कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -84- भूपिंदर सिंह की कहानी : विजयरथ

SHARE:

कहानी विजयरथ -भूपिंदर सिंह --- रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी...

कहानी

विजयरथ

-भूपिंदर सिंह

---

रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकते हैं अथवा पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. कहानी भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 है.

अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html

image

----

"रावनु रथी बिरथ रघुबीरा.. देखि बिभीषन भयउ अधीरा ....नाथ न रथ नहि तन पद त्राणा कही बिधि जितब बीर बलवाना ,......सौरज धीरज तेहि रथ चाका.. सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका....सुबह ६:४५ के करीब का समय है .

...और इस समय का नित्य-नियत सोहन बाबू का पूजाकर्म चला हुआ था जिसमे वह रामचरितमानस के विजयरथ प्रसंग का पाठ भी सालों से करते आ रहे थे .........कवच अभेद बिप्र गुर पूजा.. एहि सम बिजय उपाय न दूजा..ट्रीईईईईईईईईएन त्रीईईईईएन तभी मोबाइल पर पुरानी सी रिंग पूजा भंग करती है। मोबाइल उठा के देखते हैं और जल्दी २ अगली पंक्तियाँ पूर्ण करते हैं ....जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर।"

"जी मनोहर जी ! " -मोबाइल उठाते हुए वे बोले -"मैं नौ सवा नौ तक पहुँच जाऊंगा।"

उधर से संवाद पाकर उन्होंने मुद्रा परिवर्तित करते हुए कहा - "कोई बात नहीं मैं ऑटो से आ जाऊंगा आप गाड़ी का काम करवाइए !"

नाश्ता करके बीवी के हाथ हज़ार रूपये देते हुए बोले -" छोटे की ट्यूशन की फीस दे देना और ..."

"फीस तो चली गयी ,मैंने अपने पास से दे दी थी पर बेबी कुछ रूपये मांग रही है " -बीवी ने बात काटते हुए कहा।

"किसलिए ?" सोहनबाबू ने आश्चर्य व्यक्त किया।

" वो उसका कॉलेज का इंडिया टूर का प्रोग्राम है तो पूछ रही थी की अगर हो सके तो कुछ ...?

."चलो मैं देखता हूँ  "- कहकर सोहनबाबू शर्मिंदा सी आंखें नीची कर धीरे से चले गये।

जाकर सीधे चक्कर पर पहुंचे और  परिवहन की बस में चढ़े। हमेशा की तरह आखिरी वाली सीट पर खिड़की के साथ बैठ गये,आज कंडक्टर रोज़ से दूसरा था पूछने लगा  "कहाँ से बनाऊं?" 

खुले पैसे देते हुए उन्होंने एक नजर कंडक्टर को देखा और हमेशा की तरह पूरा ही टिकट बनवाया।

सवा घंटे के सफ़र में वे रोज़ की ही तरह कभी ऊंघते तो कभी दार्शनिक सी मुद्रा में खिड़की से झांकते रहे।

नियत स्थान पर बस को छोडकर आज भी वे बस या ऑटो की प्रतीक्षा कर रहे थे क्यूंकि मनोहर जी या कोई और आज भी उन्हें ऑफिस की ओर ले जाने वाला नहीं था जहाँ वह पिछले एक साल से जा रहे थे ,इसीलिए मनोहर जी  सुबह फोन कर रहे थे।

" नमस्ते बड़े बाबू ! आज भी ऑटो नहीं आया क्या ? अजी इनका भी कोई समय है क्या आने का ?"- चौक का पनवाड़ी सोहनबाबू को वहां ऑटो के लिए खड़ा देख बोला।

"नमस्कार जी ! आता ही होगा ...सोहनबाबू घडी ताकते हुए बोले।

" वैसे बुरा मत मानियेगा बड़े बाबू पर यहाँ बिना अपने साधन के काम न चलेगा ,कोई पुरानी कार देख लीजिये या मोटरसाइकिल " -पनवाड़ी बोला लेकिन सोहनबाबू का ध्यान अन्यत्र पाकर पुनः बोला -" मैं स्कूटर से भिजवा दूं क्या ?" 

"कोई बात नहीं ऑटो आता ही होगा" और वे पुनः चौक के दूर वाले मोड़ को तकने लगे।

सामने सूरज अब तपने लगा था सोहनबाबू ज़रा हटकर हलवाई की दुकान के सामने के शीशम की तंग सी छांह के तले खड़े हो गए जहाँ पहले से ही ५-६ लोग ऑटो की प्रतीक्षा में हमेशा की ही तरह खड़े थे।

लगभग दस मिनट वहां कभी इस कभी उस टांग पर खड़े रहे ,कुछ लोगों ने तो गुज़रते हुए वाहनों को हाथ दे कर लिफ्ट माँगना शुरू कर दिया क्यूंकि आज शायद ऑटो वाले मण्डी की सवारियां ढ़ो रहे थे। सप्ताह में बृहस्पतिवार को मण्डी भरती और अधिकतर ऑटो वाले वहीँ इकट्ठे होते।

तभी पीछे से हलवाई के नौकर ने पानी छिडकना शुरू कर दिया।

" बाऊ जी सफाई करने दो आप ज़रा हट के खड़े हो जाओ " - हाथ में मग से और पानी फेंकते हुए वो बोला।

सोहनबाबू और न रुके , न लिफ्ट के लिए ही मुडकर देखा और मई की धूप की ताड़ना झेलते पैदल ही चल पड़े। पसीना उनकी कनौतियो की सफेदी से होता हुआ बह रहा था। कुछ और आगे चलकर रुके , कंधे से झोला उतारा और बोतल से पानी पिया और वापस चल पड़े ८ किलोमीटर की दूरी का आँखों देखा हाल पूछने।

रास्ते में कई परिचित गाड़ियाँ अपरिचित हो गुजरी...और सोहनबाबू भी तना सर और झुकी दृष्टि से सबको अनदेखा कर चलते रहे।

अब तो कमीज़ भी उनके बदन से चिपक चुकी थी पसीना तार-तार उनके शरीर से बह रहा थे और वो ऑफिस के पड़ोस वाले सुनसान के  काफी समीप पहुँच चुके थे।

झोले को और खींच के टांगा और सजग क़दमों से चलते रहे। कोई पचास-पचपन मिनट और चलकर सोहनबाबू अब ऑफिस की ओर जाती सीधी सड़क के आखिरी मोड़ तक पहुँच गये ,यहाँ से उनके ऑफिस का गेट कोई एक किलोमीटर होगा। आगे बढ़ते हुए उन्हें  चौकीदार छोटे से कद का नजर आ रहा था जो शायद बीडी पी रहा था इसी बीच वो तमाम दुकानें और घर थे जो ऑफिस के पड़ोस के क्षेत्र में स्थित थे। ये एक छोटा सा गाँव था जिसमे विभाग का दफ्तर था और जहाँ सोहनबाबू पिछले एक साल से स्थानांतरण के बाद से ग्रेड २ पे कार्यरत थे। दुकानों और घरों से झांकती कई नज़रों को सोहनबाबु अनदेखा करते हुए रुमाल से पसीना पोंछते चलते चले गए।

पिछले  एक साल की अवधि में इन लोगों ने जाने कितनी बार सोहनबाबू ऐसे ही सुबह पैदल ऑफिस आते देखा है और इनमें से कोई सोहनबाबू को घमंडी तो कोई कंजूस समझता है जो टेक्सी या गाड़ी का खर्च बचाने के चक्कर में धूप में तो कभी बौछार में पैदल चलकर ऑफिस आते हैं जबकि उनसे पहले उनके समकक्ष बाबू लोग हमेशा अपनी गाड़ी से आया करते रहे हैं। सोहनबाबू मन ही मन शायद ये सब जानते हैं परन्तु ऐसी किसी स्थिति में उनके पास अनदेखा करने के अतिरिक्त कोई उपर्युक्त विकल्प नही होता अतः वे असहय पलायन का आश्रय लेते।

गेट तक पहुँचते २ वे देख पा रहे थे की बड़ी सी गाड़ी में मलिक साहब सामने वाली सड़क से चले आ रहे थे । मलिक साहब एक बड़े उद्योगपति थे जिनका किसी न किसी नयी विभाग सम्बन्धी औपचारिकता के चलते इस दफ्तर में आना -जाना लगा रहता। सोहनबाबू की कार्यशैली और मलिक साहब की अपेक्षाओं में सदा एक द्वन्द बना रहता। चौकीदार ने तनकर उन्हें सेल्यूट मारा और गेट खोला, पर सोहनबाबू को नजदीक पहुंचा देख मलिक साहब आगे ना बढे और वहीं ब्रेक लगा दिए।

"  बड़े तकल्लुफी हैं आप भी बड़े बाबू ! अजी आप एक कॉल भर कर दें तो गाड़ी आपको घर से ले आया करे ,ही ही ही ई इ!!", .. सुनहरा ब्रेसलेट झुलाता हाथ गाड़ी की खिड़की से बाहर निकालते मलिक साहब बोले , हँसते वक़्त उनकी तिरछी मुस्कान उनके दांतों के बीच की दरार और किनारे के दांतों पर चढ़ा सोना साफ़ दिखा रही थी

" हलो मिस्टर मलिक ! "-सोहनबाबु हाथ मिलाते हुए बोले -" दरअसल मेरा रास्ता अलग पड़ता है न मैं उधर से आता हूँ ..."  , बिना पीछे मुड़े ऊँगली के इशारे से सोहनबाबू ने मलिक साहब को बताना चाहा।

" कौन सा पैदल वाला हा हा हा आ आ ! " मलिक साहब अपनी हंसी दबा न सके पर बात सम्भालते हुए बोले -," आइये बैठिये अंदर तक तो साथ चलते हैं।"

"जी नहीं आप पार्क कीजिये मैं आ रहा हूँ "- सोहनबाबु बोले।

मलिक साहब ने गाड़ी अंदर की ओर मोड़ ली। चौंकीदार गेट बंद करने लगा पीछे २ सोहनबाबु भी अनाधिकृत आगंतुक से अंदर चल दिए। ऑफिस का दरवाज़ा अभी भी मेनगेट से कोई ५० मीटर और होगा,पसीने मिले पारदर्शी से कमीज़ में और कैनवस के सस्ते से जूते पहने सोहनबाबु को चौंकीदार पीछे से देख रहा था।

सोहनबाबू का नाटा सा कद मलिक साहब की अभी २ गुज़री गाडी की धूल के ग़ुबार के सामने दबा जा रहा था। सोहनबाबु सीधे अपने कमरे में गए वो आज भी लेट हो गये थे जिसका आज भी उनके पास कोई अप्रत्याशित कारण न था।

आकर बैठे रहे कुछ देर और फिर अपनी रोज़ की कागज़ -किताबी में लग गए। लंचटाइम के करीब मनोहर जी आये और कोई फाइल मेज़ पर रख दी।

" आज गाड़ी का काम करवाना था इसलिए आपको साथ न ला सका .." -मनोहर जी बोले -" आज तो साथ ही चलेंगे सर !"

"कोई बात नहीं मनोहर जी ! मैं बस से आ गया था ,कल सुबह मैं आपको कॉल कर लूँगा "- सोहनबाबू कहने लगे।

मनोहर जी  एक सहकर्मी थे जिनके साथ सोहनबाबू सुबह गाडी से आया करते थे क्यूंकि चौंक से ऑफिस तक बसें या तो सुबह जल्दी होतीं या फिर मनमर्जी के ऑटो से आना पड़ता। सोहनबाबू मनोहर जी को सुलझा व्यक्ति मानते जो ऑफिस में काफी सजगता से कार्य करता है , अलबत्ता मनोहर जी का रवैय्या साधारणतया सहयोगात्मक था और समयानुरूप कार्य करना वे उचित मानते थे।

लंच के बाद फोन आया और कोई जानकारी मांगी गयी ,सोहनबाबू पुरानी फाइलों में रमा हो गये उधर साथ वाले कमरे में मलिक साहब का स्वर सुनाई पड़ रहा था मगर सोहनबाबू फाइलों से जरूरी जानकारी छाँटते रहे। चौकीदार रंजीत सिगरेट की डिब्बी लेकर आया और मलिक साहब को दुसरे कमरे में देकर वापस सोहनबाबू के कमरे से लौटा।

" बड़े बाबू कुछ मंगवाना है बाहर से क्या ? आज दूकान वाला शाम को जल्दी जाने को कह रहा है अगर चाय मंगवानी है तो ले आता हूँ अभी ?"

सोहनबाबू ने चाय मंगवाई और यथावत काम में लगे रहे।

काफी देर बाद सर उठा के देखा तो सवा पांच बज रहे थे। पता करने के लिए कि मनोहर जी जा रहे हैं या नहीं, सोहनबाबू पिछले ऑफिस कि ओर जाने लगे तो क्या देखते हैं कि मनोहर जी जोर से कह रहे थे - " देखो मलिक साहब हर चीज़ हिसाब से होगी हमपर भरोसा रखें लेकिन ग़लत करने को मजबूर न करें !" और वे दरवाजे से अंदर भागने को हुए कि मलिक साहब उनके पीछे २ हाथ में कागजों का बण्डल लिए घुस गये । सोहनबाबू अंदर न गये और वापस आकर काम में लग गये।

६:३० बजे के करीब मनोहर बाबु आये -" सर आप चल नहीं रहे ?" 

"मनोहर जी !आप ऐसा कीजिये .म्मम्मम्मम !मैं बाद में आ जाऊंगा , ये इन्फोर्मेशन कल तक देनी है।"

" तो आइयेगा कैसे ?" -मनोहर जी ने लगभग बाहर निकलते हुए कहा।

" आईल समहाउ मेनेज! यू प्लीज़ लीव टाइमली !" सोहनबाबू सीट से उठकर बोले।

मनोहर जी बाहर निकले और चल पड़े, उनके जाते ही परिचित सी महक आई ,मनोहर जी थोडा डगमग २ से चल रहे थे  तभी पीछे से मलिक साहब कि गाड़ी आई और वो लोग बाहर खड़े होकर कुछ बात करने लगे और कुछ वक़्त बाद चले गये । सोहनबाबू कुछ देर और बैठे तभी चौकीदार रंजीत आया ।

" अब तो बस का टाइम भी निकल गया ...आप कब तक और बैठोगे ?" उसके मुंह से भी शराब महक रही थी जो शायद उसने पिछले ऑफिस में मलिक साहब कि खातिर के दौरान पी थी।

ये नित्य प्रसंग था रोज़ ६ बजे के बाद पिछले कमरे में शराब पी जाती जिसके बाद  दिवस-विसर्जन होता। प्रायः जो गतिरोध दिन भर की कवायद और मशक्कत से न निकलता वह शाम के प्याले से दूर हो जाता। नतीजा वादी के पक्ष में रहे या नहीं परन्तु प्रक्रिया यही रहती , वादी ,और स्टाफ शाम को हमप्याला होते और एक-दुसरे की बात को परस्पर बेहतर समझने लगते। सोहनबाबू ने अलमारी लॉक की और दरवाज़े की चाबी चौकीदार को देते हुए बाहर चल पड़े। गेट कि ओर बढ़ते हुए वे फ़ोन पर अपने मौसेरे भाई से उन्हें ऑफिस तक लेने आने की बात कर रहे थे जो कुछ किलोमीटर दूर मुख्य शहर में रहता था। गेट पर कुछ देर खड़े रहने के बाद मोटरसाइकिल आई और सोहनबाबू उसके साथ चले पड़े। रास्ते में सोहनबाबू ने मौसेरे भाई से बताया की कल संभवतः वे शाम को देर से वापस अपने घर लौटें , इसलिए वह उन्हें लेने आ जाये।

अगली सुबह भी सोहनबाबू की पूजा विजयरथ के पाठ पर ही सम्पन्न हुई। पूजा के बाद और नाश्ता करने से पहले ऑफिस के लिए कपडे पहनते हुए  विजयरथ की पंक्तियाँ  अनायास  उनका अचेतन दोहरा सा रहा था ,इतने समयांतराल के अभ्यास में शायद ही सोहनबाबू ने कभी इस प्रसंग कि मनन -व्याख्या गहनता से समझी हो, यद्यपि चौपाई के नीचे लिखे हिंदी अनुवाद को एक दृष्टया देखा अवश्य होगा और उन्हें यह बोध भी जरुर था कि श्रीराम-रावण के अंतिम समर के समय श्रीराम को नंगे पग और रथहीन देखकर विभीषण ने उनकी जीत पर उन्ही से शंका व्यक्त कि थी और तब श्रीराम ने विभीषण से विजयरथ नामक आचार व साधन रूपी रथ का वर्णन किया था।

  "महाअजय संसार रिपु जीति सके सो बीर ...जाके रथ होई दृढ सुनहु सखा मतिधीर।"

पत्नी ने कहा -" आज शाम प्रदर्शनी देखने का सोचा था , बच्चे भी कह रहे हैं..आज जल्दी आ जाना।"

" मैं शायद देर से पहुंचूं , तुम लोग हो आना "- सोहनबाबू बोले , अपनी विवशता, पत्नी को अपनी मजबूर सी नज़र से जताते हुए वे चल पड़े लेकिन और कुछ न बोले।

जाकर उसी चक्कर पे पहुंचे जहाँ से रोज़ बस लिया करते थे थोड़ी ही देर में बस आ गयी। आज भी कल वाला ही कंडक्टर था जो सामने की सीट पर बैठा नज़र आ रहा था।

बस सोहनबाबू को देख धीमी तो ज़रूर हुई लेकिन तुरंत चल पड़ी। सोहनबाबू ४-६ क़दम दौड़े भी पर बस गयी देख रुक गये और खिसियाते से वापस चक्कर पर ही आ गये।

पीछे गुमटी में कुछ लोग बैठे सोहनबाबू को देख रहे थे और सोहनबाबू को ऐसा भान करा रहे थे मानो वे संसार के सबसे विफल पुरुष हों। अब सोहनबाबू के पास प्राइवेट बस का विकल्प था जो कि

काफी समय बाद गंतव्य पर पहुँचाती।

उस ग्लानि को सोहनबाबू दबा ही रहे थे कि तभी कॉलेज का दोस्त अजीत गाड़ी में चक्कर से होकर गुज़रा , उसके साथ सोहनबाबु के गंतव्य कि ओर जाने वाले कुछ परिचित भी बैठे थे जिनसे सोहनबाबु औपचरिक्त्या बहुत परिचित न थे। अजीत कि गाड़ी उस चौड़ी सडक के बिलकुल दूसरे कोने से होती निकल गयी। अजीत कभी सोहनबाबु के बहुत नजदीक रहा था। पीछे २ कई गाड़ियाँ धाँय २ करती गुजरती रही और सोहनबाबू ज़मीन तकते खड़े रहे। आज हर गाडी हर बस और हर कोई शख्स सोहनबाबू से उंचा और बड़ा दिख रहा था।

यद्यपि सोहनबाबू को अजीत या किसी अन्य के उपकार की अपेक्षा न थी पर अंतस में शायद वे इस चीज़ से आहत थे कि समाज और लोग आज महज़ इसलिए उन्हें को दरकिनार कर रहे हैं कि इतनी लम्बी सरकारी नौकरी के बावजूद भी वे आज भी सड़क पर पैदल ही खड़े हैं, बिना आसरे के किराये के छोटे से मकान में रहते हैं या शायद  इसलिए की एक प्रभावी पद पर रहते हुए भी उन्होंने किसी की अन्यथा  सहायता नहीं की। यह विस्मय और ग्लानि ऐसा नहीं के आज हुई हो अपितु अपनी सेवाकाल के अनेकों अवसर पर उन्होंने अनुभव की थी। सोहनबाबू सड़क किनारे खड़े  थे और उनके सामने उनके सेवाकाल का पूरा स्मृतिचित्र बह रहा था। उन्हें वह यौवन दिख रहा है जो उन्होंने अपनी नौकरी को दिया , बचत जो आकस्मिक पारिवारिक प्रावधानों के साथ चली गयी। उन्हें वह सहस्त्र-सम अवसर दीख रहे हैं जो इस अवधि में आये जब सोहनबाबू ने किफ़ायत या समझौते के स्थान पर अपने मूल्य और स्वाभिमान को ऊपर रखा और देखा-भाला नुक्सान उठाया । कितने ही मित्र आज स्मरण हो रहे हैं जो भिन्न २ जगहों पर स्थानान्तरण के दौरान उन्हें मिले और छोड़ भी गये। इसी विध्यान में वे कब बस में चढ़  गये उन्होंने पता न चला। उस ख़ाली सी प्राइवेट बस के आखिरी कोने पर बैठे वो ना मालूम कितने वर्षों को संघनित कर जी गये। विजयरथ के शब्द उन्हें आज जीवंत बन बस की छत पर उकेरे से दीख रहे थे और वे एकटक घूरते मानो उन्हें तौल रहे थे।

आज भी लेट हो गये थे वे। बस से उतरे और ऑटो की प्रतीक्षा में खड़े हो गये।

जल्द ही एक ऑटो आया और सोहनबाबू अपने ऑफिस पहुँच गये।

थोड़ी देर बाद उनके कमरे में मनोहर जी आये और सोहनबाबू से लेट होने का कारण बतियाने लगे।

थोड़ी देर में उन्होंने अपने साथ लायी एक फाइल सोहनबाबू के सामने रख दी और बोले -" सर ! यह मिस्टर मलिक का एक नया वेंचर है , (थोडा रुककर बोले )..अपनी पत्नी के नाम से शुरू कर रहे हैं। आप फॉरवर्ड मार्किंग कर दीजियेगा ।

" मैं देख लूँगा " - सोहनबाबू ने टटोलती निगाह से मनोहर जी को देखा।

शायद यह वही फाइल है जिसके कागज़ कल मलिक साहब लिए मनोहर जी के पीछे घूम रहे थे।

मनोहर जी चले गये और सोहनबाबू  भी काम में लग गये।

लंच के करीब मलिक साहब भी आये और सोहनबाबू का अभिवादन कर पिछले ऑफिस की तरफ चले गये। आज सोहनबाबु ने कोई और काम ना छुआ और कल मांगी जानकारी जुटाने में ही लगे रहे।

चाय के करीब चपरासी आया।

" साहब ! मनोहर साहब मलिक साहब की कोई फाइल मंगवा रहे हैं अगर साइन हो गयी है तो ?"- एक हाथ आगे बढ़ाते हुए वह बोला।

सोहनबाबू ने फाइल उठाई और खोली , दो चार पन्ने उल्टे-पल्टे और कच्ची पेंसिल से निशान लगा कर चपरासी के हाथ में फाइल पकड़ा दी।

उसके बाद कोई आगंतुक सोहनबाबू के पास न आया। शायद  सोहनबाबू से  बात करने का साहस अभी अपर्याप्त था।

छः बजते २ स्टाफ के लगभग सभी लोग प्रस्थान कर चुके थे सिवाय उनके जिनकी कोई अन्य योजना रही हो। सोहनबाबू  का कार्य भी पूरा होने को था।

रंजीत चौकीदार हाथ में कुछ सामान लिए सोहनबाबू को देखता बाहर से ही पिछले ऑफिस की ओर चला गया करीब पौन घंटे बाद सोहनबाबू ने अपना अभीष्ट कार्य निबटा लिया।

कागज़ मेज़ पर ही बिखरे पड़े थे और सोहनबाबू  कुछ रद्दी  पुर्जे हाथों में लेकर कूड़े में डाल रहे थे कि दरवाज़े पर मनोहर जी आये और बोले - " सर मे आय कम इन ?"

ये अतिरिक्त शिष्टता देख सोहनबाबू जान गये कि मनोहर जी पी कर उनसे मलिक साहब वाली फाइल पर बात करने आये हैं।

" प्लीज़ आइये आप ! " सोहनबाबू बोले और कागज़ समेटने लगे।

मनोहर जी के पीछे २ मलिक साहब भी अंदर आ चुके थे और अपने दोनों हाथ जोड़कर एक विजयंत मुस्कान से सोहनबाबू को घूर रहे थे।

" सर वो फाइल साइन कर दें तो मेहरबानी हो जायेगी।" -बहकी सी आवाज़ मे मनोहर जी  बोले।

" ओह बाउजी असी आसरे थ्वाद्ड़े. वड्डे २ कमिटमेंट कर देंदे ......... बस गल इन्नी सी ऐ कि इस फेरे मैं मिसेज नू कौल कर आया हां कि ऐ प्रोजेक्ट ओदे नाम ते ही निक्लूगा"- मलिक साहब  नशे मे  पंजाबी बोलने लगे और सोहनबाबू के घुटने को छूने लगे।

सोहनबाबू ने उनका हाथ पकड़ लिया और मनोहर जी से मुखातिब हुए - " देखिये मनोहर जी ! मैंने आपसे पहले भी कहा है कि केस फोर्वार्डिंग से पहले जरूरी नोर्म्स पूरी हैं के नहीं देख कर ही मेरे पास भिजवाया कीजिये। मनोहर जी के हाथ से फाइल लेकर दिखाते हुए  सोहन बाबू  जेब से पेन निकलकर कागज़ पर समझाने लगे - " वी कैन मॉडल द लाइसेंस फॉर हिज़ सूटेबिलिटी एंड बेनेफिट बट नथिंग बेयोंड़ प्रेस्क्रिप्शन।"

मनोहर जी हाथ पकड़ते हुए बोले - " सर आपने खुद देखा है कि आजकल बेसिक नोर्म्स के मामले मे ऊपर के लोग इतनी सख्ती नहीं कर रहे जैसे कुछ समय पहले हो रही थी ,...तो अगर इसका फायदा मिस्टर मलिक को भी मिल जाता है तो कोई बहुत ग़लत नहीं होगा सर ! "

तबतक सोहनबाबू उनकी ओर पीठ कर अलमारी को ताला लगा चुके थे , मुड़कर बोले - " मनोहर जी मैं माफ़ी चाहूँगा मैं इसे फॉरवर्ड नहीं कर सकता " और हाथ जोड़ दिए।

" सर प्लीज़ मेरे कहने पर आज साइन कर दीजिये मैं मिस्टर मलिक को प्रोमिस कर चूका हूँ।" - मनोहर जी ने विनय की।

" सॉरी मनोहर जी प्लीज़ शर्मिंदा मत कीजिये ! " - और वे बाहर की ओर चल पड़े।

मलिक साहब ने उन्हें बाहर निकलता देखकर मनोहर जी का हाथ पकड लिया और वे दोनों भी ऑफिस के कमरे से बाहर निकल आये। सोहनबाबू ने ऑफिस को लोकक किया।

उनकी पीठ की तरफ खड़े मलिक साहब बोले - " बड़े बाबू !  मुझको तो बस इतना पता है कि इस दुनिया मे पता नहीं कित्त्त्तने बेईमान हैं और कितने घोटाले हो रहे हैं ...हम ऐसा कोई काम करने के लिए आपसे नहीं कह रहे थे ।मातारानी ने मुझे बहुत दिया है और अगर ये फाइल फॉरवर्ड ना हुई तो तूफ़ान तो आ नहीं जाएगा और ना ही ये काम रुक ही जाएगा। बात तो आपस के प्रेमभाव की और एक दुसरे का ख़याल रखने की है ...वोही दुनिया में सबसे बड़ी चीज़ होती है।"

मनोहर जी और मलिकसाहब कि बातें निरुत्तर सोहनबाबू को घेर चुकीं थीं। सोहनबाबू को मनोहर जी और मलिक साहब के तथ्य अपने तर्क और ऑफिस नोर्म्स से कहीं अधिक बलवान लग रहे थे।

वो गेट कि ओर चल पड़े और जेब से फोन निकाल कर गेट की तरफ चलते हुए अपने मौसेरे भाई को कॉल करने लगे।

उन्होंने २-३ बार कॉल की लेकिन उसका मोबाइल स्विच ऑफ संकेत दे रहा था।

सोहन बाबू चिंतित से हो गये पर चलते रहे। पीछे से मलिक साहब ने आवाज़ लगायी -" बस ५ मिनट रुकिए बड़े बाबू मैं आपको छोड़ दूंगा, पैदल कैसे जाएंगे रात को...........ई ई  ही ही ही !!"

" कोई बात नहीं मलिक जी कुछ ना कुछ मिल जाएगा "- सोहन बाबू ने कहा और चलते रहे।

गेट  के नजदीक उन्होंने देखा कि चौकीदार रंजीत हाथ मे तेल से भीगा लिफाफा लिए ऑफिस कि ओर भगा आ रहा था।

सोहनबाबू को गेट कि ओर आता देख भी वो गेट कि ओर नहीं मुड़ा। उसके गुज़रते ही अंडे के कबाब कि खुशबू आई जो नजदीक की रेहड़ी से रंजीत ले आया था।

सोहन बाबू ने खुद गेट खोला और सड़क पर खड़े हो गये ।

दूर २ तक कोई गाडी का निशान ना था। अंडे के कबाब ऑफिस मे छोड़कर रंजीत भी  ५ मिनट बाद गेट पर आ चूका था/ तबतक सोहनबाबू वहीँ खड़े थे।

किसी गाड़ी की वृथा प्रतीक्षा कर रहे हों .या शायद अनिश्चित थे , क्यूंकि इससे पहले वे रात को पैदल ऑफिस से नहीं गये थे।

सामने एक -डेढ़ किलोमीटर तक सड़क के दोनों ओर फैले  लम्बे साल के पेड़ों का भयावह अँधेरा था ।

जंगले के झींगुर अपनी तीव्रतम आवृत्ति पर चीख रहे थे।

" अब क्या पैदल जाएँगे ? " -हाथ मे बीडी लिए रंजीत ने पूछा।

" वैसे रास्ता तो वही है पर आज अँधेरा है।" - कश छोड़ते हुए वो बोला।

" हां रास्ता तो आज भी वही है पर अँधेरा बहुत है "- बहुत धीमे स्वर मे रंजीत के नजदीक ये कहकर सोहनबाबू चल पड़े।

रंजीत गेट बंद कर बीडी पीते हुए सड़क पर सोहनबाबू को देखने लगा जो जेब से मोबाइल निकालकर शायद घर फ़ोन मिला रहे थे।

गाँव कि सीमा के आखिरी लेम्प पोस्ट कि रौशनी तक वो पहुँच चुके थे , सड़क से पत्थर उठाकर गाँव के उन कुत्तों पर फेंकते जो उनपर भौंकते उनके पीछे २ आ रहे थे । इस लाइट के पीछे प्रकाश राशि से अधिक बड़ा एक विशाल अंधकार था , जिसके नीचे वो अदना आदमकद आदमी जाता दीख रहा था। लेम्प पोस्ट कि सीमा के बाद रंजीत सोहनबाबू को ना देख पाया।

आकाशपर्यंत फैले अंधकार के अतिरिक्त बस झींगुरों का ही स्वर था जो प्रत्यक्ष तत्व था ।

सोहनबाबू  अपने हाथ मे मोबाइल की टॉर्च जगाये उसी अंधकार-कालिमा मे  बढ़ते जा रहे थे।

इस समय सोहनबाबू का मन हर संकल्प-विकल्प से रहित था। ना कोई स्मृति थी ना मन मे द्रोह ,.. झींगुरों की ध्वनि के साथ साथ अचेतन मन विजयरथ उन्हें सुना रहा था।

.....सौरज धीरज तेहि रथ चाका.. सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका....बल बिबेक दम परहित घोरे , छमा कृपा समता रजु जोरे .

---------

COMMENTS

BLOGGER: 2
  1. बेनामी4:31 pm

    bhupinder bhai kamaal ki kahani likhi hai..........keep it up
    surinder singh

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. BHUPINDER10:59 am

      बहुत धन्यवाद सुरिंदर जी !

      हटाएं
रचनाओं पर आपकी बेबाक समीक्षा व अमूल्य टिप्पणियों के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद.

स्पैम टिप्पणियों (वायरस डाउनलोडर युक्त कड़ियों वाले) की रोकथाम हेतु टिप्पणियों का मॉडरेशन लागू है. अतः आपकी टिप्पणियों को यहाँ प्रकट होने में कुछ समय लग सकता है.

नाम

 आलेख ,1, कविता ,1, कहानी ,1, व्यंग्य ,1,14 सितम्बर,7,14 september,6,15 अगस्त,4,2 अक्टूबर अक्तूबर,1,अंजनी श्रीवास्तव,1,अंजली काजल,1,अंजली देशपांडे,1,अंबिकादत्त व्यास,1,अखिलेश कुमार भारती,1,अखिलेश सोनी,1,अग्रसेन,1,अजय अरूण,1,अजय वर्मा,1,अजित वडनेरकर,1,अजीत प्रियदर्शी,1,अजीत भारती,1,अनंत वडघणे,1,अनन्त आलोक,1,अनमोल विचार,1,अनामिका,3,अनामी शरण बबल,1,अनिमेष कुमार गुप्ता,1,अनिल कुमार पारा,1,अनिल जनविजय,1,अनुज कुमार आचार्य,5,अनुज कुमार आचार्य बैजनाथ,1,अनुज खरे,1,अनुपम मिश्र,1,अनूप शुक्ल,14,अपर्णा शर्मा,6,अभिमन्यु,1,अभिषेक ओझा,1,अभिषेक कुमार अम्बर,1,अभिषेक मिश्र,1,अमरपाल सिंह आयुष्कर,2,अमरलाल हिंगोराणी,1,अमित शर्मा,3,अमित शुक्ल,1,अमिय बिन्दु,1,अमृता प्रीतम,1,अरविन्द कुमार खेड़े,5,अरूण देव,1,अरूण माहेश्वरी,1,अर्चना चतुर्वेदी,1,अर्चना वर्मा,2,अर्जुन सिंह नेगी,1,अविनाश त्रिपाठी,1,अशोक गौतम,3,अशोक जैन पोरवाल,14,अशोक शुक्ल,1,अश्विनी कुमार आलोक,1,आई बी अरोड़ा,1,आकांक्षा यादव,1,आचार्य बलवन्त,1,आचार्य शिवपूजन सहाय,1,आजादी,3,आत्मकथा,1,आदित्य प्रचंडिया,1,आनंद टहलरामाणी,1,आनन्द किरण,3,आर. के. नारायण,1,आरकॉम,1,आरती,1,आरिफा एविस,5,आलेख,4288,आलोक कुमार,3,आलोक कुमार सातपुते,1,आवश्यक सूचना!,1,आशीष कुमार त्रिवेदी,5,आशीष श्रीवास्तव,1,आशुतोष,1,आशुतोष शुक्ल,1,इंदु संचेतना,1,इन्दिरा वासवाणी,1,इन्द्रमणि उपाध्याय,1,इन्द्रेश कुमार,1,इलाहाबाद,2,ई-बुक,374,ईबुक,231,ईश्वरचन्द्र,1,उपन्यास,269,उपासना,1,उपासना बेहार,5,उमाशंकर सिंह परमार,1,उमेश चन्द्र सिरसवारी,2,उमेशचन्द्र सिरसवारी,1,उषा छाबड़ा,1,उषा रानी,1,ऋतुराज सिंह कौल,1,ऋषभचरण जैन,1,एम. एम. चन्द्रा,17,एस. एम. चन्द्रा,2,कथासरित्सागर,1,कर्ण,1,कला जगत,113,कलावंती सिंह,1,कल्पना कुलश्रेष्ठ,11,कवि,2,कविता,3239,कहानी,2360,कहानी संग्रह,247,काजल कुमार,7,कान्हा,1,कामिनी कामायनी,5,कार्टून,7,काशीनाथ सिंह,2,किताबी कोना,7,किरन सिंह,1,किशोरी लाल गोस्वामी,1,कुंवर प्रेमिल,1,कुबेर,7,कुमार करन मस्ताना,1,कुसुमलता सिंह,1,कृश्न चन्दर,6,कृष्ण,3,कृष्ण कुमार यादव,1,कृष्ण खटवाणी,1,कृष्ण जन्माष्टमी,5,के. पी. सक्सेना,1,केदारनाथ सिंह,1,कैलाश मंडलोई,3,कैलाश वानखेड़े,1,कैशलेस,1,कैस जौनपुरी,3,क़ैस जौनपुरी,1,कौशल किशोर श्रीवास्तव,1,खिमन मूलाणी,1,गंगा प्रसाद श्रीवास्तव,1,गंगाप्रसाद शर्मा गुणशेखर,1,ग़ज़लें,550,गजानंद प्रसाद देवांगन,2,गजेन्द्र नामदेव,1,गणि राजेन्द्र विजय,1,गणेश चतुर्थी,1,गणेश सिंह,4,गांधी जयंती,1,गिरधारी राम,4,गीत,3,गीता दुबे,1,गीता सिंह,1,गुंजन शर्मा,1,गुडविन मसीह,2,गुनो सामताणी,1,गुरदयाल सिंह,1,गोरख प्रभाकर काकडे,1,गोवर्धन यादव,1,गोविन्द वल्लभ पंत,1,गोविन्द सेन,5,चंद्रकला त्रिपाठी,1,चंद्रलेखा,1,चतुष्पदी,1,चन्द्रकिशोर जायसवाल,1,चन्द्रकुमार जैन,6,चाँद पत्रिका,1,चिकित्सा शिविर,1,चुटकुला,71,ज़कीया ज़ुबैरी,1,जगदीप सिंह दाँगी,1,जयचन्द प्रजापति कक्कूजी,2,जयश्री जाजू,4,जयश्री राय,1,जया जादवानी,1,जवाहरलाल कौल,1,जसबीर चावला,1,जावेद अनीस,8,जीवंत प्रसारण,141,जीवनी,1,जीशान हैदर जैदी,1,जुगलबंदी,5,जुनैद अंसारी,1,जैक लंडन,1,ज्ञान चतुर्वेदी,2,ज्योति अग्रवाल,1,टेकचंद,1,ठाकुर प्रसाद सिंह,1,तकनीक,32,तक्षक,1,तनूजा चौधरी,1,तरुण भटनागर,1,तरूण कु सोनी तन्वीर,1,ताराशंकर बंद्योपाध्याय,1,तीर्थ चांदवाणी,1,तुलसीराम,1,तेजेन्द्र शर्मा,2,तेवर,1,तेवरी,8,त्रिलोचन,8,दामोदर दत्त दीक्षित,1,दिनेश बैस,6,दिलबाग सिंह विर्क,1,दिलीप भाटिया,1,दिविक रमेश,1,दीपक आचार्य,48,दुर्गाष्टमी,1,देवी नागरानी,20,देवेन्द्र कुमार मिश्रा,2,देवेन्द्र पाठक महरूम,1,दोहे,1,धर्मेन्द्र निर्मल,2,धर्मेन्द्र राजमंगल,1,नइमत गुलची,1,नजीर नज़ीर अकबराबादी,1,नन्दलाल भारती,2,नरेंद्र शुक्ल,2,नरेन्द्र कुमार आर्य,1,नरेन्द्र कोहली,2,नरेन्‍द्रकुमार मेहता,9,नलिनी मिश्र,1,नवदुर्गा,1,नवरात्रि,1,नागार्जुन,1,नाटक,152,नामवर सिंह,1,निबंध,3,नियम,1,निर्मल गुप्ता,2,नीतू सुदीप्ति ‘नित्या’,1,नीरज खरे,1,नीलम महेंद्र,1,नीला प्रसाद,1,पंकज प्रखर,4,पंकज मित्र,2,पंकज शुक्ला,1,पंकज सुबीर,3,परसाई,1,परसाईं,1,परिहास,4,पल्लव,1,पल्लवी त्रिवेदी,2,पवन तिवारी,2,पाक कला,23,पाठकीय,62,पालगुम्मि पद्मराजू,1,पुनर्वसु जोशी,9,पूजा उपाध्याय,2,पोपटी हीरानंदाणी,1,पौराणिक,1,प्रज्ञा,1,प्रताप सहगल,1,प्रतिभा,1,प्रतिभा सक्सेना,1,प्रदीप कुमार,1,प्रदीप कुमार दाश दीपक,1,प्रदीप कुमार साह,11,प्रदोष मिश्र,1,प्रभात दुबे,1,प्रभु चौधरी,2,प्रमिला भारती,1,प्रमोद कुमार तिवारी,1,प्रमोद भार्गव,2,प्रमोद यादव,14,प्रवीण कुमार झा,1,प्रांजल धर,1,प्राची,367,प्रियंवद,2,प्रियदर्शन,1,प्रेम कहानी,1,प्रेम दिवस,2,प्रेम मंगल,1,फिक्र तौंसवी,1,फ्लेनरी ऑक्नर,1,बंग महिला,1,बंसी खूबचंदाणी,1,बकर पुराण,1,बजरंग बिहारी तिवारी,1,बरसाने लाल चतुर्वेदी,1,बलबीर दत्त,1,बलराज सिंह सिद्धू,1,बलूची,1,बसंत त्रिपाठी,2,बातचीत,2,बाल उपन्यास,6,बाल कथा,356,बाल कलम,26,बाल दिवस,4,बालकथा,80,बालकृष्ण भट्ट,1,बालगीत,20,बृज मोहन,2,बृजेन्द्र श्रीवास्तव उत्कर्ष,1,बेढब बनारसी,1,बैचलर्स किचन,1,बॉब डिलेन,1,भरत त्रिवेदी,1,भागवत रावत,1,भारत कालरा,1,भारत भूषण अग्रवाल,1,भारत यायावर,2,भावना राय,1,भावना शुक्ल,5,भीष्म साहनी,1,भूतनाथ,1,भूपेन्द्र कुमार दवे,1,मंजरी शुक्ला,2,मंजीत ठाकुर,1,मंजूर एहतेशाम,1,मंतव्य,1,मथुरा प्रसाद नवीन,1,मदन सोनी,1,मधु त्रिवेदी,2,मधु संधु,1,मधुर नज्मी,1,मधुरा प्रसाद नवीन,1,मधुरिमा प्रसाद,1,मधुरेश,1,मनीष कुमार सिंह,4,मनोज कुमार,6,मनोज कुमार झा,5,मनोज कुमार पांडेय,1,मनोज कुमार श्रीवास्तव,2,मनोज दास,1,ममता सिंह,2,मयंक चतुर्वेदी,1,महापर्व छठ,1,महाभारत,2,महावीर प्रसाद द्विवेदी,1,महाशिवरात्रि,1,महेंद्र भटनागर,3,महेन्द्र देवांगन माटी,1,महेश कटारे,1,महेश कुमार गोंड हीवेट,2,महेश सिंह,2,महेश हीवेट,1,मानसून,1,मार्कण्डेय,1,मिलन चौरसिया मिलन,1,मिलान कुन्देरा,1,मिशेल फूको,8,मिश्रीमल जैन तरंगित,1,मीनू पामर,2,मुकेश वर्मा,1,मुक्तिबोध,1,मुर्दहिया,1,मृदुला गर्ग,1,मेराज फैज़ाबादी,1,मैक्सिम गोर्की,1,मैथिली शरण गुप्त,1,मोतीलाल जोतवाणी,1,मोहन कल्पना,1,मोहन वर्मा,1,यशवंत कोठारी,8,यशोधरा विरोदय,2,यात्रा संस्मरण,31,योग,3,योग दिवस,3,योगासन,2,योगेन्द्र प्रताप मौर्य,1,योगेश अग्रवाल,2,रक्षा बंधन,1,रच,1,रचना समय,72,रजनीश कांत,2,रत्ना राय,1,रमेश उपाध्याय,1,रमेश राज,26,रमेशराज,8,रवि रतलामी,2,रवींद्र नाथ ठाकुर,1,रवीन्द्र अग्निहोत्री,4,रवीन्द्र नाथ त्यागी,1,रवीन्द्र संगीत,1,रवीन्द्र सहाय वर्मा,1,रसोई,1,रांगेय राघव,1,राकेश अचल,3,राकेश दुबे,1,राकेश बिहारी,1,राकेश भ्रमर,5,राकेश मिश्र,2,राजकुमार कुम्भज,1,राजन कुमार,2,राजशेखर चौबे,6,राजीव रंजन उपाध्याय,11,राजेन्द्र कुमार,1,राजेन्द्र विजय,1,राजेश कुमार,1,राजेश गोसाईं,2,राजेश जोशी,1,राधा कृष्ण,1,राधाकृष्ण,1,राधेश्याम द्विवेदी,5,राम कृष्ण खुराना,6,राम शिव मूर्ति यादव,1,रामचंद्र शुक्ल,1,रामचन्द्र शुक्ल,1,रामचरन गुप्त,5,रामवृक्ष सिंह,10,रावण,1,राहुल कुमार,1,राहुल सिंह,1,रिंकी मिश्रा,1,रिचर्ड फाइनमेन,1,रिलायंस इन्फोकाम,1,रीटा शहाणी,1,रेंसमवेयर,1,रेणु कुमारी,1,रेवती रमण शर्मा,1,रोहित रुसिया,1,लक्ष्मी यादव,6,लक्ष्मीकांत मुकुल,2,लक्ष्मीकांत वैष्णव,1,लखमी खिलाणी,1,लघु कथा,288,लघुकथा,1340,लघुकथा लेखन पुरस्कार आयोजन,241,लतीफ घोंघी,1,ललित ग,1,ललित गर्ग,13,ललित निबंध,20,ललित साहू जख्मी,1,ललिता भाटिया,2,लाल पुष्प,1,लावण्या दीपक शाह,1,लीलाधर मंडलोई,1,लू सुन,1,लूट,1,लोक,1,लोककथा,378,लोकतंत्र का दर्द,1,लोकमित्र,1,लोकेन्द्र सिंह,3,विकास कुमार,1,विजय केसरी,1,विजय शिंदे,1,विज्ञान कथा,79,विद्यानंद कुमार,1,विनय भारत,1,विनीत कुमार,2,विनीता शुक्ला,3,विनोद कुमार दवे,4,विनोद तिवारी,1,विनोद मल्ल,1,विभा खरे,1,विमल चन्द्राकर,1,विमल सिंह,1,विरल पटेल,1,विविध,1,विविधा,1,विवेक प्रियदर्शी,1,विवेक रंजन श्रीवास्तव,5,विवेक सक्सेना,1,विवेकानंद,1,विवेकानन्द,1,विश्वंभर नाथ शर्मा कौशिक,2,विश्वनाथ प्रसाद तिवारी,1,विष्णु नागर,1,विष्णु प्रभाकर,1,वीणा भाटिया,15,वीरेन्द्र सरल,10,वेणीशंकर पटेल ब्रज,1,वेलेंटाइन,3,वेलेंटाइन डे,2,वैभव सिंह,1,व्यंग्य,2075,व्यंग्य के बहाने,2,व्यंग्य जुगलबंदी,17,व्यथित हृदय,2,शंकर पाटील,1,शगुन अग्रवाल,1,शबनम शर्मा,7,शब्द संधान,17,शम्भूनाथ,1,शरद कोकास,2,शशांक मिश्र भारती,8,शशिकांत सिंह,12,शहीद भगतसिंह,1,शामिख़ फ़राज़,1,शारदा नरेन्द्र मेहता,1,शालिनी तिवारी,8,शालिनी मुखरैया,6,शिक्षक दिवस,6,शिवकुमार कश्यप,1,शिवप्रसाद कमल,1,शिवरात्रि,1,शिवेन्‍द्र प्रताप त्रिपाठी,1,शीला नरेन्द्र त्रिवेदी,1,शुभम श्री,1,शुभ्रता मिश्रा,1,शेखर मलिक,1,शेषनाथ प्रसाद,1,शैलेन्द्र सरस्वती,3,शैलेश त्रिपाठी,2,शौचालय,1,श्याम गुप्त,3,श्याम सखा श्याम,1,श्याम सुशील,2,श्रीनाथ सिंह,6,श्रीमती तारा सिंह,2,श्रीमद्भगवद्गीता,1,श्रृंगी,1,श्वेता अरोड़ा,1,संजय दुबे,4,संजय सक्सेना,1,संजीव,1,संजीव ठाकुर,2,संद मदर टेरेसा,1,संदीप तोमर,1,संपादकीय,3,संस्मरण,730,संस्मरण लेखन पुरस्कार 2018,128,सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन,1,सतीश कुमार त्रिपाठी,2,सपना महेश,1,सपना मांगलिक,1,समीक्षा,847,सरिता पन्थी,1,सविता मिश्रा,1,साइबर अपराध,1,साइबर क्राइम,1,साक्षात्कार,21,सागर यादव जख्मी,1,सार्थक देवांगन,2,सालिम मियाँ,1,साहित्य समाचार,98,साहित्यम्,6,साहित्यिक गतिविधियाँ,216,साहित्यिक बगिया,1,सिंहासन बत्तीसी,1,सिद्धार्थ जगन्नाथ जोशी,1,सी.बी.श्रीवास्तव विदग्ध,1,सीताराम गुप्ता,1,सीताराम साहू,1,सीमा असीम सक्सेना,1,सीमा शाहजी,1,सुगन आहूजा,1,सुचिंता कुमारी,1,सुधा गुप्ता अमृता,1,सुधा गोयल नवीन,1,सुधेंदु पटेल,1,सुनीता काम्बोज,1,सुनील जाधव,1,सुभाष चंदर,1,सुभाष चन्द्र कुशवाहा,1,सुभाष नीरव,1,सुभाष लखोटिया,1,सुमन,1,सुमन गौड़,1,सुरभि बेहेरा,1,सुरेन्द्र चौधरी,1,सुरेन्द्र वर्मा,62,सुरेश चन्द्र,1,सुरेश चन्द्र दास,1,सुविचार,1,सुशांत सुप्रिय,4,सुशील कुमार शर्मा,24,सुशील यादव,6,सुशील शर्मा,16,सुषमा गुप्ता,20,सुषमा श्रीवास्तव,2,सूरज प्रकाश,1,सूर्य बाला,1,सूर्यकांत मिश्रा,14,सूर्यकुमार पांडेय,2,सेल्फी,1,सौमित्र,1,सौरभ मालवीय,4,स्नेहमयी चौधरी,1,स्वच्छ भारत,1,स्वतंत्रता दिवस,3,स्वराज सेनानी,1,हबीब तनवीर,1,हरि भटनागर,6,हरि हिमथाणी,1,हरिकांत जेठवाणी,1,हरिवंश राय बच्चन,1,हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन,4,हरिशंकर परसाई,23,हरीश कुमार,1,हरीश गोयल,1,हरीश नवल,1,हरीश भादानी,1,हरीश सम्यक,2,हरे प्रकाश उपाध्याय,1,हाइकु,5,हाइगा,1,हास-परिहास,38,हास्य,59,हास्य-व्यंग्य,78,हिंदी दिवस विशेष,9,हुस्न तबस्सुम 'निहाँ',1,biography,1,dohe,3,hindi divas,6,hindi sahitya,1,indian art,1,kavita,3,review,1,satire,1,shatak,3,tevari,3,undefined,1,
ltr
item
रचनाकार: कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -84- भूपिंदर सिंह की कहानी : विजयरथ
कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन -84- भूपिंदर सिंह की कहानी : विजयरथ
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnLLUY5Lb7o3jtMuX56DIP499rjPd2obVgx7LL9cbv-baETK5BeTqa1bCRkyk66VrMcpJa2vfRbfsVNd7pGQAGcHskeMFQfzokJ0JGEn-yUtIilXjLLDy-ooJqZfTxf70WND7w/?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnLLUY5Lb7o3jtMuX56DIP499rjPd2obVgx7LL9cbv-baETK5BeTqa1bCRkyk66VrMcpJa2vfRbfsVNd7pGQAGcHskeMFQfzokJ0JGEn-yUtIilXjLLDy-ooJqZfTxf70WND7w/s72-c/?imgmax=800
रचनाकार
https://www.rachanakar.org/2012/09/84.html
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/
https://www.rachanakar.org/2012/09/84.html
true
15182217
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content