राकेश भ्रमर का व्यंग्य - देसी ओलिम्पिक

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चुटकी देसी ओलिम्पिक राकेश भ्रमर लंदन में ओलिम्पिक खेल आरंभ हो गए थे. इधर भारत के एक छोटे से शहर में चुस्तराम दुखी और उदास हो गए थे. अपने...

चुटकी

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देसी ओलिम्पिक

राकेश भ्रमर

लंदन में ओलिम्पिक खेल आरंभ हो गए थे. इधर भारत के एक छोटे से शहर में चुस्तराम दुखी और उदास हो गए थे. अपने मित्र सुस्तराम के पास जाकर बोले, ‘‘यार बड़े शर्म की बात है?’’

‘‘ऐसा क्या हो गया जो आप को शर्म आ रही है.’’ सुस्तराम ने बड़ी मुश्किल से चारपाई से उठकर एक किनारे बैठते हुए कहा.

‘‘शर्म की बात तो है ही. हमारा देश इतना बड़ा है. संसार में हमारे देश की जनसंख्या सबसे ज्यादा है. और हम...’’

‘‘आप गलत कह रहे हैं. जनसंख्या के हिसाब से चीन सबसे बड़ा देश है. हम दूसरे नंबर पर हैं.’’ सुस्तराम ने उन्हें बीच में टोंका.

‘‘बकवास कर रहे हो. जनसंख्या के हिसाब से भी हमारा देश संसार का सबसे बड़ा देश है. तुमको मालूम नहीं, जनगणना करनेवाले ठीक से घर-घर जाकर जनगणना नहीं करते. इसीलिए आंकड़ों के हिसाब से हम दूसरे नंबर पर हैं. परन्तु अगले साल हम आंकड़ों के हिसाब से नंबर एक पर आ जाएंगे.’’ चुस्तराम तैश में आ गये थे.

‘‘परन्तु आपको शर्म किस बात पर आ रही है?’’ सुस्तराम ने उन्हें याद दिलाया.

चुस्तराम फुर्ती से खटिया के एक कोने में बैठ गए, जैसे कि उन्हें डर था कि सुस्तराम अभी लेटकर पूरी खटिया पर कब्जा कर लेंगे. फिर उसांस भरकर बेाले, ‘‘अब तुम को तो कुछ पता रहता नहीं. या तो लेटे रहते हो या सोते रहते हो. इधर अंग्रेज हमारी खटिया खड़ी करते रहते हैं और हमें शर्म भी नहीं आती.’’

‘‘अंग्रेज तो कब का हमारी खटिया खड़ी करके चले गए. अब तो हम आजाद हैं, फिर हमें शर्म किस बात पर आएगी?’’ सुस्तराम को चुस्तराम की बातों से सुस्ती आ रही थी और वह आंखें मूंदकर सोने का प्रयास कर रहे थे.

‘‘तुम अहमक के अहमक ही रहोगे. कभी जागते हुए खुली आंखों से दुनिया को देखो तो पता चलेगा कि अंग्रेज अभी तक हमें ठग रहे हैं.’’ उन्होंने अपने हाथ चारों दिशा में लहराए.

‘‘वो कैसे...?’’ सुस्तराम को थोड़ा चुस्ती आई तो वह खटिया पर अधलेटे हो गए.

‘‘तुमको पता है, लंदन में ओलिम्पिक खेल हो रहे हैं?’’

‘‘वो तो हर चार साल बाद किसी न किसी देश-शहर में होते रहते हैं. इसमें हैरान-परेशान होनेवाली क्या बात है?’’

‘‘परेशानी की ही तो बात है. तुम्हें पता है, ओलिम्पिक खेलों में अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन या जापान ही सबसे ज्यादा पदक क्यों प्राप्त करते हैं?’’

‘‘क्यों...?’’ सुस्तराम ने अपनी आंखें बिखेरीं.

‘‘क्योंकि...’’ चुस्तराम ने अपने होंठों पर एक इंच मुसकान फैलाते हुए रहस्य खोला, ‘‘ये अंग्रेज बहुत चालाक हैं. इन्होंने ओलिम्पिक खेलों में सारे अंग्रेजी खेल रखे हैं. इसीलिए हम उनसे जीत नहीं पाते. ओलिम्पिक खेलों में देसी यानि भारतीय खेल होते तो हम भी पदक तालिका में सबसे आगे होते.’’

‘‘हां यार, ये बात तो सही है. इनमें देसी खेल तो कोई है ही नहीं.’’ फिर जैसे सुस्तराम को कुछ याद आया, ‘‘अरे नहीं, इनमें कुश्ती और कबड्डी तो हैं.’’

‘‘दुर, बुड़बक, ये खेल तो कब के अंग्रेजों ने हमारे देश से चुराकर अंग्रेजीनुमां बना लिए थे. तुमने देखा नहीं, न तो कुश्ती मिट्टी के दंगल में होती है, न कबड्डी खेतों या खलिहानों में. गिल्ली-डंडा का कहीं पता ही नहीं. ऐसी हालत में बताओ भला हम पदक कैसे जीतेंगे, जब इन खेलों में कोई भारतीय खेल नहीं है.’’

‘‘बात तो सोचनीय है.’’ सुस्तराम को चुस्तराम की तरह चिंता हो गयी.

‘‘हमें कुछ करना पड़ेगा.’’ चुस्तराम के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी हो गयीं.

‘‘क्या...?’’ सुस्तराम सुस्ती छोड़कर खटिया से इस प्रकार उठ खड़े हो गए, जैसे सीधे लंदन का टिकट कटा लेंगे और हनुमान की तरह उड़कर स्टेडियम में पहुंचकर देसी खेलों की शुरुआत कर देंगे.

‘‘हमें अपने ओलिम्पिक खेल स्वयं आयोजित करने चाहिए. मैं इसका प्रस्ताव बहुत जल्दी ही सरकार के समक्ष प्रस्तुत करनेवाला हूं.’’

‘‘तुम कैसे करोगे? तुम कोई कलमाडी तो हो नहीं कि जो कहोगे, सरकार मान जाएगी.’’

‘‘मैं इसके लिए अन्ना की तरह जनआंदोलन करूंगा.’’ चुस्तराम जोश से बोले.

‘‘अच्छा,’’ सुस्तराम व्यंग्य से मुसकराए, ‘‘और तुम समझते हो कि सरकार तुम्हारे आंदोलन के आगे झुक जाएगी. देख लो, अन्ना के आंदोलन का क्या हुआ? सरकार तो सरकार, अब तो जनता भी उसको नहीं पूछती.’’

‘‘फिर भी सरकार के पास प्रस्ताव भेजने में क्या जाता है? इस तरह कुछ दिन मीडिया के सामने रहेंगे. कुछ नाम तो होगा.’’

‘‘अच्छा ठीक है, तुम प्रस्ताव भेजोगे, परन्तु जिन खेलों के पहले से आयोजन हो रहे हैं, उनके समानान्तर दूसरा ओलिम्पिक कैसे मान्य होगा? मेरे ख्याल से पूरे विश्व में इन खेलों की एक ही आयोजन समिति है, जो सभी देशों की सहमति से इन खेलों का आयोजन करती है.’’

‘‘तुम ठीक से मेरी बात नहीं समझे. यह देसी खेलों की ओलिम्पिक समिति होगी और इसके खेल भी विश्व ओलिम्पिक समिति से अलग होंगे.’’

‘‘तो यह देसी ओलिम्पिक होंगे.’’

‘‘हां,’’

‘‘और इनमें कौन से देसी खेलों को सम्मिलित करोगे? क्या गिल्ली-डंडा, तीतर, मुर्गों और बटेर की लड़ाई आदि-आदि’’

‘‘तुम तो जनम के अहमक हो यार, तुमने अभी देखा ही नहीं कि हम भारतीयों ने ऐसे तमाम खेलों को ईजाद कर लिया है, जिनकी अभी तक विश्व के किसी देश को भनक तक नहीं लगी. एक बार देसी ओलिम्पिक प्रारंभ हो जाएं, फिर देखना हमारा देश अकेला ही सारे पदक ले जाएगा. अगर नहीं तो पदक तालिका में सबसे ऊपर रहेगा.’’

‘‘अच्छा, कौन से वह खेल हैं, जो हम खेल रहे हैं और मुझे पता तक नहीं.’’ सुस्तराम ने उत्सुकता दिखाई.

‘‘तुम तो चुपचाप खटिया में लेटे दिवा-स्वप्न देखते रहो. तुम को देश-दुनिया से क्या लेना-देना. मुफ्त की रोटी तोड़ते हो और मेरा मगज खाते हो.’’

‘‘रहने दो, अब ज्यादा भाव मत खाओ बता भी दो कि वह कौन से खेल हैं?’’

‘‘अभी तक जो खेल सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं और बड़े स्तर पर खेले जाते हैं, वह हैं- सट्टेबाजी और मटकाबाजी, इनमें क्रिकेट की सट्टेबाजी सबसे ज्यादा पापुलर है, अतः यह पहले नं. का खेल होगा, दूसरे नंबर पर मैच फिक्सिंग होगी.’’

‘‘हां, यार ये खेल तो बहुत अच्छे हैं. इनमें तो मैं भी भाग ले सकता हूं.’’ सुस्तराम खटिया पर से उछल पड़ा और जमीन पर गिरते-गिरते बचा, परन्तु चुस्तराम ने उसे गिरने से बचा लिया अर्थात उसे फिर से खटिया पर धकेल दिया.

‘‘अब खुली न तुम्हारे दिमाग की बत्ती... और आगे सुनो. इसके बाद ट्रैफिक नियमों को तोड़ने की प्रतियोगिता होगी, गलत साइड से ओवरटेकिंग की प्रतियोगिता होगी और रास्ते में गाड़ी टकराने से होनेवाली मारपीट का तो जवाब नहीं... यह प्रतियोगिता बड़ी दिलचस्प होगी और इसमें सबसे ज्यादा दर्शक उमड़ने की उम्मीद है.’’ चुस्तराम बड़ी बारीकी से एक-एक खेल प्रतियोगिता के बारे में बता रहे थे और सुस्तराम की सुस्ती को दूर कर रहे थे.

‘‘इसके बाद....?’’ सुस्तराम बाकी खेलों के बारे में जानने के लिए उतावले हो रहे थे.

‘‘इसके बाद सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने की प्रतियोगिता होगी, इसमें जलाकर नष्ट करनेवालों को प्राथमिकता दी जाएगी. तोड़-फोड़ करनेवाले दूसरे नंबर पर होंगे और जो दूर से पत्थर फेकेंगे, वह तीसरे नंबर पर आएंगे.’’

‘‘वाह्, इन खेलों का आयोजन करने पर तो दर्शकों की भीड़ उमड़ पड़ेगी. उनके लिए इतनी सीटों का प्रबंध कैसे होगा और क्या वे एक स्टेडियम में आ पाएंगे.’’

‘‘फिर वहीं अहमकों वाली बात कर दी न्! यह सारे खेल खुली सड़कों पर आयोजित होंगे और जो जहां होगा, वहीं से खड़ा होकर फिल्म की तरह इन खेलों का मजा लेगा.’’ चुस्तराम ने सुस्तराम की बात पर नाराजगी जताई.

‘‘अच्छा, बाकी खेलों के बारे में बताओ.’’ उसने मनुहार करते हुए कहा.

‘‘खेल तो बहुत सारे हैं, परन्तु क्या सभी मुझसे ही सुन लोगे, देखोगे नहीं? कुछ मजा बाद के लिए भी बचाकर रख लो मेरे भाई.’’

‘‘कोई बात नहीं, बाद का मजा बाद में ले लेंगे. तुम तो मुख्य-मुख्य दिलचस्प खेलों के बारे में बता दो. रात में मैं भी मनन करूंगा. हो सकता है, कुछ अन्य खेलों के बारे में बता सकूं.’’

‘‘अवश्य... एक खेल और है, जो नेताओं के लिए होगा. इसमें एक सांस में या निर्धारित समय-सीमा में अधिक से अधिक झूठ बोलने होंगे या ऐसे वायदे करने होंगे जो कभी पूरे न हो सकें.’’

‘‘इसमें तो हमारे देश के सभी नेता अव्वल नंबर पर आएंगे. लेकिन क्या सारी प्रतियोगिताएं आम नागरिकों के लिए ही होंगी. कुछ सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के लिए भी आयोजन करोगे न्!’’

‘‘हां, उनके लिए भी एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाएगा. जो कर्मचारी या अधिकारी जितने ज्यादा बहाने बनाकर आम आदमी का काम करने में देरी लगाएगा और काम करने के लिए जितना ज्यादा पैसा घूस में वसूल लेगा, उसी क्रम में वह विजयी माना जाएगा.’’

‘‘इसमें तो हमारे आफिस-आफिस सीरियल वाले अभिनेता भाग लेंगे, तो बड़ी आसानी से जीत जाएंगे.’’

‘‘अबे गधे, वह सब अभिनेता हैं. वास्तविक जीवन में उससे बड़े घाघ पड़े हैं जिनके कारनामे आफिस में जाकर देखोगे, तो आश्चर्य से तुम्हारा हार्ट अटैक हो जाएगा. तुम तो कभी किसी सरकारी दफ्तर गए नहीं होगे, तुम्हें क्या पता?’’ चुस्तराम ने सुस्तराम के अज्ञान पर व्यंग्य किया.

‘‘हां, यह बात तो है. मैंने तो नाटक या फिल्म के ही सरकारी दफ्तर देखे हैं.’’

‘‘तो अब देसी ओलिम्पिक में असली कर्मचारियों और अधिकारियों की कारगुजारियों को देख लेना और बाद में अपना माथा पीटना.’’

‘‘अच्छा, अभी बताने के लिए कुछ और है या नहीं. मुझे नींद आ रही है.’’

‘‘नहीं, अब कल ही बताऊंगा. अभी तुम आराम से सो जाओ और सपनों में कुछ नए खेलों की ईजाद करो.’’

‘‘हां, तुम भी जाओ और खा-पीकर सो जाओ. खेलों के आयोजन के लिए तुम्हें बहुत परिश्रम करना पड़ेगा.’’

‘‘अभी तो बाजार जाना है. घर में घरवाली सब्जी के लिए इंतजार कर रही होगी. समय पर नहीं पहुंचूंगा तो वह मेरा कीमा बनाकर खा जाएगी.’’

‘‘थोड़ा सा मेरे लिए भी भिजवा देना. काफी दिनों से नानवेज नहीं खाया. सावन चल रहा था न्!’’

‘‘इतनी देर से मेरा भेजा चाट रहे थे, क्या अभी तक पेट नहीं भरा?’’

‘‘वह तो तुम मेरा चाट रहे थे.’’ सुस्तराम ने उल्टा वार किया और दोनों ठठाकर हंस पड़े.

चुस्तराम उठकर चलने के लिए उद्यत हुए तो सुस्तराम ने लंबी जंभाई लेकर खाट पकड़ ली यानि की निद्रा में निमग्न हो गए.

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(राकेश भ्रमर)

ई-15, प्रगति विहार हास्टल,

लोधी रोड, नई दिल्ली-110003

मोबाइल-09968020930

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रचनाकार: राकेश भ्रमर का व्यंग्य - देसी ओलिम्पिक
राकेश भ्रमर का व्यंग्य - देसी ओलिम्पिक
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