व्यंग्य लो जी ! हम भी बन गए बुद्धिजीवी · प्रमोद कुमार चमोली हमारे मित्र अनोखे लाल की गिनती शहर के बुद्धिजीवियों में होने लगी थी। वे अकस...
व्यंग्य
लो जी ! हम भी बन गए बुद्धिजीवी
· प्रमोद कुमार चमोली
हमारे मित्र अनोखे लाल की गिनती शहर के बुद्धिजीवियों में होने लगी थी। वे अकसर अखबारों में दिखने लगे थे। अब हमारा उनसे मिलना कम ही हो पाता था। लेकिन कभी मिल भी जाते तो उनकी बातों की हाईट हमारी फिजीकल हाईट से उपर होती थी। यानि उनकी बातें हमारे शरीर के सबसे उपरी भाग जिसे खोपड़ी कहते हैं, जिसमें एक अदद दिमाग भी होता है से एक दो बालिश्त ऊपर से निकल जाती थी। नतीजा हमारे पास उनकी बात की खिल्ली उड़ाने के अलावा और कोई उपाय ही नहीं बचता था। अनोखे कुछ नहीं कह पाते और पुरानी मित्रता का ख्याल कर हमें माफ कर देते। उनकी खिल्ली उड़ाना हमारी कुंठा प्रतिक्रिया थी। जो हमारी मित्र सुलभ ईर्ष्या से उपजी थी। दरअसल हम भी अपने आप को बुद्धिजीवी समझते थे पर हमें अनोखे भाई की तरह पहचान नहीं मिल पाई थी। हम शीघ्र ही वो मुकाम हासिल करना चाहते थे। जिसे पाने के लिए अनोखेलाल ने न जाने कितने पापड़ बेले थे। पर हमारा तथाकथित ज़मीर हमको अनोखे भाई की मदद लेने से रोक रहा था।
एक दिन अनोखेलाल शिष्टाचारवश हमसे सपत्नीक मिलने आ गए। फिर वही भारी भरकम बातों का दौर चला। भाभी जी साथ ही बैठी थी सो हम अपनी कुंठा उनकी खिल्ली उड़ाकर नहीं निकाल पाए। हमने उनकी तारीफों के पुल बांधने शुरू कर दिए। भैया अनोखे हमारे इस व्यवहार से भौंच्चके रह गए। पर उन्होंने अहसान उतारने के लिए हमारी तारीफ करते हुए कहा कि ‘भैया तुम जैसे लोग बहुत कम है जो बातों को समझ पाते हैं।' हमने तुरन्त ही पासा फेंक दिया कि ‘भैया एक तुम ही जो हमको समझ पाए हो। हम भी बुद्धिजीवी हैं पर हमें पहचान कहाँ मिल पाती है। इस देश में हमारे जैसे बहुत से बुद्धिजीवी बिना पहचान के जी रहें हैं।' शायद अनोखे ने हमारी दुखती रग पकड़ ली थी वे हमें कमरे से बाहर ले आए और बिना किसी हिचक के बोले ‘भैया तुम हमारे बचपन से अब पचपन तक के इकलौते सखा हो। अब हम तुम को बुद्धिजीवी बना कर ही दम लेंगे पर एक बात है कि जैसा हम कहेंगें वैसा ही आप को करना होगा। हमने तुरन्त हाँ कर दी। बस फिर क्या था हमारा ऑपरेशन बुद्धिजीवी शुरू हो गया।
हमने अनोखेलाल के कहने से अपने बाल बड़े करने शुरू कर दिए। हालाँकि हम आदतन छोटे बाल ही रखते थे। हमें बाल बड़े करने में काफी दिक्कत हो रही थी। पर हमारे बच्चे इस बात से बेहद प्रसन्न थे क्यों कि अब हम उनको बाल छोटे रखने के लिए कहने का साहस नहीं कर पाते थे। खैर कुछ ही दिनों में हमारी अच्छी खासी सूरत बड़े बड़े खिचड़ी बालों में छिप गई थी। हम शीशे के आगे खड़े होकर खुद को बुद्धिजीवी समझने लगे थे। हम अपनी इस उजड़ी सूरत को लिए अनोखे से मिले तो वे बहुत प्रसन्न हुए और बोले ‘यार तुमने पहली बाधा को पार कर लिया है। अब तुम बुद्धिजीवी लोगों के बीच बैठ सकते हो। अब तुम्हें कई दिनों तक शाम को हम बुद्धिजीवी लोगों की संगत में चाय की थड़ी पर बैठना होगा और वहाँ चाय पर खर्चा करना होगा। हमने सहर्ष हामी भर दी।
हम नित्यप्रति चाय की थड़ी पर जाकर बैठने लगे। महँगाई के इस विकट दौर में हमारी जेब में पर ये अनावश्यक भार बढ़ गया था। पर हम इस मीठे भार को बड़ी खुशी से उठा रहे थे। हम जोश में थे। महीने भर तक यही क्रम जारी रहा। हमें बुद्धिजीवी बनने की बहुत जल्दी थी। पर हम बुद्धिजीवी स्थापित नहीं हो पा रहे थे।
हमें शक होने लगा था कि कहीं अनोखेलाल हमको बना तो नहीं रहे थे। हम अपनी कुंठा को अधिक दिनों तक नहीं छिपा पाए। हमने एक दिन अनोखे से बात कर ही ली। अनोखे ने हमें धैर्य नहीं खोने की सलाह दी और कहा ‘भैया आगे आपको स्वयं ही कुछ करना होगा। आप बुद्धिजीवियों को मात्र चाय पिला कर बुद्धिजीवी नहीं बन सकते। आपको चर्चा में हिस्सा लेना होगा। 'खैर हमने ऐसा भी किया पर होता क्या हम कोई भी चर्चा शुरू करते वह स्तरहीन करार दे दी जाती।
हम निरूत्साहित हुए पर अनोखे की हौसलाफजाई हमारे लिए संजीवनी का काम कर रही थी। अब हमने बाजार जाकर कई किताबें खरीद ली। उनसे पढ़ते और चर्चा करते। अब हमारी दुकान कुछ चलने लगी पर बिक्री कुछ ज्यादा नहीं हो पाई। हमने अब नकल करके लिखना भी सीख लिया था। इधर-उधर जुगाड़ बैठा कर उसे एक स्थानीय दैनिक अखबार में छपवाना शुरू कर दिया था। अब हमारे आर्टिकल पढ़ कर जमे हुए बुद्धिजीवी हमें और अधिक मेहनत का कह कर हल्का कर देते। खैर चाय की थड़ी पर बैठ-बैठ बुद्धिजीवियों के संक्रामक कीटाणु हमारे असर करने लगे लगे थे। अब हमें खुद से बेहतर कुछ नहीं लगता है। हम जो लिखते वह ही सर्वश्रेष्ठ होता दूसरों का लिखा हमारे लिए कचरे से अधिक नहीं था।
एक दिन अनोखे ने हमें ओबलाईज करने के उद्देश्य से उनकी लिखी एक पुस्तक के विमोचन के अवसर पर पत्रवाचन करने का अवसर दिया। हमने इस मौके को पूरा-पूरा लाभ उठाया और अपने पत्र में अनोखे की कहानियों को कूड़े का ढेर साबित कर दिया । बस फिर क्या था हमारी तो चल निकली हमने स्वयं को सनकी साबित कर दिया। लोगों की नजर में हम उच्चकोटि के बुद्धिजीवी हो गए। ये अलग बात है कि उस दिन के बाद हम अपने मित्र को खो चुके हैं।
अब घंटों बुद्धिजीवी लोगों की संगत में बैठ कर अपना समय व्यतीत करते हैं। नतीजा यह है कि घर पर खटपट होने लगी। घर का कोई काम करना हमें बेकार लगता है। हमें यह भी याद नहीं है कि हमारे बच्चे कौनसी कक्षाओं में पढ़ते हैं। हमारी श्रीमती जी और बच्चे हमारे सनकीपन से बड़े परेशान हैं। पर हम पर तो बुद्धिजीवी स्थापित होने की सनक कुछ ऐसी चढ़ी है कि हमें घर परिवार तुच्छ लगने लगा। आटे,तेल और लूण की जद्दोजहद से इतर हम चर्चाओं के माध्यम से सम्पूर्ण मानवजाति के उत्थान के स्वप्निल संसार में हम स्वयं को काफी हल्का महसूस कर रहें हैं।
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प्रमोद कुमार चमोली
राधास्वामी सत्संग भवन के सामने
गली नं.-2, अम्बेडकर कॉलोनी
पुरानी शिवबाड़ी रोड
बीकानेर
मोबाइल-9414031050
behad manoranjak lagi......
जवाब देंहटाएंशुक्रिया, आभार मृदुला प्रधान जी
हटाएंkyaa baat hai ...pramod jee waah waah ....
जवाब देंहटाएंविजेंद्र शर्मा जी आभार
हटाएंhahahahahah...mazaa aa gya.ab aap hi bataayen ki in buddhijiviyon ka kya kren..???????????
जवाब देंहटाएंshukria manohar chamoli ji
हटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १८/९/१२ को चर्चा मंच पर चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका चर्चा मच पर स्वागत है |
जवाब देंहटाएंdhanywad rajesh kumari ji
हटाएंबधाई हो प्रमोद बाबू, सनकी बुद्धिजीवी बनने पर हार्दिक बधाई!!
जवाब देंहटाएंव्यंग्य की गहराई वाकई काबिल-ए-तारीफ़ है|
शुभकामनाएं|
bhai ki jai ho bahut bahut aabhar
हटाएंस्तरीय व्यंग्य पढवाया भाई साहब .कई शैर भी बीच बीच में याद आते रहे एक सुन ही लीजिए -
जवाब देंहटाएंकितनी आसानी से मशहूर किया है खुद को ,
मैं ने अपने से बड़े शख्श को गाली दी है .
जिस आदमी के दोस्त आप जैसे हों उसे दुश्मनों की ज़रुरत क्या है ?बुद्धि जीवी आपस में दोस्त नहीं होते .
ram ram bhai
http://veerubhai1947.blogspot.com/
मंगलवार, 18 सितम्बर 2012
कमर के बीच वाले भाग और पसली की हड्डियों (पर्शुका )की तकलीफें :काइरोप्रेक्टिक समाधान
कितनी आसानी से मशहूर किया है खुद को ,
हटाएंमैं ने अपने से बड़े शख्श को गाली दी है .wah !
shukria aabhar
चलिए घर में खटपट होती है तो होए, बुद्धिजीवी तो बन ही गए. बढिया व्यंग्य,
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
shukria ji
हटाएंबुध्दीजीवियों में शामिल होने पर बधाई । चाहे दोस्त दोस्त ना रहा ।
जवाब देंहटाएंshukria aasha jo glekar ji
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