कहानी मोलकी मनमोहन कसाना --- रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज ...
कहानी
मोलकी
मनमोहन कसाना
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रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकते हैं अथवा पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. कहानी भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 है.
अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html
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आज रेशम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था अरे भाई! हो भी कैसे नहीं आज तो कमाल हो गया था टीकम ने जिन्दगी में पहली बार रेशम का कहा जो माना था वरना टीकम ․․․ वह तो रेशम के बोलते ही उसकी जबान खींचने पर उतारु हो जाता था या फिर अनगिनत और नित नयी गालियों की पूरी की पूरी एक किश्त रेशम को बदले में सुना देता था लेकिन आज․․․․․․․․․․․․․․․․
आज वह उसके हल्का सा बुदबुदाते ही वह तुरत फुरत अपने गुढढम गुढढा कपडों को संदूक में से निकाल कर एक दो जोर के फटकार दे कर गन्दी कमीज के उपर से ही पहन कर सीधा समन्दर की साईकिल उधार मांग कर सीधा नेमी सेठ की दुकान पर पहुंच गया।
शायद उसे आज रेशम की रोज की बक बक समझ में आ गयी थी रेशम रोज उसे सुबह शाम सिर्फ और सिर्फ यही सुनाती रहती थी कि “हम पढ़े लिखे भलें ही नाय पर टाईम के हिसाब से हमनने हमारे बालक जरुर पढाने चाहियें․․․․ई सब मेने काऊ ते सीखो नाय पिन कल मैं जब चरी काटके आरई जब मग्गू की टी․बी․ पे ऐ छोरी याई बातअ बैर बैर कै कै इतरा रई रण्डो! जाई ते में कह रईउ तो ते।” वैसे रेशम को यह भी पता था कि और पुरानी बातों की तरह ही शायद टीकम इसे भी सुनकर पहले की तरह ही दो चार गाली या फिर थाप थपेड़े देकर चला जायेगा लेकिन आज तो गंगा उल्टी ही बही थी तभी तो टीकम मुस्करा के कमरे में थैला लेने चला गया था और यह सब सोचकर ही तो आज रेशम खुद को ऐसी नयी ब्हायता समझ रही थी जैसे मानों आज ही गौना हो!
शाम के वक्त जब बाजार से सामान की गठरी लाया था तब कईयों को तो वह पहचान ही नहीं पड़ रहा था भई पड़े भी कैसे आज उसने शादी बाद दूसरी बार ही तो सलीके दाढ़ा बनवाई थी और उन्हीं पुराने शादी के जूतों पर भी पोलीस करवाई थी और पीठ पर लटके थैले से तो वह ऐसा लग रहा था मानों कोई नया फौजी रंगरुट छुट्टी आया हो। आते ही उसने सामान इतने प्यार से रेशम को दिया मानों घर से भागा कोई प्रेमी जोड़े का प्रेमी पहली बार कोई सामान लेकर देता है सामान देकर वह रेशम से बोला “सुनरी ․․․․अ․․․․का․․!”
․․․हां․․․हां․․․․ काई की कैरें जी․․ रेशम भी स्वर में मिश्री सा मिठास घोलते बोली
तभी टीकम बोला ”इन कपड़ान कू और या सामानै कल तेई बालकन कू चालू कर दीजो ․․․․․ समझी कै नई और मैं अभाल आउ या समंदर की दुकान हो आउ․․․․․․! “ इतना कह क रवह पास ही समंदर की दुकान पर चला गया लेकिन और दिन की तरह वह बैठने के बजाय हाथों हाथ वापस आ गया। उसके हाथ में सब्जी की थैली लटक रही थी आते ही रेशम से घी में सब्जी बनाने कह कर जिन्दगी में पहली बार अपने बच्चों से प्यार करते हुऐ उन्हें खिलाने लगा।
और उधर आज टीकम द्वारा जताये गये प्यार को देख कर रेशम फीचर फिल्मों की तरह पिछले गुजरे वक्त में खो गई। जिस दिन वह गौनावली आई थी उसी दिन टीकम की काकी और उसकी ककिया सास ने उसे देखते ही कहा था वो भी अकेले दुकेले में नहीं बल्कि उसी के सामने ही कहा था वह उसे ज्यौं की त्यौं याद है ․․․․․․ बेटा टीकम ! मैं तो तोय अपनैां समझ के कै रई हूं नी तो तैने तो हम पूछेउ नाय ․․․․․․․․ बेटा इन मौलकीन कौ विश्वास कतई मत करियो याय तो तू दबाकै ई राखियो समझो निई तौ मूंड पै ई मूतेगी! ․․․․ और और हां ․․․․ वैसेउ ये सौत खसम खानी ना जाने कब का कर बैठें कोई अतौ पतो नाय ․․․। इतना कह कर वह अपनी आदत के अनुसार कमर व मुहॅ मटका कर चली गई लेकिन अपने साथ वो अरमान ले गई जो देानों नवयुगलों सोचे थे। और रह गई वह बेचारी रेशम सहमी सी। वरना उस मटकीली काकी तो उसे जानती भी नहीं थी। और उधर टीकम वो तो अपनी काकी प्यार भरी बातों में खो गया था और काकी बातें दिल में रख ली । तभी तो एक नवेली दुल्हन को रात सिसकते हुऐ गुजारनी पड़ी। लेकिन इस रात की सुबह कहां थी।
काकी तो चली गई लेकिन चलते 2 एक ऐसी राम कहानी कह गई कि बेचारी रेशम को गौने की मिठाई के बजाय पहली रात को ही पिटाई नसीब हुई। उसके गोरे गाल पर तमाचा मारते हुऐ टीकम बोला ”सासकी! मेलकी तू मैंने मोल ते लई यै पूरे के पूरे अस्सी और पांच हजार दीये हैं तेरी मइया कू․․․․․ जब लाओउ तोय․․․․․समझी अब का मोय लीलैगी ․․ चुप सो जा।“
इतना कह क रवह सो गया। और रह गई रेशम अपने भाग्य को कोसती क्यों की इसके अलावा बचा ही क्या था क्योंकि जो अरमान थे वो तो ढूंढे नहीं मिल रहे थे।
वह अपने परिवार के चाल चलन व इतिहास से पूरी तरह वाफिक थी उसके भाई की शादी भी उसकी कीमत के रुपयों से होने थी। जब वह पैदा हुई थी जब से ही उसके घर वालों की इन रुपयों उम्मीद थी। क्योंकि रेशम ही उनके लिए कमाई का जरिया थी। उसे तो बिकना ही था अगर बिकती नहीं तो इस जालिम दुनिया में उसे भी वही करना पड़ता जो उसकी मां कर रही थी। वह खुलकर विधवा होते हुऐ भी जिन्दगी के मजे ले रही थी
रहा उसका भाई वह भी आदतन कामचोर था। वह तो बस अपनी मां बहिन के आशिकों के रहमों करम पर पल रहा था। रेशम का तो कोई वजूद ही नहीं था वह तो बस एक जरिया था कमाई का कई उसके साथ भी उसके आशिकों ने रात गुजारी थी वो भी जबरदस्ती जब वह चिल्लाई तो उसकी मां ने बस इतना ही कहा था ”कौनसी तू मर रईयै मेरे आगे सती सावित्री मत बनें न जाने कौन 2 पे․․․․․․․․․․․।“ टीकम उसकी मां के यारों में से ही एक का रिश्तेदार था । वह 27/28 साल का हो चुका था उसके मां बाप मर चुके थे । इसी कारण शायद या फिर उसके काका काकी जो कोई भी आता था उससे ही कहते थे कि ”छोरा पागिल अै और पागिल तुम छोरी देंवें तो देओ ।“ इतना सुनते ही वो लोग भाग जाते। वैसे काकी काका की नजर टीकम की हवेली और 20 बीघा खेत पर थी। वह एकबार अपने रिश्तेदार के साथ रेशम के घर गया था उसके मोल भाव के चक्कर में तब उसने ही रेशम से कहा था कि वह उससे ब्याह करना चाहता तो रेशम ने सारी बात मां के उपर डाल के रजामंदी दे दी थी। क्योंकि रोज रोज के बिकने से तो अच्छा था कि एक बार कहानी खत्म हो जाये। उपर से मालूम था ही कि उसकी बरात तो आने वाली थी नहीं ।
टीकम के पूछने पर उसकी बिगड़ैल मां बोली ”पूरे के परे पिच्चासी हजार लूगीं ․․․․․ कोई घासफूंस नाय मेरी छोरी ․․․․ फन्टा है एकदम चक्क माल है․․․․․․कोई ऐसी वैसी उ नई ऐ। “
टीकम हर बात समझ गया था वह धीरे धीरे यह भी जान चुका था कि उसके ब्याह में कई रोड़े हैं एक तो उमर दूजै काका काकी। उपर से बिन मां बाप का सब मेल बैठ गये थे। और उसके लिए तो रेशम लंगूर के हाथ में अंगूर के बराबर थी। वह ठहरा एकदम कृष्ण कन्हैया और रेशम वैसे भी चांद थी टीकम ठहरा बेचारा जरुरतमंद सो उसे क्या मतलब चांद में लगे धब्बों से। कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक फूंक के पीता है इसीलिए टीकम नें चट मंगनी पट व्याह कर लिया। टीकम के ब्याह की खबर चारों तरफ फैल गई। खबरची का कार्य उसके काका काकी ने बढे ही अपने पन के साथ किया। और इसके साथ एक जुमला “निपूते ने कुल की नाक कटवा दी !”
और इस कड़ी की शुरुआत काकी ने अपने प्रेम जाल से भरे उपदेश में की। रेशम की दूसरी जिन्दगी की शुरुआत की रामकहानी ‘‘मोलकी‘‘ से शुरु हुई। और तब से अब तक․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․․ तभी उसके कानों में बच्चे के रोने की आवाज आई । वह भाग कर बहार गई तो दे खा कि बाहर कच्ची मिट्टी से बनें पक्खे के पास खड़ा खड़ा बालक रो रहा था।
और फिर से लौट आई ․․․․․․․․․․․․․․․। सभी को लगा रहा था मानों कभी मेले में खोने बाद वो फिर से मिल रहे हों। और सुबह रेशम ने नये कपड़े बच्चों को पहनाये। वो रोजाना की तरह बहार खेलने चले गये। तभी बहार आवाज सुनाई दी․․․․․ ‘‘ओहो․․․․․․․․․․․․․․․․ अरे राम का कलियुग आ गौ ई․․․․इनने देखो दृया तमाशेय देखो काउ ․․․․ अब तो घूरेन की फिर गबई मेरे रामममम․․․․․․․․! मैलकीन की संतान तौ अब नये कपड़ा पैनें․․․‘‘ तभी टीकम चारा लेकर आ जाता है वह इन्हीं बातों को सुनकर बोला ‘‘․․․․․ओय ․․․․ काकी ․․․ गल्ले कह लई अब रुकउ जा! नीं फिर मत की․․․․․․‘‘ बीच मे ही बात काट कर काकी बोली ‘‘ नीं․․․ फिर काय․․․․․․․ हम तो कैंगें ․․․․ हमारी जीभई सई सई नै कहबै․․․․‘‘अबकी दफा टीकम की आवाज में गुस्सा था ․․․․․․․․ काकी होगी अपनी जगह मेरे बालकन ते कछु कई तो मैंउ पोलन खेलन ․․․․․․․․․अररररर मेरे राम या छोरा कू का हैगो इतो जोरु कौ गुलाम बनगो ․․․․․․․ काकी ते ऐसे बोलतमें․․․․․ अबकी बार काकी दतफट्टी करती कुई बोली। काकी!!!!!! देख लै में खोलू पोलनने अभाल․․․․․․․ तभी काकी का लड़का बीच में ही बोल पड़ा․․․․․․․․कौन सी पोलन ने खेलेगौ तू तेने हमारी इज्जत मिट्टी में․․․․․․․․․ त्यारो माजनों याई लाख है मैं तों रुपयान ते लायो पिन तम तो दो छोरीन के बदले में बहु लाऐ जो रोजिना त्यारी पूजा करै․․․․․․․․․इतना सुनते ही काकी चलने लगी तो वहां खड़ी भीड़ में से समन्दर बोला ‘‘ काकी का हैगौ ‘‘ कछुई नाय बेटा ․․․․․․․․! लेकिन सभी जानते हैं कि क्या हुआ।
आज रेशम चूल्हे पर अकेली नहीं थी।
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लेखक - मनमोहन कसाना
पता - गांव-भौंडागावॅ पोस्ट-जगजीवनपुर तहसील - वैर
जिला - भरतपुर राजस्थान (321408)
e mail - manmohan.kasana@gmail.com
बहुत ही व्यवहारिक कहानी है, जमीन को छूती हुई.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंthanks sir
हटाएंgaon se juda rahna hi iska karan h
kaya lekha ha dear
जवाब देंहटाएंDil se aaj apna hone ka garv ho raha ha
kya bat del se yaar
aap jaise doston ke har pal shath rahne se hi ye hua h thanks
हटाएंकहानी में गांब की भाषा को बिलकुल सटीक प्रयोग कीया है लगा जैसे गांव का सीन सामने ही चल रहा हो। वाकई जमीनी और सोचनीय विषय से जुडी कहानी। लेखक के साथ साथ रविशंकर जी का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंthanks aapko achchi lagi or aapne padi
हटाएंaap mujhe mere blog ekkona.blogspot.com and manmohankasana.wordpress.com par bhi padh sakte h
kasana ji weldone lage raho aapse yahi ummeed thi
जवाब देंहटाएंthanks aapka swagat h
हटाएंthanks
हटाएंkasana ji aapke photoz bhi abhi kurja ke aank me aaye h rangay raghav se releted achche lage
जवाब देंहटाएंगांव का जो खाका आपने खीचां है वह लाजवाव है आज भी गावों में यही हाल है
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