कहानी मेरी मां कैस जौनपुरी मे री मां बड़ी सुन्दर है. उसे सुन्दर बने रहने का बड़ा शौक है. मेरी मां अपने शरीर का बहुत खयाल रखती है. मेरी मां को...
कहानी
मेरी मां
कैस जौनपुरी
मेरी मां बड़ी सुन्दर है. उसे सुन्दर बने रहने का बड़ा शौक है. मेरी मां अपने शरीर का बहुत खयाल रखती है. मेरी मां को सबसे अपनी तारीफ सुनना बहुत पसन्द है. मेरी मां को अपने फिगर की बड़ी फिक्र रहती है. मेरी मां खाने-पीने में जरा सी भी लापरवाही नहीं बरतती. फूंक-फूंक कर कदम रखती है. कहीं ये खाने से वो मोटी न हो जाए, कहीं वो खाने से चर्बी न बढ़ जाए. अपने फिगर की हिफाजत के लिए उसने मुझे कभी अपना दूध भी नहीं पिलाया. मैं तरसता ही रह गया लेकिन मुझे अपनी प्यारी मां का दूध पीने का सौभाग्य नसीब न हुआ.
मेरी बड़ी इच्छा थी कि मैं अपनी मां के पास रहूं. लेकिन ऐसा भी न हुआ. मेरी मां ने कभी मुझे अपने पास नहीं रखा. मेरी कितनी इच्छा थी कि मेरी मां मुझे लोरी गाके सुलाए. जब मुझे भूख लगे तो अपने हाथों से मुझे खाना खिलाए. मुझे कपड़े पहनाए. नहलाए, धुलाए. हर वो काम करे जो एक मां अपने बच्चे के लिए करती है.
मेरी मां ने तो कुछ भी न किया. कुछ भी नहीं. ना तो वो मेरे पेशाब किए हुए गीले बिस्तर पे सोई. ना तो वो मेरी तकलीफ पे रोई. ना तो उसने मुझे प्यार किया, ना ही उसने मुझे कभी अपने सीने से लगाया.
एक बच्चा और क्या चाहता है...? एक मां उसे अपने सीने से लगा ले, बस और क्या...? एक बच्चे को भला और क्या चाहिए...? बच्चा अपनी मां के सहारे ही इस दुनिया में आता है. मगर मेरी मां मेरा सहारा न बनी. मेरी कितनी इच्छा थी कि मेरी मां मेरी उंगली पकड़ के मुझे चलना सिखाए. मैं लड़खड़ाऊं तो मुझे संभाल ले. मुझे चोट लगे तो मुझे संभाल ले. लेकिन मेरी मां ने मुझे अपनी आंखों से दूर ही रखा.
मुझे और किसी बात का उतना अफसोस नहीं जितना इस बात का है कि मेरी मां ने मुझे अपने सीने से लगाकर नहीं रखा. मुझे अपना दूध नहीं पिलाया. सिर्फ इस वजह से कि उसका फिगर खराब हो जाएगा. मैंने तो सुना है दूध पिलाके मां को तसल्ली मिलती है. मगर मेरी मां को क्या हुआ था...?
मुझे इस बात का भी अफसोस है कि मैंने अपनी मां को नहीं देखा. मैं ये भी नहीं देख पाया कि मेरी मां दिखने में कैसी है....? मैं सोचता था कि जब मैं उसके सामने आऊंगा तो देखूंगा कि उसकी नाक तो मेरे ही जैसी होगी. उसकी आंखें भी मेरे ही जैसी होंगीं. उसकी उंगलियां भी मेरी तरह होंगीं. उसका सब कुछ मेरी ही तरह होगा क्यूंकि मैं उसका हिस्सा जो हूं. मगर ऐसा तो कुछ भी मुझे देखने को न मिला.
पता नहीं क्यूं मेरी मां ऐसी है कि उसे अपने शरीर से इतना प्यार है...? अच्छा है, लेकिन एक छोटे से बच्चे की क्या गलती है इसमें...? मेरी क्या गलती है इसमें...? कोई मुझे बताए...!
मैं अपनी मां से ही पूछता हूं...मां...! तुमने ऐसा क्यूं किया...? क्यूं तुमने मुझे खुद से दूर किया....? क्या मैं इतना बुरा था....? क्या तुम्हें मेरी बिल्कुल भी जरूरत नहीं थी...? मां...! तुम कैसी मां हो...? क्या तुम्हारा कलेजा मेरे लिए दुखी नहीं होता...? मां...! क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आती...?
मां...! आज अगर मैं तुम्हारे पास होता तो तुम्हारी बाहों में झूलता...तुम्हारे आगे-पीछे दौड़ता. तुम्हारे मुंह को चूमता. तुम्हें प्यार से अपनी छोटी सी बाहों में भर लेता. तुम मुझे देखती तो मैं हंस देता. तुम मुझे डांटती तो मैं भाग जाता.
मां...! मैं तुम्हारे पास होता तो कितना अच्छा होता ना...! हम-तुम साथ-साथ खेलते...तुम मुझे खिलौने दिलाती...मैं और खिलौनों की जिद करता...तुम मुझे प्यार से समझाती तो मैं मान भी जाता...जिद नहीं करता...लेकिन तुमने कुछ करने का मौका ही नहीं दिया मुझे. मां...! मेरी मां...! मेरी प्यारी मां...!
मैं रह-रह के अपनी मां से ये सारे सवाल करता हूं मगर मेरी मां कोई जवाब नहीं देती. वो खामोश ही रहती है जैसे मैं उसका कुछ लगता ही नहीं हूं. और फिर उसे मेरी फिक्र हो भी क्यूं...? मैं उसके पास होता तो उसकी नजर मुझपे होती. अभी तो उसकी नजर मुझपे हो ही नहीं सकती क्योंकि मैं उससे दूर हूं. अब मैं खुद तो अपनी मां के पास जा नहीं सकता. ये मेरे बस में नहीं. अगर ये मेरे बस में होता तो मैं खुद चलकर अपनी मां के पास पहुंच जाता. मगर ऐसा भी नहीं हो सकता.
मैं सोचता हूं मेरी मां को मेरी याद आए. मगर हैरानी की बात है कि मेरी मां को मेरी जरा भी याद नहीं आती. मेरी मां आज भी जिम जाने में यकीन रखती है. चुस्त कपड़े पहनती है. उसे अपने शरीर की बनावट पे बहुत नाज है.
मेरी मां जहां रहती है वहां किसी चीज की कमी नहीं है. अगर मैं अपनी मां के पास होता तो मुझे किसी चीज की कमी नहीं रहती. ना तो खाने की, ना तो पहनने की. मेरी मां का घर जरूरत की हर चीज से भरा है. बस, मेरी मां को मेरी जरूरत महसूस नहीं होती.
मेरी मां का एक आलीशान घर है. अगर मैं अपनी मां के पास होता तो एक अमीर घर का बच्चा होता. मगर मुझे ना तो मेरी मां मिली ना ही मुझे मेरी मां की नज़दीकी नसीब हुई. मुझे समझ में नहीं आता मेरी मां ने ऐसा क्यूं किया...?
एक अच्छी खासी सोसाईटी में रहती है मेरी मां. सबकुछ तो है उसके पास. फिर उसे क्या चिन्ता थी...? क्यों उसने मुझे अपने पास नहीं आने दिया...?
मैं देखता हूं बच्चे अपनी मां से हमेशा लिपटे रहते हैं. उनकी दुनिया उनकी मां ही होती है. मैं भी ऐसा ही चाहता था. मगर मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ.
मेरी मां के पास कार है. वो कार में घूमती है. अगर मैं उसके पास होता तो वो मुझे अगली सीट पे बैठाती और मैं कार में आगे बैठके खुशी से बाहर की दुनिया देखता. और अपनी मां को कार चलाते हुए देखके खुश होता. मेरी मां कार में गाने भी सुनती है. ये सब खुशियां मेरे नसीब में न आ सकीं.
मेरी मां के घर में टीवी भी है, बड़ा सा. घर भी बड़ा सा है मेरी मां का. मैं सब सोचके बैठा था कि ये सब मेरा है. मेरा ही होगा एक दिन. इस बड़े से घर में मैं खूब खेलूंगा. टीवी पे कार्टून भी देखूंगा. बड़े से घर में जब मैं हसूंगा तब सबकी नजर मुझपे होगी. मगर इस वक्त मैं सबकी नजर से दूर हूं. मैं अपने घर में नहीं हूं. वो सब कुछ नहीं है मेरे पास. मेरे पास तो कुछ भी नहीं है. और मुझे तो इन सब चीजों की जरूरत भी नहीं थी. मैं तो खुश था कि मैं अपनी मां के पास रहूंगा तो ये सब है. ये सब रहेगा, जहां मुझे रहना है. मगर मैं वहां रह न सका.
मेरी मां को लोगों से बात करने का बहुत शौक है. जब मैं उसके पास होता तो लोग जब पूछते कि ये कौन है..? तब मेरी मां सबको बताती कि ये मेरा बच्चा है. तब मैं अपनी मां के पैर से लिपट जाता. उसके पीछे छिप जाता. कितना कुछ सोचा था मैंने. ऐसा तो कुछ भी न हुआ. ऐसा कुछ क्यूं न हुआ...? मेरी मां ने मुझे इन सब बातों को जीने का मौका क्यूं नहीं दिया...?
मेरी मां को सेहत कैसे बनाके रखें बहुत अच्छी तरह पता है. इसीलिए तो वो इतनी फिट रहती है. मैं आज भी इन्तजार में हूं कि मेरी मां मुझे अपना ले. मैं उसका फिगर नहीं बिगाडूंगा. एक अच्छा बच्चा साबित होऊंगा.
मेरी कितनी इच्छा थी कि मैं अपनी मां की गोद में रहूं. मेरी मां मुझे अपने सीने से लगाके रखे. दुनिया से बचाके रखे. मैं तो अपनी मां के सीने से भी न लग सका. मां के सीने की गर्मी से बच्चा पलता है. मां की गोद दुनिया में सबसे हिफाजत की जगह होती है. वहां कोई खतरा नहीं है. मगर मेरे साथ ये भी न हुआ. मैं सोचता था जब मैं अपनी मां की गोद में रहूंगा तो मां का दूध पीने के बाद जब मेरा पेट भर जाया करेगा तब मैं धीरे से अपना छोटा सा हाथ मां के गले में डालके आराम से सो जाऊंगा. मैं सोचता था मैं अपनी मां के सीने से लग के सोऊंगा. मां के सीने से लगके सोने में जो आराम है वो दुनिया में कहीं नहीं. बच्चे की जन्नत मां की गोद में होती है. बच्चों वाली कोई भी हरकत तो मैं कर नहीं पाया.
मैंने शरारत में ये भी सोचा था कि जब मैं अपनी मां का दूध पिऊंगा तब अपना एक हाथ उसके दूसरे दूध पे रखूंगा और खेलूंगा. तब मेरी मां कहेगी... “हट बदमाश...!”
और भी बहुत कुछ सोचा था मैंने...मैंने सोचा था जब मेरी मां मुझे अपनी अपनी गोद में लेगी तब मैं उछल के अपनी मां के गले से लगके उसका चेहरा अपने छोटे से हाथ में ले लेता और उसके माथे को चूम लेता. उसकी नाक से खेलता. उसकी आंखों में खुद को देखता और भूत की तरह आंखें बनाके अपनी मां को डराता. मैं अपनी मां के मुंह पे अपना मुंह रखता और उसे कसके चूमता. कितना कुछ सोचा था मैंने मगर कुछ भी तो न हुआ. मैंने ये भी सोचा था कि अपनी मां के कन्धे से लटककर उसकी पीठ पे चढ़ जाता, फिर कहता, “मुझे घुमाओ...!”
मेरी मां जब कहीं जाती तो मैं उसके पैरों से लिपट जाता कि, “मुझे भी साथ ले चलो.” जब मेरी मां मान जाती तब मैं उसके गाल को चूमके कहता, “मेरी अच्छी मां...!”
रात को सोते वक्त मैं अपनी मां से कहानी सुनाने के लिए कहता. कहानी सुनने के बाद अपनी मां के सीने से चिपक कर सो जाता. मैं ये सब सोचता था. इसमें बुरा क्या है...?
आज ऐसा है जैसे मेरी मां मुझे जानती ही नहीं. जैसे उससे मेरा कभी कोई वास्ता ही नहीं था. सच ही तो है. मेरी मां को खुद को फिट रखना था और इसी वजह से उसने मुझे दुनिया में आने ही नहीं दिया. मैं अपनी मां के पेट में तो आया. मगर मेरी मां ने मुझे दुनिया ही नहीं देखने दी. फिर ये सब बातें होतीं कहां से...? ये सब तो तब होता जब मैं दुनिया में आता.
कैस जौनपुरी
qaisjaunpuri@gmail.com
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