डाक्टर चंद जैन की कविता मेरा मन प्रश्नों के माणियो को ले कर प्रस्तुत है ये मेरा मन तुम ही तो जीवन साथी है संग चलते हो मेरा मन अंतः संग्राम...
डाक्टर चंद जैन की कविता
मेरा मन
प्रश्नों के माणियो को ले कर प्रस्तुत है ये मेरा मन
तुम ही तो जीवन साथी है संग चलते हो मेरा मन
अंतः संग्राम की ज्वाला बन प्रस्तुत है ये मेरा मन
तर्कों का तरकस ले केर आया हू ये मेरा मन
मेरा रण सैनिक सारा शब्द जगत है मेरा मन
क्या हिंदी क्या अंग्रेजी सारा विश्व जगत है मेरा मन
नग्न नृत्य सा प्राण खिचता कौन हंस रहा मेरा मन
प्रश्नों के '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''मेरा मन
स्वान पथिक सा कौन रो रहा तुम क्यों चुप हो मेरा मन
अग्नि तपिश में कौन गल रहा उतर दे दो मेरा मन
अग्नि तपिश में कौन पल रहा ये बात बता दो मेरा मन
अग्निवेश क्यों मौन खड़ा है कुछ तो लावा उगलो मन
अग्नि पथिक सा कौन चल रहा मेरे अंदर मेरा मन
अश्व योग कर में थामे कौन रखा है मेरा मन
पांचजन्य उदघोष हो रहा उत्तर में ये मेरा मन
प्रश्नों के ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''' मेरा मन
क्या सूफी सज्जन केवल मंदिर मस्जिद और गिरजा में रहते है
फिर शांति दूत सा पूंछ हिलती दर पे कौन खड़ा है मन
हमको अपना दूध पिलाती ये सच की माता है मन
मानवता की पाठ पढ़ाती फिर क्यों कटती ये गौधन
जो माता का हत्यारा है मानवता का हत्यारा है
हत्यारा पर विजय प्राप्त कर दानवता का संहारक बन
भारत की धरती भी क्या गौमाता का रक्त पिएगा
नीलकंठ फिर विष उगलेगा मानव मौत मरेगा मन
प्रश्नों के ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''मेरा मन
जो मदिरा प़ी राह पड़ा है उस पर मानव क्यों हँसता है
जो रक्तो को प़ी कर बैठा उससे मानव क्यों डरता है
श्वेत रंग रक्तिम सी आभा इस धरती पर राज कर रहा
ये महलों में ये बैंकर में नागराज सा डसता चेहरा
ये भारत का ये विदेश का वैश्वीकरण की बात कर रहा
ये क्या अम्बा , मोहन का होगा या जीसस ;अल्लाह का होगा
प्रश्नों के '''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''मेरा मन
या जिहाद हो उग्रवाद हो किसका मानव रोज़ गल रहा
बाबर था या बिन लादेन था किसका दानव रोज़ बढ़ रहा
इतिहास रो रहा उसको भूलो वर्तमान की तो कुछ सुध लो
कमल नयन बर्दास्त न करना गर कोई छुपा है तेरे अंदर (भा ज पा )
तेरा आशीर्वाद सत्य है या आस्तीन में कोई सर्प है (कांग्रेस )
गाँधी टोपी नकली चेहरा क्या तेरे अंदर भी बहरा
मावोवादी क्यों छिपता है तेरा झंडा रक्त सना है
प्रश्नों के ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''मेरा मन
नेता हो या अफसर हो मंत्री हो या संत्री हो
मालिक हो या नौकर हो शासक हो या शासित हो
चाहे संसद की देहरी हो या देश का ह़र गलियारा
न्याय पालिका चीख रहा है अब तो सुधरो मानव मन
अब मानव दर दर बिकता है अब दानव अंदर रहता है
सत्य खरीदी जाती है मातृ भूमि बिक जाता है
बेटा ही माँ का हत्यारा है और विदेश बदनाम हो रहा
प्रश्नों के ''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''''मेरा मन
doctor chand jain "ankur"
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मोतीलाल की कविता
भाषा के पिछड़ेपन मेँ
दर्पण का टूट जाना
हिला डालता है मन को
जैसे कोई सत्य
द्रोपदी से जाकर लिपट जाती हो
मूल्य का आटा
जब गिला हो जाता है
उम्र के तमाम बंधन
चटकने को आतुर
सूर्य सा चमक उठते हैँ
आज याद नहीँ आता
गोल थाली सा
भाषा की जबड़ेँ
और सूखे पपटोँ मेँ कहीँ
उतर आता हो दूध
यह भी याद नहीँ
बस कहीँ जुगनू सा भले ही चमका हो
उन प्रक्रियाओँ को बदलने के लिए
जिसे छोड़ा नहीँ जा सकता
किसी हाशिये पर
और नहीँ पकाया जा सकता
इस आँच मेँ कोई भी रोटी
जब निकल आता हो कोई पहाड़
तुम्हारे समुद्र के भीतर से
और काई के फिसलन पर
जब चाँद फिसल जाता हो
गाय रंभाती नहीँ हो
और नहीँ रची जाती हो कोई कविता
तब जरूरत होती है एक भाषा की
जो उड़ सके आकाश मेँ
पिँजरे से छुटे पंछी सा
या फिर कोई बूँद
मोती बनने की छटपटाहट मेँ
बंद होने को तैयार हो सीप मेँ
कुछ शेष जरूर रहता है
मन के भीतर
हमारे शब्दोँ के भीतर
कहीँ अंतस मेँ
तब फूट पड़ती है भाषा
उन तमाम असंगत को
कूड़ेदान मेँ फेँकने के लिये ।
* मोतीलाल/राउरकेला
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गौरीशंकर मिश्र ‘आदित्य’ की कविताएँ
एक किरन आती लहराती, मन के सूनेपन मेँ|
चमक रहा हो जैसे कोई,चन्दा नील गगन मेँ|
कर कितने संकेत हमेँ वो तबसे आँक रहा है !
फिर फिर के मेरे अतीत मेँ या वो झाँक रहा हैँ!
ढ़ूंढ़ रहा है या कोई छवि , इस टूटे दरपन मेँ!
चमक रहा हो जैसे कोई-----
शंका से तुम दूर खड़े हो, या मंजिल पा ली है?
स्वागत है आओ आना हो, सिंहासन खाली है|
या देके आवाज बुलालो मुझको ही आंगन मेँ|
चमक रहा है-----
(वादा है) हँसते गाते दिन, खुशियोँ की रात लिए आउँगा!
द्वार तुम्हारे सपनोँ की बारात लिए आउँगा!
भर दूँगा मैँ अपना सारा प्यार तेरे दामन मेँ|
चमक रहा हो जैसे कोई चंदा नील गगन मेँ|
एक किरन.....................!
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मीनाक्षी भालेराव के देसी गीत
बंजारों मन
म्हारो मन हो गयो बंजारों
बन-बन भटके
सब जंगल छान्यो
म्हारो मन हो गयो बंजारों
देखू नही थन तो
साँस म्हारी रुक जाव
भटकन लगे नयनं म्हारा
चहू और तोहे देखू
म्हारो मन हो गयो बंजारों
नयना बरसन लागे
होट तरसन लागे
काया तडफन लागी
म्हारो मन हो गयो बंजारों
सासुजी
ओ सासुजी कहे बहाया
गजरा पानी में !
रात सजन ने मुझे जो
लाकर दिया !
गजरा पहन मैं
महकती थी !
ओ नन्द जी काहे
चुराई मेरी नथनी जी
रात मुहं दिखाई में
जो सजन ने दी !
नथनी पहन कर मैं
शर्माती थी !
ओ जेठानी जी
कहे चुराई मोरी चुनरी जी
सैया ने जो मोहे रात
उपहार में दी !
चुनरी पहन कर मैं
जगमगाती थी !
सैयां गये परदेश
सखी ओरी सखी सुन ले
तू सुन पीड़ा मेरे मन की
मोरे सैयां गये परदेस
सुनी सेज मोहे चिढ़ाये
मन मोरा बहका जाये
रातों मै नींद न आये
सखी-----------------------
बिन देखे साजण की सूरत
मैं रह नहीं पाऊँ
साजण कोंनी आयो तो
मैं जीते जी मर जाऊं
सखी------------------------
सुनो-सुनो जीवन म्हारो
ह्रदय लहू-लुहान
बिन साजण के ऐसे लागे
सावण बिण संसार
सखी -------------------
धमचक
धमचक होने दे रे
धमचक होने दे
घूंघट उठने दे
चोली ढीली होने दे
सरक गया पल्ला तो क्या
कंचन काय का दर्शन होने दे
धमचक-------------------------------
हाथ पकड़ने दे मुझ को
बाँहों में मुझ को भरने दे
यूँ ही बीत ना जाये जवानी
गुत्थम-गुत्था होने दे
धमचक---------------------------------
नहीं चाहिए खाट और
नहीं चाहिए बिस्तरा
चल खेतों में छोरी
अपनी गोदी में मुझ को सोने दे
धमचक--------------------------------
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शशांक मिश्र भारती की कविता
हमने बदलते देखा........
हमनें बदलते देखा सड़कों पर
गिरगिट सा इंसानों को
मानवता का रक्त चूसते
मानवता के शैतानों को।
मरता यदि कोई व्यक्ति
रोटियां स्वार्थ की सिकती हैं
चीखें गूंजती चौराहों पर
मानवता खड़ी सिसकती हैं।
मरने वाला कोई भी हो
जाति-वर्ग को देखा जाता हैं,
अंधता यहां इतनी बढ़ गई
अपने जाति-वर्ग से नाता हैं।
इनसे तो श्वान अच्छे हैं
आपस के सम्बन्ध निभाते हैं
ट्रक के नीचे कोई कुचला तो
आकर के सब शोक मनाते हैं
इनका न कोई जाति-धर्म है
न दानवता से ही नाता हैं
दुनियां भले चौपाया बोले
दो पाये से श्रेष्ठता पाता है॥
शशांक मिश्र भारती
हिन्दी सदन, बड़ागांव,
शाहजहांपुर, 242401 उ.प्र.
ईमेलः-shashank.misra73@rediffmail.com
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