कैरेबियन कवि एमी सेसार की लम्बी कविता जन्मभूमि में वापसी अनुवाद गोपाल नायडू प्रस्तुति बसंत त्रिपाठी काले गुलाब के उठ खड़े होने की द...
कैरेबियन कवि
एमी सेसार की लम्बी कविता
जन्मभूमि में वापसी
अनुवाद
गोपाल नायडू
प्रस्तुति
बसंत त्रिपाठी
काले गुलाब के उठ खड़े होने की दास्तान
एमी सेसार की प्रदीर्घ कविता ‘जन्मभूमि में वापसी' इतिहास, वर्तमान और भविष्य के तीनों कालों और उनकी चुनौतियों के बीच अफ्रीकी अस्मिता से लबरेज एक ऐसे कवि का संघर्षशील सर्जनात्मक दस्तावेज़ है जिसकी पंक्तियाँ शब्द, लय और घटनाएं संभ्रांत क़िस्म की उदासीनता और चुप्पी पर हमला करती हैं। कविता का फोर्स और कवि की जद्दोजहद तो पाठक इससे गुज़रते हुए महसूस ही करेंगे, लेकिन असल मुद्दा है एक कवि का अपनी जन्मभूमि में वापसी का निर्णय। दुनिया की तमाम कौमों के लिए जो सभ्यता की यात्रा में निर्वासित या उपेक्षित होते हैं या हो चले जाते हैं, वापसी या पुनर्वास की यात्रा उनके लिए उतनी आसान नहीं होती, क्योंकि वहाँ इतिहास का मलबा होता है, वर्तमान का अड़ंगा होता है और भविष्य की सरहदें धूमिल होती हैं। ऐसे में अपनी�अस्मिता को तलाशने का संघर्ष इतिहास से शुरू हो कर भविष्य की संकल्पनाओं तक खिंचता चला जाता है, एमी सेसार की यह कविता इसी अर्थ में जीवट संघर्ष की कविता है क्योंकि यहाँ सामूहिक पहचान की दावेदारी संघर्ष की अनिवार्यता के बीच उभरती है।
इस कविता का संबंध दुनिया की उन तमाम सभ्यताओं से है जो दीर्घकालीन गुलामी के चलते पराजयबोध की सीमा तक पहुँच गये और फिर प्रतिकार की चेतना से संपन्न होकर निरपराध से लगने वाले वर्तमान पर प्रश्न उछालना शुरू किया। गुलामी चाहे राष्ट्र की हो, प्रजाति की हो, जाति या वर्ण की हो या फिर पूंजी, टेक्नॉलॉजी और धर्म की, उसका चरित्र लगभग एस-सा होता है। केवल भौगोलिक परिवेश के अनुसार घटनाओं और आदेशों की शक्लें बदल जाती हैं। इसलिये यह कविता जितनी अफ्रीका की है उतनी ही भारत की भी। अफ्रीका यदि रंगभेद की श्रेष्ठता-हीनता से ग्रस्त है तो भारत जाति-प्रजाति-भाषा-वर्ग-लिंग की श्रेष्ठता-हीनता के अनेक संस्तरों के बीच जीता है इसलिये यह कविता भारतीय भू-भाग में पहचान की दावेदारी के तमाम संघर्षों को सर्जनात्मक ऊर्जा प्रदान कर सकती है।
अफ्रीका का कालापन, जो यूरोप के लिये केवल उपहास या शोषण का मामला है, एमी सेसार वहीं से अपनी बात शुरू करते है। ‘अर्धरात्रि के अंतिम क्षणों में' एक टेक की तरह पूरी कविता में गूँजती है और इसी टेक के साथ सेसार गोरों द्वारा काले लोगों पर किये जा रहे जुल्म की दास्तान कहते जाते हैं। कविता जैसे-जैसे बढ़ती है उसकी संरचना में मिथक, इतिहास, भूगोल, यातना पात्र, विचार और प्रतिकार घुलते जाते हैं और जो हासिल होती है, वह है, गोरों के ख़िलाफ़ काले लोगों की दृढ़ दावेदारी की कविता। और उन तमाम लोगों के पक्ष में खड़ी हुई एक कविता, जो इतिहास की चालक शक्तियाँ तो हैं लेकिन जीवन की बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं।
यह सोचने वाली बात है कि एमी सेसार ने इस कविता में अतियथार्थवादी शैली का प्रयोग क्यों किया है? क्या यह उनके लिये केवल सुविधा थी? इससे पहले इस शैली पर चंद बातें। दो महायुद्धों के बीच यथार्थ को अपर्याप्त मानकर जिस अतियथार्थवाद ने ज़ोर पकड़ा था, उसका मुख्य उद्देश्य प्रशांत से दिखने वाले दिक्-काल के भीतर छुपी आशंकाओं-यातनाओं-संदेहों को नाटकीय उग्रता के साथ रखना था। इसके लिये यथार्थ को स्वप्न और कल्पना की दुनिया से गुजारते हुये चेतना को झकझोरना जरूरी था। डाली की पेंटिग्स इसके उदाहरण हैं। अपनी एक पेंटिंग में वे मेज़ पर खड़े एक पेड़ की डाल पर कपड़े की तरह लटकती घड़ी को दिखाते हैं, वहीं मेज़ पर एक घड़ी पिघल कर गहरे काले में विलीन होने की प्रक्रिया में है। घड़ी यानी समय के साथ इस तरह का व्यवहार केवल अतियथार्थवादी शैली में ही संभव था। यही शिल्प कुछ भिन्न रूप में मुक्तिबोध की कविता विशेषकर ‘अंधेरे में' में भी मिलता है। मुक्तिबोध जब सत्ता पक्ष के जुलूस या अपने ‘आत्म' के निर्वासित होने की घटना रचते हैं तब वे अतियर्थाथवादी शैली से प्रभावित दिखायी देते हैं। कहा जा सकता है कि किसी ख़ास प्रवृत्ति या मनःस्थिति के चरम को दिखाने के लिये अतियथार्थवाद एक सुविधा है। सेसार की यह कविता भी अतियथार्थवादी शैली से शुरू होती है। कविता में ऐसे कई दृश्य हैं, जैसे, एक अंग्रेज औरत की सूप की तश्तरी में तैरती हुई हॉटनहाट की खोपड़ी, या हज़ारों बाँस की खूँटियों को गले में ठूँस दिया जाना, या मुंह की गाढ़ी लार में बंदूक की गोली का होना, लेकिन अंत तक पहुंचते-पहुंचते स्वयं वे इस शैली से किनारा करते जाते हैं, क्योंकि शोषण को दिखाने और चेतना को झकझोरने के लिये भले ही यह शैली एक सुविधा हो लेकिन जब विरोध की बात होगी तो यथार्थ को बिना विकृत किये ठोस तरीके से और अपने मंतव्यों को साफ़-साफ़ रखना होगा। ‘अंधेरे में' में भी मुक्तिबोध फैंटेसी रचते-रचते अंतिम बार जब स्वप्न से बाहर आते हैं तो हर गली, मकान, चेहरे और उनकी अभिव्यक्ति देखने की बात कहते हैं।
सेसार की इस कविता की ख़ासियत यह भी है कि वे रंग को इतिहास-मिथक- वर्तमान और भविष्य की घटनाओं और चिंताओं के बीच एक राष्ट्रीयता में बदल देते हैं। और यह राष्ट्रीयता अनिवार्यताः यूरोपीय साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ खड़ी हो जाती है। भारत की स्थिति इससे बिल्कुल भिन्न है। वहाँ हर खड़ी हुई राष्ट्रीयता साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष करने की बजाय अपनी निकटवर्ती राष्ट्रीयताओं पर हमला करती है। ऐसे में भारतीय भूभाग में रह रहे किसी भी भाषा के कवि के लिए चुनौती सेसार के सामने खड़ी चुनौती से ज़्यादा जटिल और भयानक है। दिलचस्प यह है कि चुनौती जितनी भयानक है उससे निपटने की हमारी तैयारी उतनी ही सामान्य है। और राष्ट्रीयताओं से जुड़ा हुआ सबसे जागरूक तबका यानी मध्यमवर्ग तो लगभग अपराध की सीमा तक उदासीन या फिर किराये की आक्रामकता से लैस है। इसलिए साहित्य में उपस्थित राष्ट्रीयता-उपराष्ट्रीयता किसी बड़े जनांदोलन को उभारने में कारगर भूमिका नहीं निभा पा रही है। बेशक इसके सामाजिक और राजनीतिक कारण भी हैं लेकिन इतना तो मानना ही होगा कि हमारे यहाँ कवि-कर्म के तार सामाजिक जिम्मेदारी और व्यक्तिगत निष्ठा के बीच बुरी तरह उलझे हुए हैं। इसे सुलझाने के लिये हमारी ही ज़मीन में पैदा होने वाले सेसार या नेरुदा या हिकमत का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार है।
1935 में फ्रेंच और फिर 1956 में अंग्रेजी में छपी यह कविता एक लंबे समय बाद हिंदी पाठकों के सामने है। हालांकि इसे पढ़कर आप महसूस करेंगे कि इसे काफ़ी पहले हमारे सामने होना चाहिये था।
-बसंत त्रिपाठी
यह अनुवाद
फिलिस्तीनी कवि महमूद दरवेश के लिये,
जन्मभूमि में वापसी का ख़्वाब जिनकी कविताओं में है
साथ ही अमृतराय के लिये भी
जिन्होंने हिन्दी पाठक को हावर्ड फॉस्ट से परिचय कराया
और उन जाने-अनजाने तमाम साथियों को जिन्होंने आत्मश्लाघा से ऊपर उठकर
अनुवाद का काम किया।
-गोपाल नायडू
मेरी बात
नीग्रो चेतना और संघर्ष की वैचारिक प्रेरणा के लिए कैरेबियाई कवि और विचारक एमी सेसार की कविता ‘जन्मभूमि में वापसी' विश्व साहित्य में अलग पहचान के लिए याद की जाएगी। कविता आपको झंझोड़ती चलती है। गोरे शासक और उनकी गुलामी का मानसिक ढांचा, नीग्रो अस्मिता का संघर्ष, सांस्कृतिक दृष्टि, इतिहास की पुनर्व्याख्या का अहसास रह-रहकर उभरता है। सत्ता के वर्चस्व की प्रक्रिया में राजनीति की ऊहापोह स्पष्ट नज़र आती है। ‘जन्मभूमि में वापसी' समूचे विश्व में आज़ादी और अस्मिता की हिफाजत के लिए जारी जीवन-संघर्षों को मानवीय सूत्र में पिरोती है। देशांतर के अन्य कवियों और संघर्षरत लोगों के साथ कविता निडरता से खड़ी दिखाई देती है। इसे वास्तव में क्रांतिकारी राजनीतिक कविता कहा जाना चाहिए।
सेसार के समकालीन अफ्रीका के जुलु भाषा के प्रख्यात कवि मजीसी कुनेने ने भूमिका में सविस्तार कविता और उनकी जीवनयात्रा पर रोशनी डाली है। (भूमिका का अनुवाद देखें) मजीसी ने ‘जन्मभूमि में वापसी' में शिल्प के अद्भुत प्रयोग और ताज़गी, दुःख-दर्द, यातनाओं के चित्र, अफ्रीका की प्रकृति, मिथक, संस्कृति और उपनिवेशवाद की राजनीति की उपस्थिति का साफ़-साफ़ जिक्र किया है। मजीसी कुनेने की कविताई जांच ने अनुवाद को नई दिशा दी। देसी भाषाओं में विदेशी भाषाओं की कृतियों के अनुवाद के औचित्य पर चर्चा होनी चाहिए। संभव है कि अफ्रीका महाद्वीप की रंगभेद आधारित कृतियों और भारत के दलित साहित्य, दोनों के बीच विमर्श रोचक हो जाए। दोनों की चेतना में सामाजिक भेदभाव और उत्पीड़न के ख़िलाफ़ आक्रोश है। कविता और भूमिका का अनुवाद करते हुए जो भावबोध भारतीय संदर्भ में उभरे, उन्हें अनुवादक की हैसियत से पाठकों से बांटना चाहता हूँ।
सुप्रसिद्ध चित्रकार पाब्लो पिकासो ने घनाकार (क्यूबिक फॉर्म) की प्रेरणा अफ्रीका महाद्वीप के शिल्पों से ली और इसी वजह से उन्हें आधुनिक चित्रकला में विशिष्ट स्थान हासिल हुआ। यह किसी से छिपा नहीं है कि कला जगत में पिकासो को बुलंदी पर पहुँचाने वाले पे्ररक तत्व यानी अफ्रीकी आदिवासी शिल्पकारों का क्या हश्र हुआ। उन्हें अपनी ही ज़मीन से बेदखल कर दिया गया। शताब्दियों बाद रेड इंडियनों से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने क्षमा मांगी। यही हाल भारत के आदिवासी और दलितों का है। तथाकथित विकास के नाम पर आदिवासियों और दलितों को उनकी ही ज़मीन से वंचित कर दिया गया और अब तक शोषण का सिलसिला जारी है। निश्चय ही इतिहास के अनुभव से सीखने की जरूरत है, पर सब-कुछ उजाड़ देने वालों और उजड़ जाने वालों, दोनों के लिए क्षमा के क्या मायने? क्षमा शब्द की राजनीति के कुपोषित गर्भ में पल रहे गहरे और व्यापक जख्मों को एमी सेसार ने कविता में बड़े ही नाटकीय अंदाज में प्रस्तुत किया है। यह समझना अनुचित होगा कि दुर्दशा केवल काले लोगों (यहाँ जानबूझकर ‘अश्वेत' शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया, जो हकीकत की तरह चोट नहीं पहुँचाता) की है। ‘अतियथार्थवाद' के प्रभाव से सराबोर सेसार के कविता संसार में ‘जन्मभूमि...' के मार्फत साक्षात भारत का दलित, आदिवासी मौजूद है। वह विश्व की समस्त श्रमिक जातियों के स्वाभिमान और अस्मिता का प्रेरणा स्रोत है।
सत्ता की शक्ति के विद्यमान ढांचे में अस्मिता और स्वाभिमान की लड़ाई की पहल केवल वंचित तबका ही करता है। यही कारण है कि भारत में दलितों-दमितों के संघर्ष का विशिष्ट पहलू है- हिन्दू धर्म के भीतर संघर्ष। हिन्दू धर्म के भीतर का संघर्ष नीग्रो संघर्ष से भिन्न है। इसी भिन्नता के कारण दलितों-दमितों का संघर्ष उलझा और अटका हुआ लगता है। अस्मिता लक्ष्य है। लक्ष्य दिखाई देता है, किंतु ऐसा लगता है कि उस तक पहुँचने के लिए चौतरफा संघर्ष करना होगा, क्योंकि संघर्षरत तार मिलकर लड़ने के बजाय एक-दूसरे में उलझ गए हैं। हिन्दू धर्म की विकृति के विरोध में डॉ. अम्बेडकर तिरस्कृत लोगों को बौद्धधर्म में ले आए। घोषणा की- “हम विषमता के बंधन से मुक्त हुए। हम समानता के पक्षधर हैं। हमने मानवता की अवहेलना करने वाली सांस्कृतिक परम्पराओं से पीछा छुड़ा लिया।” डॉ. अम्बेडकर एकमात्र ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने हिन्दू धर्म की विकृति तोड़ने के लिए मनुस्मृति का दहन किया। अम्बेडकर ‘जाति का उन्मूलन' निबंध में कहते हैं, “दलित समस्या के मूल में न नस्ल है, न जाति, बल्कि धर्म है।” और वे यह भी कहते हैं - “मेरी जन्मभूमि नहीं है।”
दलित साहित्य भी इस तरह की समस्याओं को उजागर करता है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद जनसंहार के बाद पश्चिमी दुनिया में ‘दादावाद' के नाम से आंदोलन हुआ। साहित्यकार, चित्रकार, पत्रकार एकजुट हुए। उन्होंने कला को ही नकार दिया। उन्होंने कहा कि वे जो रच रहे हैं, उसे कला का दर्जा नहीं दिया गया तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। आंदोलन आगे बढ़ना चाहिए। इस तरह की भूमिका दलित साहित्यकारों ने भी निभाई।
दलित साहित्य सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक आंदोलन है। दलित साहित्यकार बार-बार कहते हैं कि वे विद्रोह को अभिव्यक्त कर रहे हैं। उनका लेखन मुक्ति का स्वर है। आंदोलन है। इसका अर्थ यह नहीं कि दलित साहित्य में अन्य सूक्ष्म भावनाओं और संवेदनाओं का स्थान नहीं है। हर प्रकार की भावना की तह में विद्रोह तो होता ही है। विद्रोही चेतना का व्यापक और गहरा असर भारतीय भाषाओें में देखा जा सकता है। सामंती पूंजीवाद और सांस्कृतिक संकट के दौर में भाईचारा, समता, स्वतंत्रता का विघटन भयावह है। पुनर्व्याख्या/पुनर्दृष्टि के स्वर साहित्य में उभरे हैं। मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का स्वर दलित साहित्य में है। यह चेतना मार्क्स के विचारों से अलग नहीं है। मराठी में दलित साहित्य में बहुत काम हुआ है। देशांतर तक चर्चा का रास्ता भी खुला है।
औपनिवेशिक ताक़तों की समाविष्ट नीति का जिक्र एमी सेसार की कविता में है। सभी वर्गों को एकजुट कर विकास करने की आड़ में फूट पड़ी। कमोबेश यह स्थिति भारत में दलित तबके के भीतर आज़ादी के बाद नज़र आने लगी। अपने ही लोगों के बीच से उभरकर एक अलग वर्ग बन गया। उसके विचार और समस्याएं भी अलग थे। आपसी टकराहट बढ़ी, जबकि सभी क़दम-क़दम पर शोषण का सामना कर रहे थे। ये सारी बातें भी दलित साहित्य का हिस्सा बनीं। संघर्षरत वर्गों का बंटवारा मानवीय मूल्यों की स्थापना में रोड़ा बना और अभिव्यक्ति की प्रखरता कुंद होती गई। यह ख़तरा ब्राह्मणवादी सभ्यता से कम नहीं था। यह सभ्यता वंचित वर्ग से उभरे लोगों को समरसता, संस्कार भारती जैसे मंचों के अधीन अपनी बांहों में भर लेना चाहती है। जैसे श्रेष्ठ सभ्यता एकलवादी संस्कृति की गोद में ही हो। बहुलवादी संस्कृति को नष्ट करने की प्रक्रिया के स्वर पर अधिक ध्यान देना होगा। अन्यथा श्रेष्ठ सभ्यता के नाम पर फंसने का ख़तरा अधिक है। एमी सेसार की कविता इस मायने में कुछ ज़्यादा ही पैनी है। दलित साहित्य में भी कुछ ऐसे ही प्रयास की ज़रूरत है।
कालों की समस्याओं के संदर्भ में सेसार ने फ्रेंच कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा दिया था। सेसार मानते थे कि कम्युनिस्ट पार्टी में रंगभेद की वास्तविक समझ नहीं है। पार्टी वंचित वर्ग की सामाजिक स्थिति से परिचित नहीं है। पार्टी ने समस्याओं के निर्मूलन के लिए केवल आर्थिक पहलुओं की ओर ध्यान दिया था। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी भी इस तरह की धारा में आगे बढ़ती रही। विमर्श के बाद मार्क्सवाद और अम्बेडकरी विचार के साथ एक आंदोलन का सूत्रपात हुआ, दोनों के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी हुए। कम्युनिस्टों के बारे में कहा जाता है कि यह विश्व का सबसे सजग तबका है। बात सच्ची है तो कम्युनिस्टों को विचार करना होगा कि वर्ण-व्यवस्था में रहते क्या उनकी आंतरिक व्यवस्था सफल हो पाएगी? एमी सेसार या भारत के जिन विचारकों ने मार्क्सवाद के सामने रंग/वर्ण/जाति का प्रश्न खड़ा किया, उन लोगों ने मार्क्सवाद को समृद्ध ही किया है। नीग्रो और दलित साहित्य विश्व साहित्य को मजबूती ही प्रदान करते हैं। मानवता के मुखौटे खींचकर इंसानी शक्ल सामने लाते हैं।
‘जन्मभूमि में वापसी' लंबी कविता है। कविता फ्रेंच में लिखी गई है। पहला अनुवाद अंग्रेजी में हुआ। स्वाभाविक तौर पर फ्रेंच मेरे लिए ‘कालाअक्षर' है। यह अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित है। कविता के अनुवाद में पूरी कोशिश और समझ के बावजूद कमजोरियां होंगी। कविता का अर्थ नष्ट न होने देने का मैंने सचेत प्रयास किया है। यह प्रयास अकेले संभव नहीं था। अनुवाद का महत्त्व सामूहिकता में है। अनुवाद की प्रक्रिया में सहयोगी हाथों का जिक्र जरूरी है। ये हाथ हैं, मित्र विनोद व्यास, सुब्रोतो दत्ता, बसंत त्रिपाठी, शांतनु श्रीवास्तव, उमेश यादव, सुनील सोनी और प्रज्ञा व माधुरी। अनुवाद की प्रक्रिया में बसंत त्रिपाठी की टिप्पणी भी इसके साथ है। पिछले तीन दशकों के ‘लेखनी मौन' तोड़ने के लिए भाई प्रकाश चंद्रायन का आभार। शुक्रिया! इन सबसे कई वर्ष पहले, जब मुझे भाषा का सही अर्थ भी नहीं मालूम था, फादर परेरा मेरे जीवन में आए। कक्षा चौथी तक मैं हिन्दी स्कूल में पढ़ा था। अंगे्रजी के अक्षर भी नहीं पहचान पाता था। पिता ने अगले ही वर्ष अंग्रेजी स्कूल में दाखिला करवा दिया। कक्षा में अंग्रेजी से लुका-छिपी खेलता रहा। फादर परेरा समझ गए। कक्षा से अलग समय देकर अंगे्रजी पढ़ाई। यह भी समझाया कि भाषा केवल रोजगार का साधन नहीं है। महात्मा फुले ने भी कहा था, “भाषा ज्ञान के रास्ते खोलती है।” कहना अनुचित नहीं होगा कि अनुवाद के सामर्थ्य का बीज फादर परेरा कई वर्ष पहले मुझमें बो चुके थे। और यह पेड़ जैसा भी बना, आपके सामने है।
-गोपाल नायडू
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मजिसी कुनेने एमी सेसार के समकालीन कवि और जुलु भाषा के महत्त्वपूर्ण अफ्रीकी कवि हैं। यहाँ मजिसी कुनेने की भूमिका प्रस्तुत है जो एमी सेसार के रचनात्मक महत्त्व को रेखांकित करती है।
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जन्मभूमि में वापसी
मजिसी कुनेने
औपनिवेशिक जन और इंसानियत के पक्ष में- विशेषकर जनता और उसकी आज़ादी के लिये- बीसवीं सदी एक युग के तौर पर याद की जाएगी। इस महत्त्वपूर्ण वक्तव्य को जानने के लिये हर किसी को उपनिवेशवाद की सच्चाई, याने उसके सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक आशय को समझना होगा। साथ ही इन आशयों के पार जाकर और अधिक प्रश्न उपस्थित करने होंगे - कि मनुष्य कब से मनुष्य है? मनुष्य होने का अर्थ क्या है? बगैर स्वयं की व्याख्या के उसका अस्तित्व क्या है? फ्रांज फैनान इस तरह की समस्याओं से रू-ब-रू हुए हैं। उनके कार्यों के जरिये औपनिवेशिक दुनिया की स्थिति को समझा जा सकता है। उनका सरोकार न केवल औपनिवेशिक काले लोगों से बल्कि उपनिवेशवादी गोरे लोगों के मनोविज्ञान से भी है। चूँकि शासक और शासित लोागों के रिश्तों में रंग-विभाजन का मापदण्ड अक्सर काम करता है इसलिए ‘रंग' यहाँ महत्त्वपूर्ण है। गोरे लोग काले लोगों के आर्थिक शोषण के साथ-साथ उनकी हकीकत को एक नया रूप भी दे देते हैं, जिससे वे स्व-इच्छा से गुलाम और नौकर बन सकें। अफ्रीका की रंगभेद व्यवस्था की फौरी ज़रूरत यह थी कि काले लोगों की वास्तविकता को तहस-नहस किया जाए और ख़ात्मे के लिये ताना-बाना बुना जाए। इसी भूमिका के तहत उपनिवेशवाद का ‘गोरा दर्शन' विकसित किया गया है। एक उदाहरण से इसे समझा जा सकता है कि यदि काले लोग इसे नकारते हैं तो उन्हें कम्युनिस्ट और आंदोलनकारियों की पंक्ति में डाल दिया जाता है। फैनान इस बारे में कहते हैःं ‘जब भी नीग्रो मार्क्स के संबंध में चर्चा करते हैं', उनकी (गोरों की) पहली प्रतिक्रिया यही होती है- ‘हम तुम्हें अपने समकक्ष ले आये हैं और अब तुम हमें अपना संरक्षक मानने से इंकार कर रहे हो। एहसान फरामोश! तुमसे किसी तरह की अपेक्षा नहीं है।' संक्षेप में, नीग्रो की दासता के सवाल पर गोरों के घिसे-पिटे तर्कों की लाचारी नज़र आती है। जरूरी नहीं है कि गोरे लोगों के केवल अभिकथन पर प्रश्न किया जाय (इसके पहले उनकी पवित्र-सत्ता पर प्रश्न करें), चूँकि गोरों के इन दावों की स्वीकृति में नीग्रो गुजर-बसर करता है। गोरों की नज़र में इसलिए नीग्रो मनुष्य ना होकर एक ‘प्रकार' है। एक अनोखा प्रकार याने अच्छा नीग्रो वही हो सकता है जो गोरी सत्ता तय करेगी। गोरे लोगों के उद्देश्यों की पूर्ति न होने पर इन काले लोगों को शैतान का अवतार माना जाएगा। इस अवतार को न्यायसंगत समझती है और कानून-व्यवस्था के तहत खुद को गोरी दुनिया अधिकारी समझती है। बगैर सामान्य कानूनी कार्यवाही के नीग्रो लोगों को मृत्यु-दंड देना, अपने पक्ष में सभी जन-सूचना केन्द्रों को गोरी दुनिया का आह्नान कि नीग्रो को अलग-थलग कर कुचल दो। एलड्रीज क्लीवर ने अपनी पुस्तक ‘बर्फ पर आत्मा' (ैवनस वद प्बम) में प्रश्न कियाः ‘हत्यारों को हत्या करने के लिए उत्तेजित करने के कारण क्या थे? क्या गोरों को यह चिंता थी कि माल्कम काले लोगों के संघर्ष को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जा रहा था?' वह प्रमाणित कर रहा था कि कैसे गोरी दुनिया काले ‘नायकों' को पैदा कर रही है! ज़ाहिर है जो उनका बोझा ढोने वाले लोग हैं।
‘अमेरिका के शासकों ने अपनी चाल से लाखों चेतनशील नीग्रो में नशीले पदार्थों की आदत डालकर उन्हें वश में कर लिया और इस तरह उन्होंने नीग्रो नेतृत्व को सुनियोजित ढंग से नपुंसक बनाया। पुरस्कार, दंड, उत्पीड़न आदि के जरिए... कोई भी नीग्रो, जो नेतृत्व करता और गोरी सत्ता का हथियार बनने से इंकार करता तो उसे जेल में डाल दिया जाता या मार दिया जाता या देश निकाला दिया जाता, बर्बाद कर दिया जाता, काले लोगों को उनकी ही ज़मीं पर अलग-थलग कर दिया जाता है।'
दक्षिण अफ्रीका, अंगोला, मोजाम्बिक के काले लोग, वास्तव में तमाम उपनिवेशी अवाम का गोरी दुनिया ने अपनी सत्ता के लिए इस्तेमाल किया। क्लीवर ने इसकी सटीक चर्चा की है। काले लोगों के विद्रोह से यह स्पष्ट होता है कि बीसवीं सदी मानवता की एक नई व्याख्या की मांग करती है। यह समस्या गोरों की उतनी नहीं है जितनी कि कालों की है। तीन सदियों से गोरे लोग हमारे प्रजातीय प्रतीकों और मानवीय मूल्यों को विकृत कर रहे हैं। काले लोगों को इस विकृत व्यवस्था को ध्वस्त करना है और इसे हासिल करने के लिए कालों को, उसकी वास्तविकता को अपनी शर्तों पर पुनः परिभाषित करना चाहिए। इसलिए गोरों द्वारा कालों पर किए गए बुरे कृत्यों के ख़िलाफ़ मात्र विद्रोह ही पर्याप्त नहीं है। जरूरी मुद्दा है- सभ्यता और मानव सिद्धांत के आधार पर मनुष्य की भूमिका की- इसे समझने के लिए अभी तक गोरे लोगों ने सभ्यता के गुणों को मात्र गोरी सत्ता कायम रखने के लिए ही विश्लेषित किया है। इस मनुष्य की परिभाषा के तत्व क्या हैं? गोरे उपनिवेशकों की सड़ी-गली भ्रांतियों के ख़िलाफ़ काले लोगों का जो वास्तविक योगदान है इस नई दुनिया के लिए, वह मनुष्य की नई परिभाषा के नए तत्व हैं :
हमारे लिये कुछ करने लायक बचा नहीं है दुनिया में/
हम दुनिया के पिछलग्गू हैं/
हमारा काम दुनिया के साथ चलना है। -सेसार
क्या यह नस्लवाद नहीं है? काले लोगों की इस हकीकत के दावे से गोरों की आवाज़ में भय है। सेसार उसका उत्तर देते हैःं “दुनिया में हमारा स्थान है इस विशेषता पर किसी को भ्रमित नहीं होना चाहिए।” यह वक्तव्य जब सेसार दे रहे थे- यह हू-ब-हू नस्लवाद के परिप्रेक्ष्य में है और जिसकी परिभाषा का मूलाधार काले लोगों की भूमिका से है- कालों को ना केवल मनुष्य बल्कि छोटी जाति के रूप में गुलाम बनाया गया था। यह वक्तव्य प्रमाणित करता है कि काले लोगों की सच्चाई को तोड़-मरोड़ कर उन्हें जीतने वाले गोरे विजेताओं की संख्या न्यून थी। कुशल तरीके से आर्थिक शोषण, मिथ्या-मनोविज्ञान, छ� मानवशास्त्र, बड़ी तादाद में काले लोगों को अपनी ज़मीन से बेदखल कर गोरों की वसाहत स्थापित करना, सांस्कृतिक सिद्धांत थोपना, यही है पिछली तीन सदियों का उपनिवेशवाद अफ्रीका के काले लोगों का।
काले लोगों के उपनिवेशवाद में ताक़तवरों द्वारा कमज़ोर लोगों को कामचलाऊ काम की तरह सहजता से वर्गीकृत नहीं किया जा सकता। जंगल का कानून और मजबूत हो गया, यह संकेत है इस बात का कि जिसकी लाठी उसकी भैंस। मानवता के लिए दमितों की आंतरिक ऊर्जा की चीख गूँज उठती है तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है�ः
उस दिन जड़ से पूर्णतः उखाड़ दिया गया/दूसरों के संग परायी जगह पर अयोग्य था/ वह भी गोरों के साथ/उन्होंने मुझे निर्ममता से कैद कर लिया/ मैं खुद से ही खूब दूर चला गया/सचमुच दूर, खूब दूर/ और खुद को ही विषय बना लिया/ क्या हो सकता है यह मेरे लिए/सिवाय विच्छेदन के... (फ्रांज फॅनान � काली चमड़ी-गोरा मुखौटा)
या - यह :
विकृत - पुनः रंग किया हुआ/मातम, में पहने हुए कपड़े/इस भद्दे कुविस्तार के साथ/
मेरा शरीर मुझे लौटा दिया गया.../ नीग्रो एक जानवर है, नीग्रो गंदा है/ देखो-नीग्रो शांत है.../ नीग्रो... शांत .... है ..../ छोटा बच्चा कांप रहा है/ क्योंकि वह नीग्रो से डरा हुआ है...
यह निश्चित ही मानवीय श्ष्टिाचारों के तमाम कानूनों का उल्लंघन है कि काले लोग चाहते तो गोरों के इस दावे को सिद्ध कर सकते थे कि वे मनुष्य से कमतर हैं या वे अपने पूर्व के स्वामी और उसके अत्याचारों और अमानवीयताओं से नफरत नहीं करते। क्या हम यहूदी हिटलर और गॉबेल्स को प्यार कर सकते हैं? एमी सेसार कहते हैं : ‘जब मैं रेडियो लगाता हूँ तो ख़बर होती है कि अमेरिका में नीग्रो लोगों को बगैर सामान्य कानूनी कार्यवाही के मृत्यु दंड दिया जा रहा है- मैं कहता हूँ कि मिट्टी में दबाया जा रहा हैः हिटलर मरा नहीं है।'
गोरों और कालों के बीच के संबंध और उपनिवेशवाद की ऐतिहासिक जड़ों की अनसुलझी हकीकत को समझानेकी सेसार, फॅनान, क्लीवर (कालों के संदर्भ में) अगुवाई करते हैं। मारटिनक्यू के फॅनान और सेसार दोनों ही तीसरी दुनिया के बड़े सिद्धांतकार के रूप में उभरे। दोनों इसे जरूरी मानते हैं कि सभी प्रबुद्ध लोगों का प्राथमिक कार्य नस्लवाद और उसके तमाम तत्वों को ध्वस्त करने का होना चाहिये। नस्लवाद की शक्ल एक जैसी है- अमेरिका में, हिटलर के जर्मनी में यहूदियों, या फिर दक्षिण अफ्रीका में कालों के ख़िलाफ़। एमी सेसार की तरह फॅनान ने भी अपनी किताब ‘दुनिया की दरिद्री का सिद्धांत' में उपनिवेशवाद का अद्भुत विश्लेषण किया हैः छोड़िए इस यूरोप को कि उन्होंने कभी मनुष्य के बारे में कहा, जबकि जहां भी काले लोग नजर आए उनकी हत्या की - प्रत्येक नुक्कड़ों पर - पृथ्वी के सभी हिस्सों में। यूरोपियन योग्यता तथा गोरापन- का घमंड उस काल की चिंता थी। उपनिवेशवादी मानसिकता की चीर-फाड़ और गोरे लोगों की ‘श्रेष्ठता' को तीव्रता से झटक कर उसके एवज में मनुष्यता के सिद्धांत की सम्पूर्ण व्याख्या का चित्र खड़ा किया जाय बतौर मनुष्यता और बेहतर अस्तित्व का। वैचारिक यात्रा के धरातल पर फॅनान और सेसार ने अपने कार्य को अंजाम दिया।
इसी पृष्ठभूमि में हमें सेसार की कविताओं को, विशेषकर उसकी प्रमुख कविता ‘जन्मभूमि में वापसी' का अध्ययन करना होगा।
मारटिनक्यू के उत्तरी इलाके के छोटे से गांव में 1913 में सेसार का जन्म और परवरिश हुई। यह गांव तेज़ हवाओं के प्रवेश द्वार वाले द्वीपों में से एक है। यह द्वीप पहले और अभी भी फ्रांस की उपनिवेशी बस्ती है। उसकी समुद्री सीमा के दूसरी ओर का प्रदेश है। सेसार के जेहन में बसा उसके गांव का रेखाचित्र उस कविता मेःं
मेरे पहले पाए सुख की वजह से/मौजूदा दुर्गती को समझ पाया हूँ/ ऊबड़-खाबड़ सड़क धंसती है गर्त में/जहाँ गिनने लायक झोपड़ियों में बट जाती हैः/ थकी-मांदी सड़क दम-खम के साथ पहाड़ी पर कूच करती है/ जिसकी चोटी पर डेरा डाले/ठिंगने-ठिंगने घरों के समूह में/अक्खड़ता से समा जाती है/ चढ़ रही है पागल सी सड़क/ और लापरवाही से उतर रही है। और सीमेंट के छोटे पैरों पर नटखटों की तरह/ हिलती-डुलती है एक चौखट/ जिसे हम अपना घर कहते हैं/ इसके लोहे के ढाँचे को/ मजबूती से पकड़ रखा है सूरज ने/ खाने के कमरे की ऊबड़-खाबड़ फर्श पर/ कील का चमकता सिर है/ अनन्नास के पेड़ की शाखाएँ और उसकी परछाइयाँ छत/ के ऊपर फुदक रही हैं इधर-उधर/ घास-फूस की भूत जैसी कुर्सी है/ चिराग की धूसर रंग की रोशनी है/ चमकीले और फुर्तीले झींगुर हैं/ मूिच्र्छत होने तक चिराग का मर्... मर्... शोर...
द्वीप का इतिहास रोचक है। फ्रांस द्वारा शासित इस द्वीप ने कुछ समय के लिए स्वतंत्रता का स्वाद चखा- जब 1792 में फ्रांस की राष्ट्रीय असेम्बली ने बगैर विचार-विमर्श के गुलामी को अलविदा कह दिया। फ्रांस के अधीन उपनिवेशी राज्यों के साथ मारटिनक्यू भी फ्रांस की क्रांति के महापरिवर्तन में सक्रिय था। इसी दरम्यान विक्टर ह्युगो ने गुलामों को आज़ाद करने के उद्देश्य से मारटिनक्यू और ग्युडोलोप के पूर्व गुलामों को अपनी फौज में भर्ती कर ब्रिटिश द्वीपों पर हमला किया। अमेरिका के भू-भाग में यह पहले संकट की चेतावनी थी कि कहीं गुलामों के सतत् विद्रोही प्रदर्शन उसके आकाओं की ओर मुड़ ना जाए। जब नेपोलियन सत्ता में आए तो उन्होंने टॉसेंट के नेतृत्व में हैतियन के प्रतिरोध में पुनः गुलामी लादने का असफल प्रयास किया। गुलामी से सम्पूर्ण मुक्ति के बाद दोबारा 1848 तक मारटिनक्यू और ग्युडोलोप में दासता को बरकरार रखा गया। 1940 में विची शासक ने राज्यपाल की नियुक्ति अपने प्रतिनिधि के तौर पर की। इस दौरान मारटिनक्यू और अन्य द्वीपों पर फ्रांस का वर्चस्व फिर से उभर नहीं पाया लेकिन इस नियुक्ति से पश्चिमी गोलार्ध के लिए रक्षा सम्बधी गंभीर समस्यायें उभरीं। ब्रिटिश के सेंट लुसिया द्वीप के निकट ध्वंसक नौकाओं का जाल फैल गया। विची के बचे-खुचे अवशेषों को उखाड़ दिया गया। यह तब संभव हो सका जब डे-गॅले फ्रांस के प्रधानमंत्री बने। इस सच्चाई को सेसार की कविता और उनके जीवन की इन घटनाओं से परखा जा सकता है। उनकी रचनाओं में इस परिवेश की चर्चा क्रमशः उभरती है और इससे ताल्लुक रूपकों की सार्थक उपस्थिति झलकती है।
मारटिनक्यू का परिवेश सेसार के बिंब विधान का एक महत्त्वपूर्ण जरिया है। सेसार अतियथार्थवादी संकल्पना से प्रभावित थे और कविता में बिम्बों का निर्माण देखने को मिलता है। कविता को समझने और परखने का केन्द्र बिम्ब है। मारटिनक्यू के भूगोल का चित्र विरोधात्मक तरीके से किया गया है। आक्रामक व्यापारिक हवाओं से द्वीप के स्थिर तटों पर समुद्री लहरें उफनती रहती हैं। इससे परे का समुद्री तट अरसे से शांत पनाहगार है। तट लम्बे समय से स्थिर है। और यह तभी उफनता है जब तूफान अपनी तूफानी शक्ल में होता है।
1906 में द्वीप के उत्तरी इलाके में कुछ ऐसा घटित हुआ जिसका जिक्र उनकी कविताओं में विविध तरीके से नज़र आता है। हालांकि सेसार का जन्म 1906 के सात वर्ष बाद हुआ। सेंट पियेरे के पेली पर्वत पर अचानक ज्वालामुखी फटा और छः हजार बाशिंदे बर्बाद हो गए। सिवाय एक बाशिंदा जो मौत के गाल में समा गया। अगर चुनाव का समय नहीं होता तो इस बर्बादी पर अंकुश लग सकता था। आतंकित मतदाता चुनावी प्रक्रिया से दूर रहे और डरे-सहमें राजनीतिज्ञ इलाके में फटके तक नहीं। यह पर्वत सेसार के जन्मस्थल से करीब है। सेंट पियेरे का कभी पुनर्निर्माण नहीं हुआ। वहीं दक्षिणी हिस्से के फोर्ट-डे-फ्रांस में राजधानी बसायी गयी। जबरदस्त ज्वालामुखी की काल्पनिक घटनाओं की परणिति को सेसार ने आत्मसात किया। ज़ाहिर है कि ज़्वालामुखी के लावे के प्रभाव से सेसार की अवधारणा विध्वंसक ताक़तों के बारे में नए मिथकों और विचार को परिपक्वता से गढ़ रही है, एक अंगड़ाई लेती धरती की एक नई तस्वीर- Al Afrique कविता में व्यक्त - 'Paysan Frappe de sol de ta daba'-सेसार के लिए किसानों द्वारा धरती को जोतना - पूर्णतः एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ जीवन की नई आकृतियां बार-बार उभरकर आती हैं – (ta daba) का अर्थ है ‘कुदाल', Wolfe पश्चिमी अफ्रीका की बोली भाषा है और मारटिनक्यू की बोली भाषा का यह हिस्सा है) यह विचार उनकी कृतियों में रह-रहकर सामने आता और बार-बार लौटता है। सेसार गरीब किसान परिवार से थे - जैसा उनकी कविता में व्यक्त भी हुआ हैः
‘अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में/मेरे पिताजी, मेरी मां के सिर पर घर का बोझ/कुटिया को चीरकर/ताड़ के पेड़ की तरह संतप्त खड़ा है/ थकी मांदी दुबली-पतली छत को पैराफीन के/ छोटे-छोटे डिब्बों से दुरुस्त किया गया है/ पुआल की कामचलाऊ छत पर/ धूल की बदबूदार परत जमी है/ और जब चलती है हवा- यह बीमारू संपत्ति/दाल की तड़-तड़ छौंक की तरह अजीब सी आवाज़ करती है,/ और पानी में जली लकड़ियाँ अलग होती हैं/ घुमावधार धुएँ के साथ.../ पलंग का तख्ता टिका है मिट्टी के तेल के डिब्बे पर/ हाथी के पांव हैं/भेड़ का चमड़ा और केले के सूखे पत्तों की टुकड़ों से सजा-धजा है गद्दा -/ यह मेरी नानी का बिस्तर है/उनके गद्दे के ऊपर तेल भरा कटोरा है/ अतीत की याद दिलाती पलंग है/ नाचती लौ के साथ बुझती है मोमबत्ती/ और कटोरे पर अंकित है शब्द ‘दया'/एक बदनाम/पाईले स्ट्रीट...'
सेसार के यौवन काल में दरिद्रता इकलौती नहीं थी। मजूर-किसानों और काले गन्नों के खेत वाले देश में उसका जन्म हुआ। फोर्ट-डे-फ्रांस के सर्वहारा भी काले थे। वहीं हब्शी और गोरे के वर्ण संकर वाली आबादी को ऊपरी दर्जा दिया गया लेकिन फ्रांस के शासकों के ठीक नीचे। यह परिदृश्य ‘रंग' के आधार पर बहिष्ड्डत-व्यक्ति का अहसास कराता हैः
‘मैं तुम्हें बता रहा हूँ? काले आदमी एक जैसे हैं? / उनमें प्रत्येक दोष है, प्रत्येक दोष संकल्पनीय है/ मैं तुम्हें बता रहा हूँ काले आदमी की सुगंध से गन्ने के पौधे बढ़ते हैं/ यह पुरानी कहावत की तरह हैः /काले आदमी की पिटाई करो/ और तुम खिलाओ काले आदमी को?'
वसाहत के चुनिंदा लोगों को समाविष्ट कर लेने की नीति फ्रेंच उपनिवेशवादियों की थी व चुनिंदा लोगों को सांस्कृतिक तौर पर स्वीकार कर फ्रांस के प्रति वफादारी के काबिल बना लेते। जो कोई, किसी भी रंग का हो अगर फ्रांस की राजनीति और सांस्कृतिक धरातल को स्वीकृत करे तो साधारणतः फ्रांस, उसे फ्रेंच स्टेटस प्रदान कर देती है। इस नीति के बारे में फॅनान कहते हैःं ‘मातृ-भूमि की सांस्कृतिक कसौटी को अंगीकार करने के अनुपात के अनुकूल, वे उन्हें जंगली ओहदे के ऊपर का दर्जा देते हैं (काली चमड़ीः गोरा मुखौटा)'। फ्रांस की राजनीति और सांस्कृतिक संस्थायें किसी भी औपनिवेशिक वसाहत से बेहतर है - फ्रांस का यह दावा मिथ्या और काल्पनिक है। मनुष्य की उच्चतम उपलब्धि के तौर पर फ्रांस ने यह नीति प्रस्तुत की ताकि उसकी उपलब्धि से दूसरे वसाहत के लोग प्रेरणा लें। फ्रेंच शासक आह्नान करते हैं वसाहत के लोगों से, कि फ्रेंच की अस्मिता श्रेष्ठ है इसलिए अन्य अस्मिताओं को नकारें। शैक्षणिक उपलब्धता फ्रेंच नियम के तहत सामाजिक स्टेटस के अनुरूप है। लेकिन सेसार ने इन नियमों से अस्वीकृति जताते हुए फ्रांस की कम्युनिस्ट पार्टी से इस्तीफा इस अभिव्यक्ति के साथ दियाः
‘हमारी स्थिति दुनिया में विशिष्ट है, इस संदर्भ में दूसरों की तरह हमें दिग्भ्रमित नहीं होना चाहिए। हमारी विशिष्ट समस्या है जिसे किसी अन्यों की समस्याओं के ढाँचे के मातहत रूपांतरित नहीं किया जाना चाहिए। हमारे इतिहास की विशिष्टता भयानक संकट में उलझी हुई है, इस तरह की स्थिति अन्यों के इतिहास की नहीं है। हमारी संस्कृति की विशिष्टता है जिसे हम अपनी मर्जी से जीते और निरंतर जीने योग्य बनाते हैं अत्याधिक उपयुक्त शैली से।'
जो मारटिनक्यूवासी उनकी नकल करने का प्रयत्न करते हैं बड़ी दुविधा में रहते हैं। ये लोग अफ्रीकी संस्कृति में पले-बड़े हैःं संयुक्त पारिवारिक ढाँचा, अफ्रीकन पाक तत्व अफ्रीकन तत्वों का निवीचन और स्थानीय बोली, फ्रेंच पश्चिमी और अफ्रीकन मिश्रित भाषा। यह सांस्कृतिक अनुभव इन्हें अन्यों से अलग करता है। फॅनान इन तत्वों से मुक्त हुए। इसका जिक्र करते हैं- ‘एन्टिलस का मध्यम वर्ग अपने नौकर के अलावा कभी किसी से स्थानीय बोली- भाषा में बात नहीं करता। स्कूल में बच्चों को बोली भाषा के प्रति नफरत का पाठ पढ़ाया जाता है। हर कोई बोली भाषा से परहेज करता है। बोली भाषा का कई परिवार निषेध करते हैं।' फ्रेंच शिक्षा पद्धति ने औसतन मारटिनक्यूवासी को उसके प्राचीन सांस्कृतिक पहचान से दूर कर दिया है। परिणामस्वरूप परिवार और उसका स्वयं से विमुखता का भाव पुख्ता होने लगा है। विद्यार्थी जो फ्रांस में शिक्षित हुए, उन्हें फ्रेंच बोलने में दक्षता प्राप्त थी। वे अर्ध-देव थे। फ्रेंच स्टेटस में बने रहने के लिए वे बोली भाषा को अमान्य करते। इसी बिन्दु पर फ्रेंच उपनिवेशवाद की नीतियों की सफलता है।
इस तरह के वातावरण में युवा सेसार, फोर्ट-डे-फ्रांस में आगे की पढ़ाई के लिए गए। वहाँ की नीतियों को आत्मसात कर लेने वाले तबके की तुलना में, काले सर्वहारा सेसार को अधिक प्रभावित करने वाला घटक उनके अपने साथी थे। क्योंकि वे स्वयं अविकसित औद्योगिक क्षेत्र और मुल्क के कम प्रभाव वाले फ्रांसीसी क्षेत्र से आए थे। इसलिए शहरी काले विद्यार्थी की तुलना में वे उपनिवेशवाद पर बेहतर ढंग से प्रश्न करने में सक्षम थे। 1931 में सेसार को फ्रांस की छात्रवृत्ति मिली। वे मारटिनक्यू के अपने साथी ईनिन लॅरो के साथ गए। उन्हें वहां स्वयं को विशिष्ट कवि और आलोचक सिद्ध करना था। सेसार कुछ समय बाद अपने साथियों के साथ मातृ-भूमि की ओर लौट आए। मारटिनक्यू में विश्व विद्यालय की स्थापना नहीं की गई थी। कारण स्पष्ट था अगर वहां के विद्यार्थी फ्रांस आकर पढ़ते हैं तो वहां की संस्कृति में घुल-मिल जाएँगे। बड़ी संख्या में विद्यार्थी फ्रांस पढ़ने गए लेकिन बाद में उनका मोह-भंग हुआ। और अपने मुल्क लौटकर उन्होंने अपने अस्तित्व के लिए एक ग्रुप की स्थापना की। इन्हीं कारणों के चलते तीन साल बाद सेसार, लियोपोल्ड, सेंगोर अन्य काले लोगों के साथ स्श्म्जनकपंदज छवपद नामक पत्रिका निकाली। हालांकि इस पत्रिका का अंत एक अंक के बाद ही हो गया। लेकिन इस प्रयास से नीग्रो जाति की विचारधारा के महत्त्व को मान्यता मिल गई। दासता और औपनिवेशिक दमन के ख़िलाफ़ चल रहे विद्रोह के जड़ में ‘काला रंग' था। बीसवी सदी के प्रारंभ में मारकुस गारवे का उदय हुआ। उनका जन्म वेस्ट इंडीज में हुआ था। उन्होंने अमेरिका जाकर अफ्रीका की मुक्ति की जमकर वकालत की थी। उन्होंने ‘अफ्रीका वापसी का आंदोलन' की स्थापना इस उद्देश्य के साथ की कि अमेरिका में बसे काले लोग अफ्रीकन काले लोगों के साथ मिलकर ‘अफ्रीका एक महाद्वीप' की मुक्ति का संघर्ष चलाएं। इस संघर्ष की उपलब्धि यह थी कि 1919 में अफ्रीकन सांस्कृतिक संस्थाओं की मान्यता के रूप में वैकल्पिक विचारधारा के निर्माण के लिए पहला पॅन अफ्रीकन काँग्रेस पेरिस में संपन्न हुआ।
‘काली जाति' शब्द सेसार की देन है लेकिन संयुक्त प्रयास से इस विचारधारा को सूत्रबद्ध और विकसित किया गया। सेसार और सेंगोर दोनों के अधिकांश कार्यों में इस सिद्धांत का असर है। इस ग्रुप से विशिष्ट कवि के रूप में ये दोनों उभरे।
‘काली जाति' का सिद्धांत प्रतिपादित करता है कि उसकी अपनी संस्कृति, अपनी सभ्यता और अपना मौलिक योगदान है। इस उपलब्धि को फ्रेंच व्यवस्था ने नकारा लेकिन काले लोगों के पास इस सिद्धांत के विविध आयाम हैं और वे अपनी जरूरत के आधार पर अमल करते हैं। औपनिवेशिक नीतियों के चलते ‘श्रेणी' स्थापित हुई। हकीकत ये है कि ‘फ्रांस नस्लवादी देश है'। फॅनान काले लोगों को उसके सांस्कृतिक मानक के तहत परिभाषित करते हैं�ः ‘पढ़े-लिखे नीग्रो ने बड़ी सहजता से फ्रेंच संस्कृति को ठुकराया और अगला कदम उठाकर यूरोप के मूल्यों को कठघरे में खड़ा किया'।
एमी सेसार, फॅनान और अन्यों ने तर्क-संगत और तात्विक आधार पर मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था के सूत्र गढ़े। नीग्रो संस्कृति में जो उपहास की चीजें हैं उन्हें मार्क्सवादी सिद्धांत के साथ संयोजित किया जाए तो एक नए मनुष्य को अस्तित्व में लाया जा सकता है। (राजनीति के क्षेत्र में इन लोगों को विशिष्ट स्थान मिला) सेसार और सेंगोर ने ऐलान किया कि कालापन ना केवल स्वीकार करने योग्य है बल्कि सुंदर भी है इसलिए राजनीति के क्षेत्र में इन लोगों को विशिष्ट स्थान मिला। और गहरे मनोभाव से ‘जन्मभूमि में वापसी' में इन उन्नत मूल्यों की अभिव्यक्ति हुई।
‘सलाम भव्य कैलं-से-ट्रेड वृक्ष के लिए/ सलाम उन्हें/ जिन्होंने कभी कोई आविष्कार नहीं किया/ ये वो हैं जिन्होंने कभी कुछ नहीं खोजा/ ये वो हैं/जिन्होंने कभी कुछ नहीं हड़पा है/ ये वो है/ जो सभी चीजों के तत्वों के/ अनुकूल ढल जाते हैं/ जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ/लेकिन पहचान लेते हैं/सभी वस्तुओं की आहट/गबन करने की इच्छा से मुक्त/लेकिन परिचित हैं दुनिया के इस खेल से।'
सेसार यूरोप द्वारा टेक्नॉलॉजी के महिमागान का, उपनिवेशवाद के रक्त-रंजित विजय और बर्बादी का पुरजोर विरोध करते हैं। कुछ लोगों ने उनके विषय में गलत कहा किः ‘आविष्कार ना कर पाना कोई योग्यता है- सेसार ऐसा दावा करते हैं।' इस संदर्भ में वे अभिव्यक्त करते हैं :
यह सच है/ हम दुनिया के बड़े लड़के हैं/ दुनिया में/ जीवन खुला है सभी के लिए/ दुनिया में/ भाई-चारे की गरज सभी को है/ और दुनिया में/ जमीन का पानी भी सभी के लिए है/ दुनिया की रफ्तार में/देह की देह थककर चूर हो रही है।
कालेपन की मानवीयता के सिद्धांत के सारतत्व के बारे में सेसार कहते हैं : खुशी को सलाम/सलाम प्यार को/पुनर्जन्म को सलाम/ यहां भी/आंसू और दर्द का साथ रहता है।
इन सभी वक्तव्यों को शोषण के परिप्रेक्ष में समझना होगा जो सेसार ने यूरोप में अनुभव किया अैर परिणामतः वह वैकल्पिक विचारधारा की मांग के तहत उभर कर आया। सेसार कालेपन के सिद्धांत को नस्लवादी विचारधारा तक ही सीमित नहीं करते, अपितु उन सभी लोगों के बारे में कहते हैं, उनकी चाहत मनुष्यता में है, जो यद्यपि विजेता हैं और जिनके जेहन में सामाजिक सरोकार है :
विदाई तक/ जैसे वहां अफ्रीकी और काले लोग हैं/ तो मैं यहूदी आदमी हूँ/ दक्षिण अफ्रीका के बांतु लोग हैं/ हिन्दू लोग कोलकाता से हैं/ हारलेम के आदमी को वोट नहीं मिला है।
सभी तत्वों के अनुकूल समर्पित कर देने की काबिलियत रखने वाले लोगों की तादाद अधिक है जो उत्तरी भाग के गोरे लोगों को सिखा सकते हैं कि कैसे प्यार करते हैं, कैसे पुनः खोजा जा सकता है मनुष्य की सहज प्रवृत्ति को, कैसे टेक्नॉलॉजी को मनुष्य की जरूरत के अनुकूल बनाया जा सकता है। तब कालापन व्यवस्था का ‘मूल्य' बन सकता है। जिसे वह मानवता के लिए आवश्यक विचार मानते हैं। सेसार कालेपन का अवलोकन फ्रेंच भाषा के अतियथार्थवाद और मार्क्सवाद में निहित अद्भुत शक्ति से करते हैं जो मनुष्य को प्रेरित करती है।
पेरिस निवास के दरमियान सेसार पर अतियथार्थवाद का प्रभाव पड़ा। बुर्जुआ मूल्यों की वैज्ञानिक युक्तियों, भाषा और तमाम शोषण के आयामों को झकझोरने के लिए तार्किक औजार और ताजगी अति यथार्थवाद में है, ऐसी सोच सेसार की थी। उनका मत था कि अतियथार्थवाद अंतिम औजार नहीं बल्कि एक साधन है। इसलिए साधारण बानगी को उध्वस्त करने के लिए भाषा का उन्नत स्वरक्रम इस उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है। सेसार ने कविताएं लिखीं जिसमें तर्कों का सिलसिला नियमित नहीं था। र्चिीांकन का उपयोग नहीं किया गया। वे अलग-अलग बिंब विधान उपस्थित करते। इस तरह ‘विषय' को कई अर्थ प्रदान करते। और कविता को एक नया आयाम देने में कामयाब होते। जाहिर है अतियथार्थवाद उनके लिए एक प्रयोजन था।
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1939 में सेसार को मातृ-भूमि-वापसी पर वहां के लक्षणों से रू-ब-रू होना पड़ा। यह निर्णय जोखिम भरा था। वसाहत के अन्य विद्याथी्र यूरोप के चक्कर लगाते हुए कुर्सीतोड़ बुद्धिजीवी बन गए या लौटने पर सरकारी सेवा में शामिल कर लिये गये जिसके लिए उन्हें शिक्षित किया गया था। वहीं उन्हें उनके माता-पिता से घृणा और शर्म महसूस होती। कारण वे लोग अपरिष्ड्डत बोली-भाषा बोलते। इसी वजह से सेसार भी अपने मित्र पीटर ग्युबरीना (यूगोस्लाविया में प्राध्यापक) के पास 1939 अड्रेजविक तट चले गए। हालांकि इसका उद्देश्य ‘जन्मभूमि में वापसी' कविता लिखना था। और कुछ सप्ताह में उन्होंने कविता लिख डाली। एक कविता में वह अपने वापसी के प्रभाव की कल्पना और कल्पनातीत तजुर्बे के आधार पर व्यवस्था में मौजूद मूल्यों को रखता है यद्यपि स्श्मेचतपज पत्रिका का अंक बींपमत कविता पर केन्द्रित था। बावजूद इसके, आलोचकों को आकर्षित नहीं कर सकी।
लौटने के बाद सेसार फोर्ट-डे-फ्रांस के लायसी स्कॉलेचर में शिक्षक बन गए।
यह माना जा रहा था कि सेसार पेरिस की कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बन गए हैं और सच्चाई यह भी कि देश की बागडोर विची लोगों के सुपुर्द थी। यह समय सेसार के लिए ख़तरनाक था। साहस के साथ अपने विश्वास को बरकरार रखते हुए उन्होंने अपने क्रियाशील होने के निर्णय की गंभीरता का प्रमाण पेश किया।
1942 में फ्रेंच अतियथार्थवादी आंदोलन के प्रणेता अंद्रे ब्रेतन नाजी से मारटिनक्यू सेसार से मिलने आये। इन दोनों कवियों के बीच दोस्ती में गहरापन आया। यह सेसार के जीवन की प्रमुख घटना थी। अंद्रे ब्रेतन ने फ्रांस के साहित्यिक अंचल में सेसार का परिचय कराया। 1944 के दरमियान सेसार के पेरिस लौटने पर उनका भव्य स्वागत हुआ। 1947 में अलियोन डिलोप द्वारा च्तमेमदबम ।तिपबंदम साहित्यिक पत्रिका की नींव रखी थी, जिसमें 1956 में बींपमत कविता को पुनः स्थान दिया गया। ‘पे्रसेन्स अफ्रीकन' ने अफ्रीका और वेस्टइंडीज के अलिओन डियोप, लियोपोड सेंगोर, एमी सेसार, दमास और अन्य अद्वितीय बुद्धिजीवियों और लेखकों को मंच प्रदान किया। तत्पश्चात अफ्रीका के मुक्ति आंदोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका में इन्हीं लोगों का हाथ था।
1946 में सेसार फ्रेंच नेशनल असेम्बेली के लिए मारटिनक्यू चुनाव क्षेत्र से संसद के लिए निर्वाचित हुए। वे फोर्ट-डे-फ्रांस के मेयर भी बने। मारटिनक्यू इस असेम्बली का एक क्षेत्र है जहां से तीन संसद सदस्य प्रतिनिधित्व करते हैं। अधिकांश सदस्य सही राजनीति को ताक पर रखकर फ्रांस की तरफदारी में जुटे रहे। पहली मर्तबा सेसार के चुनाव का अर्थनेशनल असेम्बली में मारटिनक्यू की राजनीति और अर्थशास्त्र की हकीकत की तस्वीर की आवाज़ थी। इसी आवाज की वजह से फ्रेंच की दादागिरी और समाविष्ट नीतियों के ख़िलाफ़ स्पेस और खुलता गया। अब वे शोषितों-दमितों के सिद्धांतकार और प्रतिनिधि के रूप में जाने जाते हैं। वे वहां के लोगों के बीच से आए थे इसलिए उनकी जरूरतों और मांग को ठीक ढंग से संसद में रख सके। उन्होंने फ्रेंच समाविष्टी नीति को ठुकराया। संसद में सक्रियता की वजह से उनके ‘कालेपन' की ‘मान्यता' को और व्याप्ति हासिल हुई। उनके लिए सत्ता का महत्त्व था। इसी के तहत उन्होंने कई मुद्दों को उठाया और फ्रेंच शासकों को मजबूर किया। चिंतक रिमबाड कहते थे कि सेसार क्रियाशील मनुष्य के ‘प्रतीक' हैं। रिमबाड भी अफ्रीका से आसक्त थे और यूरोप चले गये। वे सेसार के प्रिय बन गए लेकिन यह सिलसिला लम्बा नहीं चला। अपने दौर के नायकों और व्यवस्था के सामने सेसार घुटने टेकने वाले व्यक्ति नहीं थे। इन्हीं कारणों के चलते उन्होंने 1956 में फ्रेंच कम्युनिस्ट पार्टी से त्यागपत्र इस उद्गार के साथ दिया :
“हम किसी को भी हमारे लिए सोचने का अधिकार नहीं देना चाहते, हमारे रहस्यों की और हमारे ईजाद कीऋ इसलिए अभी से किसी प्रकार का अनुमोदन मंजूर नहीं, चाहे फिर वह हमारा अच्छा दोस्त हो, हमारे लिए निदान ढूढंता हो। अगर तमाम तरक्कीपसंद राजनीति औपनिवेशिक लोगों की स्वतंत्रता को किसी भी दिन पुनःस्थापित करने का ध्येय रखती है तो तरक्कीपसंद दल की दैनिक गतिविधियों मेें विरोधाभास नहीं होना चाहिए और ना ही बुनियाद को क्षति पहुँचाना चाहिए- संगठनात्मकता के साथ-साथ मनोवैज्ञानिक बुनियाद को भी, इस स्वतंत्रता का भविष्य - एक अभिधारणा की दिशा में हो तो लोग उमड़ पड़ेंगे- अधिकार को पाने की पहल करेगी।” इसी कारण सेसार अतियथार्थवादियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अलग हो गए थे। जरूरत के आधार पर प्रत्येक चीज बदलनी चाहिए, ऐसा सेसार का मत था। इसलिए यह उद्गार कविता में उभरा :
मैं नदी को कहना चाहता हूँ/मैं तूफान को कहना चाहता हूँ/ मैं पत्तियों से कहना चाहता हूँ/मैं वृक्षों को कहना चाहता हूँ/ मैं हर बारिश और ओस की प्रत्येक बूंद से तरबतर होना चाहता हूँ/ आहिस्ता-आहिस्ता लुढ़क रहा है आँखों से/पागल खून...
सेसार न केवल भाषा के साथ बल्कि साहित्य के भिन्न-भिन्न आयामों के साथ भी लगातार प्रयोग करते रहे। लेख, गद्य लेखन, Discours sur le colenialisme (1950) नाटक - EL les chiens se caisainet, le Roi Christope, Une Saison aucongo ;लुम्बा पर आधारित नाटक, 1967 और अन्य कार्य मसलन - los Armes aniraevleues, Sociel Covcoupa (दोनों कृति 1940 में) Cand¢atre, Ferrements (1959) यह सेसार का परवर्ती कार्य है। और यह कार्य अतियथार्थवाद के श्रेष्ठ कार्यों मे से एक है।
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‘जन्मभूमि में वापसी' कविता को मोटे तौर पर तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है। इसकी शुरुआती पंक्ति से ही महान नाटक के दृश्य पर से परदा उठता हैः
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में -
यह वह समय है ठीक भोर के कुछ समय पहले का, जब धूसर रोशनी आसमां के इर्द-गिर्द अहिस्ता-अहिस्ता उभरती है। बर्बादी और निर्जनता के दृश्यों से शुरू होती है यह कविता। वहाँ कोई मनुष्य नहीं है सिवाय वेदनाओं के खुले हुए जख़्मों के। वे अकेले भुक्तभोगी नहीं हैं। उनके साथ हैं बिखरे अस्तित्व व जन-समूह। कस्बा, भीड़, मलेरिया के खून की रफ्तार, हमला करते हैं वेदनाओं के ज्वालामुखी के साथ। इस धरती पर ये द्वीप एक विशाल गड्ढे की तरह है जहां मनोगम्य दुष्टता और भरपूर भ्रष्टाचार है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ कि उपनिवेशवाद और मानव जीवन पर उसके प्रभाव को पूरी ऊर्जा के साथ वर्णित और उतनी ही नाटकीयता से अभिव्यक्त किया गया हो। सेसार की चिंता केवल प्रताड़ितों की यातना के साथ थी, गोरों के भ्रष्टाचार के प्रभाव से मानव जीवन को नष्ट किया उनके लालच और सुख-चैन और घमंड के लिए। ये मुद्दे अलग-अलग ढंग से उनकी कविताओं में आते हैं। इन समस्याओं का निदान सरल नहीं था और ना ही कोमल संवेदना में इतनी मासूमियत है कि त्रासदियों को शांत कर सके। वो जिन्होंने यातना झेली, बर्बाद हो गए। पुरानी सड़ी-गली व्यवस्था को नष्ट करने का अब केवल एक ही उपाय है कठोर चट्टान की छाती फोड़कर ज्वालामुखी की तरह निकलो।
समय जल्दी फिसलता है- लेकिन इसी के भीतर जीवन के बीज हैं। क्रिसमस के जश्न को मनाने की जद्दोजहद में विरोधी ताक़तों की उपस्थिति है।
काव्य का पहला हिस्सा हिंसा से ओत-प्रोत है। औपनिवेशिक हिंसा का इतिहास कवि की अभिव्यक्ति में रह-रहकर उभरता है। यह गुस्सा ठोस है। यह हवा में उपजी संवेदना नहीं है। सेसार द्वारा भोगे गए दरिद्री और मानमर्दन के घटिया अनुभवों से ताल्लुक रखती है। इस सूरत में उनकी अभिव्यक्ति हालातों का एक हिस्सा है। ऐसे तजुर्बों की वजह से सेसार की कविता में विद्रोही तेवर की तस्वीर भी देखी जा सकती है।
औपनिवेशिक व्यवस्था की बर्बादी और हिंसा की पृष्ठभूमि के उल्लेख के बाद सेसार क्रांति की मानसिक सच्चाई की ओर बढ़ गए :
मैं स्वीकार करता हूँ, मैं सब स्वीकार करता हूँ/और मेरे दुःख के उद्गम पर/अब अचानक हमला कर रहे हैं/ पूरी ताक़त से सांड की तरह/छोटी छोटी नसें नए खून से ठसा ठस हो गई हैं/ तूफान जैसी सांसों का विशाल फेफड़ा है/ आग का जखीरा है ज्वालामुखी/ और विशाल भूकम्पीय स्पंदन/ मेरे शरीर के भीतरी धड़कन को हरा देती है/ हवा में/ मैं और मेरा मुल्क/अभी तक सिर के बालों जैसे खड़े हैं/ मेरे छोटे छोटे हाथों का मुक्का ताक़तवर है/ और भीतर से हम कमज़ोर हैं/लेकिन जुबां पर आवाज़ है/ जो रात के अंधेरे को चीर देती है/ और इस आवाज़ को सुनने वाले हैं/ क्रोधित व्यक्ति के आग उगलने की तरह/ यह आवाज़ घोषणा करती है/ हमें यूरोप ने झूठ के सहारे दबाया...
निश्चय ही यह एक मिथ्या है जिस पर वह हँस पड़ा- ‘नीग्रो कुरूप लगे.... तार-तार हुआ कोट पहना है- एक बूढ़ा नीग्रो।' महिला इस पर हँसी और वह भी हँसा। लेकिन जल्द ही सेसार समझ गये कि वह खुद पर ही हँसा था। जब सेसार खुद से खुद को अलग करते हैं तो हँस देते है- वह खुद को उन ताक़तों से जोड़ते है जिन्होंने इसे भी नष्ट किया है। दहशत की तरह है यह अनुभव, लेकिन वह शीघ्र ही संभल गया और दुश्मनों को आंख फाड़कर देखता, इंसानियत के दुश्मनों को, और कहता :
‘कैसे भूल जाएं ऐसे लोगों को/ जिनका अस्तित्व शैतान की प्रतिकृति है...'
उसके दादाजी के लिए जो अच्छे नीग्रो थे, वे मर गए और इस बारे में सेसार कहते हैं- ‘हुर्रे' । इसलिए कि वे ‘अच्छे नीग्रो' थे, ‘वह सभी तरह से प्रताड़ित थे/ तो उसके पास ताक़त नहीं थी कि अपनी नियति तय कर सकें...' ‘और ऐसा उसके साथ ना हो/ इसलिए वह/बांस की लकड़ी को छोड़कर/ किसी भी चीज़ पर कुदाल चलाता है/ खोदता और काटता है। ‘और�वे इस पर फेंकते हैं पत्थर/ लोहे की छड़ के टुकड़े/ टूटी हुई बोतलें/ लेकिन/ ना ही ये पत्थर/ ना ही ये लोहे/ ना ही ये बोतलें...' ‘अच्छे नीग्रो' जवाबी कार्यवाही नहीं कर पाए और इसके चलते इंसानियत की आकांक्षा से गद्दारी की। सेसार इस राह पर नहीं चले और संघर्ष में शामिल लोगों की अस्मिता से जुडे़ रहे। वो जो अपराजित रहे- ‘जो उठ खड़े होते हैं अपने पैरों पर' - ये लोग हर दिशा में हैं इसलिए ये सभी लोग धरती पुत्र हैं। ‘बगैर भय के जहाज पानी को चीरते हुए आगे बढ़ रहा है', अत्याचार और विद्रोह की नई समझ के साथ जोश से भरे पागल लोग। तूफान को पछाड़ देने वाली नई उपज है- ‘हवा को पचा लेने वाला तिकोनी क्षेत्र...'
कविता का दूसरा हिस्सा, सहजता से, इंसानियत के लिए निःस्वार्थ प्यार की दार्शनिक ज़मीं की ओर ले जाता है। अगर एक स्वर में कहा जाए तो सेसार ने उपहास - प्यार, हँसी, निकम्मापन और नृत्य, इत्यादि को महत्त्व दिया, इन गुणों पर सेसार अभिमान करते हैं। चुम्मा-टोलियों के झुँड के लिए - चुम्मा सभी लोगों के लिए, जिनकी यातनाएँ नई नैतिकता का निर्माण इस आधार पर - ‘हम उग्र हैं... जो काट सकते हैं, वे भाई-चारे के बंधन में बंधे हैं'�ः
‘मुझे अपनाओ बगैर किसी शोक के/ थाम लो विशाल हाथों में/ उज्ज्वल समय के लिए/ दुनिया के नौ-सैनिकों में/ मेरे कालों की छाया जोड़ लो/ मुझे नियंत्रित करो कटु भाई-चारे से/ तुम्हारे लब्ध-प्रतिष्ठित लोग/ अपने जाल से मेरा गला घोट रहे हैं। '
उत्तेजना से भरे बिंब और नाटकीय भाषा भावनात्मक फंतासी के बनिस्बत एक नए मनुष्य को और ज्यादा रूपांतरित करती है। नाईजेरियन विद्वान अबिओला इरले ने ‘अफ्रीकन साहित्य की भूमिका' में लिखा�ः ‘सेसार का काव्य स्वर भविष्य -कथन है। कविता में सांप के विभिन्न रूप, ज़हरीले वृक्ष और भयानक जानवर, और मानव दुनिया से - बुलेट्स ज़हर, चाकू और वहीं उध्वस्त दृश्यों का विस्फोट, दुनिया के अन्य बिम्बों की पुनर्व्याख्या बड़ी सहजता से की। विध्वंस के सभी स्रोतों के साथ कविता खड़ी होती है और सहज दुनिया की हिंसक अभिव्यक्ति को अपने भीतर समेटकर सेसार तात्विक ऊर्जा की मौलिक ताक़त अर्जित करता है।'
द्वीप के दृश्य और हिंसा के विरोधाभास को वह इस्तेमाल करता है- तूफान, ज्वालामुखी, हवा कैसे शांति और विकास के समक्ष आती है और उसे बर्बाद करती है।
प्यार, खुशी और उदारता की मुनादी जन्म-जात है। यह भयावहता से नहीं उपजी है। इस तरह के सद्गुण, बगैर सत्ता के ‘उपहास' के विषय हैं। जैसा कहा गया है कि शोषित-दमितों के नैतिक मसलें उनके भय और उनकी स्वीकृति की वजह से हैं। सेसार की कविताओं के अर्थ को ‘शानदार आत्मस्वीकृति' समझना - जैसा कुछ लोगों ने समझा-उसके कार्यों के मूल-तत्व के अर्थों से वंचित कर देना है। सेसार एक कवि, दार्शनिक, भविष्यकर्ता है।
उसका क्रांतिकारी संदेश ही उसकी प्रमुख शक्ति है।
..
एमी सेसार
जन्मभूमि में वापसी
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में...
मैंने कहा दूर हो जाओ,
पुलिस की नाजायज संतान, दूर हो जाओ सूअरो
मैं घृणा करता हूँ, दखल देनेवाली हुकूमत
और झूठी तसल्ली देनेवालों से जू-जू� और पुजारी के बिस्तर के खटमलो।
मैं फिर से उसके लिए स्वप्न देखता हूँ,
उनके खोए हुए स्वर्ग की शांति से एक झूठ बोलती
हुई औरत के चेहरे से ज्यादा।
विपुल विचारों में भरी हुई सांस के सामने कठोर चट्टान है,
मैं हवा को संतुष्ट करता हूँ,
विलक्षण वस्तुओं को मुक्त करता हूँ,
और मधुर दोस्ताना आवाज़ सुनता हूँ
नदी के जल पक्षियों और सवाना गौरैया के लिए
ऊँचे-ऊँचे पुष्प उग रहे हैं विनाशी स्थल से दूर
� जू-जू : अफ्रीका की पूजा की वस्तु - ताबीज़
मेरे भीतर एक नदी है
ठीक पीतल की बीस मंजिल
इमारत की तरह : नदी मुझे बचाती है
भ्रष्टाचार के विषाद से जो दिन-रात कामुक
सूरज की अंतहीन सजा के साथ चलता है।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में नजाकत से खिल रहे।
फूलों का व्यापार करते हैःं वेस्ट इंडीज, हंगरी,
चेचक के चिह्नों से जड़ित हैं,
उनके दुःख के क्षण दारू के अंग हैं,
वेस्ट इंडीज का समुद्री जहाज दूर खाड़ी के दलदल में तोड़ा गया है
उस शहर की मिट्टी में दुष्टता से तोड़ा गया है।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
पानी में जख्म हो गए,
गुण्डों की यातना से,
प्रताड़ित लोग मुकर रहे हैं गवाही देने से,
छितरे फैले ख़ून पर
मुरझाये फूलों पर
बतियाते तोते की तरह
पुरानी जीवन पद्धति की अनुग्रहीत हँसी है,
अलग-अलग होठों पर
निरर्थक हवा की तरह बहती है,
सूरज के नीचे
यातना के अनुभव और एक पुरानी दुष्टता सड़ रही है,
एक लम्बे समय के मौन
की फुंसी फूट रही है गुनगुने पीप के साथ,
अपने समय के
भयानक विचार के ख़ालीपन को जीने के लिए।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
टोकरीनुमा धरती की
ज़मीनी ख़्वाब, तंतु और नासमझी जाग्रत हो रही है,
जो पहले ही
अपने भविष्य के लिए कुचले गए हैं,
जब ज्वालामुखी फूटेगा
और साफ़ पानी बहा देगा
सूरज से पके कलंक को,
समुद्री पक्षी के आसपास कुछ नहीं बचेगा
सिवाय कुनकुने पिघले हुए अंहकार के
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
अपने सहज ज्ञान से शहर, घर गिरा दिए गए हैं,
उनकी निष्क्रियता और ठहराव
क्रॉस की रेखा गणित के वजन के नीचे दब रही है,
वे फिर से शुरू करते हैं यात्रा अनंतकाल के लिए,
इनके भाग्य का रूठापन,
संकट और मौन प्रत्येक क्षण बढ़ रहे तापांक के साथ पिघल रहा है,
धरती पर जितनी बढ़ती जा रही है खाई
उतना ही हो रहा है असमान विकास,
उन लोगों के उकसाने पर
वे स्वयं अपने ही क्रोध में,
अपने वनस्पतियों और पशुओं को नष्ट कर रहे हैं।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
दिखावा है ये शहर, ये घर
इस शहर की चिल्लाती भीड़ में,
अपने ही शोर से वह अजनबी है
जितना इस शहर से,
अपने ही आशय और हलचल से अजनबी है,
बगैर किसी मतलब के है ये भीड़,
अपनी ही चीख की सच्चाई को नकारती है,
सुनना चाहते हो तुम चीख
इसलिए कि यह चीख केवल तुम्हारी है,
इसलिए तुम जानते हो कि यह चीख
यहां के घोर अंधेरे के किसी जगह में रहती है,
और इस शहर को नकारने में तुम्हे गर्व है,
इस भीड़ में
अपनी भूख और दुर्गति का शोर खो गया है,
एक बेगाना वाचाल मौन है विद्रोह और घृणा के बावजूद
इस भीड़ में
इस ना अपनाने वाले शहर में,
यह अजनबी भीड़ जो
आपस में घुलती-मिलती नहीं है :
यह भीड़ जो आसानी से मुक्त हो जाती है,
अपने आप बढ़ जाती है आगे और तितर-बितर हो जाती है,
भीड़ जिसे मालूम नहीं कि कैसी है वह
यह भीड़ पूरी तरह से अकेली है सूरज के नीचे,
तुमने देखा होगा-
यह भीड़ एक औरत की मधुर चाल जैसी है,
लेकिन वह अचानक काल्पनिक वर्षा को पुकारती है
और रोकती है ना बरसने के लिए,
या बगैर उचित कारण के बनाती है क्रॉस का चिह्न,
या अचानक किसान औरत की
आदिम अवस्था की कब्र में रूपांतरित हो जाती है
और अपने ही बेलोच पैरों पर पेशाब करती है।
सूरज के नीचे इस ना अपनाने वाले शहर में,
यह निर्जन भीड़ आज़ाद है
ख़ारिज करने के लिए
अपनी ही पाक धरती पर,
प्रत्येक भाव बोध और सकारात्मक उक्तियों को।
फ्रांस की महारानी जोसफिन� को करते हैं खारिज
और नीग्रो देखते हैं अपनी औकात से परे स्वप्न।
ख़ारिज करते हैं उनकी मुक्ति के सफेद पत्थरों को।
नकार देते हैं अत्याचारी विजेता को।
ख़ारिज करते हैं
इस घृणा, स्वतंत्रता और इस चुनौती को।
ना अपनाने वाला शहर :
इसका बहिष्कार, उपभोग और भुखमरी का
सतत् चक्र,
चापलूसी और लूट खसोट से
जाग्रत शहर
फहर रहा है
पेड़ों पर
आसमान के तहखानों में
आसमान में पंखहीन
भय का एकमुश्त गठ्ठा
इस ना अपनाने वाले कस्बे की
वेदनाओं का अपना ही ज्वालामुखी है।
� जोसफिन - फ्रांस की राजकुमारी (1763-1814)। नेपोलियन प्रथम की पहली पत्नि जिसका जन्म और बाल्यकाल मारटिनक्यू में हुआ। वह यूरोपियन-अफ्रीकन माता-पिता की संतान थी।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में,
ऊँचाई का आभास नहीं होने से
भूल गया कि कैसे कूदा जाए।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में,
मलेरिया के ख़ून की रफ्तार,
दुःख और विनम्रता के जूते पहनकर,
सूरज की गति को,
अपने नब्ज के अनुकूल कर रहा है।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में,
सिसकियों की चुनौतियों की तरह है भयावहता
यह खून में फैलने के पहले
कर रही है आग का इंतज़ार
और आग एक चिनगारी का जो
खुद को छुपाती और नकारती है।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में,
भूख के दर्द के सामने पालथी मारकर बैठा है पहाड़,
वह तूफान और गड्ढों से सतर्क है,
आहिस्ते-आहिस्ते आदमी अपनी थकान की करता है उल्टी,
मात्र उनके ख़ून से तलाब भरापूरा है,
उनकी छाया से
उनके भय की नालियों से,
उनके महान हाथ हवा के हैं।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में,
हद हो गई है भुखमरी की,
इसे पहाड़ी नाजायज संतानों के अलावा
और कोई नहीं जानता,
वह खुद ही मरा है
जीभ से गोली निगलते हुए,
क्यों इस दुखियारे को
उकसाया गया है आत्महत्या के लिए,
क्यों औरत देखती है कि मानो
वह कैपोट नदी में बह रही हे
(उसकी काली चमकीली देह पोत के
कप्तान के निर्देश का पालन करती है)
और वह केवल
घुमावदार पानी का एक हिस्सा भर है।
पूरी तन्मयता से वे दोनों
उन काले बच्चों की खोपड़ी में ठूंस रहे हैं ज्ञान,
जटिल प्रश्नों का जवाब कक्षा में
ना तो शिक्षक को और न ही पादरी को मिल रहा है
इन अर्धनिद्रित नीग्रो बच्चों से,
इनकी अधमरी आवाज़
भूख के दल-दल में धँस गई है
(एक शब्द केवल एक शब्द और तुम भूल जाओ कैस्टल� की रानी बलन्च के बारे में, एक शब्द केवल एक शब्द, जरा देखो जंगली को, उसे दस उपदेशी भगवान में से एक के भी संदर्भ में जानकारी नहीं है।)
उसकी आवाज़ के लिए
उसका दिमाग़ भूख की दल-दल में धँस गया है,
और वहां कुछ नहीं है,
कुछ नहीं मिल सकता है शून्य में,
कुछ भी नहीं सिवाय भूख के,
उसकी आवाज़ को पाने के लिए
जो अब कुछ भी नहीं कर सकता है।
असहनशील है पिलपिली भूख,
दुखियारे लोगों की भुखमरी की भूख
जो दफना दी गई है दिल की गहराई में।
अर्ध रात्रि के अंतिम समय में
तोड़े गए ज़हाजों का यह अवर्णित समुद्र तट है,
भ्रष्टाचार को उत्तेजित करने वाली गंध है,
यहां क्रूर लौंडेबाजों के मेजबान और हत्यारे हैं,
गलत निर्णय और मूर्खता की वजह से
अवांछित ज़हाज पर सवार हो गया है,
वेश्यावृत्ति, कपटी, कामुक, विश्वासघाती, झूठे, ठगी,
और टुटपुंजे कायार लोगों का दम फूल रहा है,
भावुक उमंगों की
सूं... सूं ... आवाज़ उठ रही है।
लालच हिस्टिरिया, विकृति और तंगहाली का मसखरापन है
और सड़ रहे हैं समर्थकों के जाल में फंसकर।
� कैस्टल की रानी बलन्च (1188-1252) का यहां जिक्र इसलिए किया गया है कि यह उदाहरण नितान्त असंगत है और इसे फ्रांस के औपनेविशक राज्य में जबरन ही बच्चों के दिमाग में ठूंसा जा रहा है।
ये उदात्त धर्म-भीरु पाखंडों के मसखरेपन की झांकियां हैं,
अनजान सूक्ष्म जीवों के सड़ने-गलने की शुरुआत है,
ज़हर है बग़ैर विषहर की जानकारी के,
पीप बह रहा है पुराने जख़्मों से,
सड़े हुए शरीर में अनजानी सी सड़ांध उभर रही है।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में,
बहुत ही स्थिर है रात,
ब्लाफाँग� बाद्य की आवाज़ फूटने से
बहुत से तारे मुरझा गए हैं।
अपने निकम्मेपन और आत्मत्याग की वजह से
रात में निरर्थक बल्ब उग आए हैं।
और अपनी मठ-बुद्धि और पागलपन से
विशेष क्षणों की कीमती बौछारें
वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं,
इसी जोशो-खरोश के साथ खींचता है नाभि से तलवार,
रोटी और दारू एक-दूसरे के सहयोगी हैं,
रोटी और दारू का आपस में ख़ून का रिश्ता है।
मेरे पहले पाए सुख की वजह से
मौजूदा दुर्गति को समझ पाया हूँ :
ऊबड़-खाबड़ सड़क धंसती है गर्त में
जहाँ गिनने लायक झोपड़ियों में बँट जाती है :
थकी-मांदी सड़क दम-खम के साथ पहाड़ी पर कूच करती है,
जिसकी चोटी पर डेरा डाले
ठिंगने-ठिंगने घरों के समूह में
अक्खड़ता से समा जाती है,
चढ़ रही है पागल-सी सड़क
और लापरवाही से उतर रही है,
और सीमेंट के छोटे पैरों पर नटखटों की तरह
हिलती-डुलती है एक चौखट
जिसे हम अपना घर कहते हैं,
इसके लोहे के ढाँचे को
मजबूती से पकड़ रखा है सूरज ने,
खाने के कमरे की ऊबड़-खाबड़ फर्श पर
� ब्लागफाँग : पश्चिम अफ्रीका का एक वाद्य।
कील का चमकता सिर है,
अनन्नास के पेड़ की शाखाएं और उसकी परछाइयाँ
छत के ऊपर फुदक रही हैं इधर-उधर,
घास-फूस की भूत जैसी कुर्सी है,
चिराग की धूसर रंग की रोशनी है,
चमकीले और फुर्तीले झींगुर हैं,
मूिच्र्छत होने तक चिराग का मर्... मर्... शोर...
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
बहुत महत्त्वपूर्ण है यह देश,
और मुझ जैसे लोभियों के सुपुर्द कर दिया गया है,
जो नहीं चाहता है कोमल संवेदना
और अचानक निस्तेज मांसल स्तन को
नष्ट किया गया है
टूटे हुए ताड़ के पेड़ की कठोर जड़ों के स्रोत की तरह,
इस स्रोत को तलाशने वाले जोशीले व्यक्ति की
ट्रिनिट से ग्रंड नदी के तट तक,
दोगली भाषा है समुद्र की।
तो फिर समय बीतने लगा है तेजी से,
बड़ी तेजी से,
अगस्त माह में आम के झाड़ सज-धजकर रहते हैं
सितम्बर चक्रवात की दाई है :
अक्टूबर - पकते हुए गन्ने की,
नवम्बर की नीरवता में घुरघुराहट है,
और तब क्रिसमस की शुरुआत होती है।
कसक भरी इच्छा का अहसास
उसके आने के पहले ही हो गया है,
लालायित है मन नई कोमलता के लिए,
अनिश्चित स्वप्नों की कली खिलने की शुरुआत है,
अचानक रेशम के वस्त्रों के पंखों की
सरसराहट के साथ उड़ जाती है।
यह ख़ुशी के पंख हैं।
वह इस ख़ुशी के साथ झोपड़ी में प्रवेश कर गई
और पके हुए अनार के सहज फूटने की तरह
ज़िंदगी उजागर हो गयी।
क्रिसमस की छुट्टियां
दूसरी छुट्टियों की तरह नहीं हैं।
वह नहीं चाहता है-
सड़क पर दौड़ना,
आम चौक पर नाचना,
टांगे फैलाकर खड़े होना,
औरतों को मसलने के लिए,
भीड़ का फायदा उठाना,
सफेद फूलों के चेहरे पर फटाके फेंकना।
क्रिसमस को खुली जगह का भय था
क्या चाहता था वह पूरे दिन में-
हलचल और साज-सज्जा,
और रसोईघर में काम-काज,
साफ-सफाई और उत्सुकता से भरा दिन।
यदि इस अवसर पर पर्याप्त नहीं है,
यदि हमारे पास चीजों की कमी है,
यदि वे सोचते हैं कि वे उदास हैं,
शाम के समय छोटे से चर्च में,
डरा हुआ नहीं है वह,
खुद ही उदारता के साथ खिलखिलाता
और बुदबुदाने लगता है धीरे-धीरे,
घोषणा करता है दम-खम के साथ
प्यार और मातम की ख़बरें,
गायक मंडली का मुखिया भर्राई आवाज़ से नाराज है।
उत्साही आदमी और चिड़चिड़ी लड़की का घर
रसीले पदार्थों से भरा पड़ा है।
आज पैसे की कीमत नहीं है
और कस्बा ओतप्रोत है समूह गान से,
अच्छा है इसी के बीच रहना,
अच्छा खाना-पीना उत्साह से,
घुमावदार डंठल की तरह दो नाजुक
उंगलियां उलझी हुई हैं काले पुडिंग में,
साफ और घट्ट काली पुडिंग में
जंगली अजवाइन की महक का स्वाद है,
तीव्र प्रकार की चमकदार वस्तु की गंध है,
सौंफ के मीठे बीज और स्वादिष्ट
दूध के घोल की उबलती कॉफी है,
पिघलते सूरज की तरह दारू है,
और अच्छी चीज़ों से भरपूर भोजन है,
जिससे तुम्हारी पुरानी झिल्लियों के दाग को
नष्टकर प्रसन्न करती है तुम्हें
या इसके इर्द-गिर्द बिखेरती है खुशबू,
जब कोई हँसता है,
जब कोई गाता है,
और नारियल के पेड़ के पंजे की तरह
संगीत थिरक उठता है
दूर-दूर तक
तुम्हारी नज़रों के सामने
एले लुईया... एले लुईया... एले लुईया...
काईरी� प्रार्थना...
ईसा की प्रार्थना...
न केवल मुंह गा रहे हैं,
डूबे हुए हैं
हाथ, पैर, नितंब, जननेंद्रिय भी
सभी साथी, जीव-जंतु,
इसकी लय और आवाज़ में
जब पहुँचती है खुशी अपने उच्चतम बिंदु पर
गाना ठहरता नहीं है
फूट पड़ता है बादल की तरह
उसी उत्साह और गंभीरता से
भयभीत पहाड़ियों और गुस्सैल बोगदों को
नरक की आग को
चीरते हुए निकल जाता है।
जब तक स्वप्नों की महीन रेत में
दबा रहता है डर
तब हर कोई कोशिश करता है
अपने करीबी शैतान की पूँछ को खींचना
हकीकत में तुम स्वप्नों में जीते हो-
पीते हुए और चिल्लातेे हुए,
और स्वप्नों में गाते हुए,
और गुलाब की पंखुरियों की तरह
तुम स्वप्न में भी लेते हो झपकी,
सैपोडिला (फल) के शोरबे की तरह
झकास उजाला आता है दिन का,
� काईरी प्रार्थना - ग्रीक में ईश्वर से दया-याचना संबंधित प्रार्थना।
नारियल के झाड़ से
उसके पानी की सुगंध फैल रही है
सूरज के नीचे
अपने लाल फुंसियों को चुग रही है टर्की पक्षी,
घंटियों और बारिश के शोर की परेशानियाँ हैं
घंटियाँ... घंटियाँ... बारिश ... बारिश...
टन... टन... टनटनाहट... टनटनाहट...
अर्धरात्रि के अंतिम क्षणों में
यह शहर... यह घर दिखावा है
यह रेंगकर चलता है
ज़रा भी दिली इच्छा नहीं है
कि आसमान में सुराग करें अपने विद्रोह से।
लोग घबराए हुए हैं घर के पिछवाड़े
आसमानी आग से,
उनकी बुनियाद घबराई हुई है
मिट्टी खिसकने से,
हो गया है मजबूत घर का ढांचा
आघाती और षड़यंत्री चाल को सहने के लिए,
और फिर भी ये कस्बा कर रहा है उन्नति
हर आए दिन
ज्वार भाटा लांघ रहा है गलियारे को
शर्माते हुए बंद आंखों से,
टपकते रंग की तरह चिपचिपा हो गया है आँगन,
समुद्र का जल लांघ रहा है गलियारे को,
ढेले और गड्ढों वाली पतली सड़क में
शांत छोटी सी कलंक और असीम घृणा पीस रही है,
और वहीं मलमूत्र के साथ
एक चेहरा बह रहा है...
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
उसके चेहरे के सामने जीवंत घर है
टूटे हुए सपने को कहीं भी रखा नहीं जा सकता है
अनगिन जीवन की नदियों की धरातलें निकम्मी हैं
इसका प्रवाह अनिश्चित है
न ऊँचा उठ रहा है न नीचे गिर रहा है
निरर्थक उदासी की ऊब की गहरी छाया
समान रूप से निष्पक्ष रेंग रही है,
अकेले पंछी की अटूट चमक से ठहरी हुई है हवा,
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
एक संकरी सड़क और एक घर से आ रही है दुर्गंध,
सड़ी लकड़ियों का एक छोटा घर है जो पनाहघर है दर्जनों चूहों
और छः उत्तेजित भाई-बहनों का,
प्रत्येक माह के आखिरी दिनों में यह छोटा सा घर,
हमें फंसा देता है उलझनों में
उनकी अव्यवहारिकता से,
और एक विपदा से असहाय हो गए मेरे पिताजी
जिनका नाम मुझे कभी मालूम नहीं था,
अनजाने जादू की वजह से मेरे पिताजी कभी गहरे दुःख
या क्रोध के कारण तेज-तर्रार हो जाते थे,
मेरी मां के पैर
दिन और रात सायकल के पैडल पर होते हैं
अंतहीन भूख के लिए,
जागा हूँ आधी रात पैडलिंग करते अथक पैरों से
और रात के सन्नाटे को चीरती गवैये की किर किर आवाज़ से,
इस आवाज़ के साथ मेरी मां पैडलिंग करती है
हमारे भूख के लिए
दिन और रात।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
और माँ-बाप के सिर पर
ताड़ के पेड़ की तरह घर का बोझ
कुटिया को चीरते हुए खड़ा है
संतप्त
थकी-मांदी, दुबली-पतली छत को पैराफीन के छोटे-छोटे डिब्बों से
दुरुस्त किया गया है,
पुआल की काम चलाऊ छत पर धूल की
धूसर बदबूदार परत
और जब चलती है हवा, यह बीमारू संपत्ति दाल की
तड़-तड़ छौंक की तरह अजीब सी आवाज़ करती है,
और पानी में जली लकड़ियाँ अलग होती हैं
घुमावदार धुएँ के साथ...
पलंग का तख्ता टिका है मिट्टी के तेल के डिब्बे पर,
हाथी के पांव हैं,
भेड़ का चमड़ा
और केले के सूखे पत्तों के टुकड़ों से सजा-धजा है गद्दा -
यह मेरी नानी का बिस्तर है।
उनके गद्दे के ऊपर तेल भरा कटोरा है,
अतीत की याद दिलाता पलंग है
नाचती लौ के साथ बुझती है मोमबत्ती
और कटोरे पर अंकित है शब्द ‘दया'।
एक बदनाम,
पाईले स्ट्रीट,
समुद्र की बायीं ओर धूसर खपरैल छतें
दायीं ओर हैं उपनिवेशी सड़कें
पुआल की छते हैं इधर-उधर,
पाईले स्ट्रीट में कत्थई रंग के धब्बे छोड़ जाती हैं समुद्री फुहारें
हवा के दबाव से और कमजोर हो गई हैं छतें।
हालात ऐसे हैं
निजी स्तर की है इस कस्बे की खोज
तुच्छ समझते हैं सभी लोग पाईले स्ट्रीट को।
यह सच है कि गुमराह कर रहे हैं इस कस्बे के लोगों को।
यह सच है कि
समुद्र की विशिष्ट खाड़ी नकार रही है
यहाँ के मृत बिल्लियों और कुत्तों को।
सड़क ख़त्म होती है समुद्र तट पर।
समुद्र के उफनते रोष को संतुष्ट कर सके
इस स्थिति में नहीं है तट
बदहाल हो गया है तट सड़े कूड़े-करकट से,
जानवर अपने गुप्त स्थान को खुद ही राहत दे रहे हैं,
तुमने कभी नहीं देखा होगा काली रेत, मनहूस काली रेत,
तेजी से फिसल रहा है समुद्री झाग इस पर,
तट को और जोरदार थपेड़े मार रहा है समुद्र मुक्केबाज की तरह,
या तट के निचले हिस्से को चाटता और खुरचता है समुद्र,
दरअसल समुद्र एक बड़ा कुत्ता है,
अंत में निश्चित ही निगल जाएगा खुद के साथ
इस तट को
पाईले स्ट्रीट को।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में,
ऊंची उठती है हवा
अतीत के खोए विश्वास की,
हाथ से फिसल जाना
अपरिभाषित जिम्मेदारी का...
और वो अलग
अंतिम क्षण है- यूरोप के सुबह की शुरुआत...
विदाई तक
जैसे वहां अफ्रीकी और काले लोग हैं,
तो मैं यहूदी हूँ
दक्षिण अफ्रीका के बांतु लोग हैं
हिन्दू लोग कोलकाता से हैं
हारलेम के आदमी को वोट नहीं मिला है।
अकाल पीड़ित आदमी है, शापित आदमी है,
सताया हुआ आदमी है,
इन्हें पकड़ सकते हो किसी भी क्षण,
उसे मारो, उसकी जान ले लो-
हाँ, मार डालो उसे पूरी कुशलता से - नहीं है कोई जवाबदेही,
मांगना नहीं पड़ेगा किसी से माफी
ऐ यहूदी आदमी
ऐ सामुहिक हत्यारे
ऐ छोकरे
ऐ भिखारी
लेकिन उसके खूबसूरत चेहरे से क्या तुम
शोक को हरा सकते हो
जिस तरह अंग्रेज औरत
उसके सूप की तश्तरी में हाटनटॉट� की खोपड़ी
देख हक्की-बक्की हो गई थी?
फिर से तलाशने की इच्छा है महान बोली
और इसके उत्साह के रहस्य को।
मैं नदी को कहना चाहता हूँ।
मैं तूफान को कहना चाहता हूँ।
मैं पत्तियों से कहना चाहता हूँ।
� हाटनटॉट - एक अफ्रीकी जाति
मैं वृक्षों को कहना चाहता हूँ।
मैं हर बारिश और ओस की
प्रत्येक बूंद से तरबतर होना चाहता हूँ।
पागल ख़ून आहिस्ता-आहिस्ता लुढ़क रहा है आंखों से
मैं शब्दों को लिखना चाहता हूँ -
उत्तेजित घोड़े की तरह,
नवजात शिशु की तरह,
जमे हुए दूध की तरह,
कर्फ्यू की तरह,
गिरिजाघर को खोजने की तरह,
गहरे ज़मीन में दफनाए गए अनमोल पत्थर की तरह
जो पर्याप्त है खानकर्मियों को भयभीत करने के लिए।
मनुष्य जो मुझे नहीं समझ सका,
क्या वह समझ पाएगा शेर की दहाड़ को।
उठो रासायनिक नीले प्रेत शिकार के घने जंगल से,
घुचुड़-मुचुड़ मशीन जैसे बेर के पेड़ पर
लटकी टोकरी में सड़ा मांस हैः
उसमें आदमी के कोमल रेशे को काटकर
निकाली गई सीप जैसी आँखें हैं,
मैंने तुम लोगों से बहुत बार कहा शांत
रहने के लिए फिर भी तुम लोगों ने
धरती पर अतिक्रमण किया है।
मदहोश है धरती
धरती की उन्मादी वासना जागी है सूरज में
धरती पर ईश्वर का प्रलाप बड़े पैमाने पर है
समुद्र की तिजोरी से
तुम्हारे लिए निकाले गए झींगों से
धरती उजाड़ सी हो गई है।
मैं धरती के तरंगमय चेहरे की
पागल और दूषित जंगल से तुलना करता हूँ
तो मैं अबूझ चेहरे के सामने
मौन रहना चाहता हूँ।
तुम्हारी बड़ी-बड़ी बातें हमेशा
दिन में तारे तोड़ लाने जैसी लगती हैं - हज़ार गुना से अधिक
मूलनिवासी हैं - सूरज के कारण किसी जगह की बानगी
सोने की नहीं होती - सभी आज़ाद हैं
भाई-चारे वाली इस धरती पर-
लेकिन मेरी धरती...
वसीयत छोड़ देने की आग्रही इच्छा मेरे दिल की धड़कनों में है।
छोड़ देता... हो जाता हूँ युवा
और ख़ूबसूरत मेरे और उस मुल्क में - और कहता हूँ
उस मुल्क से जिसकी मिट्टी मेरे शरीर का हिस्सा
है : ‘मैं दूर तक घूमा और लौटा हूँ तुम्हारे
असहाय घिनौने जख्म के पास'।
मेरे और उस मुल्क में आऊंगा,
और मैं यह कहूंगा : ‘मुझे चूमों बिना भय के...
और मालूम नहीं इसके बाद भी क्या कहूं,
वो तुम ही हो जिसके लिए मैं बोलूंगा।'
और मैं बोलूंगा :
दुर्भाग्यवश यह आवाज़ मेरी है,
आवाज़ जिसकी कोई बोली नहीं है,
मेरी स्वतंत्रता की आवाज़ वो है जो निराशा से भरे जेल में गूंजी है।
और लौटते समय कहता हूँ खुद से :
सावधान, तुम्हारे हाथों को क्रॉस बनाने के पहले
और दर्शकों के नीरस रुख से,
इसलिए कि ज़िंदगी तमाशा नहीं है,
इसलिए कि दुःख का सागर रंगमंच नहीं है,
इसलिए कि
चीखने वाला मनुष्य तमाशबीन भालू नहीं है।
अब मैं आ गया हूँ।
मेरे सामने फिर से एक बार यह निर्जीव जीवन है,
न यह जीवन है और न ही यह मौत,
बगैर चेतना या धर्म की है यह मौत,
सत्ता नदारद है ऐसी मौतों में,
धीरे-धीरे लंगड़ाकर चलती है यह मौत,
अत्याचारी विजेता के सामने छोटी-छोटी लालचों का प्रलोभन है,
बड़ी सभ्यता के ऊपर छोटी-छोटी नीचता का अंबार लदा है,
कैरेबियन के तीन आत्मवान पर
छोटी-छोटी आत्माओं के कुदाल चल रहे हैं।
और सभी लोग मारे गए हैं अमार्मिक ढंग से
मेरे परिपक्व अंतरात्मा की अमार्मिक ढंग से त्रासदी को
किया गया है बदनाम
एक जुगनू से रोशनी हो गई है
और खुद अकेले ही दैत्यों के भविष्य ग्रंथ के साथ
अर्ध रात्रि के समय
अचानक स्टेज पर इतराता हूँ
केवल और केवल तबाही के लिए,
और शांति से जिंदा लाशों का चयन करता हूँ।
बरबाद करने के लिए चुनाव का रास्ता।
एतराज है फिर से ! केवल एक, केवल
एक हीः मुझे अधिकर नहीं है जीवन को
नापने का इन छोटे काले हाथों से,
गोल आकार में खुद को समेट लेता हूँ,
मात्र चार उंगलियों को गोलाकार के बारह छोड़कर।
मनुष्य होने के नाते मैं
नकार नहीं सकता हूँ इस तरह की रचना को।
अक्षांश और देशांश के बीच ही रहने दो मुझे
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
एक ठोस इच्छा है-
लालसा है आदमी होने की
और दूर कर दिया गया हूँ
भाई-चारे के नए गुलिस्तान से,
नाखूनों में फंसी फांस जैसे निरर्थक है ऐसा दब्बूपन?
निश्चित सीमा है इस ज्ञान की
और बेचैन सब हैं जेलर की तरह
देशद्रोह की वकालत करना
तुम्हारी अंतिम फतह का संकेत है
ये सब मेरा है : हज़ारों में कुछ कमज़ोर लोग
तेज़ दौड़ते हैं तुम्बा वृक्ष� के द्वीप में।
और यह भी मेरा है : इस द्वीप समूह के मेहराब भव्य हैं
हालांकि वे नकारते हैं खुद को,
लेकिन माँ जैसी उत्सुकता के साथ दो अमेरिकी जुट गए थे
दुर्लभ नाजुक वस्तुओं को बचाने के लिए,
� तुम्बा वृक्ष : अफ्रीका द्वीप में पाए जाने वाला वृक्ष।
दुर्लभ है यूरोप के लिए
एजियन सागर में खड़े जहाजी बेड़े
और खाड़ी के स्वादिष्ट जल की चीजें,
इस एजियन सागर के एक ओर है
चमकीला पथ :
गुज़रती है भूमध्य रेखा की ठोस रस्सी अफ्रीका की ओर।
बगैर चौखट के है मेरा द्वीप : खड़ा है बड़ी बहादुरी से
पोलीनेसिया के साथ, और गॅडुडॉलप बंट गया है जाति में
देखते ही देखते हमारी तरह,
हैती में काले गुलाब पहली बार अपने पैरों पर खड़े हुए हैं,
और कहा जा सकता है
उन्हें पहली बार अपनी
मानवीयता पर विश्वास हुआ है,
और इन छोटे डंठलों के पास
गला दबा कर मार रहे हैं नीग्रो को,
स्पेन के पद र्चिीों की तरह यूरोप हिंसक हो गया है अफ्रीका मेःं
दूर-दूर तक मृत्यु के फलक लटके हुए हैं-
यह अफ्रीका की सच्चाई है।
मेरा नाम है-
ब्राडेक्स और नैनट्स और लीवरपूल और
न्यू-यार्क और सैन-फ्रान्सिस्को
इस दुनिया के कोने-कोने में
मेरे अंगूठों की छाप
और एड़ियों के निशानों,
धूल चढ़ जाती है ऊँची-ऊँची इमारत
और रत्नों की चमक-दमक पर।
मुझसे ज़्यादा शेखी और कौन बघार सकता है?
वरजीनिया। टेनेसी। जार्जिया। अॅलबामा।
विद्रोह के सड़ांध का प्रभाव कुछ नहीं है,
ख़ून के दलदल की है बदबू
ग़लत तरीके से रोका गया है आवाज़ को
लाल है धरती, ख़ून की है धरती, भाई जैसी है धरती।
�जुरा में मेरी छोटी कुटिया है,
सफेद मटकों से बनी छोटी सी कुटिया को
बर्फ मजबूत करता है
बर्फ सफेद है
जेल के सामने खड़े
जेलर गार्ड की तरह
यह मेरा आदमी है
सजा दी गई है
इस अकेले निर्दोष आदमी को
यह अकेला आदमी नकारता है
गोरी मौत के सफेद चीत्कार को
टॉसेन्ट, टॉसेन्ट, लावरचट��
यह आदमी गोरों को आकर्षित करता है
गोरों को मौत के घाट उतारने वाला बाज है,
एक आदमी अकेला ही है
सफेद रेत की बांझ सागर में,
एक बूढ़ा नीग्रो
आसमान से गिरते पानी के नीचे ठेठ खड़ा है,
इस आदमी के सिर पर
मंडरा रहे हैं मृत्यु के चमकीले नक्षत्र
उसके सिर पर है मृत्यु का सौम्य तारा
पके हुए गन्ने के पेड़ों में मौत पागल सी बह रही है
जेल से सफेद घोड़े की तरह निकलती है मौत
अंधेरे में बिल्ली की चमकती आंखों की तरह है मौत
समुद्री चट्टान के नीचे हिचकी लेते पानी की तरह है मौत
मौत एक घायल पक्षी है
मौत आहिस्ता-आहिस्ता कम होती जाती है
मौत कभी आगे तो कभी पीछे होती है
मौत मायावी चरागाह है
मौत शांत सफेद तालाब में समा जाती है।
� जुरा : अफ्रीका के गांव का नाम।
�� टॉसेन्ट, टॉसेन्ट, लावरचट - फ्रांस की क्रांति के समय हैती में जारी राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन के नीग्रो नेता थे। 1798 में उन्हें ब्रितानी सेना के पेशे से निकाल दिया गया था। संविधान को लागू किया गया, जिसके तहत उन्हें ताउम्र हैती का भावी राज्यपाल नियुक्त किया गया था। टासेन्ट के स्वतंत्र व्यवहार से नेपोलियन की चिंता बढ़ गई थी। 1801 में फ्रांस के अधिकारियों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और जूरा की पहाड़ियों में स्थित जेल में बंदकर दिया, जहाँ 1803 में उनकी मृत्यु हो गई।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों के चारों ओर
रात की उदात्तता है
अटल मृत्यु का मजाक है
इस फूटी किस्मत की जोरदार पुकार से
इस ख़ूनी विस्फोट की चमक-दमक से
गूंगी धरती का उद्धार नहीं होगा?
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
इन मुल्कों का इतिहास
किसी पत्थर पर दर्ज नहीं है,
इन रास्तों को तलाशना
बगैर किसी याद्दाश्त के,
बगैर किसी अभिलेख के,
यह कोई बात है?
हम बोलेंगे। हम गाएंगे। हम चिल्लाएंगे।
खुली आवाज़ से,
ज़ोरदार आवाज़ से,
तुम हमारे करीबी हो
और हमारे मार्गदर्शक हो।
चेतावनी?
आह, स्पष्ट चेतावनी!
कारण-
मैंने तुमसे शाम को मिलने का वायदा किया है
मैंने आह्नान किया है
हमारे प्रवक्ता और सचेतक बनने के लिए
और शिलालेख को
दिया है ख़ूबसूरत नाम
लेकिन उफ! मेरी बेसुरी हँसी यहां वर्जित है
आह! मेरे लोहे-शोरे के खजाने....!
इसलिए तुम्हें और तुम्हारे तर्कों से घृणा करता हूँ
हम रिश्तेदारी स्वीकारते हैं
स्मृति में बसे आदिम नाविक की तरह
बेहद पागलपन की तरह
अड़ियल नर-भक्षण की तरह
धरोहर?
इस पर विचार किया जाय
पागलपन,
जिसे याद किया जा सकता है
जो चीखता है
जिसकी प्रतिष्ठा है
स्वयं मुक्त होता है पागलपन से
और तुम वाकिफ हो बचे-खुचे से
वो... और... अस्तित्व,
बिल्ली की तरह म्यांऊ... म्यांऊ चिल्लाता है यह जंगल,
बादाम के फूल-फल को बचा लेते हैं वे झाड़
उभरकर आता है साफ-सुथरा वो आसमान
इत्यादि... इत्यादि .... इत्यादि....
कौन और क्या हैं हम?
प्रश्न प्रशंसनीय है!
वृक्षों को देखकर
मैं वृक्ष बन गया हूँ
और वृक्षों के इन लम्बे पैरों ने
खोदे हैं ज़हर के
बड़े-बड़े गहरे गड्ढे धरती पर
उत्खनन किया है हड्डियों का विशाल शहर
सोचते हुए कोंगों नृत्य के बारे में
मैं ढल गया हूँ-
नदी और जंगल के साथ-साथ
कोंगों नृत्य के शोर में
महान झंडे की तरह वहाँ गूंज उठा है आह्नान
यह उपदेशक का झंडा है
पानी की आवाज़ है
लिक... लिक... लिक...
वहाँ तेजी से हरी कुल्हाड़ी चमक उठती है
गुस्सा और जंगली सूअरों के
झुंड की बदबू उनके नाक के अहाते में बस जाती है
हिंसा तब्दील हो जाती है ख़ूबसूरती में।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
सूरज अपने फेफड़े और बलगम को थूक देता है
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
रेत की एक छोटी रेखा
मलमल का एक छोटा टुकड़ा
मकई की एक छोटी रेखा है।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
फूलों पर पराग की उत्ड्डष्ट कुलांचे भरना
नन्हीं-नन्हीं लड़कियों का
छोटी-छोटी रेखाओं जैसी आकर्षक उछल-कूद
और कोलिब्रीस� पक्षी की सरपट उड़ान
धरती के सीने पर
धँस जाता है खंजर
तेज रफ्तार से।
देवदूत के आबकारी अधिकारी
वर्जित तरंगों की घुसपैठ पर
रखते हैं निगरानी।
मैं घोषित करता हूँ
मेरे गुनाहों की
और बचाव में मुझे कुछ नहीं कहना है।
नृत्य। मूर्तियाँ। पुनरावर्तन।
मैंने भी हत्याएं की हैं
मेरी निष्क्रियता, मेरी भाषा, मेरी कोशिशों, और
मेरे फूहड़ गीतों के साथ ईश्वर है
तोते के पंख
और इत्र-फूल जड़ित चमड़े का वस्त्र पहने हूँ,
मैं धर्म प्रचारक की सहनशीलता से मुक्त हो चुका हूँ,
मैंने अनादर किया है
मानवता की अच्छाइयों का
अनादार किया है टाईर का
अनादार किया है सायडान का
आराधना करता हूँ जाम्बेजी का
मैं घबरा जाता हूँ विकृति के बढ़ जाने से
क्यों फिर जंगली इलाके में
जारी है तलाश जगह के लिए
घटिया है मेरे जीवन का भिखारवाड़ा
क्यों नहीं ठुकराया जाय कुलीन शिक्षा को?
चोट करो -
अनाप-शनाप बढ़ते हुए भद्देपन पर ?
� कोलिब्रीस - अफ्रीका का भिनभिन करनेवाला पक्षी
�वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
मरे हुए आदमी के लिए
सर्प-मंत्र की प्रार्थना
वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
ज्वार-भाटा को रोकने के लिए
वर्षा को रोकने के लिए
वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
भूत-पे्रत की छाया को रोकने के लिए
वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
मेरे खुद का आसमान खुलने के लिए
सड़क पर गन्ने की जड़ों को चूसता हूँ
मैं वह बालक हूँ
गले में फांसी का फंदा है
खींचा गया है
खून से लथ-पथ सड़क पर
मैं वह आदमी हूँ,
भव्य सर्कस के ठीक बीच में
मेरे काले माथे पर धतूरे का ताज है,
वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
उठ जाओ ऊँचे
और ऊँचे थरथराहट के साथ
बनिस्बत डायन की अपेक्षा
दूसरे सितारों की ओर
जब उनके बारे में
कोई नहीं सोचता -
जंगल की प्रतिष्ठा और द्वीप में पहाड़ों के बारे में
लगातार हज़ारों वर्षों से
उखाड़ दिया गया है जड़ से।
वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
� वूम... रोह... अफ्रीकी लोगों का मंत्र
फिर वादे का समय आने दो
और चिड़िया को मेरा नाम मालूम है
फव्वारा और सूरज और आंसू
जैसे हज़ारों नाम है औरत के
और जवान मछली की तरह उसके बाल हैं
और उसके पैर मेरी जलवायु है
और उसकी आंखें मेरी )तु है
बगैर नुकसान का दिन है
बगैर आघात की रात है
विश्वस्त तारे हैं
बुरे काम की सहयोगी है हवा।
किसने दबाया है मेरी आवाज़ को?
किसने कटु आलोचना की है मेरी आवाज़ की?
हज़ारों बांस की खूटियां मेरे गले में ठूंस दी गई हैं।
अनुपयोगी हैं हज़ारों जल स्याही।
दुनिया के ये अश्लील अवशेष हैं।
अर्ध रात्रि का अश्लील समय है।
अश्लीलता तुमसे घृणा है।
अपमानित करने के लिए दोषी तुम्हीं हो
और यह आदेश सौ वर्षों से जारी है
मेरा धीरज सौ वर्षों का है
सौ वर्षों से सहज कोशिश है मेरी ना मरने की।
वूम... रोह... ओह... ह.... हं...
हम ज़हरीले फूल के गीत गाते हैं
और प्रकोप से
चरागाह के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं,
और ख़ून के थक्के से
प्यार का आकाश पट गया है,
मिरगी रोग से ग्रसित है सुबह,
अगाध रेत की सफेद आंच है,
आधी रात को जंगली जानवरों की बदबू से
यह जहाज डूब गया है।
क्या कर सकता हूँ मैं ?
मुझे शुरुआत करनी है।
क्या शुरुआत करूं?
दुनिया में
शुरुआत ही केवल वस्तु है महत्त्वपूर्ण :
दुनिया के अंत से कुछ कम नहीं है।
ढेर -
पतझड़ के ढेरों का अपना दुख है
जहाँ नष्ट ना होनेवाले कंक्रीट भवन
और नए फौलाद खिल रहे हैं
ढेर ओ ढेर
जहाँ सूरज के विशाल गालों से
मवाद से भरा पानी निकल रहा है
मैं तुमसे घृणा करता हूँ
देखा जा सकता है
अभी भी औरतों को मदरसा के कपड़ों में
और बड़ी-बड़ी बालियां कानों में
स्तनपान करतीं बच्च्यिों के चेहरे पर हँसी है
और उनके इर्द-गिर्द भी ऐसा ही हैः
अब बहुत हो चुका है अत्याचार !
अब बहुत बड़ी चुनौती है
शैतानी भरे लाल चांद की हरी रोशनी की
और मलेरिया के बुखार की
अतीत के गुस्ताख प्रवाह की
बीस बार गुनगुने पानी से कुल्ला करने के बाद भी
तुमने उसी पुरानी सुविधा को विकसित किया
और महत्त्व दिया है
हमारा अस्तित्व
जैसे फुसफुसाते शब्दों से अधिक नहीं है
और तुम यह निरर्थक करते रहते हो।
शब्द?
जो हमारे हैं,
वह एक चौथाई दुनिया की व्यवस्था है,
हम विक्षिप्त महादेश से शादी कर रहे हैं,
हम शक्तिशाली दरवाज़े को तोड़ रहे हैं,
शब्द... ओह हाँ... शब्द!
लेकिन शब्द ताजे खून के हैं,
शब्द -
ज्वारीय तरंग और मलेरिया के सूजन के
और लावा और झाड़ी की आग जैसे हैं,
जलते हुए मांस के लोंदे
और जलते शहर...
इसे अच्छे से जानो :
मैं सतयुग के अलावा कहीं और नहीं खेलता
मैं बड़े जोखिमों के अलावा कहीं और नहीं खेलता
तुम मेरे अनुकूल बनो
नहीं बनूंगा मैं तुम्हारे अनुकूल!
मैंने देखा है -
बड़ी ही शालीनता से
दिमाग पर कब्जा करते हुए,
बादल जो बेहद लाल है,
या बारिश का लाड़-प्यार है
या हवा की रंगत है
बावजूद इसके
अनुचित होगा पुनः आश्वासन देना :
तोड़कर खोल देता हूँ लकड़ी के झोले को
इस तरह वह मुझको,
मुझसे अलग कर देता है
मैं प्रतिरोध करता हूँ
घनघोर और तेज़ पानी का
जिसने घेर लिया है
मुझे ख़ून से
अंतिम ज्वार के तरंग में
अंतिम ट्रेन में
मेरे अलावा और कोई
मेरी जगह ले नहीं सकता।
मेरे अलावा और कोई नहीं
दे सकता है आवाज़
अंतिम संताप को
मैं और केवल मैंने
धधकते दिये से मेरे लिए हासिल किया है
कुंवारी माता की दूध की पहली बूंद की तरह
और अब जो करना है सूरज के साथ
(वह इतना शक्तिशाली नहीं है कि
मेरे मजबूत सिर के साथ चल सके)
आटे जैसी रात के साथ
अनजान जुगनू सोने के अंडे दे रही है।
कड़े चट्टान के ऊपर बालों की
पुल्लियों की सिहरन की आवाज़ है।
जहाँ हवा कामुक घोड़े की तरह
इधर-उधर बह रही है।
मेरा हृदय मुझसे कह रहा है,
विदेशीयता अच्छी खुराक नहीं है।
जैसे छोड़ा मैंने यूरोप -
उसकी उत्तेजना की चीख है
हताशा का शांत प्रवाह है
जैसे छोड़ा मैंने यूरोप -
कायरता और शेखीपन से उभर रहा हूँ
मैं उस अहंकार का पक्षधर हूँ
जो सुंदर है
जो जोखिम उठा सकता है
और लगातार साहस के साथ
आगे बढ़ते जहाज की तस्वीर उभरती जाती है
मेरी स्मृतियों को खंगालने से
मेरी याद्दाश्त में कितनी हत्याएं हैं
मेरी याद्दाश्त में समुद्र तल है
याद्दाश्त
कमल के फूलों से नहीं,
मारे गए लोगों के सिर से भरा पड़ा है।
मेरी याद्दाश्त में समुद्र तल है
इसके तट पर
किसी औरत के शरीर पर शेर के कपड़े नहीं हैं।
मेरी याद्दाश्त ख़ूनी खेल से घिरी हुई है।
मेरी याद्दाश्त शव के बेल्ट में लिपटी हुई है।
हमारा विद्रोह अत्यंत भाग्यहीन है
जिसे ख़ूबसूरती से फाँस लिया गया है दारू की बौछार में
पीने की निर्दयी आज़ादी से,
खूबसूरत आँखें बेहद नशीली हो गई हैं?
मैं तुम्हें बता रहा हूँ? काले आदमी एक जैसे हैं?
उनमें प्रत्येक दोष है, प्रत्येक दोष संकल्पनीय है,
मैं तुम्हें बता रहा हूँ
काले आदमी की सुगंध से गन्ने के पौधे बढ़ते हैं
यह पुरानी कहावत की तरह है :
काले आदमी की पिटाई करो और तुम
खिलाओ काले आदमी को?
झूलनेवाली कुर्सी के साथ-साथ
मेरे दिमाग पर उनका चाबुक छाया है
मैं आगे-पीछे हो रहा हूँ
अशांत घोड़ी के बच्चे की तरह
या कैसे इतनी सहजता से
वे हमें प्यार करते हैं?
विलासिता, फूहड़ता और गर्मजोशी वाले
संगीत के उबाऊपन से दूर होना चाहता हूँ।
मैं हल्के-फुल्के जूते बना सकता हूँ
एक पैर पर रुक-रुककर नाच
और ठुमक-ठुमककर थिरक सकता हूँ।
और एक विशेष बर्ताव -
हमारे गूंगे तुतारी वादक की चीख
वाह... वाह... में कैद हो गई है।
ठहरो... सक बुछ ठीक है
मेरे अच्छे फरिश्ते चमक रहे हैं निऑन लाईट में
मैं अड़चनों को पचा लेता हूँ।
उल्टियों के साथ बाहर निकल आती है
मेरी इज्जत
सूरज,
सूरज के फरिश्ते,
घुंघराले बालों वाले सूरज के फरिश्ते,
शर्म से पानी पानी हुए
मीठे-हरे तरल पदार्थ के ऊपर से
छलांग लगाता हूँ।
लेकिन मैं ढोंगी सयाने ओझा के
पास पहुँच गया हूँ
इस झाड़-फूंक करने वाली दुनिया में
अपने लक्षित उद्देश्य का आत्मसमर्पण करना ही है,
एक चीख के साथ
अनमोल और दुष्ट घोड़ा
आहिस्ते से आता है,
शेखीबाज... शेखीबाज... घोड़ा
और वहाँ कुछ नहीं है
सिवाय अपने झूठे लीद के अंबार के,
जो जवाब नहीं देता है।
एक ख़ूबसूरत थिरकती नर्तकी के
स्वप्न देखना क्या पागलपन है!
जो सब से अलग है
जो किसी को मानती नहीं है।
निश्चित ही गोरे लोग बड़े योद्धा हैं
खस्सी किए गए नीग्रो लोग
स्तुतिगान करते हैं अपने मालिक का!
जीत! जीत! मैं कह रहा हूँ शोषित-दमित ही विषय है।
बदबूदार आदमी की विशिष्ट चाल और कीचड़ का संगीत है।
अनपेक्षित सार्थक बातचीत से
अपनी घिनौनी ज़िंदगी का
अब मैं सम्मान करता हूँ।
संत जॉन बापतिस्त दिन के अवसर पर
ग्रॉस माने कस्बे में जैसे ही कुछ अंधेरा हुआ,
हजारों घोड़े के व्यापारी इकट्ठा हुए।
और वे जिस सड़क पर एकत्रित हुए,
उसे डे प्रोफुन्डिस सड़क के नाम से जाना जाता है।
यह नाम एक चेतावनी देता है।
इसके ज़मीन के गहरे तल से घोषणा होगी ढेर सारी मौतों की
यह सच है कि इन
मौतों के कारण वहाँ हतप्रभ कर देनेवाला जुलूस आया था।
स्थानीय हालात की वजह से मौत हुई,
वह भी हज़ारों की संख्या में (भूख की त्रासदी की
बेचैनी ने उन्हें ज़हरीली घास को
खाने और दारू पीने की ओर ढकेला था?)
रह-रहकर पुराने कर्म को कुरेदते हैं खिलते हुए फूल की तरह।
और यह मृत्यु
जीवन का हिस्सा बन गई है।
और क्या सरपट चाल है!
क्या हिनहिनाता है!
क्या तबियत से पेशाब करता है।
क्या अचंभित करनेवाला विद्रोह है।
‘एक जोशीला
घोड़ा, चढ़ाई चढ़ नहीं सका।'
टखनियों में गुच्छेदार बालों वाली भव्य घोड़ी है।'
साहसी और प्रभावशाली घोड़ी का बच्चा बेहद संतुलित है।
और उसके कमर पर चेन बांधकर घमंडी
और धूर्त व्यापारी खड़ा है,
उसके क्रोध की वजह से उस जगह पर सूजन है,
यह अश्लील घाव बदसलूकी के हैं,
उदारता के दो मीठे बोल से उमड़ पड़ता है
युवाओं का जोश और उत्साह,
और उनके साहस का यह प्रामाणिक गवाह है।
मैं प्रामाणिक इतिहास के लिए
अपनी यातनाओं को भूलने से इंकार करता हूँ।
और मैं हँसता हूँ
अतीत की बचकानी कल्पनाओं से।
हम कभी वीरांगना नहीं थे
राजा दॅहोमेय� के कोर्ट में
� दॅहोमेय के राजा के कोर्ट में वीरांगनाएँ : दॅहोमेय के राजा (पश्चिम अफ्रीका) के शासन को महिला वीरांगनाओं की सशस्त्र सेना का पारंपारिक तौर पर समर्थन था। गेजो राजा (1800-1860) के शासनकाल में, इन वीरांगनाओं की मदद से बादशाह का विस्तार और राज्य सत्ता की मजबूती बुलंदी पर थी। महान अस्किया (1494-1529), टिम्बक्टू के राजा के काल में सोंघाई शासन की वैभवता ऊँचाई को छू गई। पश्चिमी सूडान के अवाम के लिए सेन्कोर विद्यालय मुस्लिम संस्कृति का एक प्रमुख केन्द्र बन गया था।
ना ही आठ सौ ऊँटों के साथ
‘घाना' की राजकुमारी के यहाँ,
ना ही ‘टिम्बक्टू' के डॉक्टर के पास,
जब ‘अस्किया' महान राजा थे,
ना ही ‘झेन'� के वास्तुशिल्पी के यहाँ,
ना ही ‘माधीस' में,
ना योद्धाओं में,
वे जिन्होंने नेतृत्व किया
हमें इस कोख की पीड़ा का अहसास नहीं है।
और इसलिए मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि हमारे ही
इतिहास को छिपाया गया है (जैसे दोपहर में
भेड़िए अपनी ही छाया में चर
रहे हैं, मैं इसकी प्रशंसा नहीं करता)
मैं दिल से स्वीकार करता हूँ कि हम लोग हमेशा
कप-बशी धोने वाले अप्रतिष्ठित थे,
कुछ समय के लिए जूते चमकाने वाले थे,
पूरे ईमानदारी से कहता हूँ सयाने ओझा के रूप में,
और हम जानते हैं केवल एक ही बात,
छोटी सी छोटी चीज़ों के लिए लड़ने का दम था।
सदियों से यह मुल्क
दोहराता रहा है कि हम हिंसक और पशु हैं,
काले लोगों के संसार के मुहाने पर उन लोगों
के दिल की धड़कनें बंद हो जाती हैं,
हम डरे-सहमे, रुकते-रुकते नाजुक गन्ने और
सिल्की सूत के लिए समर्पित और वचनबद्ध हैं,
और वे हमें गर्म सलाखों से दागते हैं,
और हम अपने मल पर ही सोते हैं,
और बीच चौराहे पर हमारी नीलामी की जाती है,
और एक गज अंग्रेजी पोशाक तन के लिए,
और नमकीला आयरीश मांस हमसे महंगा है,
और यह मुल्क ख़ामोश व शांत था
सिर्फ़ यह कहते हुए कि -
दैवीय शक्ति का प्रकोप है।
� झेन : टिम्बक्टू की राजधानी की स्थापना ग्यारहवीं शताब्दी में हुई थी।
हम जहाज के गुलाम उल्टी करते हैं,
हम कैलाबार� नदी में शिकार खोजते हैं।
तुम कानों को बंद करो?
हम अपने सूजन के साथ
टूट पड़ते हैं खाद्य सामग्री पर
धीरे-धीरे सांस लेते मेंढक के साथ!
साथी तूफान मुझे माफ करो।
मैं आवाज़ सुनता हूँ,
सदियों से अभिशप्त जकड़न की,
मौत के फूलते सांसों की
समुद्र में फेंक दिया गया है
उसकी आवाज़ को,
प्रसूता की चीख को...,
उंगलियों से चिपका खाना नड्डे में जा रहा है
आह्नान देने वालों की खिल्ली उड़ाना...
अदने-कीड़े-मकोड़ों के थकान का सूक्ष्म निरीक्षण...
हमारी निराशा के कारण और लापरवाही से
उभरा नहीं जा सकता किसी साहस को
आमीन। आमीन।
मेरी कोई राष्ट्रीयता नहीं है
और कभी सोचा भी नहीं चाँसलर पद के बारे में।
नकारा है मैंने द्रव्य यंत्र को
मानव वंश के हिसाब-किताब इत्यादि से
और वे
सेवा करेंगे,
धोखा देंगे,
मर जायेंगे।
आमीन। आमीन।
यह लिखा है उनके श्रोणी प्रदेश के आकार में।
� कैलाबार नदी दक्षिण नाईजीरिया में है जहाँ से बड़ी तादाद में गुलामों को बाहर भेजा गया।
और मैं, और मैं,
मैं तनी हुई मुट्ठी के साथ गाता हूँ
तुम्हें बताया गया होगा कि
कायरता के आयाम को स्वीकार किया है मैंने...
एक रात, एक लोकल ट्रेन में
एक नीग्रो
मुझे कर रहा है आकर्षित।
वह नीग्रो था गोरिल्ला-सा ऊँचा पूरा,
जो ट्रेन की सीट पर
अपने को सिकोड़ने की कोशिश कर रहा था।
उस गंदी ट्रेन की सीट पर
वह कोशिश करता है
अपने भीमकाय पैरों को समर्पित करने की।
और उस भूखे मुक्केबाज के हाथ काँप रहे हैं।
और उसका सब कुछ छूट गया है
और उसका कालापन भी लुप्त हो रहा है।
उसकी अस्मिता से दूर होते
प्रायद्वीप की तरह है उसकी नाक,
यहाँ तक कि उसके अफ्रीकन होने की निशानी
कालापन
निरंतर खो रहा है
चर्मकारी के काम से चर्मकार गरीब था।
निकम्मे द्वीप में,
विशाल कानों वाले चमगादड़ के पंजे
के खरोंच के निशान उसके चेहरे पर हैं।
शायद यह थका-मांदा कामगार
गरीबी की वजह से
किसी विकृत कारतूस की रूपरेखा बना रहा है।
तुम साफ़-साफ़ देख सकते हो
उनके नाक के बीच से
कैसे उकेरी गई है - दो सुरंग -
समानान्तर और खलबली मचानेवाली
अनुपातहीन आकार में बनाया गया है
ओंठ ऊपरी हिस्से पर,
और विकृत वस्तु की तरह
बनाया गया है भद्दे आदमी के माथे को
उद्योगपतियों के द्वेषपूर्ण प्रहार से।
और पूरी कुशलता से एक रेखाचित्र बनाया गया,
छोटे-छोटे, साफ-सुथरे
चमकदार पॉलिश किए हुए कान
सम्पूर्ण सृजन में।
बगैर लय और संतुलन के वह नीग्रो अनाड़ी था।
उस नीग्रो की आँखें थमे हुए ख़ून से भरी थी।
और जूतों की बड़ी दरार में
उसके पैरों की बेहद बदबूदार उंगलियों की
ठी... ठी... करती आवाज़ है।
बड़ी जहमत उठाई है गरीबी ने
उसे ख़त्म करने में।
उसने चेहरे के गड्ढे खोल में
आँखें बैठा ली थीं
और आँसू में धूल चिपका कर
रंग दिया था चेहरे को।
घिसी-पिटी गाल की पुरानी हड्डी
और जबड़ों के कब्जे के बीच ख़ाली जगह को
वह खींचता रहता है।
इस हड्डी पर कई दिनों से
चमकते कड़े बाल उग आए हैं।
दिल गुस्से से भर आया
और उसने पीठ झुका ली।
इन तमाम चीज़ों को जोड़कर
एक खाका बुना गया
नीग्रो कुरूप लगे
तुनकमिजाजी हैं नीग्रो, नीग्रो उजकृ हैं,
नीग्रो घटिया हैं जटिल स्थिति में भी
उसके हाथ उठते हैं प्रार्थना के लिए।
तार-तार हुआ कोट पहना है एक बूढ़ा नीग्रो।
नीग्रो जो हास्यास्पद और गंदा था,
और मेरे पीछे फूहड़ हँसी हँसती महिला खड़ी थी,
मानो मैं और बूढ़ा उसे देख रहे थे
वह हास्यास्पद और गंदा था।
सच में हास्यास्पद और गंदा है।
स्वीकृति में महत्त्वपूर्ण हँसी मेरी...
मेरी धूर्तता फिर से उजागर हुई!
तीन सदी तक मैं सिर झुकाता रहा
जिस वजह से भी मेरे नागरिक अधिकार
और रक्तपात में कमी आई है।
मेरा नायकत्त्व - क्या मजाक है!
निष्क्रिय है मेरी आत्मा,
यह शहर निष्क्रिय है,
गंदगी और कीचड़ की तरह,
इस शहर में
मेरा चेहरा कीचड़ का है
मेरे मुंह पर तमाचा मारने के लिए
अप्रत्याशित राशि की माँग करता हूँ!
जैसे थे वैसे ही हैं हम,
मानवता के लिए आगे कूच करते हैं,
पंख हैं आजादी के
भविष्य में होने वाली गलती की शिकायत है,
जो हमसे जुड़ी हुई है?
खड़ूस घुटनों की तरह
मेरा दिल मेरे दिमाग में है।
अब मेरे ग्रह अशुभ के चक्कर में हैं
और इस पर नर-भक्षियों के अत्याचार हैं
मेरे ऐतिहासिक सपनों पर :
मुंह की गाढ़ी लार में बंदूक की गोली है।
कमीनी हरकतों से हमारा दिल हर दिन टुकड़े-टुकड़े हो जाता है।
नैतिकता की कमी से महाद्वीप टूट रहे हैं।
नदी के विभाजन की आवाज़ से धरती फट जाती है।
और अब उस ऊँची चोटी की बारी है।
जिसमें शताब्दियों से उनके
रोनी की आवाज़ का चौथाई हिस्सा दबा हुआ है।
और लोग बहादुरी से छलांग लगाते हैं,
और हमारे मूल्यवान शरीर के
टुकड़े-टुकड़े बड़ी ही नफीसी के साथ कर दिए जाते हैं।
इस जूठन से
उतावली ज़िंदगी फूट कर निकलती है,
मानो सड़ते हुए विलायती कटहल के
बीच से अचानक रामफल का पेड़ उग रहा है।
मेरे भीतर बसे ऐतिहासिक स्वप्नों पर
नर-भक्षियों का अत्याचार जारी है।
मुझे मंजिल बुला रही थी
और मैं रह गया बेवकूफ घमंड के पीछे :
यहाँ जबरन जमींदोज़ कर दिया गया है आदमी को
उसकी ज़िंदगी को बचाने के
कमजोर तर्क चूर-चूर हो गए हैं,
उसकी पवित्र लोकोत्तियों को पैरों तले रौंदते हैं,
उसके आडंबरों का उत्साह से वर्णन करते हैं,
यहाँ प्रत्येक घावों की मार से
जबरन जमींदोज़ कर दिया गया आदमी को
और उसकी आत्मा नंगी है,
और जैसा सोचा था कि मंजिल पर फतह मिलेगी
पुरखों की मिट्टी की कब्र में फलती-फूलती है
विद्रोही आत्मा
पुनः ...
मैं कहता हूँ कि वह सब ठीक है।
मेरे न रहने के बाद भी
चाबुक के कष्ट से मुक्ति मिल सकती है।
एहसानमंद की रजामंदी से
दुरुस्त करूँगा मेरी सहज प्रवृत्ति जी-हुजूरी की
और मेरी जिजीविषा फेंक देगी
चाँदी में लिपटे दुःख को
जो धर्म उपदेश ध्वजा के
गेयात्मक बंदर और दासता के भव्य दलालों का है।
इसलिए मैं कहता हूँ यह अच्छा है।
मैं जीना चाहता हूँ
आत्मा के विशाल समतल जगह के लिए
मेरे निस्तेज शरीर के लिए
पुरखों की आँच और भय के
अंतिम समय की गर्माहट में
अभी मैं काँप रहा हूँ जैसे सब,
तब हमारे शांत ख़ून का संगीत
गूंज उठेगा बगैर किसी वाद्य के।
देखो जानवरों-सी विलक्षण शैली
मेरे भीतर दबी बैठी है।
ये वो नहीं हैं जिन्होंने बारूद
और ना ही कंपास को खोजा है।
ये वो नहीं हैं जिन्होंने समुद्र और
आसमान को खोजा है।
ये वो दुर्बल हैं जिन्होंने ना ही
भाप और ना ही बिजली...
लेकिन जिन्हें मालूम है
यातना सह रहे मुल्क की
अति विनम्र जगह के बारे में,
इनकी-उनकी यात्राएँ मात्र सतही थीं
वे जो अपने घुटनों के बल सोना चाहते थे,
वे जो देशीय और ईसाई बन गई थे,
उन्होंने ही पतन की क़लम बोई थी
ख़ाली हाथ से ढिंढोरा पीट रहे थे
जख्मों की गूंजती है ख़ाली-पीली आवाज़
नकलजी नष्ट कर रहा है दगाबाजी को
ख़ाली-पीली ढोल पीटकर
पुरखों की आंच और भय के अंतिम समय की गर्माहट में
मेरी जीवन यात्रा के अनुभव को छोड़ देना
और यह
मेरा विश्वसनीय झूठ है।
लेकिन मुझ पर
कौन सा छुपा हुआ अहंकार टूट पड़ता है।
आओ कोलिब्री पक्षी
आओ बाज
आओ टूटती हुई सतह
आओ कुत्ते के मुंह की तरह दिखनेवाले बंदर
आओ डॉल्फिन
सीप से निकलते मोती का विद्रोह
समुद्र के कवच को तोड़ता है
हर दिन आओ
द्वीप में डूबते-तैरते
टूट रही हैं मृत कोशिकाएं,
पक्षियों की प्रार्थना जारी है अधपके चूने में,
आओ जलीय अंडाशायी
जहाँ भविष्य के लिए
नन्हे-नन्हे सिर निकल रहे हैं,
आओ भेड़ियो
कौन स्पर्श करना चाहता है
शरीर के बर्बर सूराख को,
क्रांतिवलय स्थान पर
जब हमारा चांद तुम्हारे सूरज से मिलता है।
मेरी अयोग्य जुबान सुरक्षित है
जंगली सूअरों के बाड़े में,
दिन की रोशनी में
तुम्हारी आँखें
हरे पत्थर के नीचे
सोन पक्षियों के झुंड के कंपन की तरह थी।
टक-टकी लगाए देखने में गड़बड़ी है
जैसे धन को हड़प जाना
और नीचे गिर गये धन को बुहारना,
ज्वार-भाटा तुम्हारी रोशनी में
मैं दोबारा जन्म लूंगा,
(ओह, बच्चा, जो नहीं जानता मेरी लोरी के शब्द,
बसंत के चित्र, जिसे हमेशा बनाया जा सकता है)
घास हिलता-डुलता रहता है
पशुओं के लिए
उम्मीदों के शेष हैं मीठे पकवान,
पियक्कड़ गटक जाता है समुद्र को,
नुकीले पत्थरों से कभी अंगूठी नहीं बनती,
जीनिया� और कॉरिनथर फूलों के
झाड़ दूर-दूर तक लगा दिए गये हैं,
मेरी थकान को दूर करने के लिए।
और तुम अपनी अंदरूनी रोशनी से
तारों का चयन करती हो
जानवरों की आकृति बनाने के लिए,
आदमी के अनगिनत शुक्राणुओं से
काँपती है कीमती धातु की तरह
भीरु आकृति बच्चेदानी में
ओ सुव्यवस्थित रोशनी,
ओ रोशनी के स्वस्थ्य �ोत
ये वो नहीं है
जिन्होंने ना ही बारूद और ना ही कम्पास खोजा है
ये वो दुर्बल हैं
जिन्होंने ना ही भाप और ना ही बिजली....
ये वो नहीं है
जिन्होंने ना समुद्र और ना ही आसमान को
खोजा है।
लेकिन उनके बगैर
धरती नहीं हो सकती धरती
हम पीड़ित लोग जोड़ रहे हैं हितैषियों को
हम खेत में पके हुए अनाज को रखने वाले मचान हैं
जो कुछ धरती में है
वह सब केवल धरती का ही है।
और मेरा कालापन पत्थर नहीं है
उन दिनों के असंतोष के ख़िलाफ़
बहरापन फूट पड़ता है।
मेरा कालापन धरती के मृत आँखों पर
ठहरे हुए पानी का सफेद दाग नहीं है
मेरा कालापन
ना मीनार और ना ही मुख्य गिरजाघर है।
लाल मांस के दलदल में कूद पड़ा है।
आसमान में चमक रहे मांस में फंस गया है
मेरे कालेपन के खाली जगह पर कर दिए गए हैं छेद,
� जीनिया/कॉरिनथर : अमेरिकन प्रजाति के वृक्ष।
गहन दर्द को
सहने की शक्ति ला-जवाब है।
सलाम भव्य कैलंसेट्रेड वृक्ष के लिए
सलाम उन्हें
जिन्होंने कभी कोई आविष्कार नहीं किया
ये वो हैं जिन्होंने कभी कुछ नहीं खोजा
ये वो है
जिन्होंने कभी कुछ नहीं हड़पा है
ये वो है
जो सभी चीजों के तत्वों के
अनुकूल ढल जाते हैं।
जमीनी हकीकत से अनभिज्ञ
लेकिन पहचान लेते हैं
सभी वस्तुओं की आहट
गबन करने की ‘इच्छा' से मुक्त
लेकिन परिचित हैं दुनिया के इस खेल से
यह सच है
हम दुनिया के बड़े लड़के हैं
दुनिया में
जीवन खुला है सभी के लिए
दुनिया में
भाई-चारे की गरत सभी के लिए है
और दुनिया में
जमीन का अखुदा पानी भी सभी के लिए है।
दुनिया की रफ्तार में
देह की देह थककर चूर हो रही है।
पुरखों के सदाचार के अंतिम क्षणों की गर्माहट में
रक्त! रक्त!
हमारा सारा ख़ून खौल उठता है।
सूरज के पुरुषार्थ से
जो समझ पाते हैं चाँद के स्त्रीत्व को
उसके तेलीय शरीर से
घास के अंकुरण के बीच,
बारहसिंगा और तारों के बीच,
फिर से सुलह हो गई,
जिसका अपना आनंद है।
निश्चित ही दुनिया गोल है
और आपसी समझदारी एक अच्छा संकेत है।
सफेद दुनिया की सुनो
उसने हिम्मत के बाद भी
ध्ौर्य खो दिया डरावने स्वप्नों से
तारों की कठोरता के कारण
उसके जोड़ों का दर्द
आगे बढ़ने में साथ नहीं दे रहा है
जीत के ऐलान को सुनो
जो अपनी हार का ढिंढोरा पीट रहा है
आडंबरपूर्ण स्थितियों को देखो
(जैसे पतली चादर में पैर रखना है)
अपने विजेताओं पर तरस आता है
यह सभी जानते हैं!
और निंदनीय हैं!
यहाँ पुनर्जन्म में भी
आँसू और दर्द का साथ रहता है।
ये वो हैं
जिन्होंने कुछ नहीं खोजा
ये वो हैं
जिन्होंने कभी कुछ नहीं हड़पा।
ख़ुशी को सलाल
सलाम प्यार को
पुनर्जन्म को सलाम
यहां भी
आँसू और दर्द का साथ रहता है।
और यहां अर्धरात्रि के अंतिम क्षणों में
मैंने पुरुषार्थ की प्रार्थना की
जहाँ मैं
ना हँसी और ना रोने की
आवाज़ सुन सकता हूँ
मेरी आँखें
इस शहर को देखती हैं
मैं उसकी ख़ूबसूरती का बखान करता हूँ
मुझे चाहिए बर्बर ओझा का विश्वास
मुझे शक्ति दो
सत्ता को उखाड़ फेकने के लिए,
मेरी आत्मा को तलवार की धार चाहिए
मैं मजबूती से खड़ा रहूँगा
मेरे मस्तिष्क को ऊर्जा दो
और मुझे ना बनाओ पिता
ना ही भाई
ना ही पुत्र
लेकिन पिता, भाई, पुत्र
और ना ही बनाओ मुझे पति
लेकिन बनाओ
इस अनन्य अवाम का प्रेमी
सभी उपलब्धियों के ख़िलाफ़
मुझे विद्रोही बनाओ
लेकिन उसके गुणों के प्रति
अपने फैले हुए हाथ की मुट्ठी की तरह
विनम्र भी
उसके ख़ून के हिसाब का
मुझे प्रबंधक बनाओ
उसके मनमुटाव के लिए
मुझे न्यासी बनाओ
मुझे अंतिम आदमी बनाओ
मुझे शुरुआत करनेवाला आदमी बनाओ
मुझे फसल काटनेवाला आदमी बनाओ
लेकिन साथ ही
मुझे बुआई करनेवाला आदमी भी बनाओ
मुझे इन सभी चीज़ों को लागू करनेवाला बनाओ
समय आ गया है बहादुर आदमी की तरह
मेरे शेरों को लैंस करने का,
लेकिन लागू करते समय
सभी तरह की घृणा से
मेरे दिल को बचाना होगा
मुझे घृणित आदमी जैसा मत बनाओ
जिससे मैं सिर्फ़ नफरत करता हूँ
तुम जानते हो
मेरे सताए गए प्यार को
अंततः यह जानते हुए भी
कि हमने कभी घृणा नहीं की अन्य नस्लों से
मेरी सिर्फ़ यही कामना है कि
सर्वव्यापी भूख
और इच्छाओं का समाधान हो
आखिरकार इस विशिष्ट नस्ल को आज़ाद किया जाय
ताकि फलों की सरस मिठास के साथ घनिष्ठता बनी रहे
देखो !
हमारे द्वारा लगाए गए वृक्ष
सभी के लिए हैं।
वह अपने जख्मों को
रूपांतरित कर रहा है तने में
जिसे काटा गया था।
मिट्टी अपना काम कर रही है
और जल्द ही फुनगियों पर
मीठे बौर फुदक रहे होंगे
लेकिन भविष्य के इन फलों के बाग में
क़दम रखने से पहले तय करना है
उनकी योग्यता के बारे में
जो घेर रही है समुद्र को,
जब बंजर समुद्र की
ज़मीन के लिए इंतज़ार कर रहे हो
तो लौटा दो मुझे मेरा दिल
जहां उम्मीदों को अच्छी तरह बेचा जा रहा है
और समुद्र के बदलते रूप को रोका जा रहा है,
छोटी सी डोंगी की समुद्री यात्रा का साहस
और जज्बे जैसा जिद मुझे दो
यहां विकास हो रहा है
ज्वार-भाटा की तरह,
यहाँ नाच रहे हैं
पवित्र नृत्य शहर के भूरे रंग के समान,
यहां चिल्ला रहा है भयभीत मेमना,
अनिश्चित ऊँचाई की ओर
सरपट दौड़े जा रहा है मेमना,
पूरी ताक़त से बीस बार चप्पू चलाते हैं,
जल विभाजित होता
और मुड़ जाता है डोंगी का सामने वाला हिस्सा
आगे और बढ़ती जाती है डोंगी
चप्पू लाड़ करता है पानी से
लहरों को पीछे छोड़
डोंगी बढ़ जाती है आगे... और आगे
लहरों के थपेड़ों के सामने सिहर जाती
और छोड़ जाती है मुँह पर समुद्री झाग
और डाँटती है रेत के तट पर
फिसलती डोंगी की आवाज़ की तरह।
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में
पुरुषार्थ के लिए प्रार्थना
क्रोधित समुद्र का सामना करने के लिए
मुझे डोगियों जैसी ताक़त दो
मुझे मेमने के पैदा होने की ख़ुशी दो।
देखो, सिवाय आदमी के
मैं कुछ नहीं हूँ
ना ही अप्रतिष्ठित और ना ही कोई दाग है
अब मैं किसी चीज से विचलित नहीं होता
स्वीकारता हूँ
सिवाय आदमी के मैं कुछ नहीं हूँ
और ना अब कोई गुस्सा है
(उसके पास, उसके दिल में सिर्फ गहरा प्यार है, जो जल रहा है)
मैं स्वीकारता हूँ.... मैं स्वीकारता हूँ... पूर्णतः
बगैर किसी गिला शिकवा के...
मेरी जाति का निषेचन नहीं हुआ
जूफा और लिली के फूल को
मिलाने से कभी शुद्धिकरण हुआ है ?
निंदा कर करके मेरे वंश को नष्ट कर दिया गया
मेरी जाति को नशे में चूर कर दिया गया है
मेरी रानी कुष्ठरोग और दागवाली है
मेरी रानी चाबुक और बातों को मन में रखने वाली है
मेरी रानी पट्टेदार चमड़ी और रंगो वाली है
(ओ राजशाही तुम्हें मैंने दूर-दराज के हरे-भरे बगीचों में
प्यार किया और जलाई है लाल-धूसर रंग की मोमबत्ती!)
मैं स्वीकारता हूँ... मैं स्वीकारता हूँ ....
चाबुक की मार खाये हुए नीग्रो
कहते हैं ‘माफ करना गुरू',
और कानून के तहत उन्नीस बार
कोड़ों की मार खाए हैं,
चार फीट ऊँची है जेल की कोठरी,
और सलाखों की ऐसी कई शाखाएं हैं,
और मेरे दौड़ने की ताक़त छीन ली गई है,
फ्लर-डि-लींस� छाप सिगरेट के चटकों से
मेरे कंधों और मांस-पेशियों से बह रहा है ख़ून
और मॉनसिअर वाल्टिअर गेयन कोर्ट की जालियाँ हैं
जहां मैं महिनों चीखा-चिल्लाया हूँ
और ब्राफीन महोदय
और फॉरनिअॅल महोदय
और डि.ला. महादिरेअ् महोदय
और विचलन,
चौकीदार,
आत्महत्या,
� फ्लर-डि-लींस : फ्रान्स का प्राचीन राजर्चिी है।
घालमेल,
जूते,
मोजे,
सार्वजनिक कोष,
लकड़ी का घोड़ा,
हथकड़ी,
साफा,
मैं बहुत आभारी हूँ?
बहुत दर्द है मेरे घुटनों में
बहुत सारी गांठ है मेरे पीठ पर?
कीचड़ में रेंगना है मुझे।
कीचड़ के चिकटपन और
उसे उठाने के लिए संघर्ष करना है।
कीचड़ से भरी पड़ी है धरती।
कीचड़ की एक सीमा है।
कीचड़ का आसमान है।
वे जो मर गए हैं कीचड़ की मौत,
हाथ की हथेलियों की गर्माहट पर
उनका नाम गुदा हुआ है।
सिमोन पिक्युअन,
जिन्हें कभी भी अपने माता पिता का नाम मालूम नहीं था,
जिनके नाम पर कभी भी शहर में घर नहीं था,
और वे ताउम्र खोजते रहे अपने नाम को
ग्रॅडवोरका - वो मर गया है,
जिसे सिर्फ़ मैं जानता हूँ।
एक शाम बुआई के समय उसे मौत के घाट उतार दिया गया,
वह उसका काम था, यह लगता है कि चलती हुई गाड़ी के नीचे रेत फेंकी जाय,
जब ख़राब स्थिति में हो ताकि वह आगे बढ़ सके।
माईकल ने अजीबो-गरीब दस्तखत
के साथ मुझे ख़त लिखा
माईकल डेविन : पता : खारिज किया घर।
वहाँ तुम और तुम्हारे भाई रहते थे :
एसिले बेट, कानगोलो लेमके, बासोलोग्नो-
कहाँ है चिकित्सक
जो खुले जख्मों की जड़ों से
ज़हर के दुःसाध्य रहस्य को
मोटे ओठों से निकाल सके ?
कहाँ है सभ्य ओझा
जो तुम्हारे टखने को नरम कर सके
घातक लोहे की अंगूठी की भीनी-भीनी गरमाहट है?
अगर दुनिया तुम्हारी पिछलग्गू है
और तुम यहाँ हो
तो मुझे मिल सकती है मेरी शांति।
द्वीप जिसके पानी पर दाग है
द्वीप जो जख्मों का गवाह है
द्वीप जिसके टुकड़े-टुकड़े हो गए,
आकारहीन है द्वीप
द्वीप जो फाड़ा हुआ रद्दी का काग़ज़ है
और इस काग़ज़ को पानी पर बिखेर दिया गया है
द्वीप जो टूटा हुआ चप्पू है
सूरज से जलती तलवार पर चल रहा है
मैं आकारहीन द्वीप को
ढालता हूँ आकार में
वफादार पानी का प्रवाह मेरे प्यास के लिए है
मेरी चुनौती बनी रहे
इसलिए तुम्हें हराने के लिए मूर्खता से वोट डालता हूँ,
बेतुके तर्क मुझे बचा नहीं सकते।
गोलाकार द्वीप का
प्यारा सा आधार है कील
अपने समुद्र जैसे हाथों से
तुम्हारी देखभाल करता हूँ।
अपने व्यापारिक शब्दों की हवा के साथ
झुलाता हूँ तुम्हे चारों ओर।
अपनी फिसलती जुबान के साथ
तुम्हें बहा ले जाता हूँ।
लाभ के लिए मैं तुम पर
बगैर सोचे-विचारे हमला करता हूँ।
मौत के रेशे-रेशे का
दलदल है!
टूटे हुए जहाज के
और टुकड़े हो जाते हैं
मैं स्वीकार करता हूँ
अर्ध रात्रि के अंतिम क्षणों में :
खो गए हैं तालाब,
रह रहकर उठती है बदबू,
असहाय हैं गन्ने,
बगैर पवार की है नाव,
पुराने हैं जख्म,
सड़ गई हैं हड्डियाँ,
पानी पर तैरती हैं लाशें,
फूट रहे हैं ज्वालाुखी,
असहज तरीके से हो रही है मौत,
मर्मभेदी चीत्कार है,
मैं स्वीकार करता हूँ
और साथ में है मेरा जातीय भूगोल :
मेरे इस्तेमाल के लिए
बनाया गया है दुनिया का नक्शा,
स्कूल के कर्ता-धर्ता की इच्छा से रंग,
नहीं है रंग,
लेकिन रंग,
मेरे ख़ून के रेखा गणित से है।
मैं स्वीकार करता हूँ
और मेरे जीवन समूह की परिभाषा है :
दुर्भाग्य से मेरे चेहरे के कोण तक सीमित रहा है,
एक प्रकार के बालों तक,
पसरी हुई नाक तक,
एकदम काले रंग की पुताई तक,
पर्याप्त है कालेपन के लिए काला रंग
अब नहीं है नीग्रो होने का मापदंड,
चाहे सिर हो प्लाज़्मा या देह से संबंधित
हमारा आंकलन करते हैं
प्रताड़ना की परिधि के रंग से
और नीग्रो हर दिन गड्ढे में जा रहे हैं :
अधिक भीरुपन से,
अधिक निर्जीवपन से,
निपुणता की कमी से,
अपनी सीमा से अधिक ख़र्च करने से
अपने आप से विलुप्त रहने से,
खुद से अधिक चालाकी करने से
खुद की समझदारी की कमी से
मैं स्वीकार करता हूँ, मैं सब स्वीकार करता हूँ
और भव्य समुद्र से दूर
पानी के बुलबुले की तरह रो पड़ता हूँ,
मेरे देश की देह
मेरे हताश हाथों में लेटी हुई है आश्चर्य से
उसकी हड्डियाँ थराथरा गई हैं,
और उसकी नसों में ख़ून ठहर जाता है
पत्तियों से निकलते दूध की बूंद की तरह,
फिर घाव के मुहाने पर आकर ठिठक जाता है....
और मेरे दुःख के उद्गम पर
अब अचानक हमला कर रहे हैं
पूरी ताक़त से सांड की तरह,
छोटी-छोटी नसें नए ख़ून से ठसा ठस हो गई हैं,
तूफान जैसी सांसों का विशाल फेफड़ा है,
आग का जखीरा है ज्वालामुखी,
और विशाल भूकम्पीय स्पंदन
मेरे शरीर की भीतरी धड़कन को हरा देती है।
हवा में
मैं और मेरा मुल्क
अभी तक सिर के बालों जैसे खड़े हैं,
मेरे छोटे-छोटे हाथों का मुक्का ताक़तवर है,
ओर भीतर से हम कमज़ोर हैं,
लेकिन जुबां पर आवाज़ है,
जो रात के अंधेरे को चीर देती है,
और इस आवाज़ को सुनने वाले हैं,
क्रोधित व्यक्ति के आग उगलने की तरह
यह आवाज़ घोषणा करती है,
हमें यूरोप ने झूठ के सहारे दबाया
और धोखा दिया है,
वह भी महामारी के समय,
यह सच है लेकिन उनके किए बुरी बात नहीं है ?
मनुष्य का काम ख़त्म हो गया है
कुछ करने लायक बचा नहीं है दुनिया में
हम दुनिया के पिछलग्गू हैं
हमारा काम है दुनिया के साथ चलना
मनुष्य का काम सिर्फ़ अभी शुरू हुआ है,
प्रत्येक कठोर बंदिशों के बावजूद
चारों ओर उनका जोश फैला हुआ है,
यह केवल उनके जीत के लिए ही बचा हुआ है,
मिल्कियत नहीं है
सुंदरता, बुद्धिमता और ताक़त
किसी भी वंश की।
विजय स्थल पर
सभी के लिए जगह है
हम अब जानते हैं
हमारी पृथ्वी भूखंडों को छोड़
सूरज के चारों ओर घूमती है,
जिसे केवल हमने तय किया था।
हमारे इशारों पर
प्रत्येक तारा आसमान से
धरती पर गिरता है
बगैर किसी सीमा या रुकावट के।
अब मैं देख रहा हूँ
क्या मायने है कठोर इम्तिहान का :
‘भाला'
पुरखों की निशानी है।
अगर इसे चूजों का ख़ून दो
तो यह सिकुड़ जाता
और इसकी थकी हुई धार नकारती है,
उसकी धार आदमी के ख़ून की प्यासी है,
आदमी की चर्बी,
आदमी का कलेजा,
आदमी का दिल,
और इसे नहीं चाहिए चूजों का ख़ून।
इसलिए मैं भी तलाशता हूँ,
मेरे मुल्क के लिए
इंसानियत का धड़कनेवाला दिल
ना कि खजूर का दिल,
ताकि मनुष्य प्रवेश कर सके
विशाल समलम्बी द्वारों से
चांदी के शहरों में,
मेरी जन्मभूमि के क्षेत्रफल को
मेरी आंखें नाप लेती हैं,
और एक अजीब सी खुशी के साथ
जख्मों को गिनता हूँ,
जैसे मैंने उन्हें दुर्लभ मानव जाति
की तरह एक के ऊपर एक रख दिया है,
और लगातार इजाफा हो रहा है
संख्या में,
अनचाहे घृणात्मक दृश्यों में
कैसे भूल जाएँ ऐसे लोगों को
जिनका अस्तित्व शैतान की प्रतिकृति है
ना कि भगवान की,
वहीं ऐसे लोग हैं,
जो सोचते हैं
नीग्रो दोयम दर्जे के कारकून हैं,
बेहतरी का इंतज़ार है,
लेकिन तरक्की की कोई गुंजाइश नहीं,
वहाँ ऐसे लोग हैं,
जिन्होंने खुद के समक्ष ही आत्मसमर्पण कर दिया है,
वहाँ ऐसे लोग हैं,
जो अपनी ही दुनिया में रहते हैं,
वे यूरोप को कहते हैं :
‘देखो मुझे मालूम है,
कैसे प्रताड़ित और नमस्कार करना है
जैसे तुम करते हो,
और चाहता हूँ -
तुम भी मुझे सम्मान करो,
मैं किसी भी तरह तुमसे भिन्न नहीं हूँ,
मेरी काली चमड़ी पर ना जाओ,
यह तो सूरज है
जिसने जलाया है।'
वहाँ नीग्रो भडुवे और असकारी� हैं :
अपने ही अंदाज में जेबरा हिलता-डुलता है,
इसलिए उनकी धारियाँ ताजे दूध की बूँदों के
साथ गिरती हैं,
और इन सबके बीच
मेरा सलाम।
मेरे दादा मर रहे हैं - सलाम
शनैः शनैः बूढ़े नीग्रो लाश में ढल रहे हैं।
सलाम... सलाम...
उधर इसे नकारा नहीं जा रहा है :
वह अच्छा नीग्रो था।
गोरे कहते हैं वह अच्छा नीग्रो था,
सही में अच्छा नीग्रो था,
उसका अच्छा उस्ताद भी
अच्छा नीग्रो था।
और मैं कहता हूँ सलाम
वह बहुत ही अच्छा नीग्रो था।
वह सभी तरह से प्रताड़ित है।
तो उसके पास ताक़त नहीं थी
कि अपनी नियति तय कर सके,
तो उसकी प्राकृतिक क्रियाओं पर अनंतकाल तक
लिखित बंदिश है अकृपालु भगवान की मेहरबानी से
अच्छा नीग्रो होने के लिए
स्वीकार करना होगा ईमानदारी से
अपनी अयोग्यता को,
निरर्थक उत्सुकता को,
अपनी कमजोरी को,
ताकि उन नियति-सूचक चित्र-लिपि को
रख सके सँजो कर
आने वाले दिनों के लिए।
� असकारी : अफ्रीका की बोली भाषा में चौकीदार को कहते हैं।
वह बहुत अच्छा नीग्रो है
और ऐसा उसके साथ ना हो
इसलिए वह
बाँस की लकड़ी को छोड़कर
किसी भी चीज़ पर
कुदाल चलाता है
खोदता और काटता है।
वह बहुत अच्छा नीग्रो है।
और वे उस पर फेंकते हैं पत्थर,
लोहे की छड़ के टुकड़े,
टूटी हुई बोतलें
लेकिन
ना ही ये पत्थर,
ना ही ये लोहे,
ना ही ये बोतलें...
ओह देवता शांति के वर्ष धरती के टीले पर है।
और हमारे जख्मों की मीठी ओस पर
भिनभिनाती मक्खियों से
बहस करता है चाबुक मारनेवाला?
मैंने कहा सलाम... सलाम...!
ज्यादा से ज्यादा बूढ़े नीग्रो
ढल रहे हैं लाशों में!
फैल रहे क्षितिज को
पीछे खींचा और ताना जा रहा है?
फटे हुए बादलों के बीच से कड़कड़ाती
बिजली का इशारा है?
गुलामों का जहाज टूटकर... खुल रहा है
उसके कोख के स्पंदन का शोर गूंज रहा है।
इस दुधमुंहे नाजायज संतान की
अंतड़ियों को ये पाशविक कुतर रहे हैं
उसकी धड़कती अंतड़ियों को
जलमग्न करने का डर है
आगे जल यात्रा करने की ख़ुशी
डबलून्स� से भरे पर्स की तरह व्यर्थ हो गई
पुलिस युद्धपोत की मूर्खता से
उनके दाँव-पेच खारिज हो गए
व्यर्थ ही कप्तान तकलीफ में आ गया था
नीग्रो को फाँसी पर लटका दिया गया
पोत के पिछले हिस्से में
या फेंक दिया गया समुद्र में
या खिला दिया गया है उसके खूंखार कुत्ते को।
खून में भूंजे गए प्याज में
नीग्रो की गंध आती है।
यह आज़ादी का कडुवा स्वाद देता है
और वे नीग्रो
उठ खड़े होते हैं अपने पैरों पर
अभी तक नीग्रो ख़ामोश थे,
अप्रत्याशित ढंग से
अपने पैरों पर उठ खड़े हुए हैं,
अपने पैरों पर जमे हुए हैं
पैर उनके जमे हुए हैं -
जहाज के डेक पर,
तेज़ हवा में,
तपते सूरज के नीचे,
बहते हुए ख़ून के साथ
और
आज़ाद हैं
अपने पैरों पर
पैर उनके जमे हुए हैं बगैर किसी घबराहट के
बगैर किसी मिल्कियत के
आज़ाद हैं सागर पर
लहरों पर डोलते और रुख बदलते हुए
अपने पैरों पर -
रस्सी को ताने हुए,
पतवार को संभाले हुए,
� डबलून्स : स्पॅनिश सोने का सिक्का।
कम्पास को साधे हुए,
दृष्टि टिकाए हैं नक्शे पर
सितारों के साए पर...
और
आज़ाद हैं
अपने पैरों पर
और लहरों से नहाया जहाज
बढ़ता जाता है आगे
लहरों को चीरते हुए
हमारे शर्म का कूड़ा-कचरा तुरंत पिघल जाता है
दोपहरी के हुंकारते सागर से
अर्धरात्रि के उगते सूरज से
पूरब का नियंत्रक
गोरैया भक्षी बाज
तक
मैं कहता हूँ -
निष्क्रिय दिन से
मैं कहता हूँ
बारिश से
गिरते पत्थरों से
कौन करता है
निगरानी इन चीखों की
पश्चिम में
उत्तरी भाग के सफेद कुत्तों की
दक्षिण भाग के काले सांपों की
मैं उन दोनों से कहता हूँ
किसने आसमान को तवा बनाया,
और एक सागर को पार करना है
और एक सागर को पार करना है
ओह! एक और सागर को पार करना है
ताकि मैं भाँप सकूँ
अपने फेफड़े का दम-खम
ताकि राजकुमार चुप्पी साध सके
ताकि रानी मुझे प्यार कर सके
और एक बूढ़े आदमी को मारना है
और एक पागल आदमी को मुक्त करना है
ताकि मेरी आत्मा चमक सके
चमकती छाल की तरह,
भौंको... भौंको... भौंको...
मेरे प्यारे असाधारण देवदूत
ताकि उल्लू घुघुआने लगे।
हँसी के गुरू?
ख़ामोश हैं कायरता के गुरू?
उम्मीद और निराशा के हैं गुरू?
आलस्य के हैं गुरू?
नृत्य के हैं गुरू?
वह मैं हूँ!
और इसके लिए हे ईश्वर,
कोमल स्वर से लैस होना चाहिए आदमी को,
भयंकर शांति बँटी हुई है त्रिभुज के बीच
लेकिन मेरे लिए मेरा नृत्य है,
मेरा नीग्रो नृत्य ख़राब है,
शाही नृत्य को तोड़ना है,
जेल को तोड़ने का नृत्य है,
यह अच्छा, सुंदर और विधि संगत है,
मेरे लिए मेरा नृत्य है,
मेरा नीग्रो नृत्य,
मेरे हाथों के रैकेट पर
सूरज टक्कर मार रहा है,
आसमान के लिए अब सूरज पर्याप्त नहीं है
मुझे तेज हवाओं को संबोधित करने दो
मेरे विकास के इर्द-गिर्द
खुद को लपेटो
मेरे इने-गिने उँगलियों पर है झूठ।
मैं तुम्हें देता हूँ -
विवेक और मानव स्वभाव की धड़कन,
आग, जो भून देती है कमजोरी को,
अपराधियों का झुंड,
सैलानियों के लिए दलदल वाली ज़मीन,
हवाओं को पचा लेने वाला तिकोनी क्षेत्र,
मेरे तेज तर्रार शब्द जिसे तुम पचा सकते हो,
चूमों मुझे जब तक मैं उग्र नहीं हो जाता
चूमों, हमें चूमों लेकिन काटो भी,
काटो हमें,
हमारे ख़ून से धरती को सींचने के लिए
चूमों, मेरी निष्कलंकता का कारण
अकेले तुम हो
लेकिन शाम को चूमों
बिलकुल कोमल रेशम की तरह
हमारी शुद्धता, भिन्न-भिन्न रंगों की है
मुझे अपनाओ
बगैर किसी शोक के
थाम लो तुम्हारे विशाल हाथों में
उज्ज्वल समय के लिए
दुनिया के नौ-सैनिकों में
मेरे कालों की छाया जोड़ लो
मुझे नियंत्रित करो
मुझे नियंत्रित करो कटु भाई-चारे से
तुम्हारे लब्ध प्रतिष्ठित लोग
अपने जाल से मेरा गला घोंट रहे हैं
अब तो जागो सोए हुए लोगो
जागो
जागो
जागो
मैं तुम्हारे पीछे चलूँगा
चलूँगा... चलूँगा...
अंकित है मेरी आँखों में
पुरखों की स्वच्छ जगह
आसमान को चाटने वाले
और महान काले लोग जागो
मैं जहाँ चाहता हूँ
छेद करो
मुझे डूबने दो
दूसरे चाँद में
वे वहाँ मौजूद हैं
जिसे मैं शिकार करना चाहता हूँ,
अंधेरे की दुष्कर्मी जुबान
जकड़ी हुई है
जाल में
--
GOOD
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर और सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएं