कहानी बदला बुशरा अलवेरा रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकत...
कहानी
बदला
बुशरा अलवेरा
रु. 15,000 के 'रचनाकार कहानी लेखन पुरस्कार आयोजन' में आप भी भाग ले सकते हैं. अपनी अप्रकाशित कहानी भेज सकते हैं अथवा पुरस्कार व प्रायोजन स्वरूप आप अपनी किताबें पुरस्कृतों को भेंट दे सकते हैं. कहानी भेजने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2012 है.
अधिक व अद्यतन जानकारी के लिए यह कड़ी देखें - http://www.rachanakar.org/2012/07/blog-post_07.html
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‘‘जब कोई सपना हकीकत में बदलता है, तो उसे व्यक्त करने के लिए शब्द ही कम पड़ जाते हैं। ऐसा की कुछ आज मेरे साथ हुआ। मेरे वर्षों की मेहनत, मेरा सपना आज मेरी आँखों के सम्मुख यथार्थ हो उठा है। वास्तव में यह अकल्पनीय है।'' डॉ0 अज्ञेय ने इन शब्दों के साथ अपनी डायरी बन्द कर दी और सोने चल दिये।
आज का दिन डॉ0 अज्ञेय के जीवन का एक महत्वपूर्ण दिन था। आज उन्होंने अपने अथक् परिश्रम द्वारा अपने स्वप्न को वास्तविकता का चोला पहना दिया था।
डॉ0 अज्ञेय एक विख्यात् नैनोटेक इंजीनियर थे और पिछले पाँच वर्षों से एक गुप्त प्रयोग में जुटे थे। यह प्रयोग एक विशिष्ट प्रकार के कैमरे को बनाने के लिए आरम्भ किया गया था। जिसमें जैविक ऊर्जा के प्रयोग द्वारा कैमरे को संचालित किया जा सकता था। इस अनोखे कैमरे को उन्होंने नाम दिया ‘आइरिस कैमरा'। यह कैमरा दिखने में एक साधारण नेत्र लेन्स की तरह था, परन्तु नैनो टेकनालोजी के समावेश से अपने आप में एक संपूर्ण डिजीटल कैमेरा था। इसे उन स्थानों पर भी ले जाना संभव था, जहाँ सामान्यता कैमरे को नहीं ले जाया जा सकता था। इस लेन्स रूपी कैमरे को आँखों की पुतलियों पर लगाकर मानसिक तरंगों के माध्मय से संचालित किया जा सकता था। अतएव जब इससे फोटो खींचनी हो तो मस्तिष्क में यह संदेश प्रसारित करके उस वस्तु की ओर देखने से उसका चित्र कैमरे पर उभर आता था और आँखों को एक बार बन्द करके पुनः खोलने पर चित्र कैमरे के मैमोरी कार्ड में संचित हो जाता था। जब इस नैनो मैमोरी कार्ड को कम्प्यूटर से जोड़ देते तो खीचें गये चित्र कम्प्यूटर की स्क्रीन पर उभर आते।
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पुलिस ने लाश के चारों ओर घेरा बना दिया था। पत्रकारों की भीड़ घर के दरवाजे पर उमड़ी हुई थी। सभी जानना चाहते थे कि यह हत्या थी अथवा आत्म हत्या ! पुलिस किसी प्रकार का कोई उत्तर देने में असमर्थ थी। क्राइम ब्राँच के सदस्य वारदात से जुड़े सुबूतों को इकठ्ठा करने में लगे हुए थे।
कल रात डॉ0 अज्ञेय की मृत्यु हो गयी थी उनके शरीर में पौटेशियम सायनाइड का इन्जेक्शन छुपा था।
बेटी प्रज्ञा कुछ भी बता पाने की स्थिति में नहीं थी। पिता की इस अचानक हुई मृत्यु के सदमे से वह उबर नहीं पा रही थी। बड़ा भाई प्रहलाद भी खबर मिलते ही हास्टल से घर के लिए निकल चुका था। प्रहलाद बी.टेक. द्वितीय वर्ष का छात्र था। उसको अपने कानों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था। ‘‘मेरे पिता की तो किसी से कोई शत्रुता भी नहीं थी, फिर किसने हमारे सिर से पिता का साया छीन लिया''? अथवा ‘‘पिता जी ने आत्म हत्या क्यों की'' ? जैसे सवालों से उसका दिमाग फटा जा रहा था।
रात का एक बज रहा था, पर प्रहलाद की आँखों में नींद कहाँ ? रह रहकर आँखों के सम्मुख पिता का चेहरा उभर आता।
वह उठा और पिता के कमरे में जाकर बैठ गया। पिता की हर वस्तु उससे कुछ कहती प्रतीत हो रही थी। हर तरफ खामोशी का साम्राज्य पसरा था। आँखों से आँसू बिना रूके बहे जा रहे थे ............। तभी उसकी नजर किसी वस्तु पर जाकर ठहर गयी .......।
पिता की डायरी मिल गयी थी, उसे। ‘‘ओह, पिताजी तो प्रतिदिन ही अपनी दिनचर्या का संक्षिप्त विवरण डायरी में लिखा करते थे। मृत्यु का कारण शायद इसमें छिपा हो।'' - यह सोचकर उसने डायरी के पृष्ठों को पलटना शुरू किया। ‘‘आज मेरे जीवन का एक बड़ ही महत्वपूर्ण दिन है। आज मुझे मेरे उद्देश्य में सफलता मिल गयी है।'' प्रहलाद ने अगला पृष्ठ पलटा। उस पृष्ठ पर आइरिस कैमरे के आविष्कार की पूरी कहानी वर्णित थी।
उसने आगे पढ़ा - ‘‘ना जाने लोग ऐसा क्यों करते है ? हर चीज का दुर्पयोग क्यों करना चाहते है .....? मेरा आविष्कार मानवता की भलायी के लिए होगा। मैं उसे गलत हाथों में बिल्कुल भी नहीं पड़ने दूँगा.......। इसके लिए चाहें कुछ भी करना पड़े, मैं करूँगा......।'' यही पिता जी की डायरी के अन्तिम शब्द थे।
प्रहलाद के सम्मुख यह बात अब पूर्णतया स्पष्ट हो चुकी थी कि पिताजी ने आत्म हत्या नहीं की थी, अपितु उनका आविष्कार ही उनकी हत्या का कारण था।
उसने मन ही मन अपने पिता की हत्या का बदला लेने की ठानी।
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प्रहलाद कटघरे में खड़ा था। सरकारी वकील उससे सवाल पर सवाल किये जा रहे थे। प्रहलाद बोला ‘‘जब मुझे पता चला कि मेरे पिता के हत्यारे का विवरण फोरन्सिक लैब पहुँच चुका हैं, तब मैंने भेष बदलकर लैब में सफाई कर्मचारी के पद पर नौकरी कर ली। एक दिन मौके का फायदा उठाकर पिता द्वारा आविष्कृत ‘आइरिस कैमरे से, जो उनकी मौत का कारण बना था, हत्यारे के विवरण का चित्र उतार लिया। परन्तु जब साहब मेरा विश्वास करें, मैने उसे नहीं मारा।''
सरकारी वकील में प्रश्नों के बाण छोड़े -‘‘अभी तो तुमने कहा कि तुमने रिपोर्ट्स लैब से चुरायीं और अब कहते हो कि तुमने खून नहीं किया। तुमने क्या अदालत को मजाक समझा है'' ?
वकील ने आगे कहा - ‘‘माई लार्ड, ये अदालत की एहमयित नहीं समझ रहा है और अदालत का कीमती वक्त बर्बाद कर रहा है। खूनी यही है। इसने अपनी पिता की मौत का बदला लिया हैं। कानून को अपने हाथ में लिया है.......।''
‘‘माई लार्ड, बेशक मैं उसे मारने के उद्देश्य से उसके घर गया था, परन्तु जब मैं वह पहुँचा, तो मैंने देखा कि वह अपने 4-5 वर्षीय बच्चे के साथ खेल रहा है। उसे देखकर मुझे अपने बचपन के दिन याद आ गये, कि पिताजी भी मुझे इसी तरह खेलाया करते थे।'' प्रहलाद् अपना पक्ष रखते हुए बोला।
वह आगे बोला - ‘‘तभी मेरे मस्तिष्क में सहसा एक प्रश्न कौंधा। यदि मैंने इसे मार दिया, तो यह बच्चा भी मेरी ही तरह अनाथ हो जायेगा......... और वह भी अपने पिता की मौत का बदला लेना चाहेगा.......। यह सिलसिला फिर कब खत्म होगा ? यह सोचकर मैंने उसे न मारने का निर्णय लिया और वहाँ से चल पड़ा। परन्तु तभी, गोली चलने की आवाज आयी पीछे मुड़कर देखा, तो वह आदमी मर चुका था............। बच्चा बिलख-बिलखकर रो रहा था। देखते ही देखते गोली की आवाज सुनकर गेट पर पेहरा देता चौकीदार वहाँ आ पहुँचा और उसने मुझे धर दबोचा....। और अब मैं यहाँ आपके सामने हूँ।'' इतना कहकर वह चुप हो गया।
अदालत की कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए सरकारी वकील ने प्रहलाद से कहा - ‘‘मिस्टर प्रहलाद बातें बनाने से जुर्म नहीं छुपता आपको अपनी बेगुनाही का सुबूत देना होगा।''
तभी पीछे से एक आवाज आयी -‘‘वह बेगुनाह है ........... उसने हत्या नहीं की...........। खूनी तो में हूँ। ''
यह सुनकर पूरी अदालत भौचक्की सी रह गयी। सबने पीछे मुड़कर देखा। एक दुबली-पतली काठी की लड़की अदालत के दरवाजे पर खड़ी थी। उसने अपना वाक्य पूरा किया और अदालत के सम्मुख आकर ठहर गयी।
उसे देखकर प्रहलाद के पैरों तले जमीन खिसक गयी। वह प्रहलाद की छोटी बहन थी, प्रज्ञा।
चेहरे पर शन्यू भाव लिये वह चुपचाप कठघरे में आकार खड़ी हो गयी।
उसने न्यायाधीश की ओर देखा और फिर बोली - ‘‘जज साहब, मैं डॉ0 अज्ञेय की छोटी बेटी प्रज्ञा हूँ। मेरे पिता एक बड़े ही अच्छे इन्सान थे, उन्होंने कभी किसी का अहित नहीं चाहा। पूरा जीवन विज्ञान की उपासना की और उन्होंने वरदान के रूप मेंं एक अनोखे आविष्कार को यथार्थ में पा लिया। पिताजी ने ‘आइरिस कैमरा' बनाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। कुछ की दिनों के भीतर वे उसे प्रदर्शित करने वाले थे। लेकिन .....................''
इतना कहते-कहते उसका गला भर आया। उसके मुख से शब्द नहीं निकल पा रहे थे ............. दुख और संवेदना के फन्दे ने उसके गले को जकड़ लिया था। अदालत में सन्नाटा छाया हुआ था। शायद ऐसा पहली बार हुआ था कि हत्यारा अदालत में स्वयं चलकर आया था। सभी प्रज्ञा की ओर सम्बोधित थे।
उसने अपने आप को संभाला और बोली ‘‘लेकिन मेरे पिता की हत्या हो गयी .......। पिता का हत्यारा कोई और नहीं उन्हीं का प्रिय शिष्य संजीव था, जो दो वर्ष पूर्व किसी कम्पनी में नौकरी लग जाने के कारण पिता जी के काम को बीच में ही छोड़कर चला गया था।
एक दिन वह घर आया। पिता जी उसे देखकर बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे बताया कि उनका प्रयोग सफल हो गया है। यह सुनकर वह बोला ‘‘मैं इसीलिए हो तो आया हूँ। आप वह आविष्कार मुझे सौंप दे, मैं आपको मुँह मांगी कीमत देने को तैयार हूँ।''
पिताजी उसके इस रवैये से आहत हो उठे। वह बोला - ‘‘शायद आपको स्वयं अपने आविष्कार के महत्व का अंदाजा नहीं होगा। इसकी तो इंटरनेशनल कार्मेट में मुँह मांगी कीमत मिलेगी। आप इसे यहाँ प्रदर्शित करके कितना लाभ पायेंगे ?'' पिताजी अपने शिष्य संजीव को बीच में ही टोका। वे बोले ''संजीव तुम्हें क्या हो गया है ? तुम कितनी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो। इन दो वर्षों में तुम इतने बदल जाओगे मैने कभी सोचा नहीं था ! क्या जीवन में पैसा ही सब कुछ होता है ......................... मान-सम्मान कुछ भी नहीं .............।'' संजीव वहाँ से चला गया। वह दोबारा आया। पिताजी को लगा कि शायद संजीव को अपनी गल्तियों का एहसास हो गया है, इसीलिए वह आया है।
परन्तु उसकी मंशा तो कुछ और ही थी। वह पिता जी के कमरे में गया। मैं भी चुपके-चुपके उसके पीछे गयी। वह पिताजी से मॉगी माँगने नहीं आया था। उसने दोबारा वही बातें शुरू कर दीं। पिताजी ने उसे बुरी तरह डाँटा और घर से निकल जाने को कहा साथ ही कभी न आने की चेतावनी दी।
परन्तु उसी क्षण उसने अपनी जेब से एक सीरिन्ज निकाली। पिताजी कुछ समझ पाते इससे पहले ही उसने वह सीरिन्ज पिताजी के शरीर में चुभा दी। क्षणभर के लिए हर तरफ सन्नाटा छा गया ............ मैं स्तब्ध थी ............... जड़ हो चुकी थी ................. अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो पा रहा था........।
आज न केवल मेरे पिता की हत्या हुई थी बल्कि उनके विश्वास की भी हत्या हो चुकी थी। गुरू और शिष्य का पवित्र रिश्ता दागदार हो चुका था..........।''
इतना कहकर वह शान्त हो गयी। फिर बोली - ‘‘मैंने अपना बदला ले लिया..........। मैं भी अनाथ हो गयी और उसका बेटा भी ..........''
प्रहलाद विस्मित सा होकर अपनी बहन की ओर देखने लगा और सोचने लगा ‘‘काश ............। मैंने ही गुनाह कुबूल कर लिया होता .................''
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बुशरा अलवेरा
बाराबंकी यू.पी. 225001
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