एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य - यथा राजा तथा प्रजा

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यथा राजा तथा प्रजा शास्त्र कहते हैं कि यदि राजा धर्मात्मा हो तो प्रजा भी धर्मात्मा होती है। और यदि राजा अनाचारी व अधर्मी हो तो प्रजा भी ऐस...

यथा राजा तथा प्रजा

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शास्त्र कहते हैं कि यदि राजा धर्मात्मा हो तो प्रजा भी धर्मात्मा होती है। और यदि राजा अनाचारी व अधर्मी हो तो प्रजा भी ऐसी ही हो जाती है। इस प्रकार यथा राजा तथा प्रजा होती है। तथा राजा के पापकर्म से जनता अछूती नहीं रहती। जनता को भोगना पड़ता है। वैसे भोगते तो सभी हैं। दीगर है कोई सुख तो कोई दुख भोगता है।

पहले इतने राजा नहीं थे। एक के अत्याचारी व अधर्मी होने पर दूसरा धर्मी राजा उसे दंडित करता था। आज राजाओं की कमी ही नहीं है। रही दंडित करने वाली बात तो चोर-चोर मौसेरे भाई। मतलब आज का राजा न दंडित करता है और न कराता है बल्कि बचाता है और सहयोगी बन जाता है।

आज के ये मंत्री-संत्री ही आज के राजा हैं। जिसमें से अधिकांश केवल देश लूटने के लिए ही राजा बने हैं। कहावत है कि ज्यादा जोगी मठ उजाड़। देश में इतने नेता क्यों हैं ? देश उजाड़ने के लिए क्या ? कहते हैं कि चीटियों के खाने से भी पहाड़ चुक जाता है। और यहाँ चीटी नहीं अजगर जैसे नेता देश खा रहे हैं। तो अपना भारत कैसे बचेगा ? समझ में नहीं आता कि हमें इतने नेताओं की जरूरत क्यों है ?

आज के राजाओं से कोई कर्म बचा नहीं है। आज के समय में राजा बनने के लिए जिन गुणों को वरीयता दी जाती है; वे हैं- नियम-कानून को ताक पर रखकर मनमानी करना। घोटाला-चोरी, सीनाजोरी और बेइमानी करना , बिना लायसेंस के हथियार रखना, बिना टिकिट चलना, घूसलेना व दिलाना, हत्या-रेप करना और कराना आदि। ये गुण ही कईयों के आभूषण हैं। इन्हीं आभूषणों को धारण करके ये शुषोभित होते है। गद्दी पर बैठते है। देश चलाते हैं। ऐसे में देश की प्रजा कैसी होगी ? इस देश का क्या होगा ?

जनता ने देखा कि हमारे राजा उपरोक्त कर्म करते हैं तथा देश हित की बात करते हैं और अपने हित में काम करते हैं। देश के विकास की बात करते हैं और अपना विकास करते हैं। देश लूटते हैं। घोटाला करते हैं। यही सब करने के लिए राजा बनते हैं। फिर क्या था जनता भी ऐसा ही करने लगी।

सरेआम हत्याएँ होने लगीं। लड़कियों और महिलाओं का रात के अँधेरे में तो छोड़िये दिन के उजाले में ही मुँह काला करने वाले बेखौफ घूमने लगे। जब राजा ही मान-मर्यादा रहित, नीति-अनीति से बेफिक्र सत्तालोभी व भोगी हो तो ऐसा होना आश्चर्य नहीं है। क्योंकि यथा राजा तथा प्रजा सर्वथा सत्य है।

इतना ही नहीं राजाओं के जेबें फूली हुई देख जनता भी जेब भरने पर उतारू हो गई। लेकिन कहाँ राजा और कहाँ प्रजा ? प्रजा के पास जेब भरने के उतने साधन थोड़े होते हैं जितना कि राजाओं के पास। कुछ भी हो कुछ एक को छोड़कर देश की जनता भी इस भले काम में लग गई। और देश चोरों और घूसखोरों का देश बन गया। जैसे फूला हुआ बरसाती मेढ़क टर्र-टर्र चिल्लाता है। वैसे ही घोटाले और घूस से फूले हुए नेता को यह चिल्लाते हुए देख व सुनकर कि हम भष्टाचार खत्म करेंगे और देश का विकास करेंगे। अनैतिक कमाई से फूले हुए लोग भी देश के भ्रष्टाचार और विकास पर ऊँची-ऊँची बात करने में कोई संकोच करने से भी तोबा कर लिए।

दो रूपये का सामान तीन रूपये में बेचने वाले, दूसरों की जेब काटने वाले, मंदिर से चप्पल और जूता चुराने वाले, किसी काम के बदले दस-दस रूपया लेने वाले जैसे दस रुपया लेकर फाइल आगे बढ़ाने वाले, दूसरों का हक मारने वाले इत्यादि जितने भी छोटे-बड़े लुटेरे, घूसखोर और दलाल हैं, देश में भ्रष्टाचार की बात करने में जरा सा भी नहीं शरमाते। क्योंकि हमारे राजा भी घूस लेकर और घोटाले करके बिल्कुल ही नहीं शरमाते। ऊपर से कहते हैं कि यह राजा हरिश्चन्द्र का देश है।

जनता ने देखा कि जो नेता किसी नेता का विरोधी होता है बाद में वह ही उसका सहयोगी बन जाता है। उल्टा-सीधा बोलते रहे, घूसखोर, घोटालेबाज आदि कहते रहे और बाद में एक हो गए। जनता का इस पर खासा प्रभाव पड़ा। जनता ने सोचा जब हमारे राजा ऐसे हैं तब हम लोग क्यों न ऐसा बनें। कमसे कम अपने राजा के लिए तो ऐसा बन ही सकते हैं। इसलिए ही जनता जिस नेता को जानती है कि इसका चाल-चलन ठीक नहीं है। चोर है, घूसखोर है, घोटालेबाज है। उसे भी फिर से चुनने में जरा सा भी नहीं हिचकती।

पहले कहती रहेगी कि इसने कुछ काम नहीं किया, देश को लूट लिया, यह सत्ता में बने रहने के बिल्कुल काबिल नहीं है, इसकी जगह जेल में है, यह चुनाव जीतने योग्य तो है ही नहीं आदि। लेकिन चुनाव आते ही अपने सारे गम व अनुभव भुलाकर उसी का सहयोग कर देती है और वही घोटालेबाज फिर से राजा बन जाता है। यह भी यथा राजा का ही असर होता है। पशु जब किसी खेत में पड़ जाता है तो मार पड़ती है। मार पड़ने पर वहाँ से भाग जाता है। थोड़ी देर बाद फिर उसी खेत में आ जाता है। क्योंकि चोट ज्यादा देर तक याद नहीं रहती। यही हाल जनता का भी हो गया है।

एक बार एक नया राजा दुबारा चुनाव में खड़ा न होने की बात करने लगा। इस पर उसके एक सहयोगी राजा ने कारण पूछा। वह बोला भाई राजा बनते ही मैं राजमद में ऐसा खो गया कि भूल ही गया कि प्रजा ने हमें राजा बनाया था। और प्रजाहित में हमने कई काम करने का वादा भी किया था। लेकिन वादा भूल मैं दादा बनकर गुंडागर्दी करता रहा। पर्चा दाखिले के समय पचास हजार की पूँजी का उल्लेख करने वाला मैं अब दस करोड़ का स्वामी बन गया हूँ। ऐसे में मैं किस मुँह से जनता के बीच जाऊँगा। क्या जनता सवाल नहीं करेगी ? क्या फिर से हमें वोट देगी। सहयोगी हँसा और बोला अभी नया है। इसलिए ऐसा सोचता है। क्योंकि तूँ नहीं जानता कि इस देश की जनता पुष्प हृदयी है। यह तोड़ने वाले के साथ भी जोड़ने वाले की तरह ही बरताव करती है। प्रश्न तो पूछना यह जानती ही नहीं। दस करोड़ की जगह अगर तूँ बीस करोड़ भी जमा कर लेता तो भी जनता तुझे वोट देती। जनता नोट वालों को ही वोट देती है। इसलिए खूब जमाकर। देश में जगह कम पड़े तो विदेश में भर दे। सोच मत। नोच !

हमने और देश के अन्य राजाओं ने भी नोट से अपना घर भरने के पहले ही यह नोट कर लिया था कि जनता को केवल वोट देने से मतलब होता है। हमारा राजा कैसा है ? क्या करता है ? क्या नहीं करता है ? बेचारी जनता इस पचड़े में नहीं पड़ती है। क्योंकि हम भी तो इस पचड़े में नहीं पड़ते कि हमारी जनता कैसी है? क्या करती है, कैसे रहती है ? यथा राजा तथा प्रजा वाली बात भारत में पूर्णतयः सत्य साबित होती है। इसलिए खड़ा हो जा। और बड़ा हो जायेगा।

यथा राजा तथा प्रजा का प्रभाव अमिट है। इसके बारे में जो कहा जाय वही कम है। यह इतना प्रभावशाली है कि आज लोग नौकरी करने से पूर्व, नौकरी पाने से पूर्व सोचते हैं कि इसमें ऊपरी कमाई होगी कि नहीं। होगी तो कितनी होगी ? सबको ऊपरी आमदनी की चिंता रहती है। जब किसी देश के नागरिक इतने गिर जाते हैं, इतने नीच हो जाते हैं तो उस देश का विकास रुक जाता है। तब देश विकास की ओर नहीं विनाश की ओर जाता है। क्योंकि वहाँ अराजकता आ जाती है। हर जगह घूस चलने लगता है। घोटाले होने लगते हैं। हत्या, लूट और डकैती बढ़ जाती है। आज अपने भारत की, महान भारत की यही स्थिति है।

देश की यह स्थिति, यह दशा और ऐसी दुर्दशा केवल इसलिए है क्योंकि यथा राजा तथा प्रजा होती है।

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डॉ. एस. के. पाण्डेय,

समशापुर (उ.प्र.)।

ब्लॉग: श्रीराम प्रभु कृपा: मानो या मानो

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रचनाकार: एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य - यथा राजा तथा प्रजा
एस. के. पाण्डेय का व्यंग्य - यथा राजा तथा प्रजा
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