अपना काम कर लिया था, फोटो कई एंगेल्स से ले ली गयी थी, बस्तीवालों से बातचीत कर नोट कर ली गयी थी। रश्मि ने चलते हुए गुहिया को कहा कि तुम कल शहर मजदूर यूनियन के कार्यालय आओ, वहां मामले से संबंधित भावी कार्रवाई की रूपरेखा पर चर्चा राजशेखर जी की उपस्थिति में करेंगे। पत्रकारों की टोली लौट गयी।
उस रात तो पुर्नवास की व्यवस्था तो पूर्ण नहीं हो सकी थी पर महादेव के साथ गए लोगों ने कुछ पत्तियां, पेडों की पतली-पतली शाखाएं तथा कुछ बांस लाए थे। फटी-पुरानी साड़ियों और चादरों से घेरा डालकर कुछ कैंप की तरह घेराबंदी की गयी थी जिसके अंदर बच्चों को उनकी माओं के साथ सुलाया गया था। बस्ती के सभी मर्द बारी-बारी से जाग कर पहरा देते हुए रात काट रहे थे।
दूसरे दिन गुहिया, दिनुआ और महादेव शहर में मजदूर यूनियन के कार्यालय सुबह नौ बजते-बजते पहुंच गए। पांच-दस मिनट के अंतर में रश्मि भी कार्यालय आ गयी। कार्यालय में यूनियन प्रमुख राजशेखर भी मौजूद मिले। रश्मि ने हरिजन टोला के सभी झोपड़ियों को एक षड़यंत्र के तहत जला दिया गया और कार्यालय आए हुए लोग उसके भुक्तभोगी है। राजशेखर सूबह के अखबारों में इस खबर को पढ़ चुके थे परंतु उन्होंने रश्मि से पूछा कि आप कई पत्रकारों के साथ कल हरिजन टोला गयीं हुयी थी फिर भी अखबारों में यह खबर सुर्खियों में नहीं है बल्कि तीसरे-चौथे पन्ने और कुछ अखबारों में इनबॉक्स सबर के रूप में छापा गया है। इतना सा ही छापना था तो आठ-दस पत्रकारों की टोली का हरिजन टोला जाने का क्या अर्थ है रश्मिजी। रश्मि कुछ सोचते हुए बोली, राजशेखर जी घटना की गंभीरता और अखबारों में कवरेज का तरीका देखकर प्रतीत होता है कि गांव के धनाढ्य मुखिया मीडिया में भी संपादकीय स्तर तक प्रभाव रखता है। इतनी बड़ी घटना की अखबारों ने ऐसी-तैसी कर के रख दी है राजशेखर जी। इस तरह खबर को हाशिए में डाले जाने के कारण प्रशासन ने भी हरिजनटोला आगजनी की घटना को बहुत हल्के से ही लिया है।
मुखिया की योजना है कि जबतक मामला तूल पकडेगा, वो हरिजनों को बेदखल कर जमीन पर चारदिवारी डलवा देगा, गुहिया ने रश्मि को कहा। राजशेखर पूरी बात सुनने, अखबारों के नजरिए पर गौर करने के बाद, रश्मि से कहा कि रश्मिजी मामले को दबाने की कोशिश हर स्तर पर जारी है इसलिए बेहतर होगा कि किसी वकील से मिलकर घटनास्थल पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 की कार्रवाई करनी चाहिए वरन् देर हो जाएगी। मुखिया अपने षड़यंत्र में कामयाब हो जाएगा और पच्चीस-तीस मजदूर परिवार बाल-बच्चों सहित सड़क पर आ जायेंगे। रश्मि ने भी हामी भरी और गुहिया को फौरन किसी वकील से मिलने की राय दिया। गुहिया और उसके साथ आए उसके भाई दिनुआ और महादेव जैसे ही कार्यालय से जाने को उठे कि रश्मि ने उन्हें रोका और कहा कि अच्छा मैं तुम लोगों को एक अच्छे वरीय अधिवक्ता प्रदीप सहाय से मिलवाने ले चलती हूं।
रश्मि अपने साथ गुहिया, दिनुआ और महावीर को लेकर पहुंच गयी शहर के जानेमाने अधिवक्ता प्रदीप सहाय के आवास पर, जहां रश्मि को श्री सहाय की जूनियर मीता सिन्हा मिल गयी। आइए-आइए रश्मिजी, मीता ने कहा, बहुत दिनों बाद हम मिल रहे है, हैं न, मीता ने मुस्कुराते हुए कहा। चौबीस-पच्चीस वर्ष की मीता सिन्हा खूबसूरत होने के साथ-साथ बहुत ही कुशाग्र बुद्धि की युवती है जो अपने कार्य को भली भांति समझती है। अपने वरीय अधिवक्ता प्रदीप सहाय की प्रायः सभी मुकदमों में पैरवी करती है और मुवक्किलों से प्रत्यक्ष बातचीत करती है। प्रदीप सहाय को काफी सहूलियत होती है जब मीता कार्यालय में उपस्थित रहती है। रश्मि और मीता अपने-अपने क्षेत्रों की जुझारू हस्तियां है। शहर में दोनों ने कम उम्र में ही अपने जुझारूपन के कारण काफी नाम कमा चुकी है।
रश्मि ने मीता को सभी मुख्य बातें हरिजन टोला से संबंधित संक्षेप में सुना देती है और श्री सहाय की राय लेने की इच्छा जाहिर करती है। मीता कहती है कि रश्मिजी अगर आप सभी की इजाजत हो तो मैं आप लोगों को राय देना चाहती हॅूं, बाद में आप सभी श्री सहाय से भी राय ले लें। रश्मि ने तपाक से कहा, हां-हां मीताजी हम सभी को आप पर पूरा भरोसा व विश्वास है। आप अपने बलबूते कई मुकदमें जीतीं है। मीता ने कहा हरिजन टोला प्रकरण में सबसे पहले मुखिया को जमीन पर चारदीवारी देने से रोकना होगा, इसके लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत अनुमंडल पदाधिकारी के यहां अर्जी देनी होगी परंतु धारा 144 के तहत जो रोक लगाया जाता है न रश्मिजी वो सिर्फ 60 दिनों का होता है इसलिए एक अर्जी और देनी होगी उच्च न्यायालय में। ऐसे मामलों के लिए जनहित याचिका के तहत उच्च न्यायालय में भी इसी अवधि के अंदर ही अर्जी दे देनी होगी और सरकार से बस्ती वालों के लिए मुआवजा और पुर्नवास की मांग करनी होगी।
रश्मि और हरिजन टोला से आए लोग को अब विश्वास हो चला था कि उन लोगों को शायद मीताजी न्याय दिलाने में कामयाब हो जाए। गुहिया हाथ जोड़कर तुरंत तैयार हो गया था कि दफा 144 की कार्रवाई मीताजी शुरू कर दें। इस मुद्दे पर सभी एकराय थे। मीताजी ने अर्जी तैयार करने में आधा घंटा का समय ली, अर्जी गुहिया को देते हुए कहा कि इसे कोर्ट परिसर में किसी टंकक से टाइप करवा लो, मैं नियत समय पर आ जाउंगी और अर्जी अनुमंडल पदाधिकारी के कोर्ट में पेश कर दूंगी। गुहिया अर्जी ले लिया और रश्मिजी की तरफ देखने लगा। गुहिया का आशय मीताजी के फीस से था। रश्मि समझ गयी, उसने मीता से पूछा कि क्या फीस देना होगा मीताजी, इन लोगों को । मीता ने कहा, आप तो जानती है रश्मिजी, मैं गरीब से फीस नहीं लेती हॅूं, इन लोगों को सिर्फ अर्जी टाइप, फाइलिंग वगैरह में जो लगेंगे वही खर्च करना होगा। यह सुनकर गुहिया सोचने लगा कि मीताजी का कितना उच्च विचार है, उसके सर मीताजी के सामने श्रद्धा से झुक गया और आंखें में बरबस आंसू की बूदें छलक आयी। आज के जमाने में जब चारों ओर जिसे भी देखिए लूटने में लगा है वैसे माहौल में रश्मिजी और मीताजी तो साक्षात अवतार है जो अपने कार्यों को सर्वपरि समझती है, रूपया-पैसा की परवाह तक नहीं है इन्हें, गुहिया सोच रहा था। रश्मि के साथ सभी मीता सिन्हा के कार्यालय से कोर्ट जाने के लिए निकल पड़े। रश्मि उन लोगों को कार्ट जाने को कह यूनियन कार्यालय की ओर चली गयी।
रश्मि जब यूनियन कार्यालय पहुंची उस वक्त तक राजशेखर यूनियन के बहुत से फाइलों को निपटा चुके थे। रश्मि को देखकर राजशेखर अंदर ही अंदर बहुत खुश हुए और पूछा, कहिए रश्मिजी कैसीं है आप, कैसी रही वकील साहब से मुलाकात। रश्मि ने सारी बात विस्तृत रूप में राजशेखर को बता दी। राजशेखर तन्मयता से सारी बातें सुनते रहे, बात खत्म होने पर राजशेखर ने कहा चाय मंगवाता हॅूं रश्मिजी, आप बहुत थकी लग रही है। कार्यालय के चपरासी मन्टू को बुलाकर राजशेखर ने दो प्याली गर्म-गर्म चाय और बिस्कीट लाने को कहा। मन्टू चाय-बिस्कीट लाने को चला गया।
राजशेखर का आज न जाने मन बहुत रूमानी हो रहा था रश्मि के सान्निध्य में। वह सोच रहा था कि रश्मिजी कभी इतनी देर तक कार्यालय में अपना समय नहीं गुजारा है। दरअसल रश्मि एक व्यस्त पत्रकार है और वो भी सत्य की खोज में, उसे वक्त ही कहां मिलता है कि वह राजशेखर से मिलें । आज भी तो वो काम के सिलसिले में ही यूनियन कार्यालय में है। हांलाकि रश्मि भी अंदर ही अंदर राजशेखर को पंसद करती है परंतु इजहार नहीं करती। वही हाल राजशेखर का भी है। आग तो बराबर दोनों तरफ लगी हुयी थी। राजशेखर ने हिम्मत जुटाया, अपने दिल के धडकनों पर काबू पाते हुए कहना शुरू किया, रश्मिजी क्या आप बता सकती हैं कि चांद जब अंबर में चलता हुआ पृथ्वी के नजदीक पहुंचता है तब संमदर में क्यों आता है ज्वार भाटा और उनके आंखों में भी जिनके दिलों में है संमदर ? राजशेखर कहीं पढ़ा था किसी कवि का यह उदगार, जो उसे हमेशा याद रहता था। आज इसका इस्तेमाल भी कर चुका था राजशेखर। क्या खूब प्रश्न किया है आपने राजशेखरजी, रशिम ने कहा। मैं तो समझती थी कि आपको सिर्फ यूनियन के कामों में ही दिलचस्पी है, कविता और शायरी भी आप करते हैं, ये तो मुझे अभी पता चला। दरअसल, राजशेखर मौका का फायदा उठाते हुए कहा, रश्मिजी, जब कोई किसी को प्यार कर बैठता है तो कविता, गजल, शायरी सब खुद बखुद आ जाती है। रश्मि ने भी मौका के नजाकत को ध्यान में रखते हुए अपनी झिझक तोड़ते हुए पूछ ही बैठी कि आप किस लड़की से प्यार कर बैठे, राजशेखरजी। रश्मि पूछ तो ली पर इस आशंका से दूसरे पल ही घिर गयी कि कहीं राजशेखरजी किसी और लड़की का नाम बताया तो.....। राजशेखर देख रहा था रशिम के सांवले से खूबसूरत चेहरे पर हजारों रंग आ-जा रहे थे। राजशेखर ने कहा कि अब मेरे पास, आइना तो है नहीं रश्मिजी कि मैं आपको दिखा कर बताउं कि वो कौन लड़की है। रश्मि का खूबसूरत सांवला चेहरा सुर्ख हो चुका था, इतने में मन्टू चाय और बिस्कीट लेकर अचानक से कमरे में दाखिल हुआ। राजशेखर के हाथों से छूटकर कलम नीचे जा गिरा, जिसे हाथ में लेकर वो रश्मि से बातें कर रहा था और रश्मि अपनी प्रतिक्रिया को छिपाने के लाख कोशिशों के बावजूद छिपा न सकी थी। खैर मन्टू को इन सब बातों से क्या लेना-देना था, उसने चाय और बिस्कीट टेबल पर रखा और बारी-बारी से दोनों के तरफ देखते हुए, गमछा कंधे पर संभालते हुए कमरे से बाहर चला गया था।
उधर कोर्ट परिसर में नियत समय स पर मीता सिन्हा पहुंच गयी थी, गुहिया अर्जी टाइप करवा कर मीताजी का इंतजार कर रहा था। ठीक साढ़े दस बजे अर्जी अनुमंडल पदाधिकारी के कोर्ट में मीता ने पेश कर दिया और जैसी की उसकी आदत थी साढ़े बारह बजे अर्जी के सुनवाई के समय कोर्ट पहुंच गयी और दिमाग तो लगा हुआ था ही दिल से हरिजन टोला के झोपड़ियों का एक साथ जलाया जाना, मुखिया का जमीन पर ईंट गिरवाना और चारदीवारी देने का षड़यंत्र करने पर इतना सधा हुआ तकरीर की कि अनुमंडल पदाधिकारी ने दूसरे पक्ष यानि मुखिया को कारण पृच्छा नोटिस जारी करते हुए विधि और शांति व्यवस्था बनाए रखने के मद्दे नजर जमीन पर चारदीवारी नहीं देने का आदेश पारित कर दिया। कोर्ट से बाहर निकलते ही गुहिया खूद को खुशी के कारण संभाल नहीं पा रहा था, उसे लग रहा था कि मीता सिन्हा के पांव पर गिर पड़े। आज जो उसने हासिल किया था वह सभी तो मीता सिन्हा के कारण ही तो था। आज के जमाने में क्या कोई वकील बिना मोटी रकम लिए इतना करता है जितना मीता सिन्हा ने बिना फीस लिए किया। मीता भी बहुत खुश थी, उसने सबसे पहले रश्मि को फोन लगाया और हरिजन टोला के वासियों की पहली जीत की सूचना दी। रश्मि उसे धन्यवाद दिया और मीता सिन्हा के काबिलियत पर विश्वास जताते हुए आगे की कार्रवाई पर विचार करने के लिए आने का वादा किया। एक मिशन की तरह हरिजनटोला आगजनी कांड को लिया था ये दो जुझारू युवतियों ने। गुहिया खुशी में झाट से कोर्ट केन्टीन से अपनी मीताजी के लिए मिठाई खरीद लाया और बड़ी अदब से मूंह मीठा करने के लिए मिठाई दिया। मीता हांलाकि कोर्ट में कुछ भी खाने की आदि नहीं थी फिर भी गरीब गुहिया को बुरा न लगे इसलिए एक मिठाई ले ली।
रश्मि और राजशेखर दूसरे दिन मीता सिन्हा से भेंट करने पहुंचे। इधर-उधर की बातें करने के बाद रश्मि ने पूछा, अच्छा मीताजी अब आगे क्या करना है। मीता ने कहा रश्मिजी, अभी तो 60 दिनों तक के लिए रोक लग गयी है परंतु सुना है कि मुखिया जिला न्यायाधीश के नयायालय में इस संबंध में रिवीजन दायर करने वाला है। हमलोगों को तुरंत ही उच्च न्यायालय में अर्जी दायर करना चाहिए, रश्मिजी। फिर देर किस बात की है, गुहिया कल आने वाला है, उसे मैं कह देती हॅूं, रश्मि ने कहा, कि वो उच्च न्यायालय जाने की तैयारी कर ले और एक दो दिन के अंदर जनहित याचिका दायर करवा दे। गुहिया दूसरे दिन मीता सिन्हा के आवास तड़के ही पहुंच गया। उसे सिर्फ यह पूछना था कि उच्च न्यायालय में वो किस अधिवक्ता से मिले। मीता सिन्हा ने गुहिया को एक अधिवक्ता पांडेय नीरज राय का पता दिया जो गरीबों के मसीहा कहे जाते थे। नीरज बाबू के नाम से प्रसिद्ध थे वे। गुहिया उनसे मिला और जनहित याचिका दायर करवाया। याचिका की सुनवाई के बाद न्यायालय ने सरकार को यह आदेश दिया कि हरिजन टोला के उजड़े हुए लोगों को 10-10 हजार रूपए मुआवजा दें और उन्हें जल्द से जल्द पुनर्वास करावाएं।
गुहिया के खुशी का कोई ठिकाना नहीं था, वो दंबग मुखिया सु मुकदमा लड़ कर जीत चुका था और इसका श्रेय वो अपने दो सिपहसलार रश्मिजी और मीताजी को दे रहा था। ऐसे लोगों के कारण ही निर्धन बचे हुए हैं, गुहिया मन ही मन सोच रहा था, वरन् मुखिया जैसे लोगों की तादाद तो बहुत अधिक है। गुहिया अब गांव पहुंचने की जल्दी में था शायद सैकड़ों बच्चों-महिलाओं की दुआएं थी गुहिया के साथ कि वह यह जंग जीत चुका था। गुहिया राज्य परिवहन के बस पर गांव पहुंचने के लिए सवार हो चुका था, उसकी आंखें डबडबायी हुयी थी, आंसू बहने ही वाले थे पर ये खुशी के आंसू थे।
राजीव आंनद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा, गिरिडीह, झारखंड़ 815301
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