कहानी ‘‘गुरू भक्ति'' विनय भारत सरल, सहज और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान बनाए रखते तो ऐसा लगता कि जैसे सामना ईश्वर से हुआ हो.......
कहानी
‘‘गुरू भक्ति''
विनय भारत
सरल, सहज और चेहरे पर हल्की सी मुस्कान बनाए रखते तो ऐसा लगता कि जैसे सामना ईश्वर से हुआ हो........... ऐसी वेशभूषा के धनी थे ........ राजेश जी।
राजेश जी का जीवन भगवान राम के आदर्शों को समर्पित था। उन्हें देखकर कोई कह भी नहीं सकता था कि वे गृहस्थ जीवन व्यतीत कर रहे थे। राजेश जी की दिनचर्या भी उनकी तरह सादा जीवन उच्च विचारों से परिपूर्ण थी। प्रातःकाल चार बजे उठकर भ्रमण करना, इसके पश्चात् व्यायाम करना तथा अल्पाहार कर ऑफिस जाना उनकी कार्यशैली का प्रारंभिक भाग था। राजेश जी अध्यापन का कार्य करते थे। प्रारंभ से ही अध्यापक बनने तथा बच्चों को पढ़ाने में उनकी विशेष रूचि थी।
उनके पढ़ाए हुए बच्चों में से कोई आई.ए.एस. तो कोई आई.पी.एस. बन चुका था, लेकिन राजेश जी इस बात से अनभिज्ञ रहते थे। जब भी कोई मिठाई का डिब्बा लाता तो पता चलता कि उनका शिष्य कहाँ सफल हुआ है। तीस वर्ष के राजेश जी को कोई कार्य कठिन नहीं लगता था। युवा तथा सरल स्वभाव के राजेश जी से बच्चों को पढ़ने के लिये बहुत मिन्नतें करनी पड़ती है। राजेश जी की कक्षा में स्थान हमेशा भरे रहते थे और सैकड़ों की संख्या में एप्लिकेशन्स बॉक्स में लटकी रहती थी, हो भी क्यों न, राजेश जी पढ़ाते ही इतना अच्छा थे कि बच्चे भूलने का नाम ही ना ले। राजेश जी की मुस्कान के छात्र ऐसे दीवाने हो चले थे जैसे कृष्ण की बंशी की दीवानी गोपियाँ, लड़कों का ये हाल था जैसे राम के बिना हनुमान, अब लड़कियों की तो वे ही जाने।
लेकिन नेक ईमानदार राजेश जी को देखकर तो ऐसा लगता था मानो भगवान राम फिर से पृथ्वी पर अवतरित हुए हैं,
उनके चेहरे का तेज और प्यारी सी मुस्कान दूर से ही मोहित कर लेती थी।
राजेश जी को प्रायः पैदल ही घूमना पसंद था, लेकिन समय की पाबंदी के चलते उन्हें वाहन से ही आना-जाना पड़ता था।
चलिए, नमोनमः कहते हुए राजेश जी ने कक्षा समाप्त की।
नमो नमः सर, अचानक आई आवाज को सुनकर राजेश जी ने पीछे मुड़कर देखा तो दो पुलिस वाले खड़े थे।
उन्हें देखकर राजेश जी को आश्चर्य हुआ।
जी....कहिये, राजेश जी ने उन्हें देखकर कहा।
आपको कलैक्टर साहब ने बुलाया है, दोनों में से एक हवलदार ने जवाब दिया।
लेकिन.........क्यों राजेश जी को सुनते ही धक्का सा लगा।
हवलदार : पता नहीं, बस आपको बुलाया है।
राजेश जी : मैंने तो कोई अपराध नहीं किया।
हवलदार : बस कलैक्टर साहब के पास आपकी एक तस्वीर थी, जिसे वे गौर से देख रहे थे, फोन पर भी आपके बारे में बातें हुई थी, फिर आपको लाने का आदेश दिया।
चलिये.........चलते हैं, घबराकर राजेश जी ने जवाब दिया।
राजेश जी दोनों हवलदारों के साथ गाड़ी में बैठे और गाड़ी रवाना हुई।
ऑफिस में हंगामा मचा हुआ था, लोग तरह-तरह की बातें कर रहे थे। कोई कुछ कह रहा था और कोई कुछ। अजीब सा वातावरण छा गया था, लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि ये व्यक्ति कोई अपराध कर सकता है, लेकिन कोई भी जवाब नहीं दे पा रहा था। विद्यार्थियों ने मिलकर राजेश जी के समर्थन में जुलूस निकालने का निर्णय ले लिया और सभी तैयारी करने लगे।
जीप सीधी आकर कलैक्टर निवास पर रूकी। दोनों हवलदार राजेश जी सहित जीप से नीचे उतरे, सभी लोगों की भीड़ जमा हो गई।
राजेश जी अंदर पहुंचे ही थे कि आठ-दस पुलिस वाले उनके साथ हो लिये, जैस या तो कोई मोस्ट वांटेड़ मुजरिम हो या कोई नेता, जिनकी सुरक्षा हेतु पुलिस चल रही थी। कलैक्टर साहब तक सूचना पहुंच चुकी थी और उनके आदेशानुसार राजेश जी को मुख्य द्वार पर ही रोका गया। कलैक्टर साहब उनसे वहीं मिलने आ रहे थे।
किसी ने जाकर मीडियाकर्मियों को सूचना दे दी थी अतः प्रेसकर्मियों की भीड़ सी लग चुकी थी और राजेश जी से प्रश्न पर प्रश्न पूछे जाने लगे थे।
कलैक्टर साहब नये-नये आये थे और आते ही उन्होंने राजेश जी को बुलवाया था।
अचानक कुछ लोग कलैक्टर निवास से निकलकर आते हैं।
नमोः नमः सर, कहते हुए एक व्यक्ति चरण पकड़ता है।
अरे, भारत तुम......... तुम यहाँ क्या कर रहे हो .? राजेश जी बड़े आश्चर्य से देखते हैं।
भारत : बस किसी काम से कलैक्टर साहब के पास आया था, पर आप यहाँ कैसे.?
राजेश जी : मुझे यहाँ कलैक्टर साहब ने बुलाया है।
भारत : पर क्यों...? कलैक्टर की इतनी हिम्मत जो आपको बुलाया...... मैं अभी जाकर बात करता हूँ।
राजेश जी : नहीं.......नहीं, वैसे ही कोई काम होगा उनको।
भारत : लेकिन खुद भी तो आ सकते थे, उन्होंने समझ क्या रखा है।
राजेश जी : मैं ठहरा मामूली अध्यापक और वे ठहरे कलैक्टर.......।
भारत : अपने आप को मामूली कहकर मुझे शर्मिंदा न करें सर, आपने ही बहुत से लोगों को कलैक्टर या डॉक्टर बनाया।
भारत की आँखों से आँसू की धारा बहने लगती है और भारत राजेश जी के चरणों में गिर जाता है।
राजेश जी : उठो, अब बताओ, कहाँ रहते हो।
भारत : कलैक्टर साहब मेरे मित्र हैं, उन्हीं के साथ रहता हूं।
राजेश जी : कलैक्टर साहब मित्रता निभा रहे हैं।
भारत : हाँ कुछ ऐसा ही समझ लीजिये.... चलिये अंदर चलते हैं।
राजेश जी : चलो, कलैक्टर साहब से मिलते हैं।
भारत : लेकिन... वो तो यहाँ हैं ही नहीं, अभी-अभी कुछ काम आ गया तो चले गये। चलिये अंदर चलते हैं, कुछ प्रतीक्षा कीजिये।
राजेश जी भारत के साथ अंदर आते हैं और कुछ हवलदार भी पीछे आते हैं।
भारत : आइये बैठिये सर, क्या लेंगे, ठंडा या गर्म?
राजेश जी : बस कुछ नहीं....।
भारत : हवलदार दो कोलड्रिंक लाइये।
राजेश जी : अरे! रहने दो बेटे।
भारत : और बताइये सर, क्या कर रहे हैं वर्तमान में?
राजेश जी : बस वही, अध्ययन-अध्यापन।
तुम्हारा आदेश ये हवलदार मानते हैं?
भारत : हाँ.... कलैक्टर साहब की अनुपस्थिति में उनका निवास मेरा ही होता है।
राजेश जी : बड़े अच्छे हैं कलैक्टर साहब.....
भारत : इतनी प्रशंसा न करें उनकी, बाद में पछताऐंगे।
राजेश जी : वो क्यूं?
भारत : वो तो उनसे मिलकर ही पता चलेगा।
हवलदार : लीजिये सर ये कोलड्रिंक.....
राजेश जी और भारत कोलड्रिंक लेते हैं।
भारत : भोजन में क्या लेंगे?
राजेश जी : अरे नहीं, बस मैं तो कलैक्टर साहब से मिलने आया था।
भारत : वो पता नहीं कब आयें, तब तक आप भोजन कीजिये।
भारत हवलदार से : दो थाली भोजन लगवाइये और वो भी किसी फाइव स्टार से शुद्ध शाकाहारी।
हवलदार : जी सर.....।
हवलदार भोजन लाता है, राजेश जी और भारत भोजन कर उठते हैं।
राजेश जी : अभी तक कलैक्टर साहब नहीं आये।
भारत : कलैक्टर साहब को आने में समय है, पता नहीं वे कब आयें।
अगर आप कहें तो, मैं आपको छोड़ आऊँ।
राजेश जी : वो नाराज हो गए तो।
भारत : ओ......, उसकी इतनी हिम्मत।
राजेश जी : चलिये मैं चलता हूँ, शाम को फिर आउंगा।
भारत : चलिये मैं आपको छोड़ आता हूँ।
राजेश जी : अरे...... तुम क्यों परेशान होते हो?
भारत : अरे, परेशानी की कोई बात नहीं......
हवलदार ड्राइवर से कहो गाड़ी निकाले।
हवलदार : जी....।
राजेश जी : गाड़ी से .......।
भारत : जी हाँ.......
राजेश जी : लेकिन, कलैक्टर साहब कुछ कहेंगे नहीं?
भारत : उनकी गाडी-मेरी गाड़ी एक ही बात है।
राजेश जी : बड़ा आश्चर्य है।
भारत और राजेश जी गाड़ी में बैठते हैं, गाड़ी सीधे राजेश जी के ऑफिस आकर रूकती है।
छात्रों की भीड़ वहाँ पहले से ही मौजूद है।
राजेश जी : ये भीड़ क्यों लगा रखी है?
छात्र : आपके समर्थन में हम जुलूस निकालना चाहते थे।
राजेश जी : क्यूं?
छात्र : कलैक्टर की इतनी हिम्मत जो आपको बुलवाये।
राजेश जी : मैंने आपको ये तो नहीं सिखाया, कलैक्टर साहब ने कुछ काम से मुझे बुलाया था।
भारत : देखिये कलैक्टर साहब की ओर से मैं आपसे माफी चाहता हूँ।
राजेश जी : चलिये, अब हटिये यहाँ से......
भारत और राजेश जी ऑफिस में आते हैं। राजेश जी आराम कुर्सी पर बैठते हैं, भारत खड़ा रहता है।
राजेश जी : बैठो भारत।
भारत : नहीं, आपके सामने मैं कैसे बैठ सकता हूँ? मैं खड़ा ही ठीक हूँ।
हवलदार : ये लीजिये पॉच सेर मिठाईयॉ.......
भारत : सर को दो।
राजेश जी : ये क्या है.....?
भारत : मेरी ओर से एक छोटी सी भेंट।
राजेश जी : लेकिन इसकी क्या जरूरत थी....?
भारत : ले लीजिये ना सर.....
राजेश जी मिठाईयॉ ले लेते हैं। अचानक हवलदार आता है।
हवलदार : सर, मंत्री जी का फोन आया है, कह रहे हैं कि कलैक्टर साहब को शीघ्र ही मीटिंग में भेजिये, आप शीघ्र चलिये अन्यथा मंत्री जी नाराज होंगे।
भारत : तुम कहना कि मैं शीघ्र आ रहा हूँ।
राजेश जी भारत को आश्चर्य से देखते हैं। भारत की नजरे नीचे झुक जाती हैं।
राजेश जी खड़े होकर भारत के पास आते हैं, उनकी आँखों से आंसू बह रहे हैं।
राजेश जी : भारत तुम...... कलैक्टर थे।
भारत की आँखों में आंसू आ जाते हैं और वह राजेश जी के चरणों में गिर जाता है।
राजेश जी : उठो भारत..... तुमने मुझे बताया क्यों नहीं?
भारत : मैं नहीं चाहता था कि आपको पद पर रहकर मिलूं और आप मुझसे एक अधिकारी समझकर बात करें, मैं आपसे शिष्य के समान ही मिलना चाहता था।
राजेश जी : आह मेरे पुत्र....... जब से खड़े हो और मैं बैठा हूँ, जबकि तुम अधिकारी हो।
भारत : शिष्य कितना ही बड़ा हो, गुरू से बड़ा नहीं हो सकता।
राजेश की आँखों से अश्रुधारा बहने लगती है और वे भारत को गले से लगा लेते हैं।
वहाँ उपस्थित सभी छात्र भी उस गुरू शिष्य मिलन को देखकर रो देते हैं।
राजेश जी रोते हैं और भारत भी उनके आंसू पोंछते हुए रोता है।
वात्सल्य की लालिमा चारों ओर दिखाई पड़ती है।
भारत : अच्छा, चलता हूँ।
राजेश जी : फिर कब आओगे?
भारत : जब आप कहें, अब तो आता ही रहूँगा।
राजेश जी : तुम्हारी कोलड्रिंक और भोजन फिर कब मिलेंगे?
भारत : कभी भी आइये सर, आपके स्वागत में कलैक्टर निवास खुला है।
भारत राजेश जी के चरण छूता है, और गाड़ी में बैठता है।
राजेश जी और सभी छात्र भारत को नम आँखों से विदा करते हैं,
भारत के जाते-जाते चेहरे पे मुस्कान व आँखों में आंसू छलक पड़ते हैं।
वात्सल्य की लालिमा चारों ओर दिखाई पड़ती है।
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लेखक
विनय भारत
नाम - विनय कुमार शर्मा
उपनाम - विनय भारत
पता - दशहरा मैदान, स्टेज के पीछे, गंगापुर सिटी
जिला-सवाई माधोपुर (राज0) 322201
शिष्य कितना ही बड़ा हो, गुरू से बड़ा नहीं हो सकत'
जवाब देंहटाएंअच्छा संदेश देती कहानी ।
काश! आज के छात्र भी इस बात को समझें।
वात्सल्य की लालिमा चारों ओर दिखाई पड़ती है।--कहानी से ही
जवाब देंहटाएंबधाई
vinay kumarji,
जवाब देंहटाएंReally a heart touching story. I have no words to thank you. With best wishes.
धन्यवाद
जवाब देंहटाएंये रियल कथा है राजेश जी मेरे लिए राम है
आप सभी को धन्यवाद बस आप लोगों का आशीष यूँ ही वना रहे
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