कहानी झूठा सच अमरीक सिंह कंडा द फ़्तर का मेन बोर्ड एक तरफ से टूट कर हवा में लटका हुआ है। यह कभी भी गिर सकता है। दफ़्तर में सिर्फ़ सहगल ...
कहानी
झूठा सच
अमरीक सिंह कंडा
दफ़्तर का मेन बोर्ड एक तरफ से टूट कर हवा में लटका हुआ है। यह कभी भी गिर सकता है। दफ़्तर में सिर्फ़ सहगल जी और रिसैप्शन पर बैठी लड़की रोज़ी है जो उनकी मुलाज़िम है। उनके बिना वहाँ और कोई नहीं है। कभी ऐसा समय भी था कि यहाँ लोगों का मेला लगा होता था। क्या अचानक वक्त लंगड़ा बन कर खड़ा हो गया है? इस तरह लग रहा है, जैसे सभी जीव जन्तु बड़ी बेपरवाही से धीरे धीरे और लापरवाही से चले जा रहे हैं। ए.सी. वाले इस ठण्डे कमरे में भी सहगल साहब को पसीना आ रहा है।
अगर....नहीं.....नहीं।
इन दस सालों में ‘‘सहगल ट्रैवल्ज़ ऐंड मेरिज़ ब्यूरो'' पर इस तरह का आर्थिक संकट नहीं आया। झूठ बोलकर, धोखा दे कर और किसी न किसी तरह बड़ी से बड़ी रकम इकट्ठी करने की होशियारी सहगल जी में थी।
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‘‘पर आज मेरी होशियारी को क्या हुआ.....? एक करोड़ कोई मामूली रकम नहीं होती। साला मेरे साथ करोड़ों की ठग्गी मार गया। मैं लोगों की टोपी घुमाता हूँ, वह मेरी घुमा गया।'' सहगल जी बड़़बड़ा रहे थे।
मन में ज़रा भी चैन नहीं था। सहगल साहब बीती बातों पर पछता रहे थे। झूठे इश्तिहार छपवाना, झूठे लड़के लड़कियाँ दिखाना, लोगों से ऐंट्री फीसें लेना, पर जिन दस लड़कों से करोड़ों रूपये इकट्ठे किए थे, उनका क्या बनेगा? अभी थोड़ी देर में फ़ोन में या मेरे सामने आ कर लोग मुझे बोलेंगे। कुछ गालियाँ निकालेंगे और कुछ और भी बुरा करेंगे।
मैं उनसे बचने के लिए कौन कौन सी कहानियाँ गढ़ूँगा? कौन से बहाने लगा कर उनको विदा करूँगा? ऐसे विचार सोचते सोचते सहगल ट्रेवल्ज़ के मालिक सहगल जी इधर उधर अपने केबिन में घूम रहे थे। माथे पर चिन्ता की लकीरें पड़ गईं थीं। सब कुछ बिक जाएगा। नींद और बेचैनी से आँखें कुम्लहा गईं थीं। पिछले दस सालों से सहगल जी ने अगर कोई काम किया है तो केवल ऐशपरस्ती, लाटरी डालना और अफ़ीम खाना जो अब पिछले दस सालों से उनके लिए नशा बन गया था। फर्निश्ड दफ्तर में इत्र गुलाबों की खुशबू और हर दो या तीन महीने के बाद नयी से नयी लड़की रखना। बहुत लड़कियाँ आईं और चली गईं। अब केवल पहले केबिन में रिसेप्शन और फोन सुनने के लिए एक ही लड़की है। उसका काम केवल झूठ बोलना है। सहगल मौका परस्त आदमी हैं। समय देख कर बात करने की और काम निकालने का ढंग वह खूब जानते हैं, इनको इनकी इन बातों ने बड़ा बना दिया है। इनके पास अपना निजी पैसा कभी भी, किसी तरह भी नहीं हुआ था। दूसरों के पैसों पर ही सारा काम निर्भर था। दफ़्तर कार में ही आना और कार में ही जाना, बड़े बड़े अफ़सरों या साधुओं का दफ़्तर में आना। इस लिए आस पास रहते लोगों में इनका अमीर होना दर्शाता था। किसी तरह इधर उधर से पैसे इकट्ठे करके सहगल जी ने एक बढ़िया कालोनी में प्लाट ले कर एक कोठी बनवा ली थी। लोगों ने चाहे पैसे कर्ज़ा ले कर बाहर जाने के लिए दिए हों, पर इधर कर्ज़ की किस को परवाह थी।
सहगल जी का कहना था कि ‘‘आदमी को काम करते रहना चाहिए। नतीजा चाहे कुछ भी हो।'' इस बात को उन्होंने बड़ी दृढ़ता से अपना लिया है। इन दस सालों में लड़के लड़कियों को बाहर भेजना, पेपर मेरिज़ करवाने के इश्तिहार, ये सब उन में झूठ बोलने के गुण हैं। उन पर माँ लक्ष्मी की कृपा थी। उनके अच्छे भाग्य सहायक थे। उस समय तो लोगों ने झूठी और छल कपट भरी बातों को सच माना और वो इतनी सफलता हासिल कर सके, पर अब लक्ष्मी की कृपा दृष्टि हट गई है और सौभाग्य का साथ छूट गया है। अब लोगों को इनकी सच्ची बातें भी झूठी लगने लगीं है और उन्होंने इनका साथ छोड़ दिया है। पासपोर्ट की फोटोस्टेटों को आग लगा दी गयी है। यहाँ कोई सात सौ के करीब पासपोर्ट की फोटोस्टेटें होंगीं। इन सबसे दो दो हज़ार ले कर इन को अरब कंट्री में भेजने का बचन दिया गया था। यह स्कीम पिछले तीन महीनों से सहगल जी के दिमाग में थी। सहगल जी अब शरीरक पक्ष से भी थक चुके हैं। वो अपनी घूमने वाली कुर्सी पर बैठ जाते हैं। उनके दोनों हाथ अपने आप गालों को छूने लगते हैं। वो गहरी सांसें भरते हैं। उनके बिल्कुल सामने लक्ष्मी माता की बहुत बड़ी तस्वीर लगी हुई है। शर्मा जी दफ़्तर आ कर कभी कभी इनकी पूजा करते हैं। अचानक तस्वीर में बैठी लक्ष्मी जी खड़ी हो जाती हैं। वे ज़ोर ज़ोर से हंसतीं हैं। पैरों से फूलों को मसल देती हैं कुचल देती हैं। फोन की घंटी बजती है। स्क्रीन पर नम्बर देखते हैं। वर्कशाप से फ़ोन है। दो दिन कार सर्विस को हो गए हैं। उनका कहना है कि बिल दे कर कार ले जाएँ। यह पाँचवीं बार फ़ोन आया है।
‘‘गाड़ी खड़ी रहने दो, मेरे पास समय नहीं है, मैं मसूरी जा रहा हूँ, गाड़ी सेफ से खड़ी कर दो।''
यह एक और झूठ है। वर्कशाप वालों से पीछा छुड़वाया है। फ़ोन की घंटी बजती है। सहगल जी फ़ोन नहीं उठाते। वे सामने हंस रही लक्ष्मी को देख रहे हैं।
‘‘झूठ मेरे जैसे आदमियों के लिए वरदान है, इतने सालों तक मैं झूठ की पूजा से ही खाता रहा हूँ।''
सहगल अपने आप को कोसते हैं। अचानक फ़ोन की स्क्रीन पर नम्बर देखते हैं। यह तो घर का नम्बर है। अचानक एक और डर अन्दर घर कर जाता है। जल्दी जल्दी घर फ़ोन मिलाते हैं।
‘‘हैलो शान्ति..........मैं बोल रहा हूँ।''
‘‘आप फ़ोन नहीं उठा रहे मैंने दो तीन बार रिंग की थी।''
‘‘मैं बिज़ी था हमारी मीटिंग चल रही थी।'' यह एक और झूठ था।
‘‘दो बज गए हैं आपने खाना खा लिया?''
‘‘हाँ हाँ खा लिया, ओके।'' सहगल साहब फ़ोन रखने लगे थे।
‘‘बात सुनो बंटी को बहुत बुखार है.......और कैनेडा से ममता का फ़ोन आया था। वह बहुत ही दुःखी है, कह रही थी मम्मी मैं आत्महत्या कर लूँगी।''
‘‘तुम चिन्ता मत करो, तुम जा कर डाक्टर सिंगले से बंटी की दवाई ले आओ।''
‘‘चिन्ता कैसे न करूँ, अगर लड़की को कुछ हो गया तो मैं ज़हर खाकर मर जाऊंगी। आपको बीस बार कहा है कि ये टेन्शन वाला काम छोड़ दो, न आप अपनी सेहत का ध्यान रखते हैं और न बच्चों का, बंटी की हालत बहुत ही खराब है।''
‘‘तुम चिन्ता मत करो मैं यह काम छोड़ने ही वाला हूँ।''
यह एक और झूठ था।
‘‘ओह! दो बज गए, पता ही नहीं चला।'' क्लाक पर नज़र डाली तो दो ही बजे थे। खाने का टिफन उ.टी.जी. में पड़ा है, पर भूख नहीं है। भूख मर गई है। यह घटिया काम छोड़ दूँगा कुछ भी हो जाए अब यह काम नहीं करूँगा। ..........को फ़ोन करूँ। बताऊं कि मेरी बेटी को परेशान कर रहे हैं। यह सब मेरे कारण ही हुआ है। मैंने पता नहीं कितने लड़कों और कितनी लड़कियों से ठगी मारी है। कितनों की ज़िन्दगी बर्बाद की है। पर अब यह काम ही छोड़ दूँगा। इन्टरकाम की घंटी बजती है। सहगल साहब जी खुद को कोस कर पसीना पोंछ कर फ़ोन उठाते हैं।
‘‘सर, जबरजंग सिंह का फ़ोन है, होल्ड किया हुआ है।''
इसको क्या जवाब दूँ। मैं समझ नहीं पा रहा। इसको जो चेक दिया था उसे बैंक वालों ने डिसआनर कर दिया होगा और रेफ्र टू उ्रायर कह कर मोड़ दिया होगा। अब क्या कह कर पीछा छुड़ाऊं ?
‘‘हाँ जी सर......?''
‘‘अजी सहगल साहब आप अपना नाम बदल कर बेशर्म साहब रख लो, साले एक तो बहुत दिनों के बाद पैसे वापिस करने का नाम लिया और खाते में पाँच पैसे तक नहीं हैं।''
‘‘साहब मेरी बात तो सुनें, मैंने लड़के को कहा था कि पेमेंट जमा करा आए पर उस साले ने दूसरी बैंक में जमा करा दिया। आज शनिवार है, कल को संडे, आप मंडे को कटवा कर पैसे निकलवा लें।''
‘‘अगर मंडे को पैसे न मिले तो देख लेना, साले तुम्हारे गोली आर पार कर दूँगा।''
सहगल जी ने रूमाल से पसीना पोंछा। झूठ का भार बढ़ता जा रहा था। सहगल जी अन्दर से काँप रहे थे। वे रिसीवर को उठा कर नीचे रख देते हैं। लोग मुझे नहीं छोड़ेंगे। मैं कहीं भाग जाता हूँ। पर कहाँ जाऊं ? मुझे लगता है मेरा अन्त आ गया है। दिल बैठता जा रहा है। अपनी उँगलियाँ बालों में घुमाते हैं। बाल और भी खराब हो जाते हैं। ऐनक उतार कर मेज़ पर रख देते हैं। सामने रखी सूई पिनों में से एक सूई पिन उठा कर मेज़ खुर्चते हैं। फिर पेपर वेट घुमाते हैं। ठण्ड में भी पसीना लगातार आ रहा है। फ़ोन का रसीवर उठा कर फ़ोन पर रख देते हैं। तभी घंटी बजती है। स्क्रीन पर नम्बर देखते हैं। बाहर से फ़ोन है। कांपते हाथों से शर्मा जी फोन उठाते हैं।
‘‘हैलो.......कौन........?''
‘‘सहगल मैरिज़ ब्यूरो?''
‘‘जी हाँ बोलिए।''
‘‘जी हमारी लड़की के लिए कोई बाहरी लड़का चाहिए, आपके पास है कोई पेपर वाला लड़का?''
‘‘बहुत जी बहुत, आप फ़ोटो और बायोडाटा दे जाएँ, बाकी सब बाद में देख लेते हैं।''
यह भी एक और झूठ था। रिसीवर रख कर वे फिर से कमरे में घूमने लगते हैं। खुद पर गुस्सा आ रहा है। मुझे बेशर्म कह दिया। वह तो बेचारा सच्चा है। सिर में दर्द होने लगा है। लगता है सुबह से शाम तक जितने भी झूठ बोले हैं वे सारे के सारे सिर में आ गए हैं। सिर में दर्द बढ़ रहा है। सुबह दिल्ली से फोन आया था। यह असामी जो आ रही है, सहगल जी के दोस्त ने भेजी है। दिल्ली ट्रैवल्ज़ वालों ने, जिन्हें वे सम्भाल नहीं पाते वे उन्हें सहगल साहब के पास भेज देते हैं। नहीं नहीं सहगल साहब एक दम अन्दर से कांपने लगते हैं। मैंने बहुत सी ठगी किए हैं, बहुत से झूठ बोले हैं, पर अब मैं यह सब छोड़ कर आराम की ज़िन्दगी व्यतीत करूँगा। मैं इस नर्क से निकल जाउँगा। पिछले दिनों ही पचास लाख का बीमा करवाया है, अगर मुझे कुछ हो भी गया तो बच्चे और घरवाली तो आराम से ज़िन्दगी काट लेंगे। सिर चकराने लगता है।
सहगल जी ने एलप्रैक्स की चार गोलियाँ पानी के साथ घोट लीं। सहगल जी का मन कर रहा है कि वह अपने किसी खास दोस्त को जा कर अपनी सारी ज़िन्दगी की सच्चाई बताएँ, पर इस तरह का कोई दोस्त नहीं है। इतने “समय में वह कभी भी इस तरह नहीं तड़पे थे। अक्सर हालत का सामना बड़े तगड़े दिल से किया था। खु़द के पास कोई पैसा न होते हुए भी बातों से लोगों को बस में करके लाखों रूपये ऐंठते रहे हैं, पर वो आज पहली बार घबराए हैं। पहली बार वो डर, बेचैनी और घबराहट महसूस कर रहे हैं। इंटरकाम की घंटी बजती है। सहगल जी फ़ोन उठाते हैं।
‘‘सर कार से कोई सरदार जी आए हैं। आपको मिलना चाहते हैं। उनके साथ दो औरतें भी हैं।'' ‘‘ओके भेज दो।''
‘‘सति श्री अकाल जी।''
‘‘सति श्री अकाल सरदार जी।''
‘‘आपके दिल्ली वाले दोस्त ने हमें आपके पास भेजा है, हमने ही थोड़ी देर पहले फ़ोन किया था।''
‘‘हाँ जी सरदार जी, पहले आप बताएँ क्या पीएँगे, कोल्ड या काफी?''
सहगल जी ने इंटरकाम पर कोल्ड ड्रिंक्स कह दिए। कोल्ड ड्रिंक्स के साथ फ्राई किए काजू रोज़ी ने बिना कहे प्लेट में सजा कर उनके आगे रख दिए। ये सहगल साहब के गिने चुने स्टाइल हैं। आदमी देखकर चाय, काफी, कोल्ड ड्रिंक्स मंगवाते हैं।
‘‘सरदार जी आप क्या काम करते हैं?''
‘‘हमारी साईकिल की फैक्टरी है जी, लुधियाने में हमारी कोठी है, दिल्ली के शर्मा जी के साथ हमारे बड़े अच्छे लिंक हैं।''
‘‘आप बेबी को कौन देश में भेजना चाहते हैं?'' सहगल साहब असलियत पर आना चाहते थे।
‘‘अमरीका में।''
‘‘अमरीका ही क्यों?''
‘‘बस जी लड़की की ज़िद्द है, इसकी सभी फ्रैंड्ज़ शादी करके अमरीका चलीं गईं हैं।''
‘‘आप कितना पैसा खर्च करना चाहेंगे शादी पर?''
‘‘यह पार्टी देख कर बता देते हैं।''
‘‘नहीं फिर भी......?''
‘‘बीस लाख रूपये तक तो लगा ही देंगे।''
‘‘सरदार जी हमारे पास तो एक से बढ़ कर एक लड़के हैं। समझो के आपका काम हो गया।''
वो लड़की की फ़ोटो और बायोडाटा लिखा कर फ़ीस दे कर वापिस चले गए। सामने लगी लक्ष्मी जी की तस्वीर हंस रही है। तस्वीर वही है। सहगल भी वही हैं।
1764 गुरू राम दास नगर, नज़दीक नैस्ले, मोगा,142001
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