कहानी मूल से ब्याज मीठा किशन माधवानी ‘‘ बेकस '' गो लछा जी आज भी उसी प्रसन्न मुद्रा में सायकल चलाये जा रहे थे। जो सदा से उन...
कहानी
मूल से ब्याज मीठा
किशन माधवानी ‘‘ बेकस ''
गोलछा जी आज भी उसी प्रसन्न मुद्रा में सायकल चलाये जा रहे थे। जो सदा से उनकी पहचान रही है। जी हां, प्रसन्नता उनके स्वभाव में शामिल है। चेहरे पर कभी शिकन दिखी हो ऐसा मुझे याद नहीं आता। दाहिने -बांये झूमने वाले अंदाज में पैडल मारे जा रहे थे। पीछे कैरियर पर लगभग 3 साल का बड़ा ही प्यारा सा बच्चा उनके कंधों का सहारा लिये खड़ा था। दाहिने- बांये झूमने का आनंद शायद वह भी महसूस कर रहा था। और इस लिए हंसे जा रहा था। यह दृश्य देखकर मुझे 27 साल पहले वाले गोलछा जी याद आ गए। उस समय भी वे ठीक इसी तरह अपने बड़े बेटे बबलू को सायकल के पीछे कैरियर पर खड़ा करके घुमाने ले जाया करते थे। हां, फर्क यह जरूर था, उस समय वे सायकल जरा तनके चलाया करते थे। आज वे झूम - झूम के चला रहे थे। शायद उम्र का यही तकाजा था।
वो जब मेरे घर के सामने से निकलते तो एक हांक जरूर लगाया करते थे - ‘‘चलते हो क्या भाई घूमने ?'', और फिर एक पांव के सहारे जमीन पर खड़े हो जाया करते थे। उनकी आवाज सुनकर मैं भी अपनी सायकल उठाकर अपने एक साल के लड़के को सीट पर बैठाकर , खुद पीछे कैरियर पर बैठकर , दाहिने हाथ से उसे थामता था और बांये हाथ से हैंडल थामकर सायकल चलाता था। हम लोग लगभग 4 किलो मी. का चक्कर लगाकर वापस आते थे। हम दोनों लगभग उन्हीं दिनों ही पड़ोसी बने थे। 27 साल की इस लंबी अवधि में उनके हर दुख -सुख का गवाह मैं हूं और मेरे हर दुख - सुख के गवाह वे। किसी से कुछ छुपा नहीं है।
एक प्रिंटिंग प्रेस में साधारण से कंपोजर। वेतन बस इतना कि दो वक्त की रोटी आराम से निकल जाय। पुश्तैनी मकान, अपने पिता के इकलौते बेटे होने के नाते वो मकान ही उनकी जायजाद है। बाकी जीवन की गाड़ी बड़ी मुश्किलों से खींचते चले आ रहें है। फिर भी उनका चेहरा कभी मुरझाया नहीं। हमेशा खिला खिला।
उनका लड़का बबलू जब 4 साल का हुआ तो उसे किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाने का मन बना लिया, ताकि वो उनकी तरह जीवन की गाड़ी ‘‘ किसी तरह '' खींच के नहीं बल्कि शान से चला सके। मॉडल स्कूल में प्रवेश दिलाने में उनका लगभग पूरा वेतन स्वाहा हो रहा था। वे मेरे पास आये और अपनी मजबूरी मेरे सामने रखी। मुझे खुशी हुई कि उन्होंने अपने बच्चे के उज्जवल भविष्य की सोची और प्रयास शुरू किया। पूरी एडमीशन फीस मैनें उन्हें देकर खुले दिल से कहा -‘‘ वापस करने की जल्दी नहीं , जब हो जाये आराम से देना, घबराना नहीं। '' बच्चे को स्कूल में दाखिला दिलाकर उस दिन वे बड़े खुश हुए थे। और बड़े ही गर्वीले अंदाज में बोल पड़े थे और बोले अब यह बड़ा अफसर बन कर मेरी हर तकलीफ दूर कर देगा। फिर जिन्दगी आराम से कटेगी।''
अपना पेट काट काट , इधर उधर से उधारी करके बबलू को उच्च शिक्षा दिला दीं संयोग कुछ इतने अच्छे हुये कि फाइनल पास करते ही उन्हीं दिनों बैक की ओर से अफसरों की सीधी भर्ती का विज्ञापन निकला। बबलू पढ़ाई - लिखाई में तेज था ही। उसने भी फार्म भर दिया और सलैक्ट हो गया।
उस दिन गोलछा जी मेरे घर रसगुल्ले लेकर आये। उनके पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, वे पूरे मोहल्ले में जैसे उड़े - उड़े से चल रहे थे। ऐसा होना मानव मात्र के लिए स्वाभाविक ही था।
खुशी से झूमते हुए उन्होंने एक रसगुल्ला मेरे मुंह में ठूंस दिया। और बोल पड़े ‘‘ देखा सोहन लाल ! मेरा बबलू बैंक आफिसर बन गया। आखिर बेटा किसका है। मेरी तो शान ही बढ़ा दी उस लड़के ने। अब तो यार सब दुख दूर ही समझो। आखिर मैं अब एक बैंक आफिसर का बाप हूं। '' मैंने भी उन्हीं की प्लेट से एक रसगुल्ला निकाला और उनको खिलाते हुए बधाई दी। वे तुरंत यह कहते हुए बाहर निकल गए ‘‘ चलता हूं भाई , सारे मोहल्ले को यह खुशखबरी देनी है। ''
लगभग एक साल बाद उनकी श्रीमती जी अचानक घबरायी हुई मेरे घर आई और उखड़ी हुई सांसों से रूआंसे स्वर में बोली कि‘‘ भाई साहब थोड़ा जल्दी चलिये ना देखिये तो इनको क्या हो गया है। '' मैं तुरंत उनके साथ उनके घर भागा। आकर देखा तो गोलछा जी एक टक छत को घूरे जा रहे थे। और लंबी लंबी सांसें से ले रहे थे। मैंने उनके सीने पर हाथ रखकर देखा , धड़कन बहुत तेज थी। पलंग पर बैठ कर मैनें उनके माथे पर हाथ रखकर कहा ‘‘ क्या हुआ गोलछा भाई अच्छे भले तो प्रेस गए थे, यह अचानक क्या हो गया है आपको बताइये तो जरा क्या बात है ?'' मेरी आवाज सुनकर उन्होंने बिना सर को हिलाये , सिर्फ आंखें मेरी ओर फेरी और रोते हुए बोल पड़े - सोहन लाल ! सब खत्म हो गया।, सारी आशायें , सारे सपने बिखर गए, कुछ नहीं बचा मेरे भाई , कुछ बाकी नहीं रहा , सब खत्म ,सब खत्म '' और फिर वे फफक - फफक कर रो पड़े । ‘‘ अरे भाई बताओगे भी आखिर हुआ क्या ? '' मैं उनका हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोला। इतने में उनकी श्रीमती जी पानी का गिलास लेकर आई थी, मैंने वो लेकर उनको पीने के लिए कहा - और उनके होठों से लगा दिया। आधे अधूरे उठकर पानी पिया और गहरी सांस लेकर तकिये के सहारे उठकर बैठ गए। और धीमी सी आवाज में उन्होंने कहना शुरू किया - ‘‘ दोपहर को बबलू प्रेस में आया था, हमारी तो उसने नाक ही कटवा दी , कहीं का ना छोड़ा हमें , क्या -क्या सपने देखे थे उसकी अफसरी को लेके सब टूट गए। सब आशायें धूल में मिला दी उसने । उसको कुछ दिन पहले बैंक की ओर से एक बंगला अलाट हुआ है, जिसकी खबर भी उसने हमें लगने नहीं दी। कल आफिस की एक मैडम से उसने लव मैरिज कर ली है। और जाकर उस बंगले में रहने लग गया है, क्योंकि मैडम नहीं चाहती एक साधारण सा प्रेस कंपोजर उस बंगले में उसके साथ रहे, या इतने बड़े आफिसर की बीबी होकर वह हमारे साथ इस पुराने से मकान में रहे। '' कहते कहते उनकी आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा।
पास में खड़ी उनकी श्रीमति जी भी सिसकने लगी थी। और हिचकियां लेते हुए लगभग विलाप करते हुए कहने लगी -‘‘ देख रहे हो आज की औलाद के रंग भैया ! अपने जिगर का खून जलाकर जलाकर इस लायक बनाया था। उस नामुराद को कि बुढ़ापे का सहारा बनेगा। लेकिन हमारे भाग में यही बदा है तो कोई क्या करे। उसकी शादी को लेकर क्या क्या सपने संजो रखे थे उसे घोड़ी पर दूल्हे के रूप में देखने आंखे तो जिन्दगी भर तरसती ही रह गई ना। ? घर की लक्ष्मी को घर में प्रवेश वाली सारी रस्में जैसे दिमाग में घूम - घूम कर मुंह चिढ़ा रही है। आशाओं के जो अंकुर हृदय में फूटे थे। उन सबको एक ही झटके में जैसे रौंद दिया मुरदार ने।'' मैं उस समय दोनों को सात्वंना भरे दो शब्द कहने के अलावा कुछ भी करने में असमर्थ था। दोनों को समझा बुझाकर मैं घर वापस आ गया। मेरी नींद पूरी तरह उचट चुकी थी। जो कुछ हुआ अच्छा नहीं हुआ। मन खट्टा हो गया था। औलाद मां बाप के लिए कुछ भी नहीं सोचती। क्या इसी दिन के लिए भगवान से बेटे मांगे जाते है ? इससे तो बै औलाद होना अच्छा, एक ही दर्द रहता है।
कम से कम बाकी तरह के दुखों से तो बच जाता है इंसान।
इस घटना के पांच साल बाद फिर गोलछा जी की सायकल पर ठीक 27 साल पहले वाले बबलू की तरह दूसरा बच्चा देखकर मैं स्वयं को उनके पास जाने से रोक नहीं पाया। करीब से उस बच्चे का चेहरा देखा तो बबलू का ही प्रतिरूप लगा। मैंने गोलछा जी की तरफ प्रश्न वाचक दृष्टि उछालते हुए हाथों के इशारे से पूछने की कोशिश की। कि कौन है यह। समझ तो गया था मैं कि बबलू का ही लड़का होगा। गोलछा जी हंसते हुए बोल पड़े - ‘‘ अरे भाई पोता है, मेरा पोता देखो हूबहू बबलू की कार्बन कापी है कि नहीं ? '' ‘‘ वो तो मैं भी देख रहा हूं पर ये सब है क्या ? फिर इतिहास को दोहराने का इरादा है ? मैं कंझाते हुए बोला -‘‘ अरे यार तुम किस मिट्टी के बने हो आखिर , मेरी समझ से तो बाहर है ये सब ''
‘‘ क्या करूं भाई ! खून तो आखिर अपना ही है ना। अपने खून को शरीर से अलग कैसे किया जा सकता है। घाव से खून बह गया था। तो शरीर कमजोर हो गया था जैसे। जब शरीर को पराया खून चढ़ाने से भी फुर्ती आ जाती है तब ये तो अपना ही खून सिमट कर फिर हमारे पास वापस आया है, फिर इसे कैसे दूर बह जाने दूं ?'' कहते हुए गोलछा जी ने ठंडी आह भरी और बात को जारी रखते हुए कहा - ‘‘ जल्दी से जल्दी शॉर्टकट से ऊंचाईयों पर पहुंचने की ललक ने बबलू को इतना नीचे गिरा दिया कि वह भ्रष्ट रास्तों पर भटक गया। वह गलत तरीकों से पैसे कमाने के लालच के भंवर में फंसता चला गया। और कुछ गलत काम कर बैठा। बैंक वालों ने जांच बैठा दी और सभी गड़बड़ियां साबित हो गई। बैंक ने उसे बर्खास्त कर दिया और तीन दिनों के अंदर बंगला खाली करने की नोटिस दी है। वह लव मैरिज वाली मैडम , भ्रष्ट तरीकों से कमाई हुई सारी नगदी और जेवर लेकर फरार हो गई। कल रात को आकर अपने किये की माफी मांगने लगा।
और पैरों पर गिर गया। दिल तो किया के ना कर दूं। और धक्के देकर बाहर निकाल दूं, परन्तु नजर इस बिट्टू पर पड़ी तो सारा गुस्से का लावा ठंडी बर्फ हो गया। एक अजीब सी कशिश इसकी तरफ खींचने लगी। मैं खुद को रोक नहीं पाया। और इसे गोदी में उठाकर चूमने लगा, एक निराले सुख का अनुभव हुआ। जो शब्दों में बयान करने से परे है।
वैसे भी सोहन लाल ! यह कहावत तो सच ही है ना
‘‘ मूल से ब्याज मीठा'' ऐसा कह के वे पैडल मार कर आगे बढ़ गए
इति शुभम्
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किशन माधवानी ‘‘ बेकस ''
सतनाम साक्षी हाउस
37 महेन्द्र नगर लालबाग
राजनांदगांव (छ.ग.)
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