मन्नू ( कहानी ) - गोविन्द बैरवा ''ओ चाचा, ओ चाचा'' मन्नू की आवाज बार-बार अपने चाचा को पुकार रही थी। चाचा रोहित नोटबुक मे...
मन्नू ( कहानी ) - गोविन्द बैरवा
''ओ चाचा, ओ चाचा'' मन्नू की आवाज बार-बार अपने चाचा को पुकार रही थी। चाचा रोहित नोटबुक में कुछ लिख रहे थे। बार-बार चाचा की आवाज रोहित का ध्यान नोटबुक लेखन से हटाकर मन्नू की तरफ खींच रही थी। 'क्या हुआ मन्नू' मन्नू चाचा के कमरे में आवाज लगाता हुआ आ गया था।' चाचा मुझे खेलने जाना है। मेरा होम वर्क कर दो ना। मुझसे यह गणित का प्रश्न हल नहीं हो रहा है।' मन्नू के चेहरे पर एक लाचारी सा आलम था।
गणित विषय में अक्सर उसके कम अंक आते थे। पर अन्य विषयों में अच्छी पकड़ थी। पर इस समय वह ज्यादा उलझना नहीं चाहता था क्योंकि पाँच बजे का समय उसने रोनक को दिया है क्रिकेट खेलने के लिए।
'मन्नू तुम्हारा काम तुम ही करो। आज मैं कर दूँगा तो कल तुम फिर से मुझसे ही कराओगे। इससे बेटा तुम्हारी कमजोरी बनी रहेगी। तुम प्रयास करो अंत में नहीं हुआ तो मैं बता दूँगा।' रोहित ने मन्नू को बड़े प्यार से समझाया। पर मन्नू के मन में पाँच बजे का कार्यक्रम बार-बार क्रिकेट की याद दिला रहा था। पर आज ना जाने क्यूँ मन्नू अपने चाचा को मनाने में असफलता प्राप्त कर रहा था।
मन्नू ने चाचा की तरफ एकटक देखकर कुछ कहे बिना अपनी पुस्तक व कॉफी को उठा लिया। चेहरे पर साफ झलक रहा था कि मन्नू का गुस्सा मयी मुख-मण्डल अहसास करा रहा था कि मन्नू नाराज है। पर क्या कहे चाचा से क्योंकि चाचा से कहे तो पापा-मम्मी का क्रोध मन्नू पर भारी पड़े। इस कारण वह धीमें कदम बढ़ाए चाचा के कमरे से जाने लगा तो रोहित ने रोका, 'अच्छा ला इस बार मैं कर देता हूँ तेरा यह होम वर्क पर अगली बार तू मेरे पास जब लेकर आना तब तेरे सारे प्रयास असफल हो जाऐं।'
खामोश चेहरे में फिर से उल्लास छा गया। मन्नू ने चाचा को पुस्तक और कॉफी देते हुए कहने लगा, 'चाचा आप करके यही रख देना। मैं लेकर चला जांऊगा।' 'अरे मैं कुछ हल करने का तरीका भी साथ-साथ बतांऊगा तू यहीं बैठ।' रोहित ने मन्नू का हाथ पकड़ कर बैठा दिया।
'चाचा मैं पहले पानी पीकर आ जाता हूँ, फिर आप मुझे समझाना देना।' 'अच्छा तुझे समझने से पहले ही प्यास लग गई। जा जल्दी आना' रोहित ने मुस्कराते हुऐ कहा। मन्नू के जाने के बाद रोहित अपना काम छोड़कर मन्नू के गणित प्रश्न हल करने लग गया प्रश्न हल हो गया पर मन्नू अभी तक नहीं आया।
'अरे मन्नू, मन्नू, रोहित आवाज लगाता हुआ। अपने कमरे से बहार आकर रसोई की तरफ बढ़ गया। रसोई में सरोज भाभी खाना बना रही थी। उसने रोहित की आवाज सुनकर रसोई से ही कहने लगी, 'रोहित मन्नू शीला आंटी के घर गया है।'
इतने में रोहित रसोई के अन्दर प्रवेश करते हुऐ बोला 'क्या भाभी मन्नू शीला आंटी के पास गया है। मैं तो उसके गणित का प्रशन हल करके समझाने वाला था।' 'क्या तुम उसका होम वर्क कर रहे थे।' 'हाँ भाभी मुझसे कह रहा था कि मुझे नहीं आता। समझा ने लगा तो कहने लगा पानी पीकर आता हूँ। लेकिन अब तक नहीं आया तो देखने चला आया।' सरोज ने रोहित को देखकर जोर से हँसते हुए कहां 'चाचा जी, आपका भतीजा आपको मूर्ख बनाकर चला गया, साथ में मुझे भी।'
'क्या कहा भाभी आपको भी, कुछ देकर गया क्या वह शैतान मन्नू।'
'नहीं रोहित मेरे पास आकर कहने लगा। मम्मी कहे तो शीला आंटी के पास रखी आपकी साड़ी को आज मैं लेकर आता हूँ।' 'मैंने कहा की पहले अपना होम वर्क तो कर लो कल अंक मिलेंगे। उसने बड़े रोब से कहा 'वो तो मैंने कर लिया, चाचा को जाँच के लिये दिया है। सोचा आपका काम भी आज समाप्त कर लूँ। वैसे भी आप मुझसे रोजाना कहती है। शीला के घर से साड़ी लेकर आना मन्नू। मैंने भी उसे इजाजत दे दी। मुझे क्या मालूम था की वह तुम को सौंप गया है कार्यभार।
'भाभी अभी 14-15 साल का ही है मन्नू। उसकी इतनी योजनाबद्ध शरारत अहसास कराती है कि आने वाले समय में वह अच्छी सरकारी सेवा प्राप्त करेगा।'
'तुम भी रोहित उसकी इस शरारत को अच्छाई में ले रहे हो। पर एक काम कर शीला के घर फोन लगाकर पूछ की मन्नू आया की नहीं।'
'हाँ भाभी! मैं पुछता हूँ।' रोहित रसोई घर से बैठक हॉल में आ जाता है। घर में रखे फोन से शीला आंटी के नम्बर मिलाता है। इतनें में भाभी की आवाज सुनाई दी, 'लगा क्या फोन' 'हाँ भाभी! रिंग जा रही है।'
'हैलो! हैलो! कौन शीला आंटी।' हाँ बोल रही हूँ। आप कौन? 'मैं आंटी रोहित। हाँ रोहित कैसे याद किया आज आंटी को। आंटी मन्नू आया है क्या, आपके यहाँ ? 'नहीं तो।' 'अच्छा आए तो फोन करके बता देना।' 'अच्छा।'
'क्या हुआ मन्नू पहुँच गया शीला के घर।' सरोज बैठक रूम में प्रवेश करती हुई बोली।
'नही भाभी मन्नू वहाँ नहीं है।' 'यह लड़का भी ना जाने कहाँ गया होगा। स्पष्ट कह कर भी नहीं जाता।' सरोज के चेहरे पर चिन्ता के बादल मंडरा रहे थे। अचानक दरवाजे की घण्टी बजी। सरोज दरवाजा खोलने बैठक रूम से बाहर आ गई। रोहित अपने कमरे की तरफ चला गया।
'नमस्ते आंटी। रोहित तैयार हो गया क्या?' पड़ोस में रहने वाली मोहिनी दरवाजा खुलते ही सरोज से कहने लगी। 'अरे मोहिनी अंदर आ, आज कल नजर नहीं आती, कहाँ पर हैं तू अभी।
'क्या बताउँ आंटी परीक्षा नजदीक आ गयी है, इसलिए कहीं आना जाना होता नहीं। ये समय कोंचिग के लिए बनता है। रोहित मुझसे पहले तैयार हो जाता है, पर आज रोहित घर नहीं आया तो मैं खुद आ गई। कहाँ है रोहित।'
'अरे रोहित! रोहित देखे आज मोहिनी तुझसे पहले तैयार होकर आ गयी है। तेरे कोचिंग का समय भी हो गया है। तैयार हुआ के नहीं।' सरोज ने दरवाजे पर खड़े-खड़े ही आवाज लगाई। 'हाँ भाभी! तैयार हो गया। आता हूँ।' रोहित की आवाज कमरे से कदम बढ़ने के साथ सुनाई दी।
'हैलो! मोहिनी कैसी हो?' 'क्या रोहित इतनी देर तक क्या कर रहे थे। चलना नहीं है क्या? आज कोचिंग।' 'अरे बाबा चलना है, ये मन्नू के चक्कर में देर हो गई।' 'अच्छा तो मन्नू भी आज भाई रोनक के क्रिकेट टीम का खिलाड़ी है।' मोहिनी ने सरोज की तरफ देखकर कहा।
'अच्छा तो यह बात है। क्रिकेट खेलने गया है मन्नू। अपनी माँ व चाचा को मुर्ख बनाकर।' सरोज को अपने बेटे का लक्ष्य को जानकर चिन्ता दूर की। 'अच्छा भाभी मैं चलता हूँ।' रोहित ने भाभी की तरफ देखकर कहॉ।
'रोहित रास्ते मे मन्नू मिले तो उसके कान खींचना।' 'अच्छा भाभी।' रोहित व मोहिनी दरवाजे से बाहर निकलकर सामने वाली सड़क पर चले जा रहे थे। दोनों के मन में प्रेम प्रसंग का दीपक कुछ माह से उदयमान हो गया था। इससे पहले अच्छी दोस्ती थी। पर दोस्ती का अगला पड़ाव प्रेम भी होता है। और दुश्मनी भी। पर यहां प्रेम था।
'अरे सरोज मन्नू दिखाई नहीं दे रहा है। कहां पर है वह' मनोहर ने अपनी पत्नी से पूछा। सरोज अपने कार्य में इतना व्यस्त हो गई थी की उसको मालूम ही नहीं था की मन्नू अभी तक घर नहीं लौटा। जब पति ने मन्नू के बारे में पूछा तो उसका ध्यान बेटे मन्नू की तरफ गया। 'अजी! सुबह वह रोहित व मूझे मूर्ख बनाकर घर से निकला था। मोहिनी से मालूम चला की उसके भाई के साथ क्रिकेट खेलने गया है। पर अभी तो काफी समय हो गया। आ जाना चाहिए था उसे, कहाँ रह गया मन्नू।'
सरोज के चेहरे में बेटे के प्रति चिन्ता छा गई थी। आखिर कभी ऐसा नहीं हुआ। मन्नू समय पर घर चला आता, पर आज उसके आने में देरी का रूझान घडी़ बता रही थी। 'रोहित, ओ रोहित' सरोज ने रोहित के कमरे की तरफ देखकर आवाज लगाई। 'हॉ भाभी! क्या हुआ।'
'जरा मोहिनी को फोन करके पूछ तो, उसका भाई घर आया कि नहीं।' 'हाँ भाभी! फोन करके पूछता हूँ।'
'हैलो! मोनिका, भाभी पूछ रही है कि तुम्हारा भाई घर पर है या नहीं?' 'रोहित उसे तो आए काफी समय हो गया।' 'जरा उसको फोन दोगी।' 'अच्छा अभी देती हूं।
'रोनक, ऐ रोनक।' मोहिनी ने अपने भाई को आवाज लगाई। 'हाँ दीदी! क्या हुआ।' 'अरे रोहित घर से फोन आया है। ले बात कर।' रोहित बहन के हाथ से फोन ले लेता है।
'हैलो! आंटी, मैं आंटी नहीं अंकल बोल रहा हूँ। रोहित अंकल।'
'हाँ अंकल! क्या हुआ।' 'रोहित क्या मन्नू तुम्हारे साथ क्रिकेट खेल में था?'
'अंकल मन्नू खेल में होता तो जीतकर आते, उसके ना होने से मैच भी हार गऐ।'
'क्या कहा? मन्नू तुम्हारे साथ खेल में नहीं था?'
'नहीं अंकल।'
रोहित, सरोज व मनोहर के चेहरे पर बेटे के प्रति कही चिन्ताएँ अब बढ़ गई थी। जगह-जगह फोन द्वारा बेटे के बारे में पूछताछ की गई। पर हर जगह ना शब्द ही सुनना पड़ा। कुछ अशुभ होने का रूझान बार-बार सरोज के चेहरे को स्पष्ट झलक रहा था।
'कहा गया मेरा बेटा मन्नू। आप उसे लेकर आओ ना' सरोज ने अपने पति मनोहर को दबी हुई आवाज में कहा।
' रोहित चल पुलिस के पास मन्नू के खाने की रिर्पाट लिखवाकर आते हैं।' मनोहर ने अपने भाई रोहित को साथ लेकर पुलिस थाने में रिर्पाट लिखा दी। रात आँखों ही आँखों में गुजर रही थी। पुलिस मन्नू का फोटो व हुलिया लिखकर तलाश में लग गयी। मनोहर वह रोहित भी सड़क पर तलाश में निकल पड़े। मोनिका, सरोज के साथ मोहल्ले में एक-दूसरे से पूछताछ में लग हुई थी।
'मनोहर जी आप यहाँ कैसे?' गाड़ी रोककर शर्मा जी ने पूछ लिया।
'शर्मा जी क्या बताउँ। मन्नू बेटा सुबह से घर से बाहर निकला है अभी तक लौटा नहीं। पुलिस को भी सूचना दे दी। वह भी खोज में लगी है। मैं भी बेटे को खोजने घर से निकल गया।'
मनोहर के कथन में बेटे की तड़प को लिए हुए गहरी मायूसी थी। बार-बार चिन्ताओं व द्वन्द्व का दबाव बेटे के प्रति मन में कहीं तरह की दुविधा को जाग्रत करवा रही थी। इतनी ठण्ड़ी रात में भी मनोहर के चेहरे पर पसीने की बूंद बार -बार चेहरे को भिगो रही थी।
अचानक शर्मा जी बोल पड़े-'पर मैंने तो मन्नू को अतुल हास्पिटल में देखा था। यहीं करीब शाम के सात बजे के आसपास।' 'क्या कहाँ शर्मा जी मेरा बेटा हास्पिटल में, क्या वह ठीक तो है।' अनहोनी के बादल पिता मनोहर के चेहरे पर घबरहाट रूप में नजर आने लगता देखकर शर्मा जी तुरन्त बोलने लग गये।' अरे, आप चिन्ता मत करिये मनोहर जी, आपका बेटा मन्नू ठीक है।' पर पिता अपनी आँखों से बेटे देखना चाहते थे।
'कृपा करके मुझे अतुल हॉस्पीटल छोड़ देंगें।' मनोहर ने शर्मा जी को विन्रम भाव से निवेदन किया।
'क्यूँ नहीं चलिए।'
हॉस्पिटल करीब आते ही मनोहर जल्द बाजी में शर्मा जी को धन्यवाद कहना ही भूल गये। एक पिता में बेटे के प्रति तड़प भला कहां याद रखती है। आँखें बेटे को सही सलामत देखना चाहती है ओर दिल उसे गले लगाकर चढ़ी वेदना के बोझ को उतारने के लिए आतुर है।
देखा हॉस्पिटल पूरा शांत था। मनोहर के कदम जनरल वार्ड की तरफ बढ़ गये। एक नम्बर वार्ड में कुछ नजर नहीं आया। पर दो नम्बर वार्ड़ में एक लड़का पलंग पर लेटा था। उसके पास एक औरत बैठी थी। मन्नू बार-बार पटि्टयां गीली करके लड़के के सिर पर लगा रहा था।
'बेटा मन्नू! मन्नू' मनोहर ने बढ़कर मन्नू को गले लगाया। 'बेटा तू यहाँ क्या कर रहा है? कौन है ये? तू जानता है तेरे कारण घर में सभी परेशान हैं।'
मन्नू के सामने कुछ शिकायत वह भी प्यार भरी पिता मनोहर द्वारा दी जा रही थी। 'रूक पहले तेरी मम्मी को फोन कर के बता दूँ, तू मेरे पास है। ना जाने उसका क्या हाल हो रहा होगा।'
मनोहर घर पर फोन करने लगता है। मन्नू पटि्टयों को गीला करके सोए लड़के के सिर पर लगाने का नियम बनाऐ हुए था।
'हैलो! सरोज, सरोज मन्नू मेरे पास है। सही सलामत, चिन्ता मत करना। मैं उसे लेकर जल्दी तेरे पास आ रहा हूं।'
'मेरा बेटा ठीक है, कहाँ है। उससे मेरी बात कराओ।' रोने के कारण सरोज के मुंह से शब्द भी ममत्व लेकर निकल रहे थे।' मम्मी मैं ठीक हूं। आप चिन्ता मत करना मैं अभी आ जाउंगा।' इतना कहकर मन्नू ने पिता को फोन थमा दिया।
'बेटे ये कौन है?' मनोहर ने मन्नू से पूछा।
'पिताजी ये मेरा दोस्त है' काफी दिनों से बीमार था। कल अंक मिलेंगे और इसका हॉम वर्क पूरा नहीं था। इसलिए मैं इसका होम वर्क करने इसके घर चला गया। होम वर्क पूरा करने के बाद मैं आने ही वाला था की इसकी तबीयत ज्यादा खराब हो गई। हॉस्पिटल लेकर आना जरूरी था। पास का हॉस्पिटल यही पड़ता है। मुश्किल से दोस्त प्रवीण को यहाँ लेकर आये। आकर पता चला कि डॉक्टर साहब घर चले गये। कम्पाउंडर से कहकर गए की कोई भी आए तो मना कर देना। हमको भी कम्पाउंडर ने स्पष्ट मना कर दिया।' मन्नू अपने पिता को सारी घटना बता रहा था। साथ ही साथ गीली पटि्टयों को बदल-बदल कर दोस्त के सिर पर लगा रहा था।
'अच्छा तो मन्नू तेरे दोस्त को किसी ने देखा।' मनोहर ने जानने की चाहत से अपने बेटे मन्नू को पुछा।
'डॉक्टर ने देखा' 'पर तू तो कह रहा था कि डॉक्टर यहाँ नहीं थे और कम्पाउंडर से कहकर गए की कोई भी हो उसे मना कर देना' फिर डॉक्टर यहाँ कैसे आऐ?' मनोहर के चेहरे पर जिज्ञासा जानने की बन गई।
'पापा मैंने कम्पाउंडर से कहा की आई0ए0एस मामा ने कहा था कि मेरा नाम लेना कोई दिक्कत् नहीं होगी' और मामा ने अपने ड्राईवर को यहाँ छोड़ने का भी कहा'
मेरी बातें सुनकर कम्पाउंडर सोच मे पड़ गया। मुझसे पूछने लगा आई0ए0एस अधिकारी तुम्हारे मामा हैं। मैंने सीना फुलाकर उसके सामने हाँ भर दी, और कहा की मैं मामा से कह दूँ कि डॉक्टर आना नहीं चाहते।' इतने में पापा कम्पाउंडर ने मुझे रोककर डॉक्टर साहब को फोन लगाकर सारी बात बताई। मेरी बातों का प्रभाव और मामा का अधिकारी स्वरूप डॉक्टर को हॉस्पिटल ले आया।'
'बेटे ने ये नया रिश्ता कहा से जोड़ दिया स्वयं मनोहर भी नहीं जानता था कि उसका साला आई0ए0एस अधिकारी हैं। जबकि सत्यता ये है कि मनोहर के साला ही नहीं है। सरोज इकलौती संतान है। जिसका इकलौता पुत्र ये मन्नू है।'
'पर बेटा ये सरासर झूठ है।' मन्नू को पिता मनोहर ने समझातें हुए कहा।
'पिताजी ऐसा न कहता तो मेरा दोस्त न जाने किस हालत में होता। वैसे भी आज बिना कहे काम बनता कहां है।' मन्नू ने पिता को आज की यथा स्थिति बड़े स्पष्ट शब्दों में कह दी।
मनोहर मन ही मन मन्नू को देखकर महसूस कर रहा था की कितना अपनापन है, इसके मन में दोस्त के प्रति और उससे ज्यादा समय पर उपयोगी इसकी सूझ।
'अच्छा बेटे घर चले मम्मी तुझे देखकर ही अपनी चिन्ता दूर करेगी।'
'हाँ पापा! वैसे भी डॉक्टर के कहे अनुसार दो घण्टों तक गीली पटटियाँ सिर पर बार-बार रखने की प्रक्रिया भी पूरी हो गई और प्रवीण का बुखार भी अब उतर गया।'
मन्नू ने दोस्त प्रवीण के करीब जाकर कहने लगा 'प्रवीण अब मैं घर जाता हूं।' प्रवीण ने सिर हिला कर जाने का संकेत दे दिया।
आंटी जी अब चिन्ता की बात नहीं प्रवीण ठीक है। पास बेठी प्रवीण की माँ को मन्नू ने कहा तो प्रवीण की माँ मन्नू को गले लगाकर कहने लगी 'बड़ा होशियार है आपका बेटा मन्नू। आज यह था, वरना ना जाने क्या गुजरती मेरे बेटे पर।'
बेटे की समझदारी व बड़प्पन सुनकर मनोहर को बेटे पर गर्व हो रहा था। उसने बड़े प्यार से मन्नू के सिर पर हाथ रखते हुए कहा 'अब चलते है घर मन्नू।'
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गोविन्द बैरवा पुत्र श्री खेमाराम जी बैरवा
आर्य समाज स्कूल के पास, सुमेरपुर
जिला-पाली, राजस्थान, 306902
ई मेल- govindcug@gmail.com
bahut badia, a heart touching story
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