कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -107- अरुणा कपूर की कहानी : मम्मी-पापा, मेरे बहुत अच्छे दोस्त!

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मम्मी-पापा, मेरे बहुत अच्छे दोस्त! (कहानी)                                                                                                ...

मम्मी-पापा, मेरे बहुत अच्छे दोस्त! (कहानी)                                                                                                                           -डा.अरुणा कपूर

संजना 11 वी कक्षा में पढ़ रही है....सांवली सलोनी संजना के चेहरे पर हंमेशा मुस्कराहट खेलती रहती है!...चाहे स्पोर्ट्स हो या स्कूल के और रंगारंग मनोरंजक कार्यक्रम हो...संजना का हिस्सा उसमें दमदार ही होता है...उसकी आवाज में ऐसी मिठास है कि लगातार पिछ्ले 2 सालों से उसके द्वारा गाए गए गीतों से ही स्कूल के हर रंगारंग कार्यक्रम की शुरुआत होती है!...उसका मिलनसार स्वभाव हर किसी पर अपनी गहरी छाप छोड़ जाता है...इसी वजह से वह स्कूल की शिक्षिकाओं से लेकर प्रिंसिपल मैडम तक सभी की प्रिय छात्रा है....और इसी मिलनसार स्वभाव के चलते उसकी सहेलियों की संख्या भी अन-गिनत है!

..लेकिन बीच में एक समय ऐसा भी आया था कि संजना अपना स्वत्व खो चुकी थी और निराशा उसके मन की गहराई तक जा चुकी थी!..उसे लगता था कि उसका अपना कोई नहीं है...कोई उसे प्यार नहीं करता!..इसी वजह से वह पढ़ाई में भी पिछड गई थी!

..वैसे संजना बचपन से ही मेधावी छात्रा रही है....उसके परिवार में ..उसके पापा–मम्मी और उससे करीबन 10 साल छोटा भाई सुजान है!...उसके पापा मल्टीनेशनल कंपनी में इंजिनियर है और ज्यादातर भारत और विदेशों में भी टूर पर जाते रहते है....मम्मी भी सरकारी हॉस्पिटल में नर्स है...वह भी बहुत सा समय हॉस्पिटल में ही गुजारती है...घर में एक खाना बनाने के लिए बुजुर्ग महिला को रखा गया है, उसका नाम शोभाबाई है!...जो दिन भर घर पर ही रहती है...दोनों समय खाना बनाती है...दिन भर संजना के छोटे भाई को भी संभालती है और रात को अपने घर चली जाती है!...वैसे यह एक सुखी परिवार है!

...पहले संजना के दादा-दादी जीवित थे और इसी घर में रहते थे!..तब संजना बहुत खुश रहती थी...उसे पढ़ाई में भी दादाजी की मदद मिल जाती थी !..दादी के हाथ का बना लजीज खाना तो संजना को इतना प्रिय था कि वह अपनी सहेलियों को भी खाना खाने के लिए अपने यहाँ आमंत्रित करती रहती थी!...उसका बर्थ डे हो या कोई त्यौहार हो.....सजावट का जिम्मा दादा-दादी ही उठाते थे...और फिर स्वादिष्ट पकवान तो दादी ही बनाती थी...बड़े मजे से दिन गुजर रहे थे...संजना अब तक 7 वी कक्षामें पहुँच गई थी...उसे मम्मी-पापा के पास के समय की कमी कभी खलती नहीं थी..मम्मी-पापा भी बे-फिकर थे और अपने अपने काम में व्यस्त रहते थे...अब संजना के पापा ने बड़ा फ़्लैट खरीद लिया था और नई कार भी दरवाजे पर आ चुकी थी...संजना के लिए किसी भी चीज की कोई कमी नहीं थी!...लेकिन एक दिन अचानक ही एक रात संजना के दादाजी को दिल का दौरा पड़ गया...उस समय संजना के पापा काम के सिलसिले में टूर पर लंदन गए हुए थे...मम्मी घर पर ही थी...तुरंत वह उन्हें हॉस्पिटल ले गई..लेकिन देर हो चुकी थी...ईश्वर की करनी ही थी कि हॉस्पिटल पहुँचने से पहले ही संजना के दादाजी का देहांत हो गया!..घर में मातम छा गया!..दूसरे दिन संजना के पापा भी घर पहुँच गए..लेकिन दादाजी के पार्थिव शरीर को अग्नि देने ही पहुंचे थे!...सभी का रो रो कर बुरा हाल था!..संजना की दादी की तबीयत ऐसे में और ही खराब हो गई थी!

....दिन गुजरते गए और दादी की तबीयत और खराब होती गई...अब वह बिस्तर पर ही थी...संजना को पहले ही दादाजी के जाने का दु:ख था...वह अब समझ चुकी थी कि मृत्यु का दुःख कितना कष्ट-दायक होता है!...12 साल की संजना अब काफी समझदार हो चुकी थी...वह दादी के सिरहाने बैठ कर अपने स्कूल का दिया गया होम वर्क करती रहती थी...अब वह सहेलियों के साथ कम ही खेलने जाया करती थी..उसका बर्थ डे भी इस साल नहीं मनाया गया....दादी तो बिस्तर से उठने में असमर्थ थी!...और एक दिन दादी भी चल बसी!

...संजना उस दिन बहुत रोई!..उसके मम्मी-पाया ने उसे बहुत समझाने की कोशिश की कि यह तो सृष्टि का नियम है....जो जन्म लेता है, उसके लिए मृत्यु का घटित होना भी निश्चित ही है!...जन्म का होना सुखदाई है तो मृत्यु का होना दु:खदाई है!...संजना को यह भी समझाया गया कि दादाजी के दादा-दादी भी तो मृत्यु को प्राप्त हुए थे...प्रियजन का बिछडना सहन करना ही पड़ता है!...यह जीवन का शाश्वत सत्य है...

...संजना की समझ में कुछ बाते आ गई और कुछ नहीं भी आई...वह अब उदास रहने लगी थी!...पहले छोटे भाई के साथ खेलती थी लेकिन अब उसकी तरफ भी ध्यान देना संजना ने बंद कर दिया था...उसका पढ़ाई से भी मन हटने लगा था..जैसे तैसे उसने परीक्षा की तैयारी कर ली..लेकिन पहले की तरह अच्छे नंबरों से पास होने में नाकामियाब रही!...इस पर उसे मम्मी-पापा ने खूब डांटा...बेचारी संजना!...तकिये में मुंह छिपा कर बहुत रोई!...अब संजना के लिए अच्छे से ट्यूटर का इंतजाम किया गया..वह अब 9 वी कक्षा की छात्रा थी!..उसकी उम्र अब 14 साल की थी!

...संजना की अब कोई सहेली नहीं थी!...वह बस स्कूल से घर.. और घर से स्कूल आती जाती थी...स्कूल की अन्य प्रवृत्तिओं में रस लेना भी उसने अब बंद कर दिया था!....उसका गाने का शौक और ड्राइंग पेंटिंग का शौक भी उससे दूर जा चुका था!...पहले वह बातूनी लड़की गिनी जाती थी, लेकिन अब चुप रह कर टुकर, टुकर इधर उधर देखना ही उसकी पहचान रह गई थी!..स्कूल में भी अब वह अपनी अलग पहचान खो चुकी थी!

...और एक दिन उसके यहाँ खाना बनाने वाली ’शोभाबाई’ ने खाना परोसते हुए बड़े प्यार से उससे बातचीत की...

“ संजू बेबी...आप खाना बहुत कम खाती हो...क्या मेरा बनाया खाना पसंद नहीं आता आपको?”

“ नहीं शोभाबाई..आप बहुत अच्छा खाना बनाती हो..लेकिन मुझे भूख कम लगती है इसलिए कम खाना खाती हूँ!”..संजना ने छोटासा जवाब दिया!

“...अरे भाई!...पढ़ाई करने वाले बच्चों को तो खूब पेट भर के खाना खाना चाहिए...सेहत ठीक रहेगी तो पढ़ाई अच्छी होगी न?...चलो!...एक गरमा गरम रोटी और लों..” संजना के मना करने के बावजूद शोभाबाई ने एक रोटी उसकी प्लेट में सरका दी...

...जैसे तैसे संजना ने रोटी खा ली..तो शोभाबाई ने खूब सारा सूजी का हलवा...देसी घी में बना हुआ...संजना को परोस दिया...संजना को वह भी खाना पड़ गया!...और इस तरह से रोज ही होने लगा!..संजना का मन अब खाने की चीजों में रमने लगा!...वह नई नई फरमाइशे कर के शोभाबाई से चटपटी चीजें और पकवान बनवाने लगी और खाने लगी!...वह और कोई काम करती नहीं थी...कोई एक्सरसाइज भी करती नहीं थी....इस वजह से धीरे धीरे उसका वजन बढ़ने लगा और वह मोटी होने लगी!

...स्कूल में उसके क्लास की कुछ लड़कियों ने उसे ‘मुटल्ली’ कहकर पुकारा तो उसे शर्म आ गई और पता चला कि वह वाकई में बहुत मोटी दिखने लगी है...और एक दिन उसकी मम्मी ने भी यही बात कही कि..

” संजू...तुम अपना ध्यान क्यों नहीं रख रही?...कितनी मोटी होती जा रही हो...!”

“ मम्मी...अब रखूँगी...मुझे भी ‘मुटल्ली’ कहलवाना पसंद नहीं है!”

..संजना ने अब कोशिश की कि अब खाने की मात्रा पर कंट्रोल किया जाए...लेकिन मुंह का स्वाद ऐसा होने नहीं दे रहा था! एक दिन संजना की तबीयत खराब हो गई और उसे उल्टियां आ गई!...दूसरे दिन वह ठीक तो हो गई लेकिन उसे पता चल गया कि ज्यादा खाना खा कर उल्टी करने से खाना बाहर निकल जाता है!..संजना अब ऐसा ही करने लगी...पहले ठूंस ठूंस कर खाना खाती थी और फिर मुंह में उंगली डाल कर उल्टी कर के उसे बाहर निकाल देती थी!

.....उसकी मम्मी से यह छिपा न रह सका..मम्मी ने उसे बहुत भलाबुरा कहा और जब पापाने यह बात सुनी तो उन्होंने संजना के गाल पर थप्पड़ जमाया!..तब संजना को बहुत बुरा लगा...

...लेकिन पापाने तुरंत “सौरी” बोल कर उसे गले लगाया और मम्मी ने भी उसे प्यार से गले लगाया!..दोनों को लगा कि संजना की ऐसी हालत के पीछे कुछ गलतियाँ उनकी भी है!...संजना अब बड़ी हो गई है ..बच्ची नहीं है !...दूसरे ही दिन संजना की मम्मी उसे अपने हॉस्पिटल ले गई...वहाँ उसने उसे मनोचिकित्सक डॉ.गुप्ता से मिलवाया और संजना के बारे में सबकुछ बताया!

“ संजू बिटिया...आप की मम्मी ठीक कह रही है न?” डॉक्टर ने संजना से बातचीत शुरू की!

“ जी डॉक्टर अंकल...” संजना ने हामी भरी...उसे शर्म भी आ रही थी!

“ तुम पहले जैसी पतली होना चाहती हो..और खाने पर कंट्रोल भी नहीं कर पा रही क्यों?”

“...तो एक काम करो...अपनी किसी सहेली के साथ शाम के समय बैड-मिन्टन खेलना शुरू कर दो और मैं एक चार्ट बना कर तुम्हे दे रहा हूँ...तुम वही चीजें ..उसी समय...उतने ही प्रमाणमें खाओगी...गले में उगलियाँ डाल कर उल्टियां करना बिलकुल बंद करना पडेगा!” डॉक्टर ने कहा और फिर संजना की मम्मी को संबोधित करते हुए बोले...

“...मिसेज् शर्मा!...आप को ध्यान रखना पडेगा कि संजना मेरे कहे अनुसार चल रही है...अगर आप उसके साथ शाम के समय बैड-मिन्टन खेल सकती है तो और अच्छा रहेगा...यही एक्सरसाइज फिल-हाल इसके लिए अच्छी है!....दरअसल बात यह है कि पहले दादा-दादी इसे अपनत्व और प्यार दे रहे थे...उनके जाने के बाद यह अपने आप को अकेला महसूस कर रही है...उनकी कमी पूरी करने की यह भरसक कोशिश कर रही है...शोभाबाई का कहना वह झट से मान गई..क्यों कि उसे लगा कि वह उससे बहुत प्यार करती है और इसी वजह से खाना भी प्यार से खिला रही है...तो अब जो हो गया उसे भूल जाइए और अपनी बिटिया को स्वस्थ होने में उसकी मदद कीजिए!...कभी कभी आप अपने हाथ का बना खाना इसे प्यार से खिलाइए!...जितना भी हो सके आप और इसके पापा इसके नजदीक रहने की कोशिश कीजिए...!देखिए...प्यार सिर्फ आप के मन में है; तो बच्चे इसे समझ नहीं पाते ...प्यार की अभिव्यक्ति भी बेहद जरूरी है!”...कहते हुए डॉक्टर साहब ने और भी कुछ हिदायतें संजना की मम्मी को दी!

“...जी डॉक्टर साहब! मैं संजू का पूरा ध्यान रखूँगी!...” संजना की मम्मी का गला भर आया था!

..इसके बाद संजना की मम्मी और पापा....दोनों ने अपनी अपनी व्यस्तताओं के बावजूद उसका पूरा ध्यान रखा!...उसे भरपूर प्यार दिया!...अब संजना अपने छोटे भाई से भी बहुत प्यार से पेश आने लगी!...उसकी खान पान की आदतों में सुधार होता चला गया...वह 10 वी के बोर्ड के पेपरों में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुई!...और अब 11 वी कक्षा में है!

....हाँ!...अब वह ‘मुटल्ली’ नहीं है...उसके सांवले चेहरे पर भी एक आत्मविश्वास की झलक है...एक मनोहारी चमक है...जो उसके मम्मी-पापा के प्यार के बदौलत है...अब वे उसके सिर्फ मम्मी-पापा ही नही बल्कि अच्छे फ्रैंड भी है!

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रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -107- अरुणा कपूर की कहानी : मम्मी-पापा, मेरे बहुत अच्छे दोस्त!
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -107- अरुणा कपूर की कहानी : मम्मी-पापा, मेरे बहुत अच्छे दोस्त!
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