कहानी उपरवाले का न्याय राजीव आनंद बा त उन दिनों की है जब सीमा इंटर की छात्रा थी। सीमा के पिता नागपुर में प्रोविडेन्ट फंड डिपार्टमेंट मे...
कहानी
उपरवाले का न्याय
राजीव आनंद
बात उन दिनों की है जब सीमा इंटर की छात्रा थी। सीमा के पिता नागपुर में प्रोविडेन्ट फंड डिपार्टमेंट में कार्यरत थे। सीमा पांच भाई बहनों में सबसे छोटी थी और सबों की देखभाल यहां रांची में सीमा की मां करती थी जो स्कूल में टीचर थी और सीमा के परिवार की गार्जियन थी उसकी बड़ी माँ। सीमा का परिवार रांची में एक संयुक्त परिवार के रूप में उसके दो बड़े चाचा और उनके परिवार के साथ रहते थे। सीमा की बड़ी माँ सीमा के पिता को बचपन से ही पालपोस कर बड़ा की थी, कहने का तात्पर्य यह कि सीमा के पिता की वो सिर्फ भाभी ही नहीं बल्कि माँ थी। सीमा के बड़े पापा के देहांत के बाद सीमा की बड़ी माँ सीमा के परिवार के साथ ही रहती थी।
सीमा की उसकी बड़ी माँ से बहुत छनती थी। तरह-तरह के पकवान बनाकर खिलाना, आइस्क्रीम, चाट, समोसे वगैरह खाने के लिए पैसे देना, ये सब बड़ी माँ का काम था। सीमा की माँ अपने दिनचर्या में व्यस्त रहने और अध्यापिका का कार्य करने के बाद भी समय निकालकर शाम का नाश्ता और रात का खाना बड़ी माँ के लिए बना देती थी। बड़ी माँ भी संयुक्त परिवार में सीमा की माँ को ज्यादा मानती थी और सीमा के पिता को तो उन्होंने पाला ही था। ये बात सीमा के बड़े और मंझले चाचा के परिवार को भाता नहीं था और वे सभी सीमा के बड़ी माँ से इर्ष्या करते थे और कभी-कभार बदसलूकी भी कर बैठते थे। उनलोगों का ऐसा करना सीमा को काफी नागवार गुजरता था। सीमा सोचा करती थी कि जब उसकी बड़ी माँ अपने हाथ से चने की सत्तु बनाती है तो सत्तु सभी को देती है। मंझले चाचा के यहां जाकर उनलोगों का गेहूं चुनकर, धोकर, फटक कर सूखने देती है। बड़े चाचा के यहां जाकर खूद ही चना और उड़द दाल हाथों से लोढ़ी-पाटी में पीसकर बरी बना देती है, उसे सूखने दे देती है और इतना ही नहीं उसे सूखा भी देती है और सूख जाने पर समेट कर बोआम में भर कर रख भी देती है परंतु फिर भी उसके बड़े और मंझले चाचा का परिवार बड़ी माँ से बदसलूकी क्यों करता है ? सीमां जब भी इसके खिलाफ आवाज उठाती थी, पूरे परिवार में छोटी होने के कारण उसे ही सब डांट-फटकार कर चूप करा देते थे। सीमा की एक नहीं चलती थी। सीमा अपनी बड़ी माँ से पूछा करती थी कि उसकी मंझली और बड़ी चाची, चचरे भाई उसके साथ इतना बुरा व्यवहार क्यों करते हैं ? बड़ी माँ सीमा को समझाती थी बेटी सभी का इस दुनिया में व्यवहार अलग-अलग होता है, कुछ अच्छे व्यवहार के होते है और कुछ बुरा। जो बुरा व्यवहार के होते है और दूसरे से बुरा व्यवहार करते है उसे उपरवाले सजा देते है। सीमा की बड़ी माँ बहुत ही धार्मिक विचारों वाली महिला थी, उसने अपने पति के पेंशन के रकम में से बचत कर घर के पास ही एक मंदिर भी बनवाया था और उसे सार्वजनिक घोषित कर दी थी। मंदिर को सार्वजनिक घोषित करने के मुद्दे पर भी सीमा के मंझले चचेरे भाई और उसकी मंझली चाची ने बहुत हायतौबा मचाया था। वे नहीं चाहते थे कि मंदिर को सार्वजनिक घोषित की जाए। सीमा की बड़ी माँ का मानना था कि मंदिर का स्वरूप सार्वजनिक होना ही चाहिए क्योंकि अगर किसी के घर के भीतर भी मंदिर हो और कोई बाहर का आदमी पूजा करना चाहे तो उसे पूजा करने से रोका नहीं जा सकता परंतु सीमा की बड़ी माँ के उच्च विचार से उनलोगों को कोई लेना-देना नहीं था। सीमा के मंझले चचेरे भाई का मानना था कि मंदिर उसके खानदान की जागीर बन कर रहनी चाहिए और चढ़ावा, भोग वगैरह से जो आमदनी हो वह उसे मिलना चाहिए। ऐसा सीमा की बड़ी माँ को मंजूर नहीं था।
एक दिन अचानक सीमा कॉलेज से आयी ही थी कि उसने देखा कि उसके बड़े चचेरे भाई बड़ी माँ को थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठा रहे थे। सीमा हालांकि अपने चचेरे भाई को गुस्सा से आगबबूला होते देख डर गयी थी फिर भी सीमा में न जाने कहां से हिम्मत आ गयी कि उसने दौड़कर अपने चचेरे भाई का हाथ पकड़ लिया और बड़ी माँ को थप्पड़ लगने से बचा लिया था परंतु सीमा को उसके चचेरे भाई ने इतना जोर का धक्का दिया था कि सीमा काफी दूर जाकर दीवार से टकराई थी और जिससे उसे सर पर गहरी चोट आयी थी। सीमा को अपनी चोट की परवाह नहीं थी उसे संतोष था कि उसने अपनी बड़ी माँ को थप्पड़ लगने से बचाया। सीमा की बड़ी माँ इस घटना से बहुत ज्यादा आहत हुयी थी और उस रात खाना बिना खाए सो गयी थी। सोने के पहले सीमा की बड़ी माँ ने सीमा के सर पर उसके कारण आयी चोट से मर्माहत थी और डाक्टर से दिखा चुकने के बाद भी सीमा को अपनी प्राचीन घरेलू नुस्खे से लेप वगैरह कर दी थी। सीमा के पिता नागपुर में नौकरी करते थे इसलिए सीमा के चचेरे भाई उसपर बहुत रोब झाड़ते थे। सीमा इसकी शिकायत अपनी बड़ी माँ और अपनी माँ से किया करती थी।
एक और दिन का वाकया था कि सीमा की बड़ी माँ सुबह दातून से अपनी दांतों को बैठ कर मांज रही थी कि उसके चचेरे भाई, जो पुलिस विभाग में नौकरी करते थे, ने कहा कि मुंह में दो-एक दांत है तो क्यों घंटों दातून कर रही है, रे बुढ़िया ! सीमा वहीं किनारे कुर्सी और टेबल लगाकर पढ़ रही थी, ऐसी बात सून कर बहुत बुरा लगा था सीमा को और इधर उसकी बड़ी माँ दातून करते-करते एकदम से बिफर उठी थी और अचानक न जाने क्या हुआ वो खांसना शुरू कर दिया और इससे पहले सीमा अपने भाईयों, माँ को बुलाती, उसकी बड़ी माँ वहीं आंगन में एक तरफ लुढ़क गयी। सीमा दौड़कर अंदर से उसकी दवाई ले कर आयी और चम्मच में डालकर उसे पिलाना ही चाहा कि देखती है कि बड़ी माँ नहीं रहीं। पहली बार सीमा अपनी जिंदगी में मौत से रूबरू हुयी थी। जीवन कैसे खत्म होता है यह वो पहली बार इतने करीब से देखा और महसूस किया। सीमा को गहरा सदमा लगा। चंद घंटे पहले सीमा अपनी बड़ी माँ से बातचीत करते हुए पढ़ाई कर रही थी और चंद घंटे बाद उसकी बड़ी माँ इस दुनिया में नहीं रही, यह सोच कर उसकी धड़कन अचानक बढ़ गयी थी। सीमा सोच रही थी कि उसके पिताजी का क्या हाल होगा जब वे ये दुखद समाचार सुनेंगे क्योंकि सीमा जानती थी कि बड़ी माँ उसके पिता के लिए माँ से कम नहीं थी और सीमा के पिता अपनी बड़ी भाभी को माँ के जैसा ही आदर और प्यार करते थे। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे। सीमा की माँ और उसकी चाचियां, बड़े और मंझले चाचा, उसके तीन चचेरे भाई, एक चचेरी बहन, उसके अपने तीन सहोदर बड़े भाई और एक बहन सभी वहां इकट्ठे हो गये थे, सभी कुछ-न-कुछ राय दे रहे थे। बहरहाल सीमा के बड़े भाई ने तुरंत अपने पिता को नागपुर तार द्वारा खबर भेजा, सीमा के पिता को जब यह खबर मिली तो वे कई बार मूर्छित से हो गये और अंततः नागपुर से रांची आने के लिए बिना बिलंब किए चल पड़े।
सीमा की बड़ी माँ का शव आंगन में रख दिया गया। टोले-मोहल्ले के लोगों ने भीड़ लगा दी। इसी भीड़ का फायदा उठा कर सीमा की मंझली चाची ने उसके माँ के पास आकर कहा कि मरने वाली तो चली गयी इसमें हम या तुम क्या कर सकते है। सीमा की माँ सीमा के मंझली और बड़ी चाचियों की बहुत इज्जत किया करती थी और कुछ ज्यादा बोलती नहीं थी, सीमा की मंझली चाची ने सीमा की माँ से कहा कि चलो दीदी के हाथों में जो सोने के कंगन है उसे रोने का बहाना करते हुए निकाल लेते है, एक तुम रख लेना और एक मैं। सीमा की माँ ये सुन कर स्तब्ध रह गयी और ऐसा करने से इंकार कर दी। सीमा की माँ पहले से ही बड़ी भाभी के अचानक गुजर जाने से आहत थी उसपर सीमा के पिता की नाजुक हालत से काफी घबरायी हुयी थी, बोल तक नहीं पा रही थी सीमा की माँ परंतु सीमा की मंझली चाची मानने वाली कहां थी उसने सीमा की बड़ी माँ के शव से लिपट कर रोने का जो नाटक किया वह देखने लायक था यद्यपि हाथ के सोने के कंगन तो नहीं निकाल सकी पर बड़ी माँ के कान के बूंदों को निकालने में कामयाब हो गयी। सीमा की मंझली चाची के लिए यह संसार स्वार्थ की विस्तृत क्रीडा स्थली और मोह का मोहक बाजार था जहां लोभ और लालच में पड़कर सीमा की मंझली चाची निकृष्ट से निकृष्ट कार्य करने के लिए हमेशा तत्पर रहती थी।
खैर सीमा के पिता दूसरे दिन सुबह होते-होते रांची पहुंच गये और शव को देखकर सीमा के पिता अपने को रोक नहीं पाए और बेहोश हो गए, सीमा भयभीत हो गयी थी देखकर और यह सोच कर कि कहीं उसके पिता को भी कुछ हो न जाए। वो दौड़ी थी घर के अंदर पानी लाने को और ग्लास में पानी लाकर अपने पिता के सर पर छींटा करने लगी थी जिससे सीमा के पिता को होश तो आ गया परंतु वे थोड़ी-थोड़ी देर पर बेहोश होते रहे। अंततः सीमा के बड़े भाई को डाक्टर बुलाना पड़ा, डाक्टर ने बताया कि इन्हें भावनात्मक सदमा लगा है, मैं कुछ दवाईयां दे रहा हूं, समय पर खिलाते रहें तभी वे ठीक हो पायेगें और अगर हो सके तो श्मशान घाट पर इन्हें शव को जलते हुए न देखने दें तो बेहतर होगा। डाक्टर के ताकीद के साथ सीमा की बड़ी माँ का क्रियाकर्म कर दिया गया। समय बीतता गया। बड़ी माँ के मरने का जख्म तो धीरे-धीरे भरता गया पर जो देखकर सीमा सबसे ज्यादा आहत हुई थी वो था उसकी चाची की करतूत, जिसे सीमा आज तक भूल नहीं पायी थी। सीमा की मंझली चाची चुराए हुए उसके बड़ी माँ के कानों की बूँदों को पहन लिया परंतु उपर वाले का न्याय देखिए उसे कुछ ही दिनों के बाद कान से सूनाई देना बंद हो गया और एक दिन जब सीमा के मँझले चाचा यानी मंझली चाची के पति, जो सुगर और रक्तचाप के मरीज थे रात में अपने बांये हाथ में भयंकर दर्द की शिकायत अपने पत्नी से कर रहे थे परंतु मँझली चाची को कुछ सुनायी नहीं पड़ रहा था और इससे पहले कि चाची किसी और को खबर करती या उठाती, सीमा के मंझले चाचा ही इस दुनिया से उठ गए। डाक्टरों की एक टीम सीमा के मंझले चचरे भाई ने बुलवायी थी और डाक्टरों के शव जांच के बाद यह निष्कर्ष निकला था कि रात में अचानक रक्तचाप ज्यादा बढ़ जाने के कारण और सूगर की बीमारी भी रहने के कारण, सीमा के मंझले चाचा की हृदय गति अचानक रूक गयी थी और उनकी मौत हो गयी थी। सीमा की मंझली चाची विधवा हो चुकी थी।
सीमा को आज तक समझ में नहीं आया कि अपनी मंझली चाची के हस्र पर वह खुश हो या दुखी।
राजीव आनंद
प्रोफेसर कॉलोनी, न्यू बरगंड़ा, गिरिडीह, झारखंड़ 815301
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