कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -104- संतोष भाऊवाला की कहानी : आँगन का पेड़

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कहानी आँगन का पेड़     संतोष भाऊवाला      पलक उठो, देखो सूरज चढ़ आया सर पर, नहीं माँ थोड़ी देर और सोने दो ना, क्यों बेटा; रोज तो जल्दी उ...

कहानी

आँगन का पेड़    

संतोष भाऊवाला    

पलक उठो, देखो सूरज चढ़ आया सर पर,
नहीं माँ थोड़ी देर और सोने दो ना,


क्यों बेटा; रोज तो जल्दी उठ कर बरामदे में कोयल के साथ कूहू कूहू करती थी, इन दिनों आवाज भी सुनाई नहीं दी, पहले रोज पानी देती थी। घंटों पेड़ के साथ बैठ कर बातें करती थी, जैसे दो सहेलियां करती हो, इसीलिए रोज स्कूल जाने में तुम्हें देर भी हो जाती थी, तुम्हारे पापा कह रहे थे कि आजकल रोज ही देर से उठने लगी हो।
"जब तुम इलाहाबाद गई थी ना, तब कुछ लोग आये ओर पेड़ काट कर चले गये, पेड़ भी गया और कोयल भी नहीं आती, पहले कोयल रोज आकर बैठती थी, लेकिन अब कहाँ आएगी" बोल कर पलक वापस सो गई।


माँ का ध्यान उस तरफ गया ही नहीं था, कल ही तो वापस आयी थी आगरा से, अत्यंत थक गई थी और फिर इतने दिनों का ढेर सारा काम फैला हुआ, जिसे सँभालने में कब एक दिन बीत गया, पता नहीं चला, बाहर की ओर झाँका ही नहीं, पता लगा कि सरकार की तरफ से सड़क को चौड़ी करने के लिये आये लोगो ने पेड़ साफ़ कर दिया था


माँ ने कहा कोई बात नहीं पलक, अंतरजाल पर कितनी सुंदर सुंदर फोटो दिखती है देख लो, और आवाज भी सुन सकती हो, सुन कर पलक खुश हो गई और कम्प्यूटर चालू करके देखने लगी। इस तरह कुछ दिन उसे अच्छा लगा, पर जल्दी ही उकताहट होने लगी।


माँ समझ गई  ..प्राकृतिक सौन्दर्य में जो खिंचाव है वो आज की मशीनी चीजों में कहाँ ....


दूसरे दिन माँ बाजार से एक छोटा सा पौधा ले आयी और पलक को थमाती हुई बोली कि आओ इस पौधे को अपने घर के पिछवाड़े की जमीन में लगाये जिससे कोई भी इसे काट नहीं सकेगा, रोज सुबह इसमें पानी देना और इससे बातें करना, कुछ दिनों में ये बड़ा हो जायेगा तब फिर से इस पर कोयल आने लगेगी।


अब पलक नित्य भोर में उठ कर पौधे में पानी डालती और पौधे के बड़े होने का इंतज़ार करती, लेकिन देखती, बड़ा हुआ ही नहीं, कोयल के आने की बाट जोहती, बच्चों में धीरज कहाँ होता है उन्हें तो कोई भी चीज मन में आते ही सामने चाहिए होती है। धीरे धीरे वह निराश हो गई, अब वह पिछवाड़े की जगह में  कम जाने लगी ,धीरे धीरे उस ओर से ध्यान हटता चला गया, ऊपर से पढ़ाई का दवाब ज्यादा होने से स्मृति के किसी गहरे तल में यह बात चली गई थी। अब घर से स्कूल और स्कूल से घर, फिर पढ़ाई, सोना, जीवन जैसे मशीन हो चला था, कुछ कर दिखाने की धुन सवार, साल बीत गये ,उधर पौधा पेड़ बन कर अपनी जड़ें जमीन में जमा चुका था। भांति भांति के पंछी अपना नीड़ बनाने लगे थे लेकिन पलक को समय ही नहीं था कि उस तरफ देखे, परीक्षाएं नजदीक थी दिन रात पढ़ाई और पढ़ाई।


आज कालेज की तरफ से सभी को पास के वन विभाग की ओर से वन में ले जाया जा रहा था। दो दिन का कार्यक्रम था, इसीलिए तड़के ही उठ गई थी, वह जल्दी जल्दी तैयार होकर कालेज गई। बहुत उत्साहित थी। पूरे दो दिन का समय था उसके पास, जब वो आकाश के करीब रह सकती थी, उसे अपने मन की बात बता सकती थी।
पलक और आकाश अच्छे दोस्त थे लेकिन पलक के दिल के नाजुक से किसी कोने में आकाश अपनी जगह बना चूका था। मन ही मन चाहने लगी थी। उधर आकाश के मन में ऐसा कुछ न था। पलक का दिल हरदम चाहता... आकाश के इर्द गिर्द रहना, पर आकाश हाय बोल कर चला जाता और वह कुछ भी नहीं कह पाती थी। इसी तरह दिन बीतते गये, दोनों तीन साल से साथ पढ़ाई कर रहे थे, इस छोटी सी यात्रा के कुछ दिन बाद परीक्षाएं सर पर थी। फिर कोलेज की कुछ दिनों की छुट्टी। सभी अपने अपने घर, रिश्तेदारों और पर्यटन की ओर लपक लेंगे। इसीलिए पलक को परीक्षा से ज्यादा चिंता आकाश से न मिलने की सता रही थी।

उस दिन यात्रा का आखिरी दिन था। पलक की आँखों में नींद न थी, तड़के उठ कर टहलने निकल गई। कुछ दूर गई ही थी कि कुछ आवाज सुनाई दी उसे, देखा तो पता चला कि वह अपने ख़्वाबों की दुनिया में विचरते हुए दूर निकल आई, वापस जाने को जैसे ही कदम उठाया, फिर से वे आवाजें आने लगी, कुछ जानी पहचानी सी,लगने लगा जैसे लावा बह रहा है उसके अंदर, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह क्या हो रहा है उसके साथ, इन आवाजों को सुनकर क्यों इतनी उद्वेलित हो गई। इसी कशमकश में कदम अपने आप उस दिशा में सरकने लगे, देखा कुछ लोग धीरे धीरे पेड़ काट रहे हैं शायद चोरी चोरी, उसे कुछ समझ में नहीं आया कि कैसे रोके उनको, वे लोग चार थे और वह अकेली। बचपन में जब पेड़ कटा था तब वह कुछ भी नहीं कर पायी थी, बहुत छोटी थी। कितनी अकेली हो गई थी। अब ये वन अकेला हो जायेगा। मानो वन चीत्कार कर रहा है मुझे मत काटो, मत काटो, दर्द मुझे भी दर्द होता है। उसे लगा जैसे वन उससे सहायता मांग रहा है। अगल बगल देख, खुद को संभाल कर, अपनी समस्त उर्जा को इकट्टा कर दौड़ कर वन अधिकारी तक पहुंची और उन्हें इतला किया। कार्यवाई तुरंत हो गई। वे लोग पकड़े गये। सभी ने पलक को बहुत शाबाशी दी।

आज बरसों पहले का बोझ शायद उतर गया था। उसे लगा जैसे उसका वह पेड़ उसके आँगन में फिर से लौट आया है उसके कानो में कोयल की कुहू कुहू गूंजने लगी। घर और पेड़ याद आ रहा था, लग रहा था कि पंख लगा कर उड़ कर पहुँच जाये पर समय जैसे थम सा गया था। आज वह बहुत खुश थी, ख़ुशी जाहिर करने जा ही रही थी कि देखा उधर कोने में आकाश सिगरेट सुलगाये बड़े मजे से कश खींच रहा है। उसे काटो तो खून नहीं, इसे कब से ये लत पड़ गई। जाकर उसने उसे खूब जोर से डांटा पर आकाश ने यह बात हवा में उड़ा दी, कहने लगा आजकल सभी लड़के पीते है सिगरेट, अब ये स्टेटस सिम्बल है और उसे खुद के काम से काम रखने को कह कर चला गया।


अभी पेड़ न काटने की ख़ुशी मना भी नहीं पायी थी कि ये आघात लगा उसे, मन ही मन इसके अंजाम के बारे में सोच कर घबरा गई।  कल ही तो अखबार में पढ़ा था ........


"बीडी के कारण केंसर की चपेट में आये एक श्रमिक की जान बचाने के लिये उसका वाइश बॉक्स निकलना पड़ा, जिससे उसकी आवाज चली गई और वह सर्जरी के बाद गले में हुए छिद्र से सांस लेने को और खाना नाक से खाने को मजबूर हो गया।"
   

उसे लगा जैसे पास ही कुदाल की ठक ठक व् मशीन से, लकडियाँ न कट कर आकाश की साँसों की डोर कट रही है। बरसों पहले भी एक बार वह अकेली हो गई थी। कहीं फिर से न हो जाए, क्यों कि आकाश ही था जिसने उसके दिल के इस खाली कोने को भरा था, अपनी शहद सी मीठी बातों से, कमरे तक आयी और दरवाजा बंद कर फूट फूट कर रोने लगी, कुछ देर बाद शांत हुई और खुद को संभाला और सोचने लगी, वह इतना नकारात्मक क्यों सोचने लगी। अभी तो शुरुआत है अगर उसे संभाला जाये तो संभल जायेगा। हाँ, समय जरूर लगेगा, लेकिन नामुमकिन नहीं है। पर क्या वह छुड़ा पाएगी उसकी यह आदत, वह तो कुछ सुनना ही नहीं चाहता, क्या करेगी, कैसे छुड़ाएगी, उसके मन में बस एक संकल्प था। मंजिल तो तय कर ली थी पर राह अनजान थी।
दूसरे दिन कालेज में जब आकाश दोस्तों में उलझा था तभी मौका देख कर उसने एक फोटो उसकी किताब में रख दी, जिसे वह इंटर नेट से प्रिंट निकाल कर लायी थी। थोड़ी देर बाद जब आकाश आया और उसने अपनी किताब खोली तो वह फोटो दिखी। अगल बगल देखा... किसने रखी होगी ऐसी फोटो?पर समझ में नहीं आया तो  उसे फाड़ कर फेंक दिया और माथा झटक कर चला गया दोस्तों में ...


कुछ दिन ये सिलसिला ऐसे ही चलता गया। अब उसे गुस्सा आने लगा था कि ये रोज रोज उसकी किताब में इतनी भयभीत करने वाली, दिल दहलाने वाली फोटो कौन रख रहा है। आज उसने पता लगाने की ठान ली थी। छुप कर देखा तो पता लगा कि वह पलक है! जाकर पलक को खूब खरीखोटी सुनाई,सभी के सामने दोस्ती तोड़ दी। पलक रोते रोते घर आयी, जितना दुःख उसे दोस्ती टूटने का न था उतना वह अपने इरादे में कामयाब न हो पायी थी उसका था। आज उसे अपना वह पेड़ बहुत याद आ रहा था, पिछवाड़े गई, देखा, पेड़ बड़ा हो गया है। छाँव देता हुआ लहरा रहा है। मानो उसे अपने आगोश में बुला रहा है। पेड़ के नीचे बैठ गई, अजीब सी शान्ति का अहसास हुआ, जैसे समझा रहा हो, तुमने अपनी कोशिश की, कोशिश कभी जाया नहीं होती। एक दिन फल अवश्य ही मिलेगा।


आज सुबह उठ कर सबसे पहले उसने पेड़ को मुस्कराहट के साथ देखा जैसे बचपन की दो सहेलियां बिछड़ कर फिर से मिली हो। कुछ दिनों के लिये छुटियाँ भी हो गई थी। अब पलक हर रोज पहले के जैसे सुबह पेड़ में पानी देती, उससे बातें करती। उधर आकाश के दिलों दिमाग पर फोटो ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। जब भी हाथ में सिगरेट लेता, उसे वो भयानक चेहरे नजर आने लगते, उनमें खुद का चेहरा दीखता और डर के मारे सिगरेट हाथ से छूट जाती।


जैसे जैसे सिगरेट की आदत छूटती जा रही थी, वैसे वैसे उसे पलक की याद सताने लगी थी, उसका महत्त्व समझ में आने लगा था। अब उन दोस्तों की संगत भी भाती नहीं थी। उसका मन भी पलक के इर्द गिर्द रहने को मचलने लगा था। कालेज खुलने में दो दिन बाकी थे पर उससे सब्र न हो रहा था। आज सुबह जल्दी वह पलक के घर पहुँच गया। देखा पलक वहीँ पेड़ के नीचे झूले में बैठी कोई किताब पढ़ रही थी। दोस्ती का हाथ जैसे ही बढ़ाया, पेड़ की एक डाली उसके हाथ में आ गई , मानो पेड़ भी उससे दोस्ती करना चाह रहा था और दोनों जोर से हंस कर पेड़ पर हाथ फेर कर झुला झूलने लगे।

संतोष भाऊवाला

COMMENTS

BLOGGER: 4
  1. श्रीमती संतोष भाउवाला की कहानी पेड और पलक बहुत पसन्द आई विशेष कर यह पर्यावरण और सिगरेट दो प्रासंगिक और महत्वपूर्ण
    समस्याओंं को लेकर कौशल पूर्वक बुनी गई है । ऐसी कहानियां
    रचनात्मक प्रेरणा देनेवाली होती हैं और उनका स्वगत होना चाहिए ।
    सत्य्नारायण शर्मा ’ कमल ’ -ahutee@gmail.com

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  2. sntosh ji ki khani dono smsyaon ko ghnta se sochne ke liye badhy krti hai.aaj ka jiivnjo tras v sntras men jhool rha hai,uske do phluon ki sundr tsvir hai'aangn ka ped' dr.pranava bharti

    जवाब देंहटाएं
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आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र 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रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -104- संतोष भाऊवाला की कहानी : आँगन का पेड़
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -104- संतोष भाऊवाला की कहानी : आँगन का पेड़
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